स्पेस टेक्नॉलॉजी (Space Technology) के क्षेत्र में कैसे बनाये कैरियर

आज मनुष्य अंतरिक्ष के बारे में जानने के काफी उत्सुक है और हर दिन नये-नये प्रयोग कर रहा है। यह विज्ञान अथवा प्रौद्योगिकी की वह शाखा है जिसमें अंतरिक्ष की क्रियाकलापों की जानकारी हासिल की जाती है। इसके तहत स्पेस क्राफ्ट के माध्यम से अंतरिक्ष में प्रवेश करने, स्पेस क्राफ्ट की देखभाल करने व अंतरिक्ष से प्राप्त जानकारी को लेकर सुरक्षित तरीके से वापस पृथ्वी पर आने से संबन्धित कार्य किये जाते हैं। यह शाखा पृथ्वी को छोड़ कर पृथ्वी के बाहर के वातावरण का अध्ययन करता है। मूलतः यह मौसम की भविष्यवाणी, रिमोट सेंसिंग, जेपीएस सिस्टम, सेटेलाइट टेलिविजन और कुछ लंबी दूरी की संचार प्रणाली के रूप में हर दिन प्रयोग में आने वाली टेक्नॉलॉजी स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कार्य करती है। इसके तहत एस्ट्रोनोमी, एस्ट्रोफिजिक्स, कोस्मोलोजी, स्टेलर साइंस, प्लानेटरी साइंस आदि आता है।
कोर्स एवं योग्यता
स्पेस टेक्नॉलॉजी में कैरियर बनाने के लिए तीन तरह के कोर्स विभिन्न संस्थानों के द्वारा कराये जाते हैं। आरंभिक कोर्स बैचलर डिग्री की होती है। इसके बाद मास्टर की डिग्री ली जा सकती हैं। एक अन्य कोर्स भी होता है जिसे स्पेस टेक्नॉलॉजी में इंटीग्रेटेड कोर्स कहा जाता है। यह कोर्स 5 सालों का होता है। इसमें आपको बैचलर डिग्री में नामांकन के लिए 12वीं फिजिक्स, केमेस्ट्री व मैथ्स से पास करना होता है तथा जी-एडवांस में भी अच्छे रैंक लाने होते हैं।
स्पेस टेक्नॉलॉजी (Space Technology) के क्षेत्र में कैसे बनाये कैरियर
स्पेस टेक्नॉलॉजी से संबन्धित कोर्सेज के संस्थान
स्नातक डिग्री:
अमेठी इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नॉलॉजी, दिल्ली
आईआईएसटी, तिरुवनंतपुरम
आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवेर्सिटी, पटना
शोभित यूनिवेर्सिटी, मेरठ

मास्टर डिग्री:-
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, पुणे
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलुरु
बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, रांची

इंटीग्रेटेड कोर्स:-
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, भोपाल, कोलकाता, मोहाली, पुणे
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, भुवनेश्वर
इंटीग्रेटेड साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर विश्व भारती, शांति निकेतन

इन संस्थानों में मिल सकती है नौकरियाँ:-
इसरो, डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन), एनएएल (नेशनल एयरोनोटिकल लेबोरेटोरिज), एचएएल (हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड),

उपरोक्त संस्थानों में आप एयरोस्पेस साइंटिस्ट, लेक्चरार, डिफेंस इंडस्ट्री साइंटिस्ट, रिसर्च एसोसिएट्स, इनवयर्नमेंटल साइंटिस्ट, साइंस कम्यूनिकेटर के पदों में नौकरी प्राप्त कर सकते हैं।

बालाजी डेंटल एंड क्रनियोफेसियल हॉस्पिटल, चेन्नई

दांत रोगों के अलावा मुंह से जुड़े कुछ विशेष उपचार, जैसे-मेक्सिल्लोफेसियल सर्जरी, स्माइल डिजाइनिंग आदि की सुविधा से सम्पन्न बालाजी डेंटल हॉस्पिटल (Balaji Dental Hospital) एक मल्टीस्पेशियलिटी डेंटल हॉस्पिटल है।
बालाजी हॉस्पिटल की स्थापना 1989 में चेन्नई (Channai) में हुई थी। विश्वस्तरीय तकनीक, अत्याधुनिक उपकरणों और हाई क्वालिटी पेशेंट केयर से सम्पन्न यह अस्पताल 20 हजार स्क्वायर फीट के क्षेत्र में फैला हुआ है। मेक्सिल्लोफेशियल सर्जरी और स्माइल डिजाइनिंग जैसी सुविधाएं इसे खास बनाती हैं। लगभग 150 से ज्यादा अनुभवी डाक्टरों की अच्छी टीम है तथा 02 अल्ट्रामोडर्न ओटी (Ultramodern Operation Theater) है। 

स्पेशलाइज्ड डेंटल सर्विस (Specialized Dental Service) : यहाँ उपलब्ध करायी जानेवाली सर्विसेज में डेंटल इंप्लान्ट्स, टीथ व्हाइटनिंग, कॉस्मेटिक डेंटिस्ट्री, स्माइल एन्हांसमेंट, इनविजिबल ब्रेसेज के अलावा युवा, बुजुर्ग और दिव्यांग (फिजिकली चैलेंज्ड) लोगों को प्रिवेंटिव और पेनलेस (दर्द रहित) डेंटिस्ट्री की सुविधा दी जाती है। यह एकमात्र ऐसा अस्पताल है जहां आरएच बीएमपी-2 (rhBMP-2) की सुविधा मौजूद है। इस तकनीक की मदद से हड्डियों को आसानी से जोड़ा जाता है और इसके लिए शरीर के किसी दूसरे हिस्से से हड्डी लेने की जरूरत भी नहीं पड़ती है।      

फेसियल ट्रामा ट्रीटमेंट : यहाँ फेसियल ट्रामा ट्रीटमेंट के लिए बेस्ट मेक्सिल्लोफेशियल सर्जन्स मौजूद हैं। फेसियल ट्रोंमा में चेहरे और ऊपरी या निचले जबड़े की हड्डी, गाल, नाक या ललाट में होनेवाली इंज्यूरी होती है। इस सर्जरी से टूटी हड्डियों को टाइटेनियम प्लेट्स और स्क्रू द्वारा फिक्स किया जाता है। फ्रेक्चर का ट्रीटमेंट ऐसे किया जाता है, जिससे कम-से-कम निशान रहें और चेहरा बिलकुल पहले जैसा हो जाये। ट्रीटमेंट के बाद कई बार चेहरा बदल भी जाता है। ऐसी स्थिति में 6-12 महीनों के बाद फिर से सर्जरी की जरूरत पड़ती है। 
स्माइल डिजाइनिंग : इस प्रोसेस में कॉस्मेटिक डेंटिस्ट्री प्रोसिजर्स के जरिये स्माइल को खूबसूरत बनाया जाता है। इसमें फेसियल एपियरेंस, स्किन टोन, बालों के रंग, दांत, गम टिश्यू और होठों को भी ध्यान में रखा जाता है। इमिडीएट स्माइल मेकओवर कॉमन प्रोसीजर है, जो सिंगल विजिट में कंप्लीट हो जाता है। इसमें दांतों के कलर चेंज करने और उनके बीच के स्पेस कम करने से लेकर चिप्स के कुछ माइनर रिपेयर किये जाते हैं। कंप्रिहेंसिव स्माइल मेकओवर एक से अधिक प्रोसीजर द्वारा कई स्टेज में किया जाता है।  

स्पेशियलिटी सर्विसेज : यहाँ फुल माउथ रिहैबिलेशन, ऑथ्रोंडोंटिक्स, पेडिएट्रिक डेंटिस्ट्री, पेरियोडोंटिक्स एंड एजिंग डेंटिशन, क्लैफ्ट लिप एंड पैलेट सर्जरी, क्लैफ्ट रिनोप्लास्टी, लिप रिविजन आदि के लिए स्पेशल सर्विस है। फेशियल डिफ़ेक्ट्स को स्टेम सेल से दूर किया जाता है। दिस्ट्रेक्शन ओस्टियोजेनेसिस जैसी - सबसे लेटेस्ट और कॉम्प्लेक्स तकनीक भी यहां मौजूद है। यह देश में साइमल्टेनस डिस्ट्रैक्शन ओस्टियोजेनेसिस के अधिकतम केसेज में सफलता हासिल करनेवाला अस्पताल है।    

सबसे साफ-सुथरा ग्लेशियर है - मारगेरैय ग्लेशियर (Margerie Glacier)

मारगेरैय ग्लेशियर  (Margerie Glacier): यह ग्लेशियर 21 मील (3 किलोमीटर) लंबा है। यह अलास्का  में स्थित है। यह ग्लेशियर बे नेशनल पार्क और प्रीजर्व का भी हिस्सा है। ग्लेशियर का नाम फ़्रांस के प्रसिद्ध ज्योग्राफ और ज्यूलोजिस्ट इमेनुएल डी मारगेरैय के नाम पर रखा गया है। इमेनुएल पहली बार 1913 में इस ग्लेशियर की यात्रा की थी। वह ग्लेशियर बे का मुख्य हिस्सा है जिसे 26 फरवरी 1925 को नेशनल मोन्यूमेंट घोषित किया गया था। इसे 2 दिसंबर 1980 को नेशनल पार्क एंड वाइल्ड लाइफ प्रीजर्व घोषित किया गया था। यूनेस्को ने 1986 में वर्ल्ड बायोस्फेयर रिजर्व और 1992 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट की श्रेणी में इसे रखा था। ग्लेशियर बे के अंत में स्थित मारगेरैय ग्लेशियर की चौड़ाई एक मील (1.6 किलोमीटर) तक फैली है।
मारगेरैय ग्लेशियर टाइड-वाटर ग्लेशियर की श्रेणी में आता है। इसकी ऊंचाई 350 फीट है जिसमें से 250 फुट वाटर लेवल से ऊपर है और 100 फुट वाटर लेवल से नीचे है। इसकी ऊंचाई स्टेचू ऑफ लिबर्टी से भी ज्यादा है। इसका लेयर कर्व है और इसमें रॉक और आइस मिला हुआ है। यह जिगजैग और ट्विस्टेड फॉर्म में है। किरणों को अब्सॉर्व करने की क्षमता के कारण इसका बर्फ नीले रंग का दिखता है। दूसरे अन्य ग्लेशियर के मुकाबले यह बहुत ज्यादा साफ-सुथरा है या सबसे एक्टिव ग्लेशियर है। यह कलविंग के लिए एक्टिव है। इसका मतलब होता है बर्फ की दीवार का टूट-टूट कर समुद्र में गिरना। जब यह टूटता  है, तो राइफल के चलने जैसी आवाज आती है। यह ग्लेशियर मरीन और टेरेस्ट्रीयल वाइल्ड लाइफ के लिए जाना जाता है। यह व्हेल, पक्षियों और भालू के निवास के लिए बहुत अनुकूल जगह है।
ग्लेशियर बे नेशनल पार्क प्रीजर्व विश्व का सबसे बड़ा प्रोटेक्टेड एरिया है। इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट की श्रेणी में रखा गया है। इसे यूनाइटेड नेशन के बायोस्फेयर रिजर्व मैं भी शामिल किया गया है। 1794 में जब कैप्टन वैनकोवर यहां से गुजरे थे तो यहां सिर्फ बर्फ था कोई खाड़ी (बे) नहीं थी। 80 प्रतिशत विजिटर्स ग्लेशियर को देखने के लिए क्रूज शिप की सवारी करके यहां आते हैं।

गेंहू के पौधे से कैसे पाएँ मोटापा से छुटकारा

मोटापा दूर करते हैं गेंहू के पौधे - घरेलू नुस्खे
मोटापा दूर करने के लिए लोग क्या - क्या नहीं करते हैं। कुछ लोग व्यायाम करते हैं, तो कुछ लोग इसके लिए डायटिंग के हार्ड रूल अपनाते हैं।  लेकिन प्रकृति में मौजूद अनेक खाद्य पदार्थों से भी वजन को कम  किया जा सकता है। गेंहू के छोटे पौधे इस मामले में बहुत लाभकारी है। गेंहू के छोटे पौधों के पत्ते स्वास्थ्य के लिए कई प्रकार से फायदेमंद होते हैं। इसमें क्लोरोफिल एमिनो एसिड, खनिज लवण, विटामिन और विभिन्न प्रकार के एंजाइम होते हैं और डायट के लिए महत्वपूर्ण पोषक  तत्व होते हैं। यह मोटापा को घटाने का असरदार और सुरक्षित तरीका भी है।
यह आपकी खुराक को कम करता है और मेटाबॉलिज्म को बढ़ता है। इससे वजन घटता है। इसमें मौजूद क्लोरोफिल खून में मौजूद विषैले तत्वों को दूर करता है अर्थात खून को साफ करने का कार्य करता है। इससे एनर्जी में वृद्धि होती है,  जिससे काम अधिक करने की छमता भी बढ़ती है और कैलोरी बर्न होती है। इस पौधे में शुगर, कोलेस्ट्रॉल और फैटबहुत कम होते हैं। यह थायरॉयड ग्लैंड को भी स्टिम्युलेट  करने का कार्य करता है। अच्छी बात यह है कि इसे घर में भी आसानी से उगाया जा सकता है। इसका जूस बना कर इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके जूस को सुबह खाली पेट पीने से काफी तेजी से फायदा होता है। 
कैसे तैयार करें गेंहू के पौधे:

दस-बारह मिटटी के गमलों में अच्छी मिटटी भरकर , उसमे प्रतिदिन बरी-बरी से उत्तम गेहूँ दाने बो दीजिए और छाया में अथवा कमरे या बरामदे में रखकर, यदा-कदा थोड़ा-थोड़ा पानी डालते जाइए।  धुप न लगे तो अच्छा है ।  जिस मिटटी में गेहूँ बोया जाए उसमे रासायनिक खाद नहीं होना चाहिए। गमलों में गोबर की खाद डालनी चाहिए।  तीन-चार दिन बाद पौधा उग जायेंगे और दस-बारह दिन में सात-आठ इंच के हो जायेंगे।  तब उसमे से पहले दिन बोए हुए 30-40 पौधों को जड़ सहित उखाड़कर जड़ को काटकर फेंक दें और बचे हुए डंठल तथा पत्तियों को जिसे गेहूँ का जवारा  (wheat grass) भी कहते है।  धोकर साफ सिल पर थोड़ा पानी के साथ पीस लें, आधे गिलास के करीब रस छानकर तैयार कर लीजिए और रोगी को तत्काल व ताजा रस रोज सवेरे पिला दीजिए ।  इसी प्रकार शाम को भी ताजा तैयार कर पिलाइये । 
Lose your weight by wheat grass juice, Motapa dur karne ke upay 

ग्रीन टी क्या है, इसे बनाने की विधि, और इसके फायदे

ग्रीन टी के फायदे एवं नुकसान (Advantages and disadvantages of Green Tea in hindi)

ग्रीन टी (Green Tea) के सेवन से आपके शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है, पाचन शक्ति मजबूत होती है, स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है, आपकी त्वचा सुंदर एवं कोमल हो जाती है इसके साथ-साथ आपका वजन भी कम करता है। इसके अलावा इसका सेवन दिल के रोग तथा अनियमित रक्तचाप, किडनी के रोग, दांतों का सड़न आदि में भी फायदा पहुंचता है। परंतु यदि इसका सेवन अधिक मात्र में करने पर यह आपको हानि भी पहुंचा सकता है। वैसे तो ग्रीन टी में कम मात्र में कैफीन होता है परंतु इसके अत्यधिक सेवन से अनिन्द्र, चिड़चिड़ापन तथा शरीर में आइरन की कमी जैसी बीमारी हो सकती है। अतः दिन में केवल 2-3 कप ही ग्रीन टी पीना (Drink Green Tea) चाहिए।

ग्रीन टी बनाने की विधि: (Method to make green tea in hindi)
उबलते पानी में ग्रीन टी कभी ना डालें। इससे एसिडिटी की समस्या हो सकती है। पहले पानी उबाल लें, फिर आंच से उतारकर उसमें ग्रीन टी की पत्तियां या टी बैग डालकर ढंक दें। दो मिनट बाद इसे छान लें या टी बैग (Tea bag) अलग करें।
ग्रीन टी के ये फायदे है (Green Tea ke fayde):-

1-वज़न कम करे (Weight loss)
एक्सरसाइज़ और वर्कआउट से भी अगर आपका वज़न कम नहीं हो रहा, तो आप दिन में ग्रीन टी पीना शुरू करें। ग्रीन टी एंटी-ऑक्सीडेंट्स होने की वजह से बॉडी के फैट को खत्म करती है। एक स्टडी के अनुसार, ग्रीन टी बॉडी के वज़न को स्थिर रखती है। ग्रीन टी से फैट ही नहीं, बल्कि मेटाबॉलिज्म भी स्ट्रॉन्ग रहता है और डाइजेस्टिव सिस्टम की परेशानियां भी खत्म होती हैं।

2- स्ट्रेस को कम करना (Reduce stress)
स्ट्रेस में चाय दवाई का काम करती है। चाय पीने से आपको आराम मिलता है। इसके अलावा, चाय की सूखी पत्तियों को तकिए के साइड में रखकर सोने से भी सिर दर्द कम होता है। सूखी चाय की पत्ती की महक माइंड को रिलैक्स करती है।

3-सनबर्न से बचने के लिए (Protect from sun burn)
चेहरे पर सनस्क्रीन लगाने पर भी सनबर्न की दिक्कत अगर खत्म नहीं होती तो आप नहाने के पानी में चाय की पत्ती (Tea leaf) डाल लें और तब नहाएं। इससे आपको सनबर्न से होने वाली जलन, खुजली आदि से राहत मिलेगी।

4-आंखों की सूजन को कम करने के लिए
चाय पत्ती (Tea leaf) आंखों की सूजन और थकान उतारने के लिए परफेक्ट उपाय है। इसके लिए आपको मशक्कत करने की ज़रूरत नहीं, बस दो टी बैग्स लीजिए और हल्के गर्म पानी में गीला करके 15 मिनट के लिए आंखों पर रखिए। इससे आपकी आंखों में होने वाली जलन और सूजन कम हो जाती है। चाय में प्राकृतिक एस्ट्रिजेंट होता है, जो आपकी आंखों की सूजन को कम करता है। टी बैग लगाने से डार्क सर्कल भी खत्म होते हैं।

5-मुहासे की समस्या को कम करना
चाय एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल, एंटी-ऑक्सीडेंट होने के कारण सूजन को कम करती है। चेहरे के मुहांसों को दूर करने के लिए ग्रीन टी बहुत फायदेमंद होता है। चेहरे से मुहांसे खत्म करने के लिए रात में सोने से पहले ग्रीन टी की पत्तियां चेहरे पर लगाएं। खुद को फिट रखने के लिए सुबह ग्रीन टी पिएं। इससे चेहरे पर प्राकृतिक चमक और सुंदरता बनी रहती है।

6- त्वचा की सुरक्षा (skin protection)
ग्रीन टी त्वचा  के लिए बेहद ही फायदेमंद होती है। इससे आपकी स्किन टाइट रहती है। इसमें बुढ़ापा रोकने  के तत्व  भी होते हैं। ग्रीन टी में एंटी-ऑक्सीडेंट्स और एंटी-इन्फ्लामेंटरी एलिमेंट्स एक साथ होने की वजह से यह स्किन को प्रोटेक्ट करती है। ग्रीन टी से स्क्रब बनाने के लिए शकर , थोड़ा पानी और ग्रीन टी को अच्छे से मिलाएं। यह मिश्रण आपकी त्वचा  को पोषण करने के साथ-साथ मुलायम  बनाएगा और स्किन के हाइड्रेशन लेवल को भी बनाए रखेगा।
7-बालों के लिए फायदेमंद (Hair conditioner)
चाय बालों के लिए भी एक अच्छे कंडिशनर का काम करती है। यह बालों को नेचुरल तरीके से नरिश करती है। चाय पत्ती को उबाल कर ठंडा होने पर बालों में लगाएं। इसके अलावा, आप रोज़मेरी और सेज हरा (मेडिकल हर्बल) के साथ ब्लैक टी को उबालकर रात भर रखें और अगले दिन बालों में लगाएं। चाय बालों के लिए कुदरती कंडिशनर है।

8-पैरों की दुर्गंध दूर करने के लिए
ग्रीन टी की महक स्ट्रॉन्ग और पावरफुल होती है। इसकी महक को आप पैरों की दुर्गंध दूर करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। यूज़ की हुई चाय पत्ती को पानी में डाल दें और उसमें पैरों को 20 मिनट के लिए डालकर रखें। इससे चाय आपके पैरों के पसीने को सोख लेती है और दुर्गंध को खत्म करती है।

9- नव विवाहितों के लिए (for newly married)
ग्लोइंग स्किन, हेल्दी लाइफ के अलावा ग्रीन टी आपकी मैरिड लाइफ में भी महक बिखेरती है। ग्रीन टी में कैफीन, जिनसेंग (साउथ एशियन और अमेरिकी पौधा) और थियेनाइन (केमिकिल) होता है, जो आपके सेक्शुअल हार्मोन्स को बढ़ाता है। खासकर महिलाओं के लिए ये काफी सही है। इसलिए अगर आपको भी मैरिड लाइफ हैप्पी चाहिए तो रोज़ ग्रीन टी पिएं।

ग्रीन टी का सेवन कब ना करें 

1 ग्रीन टी में मौजूद कैफीन व टॉनिक एसिड गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु के लिए अच्छा नहीं होता। गर्भवस्था के दौरान इसका सेवन न करें।

2 बासी ग्रीन टी- लंबे समय तक ग्रीन टी रखे रहने से उसमें मौजूद विटामिन और उसके एटी-ऑक्सीडेंट गुण कम होने लगते हैं। इतना ही नहीं, एक सीमा के बाद इसमें बैक्टीरिया भी पलने लगते हैं। इसलिए एक घंटे से पहले बनी ग्रीन टी क़तई न पिएं।

3 खाली पेट नहीं-सुबह ख़ाली पेट ग्रीन टी पीने से एसिडिटी की शिकायत हो सकती है। इसके बजाय सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुना सौंफ का पानी पीने की आदत डालें। इससे पाचन सुधरेगा और शरीर के अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकालने में मदद मिलेगी।

4 भोजन के तुरंत बाद- जल्दी वज़न घटाने के इच्छुक भोजन के तुरंत बाद ग्रीन टी पीते है, जबकि इससे पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

5 कैफीन के सेवन के बाद दिमाग़ सक्रिय होता है और नींद भाग जाती है। इसलिए देर रात या सोने से ठीक पहले ग्रीन टी का सेवन न करें। 

6 दवाई के बाद नहीं- किसी भी तरह की दवा खाने के तुरंत बाद ग्रीन टी न पिएं।

जटामांसी है बहुत गुणकारी, जाने इसके घरेलू नुस्खे

जटामांसी (Jatamansi) जिसे 'बालछड़' भी कहा जाता है यह कश्मीर, भूटान, सिक्किम और कुमाऊं जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में अपने आप उगती है। जटामांसी ठण्डी जलवायु में उत्पन्न होती है। इसलिए यह हर जगह आसानी से नहीं मिलती। इसे जटामांसी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसकी जड़ में बाल जैसे तन्तु लगे होते हैं।

1 मस्तिष्क और नाड़ियों के रोगों के लिए ये राम बाण औषधि है। ये धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है। पागलपन , हिस्टीरिया, मिर्गी, नाडी का धीमी गति से चलना,,मन बेचैन होना, याददाश्त कम होना इन सारे रोगों की यही अचूक दवा है।

2 जटामांसी की जड़ को गुलाबजल में पीसकर चेहरे पर लेप की तरह लगायें। इससे कुछ दिनों में ही चेहरा खिल उठेगा।

3 इसके सेवन से बाल काले और लम्बे होते है। इसके काढ़े को रोजाना पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
4 जटामांसी चबाने से मुंह की दुर्गन्ध नष्ट होती है। दांतों में दर्द हो तो जटामांसी के महीन पावडर से मंजन कीजिए।

5 मेंनोपॉज के समय ये सच्ची साथी की तरह काम करती है. इसका शरबत दिल को मजबूत बनाता है, और शरीर में कहीं भी जमे हुए कफ को बाहर निकालता है।

6 ये त्रिदोष को भी शांत करती है और सन्निपात के लक्षण ख़त्म करती है. चर्म रोग , सोरायसिस में भी इसका लेप फायदा पहुंचाता है।

7 मासिक धर्म के समय होने वाले कष्ट को जटामांसी का काढा ख़त्म करता है। हाथ-पैर कांपने पर या किसी दूसरे अंग के अपने आप हिलने पर जटामांसी का काढ़ा 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम रोज सेवन करें। 

8 इसको खाने या पीने से मूत्रनली के रोग, पाचननली के रोग, श्वासनली के रोग, गले के रोग, आँख के रोग,दिमाग के रोग, हैजा, शरीर में मौजूद विष नष्ट होते हैं. 

9 जटामांसी का काढ़ा बनाकर 280 से 560 मिलीग्राम सुबह-शाम लेने से टेटनेस का रोग ठीक हो जाता है। 

10 जटामांसी और हल्दी बराबर की मात्रा में पीसकर मस्सों पर लगायें। इससे बवासीर नष्ट हो जाती है।

11 इसे पानी में पीस कर लेप लगाने से सिर तथा हृदय का दर्द खत्म हो जाता है।

12 जटामांसी के बारीक चूर्ण से मालिश करने से ज्यादा पसीना आना कम हो जाता है। जटामांसी और तिल को पानी में पीसकर इसमें नमक मिलाकर सिर पर लेप करने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है। 

13 अगर पेट फूला हो तो जटामांसी को सिरके में पीस कर नमक मिलाकर लेप करो तो पेट की सूजन कम होकर पेट सपाट हो जाता है।

सावधानी : जटामांसी का ज्यादा उपयोग करने से गुर्दों को हानि पहुंच सकती है और पेट में कभी भी दर्द शुरू हो सकता है।

किडनी रोग, ब्रेस्ट कैंसर, श्वास रोग, दर्द एवं सूजन में लाभकारी है अजमोद

अजमोद के गुण प्राय अजवाइन की तरह होते हैं। परन्तु अजमोद का दाना अजवाइन से बड़ा होता है। अजमोद पोटैशियम, विटामिन ए, बी और सी,  फॉस्फोरस, मैंगनीज, कैल्शियम, आयरन, सोडियम, मैग्‍नीशियमऔर फाइबर से भरपूर होता है जिसके कई फायदे हैं। इसमें एपिजेनिन और लूटेओलिन जैसे तत्‍व भी पाये जाते हैं। गर्म तासीर का अजमोद श्वास, सूखी खांसी और आंतरिक शीत के लिए लाभकारी होता है। 


दर्द और सूजन दूर करें (Dard aur sujan)
अजमोद से बदन दर्द कुछ ही देर में छूमंतर हो जाता है। दर्द होने पर अजमोद को सरसों के तेल में उबालकर मालिश करनी चाहिए। या फिर अजमोद की जड़ का 3-5 ग्राम चूर्ण दिन में दो-तीन बार सेवन करना किसी भी तरह के दर्द और सूजन में लाभकारी होता है।

श्वास रोगों में लाभकारी (shvas rog ka ilaj)
मांसपेश‍ियों की शिथिलता के कारण उत्पन्न श्वसन नली की सूजन और श्वास रोगों में अजमोद लाभकारी होता हैं। श्वास रोगों को दूर करने के लिए इसकी 3-6 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार प्रयोग करें।

अगर आपको भोजन के बाद हिचकियां आती है तो अजमोद के 10-15 दाने मुंह में रखने से हिचकी बंद हो जाती है। या आप अजमोद को मुंह में रखकर उसका रस चूस लें इससे भी हिचकी से आराम मिलता है।

कमजोरी दूर करे (Kamjori dur karen)
अगर आप कमजोरी महसूस करते हैं तो आपके लिए अजमोद का सेवन फायदेमंद हो सकता हैं। कमजोरी को दूर करने के लिए कॉफी में अजमोद की जड़ के बारीक चूर्ण को डालकर सेवन करने से लाभ मिलता है। लेकिन इसका सेवन करते समय इस बात का ध्यान रखें कि इसका प्रयोग मिर्गी के रोगी और गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक होता है।

उल्टी में लाभकारी (Ulti me labhkari)
उल्टियां होने पर अजमोद का सेवन काफी लाभकारी होता है। अजमोद के चूर्ण का सेवन उल्टी रोकने में काफी मदद करता है। अजमोद में लौंग और शहद मिलाकर चाटने से भी उल्टी आना बंद हो जाता है।

किडनी रोग में लाभकारी (Kidney rog ka ilaj)
अजमोद किडनी की सफाई के लिए जाना जाता है। किडनी में मौजूद व्यर्थ पदार्थों को बाहर निकाल कर यह आपको स्वस्थ रखता है। अजमोद पेट की समस्याओं को दूर रखने में मदद करता है। यह देर तक भूख का एहसास नहीं होने देता है जिससे यह वजन को काबू में रखने में मदद करता है। 

ब्रेस्‍ट कैंसर में उपयोगी (Breast cancer me upyogi)
अजमोद में एपिजेनिन नामक तत्‍व पाया जाता है। यह तत्‍व ब्रेस्‍ट कैंसर के खतरे का कम करता है। अजमोद के सेवन से ब्रेस्‍ट कैंसर के ट्यूमर की संख्या को कम करने और उनके विकास को धीमा करने में मदद मिलती है।

आँखों के आगे अंधेरा छा जाना (चक्कर आना) - घरेलू नुस्खे

आँखों के आगे अंधेरा छा जाना (चक्कर आना) - Gharelu Nuskhe

कभी-कभी जब काफी देर बैठ कर अचानक उठने से आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है या चीजें घूमती हुई नजर आती है। इसे ही चक्कर आना कहते हैं। या समस्या मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति कम होने के कारण होती है। इसे दूर करने के घरेलू उपाय । 
तुलसी: तुलसी के रस में चीनी या शहद मिला कर सेवन करने से चक्कर आना बंद हो जाता है।

जूस: दोपहर के भोजन के 2 घंटे पह्ले और शाम के नाश्ते में फलों का सादा जूस पिये। जूस की जगह ताजे फल भी खा सकते है।

धनिया: धनिया पाउडर और आंवले का पाउडर दस-दस ग्राम लेकर एक गिलास पानी में भिंगो कर रख दें। सुबह अच्छी तरह मिला कर पि लें।

लौंग: आधा गिलास पानी में दो लौंग डाल कर उसे उबाल लें और फिर उस पानी को पि लें।

नारियल का पानी: इसे रोज पीने से लाभ होता है।

मुनक्का: 20 ग्राम मुनक्का घी में भून कर सेंधा नमक से खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है।

चमगादड़ पेड़ों में उल्टा क्यों लटकता है

उल्टा क्यों लटकता है चमगादड़ (Bat)
उल्टा क्यों लटकता है चमगादड़ (Bat)
तुमने बाग में से गुजरते हुए वृक्षों पर या घर में कहीं भी चमगादड़ों को लटकते हुए देखा होगा। यह हमेशा उल्टा ही क्यों लटकता है। इसके बारे में जानना बहुत रोचक है। यह कहीं भी लटकता है तो हमेशा उल्टा ही लटकता है। चाहे वह छत हो या फिर पेड़ की टहनी। ऐसे लटके चमगादड़ को देखकर लोग डर भी जाते हैं। चमगादड़ के उल्टा लटकने का मुख्य कारण यह है कि इसके पैरों की हड्डियां बहुत कमजोर होती है। इसकी कमजोर हड्डियां इसके शरीर का भार उठाने या संभाल पाने में सक्षम नहीं होती है। जब चमगादड़ जमीन पर होता है तब अपने शरीर का सारा भार जमीन पर ही डाल देता है। ऐसा करने से पैरों पर शरीर का भार बहुत कम पड़ता है। तभी नीचे बैठा हुआ चमगादड़ जमीन पर पसरा हुआ दिखाई देता है। जब चमगादड़ वृक्ष की किसी शाखा पर उल्टा लटकता है तब उसके शरीर का भार पैरों पर ना पड़कर शरीर की तनी हुई मांसपेशियों और स्नायुओं में पड़ता है। अपने पैरों को बचाने के लिए ही चमगादड़ वृक्ष पर उल्टा लटकता है। दूसरा कारण यह है कि उल्टा लटके होने पर यह आसानी से उड़ान भरने में सफल होता है। इसके अलावा उल्टा लटकने से उन्हें शिकारी पक्षियों से भी सुरक्षा मिलती है।

श्री गणेश चतुर्थी व्रत - Shree Ganesh Chaturthi Vrat in hindi

श्री गणेश चतुर्थी व्रत हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री गणेश (Lord Ganesha) कई रूपों में अवतार लेकर प्राणीजनों के दुखों को दूर करते हैं। श्री गणेश मंगलमूर्ति है, सभी देवों में सबसे पहले श्री गणेश का पूजन (Warship of Shree Ganesha) किया जाता है। श्री गणेश शुभता के प्रतिक हैं। पंचतत्वों मै श्री गणेश को जल का स्थान दिया गया है। बिना गणेश का पूजन किए बिना कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती है। विनायक भगवान का एक नाम अष्टविनायक भी है। इनका पूजन व दर्शन का विशेष महत्व है। इनके अस्त्रों में अंकुश एवं पाश है। चारों दिशाओं में सर्वव्यापाकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं है। उनका लंबोदर रूप समस्त सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक गृह्यशक्ति तथा आंखें सुक्ष्म दृष्टि की सूचक है। उनकी लंबी सूड महाबुद्धित्व का प्रतीक है। श्री गणेश चतुर्थी के दिन श्री विघ्नहर्ता की पूजा अर्चना और व्रत से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते हैं। 
श्री गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व (Importance of Shri Ganesh Chaturthi Vrat in hindi)
श्री गणेश चतुर्थी का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है उस की बुद्धि और ऋषि सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं  का भी नाश होता है। सभी तिथियों में चतुर्थी तिथि श्री गणेश को सबसे अधिक प्रिया होती है। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन वर्जित होता है। इस दिन चंद्र दर्शन करने से व्यक्ति पर झूठे कलंक लगने की आशंका रहती है। इसलिए इस उपवास को करने वाले व्यक्ति को अर्ध्य देते समय चंद्र की ओर ना देखते हुए नजरें नीची कर अर्ध्य देना चाहिए। 

श्री गणेश चतुर्थी पूजन 
संतान की कुशलता का कामना हुआ लंबी आयु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। व्रत का आरम्भ तारों की छांव में करना चाहिए। व्रतधारी को पूरा दिन अन्न जल ग्रहण किए बिना मंदिरों में पूजा अर्चना करनी चाहिए और बच्चों की दीर्घायु के लिए कामना करनी चाहिए। इसके बाद संध्या समय पूजा की तैयारी के लिए गुड़, तिल, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए। व्रत में यह सामग्री विशेष महत्व रखती है। यह व्रत दुःख-संकटों को दूर करने तथा सभी मनोकामनाएं पूरी करने वाला है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत कर गणेशजी की पूजा करती है। व्रतधारी को कथा सुनने के बाद देर शाम चंद्रोदय के समय तिल, गुड़ आदि का अर्ध्य देकर भगवान चंद्र देव से व्रत की सफलता की कामना करनी चाहिए। (Religious Fast and Festivals, Hindu vrat ewam Tyohar)

चने में विद्यमान पोषक तत्व और उनका हमारे शरीर में होने वाले फायदे

चना (Gram) भारतीय खान-पान के प्रमुख अनाजों में से है। इसे शक्तिवर्धक अनाज (Enhancing grain) माना जाता रहा है। यह तो सभी जानते हैं कि यह न सिर्फ पाचन को सही रखता है बल्कि हृदय को भी सुरक्षित रखता है। चना का प्रयोग भारत में सदियों से हो रहा है। इसे सीधे प्रयोग करने के अलावा दाल और उससे बने उत्पादों के रूप में भी होता है। इसका स्वाद तो अलग और अनोखा होता ही है साथ ही इसका प्रयोग ताकत बढ़ाने के लिए भी किया जाता रहा है। इसे अंकुरित कर के भी खाया जाता है ऐसे कई कारण हैं जिनके कारण चना को स्वास्थ्य के लिए बेहतर (Gram is good for health) माना जाता है। प्रस्तुत हैं आठ कारण जिनसे चना स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। 
Benefits of gram
1. वजन घटाने (Weight loss) के लिए : चना को प्राकृतिक रूप से वजन घटाने में सहायक माना जाता है। ऐसा इसमें फाइबर कंटेंट (Fiber content) कि अधिकता के कारण होता है। ये न सिर्फ आपके भूख को कंट्रोल करते हैं बल्कि लंबे समय तक आपके पेट को भरा भी रखते हैं। शाकाहारी (Vegetarian) लोगों के लिए यह प्रोटीन (Protein) का भी बेहतर स्त्रोत है। इससे आपके वजन को नियंत्रित (Weight management) करने में भी मदद मिलती है। 

2. शरीर में शक्ति (Power) और रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ाता है: चना में खनिज लवण (Minerals) के रूप में मैगनिज काफी मात्रा में होता है। इसके अलावा इसमें जरूरी पोषक तत्व जैसे थायमीन, मैंगीशियम और फॉस्फोरस भी पाया जाता है। मैंगीशियम शरीर में ऊर्जा के उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है। 
3. ब्लड शुगर लेवल (Blood Sugar Level) सही रखता है : चना का ग्लाइसेमिक इंडेक्स लो होता है। इस कारण से यह डायबिटीज के रोगियों के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। इसके कारण  ब्लड ग्लूकोज बहुत धीमे-धीमे बढ़ता है। इसमें सोंल्यूबल फाइबर, हाइ प्रोटीन और आयरन होता है। ये तत्व भी ब्लड शूगर लेवल को मैनेज करने में मददगार हैं।

4. महिलाओं में होंर्मोंन का लेवल (Hormones level) नियमित रखता है। इससे ब्रेस्ट कैंसर (Breast cancer) और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा कम हों जाता है। 

5. एनिमिया होने से बचाता है : चना में आयरन इतनी मात्रा में मौजूद होता है कि यह शरीर के आयरन कि जरूरत को आसानी से पूरा करता है और एनिमिया होने से रोकता है। बच्चे और महिलाओं के एनिमिया का खतरा अत्यधिक होता है। इसी कारण से उन्हें नियमित चना का सेवन करने के लिए कहा जाता है।   

6. रक्तचाप (Blood pressure) नियंत्रित करता है: चना रक्त वाहिकाओं (blood vessels) को सामान्य करता है, जिससे हाइपरटेंशन का खतरा कम होता है। इस दलहन में पोटैशियम और मैग्नीशियम भी होता है, जो शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स को भी बैलेंस करता है। 

7. पाचन संबंधी समस्याओं से बचाता है : फाइबर की अधिक मात्रा के कारण यह पाचन तंत्र (Digestive System) और आंत को भी बेहतर बनाये रखता है। इससे पाचन संबंधी समस्याएं नहीं होती हैं। इसके पोषक तत्व कब्ज को भी दूर करता हैं। 

8. हृदय संबंधी रोगों (heart diseases) से दूर रखता है: विशेषज्ञों के अनुसार काला चना रोज खाने से कई प्रकार के हृदय संबंधी समस्याओं को कम कर देता है। इसमें मैग्नीशियम और फोंलेट भी काफी मात्रा में होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने का कार्य करते हैं। 

फैशन डिजाइनिंग (Fashion Designing) में बनाए अपना कैरियर

12वीं के बाद वैसे तो कैरियर के लिए कई क्षेत्र हैं, लेकिन छात्रों की रुचि और क्षमता भी क्षेत्रों के चयन का आधार होती है। वैसे छात्र जिनमें रचनात्मकता व समय को पकड़ने की क्षमता हो, लीक से हट कर कुछ करने का जज्बा हो, वे फैशन डिजाइनिंग (Fashion designing) या फैशन इंडस्ट्री (Fashion Industry) के क्षेत्र में कैरियर बना सकते हैं। फैशन डिजाइनिंग में कैरियर (career in fashion designing) की असीम संभावनाएं हैं। यह क्षेत्र उन लोगों के लिए है, जो कपड़ों में अपने सपनों का पंख लगाने में महारत रखते हैं।
फैशन डिजाइनिंग में बनाए कैरियर
इन क्षेत्रों में बनायें अपना कैरियर

फैशन अब कपड़ों तक ही सीमित नहीं रह गया है, यह इंडस्ट्री का रूप ले चुका है। इसके तहत अपेरल डिजाइनिंग (Apparel Designing), फैशन डिजाइनिंग (Fashion Designing), प्रॉडक्शन मैनेजमेंट (Production Management), क्लोथिंग टेक्नॉलॉजी (Clothing Technology), टेक्सटाइल साइंस (Textile Science), अपेरल कंस्ट्रक्शन (Apparel Construction), फैब्रिक डाइंग (Fabric Design), प्रिंटिंग, कलर मिक्सिंग (Color mixing) और कंप्यूटर डिजाइनिंग (Computer Designing) शामिल है।

फैशन डिजाइनिंग से संबन्धित कोर्सेज (Courses related to Fashion Designing)
विभिन्न संस्थानों में फैशन डिजाइनिंग के कई कोर्स संचालित होते हैं। वैसे इस क्षेत्र में बैचलर कोर्स, मास्टर कोर्स के अलावा डिप्लोमा कोर्स भी किया जा सकता है। फैशन डिजाइनिंग से संबन्धित प्रमुख संस्थान:-


  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नॉलॉजी, निफ़्ट कैंपस, हौज खास, नई दिल्ली
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइनिंग, पालडी, अहमदाबाद
  • अमेटी इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नॉलॉजी, नोएडा
  • पर्ल अकादमी ऑफ फैशन, नारायण इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-2, नई दिल्ली


योग्यता और चायन प्रक्रिया (Eligibility and selection process)

फैशन डिजाइनिंग करनेवाले विभिन्न संस्थानों में चयन का आधार अलग-अलग होता है। स्नातक डिग्री के लिए किसी भी संकाय से 50 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं उतीर्ण (12th  pass) होना आवश्यक है। अनेक संस्थाएं एडमिशन के लिए लिखित परीक्षा (Written examination), ग्रुप डिस्कशन (Group discussion) और साक्षात्कार (Interview) का भी आयोजन करती है।

कोर्स करने के उपरांत आप क्या कर सकते हैं

फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद आप चाहें तो अपना बिजनेस (Own business) भी शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा फैशन डिजाइनर, मार्केटिंग और मार्केटइजिंग, अपेरल मार्केटइजिंग, फैशन स्टाइलिस्ट, विजुअल मार्केटइजिंग, फैशन को-ऑर्डिनेटर, टेक्सटाइल डिजाइनर एवं फैशन कंसलटेंट के रूप में भी काम कर सकते हैं।

काजू का सेवन आपके हृदय के लिए है लाभकारी, जाने काजू के फायदे

भारतीय समाज में जब भी सेहत की बात आती है, तो बड़े-बुजुर्ग काजू-बादाम (Cashew nut) खाने की सलाह देते हैं और यह बात काफी हद तक सही भी है। काजू न सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखता है, बल्कि कई रोगों से भी बचाता है। काजू का प्रयोग हमेशा से भारतीय किंचन में किया जाता रहा है। यह न सिर्फ भोजन के स्वाद को बढ़ाता है बल्कि इसे स्वास्थ्य (Health) के लिहाज से भी बेहतर माना जाता रहा है। इसमें ऐसे कई पोषक तत्व होते हैं, जो मेटाबोलिज्म को बेहतर बनाते हैं और हृदय रोगों के खतरे को भी कम करते हैं, जिससे हृदय स्वस्थ (Healthy heart) रहता है।
 Benefits-of-Cashew-nut
 ये हैं इसके फायदे 

हृदय को रखता है स्वस्थ :- इसमें स्वास्थ्य के लिए अच्छे फैट क्री प्रचुर मात्रा होती है और कोलेस्ट्रॉल नगण्य होता है। इससे ब्लड कोलेस्ट्रॉल कम होता है और ट्राइग्लिसराइड हदय को स्वस्थ बनाते हैं। कुछ लोग यह मानते हैं कि फैट कम लेने से शरीर स्वस्थ रहता है, जबकि यह सही नहीं है। हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हर प्रकार के पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती है और फैट भी उनमें से एक है। लेकिन फैट स्वास्थ्यवर्धक स्रोतों से आना चाहिए। काजू भी फैट का एक स्वास्थ्यवर्धक स्रोत है।

शरीर को बनाता है मजबूत:- इसमें मैग्रीशियम होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है, मांसपेशियों और नर्व की कार्यप्रणाली को सही रखता है. कैल्सियम को हड्डियों में सही प्रकार से अवशोषित करने के लिए हमारे शरीर को लगभग 300-750 मिलीग्राम मैरनीशियम की जरूरत होती है। 

ब्लड प्रेशर को करता है कंट्रोल:- काजू में सोडियम कम और पोटैशियम अधिक होता है, जो ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखता है। यदि शरीर में सोडियम की मात्रा अधिक होती हैं तो शरीर को पानी की जरूरत भी अधिक पड़ती है। इससे ब्लड की मात्रा भी बढ़ती है और ब्लड प्रेशर भी बढ़ता है। 

कैंसर का खतरा होता है कम:- काजू में सेलेनियम और विटामिन इ जैसे एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर को फ्री रैडिकल्स से बचते हैं। इससे इम्युनिटी बढ़ती है और कैंसर का खतरा कम होता है। इसमें जिंक भी होता है, जो इंफेक्शन से बचाया है। 
शारीरिक प्रक्रियाओं को रखता है सही:- इसमें कॉपर की उपयुक्त मात्रा होती है। यह एंजाइम की सक्रियता, हॉर्मोन के निर्माण, ब्रेन फंक्शन को सही रखने में सहायता करता है। 

किन्हें नहीं खाना चाहिए
इसे कोई भी खा सकता है लेकिन जिन्हें इससे एलर्जी हो या माइग्रेन की समस्या हो उम्हें इससे बचना चाहिए इसमे काफी केलोरी होती है जो वजन बढ़ा सकता है। अतः मोटे लोगों को भी इसे खाने से बचना चाहिए। यदि किसी को काजू से एलर्जी हो, तो इससे उल्टी, डायरिया, स्किन रैशेज और सांस लेने में परेशानी हो सकती है यदि ऐसी समस्या होती है तो इसे खाना छोड़ दें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें ।

किडनी को स्वस्थ कैसे रखें, किडनी रोगों के लक्षण, किडनी ट्रांसप्लांट, किडनी फेल्योर एवं डायलिसिस क्या है

हम जाने अनजाने कई ऐसी बातें अपने व्यवहार में लाते हैं, जिनसे किडनी को नुकसान (Kidney ko nuksan) पहुचता है। मसलन, डॉक्टर की तमाम सलाहों के बावजूद लोग जरुरत भर पानी नहीं पीते, जो चुपचाप किडनी को डैमेज करता (Kidney ko damage karta) जाता है। जानिए किन छोटी-छोटी बातों का आपको रखना है पूरा ख्याल। किडनी के डैमेज होने केे लिए हम सिर्फ बड़े कारणों को ही जिम्मेवार मानते हैं। लेकिन वास्तव में हमारी जीवनशैली में ही कई ऐसी गलत आदतें होती है, जिनसे किडनी डैमेज (Kidney damage) हो जाते है। इन छोटी बातों का ध्यान रख कर भी किडनी को स्वस्थ रखा (Kidney ko svasth rakhana) जा सकता है।
Kidney
क्या है किडनी रोगों के लक्षण (Symptoms of kidney disease in hindi) :-
किडनी खराब तब मानी जाती है जब वह अपना कार्य ठीक प्रकार से न कर पाये। ऐसे में प्रारंभिक दौर में शरीर में कई प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं, जिनमे से मुख्या लक्षण (Kidney rogon ke lakchan) इस प्रकार है:-
  • सुबह के समय चेहरे पर ज्यादा सूजन होना। सूजन दिन भा रहती है, लेकिन सुबह में अघिक होती है।
  • कमजोरी और थकान महसूस होना
  • भूख न लगना और उल्टी, जी-मिचलने जैसी समस्या होना।
  • घुटनों में सूजन।
  • शरीर में खून की कमी होना।
  •  कमर के नीचे दर्द रहना।
  •  दवा खाने के बाद भी बीपी का कंट्रोल न होना।
पांच प्रकार का होता है किडनी फेल्योर (Types of Kidney Failure in hindi)

एक्यूट प्री-रीनल किडनी फेल्योर (Acute Pre-renal Kidney Failure):- यह किडनी में खून (Kidney me khoon) की पर्याप्त मात्रा नहीं जाने  से होता है। प्रयाप्त मात्रा में खूंन न मिलने से किडनी खून से विषैले तत्वों को बाहर नहीं निकाल पाता है। इसे दवाइयों से ठीक किया जा सकता है। 

एक्यूट इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर (Acute Intrinsic Kidney Failure):- यह एक्सीडेंट या किसी अन्य वजह से किडनी के क्षतिग्रस्त होने से होता है। शरीर से अत्यधिक खून बह जाने से भी होता है . इसके होने का मुख्य कारण किडनी में ऑक्सीजन की कमी (Kidney me oxygen) होती है।

क्रॉनिक प्री-रीनल किडनी फेल्योर (Chronic Pre-renal Kidney Failure):- एक्यूट प्री-रीनल किडनी फेल्योर के ट्रीटमेंट के बाद भी समस्या लंबे समय तक बनी रहती है और ठीक नहीं होती, तब इसे क्रॉनिक प्री-रीनल किडनी फेल्योर कहते हैं। इसमें किडनी पूरी तरह खराब हो जाता है।

क्रॉनिक इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर (Chronic Intrinsic Kidney Failure):- लंबे समय तक एक्यूट इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर ठीक न होने पर क्रॉनिक इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर हो जाता है।

क्रॉनिक पोस्ट-रीनल किडनी फेल्योर (Chronic Post-Renal Kidney Failure):- यह पेशाब को रोकने के कारण होता है। ऐसा करने से यूरिनरी ट्रेक्ट किडनी पर प्रेशर डालता है, जिससे किडनी डैमेज होने की आशंका होती है।

किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत कब पड़ती है (Kidney Transplant in hindi)

किडनी जब दवाइयों या अन्य तरीके से ठोक नहीं हो पाता है, तब अंतिम उपचार किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney transplant) है। इसके लिए किडनी डोनर की जरूरत होती है। ट्रांसप्लांट के 90% मामले सफल रहते हैं और 4-5 व्र्ष तक सही तरीके से कार्य करते हैं। ट्रांसप्लांट के साइड इफेक्ट (Kidney transplant ke side effect) भी है। इसमें सर्जरी के बाद मरीज को इम्यूनोस्प्रेसिव ड्रग दिया जाता है, ताकि नये किडनी को शरीर रिजेक्ट न करें।  लेकिन इससे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कोई भी व्यक्ति जिसका ब्लड ग्रुप मरीज से मिलता हो, किडनी डोनर हो सकता है। डोनर की आयु 18 से 55 साल के बीच होनी चाहिए। डोनर को भी एक महीने तक डॉक्टर की देख रेख में रहना पड़ता है।

ट्रांसप्लांट के बाद रखें ध्यान (Transplant ke bad kya dhyan rakhen)

  • सर्जरी के बाद इंफेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है, ऐसे में सफाई के लिहाज से सावधानी बरतने की जरूरत है। अत: हाइजीन का ख्याल रखें।
  • सर्जरी के बाद पेट दर्द, बुखार, जुकाम आदि होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। सेल्फ मेडिकेशन न करें।सलाह के अनुसार लें।
  • भोजनं समय पर ले।
क्या है डायलिसिस:- (What is dialysis in hindi)

डायलिसिस ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किडनी का कार्य मशीन करती है।मरीज की किडनी फेल हो जाये ओर तुरंत ट्रांसप्लांट संभव नहीं हो, तो कुछ समय के लिए मरीज को डायलिसिस पर रखा जाता है। डायलिसिस के दौरान मरीज को काफी परहेज रखना होता है। डायलिसिस किडनी फेल्योर का ट्रीटमेंट नहीं होता, बल्कि अस्थायी किडनी का कार्य करता है।
इन्हें भी देखें: किडनी के पथरी (Kidney stone) की जांच कैसे होती है?
ऐसे रखें किडनी को स्वस्थ (How  to Keep your kidney healthy)


पानी की कमी:- आज-कल हमारी जीवन शैली कुछ ऐसी हो गई है कि हम खुद के लिए भी समय निकाल नहीं पाते है। काम  में हम इतना व्यस्त हो जाते हैं कि शरीर के लिए जरूरत भर पानी भी नहीं पी पाते हैं। इसके कारण शरीर की सफाई ठीक से नहीं हो पाती और किडनी डैमेज हो जाता है। कभी-कभी इससे किडनी में स्टोन भी बन जाते है। इन समस्याओं से बचने के लिए तीन से चार लीटर पानी रोजाना पीने कि आदत डालना जरूरी है।

नमक:- कई लोगों को हम अक्सर देखते हैं कि खाना खाने के पहले वे अपने भोजन में अतिरिक्त नमक का इस्तेमाल करते हैं। आपको यह सामान्य लगता होगा। यदि आपको इस तरह कि आदत है तो इससे बचे। क्योंकि इस छोटी सी आदत से आपके किडनी पर बुरा  प्रभाव पड़ता है। नमक में सोडियम होता है। यह ब्लड प्रेशर के बढ़ने का बड़ा कारण है, जो समय के साथ किडनी को भी डैमेज करता है। अतः भोजन के साथ अतिरिक्त नमक का सेवन न करें। 

धुर्मपान:- स्मोकिंग से हाई बीपी की समस्या बढती है। बीपी बढ़ने के कारण अन्य अंगो के साथ-साथ किडनी पर भी दबाव पड़ता है। इससे किडनी फेल्योर का खतरा कई गुना बढ जाता है, साथ ही किडनी के कैंसर का खतरा भी बढ़ता है। अतः धुर्मपान से बचें। 

पेन किलर:- जब कभी भी हमे हमारे शरीर किसी भी अंग में दर्द कि शिकायत होती है तो हम बिना सोचे समझे ही दर्द कि दावा का प्रयोग कर लेते हैं। उस समय तो हमे उस दर्द से निजात मिल जाती है। लेकिन दर्द की दवाओं (Pain Killer) का प्रयोग बिना डॉक्टर की सलाह के करने से शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचता है। चूंकि किडनी शरीर का फिल्टर है, इसलिए दवाइयां इसमें पहुंच का उसे भी डैमेज करने लगती है। अतः बिना डॉक्टर कि सलाह के दर्द कि दवाइयों का सेवन न करें। 

हेपेटाइटिस बी और सी:- इस रोग में हमे थोड़ी भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि इससे शरीर के कई अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण भी किडनी के नेफ्रॉन डैमेज होते है। अत: किसी मरीज को यदि किडनी की समस्याएं होती है तो डॉक्टर हेपेटाइटिस की जांच की भी सलाह देते हैं। ताकि अधिक डैमेज से बचाया जा सके।

डायबिटिक नेफ्रोपैथी:- डायबिटीज में शरीर में ब्लड शूगर लेबल बढ़ जाता है। इस कारण ब्लड वेसेल्स पर बुरा प्रभाव पड़ता है। किडनी शरीर का फिल्टर है। इसमें फिल्टर करने के लिए असंख्य यूनिट होते है। इन्हें नेफ्रान कहते हैं। उनमें भी सूक्ष्म ब्लड वेसेल्स होते हैं। ब्लड शूगर बढ़ जाने के कारण ये वेसेल्स भी डैमेज हो जाते हैं।इससे एक-एक करके नेफ्रॉन डैमेज हो जाते हैं। इसे ही डायबिटिक नेफ्रीपैथी कहते हैं। अत्यधिक डैमेज होने की स्थिति में प्रोटीन फिल्टर नहीं हो पाता है। इस कारण पेशाब में एल्ब्यूमिन आने लगता है। इसका पता पेशाब की जांच से चलता है। एक बार किडनी के डैमेज हो जाने की स्थिति में इसके फिल्टर करने की क्षमता कम हो जाती है। यदि समय पर इसका पता चल जाये, तो समय पर किडनी को बचाया जा सकता है अन्यथा किडनी फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है। अतः ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करें कि कोशिश करनी चाहिए।

पेशाब को रोकना:- पेशाब को रोक कर रखने पर यह किडनी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। ऐसा करने से किडनी पर दबाव पड़ता है। ऐसा बार बार किया जाये, तो किडनी की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। 

ये पांच आदतें किडनी के लिए है खतरनाक
  • व्यायाम न करना
  • शराब का सेवन करना
  • अत्यधिक नॉन वेज खाना
  • पानी कम पीना और इससे डीहाइड्रेशन होना
  •  फास्ट फूड और सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन

मासिक धर्म के दौरान खून के अधिक बहाव के कारण एवं उसके उपचार

अक्सर कई महिलाओं में पीरियड्स (Periods)(मासिक धर्म) के दौरान हेवी ब्लीडिंग (heavy bleeding) (खून का अधिक बहाव) की शिकायत होती है। इस अवस्था को मोनोरेजिया (Menorrhagia) कहते है। इस समस्या के कई कारण हो सकते हैं।
Heavy-bleeding-during-periods
हॉर्मोन का असंतुलन (Hormone Imbalance) :- हेवी ब्लीडिंग का एक मुख्य कारण अंडाशय से उत्सर्जित होने वाले हॉर्मोन में असंतुलन है। अंडाशय, मुख्यतः एस्ट्रोजेन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) नामक हार्मोन का निर्माण करती है जो महिलाओं के मासिक धर्म को नियंत्रित करने के लिए उत्तरदायी होती है। जब इन हार्मोन्स में असन्तुलन उत्पन्न होती है तो हेवी ब्लीडिंग की समस्या होती है।  यह अक्सर मेनोपॉज (menopause) (मासिक धर्म बंद होने की अवस्था) के दौरान होता है लेकिन कुछ युवतियों में भी यह हो सकता है।

यूटेराइन फाइब्रॉइड ट्यूमर्स:- यह भी हैवी ब्लीडिंग होने का एक प्रमुख कारण है। इसमें आम तौर गर्भाशय (uterus) में एक या एक से अधिक बिनाइन ( नॉन कैंसरस) ट्यूमर का निर्माण हो जाता है। यह अधिकतर 30 से 40 वर्ष की महिलाओं में गर्भाशय (uterus) में होता है। इसका उपचार मायोमेक्टोमी (myomectomy), इडॉमेट्रिक्ल एब्लेशन द्वारा किया जाता है।
सर्वाइकल पॉलिप्स (cervical polyps):- गर्भाशय (uterus)के निचले हिस्से को गर्भाशय ग्रीवा (cervix)कहते हैं। गर्भाशय और योनि के बीच में चिकनी, लाल अंगुलिनुमा आकृति विकसित होती है जिसे ही पॉलिप्स कहते हैं। पॉलिप्स मुख्यतः संक्रामण के कारण हो सकता है। यह भी ब्लीडिंग का कारण है। इसका उपचार एंटीबायोटिक्स से होता है।

पेल्विक इंफ्लेमेट्री डिजीज (pelvic implementary disease):- यह यूटेरस, फेलोपियन ट्यूब (fallopian tube) या सर्विक्स में इंफेक्शन के कारण होता है। इंफेक्शन मुख्यतः यौन संक्रामक रोगों के कारण होता है। इसका उपचार भी एंटीबायोटिक द्वारा होता है।

इसके अलावा सर्वाइकल कैंसर, इंडोमेट्रिराल कैंसर के कारण भी हेवी ब्लीडिंग की शिकायत होती है। सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पेपीलोमा वायरस के कारण होता है। इसका उपचार सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के जरिये होता है। वहीँ इंडॉमेट्रियल कैंसर का उपचार हिरट्रेक्टोमी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन।

तुलसी में जल डालना, नदी में सिक्का फेंकना, पीपल में जल डालना, हाथ जोड़ कर नमस्कार करने का अर्थ क्या है

हमारे देश में प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों द्वारा कुछ नियमों का पालन करने हेतु विशेष बल दिया जाता रहा है। जिसे तुलसी के पौधे को प्रतिदिन जल देना, दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करना, पीपल के पेड़ में जल डालना, नदी में सिक्का फेंकना, सूर्य नमस्कार करना इत्यादि। ये परंपराएँ (traditions) लोगों को डराने के लिए नहीं गड़ी गई थी। जो लोग आज भी ऐसा सोचते हैं उन्हें इन परंपराओं के पीछे निहित वैज्ञानिक महत्व को जानने समझने की जरूरत है। इन सभी मान्यताओं के पीछे कई सारे वैज्ञानिक कारण निहित है, जो मानसिक एवं शारीरिक स्वस्थ पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। आज सम्पूर्ण विश्व हमारी इन परंपराओं में निहित वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्वीकार कर चुका है। 

तुलसी के पौधे (Tulsi plant) में जल डालना
Importance of religious traditions
हम अक्सर घरों के आँगन में एक तुलसी का पौधा देखते हैं। जिसे प्रतिदिन सुबह हमारी माताएँ जल चढ़ती है। तुलसी का पौधा एक एंटीबायोटिक मेडिसिन होता है। इस के सेवन से शरीर के प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। बीमारियां दूर भागती हैं और शारीरिक द्रव्य का संतुलन बना रहता है। इसके अलावा तुलसी का पौधा अगर घर में हो तो घर में मच्छर मक्खी सांप आदि के आने का खतरा नहीं होता। 

पीपल में जल डालना

पीपल का पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन करता है, जहां अन्य पेड़-पौधे रात के समय में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं, वहीँ पीपल का पेड़ रात में भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मुक्त करता है। इसी वजह से बड़े बुजुर्गों ने इसके संरक्षण पर विशेष बल दिया है। पुराने जमाने में लोग रात के समय पीपल के पेड़ के नजदीक जाने से मना करते थे। उनके अनुसार पीपल में बुरी आत्माओं का वास होता है, जबकि सच तो यह है कि आक्सीजन की अधिकता के कारण मनुष्य को दम घुटने का एहसास होता है।

दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करना

हमारे देश में समान्यतः जब हम किसी से मिलते हैं तो हम अपने दोनों हाथों को जोड़ कर नमस्ते कहते हैं, जिसका अर्थ है कि हम सामने वाले व्यक्ति को आदर दे रहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इस मुद्रा में हमारी उंगलियों के शिरोबिंदुओं (टिप्स) का मिलान होता है। यहां पर आंख, कान, और मस्तिष्क के प्रेशर पॉइंट्स होते हैं। दोनों हाथ जोड़ने के क्रम में इन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है । इससे संवेदी चक्र प्रभावित होते हैं। जिसकी वजह से हम उस व्यक्ति को अधिक समय तक याद रख पाते हैं साथ ही किसी तरह का शारीरिक संपर्क ना होने से कीटाणुओं के संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता। 
नदी में सिक्का फेंकना

पुराने जमाने में ऐसा करने का मतलब अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना होता था। उस समय तांबे यह चांदी के सिक्कों का चलन था वैज्ञानिक दृष्टि से तांबा या चांदी हमारे शरीर के लिए लाभदायक धातु है। इस परंपरा का मूल उद्देश्य जल में इन धातुओं की मात्रा को बढ़ाना या बनाए रखना था। जो लोग अब भी ऐसा करते हैं उन्हें यह जानना चाहिए कि आजकल स्टेनलेस स्टील के सिक्कों का प्रचलन है। इन में कई तरह के अन्य रासायनिक धातु मिक्स होते हैं। यह स्वस्थ की दृष्टि से हानिकारक हैं इसलिए अब ऐसा करना उचित नहीं है।

सूर्य नमस्कार

प्राचीन वेदों एवं शास्त्रों में सूर्य को ब्रमांड की समस्त उर्जा का प्रतीक माना गया है। हिंदू मान्यता अनुसार सुबह सवेरे सूर्य की दिशा में मुंह करके जल अर्पित करने की क्रिया को महत्वपूर्ण माना गया है। प्रातःकाल इन सूर्य की किरणें हमारी आंखों और हमारे शरीर के उर्जा चक्र को सक्रिय करने में सहायक होती है। 

चटपटा फिश टिक्का कैसे बनाये

चटपटा फिश टिक्का (How to make Chatpata Fish Tikka in hindi)

सामग्री: 500 ग्राम बोनलेस फिश (पीसेस में कटी हुई), 45 मिली क्रीम चीज, 1 टेबलस्पून अजवाइन, 1 टेबलस्पून लहसुन का पेस्ट, 2 टीस्पून जीरा पाउडर, 2 टीस्पून गरम मसाला, 30 मिली निम्बू का रस, 20 ग्राम बेसन, 60 ग्राम दही, 30 ग्राम करीपत्ता (तले और क्रश किये हुए), 150 मिली सरसों का तेल, 1/2 टीस्पून वाइट पेपर पाउडर, थोड़ा-सा बटर और स्वादानुसार नमक। 

बनाने की विधि:  दही, क्रीम चीज, लहसुन का पेस्ट, अजवाइन, जीरा पाउडर, गरम मसाला, नींबू का रस, नमक और बेसन को एक साथ मिलाकर मेरिनेशन का मिश्रण तैयार कर लें। फिर इसमें करीपत्ता,  सरसों का तेल और वाइट पेपर पाउडर मिलाकर इस फिश को इस मिश्रण में 4-6 घंटे तक मेरीनेट करें । अब इसे अवन मैं रखकर 12 से 15 मिनट सुनहरा होने तक पकाएं। बीच-बीच में बटर लगाते रहे। फिश टिक्का तैयार होने पर गरमा-गरम परोसे। 

घरेलू स्क्रब जो गर्मी में सनटैन से आपकी त्वचा की रक्षा करे

सूर्य से निकलने वाली पैराबैंगनी विकिरण ( ultraviolet (UV) radiation ) त्वचा के लिए काफी नुकसानदेह होती है। इससे त्वचा में मेलनिन का स्तर बढ़ जाता है, जो सन टैन की मुख्य वजह है (cause of sun tan or sun burn)। शरीर का जो हिस्सा सूर्य की रोशनी (Our body parts which facing Sunlight) के संपर्क में आता है (चेहरा, हाथ व पैर आदि) उसके साथ अक्सर सन टैन की समस्या हो जाती है। गर्मी में चिलचिलाती धूप में सन टैन से त्वचा (to prevent our skin from sun tan) को बचाना जरूरी है। 
सन टैन को दूर करने के लिए हमारे अपने घर में ही कई ऐसी चीजें उपलब्ध हैं, जो इसे आसानी से दूर कर सकती हैं। नींबू रस, बादाम तेल, शहद, खीरा और आलू में सन टैन को दूर करने का गुण है। इससे त्वचा में जान आ जाती है। यह त्वचा में मेलनिन की वृद्धि को रोकते हैं। रोम छिद्रों को साफ करते हुए त्वचा को चमकदार बनाते हैं। सबसे अच्छी बात है की इन तत्वों से कोई साइड इफेक्ट (side effect) नहीं होता। ये पूरी तरह से प्रकृतिक होते हैं। जानते हैं कुछ घरेलू नुस्खे (Gharelu Nuskhe), घरेलू स्क्रब (Home made scrub) के बारे जो गर्मी में आपकी त्वचा को बचाए रखे ।

सन टैन दूर करे स्क्रब (scrub): टैनिंग को दूर करने का सबसे बेहतर माध्यम है स्क्रबिंग (scrubbing)। इसके लिए आप कई तरह के स्क्रब का प्रयोग (use of home made scrub) कर सकते हैं। एक कप कच्चे दूध में एक चम्मच चन्दन का पाउडर मिलाएँ। इस मिश्रण को अच्छे से मिला कर टैनिंग वाली जगह पर लगाएँ और हल्के हाथों से स्क्रब करें। इस मिश्रण से तब तक स्क्रबिंग करें जब तक यह सुख न जाये। फिर साफ पनि से धो लें। 

मिल्क पाउडर (Milk Powder) बादाम का तेल (Almond oil) व शहद (Honey) स्क्रब: मिल्क पाउडर, नींबू रस, शहद व बादाम का तेल बराबर मात्रा लेकर उसे अच्छे से मिलाएँ। इस तरह बने लेप (solution) को प्रभावित क्षेत्र में लगाकर 15 मिनट बाद धो लें। जल्द असर पाने के लिए इसे दिन में दो-तीन बार करें (use 2-3 times a day)। 

कच्चा दूध हल्दी (turmeric) और नींबू (lemon): नींबू को सबसे अच्छा प्रकृतिक ब्लीच माना जाता है। यह टैनिंग को दूर करने का सबसे बेहतर तत्व है। कच्चे दूध में हल्दी व नींबू के रस को मिलाएँ और इसे टैंड स्किन पर लगाएँ। यह बहुत ही अच्छा प्रकृतिक स्क्रब ( natural scrub) है। इसे 25 मिनट बाद धो लें। 

एलोबेरा (Aloe vera) :- एलोबेरा में आयुर्वेदिक गुण (Ayurvedic quality) होते हैं। सन टैनिंग होने पर इसके पल्प को प्रभावित क्षेत्र में आधा घंटा तक लगा कर रखें। आधे घंटे के बाद धो लें। झुलसी त्वचा पर निखार आ जाएगी। 

टमाटर (Tomato) : टमाटर का रस (Tomato juice) टैनिंग को दूर करने के बेहतर तत्वों में एक है। टमाटर के रस को चेहरा पर 10 मिनट के लिए छोड़ दें। ऐसा रोज दिन में लगातार दो तीन बार करें। टैनिंग कुछ ही दिनों में गायब हो जाएगी।

चीनी और नींबू (Sugar and Lemon) :- चीनी व नींबू रस को मिला कर एक गाढ़ा मिश्रण बनाएँ। इस स्क्रब को टैंड फेस व शरीर में लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें। उसके बाद ठंडे पानी से धो लें। चीनी चेहरे की सफाई के लिए काफी लाभदायक है।

आलू स्क्रब (Potato scrub):- आलू के कुछ टुकड़ों को क्रश कर ले। उसे प्रभावित क्षेत्र पर कम से कम 20 मिनट लगा कर छोड़ दें। यह बहुत ही अच्छा स्क्रब है, जो जल्दी स्किन को पहले जैसे टोन में आता है।

दही (Curd):- इसके सेवन से शरीर को तरावट मिलती है। दही के सेवन से त्वचा के रोमछिद्रों में कसाव आता है।

खीरा (Cucumber) :- खीरा त्वचा को हाइड्रेड़ करता है। त्वचा में पानी की कमी (dehydration) को पूरा करता है। दही टमाटर खीरा को पीस कर मिला लें। इस पेस्ट में आधा कप आटा मिला लें और फेंट लें। इसे लगाकर 30-35 मिनट तक सूखने दें और फिर धो लें।  

सुगर स्क्रब (Sugar scrub) से निखार: सुगर स्क्रब आपकी त्वचा को फिर से एक बार निखार सकता है। चीनी को धीरे-धीरे टैनिंग वाले क्षेत्र में स्क्रब करें (scrub slowing in the tanning area of your skin)। फिर ठंडे पानी से धो लें। चीनी चेहरे की सफाई के लिए काफी लाभदायक है।

चन्दन पाउडर व कच्चा दूध स्क्रब: एक कप कच्चे दूध में एक चम्मच चन्दन का पाउडर (Sandalwood Powder) मिलाएँ। इस मिश्रण को अच्छे से मिला कर टैनिंग वाली जगह पर लगाये। हल्के हाथों से स्क्रब करें। तब तक स्क्रबिंग करें, जब तक यह सुख न जाये। साफ पानी से धो लें।    

गर्भावस्था में होने वाले स्ट्रेच मार्क से बचना है संभव

गर्भवस्था (Pregnancy) में होने वाली स्ट्रेच मार्क (stretch mark) एक ऐसी समस्या है, जिससे लगभग सभी  महिलाएं परेशान होती हैं। परंतु, यदि गर्भवती महिलाओं द्वारा थोड़ी सावधानी बरती जाये और समय पर उपचार कराया जाये, तो इस समस्या से अवश्य बचा जा सकता है।  

स्ट्रेच मार्क गर्भावस्था के दौरान होनेवाली समस्या है। इसमें त्वचा की निचली परत (dermis) के अंदर का प्रोटीन (collagen and elastin) टूट कर दरक जाता है। इसके कारण त्वचा में एक प्रकार का गड्ढा या स्कार बनता है। 

क्या हैं कारण (Cause of Stretch mark during pregnancy in hindi)

गर्भावस्था में भ्रूण के विकास के साथ - साथ पेट की त्वचा पर तनाव बढ़ता जाता है। ज्यादा तनाव के कारण मास्ट सेल (mast cell) से बहुत सारे केमिकल व एंजाइम निकलते हैं। इसमें इलास्टिन प्रोटीन और कोलेजेन को गलाने की शक्ति होती है। जिसके कारण शुरुआत में त्वचा में लालीपन आ जाती है और खुजली होने लगती है। इस अवस्था को लिनिया निगरा (linea nigra) कहते हैं। यह आगे चल कर सफ़ेद या त्वचा के रंग का हो जाता है। इस अवस्था को लीनिया अल्बा (linea alba) कहते हैं। गर्भावस्था में भ्रूण के विकास के साथ जिस हिसाब से गर्भ एवं पेट का आकार बढ़ता है, उस अनुपात में त्वचा नहीं फैल पाती है। जिस कारण त्वचा में तनाव उत्पन्न होता है और इसी से स्ट्रेच मार्क का निर्माण होता है। इसके अलावा अचानक वजन बढ़ना, अचानक लंबा होना, जिम में स्ट्रेचिंग के व्यायाम अधिक करने आदि से भी यह समस्या हो सकती है। महिलाओं में पेट॰ स्तन, जांघ आदि जगहों पर यह समस्या होती है।

कई बार यह देखा गया है कि लोग मिक्स क्रीम (जैसे - फोरडर्म, क्वाडीडर्म, बेतनोवेट जीएम, पेनडर्म) यानी स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक और एंटीफंगल क्रीम को मिला कर लगा लेते हैं, इसे लगातार लगाते रहने से एपिडमींस (त्वचा कि ऊपरी सतह) पतली हो जाती है और कोलेजेन प्रोटीन कमजोर पड़ने से स्ट्रेच मार्क आते हैं। दमा या गठिया आदि के मरीज यदि स्टेरॉयड की गोली रोज लेते हैं, तो उनमें भी तनाववाली जगहों पर स्ट्रेच मार्क हो जाता है।    

स्ट्रेच मार्क से बचाव एवं उपचार 

शुरुआत में जब त्वचा में लालीपन आने लगता है उस समय इसका इलाज करने से ज्यादा लाभ होता है। परंतु यदि इसका रंग उजला हो चुका हो अर्थात यह लिनिया अल्बा में बदल चुका हो, तो इस अवस्था में ठीक होने में समय लगता है। इर्मेटोऑजिस्ट इस अवस्था में ट्रेटीनोइन क्रीम रात में तथा विटामिन इ, सेरामाइड व एलोवेरा मिश्रित क्रीम को दिन में लगाने के लिए दिया जाता हैं। इससे काफी लाभ होता है। अनेक प्रकार के लेजर (जैसे-पल्स डाइ लेजर, एनडी वाइएजी लेजर, फ्रैक्शनल सीओटू लेजर) आइपीएल मशीन, रेडियो फ्रिक्वेंसी मशीन से भी स्ट्रेच मार्क में 50% से ज्यादा बदलाव लाना संभव है। कभी-कभी टीसीए (25%) केमिकल लगाने से भी त्वचा ठीक होती है और नया कोलेजेन बनना शुरू होता है। इससे स्ट्रेचमार्क कम होता है। परंतु कभी-कभी ये स्ट्रेच मार्क इन सबके बावजूद भी पूरी तरह से नॉरमल स्किन में नहीं बदल पाती हैं। अतः बचाव बहुत जरूरी है।     

जिम प्रशिक्षक, डायटिशियन एवं काउन्सलर के रूप में बनाये कैरियर

आज-कल विशेष कर शहर के युवाओं में जिम (GYM) के प्रति रुझान काफी बढ़ा है। इसके साथ-साथ शहर के पुरुष एवं महिलाएं भी स्वस्थ्य के प्रति जागरूक हो रहें है और अपने आपको स्वस्थ रखने के लिए अपने व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर जिम की ओर रुख करने लगे हैं। इसके परिणाम स्वरूप आज हर शहर में जिमों (Gym) की संख्या बढ़ती जा रही है साथ ही साथ जिम प्रशिक्षकों (GYM Trainer) कि मांग भी बढ़ने लगी  है। अमीर हो या गरीब सभी फिट रहना चाहते हैं। इस कारण जिम स्थायी कैरियर विकल्प और व्यवसाय के आकर्षक अवसर के रूप में उभरा है जिससे इस क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। आज जिम के ब्रांडेड सेंटर देश के हर छोटे बड़े शहरों में संचालित हो रहे हैं। इसमें युवा बतौर ट्रेनर कैरियर बना रहे हैं। यदि आपके पास जिम संबन्धित विस्तृत जानकारी है, तो इसके उपकरणों के प्रोवाइडर के रूप में आप अच्छी कमाई (earn money) कर सकते हैं।


आज जिम केवल एक फिटनेस सेंटर है नहीं है बल्कि यह एक अच्छा रोजगार का साधन भी बनता जा रहा है। जहां आप अपने शरीर को फिट रखने के साथ - साथ अपना कैरियर भी बना सकते हैं। एक जिम सेंटर में आप कई रूप में रोजगार प्राप्त कर सकते है जैसे - जिम ट्रेनर, फिटनेस एक्सपर्ट, फिटनेस काउन्सलर एवं डायटिशियन आदि। 
जिम प्रशिक्षक के रूप में कैरियर (Career as Gym Trainer in hindi)

ट्रेनर: हर जिम में एक ट्रेनर होता है जिसके भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होता है। एक अच्छा प्रशिक्षक ही जिम में स्थित उपकरणों के सही प्रयोग बता सकता है। एक अच्छा प्रशिक्षक बनने के लिए आप के अंदर कुछ व्यक्तिगत गुण का होना अवश्यक है। इनमें संबसे महत्वपूर्ण है आपका जिम के प्रति रुचि होना। इसके अलावा आपको जिम से संबन्धित कुछ प्रोफेशनल ट्रेनिंग (Gym trainer professional course) भी लेनी होगी। इस तरह की ट्रेनिंग आजकल कई मेट्रो सिटी में करायी जाती है। ट्रेनिंग लगभग डेढ़ से तीन महीने कि दी जाती है। इसमें कस्टमर को ध्यान में रखते हुए उन्हें किस तरह कि ट्रेनिंग लेनी है, बताया जाता है। इसके अलावा अन्य जिम उपकरणों संबंधी महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी जाती है।

डायटिशियन के रूप में कैरियर (Career as Dietitian in hindi)

डायतिशियन: जिम करने वालों के लिए किस तरह का भोजन होना चाहिए इसका भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जिम करने वाले लोगों कि उम्र, हाइट, वेट आदि का ध्यान रखते हुए उसके डाइट प्लान किया जाता है। यह डाइट प्लान डायतिशियन उपलब्ध कराते हैं।  डायतिशियन बनने के लिए प्रोफेशनल कोर्स करने होते हैं।

जिम काउन्सलर के रूप में कैरियर (Career as Gym Counselor in hindi)

काउन्सलर: जिम में काउन्सलर कि भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। यह आपको जिम संबंधी सही जानकारी और आपके लिए सही एक्सरसाइज सजेस्ट करता है। साथ ही वह यह भी बताता है कि एक्सरसाइज के द्वारा किस तरह कि बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।

डायबिटीज रोगियों पर इंसुलिन का प्रयोग कैसे करें

आज के हमारी व्यस्त जीवनशैली एवं फास्ट फूड  के प्रयोग से अक्सर उम्र के बढ़ने के साथ-साथ बहुत सारे लोग डायबिटीज (Diabetes) अर्थात मधुमेह का शिकार होते जा रहे हैं। इसमें ब्लड शूगर लेवल (Blood sugar level) बढ़ जाता है, जो इंसुलिन (Insulin) से कंट्रोल होता है। इसे लेते समय भी कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, अन्यथा साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं।
Use of insulin

हमारे शरीर में ब्लड में शूगर का लेवल काफी मायने रखता है। शरीर में शूगर के कई रूप होते हैं, जैसे- गैलेक्टोज (glactose), ग्लूकोज (glucose) आदि शूगर ही शरीर में ऊर्जा का स्त्रोत होता है, इसकी कम मात्रा और अधिक मात्रा दोनों से अंगो को नुकसान पहुंच सकता है। इसी के लेवल को शरीर में कंट्रोल करने का काम इंसुलिन करता है।


क्या है इंसुलिन (What is Insulin in hindi)
इंसुलिन एक होंमोंन है, जो अग्न्याशय (Pancreas) के वीटा सेल से उत्सर्जित होता है। हम जो भोजन करते है उस भोजन में कार्बोहाइड्रेट होता है। उस कार्बोहाइड्रेट से हमारे शरीर में शुगर का इस्तेमाल करने के लिए इंसुलिन ही सहायता करता है, जिससे शरीर को ऊर्जा प्राप्त होता है। यह हमारे शरीर में हाई ब्लड शुगर (High Blood Sugar) एवं लॉ ब्लड शुगर (Low Blood Sugar) को नियंत्रित करता है।

इंसुलिन कितने प्रकार का होता है (Types of Insulin in hindi)

रैपिड एक्टिंग इंसुलिन (Rapid Acting Insulin): यह इंसुलिन का इस्तेमाल करने  के 15 मिनट में काम शुरू कर देता है। यह 2-4 घंटे तक सक्रिय रहता है।

रेग्यूलर/शॉर्ट एक्टिंग इंसुलिन (Regular/Short Acting Insulin) : यह इंसुलिन इस्तेमाल करने के 30 मिनट के बाद खून में घुलता है। इसका असर 3-6 घंटे तक रहता है।

इंटरमीडिएट एक्टिंग इंसुलिन (Intermediate acting Insulin) : यह इंसुलिन इस्तेमाल करने के 2-4 घंटे में खून में घुलने लगता है और इसका असर 12-18 घंटे तक रहता है।

लॉन्ग एक्टिंग इंसुलिन (Long Acting Insulin) : इसमें इंसुलिन कई घंटों के बाद खून में घुलता है। यह 24 घंटे के दौरान खून में ग्लूकोज के लेवल को कम रखता है।
इंसुलिन के प्रयोग से पहले रखें ध्यान 

  • अगर इंसुलिन से एलर्जी है, तो इसे न लें। इसके अलावा यदि ब्लड शूगर कम है (हाइपोग्लाइसेमिया) तब भी इससे परहेज करें। 
  • यदि लिवर या किडनी रोग हो, तो डॉक्टर को जरूर बताएं। 
  • दूध पिलाने वाली महिलाओं को इंसुलिन लेने से पहले डॉक्टर के सलाह अवश्य ले लेना चाहिए।
  • पहले से डायबिटीज के लिए कोई दवा ले रहे हैं, जैसे पायोलिटाजोन और रोगीग्लिटाजोन तो इंसुलिन लेने से पहले डॉक्टर को जरूर बताएं। ऐसे में इंसुलिन लेने से हृदय रोगों का खतरा हो सकता है। 
  • ट्रीटमेंट के दौरान प्रेग्नेंट हैं या तैयारी में है, तब भी डॉक्टर से सलाह लें। 
क्या हैं इसके साइड इफेक्ट्स 

  • शरीर में इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाने से ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है। इस स्थिति को हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं।
  • इससे सिर में हल्कापन, कांपना, अशक्तता, पसीना आदि लक्षण हो सकते हैं।
  • यदि ये लक्षण गंभीर हो जाएं, तो रोगी अपनी चेतना भी खो सकता है।
  • इन्सुलिन की कमी से, शरीर में अधिक मात्रा में फैट जमा होने लगता है।
  • आहार के प्रति लापरवाही बरतने एवं इन्सुलिन की सही मात्रा न लेना खतरनाक हो सकता है।
डायबिटीज के टाइप के अनुसार दिया जाता है इंसुलिन

टाइप 1: मरीज पूरी तरह इंसुलिन पर निर्भर रहता है। शरीर इंसुलिन पर निर्भर रहता है। शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता है। यह आनुवांशिक है और ज्यादातर युवाओं और बच्चों में होता है। इसे जुवेनाइल डायबिटीज कहते हैं। इसमें अधिकतर इंजेक्शन दिया जाता है।

टाइप 2: शरीर कम मात्रा में इंसुलिन बनाता है। ऐसे रोगियों को दवाई देकर ग्लूकोज सही लेवल में लाते हैं। यह बूढ़े या मोटे लोगों में होता है। इसमें ओरल मेडिसिन दिया जाता है। पहले से इंसुलिन बनने से इसकी मात्रा कम दी जाती है। 90% केस लेवल टाइप 2 के होते हैं। यदि ग्लूकोज का स्तर 200 से कम हो, तो दवा के स्थान पर व्यायाम, भोजन पर नियंत्रण और आहार में परिवर्तन लाकर उपचार किया जा सकता है। 

जीवनशैली रखें नियंत्रित : डायबिटीज में खान-पान का विशेष ध्यान रखें। खाना सेहतमंद हो, तैलीय पदार्थो और मीठी चीजों से जीवन भर दूरी बना कर रखें। प्रतिदिन व्यायाम करें। इस रोग में पैरों एवं आंखों का खास ख्याल रखें। नियमित रूप से अपनी जांच कराते रहें। 

शौच में खून आना कैंसर भी हो सकता है

आमतौर पर शौच में खून आने की समस्या पाइल्स (बाबासीर) के कारण ही होती है। परंतु यदि आपको बाबासीर की  समस्या नहीं है और आपके शौच में खून आ रहा है तो आप सतर्क हो जाइये। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए और तुरंत ही किसी अनुभवी डॉक्टर से उपचार अवश्य करना चाहिए।

एक व्यक्ति को कई दिनों से शौच में खून आने की शिकायत थी। उस व्यक्ति ने इस संबंध में डॉक्टर की सलाह ली। डॉक्टर ने जांच के उपरांत पाइल्स डायग्नोसिस किया और पाइल्स का ऑपरेशन किया गया। परंतु इलाज हो जाने के बाद भी उसके शौच में खून आने की समस्या ठीक नही हुई। इसके बाद उसे कुछ अन्य जांच जैसे-यूएसजी, सीटी स्कैन कराने की सलाह दी गयी। जांच में पता चला कि उसके रेक्टम (आंत के आखिरी छोर) में कैंसर है। तुरंत उसका ऑपरेशन किया गया। इस तरह अब मरीज बिलकुल ठीक है और उसके शौच में खून आने की समस्या समाप्त हो चुकी है।  

पाइल्स के अलावा भी शौच में खून आ सकता है 

आजकल मसालेदार भोजन, हरी सब्जियों का सेवन न करना, फास्ट फूड का अधिक सेवन और खान-पान में अनियमितता के कारण पाइल्स की समस्या आम  हो गया है। अधिकांश लोग किसी-न-किसी रूप में इस रोग से ग्रसित हैं। इस प्रकार के भोजन के सेवन से कब्ज की शिकायत अधिक होती है। इससे शौच के समय मांसपेशियों और नसों पर जोर पड़ता है, जिससे पाइल्स या फिस्टूला होता है। इसके अलावा तंबाकू और शराब के सेवन से भी यह समस्या हो सकती है। पर आपको यह भी ध्यान देना चाहिए कि शौच में खून आने का मतलब सिर्फ बवासीर नहीं होता है। यह कभी-कभी किसी गंभीर रोग का लक्षण भी हो सकता है। वैसे तो 90% मामलों में पाइल्स के कारण ही शौच में खून आता है लेकिन पांच से 10 प्रतिशत मामलों में यह समस्या आंत के कैंसर के कारण भी हो सकती है। शौच में खून आने के कई कारण हो सकते हैं। इसके लिए किसी अनुभवी चिकित्सक या सर्जन से सलाह लेना आवश्यक है। इसके लिए चिकित्सक प्रोटोस्कोपी, सीस्मोइडोस्कोपी तथा जरूरत पड़ने पर कोलोनोस्कोपी भी कराने की सलाह दे सकते हैं। 

सर्जरी के अलावा भी हैं विकल्प

जरूरी नहीं है कि पाइल्स का इलाज हमेशा सर्जरी से ही हो। रोग शुरुआती स्टेज में है, तो सबसे पहले भोजन की आदतों में सुधार करना चाहिए। फर्स्ट या सेकेंड डिग्री के पाइल्स में स्क्लेरोथेरेपी (इंजेक्शन की मदद से दवा को पाइल्स में इन्जेक्ट करना) की जाती है। जब पाइल्स थर्ड या फोर्थ डिग्री का हो जाता है, तब ऑपरेशन एकमात्र इलाज है। आजकल एक नयी मशीन आ गयी है, जिसे एमआइपीए कहते हैं। इसकी मदद से सर्जरी होती है। यह सफल तकनीक है। इसमें मरीज को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है। 24 घंटे के अंदर ही मरीज सामान्य रूप से खाना खाने लगता है और घूमना-फिरना शुरू कर देता है, इसलिए यदि किसी को शौच में खून आने की शिकायत हो, तो हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसके लिए सुयोग्य किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि यदि यह रोग कैंसर होता है और इसका पता पहले चल जाता है, तो इसका इलाज संभव है, इसलिए मरीज को सतर्कता बरतनी चाहिए।