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वात रोग

वात रोग

          जो रोग शरीर में वायु के कारण पैदा होता है उसे वातरोग कहते हैं। वायु का दोष त्रिदोषों (वात, पित्त और कफ) में से एक मुख्य दोष हैं। यदि इसमें किसी प्रकार का विकार पैदा होता है तो शरीर में तरह-तरह के रोग पैदा हो जाते हैं जैसे- मिर्गी, हिस्टीरिया, लकवा, एक अंग का पक्षाघात, शरीर का सुन्न होना आदि।परिचय :

विभिन्न भाषाओं में नाम :


हिन्दी

वायु की बीमारियां।

अंग्रेजी

डिजीजेज ऑफ नर्वस् सिस्टम।

अरबी

वात बेमार, वायरोग।

बंगाली

बातरोग।

गुजराती

वानि बीमारी।

कन्नड़

वायु रोग।

मलया

वात रोगम्।

पंजाबी

वायु दे रोग।

तमिल

वात दे रोग।

तेलगु

वातरोगमुलु।

लक्षण     :

          वायु के कुपित होने पर संधियों (हडि्डयों) में संकुचन, हडि्डयों में दर्द, शरीर में कंपन, सुन्नता, तीव्र शूल, आक्षेप (बेहोशी), नींद न आना, प्रलाप, रोमांच, कूबड़ापन, अपगन्ता, खंजता (बालों का झड़ जाना), थकान, शोथ (सूजन), गर्भनाश, शुक्रनाश, सिर और शरीर के सारे भाग कांपते रहते हैं, नाक, लकवे से आधा मुंह टेढ़ा होना और गर्दन भी टेढ़ी होना या अन्दर की ओर धंस जाने जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।

भोजन तथा परहेज :

1. लहसुन :
2. एरण्ड :
3. तिल :
4. निर्गुण्डी :
5. गाय का घी : 10 ग्राम गाय के घी में 10 ग्राम निर्गुण्डी के चूर्ण को मिलाकर खाने से कफ और वायु रोग दूर हो जाते हैं।
6. भेड़ का दूध : भेड़ के दूध में एरण्ड का तेल मिलाकर मालिश करने से घुटने, कमर और पैरों का वात-दर्द खत्म हो जाता है। तेल को गर्म करके मालिश करें और ऊपर से पीपल, एरण्ड या आक के पत्ते ऊपर से लपेट दें। 4-5 दिन की मालिश करने से दर्द शान्त हो जाता है।
7. काकजंगा : घी में काकजंगा को मिलाकर पीने से वातरोग से पैदा होने वाले रोग खत्म हो जाते हैं।
8. समुद्रफल :
8. जायफल : जायफल, अंबर और लौंग को मिलाकर खाने से हर तरह के वातरोग दूर होते हैं।
9. कौंच : कौंच के बीजों की खीर बनाकर खाने से वातरोग दूर हो जाते हैं।
10. नींबू :
11. असगन्ध :
12. अफीम : थोड़ी सी मात्रा में अफीम खाने से गठिया के तेज दर्द में आराम मिलता है।
13. नारियल :
14. आलू : कच्चे आलू को पीसकर, वातरक्त में अंगूठे और दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द कम होता है।
15. राई :
16. चमेली : चमेली की जड़ का लेप या चमेली के तेल को पीड़ित स्थान पर लगाने या मालिश करने से वात विकार में लाभ मिलता है।
17. इन्द्रजौ : इन्द्रजौ का काढ़ा बनाकर उसमें संचन और सेंकी हुई हींग को डालकर वातरोगी को पिलाने से लाभ होता है।
18. आक :
19. मुलेठी :
20. आंवला : आंवला, हल्दी तथा मोथा के 50 से 60 मिलीलीटर काढ़े में 2 चम्मच शहद को मिलाकर दिन में 3 बार पीने से वातरक्त शान्त हो जाता है।
21. चित्रक : चित्रक की जड़, इन्द्रजौ, काली पहाड़ की जड़, कुटकी, अतीस और हरड़ को बराबर मात्रा में लेकर खुराक के रूप में सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के वात रोग नष्ट हो जाते है।
22. अदरक : अदरक के रस को नारियल के तेल में मिलाकर वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करना लाभकारी रहता है।
23. गाजर : गाजर का रस संधिवात (हड्डी का दर्द) और गठिया के रोग को ठीक करता है। गाजर, ककड़ी और चुकन्दर का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से जल्दी लाभ होता है। यदि ये तीनों सब्जियां उपलब्ध न हो तो उन्ही का मिश्रित रस पीने से शीघ्र लाभ होता है।
24. अड़ूसा (वासा) : अड़ूसा के पके हुए पत्तो को गर्म करके सिंकाई करने से संधिवात, लकवा और वेदनायुक्त उत्सेध में आराम पहुंचता है।
25. अगस्ता : अगस्ता के सूखे फूलों के 100 ग्राम बारीक चूर्ण को भैंस के एक किलो दूध में डालकर दही जमा दें। दूसरे दिन उस दही में से मक्खन निकालकर वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करें। इस मक्खन की मालिश खाज पर करने से भी लाभ होता है।
26. गिलोय :
27. मेथी :
28. इमली : इमली के पत्तों को ताड़ी के साथ पीसकर गर्म करके दर्द वाले स्थान पर बांधने से लाभ होता है।
29. अखरोट : अखरोट की 10 से 20 ग्राम की ताजी गिरी को पीसकर वातरोग से पीड़ित अंग पर लेप करें। ईंट को गर्म करके उस पर पानी छिड़क कर कपड़ा लपेटकर पीड़ित स्थान पर सेंक देने से पीड़ा शीघ्र मिट जाती है। गठिया पर इसकी गिरी को नियमपूर्वक सेवन करने से रक्त साफ होकर लाभ होता है।
30. पुनर्नवा : श्वेत पुनर्नवा की जड़ को तेल में शुद्ध करके पैरो में मालिश करने से वातकंटक रोग दूर हो जाता है।
31. शतावर :
32. कुलथी : 60 ग्राम कुलथी को 1 लीटर पानी में उबालें। पानी थोड़ा बचने पर उसे छानकर उसमें थोड़ा सेंधानमक और आधा चम्मच पिसी हुई सौठ को मिलाकर पीने से वातरोग और वातज्वर में आराम आता है।
33. नागरमोथा : नागरमोथा, हल्दी और आंवला का काढ़ा बनाकर ठंड़ा करके शहद के साथ पीने से खूनी वातरोग में लाभ पहुंचता है।
34. वायबिडंग : आधा चम्मच वायबिड़ंग के फल का चूर्ण और एक चम्मच लहसुन के चूर्ण को एकसाथ मिलाकर सुबह-शाम रोजाना खाने से सिर और नाड़ी की कमजोरी से होने वाले वात के रोग में फायदा होता है।
35. तुलसी : तुलसी के पत्तों को उबालते हुए इसकी भाप को वातग्रस्त अंगों पर देने से तथा इसके गर्म पानी से पीड़ित अंगों को धोने से वात के रोगी को आराम मिलता है। तुलसी के पत्ते, कालीमिर्च और गाय के घी को एकसाथ मिलाकर सेवन करने से वातरोग में बहुत ही जल्दी आराम मिलता है।
36. सोंठ :
37. अजवायन :
37. कूट : कूट 80 ग्राम, चीता 70 ग्राम, हरड़ का छिलका 60 ग्राम, अजवायन 50 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, छोटी पीपल 30 ग्राम और बच 20 ग्राम के 10 ग्राम भूनी हुई हींग को कूटकर छानकर रख लें। फिर इसमें 5 ग्राम चूर्ण को सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से वायु की बीमारी में लाभ होता है।
38. सौंफ : सौंफ 20 ग्राम, सोंठ 20 ग्राम, विधारा 20 ग्राम, असंगध 20 ग्राम, कुंटकी 20 ग्राम, सुरंजान 20 ग्राम, चोबचीनी 20 ग्राम और 20 ग्राम कडु को कूटकर छान लें। इस चूर्ण को 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम खाना खाने के बाद गुनगुने पानी के साथ लेने से वात के रोगों में आराम मिलता है।
39. रास्ना : 50 ग्राम रास्ना, 50 ग्राम देवदारू और 50 ग्राम एरण्ड की जड़ को मोटा-मोटा कूटकर 12 खुराक बना लें। रोजाना रात को 200 मिलीलीटर पानी में एक खुराक को भिगों दें। सुबह इसे उबाल लें। जब पानी थोड़ा-सा बच जायें तब इसे हल्का गुनगुना करके पीने से वातरोग में आराम मिलता है।
40. नमक :
41. महुआ : महुआ के पत्तों को गर्म करके वात रोग से पीड़ित अंगों पर बांधने से पीड़ा कम होती हैं।
42. मूली : मूली के रस में नींबू का रस और सेंधानमक को मिलाकर सेवन करने से वायु विकार से उत्पन्न पेट दर्द समाप्त होता है।
43. प्याज : वायु के कारण फैलने वाले रोगों के उपद्रवों से बचने के लिए प्याज को काटकर पास में रखने या दरवाजे पर बांधने से बचाव होता हैं।
44. अजमोद : मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) में वायु का प्रकोप होने पर अजमोद और नमक को साफ कपड़े में बांधकर नलों पर सेंक करने से वायु नष्ट हो जाती है।
45. अमलतास :
46. पोदीना :
47. फालसे : पके फालसे के रस में पानी को मिलाकर उसमें शक्कर और थोड़ी-सी सोंठ की बुकनी डालकर शर्बत बनाकर पीने से पित्तविकार यानि पित्तप्रकोप मिटता है। यह शर्बत हृदय (दिल) के रोग के लिए लाभकारी होता है।    
48. तेजपत्ता : तेजपत्ते की छाल के चूर्ण को 2 से 4 ग्राम की मात्रा में फंकी लेने से वायु गोला मिट जाता है।

प्लेग (PLAGUE)






प्लेग


          प्लेग एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है। इसको अग्निरोहिणी तथा संस्कृत में औपसर्गिक सन्निपात के नाम से भी जाना जाता है।परिचय
:

कारण :

        प्लेग की बीमारी अनेक कारणों से फैलती है। पृथ्वी पर पर्यावरण प्रदूषण जैसे पानी व हवा अधिक दूषित हो जाती है जिससे वातावरण में विषैले जीवाणु फैल जाते हैं। विषैले जीवाणु जब कीट बनकर वातावरण में फैलते हैं तो यह महामारी का रूप ले लेते हैं जो प्लेग की बीमारी के रूप में अन्य जीवों व मनुष्यों में फैल जाते हैं। जब घरों में चूहे मर जाते हैं और मरने के बाद अगर वह कई दिनों तक घर में पड़े रहते है तो उसमें से निकलने वाली विषैली बदबू प्लेग का कारण बन जाती है।

लक्षण :

          प्लेग की बीमारी के जीवाणु सबसे पहले खून को प्रभावित करते हैं जिसके कारण रोगी को तेज बुखार जकड़ लेता है। इस प्रकार की बीमारी होने पर कुछ समय में ही बुखार बहुत ही विशाल रूप ले लेता है और रोगी के हाथ-पांव में अकड़न होने लगती है। इस रोग के होने पर रोगी के सिर में तेज दर्द, पसलियों का दर्द, उल्टियां एवं दस्त होते रहते हैं। इसके साथ-साथ रोगी की आंखे लाल हो जाती है और कफ व पेशाब के साथ खून निकलने लगता है। इस रोग के होने पर रोगी को बेचैनी बढ़ जाती है।
1. सरसो : पीली सरसो, नीम के पत्ते, कपूरकचरी, जौ, तिल, खांड़ और घी आदि को लेकर आग में जलाकर धुआं करने से हमारे आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। यह धुआं प्लेग को फैलने से रोकता है।
2. गुग्गुल : धूप और गुग्गुल को हवन सामग्री के जले हुए उपले पर जलाकर धुआं करने से दूषित वातावरण शुद्ध हो जाता है और प्लेग जैसी बीमारी नहीं फैलती है।345821
3. कपूर : प्लेग से बचने के लिये और अपने आस-पास के वातावरण को शुद्ध करने के लिये कपूर को जलाकर घर में उसका धुआं करना चाहिए।
4. आंवला : प्लेग के रोग को दूर करने के लिये सोनागेरू, खटाई, देशी कपूर, जहर मोहरा और आंवला को 25-25 ग्राम की मात्रा में लेकर तथा पपीते के बीज 10 ग्राम लेकर एक साथ मिलाकर कूटकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को कागजी नींबू के रस मे 3 घंटों तक घोटने के बाद मटर के बराबर गोलियां बना लें। उन गोलियों में से एक गोली 7 दिनों में एक बार खाने से प्लेग की बीमारी में लाभ होता है।
5. पीपल : छोटी पीपल, कालीमिर्च, लोंग, आक के फूल, अदरक इन पांचों को एक ही मात्रा में लेकर और पीसकर मटर के बराबर गोलियां बनाकर 1-1 गोली प्रतिदिन पानी के साथ लेने से प्लेग के रोग में लाभ मिलता है और सिर का दर्द, उल्टियां व पसलियों का दर्द ठीक हो जाता है।
6. नौसादर : नौसादर, आक के फूल, शुद्ध वत्सनाग और पांचों नमक को बराबर मात्रा में मिलाकर और बारीक पीसकर प्याज के रस में 3 घंटों तक घोटकर लगभग आधा ग्राम की गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली ताजे पानी से प्रतिदिन सुबह-शाम और रात को खाने से प्लेग के रोगी को लाभ होता है।
7. मुनक्का : मुन्नका, सौंफ, पीपल, अनन्तमूल और रेणुका को बराबर मात्रा में लेकर इससे 8 गुना पानी में डालकर गर्म करें। चौथाई पानी शेष रहने पर इसे उतारकर और छानकर गुड़ व शहद के साथ मिलाकर रोजाना सेवन करें। इससे प्लेग के रोगी का रोग दूर हो जाता हैलाल चंदन : गिलोय, इन्द्रजौ, नीम की छाल, परवल के पत्ते, कुटकी, सोंठ और नागरमोथा को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाक उसमें 3 ग्राम पीपल का चूर्ण डालकर पीने से प्लेग का रोग दूर हो जाता है।
8. सोंठ : सोंठ, चित्रक, चव्य, पीपल और छोटी पीपल को बराबर मात्रा में लेकर उसको दरदरा यानी मोटा-मोटा कूटकर उसके 8 गुना पानी के साथ गर्म कर लें। चौथाई पानी बच जाने पर इसे छानकर सेवन करें। इससे प्लेग के रोग के कारण आने वाला बुखार मिट जाता है।
9. प्याज : कच्चे प्याज को सिरके के साथ प्रतिदिन खाने से प्लेग की बीमारी दूर हो जाती है।
10. जलधनिया : जलधनिया को पीसकर प्लेग की गांठो पर लगाने से लाभ मिलता है।
11. पपीता : पपीते को रोजाना सुबह-शाम खाने से प्लेग का रोग दूर हो जाता है और पेशाब एवं कफ में खून का आना बन्द हो जाता है।
12. सिरका : सिरके का सेवन करने से प्लेग की बीमारी दूर हो जाती है और सिर व पसलियों का दर्द दूर होता है।
13. लाजवन्ती : प्लेग के रोगी को 80 मिलीलीटर की मात्रा में लाजवन्ती के पत्तों का रस सेवन कराने से प्लेग रोग ठीक हो जाता है।
14. फिटकरी:
15. इमली : इमली का पानी पीने से प्लेग, गर्मी का ज्वर और पीलिया का रोग दूर होता है।
16. इन्द्रायण : इन्द्रायण की जड़ की गांठ को (इसकी जड़ में गांठे होती है) यथा सम्भव सबसे निचली या 7 वें नम्बर की लें। इसे ठंड़े पानी में घिसकर प्लेग की गांठों पर दिन में 2 बार लगायें। डेढ़ से 3 ग्राम तक की खुराक में इसे पीने से गांठे एकदम बैठने लगती है और दस्त के रास्ते से प्लेग का जहर निकल जाता है और रोगी की मूर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है।
17. अमलतास : अमलतास की पकी ताजी फली का गूदा बीजों सहित पीसकर प्लेग की गांठों पर लेप करने से आराम मिलता है।
18. नीम :
19. नारियल : नारियल के खोपरे को मूली के रस में घिसकर लेप करने से प्लेग के रोग में लाभ मिलता है।

गले में खराश को दूर करने के आसान घरेलू उपय

बदलते मौसम में गले में खराश (Gale me kharash) होना एक आम समस्या है। अधिक ठंडे पदार्थ खाने-पीने और बीमार व्यक्ति के संपर्क में रहने से गले की समस्या (Gale ki samasya) पैदा होती है। प्रस्तुत हैं कुछ आसान घरेलू उपाय, जिन्हें अपना कर इस समस्या से छुटकारा पाया हा सकता है।

काली मिर्च-तुलसी का काढ़ा दूर करता है गले की खराश
  • गुनगुने पानी में नमक मिला कर दिन में दो-तीन बार गरारे करें। गरारे करने के तुरंत बाद कुछ ठंडा न लें। गुनगुना पानी पीयेँ, जिससे गले को आराम मिलेगा। 
  • आधा ग्राम कच्चा सुहागा मुंह में रखें और उसका रस चूसते रहें। दो-तीन घंटों में ही लाभ हो जाएगा। 
  • रात को सोते समय सात काली मिर्च और उतनी ही मिश्री मुंह में रख कर धीरे-धीरे चूसते रहने से बैठा गला खुल जाता है। 
  • सुबह-शाम चार-पाँच मुनक्का के दानों को खूब चबा कर खा लें, लेकिन ऊपर से पानी न पीयेँ। 10 दिनों तक लगातार ऐसा करने से बचाव होगा। 
  • एक कप पानी में 4-5 काली मिर्च एवं तुलसी की कुछ पत्तियों को उबाल कर काढ़ा बना कर पी जाएं। 
  • गुनगुने पानी में सिरका डाल कर गरारे करने से भी गले के रोग दूर हो जाते हैं। 
  • पानी में पांच अंजीर को डाल कर उबाल लें और इसे छान कर इस पानी को गरम-गरम सुबह और शाम को पीने से खराब गले में लाभ होता है। 
  • सुबह-सुबह सौंफ चबाने से बंद गला खुल जाता है। 

नाभि में हींग का लेप लगाने से दूर होती है पेट की समस्या

हींग (Asafetida) को रोज खाने का जायका बढ़ाने के लिए सब्जियों में प्रयोग किया जाता है। यह खाना को तो टेस्टी बनाता ही है, साथ ही पेट रोगों को भी दूर करता है। यहाँ प्रस्तुत है हींग (Hing) से होनेवाले प्रमुख घरेलू उपचार।

नाभि में हींग का लेप लगाने से दूर होती है पेट की समस्या
  • हींग पीस कर (Hing powder) पानी में घोलें। इसे सूंघने से सर्दी-जुकाम, सिर का भारीपन व दर्द दूर होता है। पीठ, गले और सिने पर लेप करने से श्र्वास रोग दूर होते हैं।
  • हींग को पानी में घिस कर दाद पर लगाएँ, लाभ होगा। 
  • प्रसव के बाद हींग (Hing) लेने से गर्भाशय की शुद्धि होती है और पेट संबंधी कोई परेशानी नहीं होती है। 
  • घाव ठीक नहीं हो रहा हो, तो हींग को नीम के पत्तों के साथ पीस कर घाव पर लगाएँ। लाभ होगा। 
  • अफीम का नशा उतारने के लिए थोड़ी-सी हींग पानी (Hing ka pani) में घोल कर पीला दें। नशा तुरंत टूट जायेगा। 
  • पसलियों में दर्द होने पर हींग (Hing) को गरम पानी में घोल कर लेप लगाएँ, सूखने पर प्रक्रिया दोहराएँ।
  • नाभि के आस-पास गोलाई में हींग के पानी का लेप करने से पेट का दर्द, फूलना व भारीपन दूर होता है। 
  • हींग के चूर्ण (Hing ka Churn) में थोड़ा-सा नमक मिला कर पानी के साथ लेने से लो ब्लड प्रेशर में आराम मिलता है। 
  • दांत में कीड़े (Danton me Kide) लगने पर भुनी हुई हींग को रुई के फाहे में लपेटकर दांत में रखें। दर्द से आराम मिल जायेगा। 

कब्ज (Kabj) दूर करने के घरेलू उपाय

कब्ज (Kabj) का मूल कारण शरीर में तरल पदार्थ की कमी। पानी की कमी से आंतों में मल सुख जाता है और कब्ज हो जाता है। कुछ आसान उपायों से इससे मुक्ति मिल सकती है। 

पुराना कब्ज दूर करता है पालक का रस
  • रात को सोते समय एक गिलास गरम दूध पीएं। समस्या ज्यादा हो, तो दूध में तीन-चार चम्मच अरंडी तेल मिला कर पीना चाहिए। 
  • दूध या पानी के साथ दो-तीन चम्मच इसबगोल की भूसी रात को सोते वक्त लें। 
  • गरम जल में एक नींबू निचोड़ कर दिन में दो-तीन बार पीएं। जरूर लाभ मिलेगा। 
  • एक गिलास दूध में एक-दो चम्मच घी मिला कर रात को सोते समय पीएं। कब्ज दूर होगा। 
  • एक कप गरम जल में एक चम्मच शहद मिला कर पीएं। यह मिश्रण दिन में तीन बार पीएं। 
  • सुबह उठ कर एक लीटर गरम पानी पीकर दो-तीन किलोमीटर घूमें। 
  • दो सेब प्रतिदिन खाने से भी कब्ज में लाभ होता है। 
  • अमरूद और पपीता का सेवन भी कब्ज रोगी (Kabj rogi) के लिए अमृत तुल्य है। 
  • किशमिश पानी में तीन घंटे गला कर खाने से आंतों को ताकत मिलती है और कब्ज दूर होता है। 
  • अलसी के बीजों का चूर्ण एक गिलास पानी में 20 ग्राम डालें और तीन-चार घंटे के बाद छान कर पानी पी लें। 
  • एक गिलास पालक का रस रोज पीएं। पुराना कब्ज भी इस उपचार से मिट जाता है। 

जलने पर क्या करे प्राथमिक उपचार

कई बार लापरवाही तो कभी अनजाने में शरीर के किसी हिस्से के जल जाने पर काफी कष्ट होता है। अगर जले हुए हिस्से का तुरंत उपचार नहीं किया जाये, तो वह आगे चलकर विस्तृत रूप ले सकता है। ऐसे में कुछ घरेलू उपाय अपना कर नुकसान को कम किया जा सकता है। आइए जानते हैं इन उपायों को। 

जलने के दाग को दूर करता है तुलसी का पत्ता
  • जलने पर सबसे पहले उस पर ठंडा पानी डालें। अच्छा यह होगा की जले हुए अंग को लिसी बर्तन में पानी भरकर उसमें डुबो दें। 
  • हल्दी का पानी जले हुए हिस्से पर लगाना चाहिए। इससे दर्द कम होता है और आराम मिलता है। 
  • कच्चा आलू पीस कर लगाने से भी फायदा होता है। 
  • तुलसी के पत्तों का रस जले हुए हिस्से पर लगाने से हाले हिस्से में दाग होने की आशंका कम होती है। 
  • शहद में त्रिफला चूर्ण मिला कर लगाने से जले हुए हिस्से को आराम मिलता है। 
  • तिल को पीसकर लगाएँ, इससे जलन और दर्द नहीं होगा। जलनेवाले हिस्से पर पड़े दाग भी समाप्त होते हैं। 
  • गाजर को पीसकर जले हुए हिस्से पर लगाने से काफी आराम मिलता है। 
  • जले पर नारियल तेल लगाने से जलन कम होगी, जिससे आराम मिलेगा। 

मधुमक्खी (Honey bee) के डंक मारने पर क्या उपचार करें

तुलसी पत्ते के रस से मधुमक्खी डंक (Madhumakkhi) में आराम

मधुमक्खी के डंक  (Madhumakkhi ke dank) मारने पर बहुत ही तेज दर्द और जलन होती है। डंक मारे गये स्थान पर सूजन भी हो जाती है। कुछ घरेलू उपायों (Gharelu upay) से इससे होनेवाली तकलीफ से बचा जा सकता है। (Madhumakkhi ke katne par kya gharelu upchar karen).

मधुमक्खी के डंक मारने पर क्या उपचार करें
  • मधुमक्खी के डंक मारे हुए भाग को तुरंत ठंडे पानी में डुबो कर पाँच मिनट तक रखें। ऐसा करने से जलन थोड़ी कम हो जाएगी। 
  • मधुमक्खी के डंक मारे गये स्थान पर बर्फ की सिल्ली को कपड़े में बांध कर 10 मिनट तक हल्का-हल्का रगड़ें। इससे तुरंत आराम मिलता है। 
  • जिस जगह पर डंक लगा हो, उस भाग को पूर्ण रूप से टूथपेस्ट के लेप से ढंक देना चाहिए। इससे जहर (Madhumakkhi ka jahar)  का असर कम हो जाता है। 
  • डंक मारे जानेवाले स्थान पर शहद लगाने से राहत मिलती है। 
  • चुना एक एल्केलॉयड है। इसे डंक मारे हुए स्थान पर लगाने से यह उसके जहर के असर को कम कर देता है। 
  • गेंदे के फूल के रस को लगाने से जलन और सूजन को कम करने में मदद मिलती है। इसके लिए गेंदे के फूल को सीधे निचोड़ कर लगा सकते हैं। 
  • तुलसी के पत्ते के रस को मधुमक्खी के काटे (Madhumakkhi ke katne par) गये स्थान पर सीधे लगाने से लाभ मिलता है। 
  • पपीता को काट कर उसके गूदे से मधुमक्खी द्वारा डंक मारी गयी जगह पर मालिश करें और 20 मिनट तक लगा रहने दें। 

आंवला के गुण और घरेलू नुस्खे

आंवले (Amla) को आयुर्वेद (Ayurvedic) में अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। आज जानते हैं इससे कुछ असरदार घरेलू उपचार। 

दूध के साथ आंवला चूर्ण लेने से दूर होता है कब्ज

  • आंवला पाउडर (Amla powder) और हल्दी पाउडर समान मात्रा में लेकर भोजन के बाद खाने से मधुमेह में लाभ मिलता है। 
  • हिचकी तथा उल्टी में आंवला रस (Amla ka ras), मिश्री के साथ दिन में दो-तीन बार सेवन करने से लाभ होगा। 
  • पीलिया से परेशान हैं, तो आंवले (Amla) को शहद के साथ चटनी बना कर सुबह-शाम सेवन करें। लाभ होगा। 
  • आंवला (Aamla), रीठा व शिकाकाई के चूर्ण से बाल धोने पर बाल स्वास्थ्य व चमकदार होते हैं। 
  • स्मरण शक्ति कमजोर पड़ गयी हो, तो सुबह उठ कर गाय के दूध के साथ दो आंवले का मुरब्बा (Amla ka murabba) खाएं। 
  • एक गिलास ताजा पानी 25 ग्राम सूखे आंवले (Kukha amla) के बारीक पिसे हुए व 25 ग्राम गुड़ मिला कर 40 दिन तक दिन में 2 बार सेवन करने से गठिया रोग में लाभ मिलता है। 
  • सूखे आंवले का चूर्ण (Sukhe amla ka churn) मुली के रस में मिला कर 40 दिनों तक खाने से पथरी रोग में फायदा होता है। 
  • आंवले के रस (Amla ka ras) में कपूर मिला कर लेप मसूड़ों पर करने से दांत दर्द ठीक हो जाता है और कीड़े भी मर जाते हैं। 
  • रात को सोते समय आंवले का चूर्ण एक गिलास गाय के दूध के साथ सेवन करने से कब्ज दूर होती है। 
  • आंवला रस (Aamla ras) में घी का छौंक दे कर सेवन करने से ज्वार नष्ट होता है। 
  • आंवले तथा तिल का चूर्ण बराबर भाग में मिला कर घी व मधु के साथ लेने से यौवन बरकरार रहता है।