दोस्त की प्रतिस्पर्धा - लघु कथा


एक सुंदर-सा गाँव था। जिसका नाम शांतिपुर था। चारों तरफ लहलहाती हरी-भरी फसलें, अनेकों पेड़-पौधों से भरे बगीचे तथा सड़कों के किनारे लगे पेड़-पौधे उस गाँव की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे। उसी गाँव में दो दोस्त रहते थे। विवेक और विकास। विवेक सीधा-सादा लड़का था, जबकि विकास नटखट एवं शरारती लड़का था। वह हमेशा किसी-न-किसी से झगड़ा करने को उतावला हो जाता था। दोनों पक्के दोस्त थे। खेलने, घूमने, पढ़ने या जहां कहीं भी जाना हो, एक ही साथ जाते थे। दोनों दोस्त गाँव से कुछ दूरी पर स्थित स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ते थे। विवेक अपनी कक्षा में सबसे तेज एवं बुद्धिमान लड़का था, जबकि विकास को पढ़ाई में बिलकुल भी मन नहीं लगाता था। वार्षिक परीक्षा होने में कुछ समय शेष था। 

विवेक सोच रहा था कि मेरे दोस्त का मन पढ़ने में नहीं लगता है। आखिर ऐसा क्या करें कि वह पढ़ने में मन लगाये। तभी उसे एक उपाय सुझा। दूसरे दिन विवेक, विकास और उसके अन्य साथी स्कूल के मैदान में एक साथ खेल रहे थे। तभी विवेक ने सभी साथियों के सामने विकास से कहा - विकास, तुम खेलने, कूदने, उलझने सब कुछ में आगे हो, लेकिन पढ़ने में इतने पीछे क्यों हो? क्या तुम कभी मुझसे अच्छे मार्क्स ला सकते हो?

अपने दोस्तों के सामने ऐसी बातें सुन कर विकास को बहुत बुरा लगा। उसने मन-ही-मन ठान लिया कि इस बार के परीक्षा में वह अच्छे मार्क्स लायेगा। वह दिन-रात मेहनत करने लगा। विवेक जानता था कि सारे दोस्तों के सामने उसके द्वारा दी गयी चुनौती को विकास स्वीकार करेगा। इसलिए दोनों जम कर तैयारी करने लगे। उन दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा की स्थिति बन गयी। देखते-देखते परीक्षा की घड़ी आ गयी। दोनों ने पूरी मेहनत के साथ परीक्षा दी। अब सभी को वार्षिक परीक्षा के परिणाम का इंतजार था। विकास के जीवन में विवेक की सूझ-बुझ ने रंग लायी और दोनों अपने वर्ग में अव्वल आये। विकास के अव्वल होने से सभी छात्र काफी हैरान थे। उसे सभी बधाई दे रहे थे और सवाल भी कर रहे थे कि इस चमत्कार के पीछे की वजह क्या है। तब विकास ने कहा-यह सब मेरे दोस्त और कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण ही संभव हो पाया। साथ ही उसने यह भी कहा कि विवेक मेरा बेस्ट फ्रेंड है, जिसने मुझे इस मुकाम पर पहुंचा दिया। विवेक भी बहुत खुश था कि उसने सच्चे दोस्त होने का फर्ज निभाया है। शिक्षकों ने भी विवेक के इस प्रयास के लिए उसकी खूब सराहना की। अब दोनों दोस्त मन लगा कर पढ़ाई करने लगे। शांतिपुर गाँव में उनकी दोस्ती एक मिसाल बन गयी। 

बुद्धिमान हंस - प्रेरक कथा


एक बहुत विशाल पेड़ था। उस पर कई हंस रहते थे। उनमें से एक हंस बहुत सयाना था। वह बुद्धिमान होने के साथ-साथ दूरदर्शी भी था। सभी उसका आदर करते और ताऊ कह कर बुलाते थे। एक दिन उसने एक नन्ही सी बेल को पेड़ के ताने से लिपटते पाया। ताऊ ने दूसरे हंसों को बुला कर कहा- देखो इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी। एक युवा हंस ने हँसते हुए बोला - ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी?
सयाने हंस ने समझाया, आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही है। धीरे-धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेट मार कर ऊपर तक आयेगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा। धीरे-धीरे यह एक सीढ़ी का रूप ले लेगा और कोई भी इसके सहारे ऊपर चढ़कर हम तक पहुँच जायेगा और हम मारे जाएंगे। 

दूसरे हंसों को यकीन न आया, वे बोले ताऊ, तुम तो एक छोटी-सी बेल को खींच कर ज्यादा ही लंबा कर रहे हो।

एक ने कहा की यह ताऊ अपनी बुद्धिमानी का रौब जमाने के लिए कहानी बना रहा है। इस तरह किसी भी हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। शायद उतनी दूर तक देख पाने की उनमें अक्ल नहीं थी। समय बीतता रहा। बेल लिपटते-लिपटते ऊपर शाखों तक पहुँच गयी। अब तक बेल इतना मजबूत हो गया था की उसे नष्ट करना अब हंसों के बस की बात नहीं थी। 

एक दिन जब सारे हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे, तब एक बहेलिया उधर से गुजर रहा था। पेड़ पर बनी बेल की सीढ़ी को देखते ही उसने पेड़ पर चढ़ कर जाल बिछाया और चला गया। शाम को सारे हंस लौट आए और पेड़ पर बैठते ही बहेलिये के जाल में बुरी तरह फंस गये। जब वे जाल में फंस गये और फड़फड़ाने लगे, तब उन्हें ताऊ की बात याद आयी। सभी ताऊ की बात नहीं मानने के लिए लज्जित थे और अपने आप को कोस रहे थे। ताऊ चुप बैठा था। एक हंस ने हिम्मत करके कहा - ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन हमसे मुंह मत फेरो। 

ताऊ मान गये। उन्होने कहा की मेरी बात ध्यान से सुनो। सुबह जब बहेलिया आएगा तब मुर्दा होने का नाटक करना। बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझ कर जमीन पर रखता जायेगा। वहाँ भी मरे हुए के समान ही पड़े रहना, जैसे ही वह अंतिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊँगा। मेरी सीटी सुनते ही सब उड़ जाना। सुबह बहेलिया आया। हंसों ने वैसा ही किया। सचमुच बहेलिया हंसों को मुर्दा समझ कर जमीन पर पटकता गया। आखिरी हंस को पटकते ही ताऊ ने सीटी बजाई। सीटी की आवाज के साथ ही सारे हंस उड़ गये। बहेलिया आवाक होकर देखता रह गया। 

सीख: बुद्धिमान और अनुभवी लोगों की सलाह हमेशा माननी चाहिए।