प्यास अधिक लगना pyas adhik lagna



प्यास अधिक लगना

        प्यास (तृष्णा) एक रोग है जो अत्यधिक प्यास से उत्पन्न होता है। अत्यधिक परिश्रम करने पर या बुखार होने पर शरीर में पानी की कमी हो जाती है। शरीर में पानी की कमी होने पर पानी की कमी को दूर करने के लिए प्यास लगती है जिसे प्यास (तृष्णा) कहते हैं।परिचय :

प्यास का वेग रोकने से उत्पन्न होने वाले रोग :

विभिन्न भाषाओं में नाम :


हिन्दी

तास, प्यास

अंग्रेजी

पोली डिपसीमा, एक्सेसीव थस्ट

अरबी

पियाह

बंगाली

तृष्णा

गुजराती

पियास

कन्नड़ी

वायरिके

मलयालम

तृक्ष्णा

मराठी

तहाना

उड़िया

शोष

पंजाबी

पयासरोग

तमिल

निरवेटकइ

तेलगू

दुप्पी
        क्रोध एवं शोक आदि कारणों से पित्त तथा वायु की अधिक वृद्धि हो जाने के कारण पानी बहाने वाले स्रोत दूषित हो जाते हैं, जिसके कारण तेज प्यास लगती है। उपवास, धातुक्षय, मद्यपान, शोक, क्रोध, भय, परिश्रम, अग्निताप, अजीर्ण, आघात लगना, पित्तवर्धक पदार्थो का सेवन, दो दाल, कुल्थी आदि खाने पर तथा ज्वर (बुखार) के कारण भी प्यास अधिक लगती है।
        इस रोग में सिर में चुभन जैसी पीड़ा होती है। मुंह सूख जाना तथा जबड़े में पीड़ा होना वातज तृष्णा (प्यास) के लक्षण हैं। पित्त के कारण प्यास लगने पर भूख मिट जाती है, मुंख में तीखा (तिक्तता), गले में जलन तथा शरीर में सूखापन का अनुभव होने लगता है। इस प्रकार के रोग में शीतल (ठंडी) वस्तु अच्छे लगते हैं और रोगी में मूर्च्छा आदि के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं। नींद का अधिक आना, मुंह में मिठास और क्षीणता (चिड़चिड़ापन) बढ़ जाना आदि कफज तृष्णा (प्यास) के लक्षण हैं। क्षयज तृष्णा (प्यास) होने पर रोगी को अधिक पानी पीने के बाद भी संतोष नहीं होता है। आमज तृष्णा (प्यास) में हृदय के आस-पास पीड़ा रहती है और बेचैनी उत्पन्न होने लगती है।
1. धनिया : हरा धनिया और सूखा आंवला को मिलाकर चटनी बनाकर प्रतिदिन खाने से गले का सूखना व प्यास का अधिक लगना दूर हो जाता है।
2. खुरफे : खुरफे के बीजों को 10 ग्राम पानी के साथ पीस व छानकर खांड मिलाकर पिलाने से प्यास की तीव्रता कम हो जाती है।
3. शहद :
4. इमली :
5. इलायची : 12 छोटी इलायची के छिलके को 1 गिलास पानी में उबालें। आधा पानी रहने पर इसके चार हिस्से करके हर 2-2 घण्टे पर पिलाने से प्यास अधिक नहीं लगेगी। किसी भी बीमारी में यदि प्यास अधिक हो तो ठीक हो जाती है।
6. बबूल : प्यास और जलन में इसकी छाल के काढ़े में मिश्री मिलाकर पिलाना चाहिए। इससे लाभ होता है।
7. बरगद : बरगद की कोंपलों के साथ दूब, घास, लोध्र, अनार की फली और मुलेठी बराबर में लेकर, एक साथ पीसकर शहद में मिलाकर चावलों के धोवन के साथ सेवन करने से उल्टी और प्यास में शांति मिलती है।
8. बारतग : प्यास ज्यादा लगने पर बारतग के 5 ग्राम बीज पानी के साथ सेवन करने से प्यास दूर होती है।
9. कागजी नींबू : कागजी नींबू के रस में 2 चुटकी भर चीनी डालकर पिलाने से प्यास के अधिक लगाने में लाभ होता है।
10. केला :
11. मुनक्का :
12. किशमिश :
13. मुलहठी : मुलहठी में शहद मिलाकर सूंघने से तेज प्यास खत्म हो जाती है तथा थोड़े-थोड़े देर पर लगने वाली प्यास मिट जाती है।
14. बिहीदाना : बिहीदाना 3 ग्राम को 200 मिलीलीटर पानी में 1 घंटा भिगो दें। 1 घंटे बाद बिहीदाना को उसी पानी में मसलकर छान लें। इस पानी में खांड मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पिलायें। इससे बार-बार गले का सूखना बंद हो जाता है।
15. सिरका : ठंडे पानी में सिरका मिलाकर पीने से बादी की प्यास मिट जाती है।
16. गिलोय : गिलोय का रस 6 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में कई बार देने से प्यास शांत हो जाती है।
17. प्याज : प्यास अधिक लगने पर प्याज, पोदीना और मिश्री को मिलाकर  घोटकर पिलाने से प्यास में लाभ होता है।
18. पीपल :
19. पान : पान खाने से प्यास कम लगती हैं।
20. पानी : गर्म पानी में नमक मिलाकर पीने से खुश्की की प्यास ठीक हो जाती है।
21. संतरा: प्यास अधिक लगने पर नारंगी के सेवन से प्यास कम होती है।
22. सोंठ :
23. सौंफ :
24. सोना : गरम सोना, चांदी व गरम ईंट को जिस पानी में बुझाएं उस पानी को पीने से तेज प्यास शांत हो जाती है।
25. सेब : सेब का रस पानी में मिलाकर पीने से प्यास कम लगती है। जिन्हे वायु विकार हो, उन्हें यह प्रयोग लाभकारी नहीं होगा।
26. उदुम्बर के पत्ते :
27. दही : दही में गुड़ मिलाकर खाने से बादी प्यास मिट जाती है तथा भोजन के बाद आने वाले तेज प्यास कम होती है।
28. दूध : ताजा दूध 100 से 500 मिलीलीटर पाचन क्षमता के अनुसार पीने से तेज प्यास दूर होती है।
29. चकोतरा : चकोतरे का रस थोड़ा सा पानी मिलाकर पीने से जलन व प्यास शांत होती है और बुखार भी उतर जाता है।
30. चावल : चावल का काढ़ा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग दिन में 2 से 3 बार खाने से प्यास शांत होती है।
31. फालसा : पके फालसों के रस में पानी मिलाकर पीने से तृषा (प्यास) का रोग दूर होता है।
32. तरबूज : तरबूज खाने से प्यास लगना कम हो जाता है। तरबूज के रस में मिश्री को मिलाकर प्रतिदिन सुबह पीने से रोग में अधिक लाभ होता है।
33. तुलसी :
34. जायफल : किसी भी प्रकार के रोग में प्यास अधिक लगने पर जायफल का टुकड़ा मुंह में रखने से लाभ होता है।
35. जामुन :
36. जामुन के पत्ते : जामुन के सूखे पत्तों का काढ़ा बनाकर लगभग 7 से 14 मिलीलीटर काढ़े में 5 से 10 ग्राम चीनी मिलाकर दिन में 3 बार पीने से बुखार में प्यास का लगना कम हो जाता है।
37. जौ :
38. ज्वार : ज्वार की रोटी को छाछ में भिगोकर खाने से प्यास लगना कम होता है। ज्वार की रोटी कमजोर और वात पित्त के रोगी को न देना चाहिए।
39. नमक :
40. नींबू :
41. नीम :
42. नीलोफर : नीलोफर के फूल 20 ग्राम को 200 मिलीलीटर पानी में 2 घंटे भिगोने के बाद पानी छानकर थोड़ा-थोड़ा करके दिन में 3 से 4 बार पीयें। इससे अधिक बोलने या गाने के बाद गला सूखने से लगने वाली प्यास खत्म होती है तथा गला सूखता नहीं है।
43. नारियल :
44. नारंगी : प्यास अधिक लगने पर नारंगी खाने से प्यास कम लगती है।
45. नागरमोथा : नागरमोथा, पित्तपापड़ा, उशीर (खस), लाल चंदन, सुगन्धबाला, सौंठ आदि पदार्थो को पीसकर काढ़ा बना लें और ठंडे पानी के साथ बीमार व्यक्ति को देने से प्यास और ज्वर की प्यास में शांति मिलती है।
46. अंजीर : बार-बार प्यास लगने पर अंजीर का सेवन करने से लाभ होता है।
47. अमरूद :
48. आंवला : आंवला और सफेद कत्था मुंह में रखने से प्यास का अधिक लगना ठीक हो जाता है।
49. आम :
50. आमलकी फल : आमलकी फल का चूर्ण 2 से 4 ग्राम को 5 से 10 ग्राम शहद के साथ दिन में 2 से 3 बार खिलायें। इससे तेज प्यास खत्म होती है।
51. आलूबुखारा: आलूबुखारे को मुंह में रखने से प्यास कम लगती है तथा गले का सूखना बंद हो जाता है।
52. अतीस :
53. अनार :
54. अगर : बुखार होने पर रोगी को बार-बार प्यास लगती हो तो अगर का काढ़ा बनाकर पिलाने से प्यास में आराम मिलता है।
55. गुड़ : गुड़ का शर्बत पीने से गरिष्ठ भोजन की प्यास दूर हो जाती है।
56. गुड़ूची : ताजे गुड़ूची का रस निकालकर लगभग 7 से 14 मिलीलीटर पीने से किसी भी प्रकार के रोगों में प्यास लगना कम हो जाता है।
57. गुलकन्द :
58. गूलर :
59. लीची : लीची गर्मियों के तपन व प्यास को शांत करती है।
60. लौंग :
61. लाल चावल : लाल चावलों का भात ठंडा करके शहद मिलाकर खाने से पुराना तृष्ण (प्यास) रोग मिट जाता है।

कण्ठ शालूक kanth

कण्ठ शालूक

         इस रोग में रोगी के नाक और गले के बीच में एक मोटी सी गांठ बन जाती है। जिसके कारण रोगी को बार-बार जुकाम हो जाता है और नाक भी बंद हो जाती है। रोगी को मजबूर होकर मुंह से सांस लेनी पड़ती है। रोगी को सुनाई देना भी कम हो जाता है।परिचय :

लक्षण :

        गले में दोनों तरफ बेर की गुठली के जैसे दो ग्रंथियां कण्ठ शालूक (गले में गांठ) के बढ़ जाने पर गले में कांटे की तरह चुभते हैं। दोनों कण्ठ शालूक (गले में गांठ) के बीच में तालु से लटकता हुआ छोटा सा लवंग जैसा मांस है जब वह बढ़ जाता है तो दोनों ग्रंथियां सूज जाती हैं। गला सूखने लगता है। कुछ भी चीज गले से निगलने में बहुत तेज दर्द होता है और ज्वर (बुखार), खांसी, सर्दी आदि रोग हो जाते हैं।
1. हंसपदी : 1.20 ग्राम से 3.60 ग्राम की मात्रा में हंसराज (हंसपदी) के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से कण्ठशालूक (गले में गांठ) और दूसरे कण्ठ (गले) के रोग ठीक हो जाते हैं।
2. कतीरा : 10 से 20 ग्राम कतीरा पीसकर और उसमें मिश्री को मिलाकर सुबह-शाम पीने से गले के बहुत से रोगों में आराम आता है। कतीरा का सेवन करने से कुछ घंटों पहले पानी में भिगो दें। अगर शाम को सेवन करना है तो सुबह ही भिगो दें और सुबह सेवन करना है तो शाम को ही भिगो दें।
3. लहसुन : लहसुन का लेप तैयार करके उसे एक कपड़े के टुकड़े पर मल दें। अब उसे हल्की आग पर गर्म करने के लिए रख दें और बाद में उसे आग पर से उतारकर निचोड़कर उसका रस निकाल लें। रस के बराबर ही उसमें शहद मिलाकर उसे टांसिल पर लगा दें।
4. कचनार : 20 ग्राम कचनार की छाल के काढ़े में सोंठ को मिलाकर सुबह-शाम को पीने से आराम मिलता है।
5. हरड़ : 3 से 6 ग्राम हरड़ रोजाना सुबह-शाम गन्ने के रस अथवा ईख के गुड़ के साथ सुबह-शाम सेवन करने से ग्रंथि सम्बन्धी (गले के रोग) रोगों में लाभ होता है।
6. तेजफल : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तुम्बरू (तेजफल) का चूर्ण सुबह-शाम को सेवन करने से गले के रोगों में अच्छा     लाभ मिलता है।
7. शहद : वरना की जड़ के काढ़े में असमान मात्रा में घी और शहद मिलाकर पीने से कण्ठ शालूक (गले में गांठ) में आराम आता है।
8. पीपर : 6 ग्राम पीपर के चूर्ण को 8 ग्राम शहद में मिलाकर रोगी को चटाने से गण्डमाला और कण्ठशालूक (गले में गांठ) ठीक हो जाती हैं।
9. पत्थरचूर: पत्थरचूर को दिन में 2-3 बार मुंह में रखकर अच्छी तरह से चबाने और निगल जाने से कण्ठ शालूक (गले में गांठ) ठीक हो जाती हैं।
10. गाजर : गाजर का रस पीने से कंठशालूक का रोग ठीक हो जाता है तथा दांत भी मजबूत हो जाते हैं।

घेंघा, गलगंड ghenga

घेंघा, गलगंड

         घेंघा का रोग अधिकतर आयोडीन की कमी से होता है। कभी-कभी थायरॉयड ग्रंथि के बढ़ने के कारण भी ऐसा होता है। इस रोग में गर्दन या ठोड़ी में छोटी या बड़ी सूजन लटकती है। यह कई कारणों से उत्पन्न हो सकती है।परिचय :

लक्षण :

गले में दर्द gale me dard

गले में दर्द

          विभिन्न कारणों से गले में दर्द होता है जैसे- किसी चीज से गले पर चोट लगती है, गला छील जाता है, अधिक गर्म पदार्थ खाने या पीने के कारण गला जल जाने पर गले में दर्द होता है। इसके अलावा गले में सूजन आ जाने या कफ बनने के कारण भी दर्द होता है।परिचय :

विभिन्न औषधियों से उपचार :

स्वरभंग, गला बैठना gala bethna

स्वरभंग, गला बैठना

        अस्पष्ट आवाज (खराब आवाज), कर्कश स्वर (भारी आवाज) को स्वरभंग या गला बैठना कहते हैं। ठंड लगने या ठंड शरीर में बैठ जाने से आवाज अटकने से होता है। ज्यादा जोर से बोलने या ज्यादा देर तक लगातार बोलने या गाने से भी यह रोग हो जाता है।परिचय :

विभिन्न भाषाओं में नाम :


हिन्दी

गला बैठना

अरबी

मठ भंगा

बंगाली

स्वरभंग

गुजराती

शद्धबेसीजवो, गडुबसीजवो

कन्नड़

ध्वनि बिलुवडा

मलयालम

औचयटप्पु

मराठी

आवाजफूटने, आवाज बसने

उड़िया

तांतीवसीजीबा

पंजाबी

गला बैठना

तमिल

कुरलकम्मल

तेलगू

बोगूंरू

अंग्रेजी

होर्सनैस।
खट्टा, चटपटा या ज्यादा मसालेदार चीजें खाने से गला बैठ सकता है। यह चीजें हमारी आवाज को खराब कर देती हैं स्वर-यंत्र में सूजन आने से, जोर-जोर से बोलने से, अधिक खांसी और गले में जख्म आदि कारणों से भी आवाज बैठ जाती है जिसमें रोगी को बोलते समय गले में जलन सी महसूस होती है। गले में कफ (बलगम) रुक जाता है। शरीर में कमजोरी, खून की कमी, वीर्य आदि के कम हो जाने के कारण भी गले की आवाज खराब हो जाती है।
1. नमक :
2. छोटी पीपल : भोजन के बाद कालीमिर्च और छोटी पीपल को मिलाकर खाने से कफज के कारण स्वर भंग (आवाज बैठना) में आराम मिलता है।
3. कत्था : 1 ग्राम कत्था को सरसों के तेल में भिगोकर मुंह में रखने से सभी प्रकार का स्वर भंग (गला बैठना) ठीक हो जाता है।
4. छोटी हरड़ : छोटी हरड़ का चूर्ण बनाकर 6 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध में मिलाकर 7 से 8 दिनों तक लगातार सेवन करने से गला बैठना व गले का दर्द, खुश्की आदि ठीक हो जाती हैं।
5. मिश्री :
6. गन्ना : गन्ने को भूनकर तथा छीलकर चूसने से गले की खुश्की व बैठा हुआ गला ठीक हो जाता है।
7. मुलहठी :
8. छुहारे : सोते समय एक छुहारा उबालकर दूध में लें। इसके सेवन के दो घंटे बाद पानी न पियें। ऐसा करने से आवाज साफ हो जाएगी।
9. अजमोदा : अजमोदा, हल्दी, आंवला, यवक्षार और चित्रक के चूर्ण को शहद तथा घी के साथ चाटने से स्वर भेद दूर होता है। मात्रा 1 से 2 ग्राम तथा दिन में तीन बार देनी चाहिए।
10. अदरक :
11. पान :
12. इमली :
13. प्याज : प्याज को आग में दबाकर उसका भुरता बना लें। रोगी को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग भुना सुहागा खिलाकर ऊपर से प्याज का भुरता खिलाने से स्वरभंग (आवाज़ का खराब होना) ठीक हो जाता है।
14. लहसुन :
15. सिरस : सिरस की छाल और हल्दी दोनों पीसकर, तेल में सेंककर, गले पर लेप करके, रूई लगाकर, पट्टी बांधकर रात को सोयें। सुबह गला खुल जायेगा।
16. सुहागा :
17. बेर :
18. तुलसी : स्वरभंग (गला बैठना) में तुलसी की जड़ को मुलेठी की तरह चूसते रहने से लाभ मिलता है।
19. ब्राह्मी : ब्राह्मी की जड़ 100 ग्राम, मुनक्का 100 ग्राम और शंखपुष्पी 50 ग्राम को चौगुने पानी में मिलाकर रस निकाल लें। इस रस का सेवन करने से शरीर स्वस्थ होता है और आवाज भी साफ होती है।
20. शहद :
21. सफेद जीरा : आधे से 2 ग्राम सफेद जीरे को रोजाना 2 बार चबाने से स्वरभंग (बैठा हुआ गला) ठीक हो जाता है।
22. पीपल : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम पीपल के चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से स्वरभंग (बैठा हुआ गला) ठीक हो जाता है।
23. सोंठ : सोंठ और कायफर (कायफल) को मिलाकर काढ़ा तैयार कर ले और इस काढ़े को सुबह-शाम सेवन करने और काढ़े से गरारा करने से आराम आता है।
24. लताकस्तूरी : लताकस्तूरी के बीजों के चूर्ण के धूम्रपान से स्वरभंग (गला बैठने पर) में लाभ होता है।
25. गुड़ : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम गुग्गुल को गुड़ के साथ रोजाना 3 से 4 बार लेने से गले में आराम आता है।
26. कचूर : कचूर को मुंह में रखकर चबाने से या चूसते रहने से गला साफ और आवाज मीठी हो जाती है। गाना गाने वाले लोग ज्यादातर इसका प्रयोग करते हैं।
27. तालीसपत्र: स्वरभंग (गला बैठने पर) में तालीसपत्र (अबीस वेभइआना लाइंड) का काढ़ा या फांट सुबह-शाम सेवन करने से गले में आराम आता है।
28. शोधित कुचला : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शोधित कुचले का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से ज्यादा बोलने के कारण पैदा हुआ स्वरभंग (गला बैठने पर) ठीक हो जाता है।
29. बतासे : 5 से 10 बूंद कायापुटी का तेल बतासे या चीनी पर डालकर रोजाना 3 से 4 बार सेवन करने से स्वरभंग (गला बैठने पर) ठीक हो जाता है।
30. कालीमिर्च :
31. हींग :
32. बच : कत्था, बच, कुलंजन और बावची को पीसकर मुंह में रखने से गले में आराम आता है।
33. गुड़ : 10 ग्राम उबलते चावल, 10 ग्राम गुड़ और 40 मिलीलीटर पानी को एक साथ मिलाकर पका लें और पकने पर उसमें घी मिलाकर दिन में 2 बार लें। इससे स्वरभंग में लाभ होता है।
34. खूबकलां : 1 से 2 ग्राम खूबकलां (खाकसीर) के बीज को पानी में डालकर लुआबदार घोल सुबह-शाम पीने से स्वरभंग (गला बैठने पर) दूर हो जाता है।
35. शहतूत : शहतूत के पत्तों के काढ़े से गण्डूस (गरारे) कराने से स्वरभंग (गला बैठने पर) में आराम आता है।
36. मालकांगनी : मालकांगनी, बच, अजवायन, खुरासानी, कुलंजन और पीपल को बराबर मात्रा में लेकर इसमें शहद मिलाकर रोजाना 3 ग्राम चटाने से गले में आराम आता है।
37. मूली के बीज :
38. शीतलचीनी :
39. कराजनीः स्वऱभंग (गला बैठने पर) में श्वेतकुंजा (कराजनी) के पत्ते कबाबचीनी के साथ मिश्री मिलाकर या अकेले श्वेतगुंजा के साथ सिर्फ मिश्री को मिलाकर चूसते रहने से गले में पूरा आराम होता है।
40. हल्दी : गर्म दूध में थोड़ा हल्दी डालकर पीने से स्वर भेद (मोटी आवाज), बैठी आवाज या दबी आवाज में फायदा होता है।
41. धान : 10 ग्राम चावल, 10 ग्राम गुड़ और 40 ग्राम चीनी को मिलाकर दिन में 3 बार खाने से लाभ मिलता है।
42. जामुन :
43. अगस्ता : अगस्ते की पत्तियों के काढ़े से गरारे करने से सूखी खांसी, जीभ का फटना, स्वरभंग तथा कफ के साथ रुधिर निकलने में लाभ होता है।
44. गुंजा : गुंजा के ताजे पत्तों को कबाबचीनी और शक्कर के साथ सेवन करने से स्वरभंग (गला बैठ जाना) दूर हो जाता है।
45. सेहुण्ड : खिरैटी, शतावर और चीनी को शहद के साथ चाटने से स्वरभंग खत्म हो जाता है।
46. शंखपुष्पी : शंखपुष्पी के पत्तों को चबाकर रस चूसने से बैठा हुआ गला ठीक होकर आवाज सुधरती है।
47. लालमिर्च : थोड़ी सी लालमिर्च के साथ बादाम और चीनी मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें और रोज खायें। इससे स्वर भंग (आवाज की खराबी) दूर होता है।
48. अनार :
49. अपराजिता : 10 ग्राम अपराजिता के पत्ते, 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर आधा शेष रहने पर सुबह-शाम गरारे करने से, टांसिल, गले के घाव और स्वर भंग में लाभ होता है।
50. अफीम :
51. आंवला : 1 चम्मच पिसे हुए आंवले की गर्म पानी से फंकी लेने से बैठा हुआ गला खुल जाता है और आवाज साफ आने लगती है।
52. नींबू : गला बैठ जाए या गले में सूजन हो जाये तो ताजा पानी या गर्म पानी में नींबू निचोड़कर और उसमें नमक डालकर गरारे करने से जल्दी लाभ होता है।
53. शलगम : शलगम को पानी में उबाल लें फिर उस पानी को छानकर उसमें शक्कर यानी चीनी को मिलाकर रोजाना 2 बार पीने से बैठे हुए गले में आराम आता है।
54. पानी : 1 भगोने (पतीले) में पानी डालकर उबाल लें। जब पानी में भाप (धुंआ) उठने लगे तो पतीले के ऊपर मुंह करके उसमें से निकलने वाली भाप (धुंए) को गले में खींचने से बैठा हुआ गला खुल जाता है।
55. अजवाइन : अजवाइन और चीनी को पानी में उबालकर रोजाना सुबह-शाम पीने से बैठा हुआ गला खुल जाता है।
56. जौ : सुबह-सुबह 25 जौ (जौ गेंहू के जैसे होते हैं) चबाकर निगल जाने से आवाज ठीक हो जाती है।
57. आम : आम के पत्तों के काढ़े में शहद मिलाकर धीरे-धीरे पीने से स्वरभंग में लाभ होता है।
58. कुलंजन :
59. बादाम : 7 बादाम की गिरी और 7 कालीमिर्च को थोड़े से पानी में डालकर और उसमें थोड़ी सी पिसी हुई चीनी मिलाकर चाटने से खुश्की की वजह से बंद हुई आवाज खुल जाती है।
60. सत अजवायन : चने की दाल के बराबर सत अजवायन लेकर पान में रखकर चबाएं और उसका रस निगल लें।