क्या है मासिक धर्म के दौरान हेवी ब्लीडिंग के कारण ( Heavy bleeding during Periods - Menorrhagia in hindi)

अक्सर कई महिलाओं में पीरियड्स (Masik dharam) के दौरान हेवी ब्लीडिंग (heavy bleeding) (खून का अधिक बहाव) की शिकायत होती है। इस अवस्था को मोनोरेजिया (Menorrhagia) कहते है। इस समस्या के कई कारण हो सकते हैं।
Heavy-bleeding-during-periods
हॉर्मोन का असंतुलन :- हेवी ब्लीडिंग का एक मुख्य कारण अंडाशय से उत्सर्जित होने वाले हॉर्मोन में असंतुलन है। अंडाशय, मुख्यतः एस्ट्रोजेन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) नामक हार्मोन का निर्माण करती है जो महिलाओं के मासिक धर्म (Masik Dharm) को नियंत्रित करने के लिए उत्तरदायी होती है। जब इन हार्मोन्स में असन्तुलन उत्पन्न होती है तो हेवी ब्लीडिंग की समस्या होती है।  यह अक्सर मेनोपॉज (menopause) (मासिक धर्म (Masik Dharm) बंद होने की अवस्था) के दौरान होता है लेकिन कुछ युवतियों में भी यह हो सकता है।

यूटेराइन फाइब्रॉइड ट्यूमर्स:- यह भी हैवी ब्लीडिंग होने का एक प्रमुख कारण है। इसमें आम तौर गर्भाशय (uterus) में एक या एक से अधिक बिनाइन ( नॉन कैंसरस) ट्यूमर का निर्माण हो जाता है। यह अधिकतर 30 से 40 वर्ष की महिलाओं में गर्भाशय (uterus) में होता है। इसका उपचार मायोमेक्टोमी (myomectomy), इडॉमेट्रिक्ल एब्लेशन द्वारा किया जाता है।
सर्वाइकल पॉलिप्स (cervical polyps):- गर्भाशय (uterus)के निचले हिस्से को गर्भाशय ग्रीवा (cervix)कहते हैं। गर्भाशय और योनि के बीच में चिकनी, लाल अंगुलिनुमा आकृति विकसित होती है जिसे ही पॉलिप्स कहते हैं। पॉलिप्स मुख्यतः संक्रामण के कारण हो सकता है। यह भी ब्लीडिंग का कारण है। इसका उपचार एंटीबायोटिक्स से होता है।

पेल्विक इंफ्लेमेट्री डिजीज (pelvic implementary disease):- यह यूटेरस, फेलोपियन ट्यूब (fallopian tube) या सर्विक्स में इंफेक्शन के कारण होता है। इंफेक्शन मुख्यतः यौन संक्रामक रोगों के कारण होता है। इसका उपचार भी एंटीबायोटिक द्वारा होता है।

इसके अलावा सर्वाइकल कैंसर, इंडोमेट्रिराल कैंसर के कारण भी हेवी ब्लीडिंग की शिकायत होती है। सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पेपीलोमा वायरस के कारण होता है। इसका उपचार सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के जरिये होता है। वहीँ इंडॉमेट्रियल कैंसर का उपचार हिरट्रेक्टोमी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन।

मार्जारी आसन करने की विधि और इसके लाभ - Marjari Aasana

मार्जारी आसन (Marjariaasana) गरदन और मेरुदंड (रीढ़) (Carnia) को लचीला बनाता है तथा महिलाओं के प्रजनन तंत्र (Reproductive System) को मजबूत करता है। जिन लोगों को मेरुदंड के नीचले भाग में कड़ापन हो या लोअर बैक की समस्या रही हो, उनके लिए भी काफी लाभकारी है। इसके अलावा यह अभ्यास मधुमेह और पेट से संबंधित समस्याओं का भी निदान करता है।यह महिलाओं व पुरुषों दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और लाभकारी अभ्यास है। 

मार्जारी आसन की विधि (Marjari Aasana karne ki vidhi)

जमीन के ऊपर योग मैट अथवा चादर पर वज्रासन में बैठ जाएं। अब नितबों को उठा कर घुटनों के बल खड़े हो जाएं और आगे की ओंर झुके। दोनों हाथों को नीचे जमीन पर इस प्रकार रखे कि उंगलियां सामने की ओर रहें हाथ घुटनों के ठोक सीध में रहें,  भुजाएं और जांघ जमीन पर लंबवत रहें। दोनों घुटने एक साथ या थोड़ी दूरी पर रख सकते है। यह प्रारंभिक स्थिति है।
अब आप श्वास लेते हुए सिर को ऊपर उठाएं और मेरुदंड को नीचे की तरफ झुकाए ताकि पीठ धनुषाकार हो जाए। आमाश्य को पूर्णतः फैलाएं और फेफड़ों में अधिक-से-अथिक वायु भर लें। तीन सैकेंड तक स्वांस रोकें।
सिर को नीचे लाते हुए और मेरुदंड को धनुषाकार रूप में ऊपर ले जाते हुए श्वास छोडें। पूर्णत: श्वास छोड़ने के पश्चात आमाश्य व नाभी को ऊपर की तरफ संकुचित कर लें ओर नितंबों को ऊपर की ओर तानें। इस स्थिति में सिर भुजाओं के मध्य में जांघों के सामने होगा तथा ठुड्डी को छाती में सटाने का प्रयास करें। मेरुदंड के चाप को गहरा बनाते और आमाशय के सकुचन को बढ़ाते हुए तीन सेकेंड तक श्वास रोक कर रखें। यह एक चक्र हुआ। इस प्रकार आप आठ से 10 चक्र इस अभ्यास में कम से कम करें। जितना संभव हो, श्वास गति धीमा रखें. जब सिर ऊपर की तरफ और मेरुदंड नीचे की तरफ ले जाएं तो श्वांस अंदर लें और तीन सैकंड श्वास को अंदर रोके। जब सिर को नीचे की तरफ और मेरुदंड ऊपर की तरफ जायेगा तो श्वास बाहर की तरफ छोडें और यहां भी श्वास को तीन सेकंड तक बाहर रखे। अभ्यास के दोरान श्वसन को उज्जायी प्राणायाम के साथ उपयोग में ला सकते हैं।

अवधि:- अभ्यास को आठ से 10 चक्र अवश्य करें, ताकि इसका प्रभाव सामने आये।

सजगता:- अभ्यास के दौरान गलेऔर मेरुदंड के प्रति व झुकाव पर रखें। आध्यात्मिक स्तर पर अपने स्वाधिसृान चक्र पर सजग रहे।

यह आसन (Marjariasana) बिशेष रूप से गरदन, कंधो आउट मेरुदंड के लचीलेपन में सुधार लाता है तथा उनमें प्राणिक ऊर्जा का संचार बढ़ाता है। यह अभ्यास स्त्रियों के लिए अत्यंत लाभकारी आसन है। यह उनके प्रजनन तंत्र को पुष्ट करता है इसे छह महीने तक की गर्भावस्था में भी किया जा सकता है, फिर भी तीन महीने के बाद आमाशय के बलपूर्वक संकुचन से परहेज करना चाहिए। यदि किसी महिला में मासिक धर्म में अनियमितता हो या श्वेत प्रदर (ल्यूक्नोरिया) से ग्रस्त हो, तो उनके लिए मार्जारि आसन (Marjari Aasana) से काफी लाभ मिलता है। आसन से मासिक धर्म में ऐंठन में कमी आयेगी। मधुमेह रोगियो के लिए भी लाभप्रद है। 

अभ्यास टिप्पणी:- पूरे अभ्यास के दौरान अपनी भुजाओं को केहुनियों से न मोड़े। भुजाएं एवं जांघें बिल्कुल सीधी रखें। शरीर को आगे व पीछे की तरफ न हिलाएं

लिवर के लिए खतरनाक है ओवरइटिंग (overeating is dangerous for liver in hindi)

"यदि आप आवश्यकता से अधिक भोजन ग्रहण करते हैं तो सावधान हो जाइए, यह न केवल आपका मोटापा बढ़ाएगा बल्कि आपके लिवर को भी नुकसान पहुंचा सकता है।"


कुछ लागों को खाने का शौक होता है। यदि उन्हें पसंदीदा भोजन मिल जाय, तो वे आवश्यकता के अधिक खा लेते हैं। चाहे आपको पसंदीदा भोजन मुफ्त में ही क्यों न मिल रहा हो, पर हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि पेट आपका अपना है। ओवरइटिंग (Overeating) से केवल मोटापे की शिकायत हो सकती है बल्कि इसके कारण आपके शरीर के कई अंगो को भी नुकसान पहुंच सकता है।
Overeating dangerous for liver
खाने के शौकीन होना कोई गलत बात नहीं है, परंतु जरूरत से ज्यादा भोजन ग्रहण करना शरीर के लिए हानिकारक होता है। इस तरह जरूरत से ज्यादा भोजन करने से न केवल मोटापा बढ़ता है, या डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है, बल्कि यह शरीर के कई अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। ओवरइटिंग से हृदय, किडनी, फेफड़े और लीवर पर भी बुरा असर पड़ सकता है। इनमें से ओवरइटिंग आपके लिवर को अधिक प्रभावित करता है। यदि आपको डायबिटीज है और लिवर से संबन्धित समस्या है तो आपको ओवरइटिंग से बचना चाहिए क्योंकि यह आपके समस्या को बढ़ा सकती है। 

क्या  पड़ता है प्रभाव

ओवरइटिंग या अत्यधिक वसायुक्त (Fatty Foods) खाना  खाने से नॉन अल्कोहिक फैटी लिवर की बीमारी (Nonalcoholic Fatty Liver Disease) हो सकता है। लिवर के वाहिकाओं (vessels) में वसा (Fat) के जमा होने से लिवर अपना काम ठीक से नहीं कर पाता है और शरीर में विषेले पदार्थ बनने शुरू हो जाते है। मोटापा इसका एक प्रमुख कारण है। पेट पर वसा जमना भी इसका कारण हो सकता है। यदि आप मीट अधिक खा रहे हैं, तो लिवर की धमनियाँ (Artery) मोटी हो जाती है। इससे लिवर में पित्त पथरी (gallstones) बनना शुरू हो जाता है। इसके कारण पित्त (Bile) के निर्माण में भी बाधा आती है, जिससे वसा का पाचन सही तरीके से नहीं हो पाता है और वजन बढ़ने लगता है। वजन बढ़ने से कई अन्य समस्याएं होने लगती हैं।
कैसे कर सकते हैं बचाव

इस समस्या का सबसे प्रमुख बचाव है कि आप अपने के तरीकों में बदलाव लाए। आप अपने पसंदीदा भोजन खाएं, लेकिन एक सीमा के अंदर। यानी ओवरइटिंग न करें। आप उन व्यंजनों का सेवन कर सकते हैं जिसमे वसा कम होती है जैसे - स्किन्ड मिल्क और उससे बने ब्यंजन आदि। वैसे फूड जिनमें अनसेचुरेटेड फैट अधिक होता है, लिवर के सही तरीके से काम करने में मदद करते हैं, जबकि अधिक वसायुक्त भोजन समस्या को बढ़ा देती है। हमारे लिवर को सुरक्षित रखने के लिए दो भोजन के बीच उचित समय होना चाहिए। एक बार में अधिक खाने के बजाय आप थोड़ा-थोड़ा करके दिन में कई बार खाएं। इससे लिवर को अपना काम सही तरीके से कारने ने के लिए पर्याप्त समय मिल पाता है।  प्रतिदिन भोजन में हरी सब्जियों और फलों को शामिल करने से भी लिवर को फायदा होता है।

लिवर क्यों है महत्वपूण

  • लिवर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्याकिं आपको स्वस्थ रखने के लिए यह कई काम करता है।
  • यह वसा (Fat) और वसा में घुले हुए विटामिन को पचाने में मदद करता है। इसके लिए लिवर ही पित्त (Bile) को स्रावित करता है।
  • यह कार्बोहाहड्रेट के मेटाबॉलिज्म में मदद करता है और ब्लड ग्लूकोज लेवल को नियंत्रित रखता है।
  • यह प्रोटीन निर्माण में भी सहायता करता है। प्रोटीन से हमारे शरीर के अधिकतर हिस्से बने है। अतः यह बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है।
  • यह डीटॉक्सिफिकेशन में भी मदद करता है। अर्थात विषैले एवं गंदे पदार्थों को शरीर से बाहर करने के लिए किडनी में भेजता है।
  • लिवर विटामिन ए, बी12, डी, इ, के और अन्य मिनरल्स को भी स्टोर करने का कार्य करता है।