भोजन तथा परहेज :
दमा से पीड़ित रोगी को एक बार में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए।
दमा से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम बकरी का दूध पीना चाहिए।
रोगी को खुली धूप में कभी नहीं बैठना चाहिए।
रोगी के लिए धूप के पास वाले छायादार स्थान में बैठना लाभकारी होता है।
रोगी को मन शान्त रखना चाहिए और किसी भी प्रकार की चिन्ता, तनाव, क्रोध और उत्तेजना से बचना चाहिए।
रोगी की छाती पर प्रतिदिन सुबह सूर्य की किरण डालनी चाहिए।
रोगी को ठंड़ी या गर्म चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को हल्का तथा पाचक भोजन लेना चाहिए।
गले तथा छाती को ठंड़ से बचाना चाहिए। पेट में कब्ज हो जाए तो उसे दूर करने के लिए फलों का रस गर्म करके सेवन करना चाहिए। दस्त लाने वाले चूर्ण का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि दमा के रोगी की सहनशक्ति बहुत कम होती है।
भोजन में गेहूं की रोटी, तोरई, करेला, परवल, मेथी, बथुआ आदि चीजे लेनी चाहिए।
पुराने सांठी चावल, लाल शालि चावल, जौ, गेहूं, पुराना घी, शहद, बैंगन, मूली, लहसुन, बथुआ, चौलाई, दाख, छुहारे, छोटी इलायची, गोमूत्र, मूंग व मसूर की दाल, नींबू, करेला, बकरी का दूध, अनार, आंवला तथा मिश्री आदि का सेवन करना दमा रोग में लाभकारी होता है।
इस रोग में ठंडी चीजे, दूध, दही, केला, संतरा, सेब, नाशपाती, खट्टी चीजे आदि नहीं खानी चाहिए। शराब तथा बीड़ी-सिगरेट पीना भी हानिकारक होता है।
दमा के रोगी को रूखा, भारी तथा शीतल पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। सरसों, भेड़ का घी, मछली, दही, खटाई, रात को जागना, लालमिर्च, अधिक परिश्रम, शोक, क्रोध, गरिष्ठ भोजन और दही आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. सुहागा :
2. गुलबनफसा अर्क या शुंठी का रस : गुलबनफसा अर्क या शुंठी का रस एक तिहाई कप पानी मिलाकर सुबह-शाम पीने से दमा रोग ठीक होता है।
3. अडूसा क्षार (अर्कक्षार, वासा) :
4. अपामार्ग (चिरचिटा) :
5. अदरक :
6. जातिफल : लगभग 1 ग्राम की मात्रा में जातिफलादि के चूर्ण को 1 ग्राम पानी के साथ सुबह-शाम लेने से दमा ठीक हो जाता है।
7. सोंठ :
8. दूध : अस्थमा के रोगी को प्रतिदिन दूध का सेवन करना चाहिए। दूध से कफ का बनना रुकता है। रोगी को प्रतिदिन दूध में 2 पीपल डालकर गर्म करें और फिर दूध को छानकर मिश्री मिलाकर सेवन करें। इससे दमा रोग समाप्त होता है।
9. सैंधवादि तेल : दमा रोग से पीड़ित रोगी की छाती पर प्रतिदिन सैंधवादि तेल की मालिश करने से छाती में जमा कफ ढीला होकर निकल जाता है और दमा ठीक होता है।
10. तेजपात :
11. ग्वारपाठा :
12. कूठ : कूठ के 5 ग्राम चूर्ण को घी, शहद व निम्ब के साथ मिलाकर काढ़ा बना ले और इसका सेवन प्रतिदिन सुबह-शाम करने से अस्थमा रोग ठीक होता है।
13. नींबू :
14. लहसुन :
15. प्याज :
16. हल्दी :
हल्दी को पीसकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को भूनकर शीशी में बन्द करके रखें। यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में हल्के गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
हल्दी, कालीमिर्च, मुनक्का, रास्ना, छोटी पीपल, कचूर और पुराना गुड़ इन सभी को एक साथ पीसकर सरसों के तेल में मिला लें और यह एक ग्राम की मात्रा का सेवन करने से तेज श्वास रोग व दमा ठीक होता है।
हल्दी को पीसकर तवे पर भूनकर शहद के साथ चाटने से श्वास रोग में आराम मिलता है।
हल्दी किशमिश, कालीमिर्च पीपल, रास्ना और कचूर 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और इसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। यह 2-2 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से दमा की शिकायते खत्म होती हैं।
हल्दी की 2 गांठे, अड़ूसा (वासा) के 1 किलो सूखे पत्ते, 10 ग्राम कालीमिर्च, 50 ग्राम सेंधानमक और 5 ग्राम बबूल के गोंद को मिलाकर पीस लें और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। यह 5-6 गोलियां प्रतिदिन चूसते रहने से खुश्की दूर होती है, कफ निकल जाता है और दमा ठीक होता है।
हल्दी को रेत में सेंककर पीस लें और 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ सेवन करें। इससे दमा नष्ट होता है।
17. सरसों का तेल :
18. कॉफी :
19. चौलाई : चौलाई की सब्जी बनाकर अस्थमा के रोगी को खिलाने से अस्थमा में बहुत लाभ मिलता है। चौलाई के पत्तों का 5 ग्राम रस को शहद के साथ मिलाकर चटाने से श्वास की पीड़ा नष्ट होती है।
20. अंजीर :
21. खजूर :
22. कत्था (खादिर, खैर) :
23. अकरकरा :
24. अंकोल :
25. अनार :
26. अग्निमथ : 25 ग्राम की मात्रा में अग्निमथ लेकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं और जब केवल 50 मिलीलीटर काढ़ा बच जाए तो इसमें थोड़ा सा यवक्षार और सेंधानमक मिलाकर सेवन करें। इससे खांसी और दमा की पीड़ा नष्ट होती है।
27. पुष्करमूल :
28. लौंग :
29. बहेड़ा :
30. पेठा :
31. छोटी पीपल :
32. कालीमिर्च :
कालीमिर्च, पुष्करमूल और यवक्षार को पानी उके साथ पीसकर गर्म पानी में घोलकर पीएं। इससे श्वास और हिचकी की बीमारी दूर होती है।
कालीमिर्च और शुद्ध गंधक को गाय के घी के साथ मिलाकर खाने से खांसी खत्म होती है।
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग श्रृंग-भस्म और 2 कालीमिर्च पानी के साथ पीसकर खाने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
कालीमिर्च, काकड़ासिंगी सोंठ, पीपल, नागरमोथा व कचूर इन सभी को 10-10 ग्राम की मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 2 चुटकी की मात्रा में प्रतिदिन शहद के साथ खाएं। इसके उपयोग से दमा और श्वास की बीमारी में बहुत लाभ मिलता है।
कालीमिर्च व मिश्री का चूर्ण मलाई के साथ खाने से श्वास रोग से छुटकारा मिलता है। इससे पुरानी से पुरानी खांसी भी ठीक हो जाती है।
कालीमिर्च का बारीक चूर्ण और पिसी हुई मिश्री या चीनी को बराबर मात्रा में लेकर मिलाकर 1 से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से खांसी व सांस की रुकावट दूर होती है। इस चूर्ण के सेवन करने से गला साफ होता है और आवाज भी मधुर होती है।
कालीमिर्च 10 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम, हरी इलायची 10 ग्राम और तेजपात 5 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और इसमें 50 ग्राम गुड़ मिलाकर चने के बराबर की गोलियां बनाकर सुखा लें। यह 2-2 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम चूसने से दमा के रोग में आराम मिलता है।
कालीमिर्च 2 ग्राम, पीपर 2 ग्राम, सोंठ 2 ग्राम, हरी इलायची 2 ग्राम को चूर्ण बनाकर इसमें 6 ग्राम गुड़ को मिलाकर चने के बराबर की गोलियां बना लें। प्रतिदिन दिन में 2-3 बार 1-1 गोली चूसने से सभी प्रकार की खांसी व दमा ठीक होता है।
कालीमिर्च, सोंठ, छोटी पीपल और भुना सुहागा बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीसकर छान लें और थोड़े से पानी में घोटकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली दिन में 3-4 बार खाने से श्वास व कफ दूर होता है।
33. हरड़ :
34. कायफल :
कायफल, पुष्करमूल, काकड़ासिंगी, नागरमोथा, सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल और कचूर बराबर मात्रा में छानकर रख लें। यह चूर्ण अदरक के रस और शहद के साथ सेवन करने से गले में जमा कफ निकल जाता है। यह श्वांस, खांसी, उल्टी, अरुचि, वातरोग तथा दर्द आदि को भी ठीक करता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को सोंठ और कायफल के चूर्ण का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करना चाहिए। इससे रोग में बेहद लाभ मिलता है।
कायफल, सोंठ, पोहकर-मूल, काकड़ासिंगी, भारंगी और छोटी पीपल को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर रख लें। यह चूर्ण 6 ग्राम से 10 ग्राम तक की मात्रा में लेकर शहद मिलाकर खाएं। श्वास तथा कफज-खांसी में यह लाभकारी होता है।
कायफल के पेड़ की छाल के रस में चीनी मिलाकर श्वांस रोग से पीड़ित रोगी को पिलाने से रोग में आराम मिलता है।
35. गंधक : गंधक का चूर्ण गाय के घी के साथ सेवन करने से श्वांस रोग में आराम मिलता है।
36. पान :
37. बनभंटा (बड़ी कटेरी) : बनभंटा की जड़ का चूर्ण 1 से 2 ग्राम शहद के साथ 6 से 8 घंटे पर सेवन करने से सांस का रुकना दूर होता है।
38. शिकाकाई की फलियां : शिकाकाई की फलियों का काढ़ा 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दोनों समय रोगी को देने से सांस की रुकावट दूर होती है और दमा का कष्ट दूर होता है।
39. पालक :
40. गठिवन : गठिवन के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर तक की मात्रा में सुबह-शाम पीने से श्वांस रोग खत्म होता है।
41. भटकटैया :
42. शीतलचीनी : गर्म पानी में शीतला चीनी का तेल डालकर उसकी वाष्प (भाप) सूंघने से श्वांस रोग ठीक होता है।
43. पीपल :
लगभग आधा ग्राम पीपल के चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम रोगी को देने से नई और पुरानी खांसी दूर होती है। इसका उपयोग दमा का दौरा पड़ने व स्वरभंग (गला बैठना) में भी लाभकारी होता है।
पीपल के सूखे फलों का चूर्ण लगातार 14 दिन तक पानी के साथ लेने से श्वास की बीमारी दूर होती है।
लगभग 2 ग्राम पीपल की छाल के चूर्ण को पानी के साथ फांकने से दमा रोग में आराम मिलता है।
पीपल के ताजे पत्तों को छाया में सुखाकर कूट छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 5-5 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सुबह-शाम लेने से दमा रोग ठीक होता है।
पीपल, कालीमिर्च, सोंठ और चीनी इन सभी को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार गर्म पानी से सेवन करें। इससे श्वास सम्बंधी बीमारी ठीक हो जाती है।
पीपल के फलों को सुखाकर चूर्ण बना लें और 2 चुटकी चूर्ण शहद के साथ सेवन करें। यह दमा रोग के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।
पीपल तथा पोहकर की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर 2 चुटकी की मात्रा में पानी के साथ सेवन करें। इससे सांस व दमा रोग ठीक होता है।
यदि सांस फूलती है या हल्के दमा का रोग हो तो पीपल, कालीमिर्च, सोंठ तथा चीनी बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें और दिन में 3-4 बार इसका मुंह में रखकर चूसें या शहद में मिलाकर खाएं। ध्यान रहें कि घी, चावल सिगरेट, आलू, ठंड़ी लस्सी, फ्रिज का पानी व उड़द की दाल का कम से कम या बिल्कुल भी प्रयोग न करें।
पीपल के पत्तों को छाया में सुखाकर आग में जलाकर भस्म (राख) बना लें। यह भस्म आधा-आधा चम्मच थोड़े से शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटने से श्वास की बीमारी ठीक होती है। 1 महीने तक यह प्रयोग करने से दमा जड़ से समाप्त होता है।
पीपल की छाल और पके हुए फल का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण को आधा चम्मच की मात्रा में रोजाना 3-4 बार शहद के साथ लेने से दमा के रोग में आराम मिलता है।
यदि भूख कम लगना, अपच, गैस बनना, पुरानी खांसी, जुकाम, दमा, कफ आदि हो तो पीपल को दूध में मिलाकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट 4 सप्ताह तक सेवन करें। इससे सभी रोग ठीक होता है और दमा में भी आराम मिलता है।
पीपल के सूखे फलों को पीसकर 2-3 ग्राम की मात्रा में 14 दिन तक पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे दमा रोग ठीक होता है।
4 पीपल के पत्तों को पीसकर, 1 चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन सुबह चाटने से सांस रोग में आराम मिलता है। इसका सेवन 15 दिन तक करने से खांसी और दमा के रोग में आराम मिलता है। पीपल के हरे पत्ते को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें और आधा चम्मच की मात्रा में पानी के साथ फंकी लेने से यक्ष्मा (टी.बी.) की बलगम वाली खांसी ठीक होती है।
पीपल की लाख का चूर्ण बनाकर घी व चीनी के साथ मिलाकर खाने से दमा और ऊध्र्व दमा के रोग मे आराम मिलता है।
44. खुरासानी अजवायन : खुरासानी अजवायन लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस नलिकाओं का सिकुड़ना ठीक होता है और श्वांस की रुकावट दूर होती है।
45. घी : घी में हींग को भूनकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी में घोलकर रोगी को पिलाने से दमा रोग ठीक होता है। इससे फुफ्फुस के अनेक रो गों में लाभ मिलता है।
46. कुलिंजन : कुलिंजन का चूर्ण लगभग आधा ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से श्वांस रोग ठीक हो जाता है।
47. तेजफल : तेजफल का चूर्ण बनाकर चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा रोग ठीक होता है।
48. इन्द्रायण :
49. गोरखबूटी (गोरखगांजा) : गोरखबूटी (गोरखगांजा) की पत्तियों तथा फूलों का चूर्ण बनाकर चिलम में भरकर धूम्रपान करना चाहिए। इससे दमा नष्ट होता है।
50. अगर : अगर का इत्र 1 से 2 बूंद पान में डालकर खिलाने से तमक श्वांस रोग ठीक मिलता है।
51. सुगंधवाला : सुगंधवाला की फांट या घोल का सेवन करना श्वांस रोग (दमा) में लाभकारी होता है।
52. गुग्गल : दमा रोग से पीड़ित रोगी को गुग्गुल लगभग आधा से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दोनों समय घी के साथ सेवन करना चाहिए। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
53. जयपत्री : कफयुक्त दमा में जयपत्री लगभग आधा ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। इसे अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे चक्कर, सन्यास या बेहोशी आदि लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
54. तालीसपत्र :
55. आक (मदार) :
56. थूहर (मुठिया सीज, सेहुण्ड) :
57. हरसिंगार : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हरसिंगार की छाल का चूर्ण पान में रखकर प्रतिदिन 3-4 बार खाने से कफ का चिपचिपापन कम होकर कफ निकल जाता है।
58. कंटकरंज : श्वांस रोग से पीड़ित रोगी को कंटकरंज के बीजों का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए। इसका सेवन प्रतिदिन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
59. टंकारी (तुलसीपति) : टंकारी (तुलसीपति) की जड़ को पीसकर सुहागे की लावा व शहद में मिलाकर सेवन करने से श्वांस की रुकावट दूर होती है और कफ ढीला होकर निकल जाता है।
60. नागबला : नागबला की जड़ की छाल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ पीसकर या चूर्ण बनाकर सेवन करने से बहुत लाभ मिलता है। दूध के योग के साथ-साथ यदि आहार में दूध का ही लगातार एक महीना सेवन किया जाए तो रोग जल्दी ठीक होता है।
61. जवासा : दमा से पीड़ित रोगी को जवासे का धूम्रपान करना चाहिए।
62. धमासा :
63. रीठा :
64. केला :
65. छुहारा :
66. बादाम :
67. लघुपीलु : लघुपीलु के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस व खांसी में लाभ मिलता है। लघुपीलु में दस्तावर गुण होता है। इसलिए यदि इसके सेवन से दस्त अधिक आने लगे तो इसकी मात्रा कम कर देनी चाहिए।
68. कसौंदी : कसौंदी का रस 5 से 10 ग्राम लेकर शहद के साथ सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से उल्टी एवं दस्त भी हो सकता है। अत: इसका सेवन सामान्य मात्रा में ही करें।
69. अफीम : वनकान्हू की अफीम 1 से 2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वांस में लाभ मिलता है।
70. तैलपत्र : दमा में तैलपत्र का तेल सूंघने से दमा में राहत मिलती है।
71. उस्तखुदूस : उस्तखुदूस का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर या चूर्ण 40 से 80 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस कष्ट में लाभ मिलता है।
72. मेरडू : मेरडू की जड़ लगभग चौथाई ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से छाती व गले में जमा कफ निकल जाता है और दमा में आराम मिलता है। इसे अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी और दस्त हो सकता है।
73. हरमल : हरमल के बीज का चूर्ण 2 से 4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
74. कालानमक :
75. अतीस : अतीस के चूर्ण में पोहकर मूल और शहद मिलाकर चाटने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
76. अजाझाड़ा : अजाझाड़ा के पत्ते चिलम में भरकर पीने से दमा रोग दूर होता है।
77. अरीठा : अरीठा की मींगी या आम की गुठली की गिरी को खाने से दमा के दौरे शान्त होते हैं।
78. आकड़ा :
79. ईसबगोल :
80. इलायची :
81. जमालगोटा : जमालगोटा को दीपक की लौ में जलाकर इसका धुंआ सूंघने से श्वांस रोग में लाभ मिलता है।
82. सीताफल : सीताफल की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से दमा दूर होता है।
83. सनाय :
84. कौंच :
85. पाढ़ : पाढ़ के पत्ते और जड़ का शर्बत मिलाकर पीने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
86. चोबचीनी : 100 ग्राम चोबचीनी को 800 मिलीलीटर पानी के साथ पकाएं। जब पानी केवल 300 मिलीलीटर शेष रह जाए तो उसे उतार लें और ठंड़ा करके 25 से 75 ग्राम तक की मात्रा में दिन में 3-4 बार पीने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
87. मूली :
88. निर्गुण्डी :
89. भांग :
90. सत्यानाशी का तेल : सत्यानाशी के तेल की 4-5 बूंदे चीनी में डालकर खाने से दमा रोग मिटता है।
91. अमलतास : अमलतास की गिरी का काढ़ा बनाकर पीने से दस्त आकर दमा समाप्त होता है।
92. वज्रदन्ती : अडूसा, कटेरी और वज्रदन्ती का रस नागबेल के पान में लगाकर चूसने से दमा मिटता है।
93. गिलोय :
94. नौसादर :
95. चना :
96. नागरमोथा : नागरमोथा, सोंठ और बड़ी हरड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें गुड को मिलाकर खाने से दमा और खांसी नष्ट होती है।
97. जावित्री :
98. चिरायता : चिरायते का काढ़ा बनाकर पीने से दमा में लाभ मिलता है।
99. फिटकरी :
सफेद फिटकरी का फूला 2 ग्राम, 1 गांठ सोंठ, हल्दी एक गांठ, 5 कालीमिर्च को चीनी में मिलाकर खाने से श्वांस व खांसी दूर होती है।
भुनी हुई फिटकरी 1 ग्राम, बारहसिंगा की भस्म (राख) 2 ग्राम, मिश्री 3 ग्राम मिलाकर पानी के साथ सुबह के समय 5 दिनों तक सेवन करने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
आग पर फुलाई हुई फिटकरी 20 ग्राम तथा मिश्री 20 ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें और यह 1-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह के समय सेवन करें। इससे दमा रोग में आराम मिलता है। दूध, घी, मक्खन, तेल, खटाई, तेज मिर्च मसालों से परहेज रखना चाहिए। मक्खन निकला हुआ मट्ठा तथा सब्जियों के सूप आदि लेना चाहिए।
फूली हुई फिटकरी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में मुंह में डालकर चूसते रहने से कफ, दमा व गले की खराश दूर होती है।
पिसी हुई फिटकरी 1 चम्मच को आधा कप गुलाबजल में मिलाकर सुबह-शाम पीने से दमा ठीक होता है।
20 ग्राम फिटकरी और 20 ग्राम हल्दी को अलग-अलग पीसकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने पर दमा, खांसी तथा कफ समाप्त होता है।
100. गंगेरन : गंगेरन की जड़ का चूर्ण दूध के साथ लेने से दमा और खांसी में लाभ मिलता है।
101. बेल :
102. गुड़ :
103. गर्म पानी या गर्म दूध :
104. अंगूर :
105. मयूर चंद्रिका भस्म : मयूर चंद्रिका भस्म (मोरपंख के चांद वाले भाग को जलाकर भस्म प्राप्त करें) लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में शहद के साथ पीपल के चूर्ण का योग देकर सेवन करने से दमा शान्त होता है।
106. मिश्री : समीन पन्नग रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिश्री के शर्बत के साथ सुबह-शाम लेने से श्वांस नलिका या गले के अन्दर जमा कफ निकल जाता है। इससे खराश दूर होती है और दमा का वेग ठीक होता है।
107. कपूर :
108. वंशलोचन : वंशलोचन और पीपल 20-20 ग्राम पीसकर 2 ग्राम की मात्रा में शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने से लाभ मिलता है।
109. बरगद : दमा के रोगी को बरगद के पत्ते जलाकर उसकी राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में पान में रखकर खाना चाहिए। यह दमा में बेहद लाभकारी औषधि है।
110. सोमलता : सोमलता 50 ग्राम कूटकर आधा एक ग्राम की मात्रा में दौरे के समय रोगी को देने से दमा रोग में लाभ मिलता है।
111. तम्बाकू : तम्बाकू की गुल को आग में जलाकर उसका राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में पान में रखकर खाने से श्वांस सम्बंधी रोग ठीक होते हैं।
112. हालू : पीसी हुई हालू 20 ग्राम और शहद 60 ग्राम को मिलाकर पीस लें और यह 5-5 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार सेवन करें। इसका उपयोग दमा व कफ के लिए बेहद लाभकारी होता है।
113. लाहौरी नमक : आखड़े के सूखे फूल 20 ग्राम और लाहौरी नमक 5 ग्राम को पीस लें और पानी मिलाकर चने के आकार की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। यह 2-2 गोली दिन में 3-4 बार चूसने से श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।
114. कैथा : कैथ के रस में शहद तथा छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
115. बावची : बावची, हल्दी, छोटी पीपल, आम्बाहल्दी, कालीमिर्च, कालानमक, काला जीरा और भुना हुआ सुहागा प्रत्येक 20-20 ग्राम तथा सज्जी 10 ग्राम इन सभी को पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 से 4 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ लेने से दमा रोग शान्त होता है।
116. धनिया :
117. नीम : नीम के तेल की 10-12 बूंदों को पान पर लगाकर चबाने से दमा के रोग में आराम मिलता है।
118. मुलेठी :
119. बड़ी पीपल :
120. आम : आम की गुठली को फोड़कर उसकी गिरी निकालकर सुखा लें और इसका चूर्ण बनाकर 5 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटें। इससे दमा, खांसी तथा पेचिश रोग ठीक होता है।
121. अलसी :
122. बेर : बेर के 10-15 पत्ते और जायफल के 8-10 पत्ते को आधा कप पानी में उबालकर पीने से दमा में आराम मिलता है।
123. तुलसी :
124. कुलथी : कुलथी को उबालकर उसका रस सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस (दमा) की बीमारी नष्ट होती है। इस सब्जी का सेवन 3 महीने तक लगातार करना चाहिए।
125. करेला :
126. गाजर :
127. मेथी : यदि रोगी दमा रोग से पीड़ित हो तो थोड़ी सी मेथी पानी में उबालकर उसका रस सेवन करना चाहिए।
128. भारंगी :
भारंगी, छोटी पीपल, कायफल, सोंठ, पोहकर की जड़ और काकड़ासिंगी बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से श्वास रोग नष्ट होता है।
भारंगी लगभग 1 किलो, दशमूल 1 किलो और हरड़ 1 किलो को मिलाकर 1 लीटर पानी के साथ पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए तो उसे उतार लें। उसमें एक किलो गुड़ तथा पकाई हुई 1 किलो हरड़ मिलाकर फिर से पकाएं और जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसे उतार लें। इसमें सोंठ 10 ग्राम, मिर्च 10 ग्राम, पीपल 10 ग्राम, दालचीनी 10 ग्राम, तेजपात 10 ग्राम, इलायची 10 ग्राम और जवाक्षार 6 ग्राम को पीसकर मिला लें। यह 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से दमा व कफ दूर होता है।
129. लौकी : ताजी लौकी पर गीला आटा लेपकर उसे साफ कपडे़ में लपेट लें और फिर उसे भूभल (गर्म राख या रेत) में दबा दें। आधा घंटे बाद कपड़ा से आटा उतारकर लौकी का रस निकालकर सेवन करें। इससे 20-25 दिनों में ही दमा रोग ठीक हो जाता है।
130. चकोतरा :
131. तिल :
132. अडू़सा : अड़ूसा के पत्तों का 1 चम्मच रस शहद, दूध या पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से पुरानी खांसी व दमा रोग ठीक होता है।
133. भूरींगनी : भूरींगनी, मुलेठी, सोंठ 5-5 ग्राम की मात्रा में एक गिलास पानी में उबालें और आधा बचने पर छानकर शहद मिलाकर पीएं। यह दमा के लिए बेहद लाभकारी औषधि है।
134. नीलाथोथा : पुराना दमा हो तो एक ग्राम भुना हुआ नीलाथोथा और गुड़ बराबर मात्रा में लेकर आक के दूध में खरल करके 7-8 गोलियां बनाकर 1-1 गोली दिन में 2 बार सेवन करें। हल्का भोजन जैसे दलिया और खिचड़ी खाना चाहिए। इससे 7-8 दिनों में ही लाभ मिलता है।
135. संतरा : संतरों के रस में शहद को मिलाकर पीने से हृदय रोग में आराम मिलता है। टी.बी. दमा, जुकाम, श्वास के रोग और बलगम होने पर संतरे के रस को चुटकी भर नमक और 1 चम्मच शहद के साथ पीना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है।
136. जीरा : दमा होने पर जीरा, कालीमिर्च, नमक और मट्ठा मिलाकर सेवन करना चाहिए।
137. खीपड़ा : खीपड़ा सुखाकर पीसकर 1 चम्मच सुबह-शाम लेने से अस्थमा नष्ट होता है।
138. मौसमी :
139. पोदीना : दमा, खांसी, मन्दाग्नि, जुकाम होने पर चौथाई कप पोदीने का रस इतना ही पानी मिलाकर प्रतिदिन पीते रहने से लाभ मिलता है।
140. गेहूं :
141. जौ : दमा में 6 ग्राम जौ की राख और 6 ग्राम मिश्री को पीसकर सुबह-शाम गर्म पानी से फंकी लें। इससे दमा (श्वास रोग) नष्ट होता है। राख बनाने की विधि-किसी बर्तन में जौ डालकर जलता हुआ कोयला डालकर जौ को जलाएं। जौ जल जाने के बाद किसी बर्तन से ऐसा ढक दें कि उसमें हवा न जाए 4 घण्टे के बाद कोयले को निकालकर फेंक दें और जले हुए जौ को पीस लें अथवा जौ को तवे पर इतना सेंके कि जौ जल जाए।
142. शहतूत : शहतूत का शर्बत सभी प्रकार के कफ को नष्ट कर देता है।
143. जायफल : 1 ग्राम जायफल और 1 ग्राम लौंग के चूर्ण में 3 ग्राम शहद और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग वंगभस्म को मिलाकर खाने से श्वास रोग में लाभ मिलता है।
144. खसखस : खसखस के दाने 300 ग्राम, पोस्त के डोडे 500 ग्राम को चीनी मिट्टी के बर्तन में 1 लीटर पानी में रात को भिगो दें और सुबह इसे पीसकर पुन: उसी पानी में घोलकर कपड़े से छान लें। इस घोल को कलईदार कड़ाही में डालकर आग पर कुछ गाढ़ा होने तक पकाएं और इसमें 50 ग्राम मुलहठी का चूर्ण मिलाकर आंच से उतारकर कांच के बर्तन में रख लें। इसे लगभग 4-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से दमा बहुत जल्द ठीक होता है।
145. आंवला : ताजे आंवले की गुठली को अलग करके गूदे को महीन पीसकर कपडे़ से निचोड़कर 10 लीटर रस इकट्ठा करके लोहे की कड़ाही में हल्की आंच पर हलवे जैसा काढ़ा होने तक पकाएं। फिर उसमें 2 किलो घी डालकर हल्का लाल होने तक भूने। अब एक अन्य बर्तन में 5 लीटर दूध औटाकर उसमें इच्छानुसार चीनी और बादाम की गिरी को महीन काटकर डाल दें। अब इसे आंवले के रस में मिलाकर पुन: भून पकाएं। इसे सर्दी के दिनों में गर्म दूध के साथ 10-12 ग्राम की मात्रा में लें। गर्मी के दिनों में इसे ठंड़े दूध के साथ लेनी चाहिए। इसके सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ती है। असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। त्वचा में चमक आ जाती है और शरीर पुष्ट हो जाता है। वीर्य संबन्धी दोष भी इसके सेवन से दूर हो जाते हैं। इससे दमा रोग में बेहद लाभ मिलता है।
146. देवदार : देवदार, खिरेटी, बालछड़ के चूर्ण को घी में मिलाकर धूम्रपान करने से श्वास रोग नष्ट होता है।
147. काकड़ासिंगी :
148. अर्जुन : रात को दूध व चावल का खीर बनाकर सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर रोगी को खिलाएं। इससे श्वांस रोग नष्ट होता है।
149. विटामिन- ´ई´ : दमा ठीक करने में इस विटामिन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यह रक्तकणों के निर्माण में लाभ करता है। वायु प्रदूषण के कारण शरीर में होने वाले हानिकारक तत्वों के प्रभाव को विटामिन- ´ई´ कम करता है। एक खुराक में विटामिन- ´ई´ की मात्रा लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग के लगभग होनी चाहिए। विटामिन `ई´ अंकुरित गेहूं, पिस्ता, सोयाबीन, सफोला तेल, नारियल, घी, ताजा मक्खन, टमाटर, अंगूर तथा सूखे मेवे आदि में मिलता है।
150. कैल्शियम : दमा में कैल्शियमम युक्त भोजन लाभकारी होता है। यह लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग के लगभग होना चाहिए। आवश्यकतानुसार इसकी अधिक मात्रा भी ली जा सकती है। शरीर को जितनी कैल्शियम की आवश्यकता होती है, वह प्रतिदिन 50 ग्राम तिल खाने से मिल जाती है। कैल्शियम दूध, पालक, चौलाई, सोयाबीन, सूखे मेवे, आंवला, गाजर और पनीर में पाया जाता है।
151. दालचीनी : दालचीनी का छोटा सा टुकड़ा, तुलसी के पत्ते, नौसादर एवं ज्वार के दाने बराबर मात्रा में लेकर एक बड़ी इलायची, 4 काले मुनक्के और थोड़ी सी मिश्री मिलाकर बारीक पीस लें और इसका उपयोग करें। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
152. मालकांगनी :
153. धतूरा :
154. द्रोणपुष्पी : द्रोणपुष्पी के सूखे फूल और धतूरे के फूल का छोटा सा भाग मिलाकर धूम्रपान करने से दमा का दौरा शान्त होता है।
155. दूधी : दमा रोग से पीड़ित रोगी को 5 से 10 मिलीलीटर दूधी के पंचांग का काढ़ा या रस शहद में मिलाकर पीना चाहिए।
156. शहद :
157. गेंदा : गेंदे के बीज और मिश्री बराबर मात्रा में लेकर पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में 1 कप पानी के साथ दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से दमा और खांसी दूर होती है।
158. कलौंजी : 1 चुटकी नमक, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और 1 चम्मच घी मिलाकर छाती और गले पर मालिश करें और साथ ही आधा चम्मच कलौंजी का तेल दो चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीएं। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
159. शरपुंखा : श्वास रोग में शरपुंखा का 2 ग्राम लवण शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है।
160. गोखरू : गोखरू के फल के गूदे का चूर्ण 2 ग्राम को 2-3 सूखे अंजीर के साथ दिन में 3 बार कुछ दिनों तक सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है।
161. वच :
162. पुनर्नवा : पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण 3 ग्राम और लगभग आधा ग्राम हल्दी को मिलाकर सुबह-शाम रोगी को खिलाने से दमा का रोग ठीक होता है।
163. शलजम :
164. अनन्तमूल : अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 4 ग्राम और अडूसा के पत्ते का चूर्ण 4 ग्राम को दूध के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के श्वांस व वातजन्य रोगों में लाभ होता है।
165. छोटी दुद्धी : रविवार के दिन सुबह छोटी दुद्धी लाकर 6 ग्राम और 3 ग्राम सफेद जीरा महीन पीसकर पानी में घोलकर पीएं। इस दिन केवल दही में चिवड़ा भिगोकर इच्छानुसार खाना चाहिए। अगले दिन सोमवार को दवा का सेवन न करें। मंगलवार को फिर उसी दवा का सेवन करें तथा दिन भर भोजन में दही चिवड़ा ही खाएं। इसके बाद अगले दिन यानि बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को दवा का सेवन न करें। फिर रविवार को दवा का सेवन करें और दिन भर भोजन में दही चिवड़ा ही खाएं। इस प्रकार दवा का सेवन करने से पुराने से पुराने दमा रोग नष्ट होता है।
166. अजवायन :
नोट- रोगी को किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
167. वर्णबीज : 50 से 60 मिलीलीटर वर्णबीज़ की पत्तियों का काढ़ा दमा के रोग में पीने से आराम मिलता हैं।
168. पानी : रात को गर्म पानी पीकर सोने से दमा और खांसी के रोग मे लाभ मिलता है। दमा का दौरा पड़ने पर भी गर्म पानी पीना लाभकारी होता है।
169. बकुची : बकुची के बीजों का चूर्ण आधा ग्राम को अदरक के रस के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है और कफ नर्म होकर बाहर निकल जाता है।
170. कटेरी :
छोटी कटेरी का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) पीसकर गोला बनाते हैं और पुटपाक विधि से अग्नि में पकाकर रस निकाल लें। उस रस में छोटी पीपल का चूर्ण डालकर पीने से श्वास, खांसी और कफ के रोग दूर होते हैं।
छोटी कटेरी के फलों को कूटकर काढ़ा बना लें और इसमें थोड़ी सी हींग व सेंधानमक मिलाकर सेवन करें। यह प्रतिदिन आधा कप की मात्रा में सुबह-शाम पीने से दमा का दौरा खत्म होता है।
छोटी कटेरी और बड़ी कटेरी 200-200 ग्राम, अड़ूसे की जड़ की छाल 200 ग्राम, गिलोय 20 ग्राम, शतावर 60 ग्राम, भारंगी 400 ग्राम, गोखरू 40 ग्राम, पीपल की जड़ 40 ग्राम और पाढ़र 40 ग्राम। इन सभी को पीसकर लगभग 5 लीटर पानी में डालकर धीमी आग पर पकाएं और जब यह पककर केवल एक चौथाई रह जाए तो इसे उतारकर छान लें। इस काढ़े में गुड़ 400 ग्राम, घी 200 ग्राम और दूध 400 मिलीलीटर डालकर फिर धीमी आग पर पकाएं। जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसे उतार लें और ठंड़ा होने पर इसमें काकड़ासिंगी 30 ग्राम, जायफल 30 ग्राम, तेजपात 30 ग्राम, लौग 40 ग्राम, वंशलोचन 40 ग्राम, दालचीनी 20 ग्राम, एला 20 ग्राम, कूठ 40 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, पीपल 40 ग्राम, तालीसपत्र 30 ग्राम, जावित्री 10 ग्राम को बारीक पीसकर मिला लें। इसके किसी साफ बर्तन में ढककर रख दें और एक दिन बाद इसमें 200 ग्राम शहद मिला दें। यह प्रतिदिन 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वास रोग, खांसी, अरुचि, स्वरभंग आदि रोग खत्म होता है। यह कफ, ज्वर, दमा, छाती का दर्द इत्यादि रोगों में प्रयोग होता हैं।
छाती में कफ भर जाने पर इसके फलों का काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में 2-2 ग्राम भुनी हुई हींग व सैंधा नमक डालकर पीएं। इससे भयंकर दमा भी ठीक हो जाता है।
पुटपाक करना : पुटपाक की विधि यह है कि जिस वस्तु का पुटपाक करना हो उसे पीसकर गोला बना लेते हैं और उस पर कम्भारी, बरगद, जामुन अथवा आम के पत्ते लपेटकर सूत से बांध देते हैं। फिर उसके ऊपर आटे का मोटा सा लेप करके उस पर मिट्टी का 2 अंगुल मोटा लेप लगा देते हैं। अब इसे उपलों की आग में पकाते हैं। जब मिट्टी लाल हो जाती है तो इसे निकालकर मिट्टी के लेप हटाकर अन्दर रखे चीजों का रस निकाल लिया जाता है।
सावधानी :