पसली का दर्द (Pain of the ribs) pasli ka dard

पसली का दर्द     pasli ka dard

         फेफड़ों में कफ जम जाने के कारण नसे जकड़ जाती है जिसके कारण रोगी की पसलियों में दर्द होने लगता है। कभी-कभी जब ठंड लग जाती है तो कफ ऊपर की ओर रुक जाता है, बाहर नहीं आ पाता है जो लोग अधिक गैस पैदा करने वाले पदार्थ खाते हैं। उनको भी यह रोग हो जाता है। यह रोग ठड़ा मौसम और ठडी चीजे खाने से उत्पन्न होता है।परिचय :

लक्षण :

भोजन तथा परहेज :

1. सरसों : 20 ग्राम अजवाइन और 5 लहसुन की कलियां (पुती) को 250 मिलीलीटर सरसों का तेल में मिला ले, फिर उसके बाद सरसों के तेल को हल्की आग पर गर्म करें। तेल जब आधा रह जाये तो उसे छानकर शीशी (छोटी बोतल) में भर लें। इस तेल को छाती और पसलियों पर मलने से तुरन्त आराम मिलना है।
2. लहसुन : लहसुन का रस और आधा चुटकी श्रृंगभस्म-दोनों को मिलाकर शहद के साथ खाने से पसलियों के दर्द में आराम मिलता है।
3. कपूर : कपूर के तेल से छाती और पसलियों पर करने से पसलियों का दर्द में ठीक हो जाता है।
4. लौंग : लौंग को मुंह में रखकर चूसने से खांसी कम होती है और कफ आराम से निकल जाता है। खांसी, दमा श्वास रोगों में लौंग के सेवन से लाभ पहुंचता है।
5. दूध : दूध में 5 तुलसी के पत्तों और लौंग को डालकर उसे उबालकर बच्चों को पिलाने से बच्चों की छाती मजबूत होती है तथा रोग ठीक होता है।
6. हींग  : हींग को पानी में घिसकर उसका लेप करने से पसलियों का दर्द दूर होता है।   
7. सौंठ : 30 ग्राम सौठ कूट कर आधा लीटर पानी में उबालकर पीने से पसलियों में किसी भी प्रकार का दर्द ठीक हो जाता है।
8. शहद : सिंदूर की थोड़ी मात्रा शहद में मिलाकर साफ कपड़ें पर लगाकर कपड़े को पसलियों के दर्द वाले जगह पर चिपका दें और पसली की सिकाई करें तो रोग में जल्द आराम मिलता है।
9. पानी : खाना खाने के बाद हल्का गर्म पानी करके पीने से रोग ठीक होता है।
10. अजवायन 1 चम्मच अजवायन 250 मिलीलीटर पानी में उबालें,  चौथाई भाग शेष रहने पर काढ़े को छानकर रात को सोते समय गरम करके 2 चम्मच रोजाना रात को पी कर सोने से 2-4 दिन में ही रोग में आराम मिलता है।
11. धतूरा : धतूरा का रस और मकुइया के रस को हींग और बारहसिंगा के सींग को घिसकर उसे पसली पर लेप करने से लाभ मिलता है।
12. नीलाथोथा : 1 ग्राम शुद्ध नीलाथोथा और 10 ग्राम कंजा के बीजों को पीसकर इडोरन के फल के गूदे (फल के बीच का हिस्सा) में मिला लें। इससे लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बनाकर पसलियों पर बांधने से रोग में आराम मिलता है।  
13. हींग : हींग को गर्म पानी में मिलाकर पसलियों पर मले इससे दर्द में लाभ मिलता है।
14. आक : आक के दूध में थोडे़ से काले तिलों को खूब खरल कर जब पतला सा लेप सा हो जाए तो उसे गरम कर पसली के दर्द वाले स्थान पर लेप कर दें और ऊपर से आक के पत्तों पर तिल का तेल चुपड़कर तवे पर गरम कर उस स्थान पर पट्टी से बांधने पर शीघ्र लाभ होता है।
15. सौंठ : 30 ग्राम सौंठ को 500 लीटर पानी में उबालकर और छानकर यह 4 बार पीने से पसली के दर्द में राहत मिलती है।
16. शहद : सांभर सींग को पानी में घीसकर शहद के साथ मिलाकर पसलियों पर लेप करना चाहिए।
17. नींबू : नींबू का रस 10 मिलीलीटर, जवाखार 3 ग्राम और शहद 6 ग्राम मिलाकर पीने से पसली का दर्द, हृदय (दिल) और पेट का दर्द दूर होता है।

कौड़ी का दर्द (Kauri ka dard)




कौड़ी का दर्द


         कभी-कभी छाती के बीच में जहां दोनों ओर से पसलियां आकर आपस में मिलती है वहां दर्द होने लगता है। छाती के बीच में हुए इस दर्द को कौड़ी का दर्द कहते हैं। कौड़ी का दर्द अधिक बादी पैदा करने वाली चीजों के सेवन से होता है।परिचय :

भोजन तथा परहेज :

          रोगी को चावल, कच्चा दूध, दही लस्सी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को खाना खाने के बाद खाना पचने तक सोना नहीं चाहिए। रोगी को खाने में गेहूं का दलिया, गेहूं की रोटी, मूंग की दाल लेनी चाहिए।
विभिन्न औषधियों के द्वारा रोग का उपचार :
1. हींग : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग भुनी हुई हींग को बिना गुठली वाले मुनक्का में रखकर पानी के साथ दिन में 2 बार लेने से कौड़ी का दर्द दूर होता है और हिचकी बन्द होती है।
2. अमृतधारा : अमृतधारा की 5 बूंद बूरा में डालकर सेवन करने से कौड़ी का दर्द शान्त होता है।
3. पानी : अमृतधरा की पांच बूंद पानी में डालकर सेवन करने से कौड़ी का दर्द दूर होता है।
4. बर्शाशा : अगर कौड़ी का दर्द हो तो उसे कम करने के लिए 2 ग्राम बर्शाशा का सेवन करने से रोग में फायदा मिलता है।
5. सौंफ :

फेफड़ों में पानी भरना (Pleurisy) fefdo me pani bharna

फेफड़ों में पानी भरना

(Pleurisy)   fefdo me pani bharna


         फेफड़े और फेफड़े को ढकने वाली झिल्ली के बीच जब किसी प्रकार का कोई द्रव जमा हो जाता है तो उस फेफड़ों में पानी भरना कहते हैं। फेफड़ों में पानी भरने से बुखार होता है, सांस लेने में परेशानी होती है जिसके कारण रोगी रुक-रुककर सांस लेता है। इस रोग से पीड़ित रोगी जब सांस लेता है तो उसकी छाती में दर्द होता है।परिचय :


हिन्दी

फेफड़ों में पानी भर जाना

अंग्रेजी

प्लूरिसी

अरबी

उरस्तोय

गुजराती

फेफनासा पानी भारुण

कन्नड़

उरस्तोय

मलयालम

नेन्चिले  निरकेट्टु

मराठी

उरोस्तोय

उड़िया

छातिरे पानी जिम्बका।
1. बालू : बालू (रेत) या नमक को किसी कपडे़ में बांधकर हल्का सा गर्म करके सीने पर सेंकने से फेफड़ों की सूजन में बहुत अधिक लाभ मिलता हैं और दर्द भी समाप्त हो जाता है।
2. अलसी : अलसी की पोटली को बनाकर सीने की सिंकाई करने से फेफड़ों की सूजन के दर्द में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
3. तुलसी : तुलसी के पत्तों का रस 1 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से सूजन में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
4. पुनर्नवा : पुनर्नवा की जड़ को थोड़ी सी सोंठ के साथ पीसकर सीने पर मालिश करने से सूजन व दर्द समाप्त हो जाता है।
5. लौंग : लौंग का चूर्ण बनाकर 1 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद व घी को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खांसी और श्वांस सम्बन्धी पीड़ा दूर हो जाती है।
6. घी : घी में भुना हुआ हींग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में पानी मिलाकर पीने से फेफड़ों की सूजन में लाभ मिलता है।
7. खुरासानी कुटकी: वक्षावरण झिल्ली प्रदाह या फुफ्फुस पाक में तीव्र दर्द होता है। ऐसे बुखार में खुरासानी कुटकी की लगभग आधा ग्राम से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में चूर्ण शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से फेफड़ो के दर्द व सूजन में लाभ मिलता है।
8. मजीठ : मजीठ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन 3 बार सेवन करने से फेफड़ों की सूजन और दर्द में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
9. कलमीशोरा : कलमीशोरा लगभग 2.40 ग्राम से 12.20 ग्राम पुनर्नवा, काली कुटकी, सोंठ आदि के काढ़े के साथ सुबह-शाम सेवन करने से प्लूरिसी में लाभ मिलता है।
10. गुग्गुल : गुग्गुल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम मात्रा लेकर गुड़ के साथ प्रतिदिन 3-4 मात्राएं देने से फेफड़ों की सूजन व दर्द में काफी लाभ मिलता है।
11. धतूरा : फुफ्फुसावरण की सूजन में धतूरा के पत्तों का लेप फेफड़े के क्षेत्र पर छाती और पीठ पर या पत्तों के काढ़े से सेंक या सिद्ध तेल की मालिश पीड़ा और सूजन को दूर करती है।
12. नागदन्ती : नागदन्ती की जड़ की छाल 3 से 6 ग्राम की मात्रा को दालचीनी के साथ देने से वक्षावरण झिल्ली प्रदाह (प्लूरिसी) में बहुत लाभ मिलता है।
13. विशाला : विशाला (महाकाला) के फल का चूर्ण या जड़ की थोड़ी सी मात्रा में चिलम में रखकर धूम्रपान करने से लाभ मिलता है।
14. अगस्त : अगस्त की जड़ की छाल पान में या उसके रस में 10 से 20 ग्राम मात्रा को शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कफ निकल जाता है, पसीना आने लगता है और बुखार कम होने लगता है।
15. पालक : पालक के रस के कुल्ला करने से फेफड़ों और गले की सूजन तथा खांसी में लाभ होता हैं।
16. पुनर्नवा : लगभग 140 से 280 मिलीलीटर पुनर्नवा की जड़ का रस दिन में 2 बार सेवन करने से फेफड़ों में पानी भरना दूर होता है।
17. त्रिफला : 1 ग्राम त्रिफला का चूर्ण, 1 ग्राम शिलाजीत को 70 से 140 मिलीलीटर गाय के मूत्र में मिलाकर दिन में 2 बार लेने से फेफड़ों में जमा पानी निकल जाता है और दर्द में आराम मिलता है।
18. अर्जुन : अर्जुन की जड़ व लकड़ी का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार लेने से फेफड़ों में पानी भरना ठीक होता है।
19. तुलसी : फेफड़ों की सूजन में तुलसी के ताजा पत्तों के रस आधा औंस (15 मिलीलीटर) से एक औंस (30 मिलीलीटर) धीरे-धीरे बढ़ाते हुए सुबह-शाम दिन में दो बार खाली पेट लेने से फेफड़ों की सूजन में शीघ्र ही आश्चर्यजनक रूप से लाभ मिलता है। इससे दो-तीन दिन बुखार नीचे उतरकर सामान्य हो जाता है और एक सप्ताह या अधिक से अधिक 10 दिनों में सूख जाता है।

dama दमा ASTHMA

दमा (श्वास रोग)

  सांस लेने में दिक्कत या कठिनाई महसूस होने को श्वास रोग कहते हैं। इस रोग की अवस्था में रोगी को सांस बाहर छोड़ते समय जोर लगाना पड़ता है। इस रोग में कभी-कभी श्वांस क्रिया चलते-चलते अचानक रुक जाती है जिसे श्वासावरोध या दम घुटना कहते हैं। श्वांस रोग और दमा रोग दोनों अलग-अलग होते हैं। फेफड़ों की नलियों की छोटी-छोटी तंतुओं (पेशियों) में जब अकड़नयुक्त संकोचन उत्पन्न होता है तो फेफड़ा सांस द्वारा लिए गए वायु (श्वास) को पूरी अन्दर पचा नहीं पाता है जिससे रोगी को पूरा श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ने को मजबूर हो जाता है। इसी स्थिति को दमा या श्वास रोग कहते हैं।परिचय :


हिन्दी

दमा।

अंग्रेजी

डिसनिया, बोंयिल अस्थमा।

बंगाली

श्वस।

गुजराती

दम।

कन्नड़

गुरलू दम्मु।

मलयालम

वलिवु।

मराठी

दमा।

उड़िया

श्वास, ढकी सिआसी।

तमिल

इझाईप्पु।

तेलगू

उब्बसमु।

अरबी

श्वास
तमस श्वांस (पीनस) : इस दमा रोग में वायु गले को जकड़ लेती है और गले में जमा कफ ऊपर की ओर उठकर श्वांस नली में विपरीत दिशा में चढ़ता है जिसे तमस (पीनस) रोग उत्पन्न होता है। पीनस होने पर गले में घड़घड़ाहट की आवाज के साथ सांस लेने व छोड़ने पर अधिक पीड़ा होती है। इस रोग में भय, भ्रम, खांसी, कष्ट के साथ कफ का निकलना, बोलने में कष्ट होना, अनिद्रा (नींद न आना) आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। सिर दर्द, मुख का सूख जाना और चेतना का कम होना इस रोग के लक्षण हैं। यह रोग वर्षा में भीगने या ठंड़ लगने से भी हो जाता है। पीनस रोग में लेटने पर कष्ट तथा बैठने में आराम का अनुभव होता है।
महाश्वांस : सांस ऊपर की ओर अटका महसूस होना, खांसने में अधिक कष्ट होना, उच्च श्वांस, स्मरणशक्ति का कम होना, मुंह व आंखों का खुला रहना, मल-मूत्र की रुकावट, बोलने में कठिनाई तथा सांस लेने व छोड़ते समय गले से घड़घड़ाहट की आवाज आना आदि इस रोग के लक्षण हैं। जोर-जोर से सांस लेना, आंखों का फट सा जाना और जीभ का तुतलाना-ये महाश्वास के लक्षण हैं।
भोजन तथा परहेज :
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. सुहागा :
2. गुलबनफसा अर्क या शुंठी का रस : गुलबनफसा अर्क या शुंठी का रस एक तिहाई कप पानी मिलाकर सुबह-शाम पीने से दमा रोग ठीक होता है।
3. अडूसा क्षार (अर्कक्षार, वासा) :
4. अपामार्ग (चिरचिटा)  :
5. अदरक :
6. जातिफल : लगभग 1 ग्राम की मात्रा में जातिफलादि के चूर्ण को 1 ग्राम पानी के साथ सुबह-शाम लेने से दमा ठीक हो जाता है।
7. सोंठ :
8. दूध : अस्थमा के रोगी को प्रतिदिन दूध का सेवन करना चाहिए। दूध से कफ का बनना रुकता है। रोगी को प्रतिदिन दूध में 2 पीपल डालकर गर्म करें और फिर दूध को छानकर मिश्री मिलाकर सेवन करें। इससे दमा रोग समाप्त होता है।
9. सैंधवादि तेल : दमा रोग से पीड़ित रोगी की छाती पर प्रतिदिन सैंधवादि तेल की मालिश करने से छाती में जमा कफ ढीला होकर निकल जाता है और दमा ठीक होता है।
10. तेजपात :
11. ग्वारपाठा :
12. कूठ : कूठ के 5 ग्राम चूर्ण को घी, शहद व निम्ब के साथ मिलाकर काढ़ा बना ले और इसका सेवन प्रतिदिन सुबह-शाम करने से अस्थमा रोग ठीक होता है।
13. नींबू :
14. लहसुन :
15. प्याज :
16. हल्दी :
17. सरसों का तेल :
18. कॉफी :
19. चौलाई : चौलाई की सब्जी बनाकर अस्थमा के रोगी को खिलाने से अस्थमा में बहुत लाभ मिलता है। चौलाई के पत्तों का 5 ग्राम रस को शहद के साथ मिलाकर चटाने से श्वास की पीड़ा नष्ट होती है।
20. अंजीर :
21. खजूर :
22. कत्था (खादिर, खैर) :
23. अकरकरा :
24. अंकोल :
25. अनार :
26. अग्निमथ : 25 ग्राम की मात्रा में अग्निमथ लेकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं और जब केवल 50 मिलीलीटर काढ़ा बच जाए तो इसमें थोड़ा सा यवक्षार और सेंधानमक मिलाकर सेवन करें। इससे खांसी और दमा की पीड़ा नष्ट होती है।
27. पुष्करमूल :
28. लौंग :
29. बहेड़ा :
30. पेठा :
31. छोटी पीपल :
32. कालीमिर्च :
33. हरड़ :
34. कायफल :
35. गंधक : गंधक का चूर्ण गाय के घी के साथ सेवन करने से श्वांस रोग में आराम मिलता है।
36. पान :
37. बनभंटा (बड़ी कटेरी) : बनभंटा की जड़ का चूर्ण 1 से 2 ग्राम शहद के साथ 6 से 8 घंटे पर सेवन करने से सांस का रुकना दूर होता है।
38. शिकाकाई की फलियां : शिकाकाई की फलियों का काढ़ा 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दोनों समय रोगी को देने से सांस की रुकावट दूर होती है और दमा का कष्ट दूर होता है।
39. पालक :
40. गठिवन : गठिवन के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर तक की मात्रा में सुबह-शाम पीने से श्वांस रोग खत्म होता है।
41. भटकटैया :
42. शीतलचीनी : गर्म पानी में शीतला चीनी का तेल डालकर उसकी वाष्प (भाप) सूंघने से श्वांस रोग ठीक होता है। 
43. पीपल :
44. खुरासानी अजवायन : खुरासानी अजवायन लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस नलिकाओं का सिकुड़ना ठीक होता है और श्वांस की रुकावट दूर होती है।
45. घी : घी में हींग को भूनकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी में घोलकर रोगी को पिलाने से दमा रोग ठीक होता है। इससे फुफ्फुस के अनेक रोगों में लाभ मिलता है।
46. कुलिंजन : कुलिंजन का चूर्ण लगभग आधा ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से श्वांस रोग ठीक हो जाता है।
47. तेजफल : तेजफल का चूर्ण बनाकर चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा रोग ठीक होता है।
48. इन्द्रायण :
49. गोरखबूटी (गोरखगांजा) : गोरखबूटी (गोरखगांजा) की पत्तियों तथा फूलों का चूर्ण बनाकर चिलम में भरकर धूम्रपान करना चाहिए। इससे दमा नष्ट होता है।
50. अगर : अगर का इत्र 1 से 2 बूंद पान में डालकर खिलाने से तमक श्वांस रोग ठीक मिलता है।
51. सुगंधवाला : सुगंधवाला की फांट या घोल का सेवन करना श्वांस रोग (दमा) में लाभकारी होता है।
52. गुग्गल : दमा रोग से पीड़ित रोगी को गुग्गुल लगभग आधा से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दोनों समय घी के साथ सेवन करना चाहिए। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
53. जयपत्री : कफयुक्त दमा में जयपत्री लगभग आधा ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। इसे अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे चक्कर, सन्यास या बेहोशी आदि लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
54. तालीसपत्र :
55. आक (मदार) :
56. थूहर (मुठिया सीज, सेहुण्ड) :
57. हरसिंगार : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हरसिंगार की छाल का चूर्ण पान में रखकर प्रतिदिन 3-4 बार खाने से कफ का चिपचिपापन कम होकर कफ निकल जाता है।  
58. कंटकरंज : श्वांस रोग से पीड़ित रोगी को कंटकरंज के बीजों का काढ़ा  बनाकर पीना चाहिए। इसका सेवन प्रतिदिन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
59. टंकारी (तुलसीपति) : टंकारी (तुलसीपति) की जड़ को पीसकर सुहागे की लावा व शहद में मिलाकर सेवन करने से श्वांस की रुकावट दूर होती है और कफ ढीला होकर निकल जाता है।
60. नागबला : नागबला की जड़ की छाल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ पीसकर या चूर्ण बनाकर सेवन करने से बहुत लाभ मिलता है। दूध के योग के साथ-साथ यदि आहार में दूध का ही लगातार एक महीना सेवन किया जाए तो रोग जल्दी ठीक होता है।
61. जवासा : दमा से पीड़ित रोगी को जवासे का धूम्रपान करना चाहिए।
62. धमासा :
63. रीठा :
64. केला :
65. छुहारा :
66. बादाम :
67. लघुपीलु : लघुपीलु के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस व खांसी में लाभ मिलता है। लघुपीलु में दस्तावर गुण होता है। इसलिए यदि इसके सेवन से दस्त अधिक आने लगे तो इसकी मात्रा कम कर देनी चाहिए।
68. कसौंदी : कसौंदी का रस 5 से 10 ग्राम लेकर शहद के साथ सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से उल्टी एवं दस्त भी हो सकता है। अत: इसका सेवन सामान्य मात्रा में ही करें।
69. अफीम : वनकान्हू की अफीम 1 से 2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वांस में लाभ मिलता है।
70. तैलपत्र : दमा में तैलपत्र का तेल सूंघने से दमा में राहत मिलती है।
71. उस्तखुदूस : उस्तखुदूस का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर या चूर्ण 40 से 80 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस कष्ट में लाभ मिलता है। 
72. मेरडू : मेरडू की जड़ लगभग चौथाई ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से छाती व गले में जमा कफ निकल जाता है और दमा में आराम मिलता है। इसे अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी और दस्त हो सकता है।
73. हरमल : हरमल के बीज का चूर्ण 2 से 4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
74. कालानमक :
75. अतीस : अतीस के चूर्ण में पोहकर मूल और शहद मिलाकर चाटने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
76. अजाझाड़ाअजाझाड़ा के पत्ते चिलम में भरकर पीने से दमा रोग दूर होता है।
77. अरीठा : अरीठा की मींगी या आम की गुठली की गिरी को खाने से दमा के दौरे शान्त होते हैं।
78. आकड़ा :
79. ईसबगोल :
80. इलायची :
81. जमालगोटा : जमालगोटा को दीपक की लौ में जलाकर इसका धुंआ सूंघने से श्वांस रोग में लाभ मिलता है।
82. सीताफल : सीताफल की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से दमा दूर होता है।
83. सनाय :
84. कौंच :
85. पाढ़ : पाढ़ के पत्ते और जड़ का शर्बत मिलाकर पीने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
86. चोबचीनी : 100 ग्राम चोबचीनी को 800 मिलीलीटर पानी के साथ पकाएं। जब पानी केवल 300 मिलीलीटर शेष रह जाए तो उसे उतार लें और ठंड़ा करके 25 से 75 ग्राम तक की मात्रा में दिन में 3-4 बार पीने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
87. मूली :
88. निर्गुण्डी :
89. भांग :
90. सत्यानाशी का तेल : सत्यानाशी के तेल की 4-5 बूंदे चीनी में डालकर खाने से दमा रोग मिटता है।
91. अमलतास : अमलतास की गिरी का काढ़ा बनाकर पीने से दस्त आकर दमा समाप्त होता है।
92. वज्रदन्ती : अडूसा, कटेरी और वज्रदन्ती का रस नागबेल के पान में लगाकर चूसने से दमा मिटता है।
93. गिलोय :
94. नौसादर :
95. चना :
96. नागरमोथा : नागरमोथा, सोंठ और बड़ी हरड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें गुड को मिलाकर खाने से दमा और खांसी नष्ट होती है।
97. जावित्री
98. चिरायता : चिरायते का काढ़ा बनाकर पीने से दमा में लाभ मिलता है।
99. फिटकरी :
100. गंगेरन : गंगेरन की जड़ का चूर्ण दूध के साथ लेने से दमा और खांसी में लाभ मिलता है।
101. बेल :
102. गुड़ :
103. गर्म पानी या गर्म दूध :
104. अंगूर :
105. मयूर चंद्रिका भस्म : मयूर चंद्रिका भस्म (मोरपंख के चांद वाले भाग को जलाकर भस्म प्राप्त करें) लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में शहद के साथ पीपल के चूर्ण का योग देकर सेवन करने से दमा शान्त होता है। 
106. मिश्री : समीन पन्नग रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिश्री के शर्बत के साथ सुबह-शाम लेने से श्वांस नलिका या गले के अन्दर जमा कफ निकल जाता है। इससे खराश दूर होती है और दमा का वेग ठीक होता है।
107. कपूर :
108. वंशलोचन : वंशलोचन और पीपल 20-20 ग्राम पीसकर 2 ग्राम की मात्रा में शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने से लाभ मिलता है।
109. बरगद : दमा के रोगी को बरगद के पत्ते जलाकर उसकी राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में पान में रखकर खाना चाहिए। यह दमा में बेहद लाभकारी औषधि है।
110. सोमलता : सोमलता 50 ग्राम कूटकर आधा एक ग्राम की मात्रा में दौरे के समय रोगी को देने से दमा रोग में लाभ मिलता है।
111. तम्बाकू : तम्बाकू की गुल को आग में जलाकर उसका राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में पान में रखकर खाने से श्वांस सम्बंधी रोग ठीक होते हैं।
112. हालू : पीसी हुई हालू 20 ग्राम और शहद 60 ग्राम को मिलाकर पीस लें और यह 5-5 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार सेवन करें। इसका उपयोग दमा व कफ के लिए बेहद लाभकारी होता है।
113. लाहौरी नमक : आखड़े के सूखे फूल 20 ग्राम और लाहौरी नमक 5 ग्राम को पीस लें और पानी मिलाकर चने के आकार की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। यह 2-2 गोली दिन में 3-4 बार चूसने से श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।
114. कैथा : कैथ के रस में शहद तथा छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
115. बावची : बावची, हल्दी, छोटी पीपल, आम्बाहल्दी, कालीमिर्च, कालानमक, काला जीरा और भुना हुआ सुहागा प्रत्येक 20-20 ग्राम तथा सज्जी 10 ग्राम इन सभी को पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 से 4 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ लेने से दमा रोग शान्त होता है।
116. धनिया :
117. नीम : नीम के तेल की 10-12 बूंदों को पान पर लगाकर चबाने से दमा के रोग में आराम मिलता है।
118. मुलेठी :
119. बड़ी पीपल :
120. आम : आम की गुठली को फोड़कर उसकी गिरी निकालकर सुखा लें और इसका चूर्ण बनाकर 5 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटें। इससे दमा, खांसी तथा पेचिश रोग ठीक होता है। 
121. अलसी :
122. बेर : बेर के 10-15 पत्ते और जायफल के 8-10 पत्ते को आधा कप पानी में उबालकर पीने से दमा में आराम मिलता है।
123. तुलसी :
124. कुलथी : कुलथी को उबालकर उसका रस सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस (दमा) की बीमारी नष्ट होती है। इस सब्जी का सेवन 3 महीने तक लगातार करना चाहिए।
125. करेला :
126. गाजर :
127. मेथी : यदि रोगी दमा रोग से पीड़ित हो तो थोड़ी सी मेथी पानी में उबालकर उसका रस सेवन करना चाहिए।
128. भारंगी :
129. लौकी : ताजी लौकी पर गीला आटा लेपकर उसे साफ कपडे़ में लपेट लें और फिर उसे भूभल (गर्म राख या रेत) में दबा दें। आधा घंटे बाद कपड़ा से आटा उतारकर लौकी का रस निकालकर सेवन करें। इससे 20-25 दिनों में ही दमा रोग ठीक हो जाता है।
130. चकोतरा :
131. तिल :
132. अडू़सा : अड़ूसा के पत्तों का 1 चम्मच रस शहद, दूध या पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से पुरानी खांसी व दमा रोग ठीक होता है।
133. भूरींगनी : भूरींगनी, मुलेठी, सोंठ 5-5 ग्राम की मात्रा में एक गिलास पानी में उबालें और आधा बचने पर छानकर शहद मिलाकर पीएं। यह दमा के लिए बेहद लाभकारी औषधि है।
134. नीलाथोथा : पुराना दमा हो तो एक ग्राम भुना हुआ नीलाथोथा और गुड़ बराबर मात्रा में लेकर आक के दूध में खरल करके 7-8 गोलियां बनाकर 1-1 गोली दिन में 2 बार सेवन करें। हल्का भोजन जैसे दलिया और खिचड़ी खाना चाहिए। इससे 7-8 दिनों में ही लाभ मिलता है।
135. संतरा : संतरों के रस में शहद को मिलाकर पीने से हृदय रोग में आराम मिलता है। टी.बी. दमा, जुकाम, श्वास के रोग और बलगम होने पर संतरे के रस को चुटकी भर नमक और 1 चम्मच शहद के साथ पीना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है।
136. जीरा : दमा होने पर जीरा, कालीमिर्च, नमक और मट्ठा मिलाकर सेवन करना चाहिए।
137. खीपड़ा : खीपड़ा सुखाकर पीसकर 1 चम्मच सुबह-शाम लेने से अस्थमा नष्ट होता है।
138. मौसमी :
139. पोदीना : दमा, खांसी, मन्दाग्नि, जुकाम होने पर चौथाई कप पोदीने का रस इतना ही पानी मिलाकर प्रतिदिन पीते रहने से लाभ मिलता है।
140. गेहूं :
141. जौ : दमा में 6 ग्राम जौ की राख और 6 ग्राम मिश्री को पीसकर सुबह-शाम गर्म पानी से फंकी लें। इससे दमा (श्वास रोग) नष्ट होता है। राख बनाने की विधि-किसी बर्तन में जौ डालकर जलता हुआ कोयला डालकर जौ को जलाएं। जौ जल जाने के बाद किसी बर्तन से ऐसा ढक दें कि उसमें हवा न जाए 4 घण्टे के बाद कोयले को निकालकर फेंक दें और जले हुए जौ को पीस लें अथवा जौ को तवे पर इतना सेंके कि जौ जल जाए।
142. शहतूत : शहतूत का शर्बत सभी प्रकार के कफ को नष्ट कर देता है।
143. जायफल : 1 ग्राम जायफल और 1 ग्राम लौंग के चूर्ण में 3 ग्राम शहद और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग वंगभस्म को मिलाकर खाने से श्वास रोग में लाभ मिलता है।
144. खसखस : खसखस के दाने 300 ग्राम, पोस्त के डोडे 500 ग्राम को चीनी मिट्टी के बर्तन में 1 लीटर पानी में रात को भिगो दें और सुबह इसे पीसकर पुन: उसी पानी में घोलकर कपड़े से छान लें। इस घोल को कलईदार कड़ाही में डालकर आग पर कुछ गाढ़ा होने तक पकाएं और इसमें 50 ग्राम मुलहठी का चूर्ण मिलाकर आंच से उतारकर कांच के बर्तन में रख लें। इसे लगभग 4-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से दमा बहुत जल्द ठीक होता है।
145. आंवला : ताजे आंवले की गुठली को अलग करके गूदे को महीन पीसकर कपडे़ से निचोड़कर 10 लीटर रस इकट्ठा करके लोहे की कड़ाही में हल्की आंच पर हलवे जैसा काढ़ा होने तक पकाएं। फिर उसमें 2 किलो घी डालकर हल्का लाल होने तक भूने। अब एक अन्य बर्तन में 5 लीटर दूध औटाकर उसमें इच्छानुसार चीनी और बादाम की गिरी को महीन काटकर डाल दें। अब इसे आंवले के रस में मिलाकर पुन: भून पकाएं। इसे सर्दी के दिनों में गर्म दूध के साथ 10-12 ग्राम की मात्रा में लें। गर्मी के दिनों में इसे ठंड़े दूध के साथ लेनी चाहिए। इसके सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ती है। असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। त्वचा में चमक आ जाती है और शरीर पुष्ट हो जाता है। वीर्य संबन्धी दोष भी इसके सेवन से दूर हो जाते हैं। इससे दमा रोग में बेहद लाभ मिलता है।
146. देवदार : देवदार, खिरेटी, बालछड़ के चूर्ण को घी में मिलाकर धूम्रपान करने से श्वास रोग नष्ट होता है।
147. काकड़ासिंगी :
148. अर्जुन : रात को दूध व चावल का खीर बनाकर सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर रोगी को खिलाएं। इससे श्वांस रोग नष्ट होता है।
149. विटामिन- ´´ : दमा ठीक करने में इस विटामिन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यह रक्तकणों के निर्माण में लाभ करता है। वायु प्रदूषण के कारण शरीर में होने वाले हानिकारक तत्वों के प्रभाव को विटामिन- ´ई´ कम करता है। एक खुराक में विटामिन- ´ई´ की मात्रा लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग के लगभग होनी चाहिए। विटामिन `ई´ अंकुरित गेहूं, पिस्ता, सोयाबीन, सफोला तेल, नारियल, घी, ताजा मक्खन, टमाटर, अंगूर तथा सूखे मेवे आदि में मिलता है।
150. कैल्शियम : दमा में कैल्शियमम युक्त भोजन लाभकारी होता है। यह लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग के लगभग होना चाहिए। आवश्यकतानुसार इसकी अधिक मात्रा भी ली जा सकती है। शरीर को जितनी कैल्शियम की आवश्यकता होती है, वह प्रतिदिन 50 ग्राम तिल खाने से मिल जाती है। कैल्शियम दूध, पालक, चौलाई, सोयाबीन, सूखे मेवे, आंवला, गाजर और पनीर में पाया जाता है।
151. दालचीनी : दालचीनी का छोटा सा टुकड़ा, तुलसी के पत्ते, नौसादर एवं ज्वार के दाने बराबर मात्रा में लेकर एक बड़ी इलायची, 4 काले मुनक्के और थोड़ी सी मिश्री मिलाकर बारीक पीस लें और इसका उपयोग करें। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
152. मालकांगनी :
153. धतूरा :
154. द्रोणपुष्पी : द्रोणपुष्पी के सूखे फूल और धतूरे के फूल का छोटा सा भाग मिलाकर धूम्रपान करने से दमा का दौरा शान्त होता है।
155. दूधी : दमा रोग से पीड़ित रोगी को 5 से 10 मिलीलीटर दूधी के पंचांग का काढ़ा या रस शहद में मिलाकर पीना चाहिए।
156. शहद :
157. गेंदा : गेंदे के बीज और मिश्री बराबर मात्रा में लेकर पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में 1 कप पानी के साथ दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से दमा और खांसी दूर होती है।
158. कलौंजी : 1 चुटकी नमक, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और 1 चम्मच घी मिलाकर छाती और गले पर मालिश करें और साथ ही आधा चम्मच कलौंजी का तेल दो चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीएं। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
159. शरपुंखा : श्वास रोग में शरपुंखा का 2 ग्राम लवण शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है।
160. गोखरू : गोखरू के फल के गूदे का चूर्ण 2 ग्राम को 2-3 सूखे अंजीर के साथ दिन में 3 बार कुछ दिनों तक सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है।
161. वच :
162. पुनर्नवा : पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण 3 ग्राम और लगभग आधा ग्राम हल्दी को मिलाकर सुबह-शाम रोगी को खिलाने से दमा का रोग ठीक होता है।
163. शलजम :
164. अनन्तमूल : अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 4 ग्राम और अडूसा के पत्ते का चूर्ण 4 ग्राम को दूध के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के श्वांस व वातजन्य रोगों में लाभ होता है।
165. छोटी दुद्धी : रविवार के दिन सुबह छोटी दुद्धी लाकर 6 ग्राम और 3 ग्राम सफेद जीरा महीन पीसकर पानी में घोलकर पीएं। इस दिन केवल दही में चिवड़ा भिगोकर इच्छानुसार खाना चाहिए। अगले दिन सोमवार को दवा का सेवन न करें। मंगलवार को फिर उसी दवा का सेवन करें तथा दिन भर भोजन में दही चिवड़ा ही खाएं। इसके बाद अगले दिन यानि बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को दवा का सेवन न करें। फिर रविवार को दवा का सेवन करें और दिन भर भोजन में दही चिवड़ा ही खाएं। इस प्रकार दवा का सेवन करने से पुराने से पुराने दमा रोग नष्ट होता है।
166. अजवायन :

नोट- रोगी को किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
167. वर्णबीज : 50 से 60 मिलीलीटर वर्णबीज़ की पत्तियों का काढ़ा दमा के रोग में पीने से आराम मिलता हैं।
168. पानी : रात को गर्म पानी पीकर सोने से दमा और खांसी के रोग मे लाभ मिलता है। दमा का दौरा पड़ने पर भी गर्म पानी पीना लाभकारी होता है।
169. बकुची : बकुची के बीजों का चूर्ण आधा ग्राम को अदरक के रस के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है और कफ नर्म होकर बाहर निकल जाता है।
170. कटेरी :
पुटपाक करना : पुटपाक की विधि यह है कि जिस वस्तु का पुटपाक करना हो उसे पीसकर गोला बना लेते हैं और उस पर कम्भारी, बरगद, जामुन अथवा आम के पत्ते लपेटकर सूत से बांध देते हैं। फिर उसके ऊपर आटे का मोटा सा लेप करके उस पर मिट्टी का 2 अंगुल मोटा लेप लगा देते हैं। अब इसे उपलों की आग में पकाते हैं। जब मिट्टी लाल हो जाती है तो इसे निकालकर मिट्टी के लेप हटाकर अन्दर रखे चीजों का रस निकाल लिया जाता है।
सावधानी :