डायबिटीज रोगियों पर इंसुलिन का प्रयोग कैसे करें

आज के हमारी व्यस्त जीवनशैली एवं फास्ट फूड  के प्रयोग से अक्सर उम्र के बढ़ने के साथ-साथ बहुत सारे लोग डायबिटीज (Diabetes) अर्थात मधुमेह का शिकार होते जा रहे हैं। इसमें ब्लड शूगर लेवल (Blood sugar level) बढ़ जाता है, जो इंसुलिन (Insulin) से कंट्रोल होता है। इसे लेते समय भी कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, अन्यथा साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं।
Use of insulin

हमारे शरीर में ब्लड में शूगर का लेवल काफी मायने रखता है। शरीर में शूगर के कई रूप होते हैं, जैसे- गैलेक्टोज (glactose), ग्लूकोज (glucose) आदि शूगर ही शरीर में ऊर्जा का स्त्रोत होता है, इसकी कम मात्रा और अधिक मात्रा दोनों से अंगो को नुकसान पहुंच सकता है। इसी के लेवल को शरीर में कंट्रोल करने का काम इंसुलिन करता है।


क्या है इंसुलिन (What is Insulin in hindi)
इंसुलिन एक होंमोंन है, जो अग्न्याशय (Pancreas) के वीटा सेल से उत्सर्जित होता है। हम जो भोजन करते है उस भोजन में कार्बोहाइड्रेट होता है। उस कार्बोहाइड्रेट से हमारे शरीर में शुगर का इस्तेमाल करने के लिए इंसुलिन ही सहायता करता है, जिससे शरीर को ऊर्जा प्राप्त होता है। यह हमारे शरीर में हाई ब्लड शुगर (High Blood Sugar) एवं लॉ ब्लड शुगर (Low Blood Sugar) को नियंत्रित करता है।

इंसुलिन कितने प्रकार का होता है (Types of Insulin in hindi)

रैपिड एक्टिंग इंसुलिन (Rapid Acting Insulin): यह इंसुलिन का इस्तेमाल करने  के 15 मिनट में काम शुरू कर देता है। यह 2-4 घंटे तक सक्रिय रहता है।

रेग्यूलर/शॉर्ट एक्टिंग इंसुलिन (Regular/Short Acting Insulin) : यह इंसुलिन इस्तेमाल करने के 30 मिनट के बाद खून में घुलता है। इसका असर 3-6 घंटे तक रहता है।

इंटरमीडिएट एक्टिंग इंसुलिन (Intermediate acting Insulin) : यह इंसुलिन इस्तेमाल करने के 2-4 घंटे में खून में घुलने लगता है और इसका असर 12-18 घंटे तक रहता है।

लॉन्ग एक्टिंग इंसुलिन (Long Acting Insulin) : इसमें इंसुलिन कई घंटों के बाद खून में घुलता है। यह 24 घंटे के दौरान खून में ग्लूकोज के लेवल को कम रखता है।
इंसुलिन के प्रयोग से पहले रखें ध्यान 

  • अगर इंसुलिन से एलर्जी है, तो इसे न लें। इसके अलावा यदि ब्लड शूगर कम है (हाइपोग्लाइसेमिया) तब भी इससे परहेज करें। 
  • यदि लिवर या किडनी रोग हो, तो डॉक्टर को जरूर बताएं। 
  • दूध पिलाने वाली महिलाओं को इंसुलिन लेने से पहले डॉक्टर के सलाह अवश्य ले लेना चाहिए।
  • पहले से डायबिटीज के लिए कोई दवा ले रहे हैं, जैसे पायोलिटाजोन और रोगीग्लिटाजोन तो इंसुलिन लेने से पहले डॉक्टर को जरूर बताएं। ऐसे में इंसुलिन लेने से हृदय रोगों का खतरा हो सकता है। 
  • ट्रीटमेंट के दौरान प्रेग्नेंट हैं या तैयारी में है, तब भी डॉक्टर से सलाह लें। 
क्या हैं इसके साइड इफेक्ट्स 

  • शरीर में इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाने से ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है। इस स्थिति को हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं।
  • इससे सिर में हल्कापन, कांपना, अशक्तता, पसीना आदि लक्षण हो सकते हैं।
  • यदि ये लक्षण गंभीर हो जाएं, तो रोगी अपनी चेतना भी खो सकता है।
  • इन्सुलिन की कमी से, शरीर में अधिक मात्रा में फैट जमा होने लगता है।
  • आहार के प्रति लापरवाही बरतने एवं इन्सुलिन की सही मात्रा न लेना खतरनाक हो सकता है।
डायबिटीज के टाइप के अनुसार दिया जाता है इंसुलिन

टाइप 1: मरीज पूरी तरह इंसुलिन पर निर्भर रहता है। शरीर इंसुलिन पर निर्भर रहता है। शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता है। यह आनुवांशिक है और ज्यादातर युवाओं और बच्चों में होता है। इसे जुवेनाइल डायबिटीज कहते हैं। इसमें अधिकतर इंजेक्शन दिया जाता है।

टाइप 2: शरीर कम मात्रा में इंसुलिन बनाता है। ऐसे रोगियों को दवाई देकर ग्लूकोज सही लेवल में लाते हैं। यह बूढ़े या मोटे लोगों में होता है। इसमें ओरल मेडिसिन दिया जाता है। पहले से इंसुलिन बनने से इसकी मात्रा कम दी जाती है। 90% केस लेवल टाइप 2 के होते हैं। यदि ग्लूकोज का स्तर 200 से कम हो, तो दवा के स्थान पर व्यायाम, भोजन पर नियंत्रण और आहार में परिवर्तन लाकर उपचार किया जा सकता है। 

जीवनशैली रखें नियंत्रित : डायबिटीज में खान-पान का विशेष ध्यान रखें। खाना सेहतमंद हो, तैलीय पदार्थो और मीठी चीजों से जीवन भर दूरी बना कर रखें। प्रतिदिन व्यायाम करें। इस रोग में पैरों एवं आंखों का खास ख्याल रखें। नियमित रूप से अपनी जांच कराते रहें। 

शौच में खून आना कैंसर भी हो सकता है

आमतौर पर शौच में खून आने की समस्या पाइल्स (बाबासीर) के कारण ही होती है। परंतु यदि आपको बाबासीर की  समस्या नहीं है और आपके शौच में खून आ रहा है तो आप सतर्क हो जाइये। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए और तुरंत ही किसी अनुभवी डॉक्टर से उपचार अवश्य करना चाहिए।

एक व्यक्ति को कई दिनों से शौच में खून आने की शिकायत थी। उस व्यक्ति ने इस संबंध में डॉक्टर की सलाह ली। डॉक्टर ने जांच के उपरांत पाइल्स डायग्नोसिस किया और पाइल्स का ऑपरेशन किया गया। परंतु इलाज हो जाने के बाद भी उसके शौच में खून आने की समस्या ठीक नही हुई। इसके बाद उसे कुछ अन्य जांच जैसे-यूएसजी, सीटी स्कैन कराने की सलाह दी गयी। जांच में पता चला कि उसके रेक्टम (आंत के आखिरी छोर) में कैंसर है। तुरंत उसका ऑपरेशन किया गया। इस तरह अब मरीज बिलकुल ठीक है और उसके शौच में खून आने की समस्या समाप्त हो चुकी है।  

पाइल्स के अलावा भी शौच में खून आ सकता है 

आजकल मसालेदार भोजन, हरी सब्जियों का सेवन न करना, फास्ट फूड का अधिक सेवन और खान-पान में अनियमितता के कारण पाइल्स की समस्या आम  हो गया है। अधिकांश लोग किसी-न-किसी रूप में इस रोग से ग्रसित हैं। इस प्रकार के भोजन के सेवन से कब्ज की शिकायत अधिक होती है। इससे शौच के समय मांसपेशियों और नसों पर जोर पड़ता है, जिससे पाइल्स या फिस्टूला होता है। इसके अलावा तंबाकू और शराब के सेवन से भी यह समस्या हो सकती है। पर आपको यह भी ध्यान देना चाहिए कि शौच में खून आने का मतलब सिर्फ बवासीर नहीं होता है। यह कभी-कभी किसी गंभीर रोग का लक्षण भी हो सकता है। वैसे तो 90% मामलों में पाइल्स के कारण ही शौच में खून आता है लेकिन पांच से 10 प्रतिशत मामलों में यह समस्या आंत के कैंसर के कारण भी हो सकती है। शौच में खून आने के कई कारण हो सकते हैं। इसके लिए किसी अनुभवी चिकित्सक या सर्जन से सलाह लेना आवश्यक है। इसके लिए चिकित्सक प्रोटोस्कोपी, सीस्मोइडोस्कोपी तथा जरूरत पड़ने पर कोलोनोस्कोपी भी कराने की सलाह दे सकते हैं। 

सर्जरी के अलावा भी हैं विकल्प

जरूरी नहीं है कि पाइल्स का इलाज हमेशा सर्जरी से ही हो। रोग शुरुआती स्टेज में है, तो सबसे पहले भोजन की आदतों में सुधार करना चाहिए। फर्स्ट या सेकेंड डिग्री के पाइल्स में स्क्लेरोथेरेपी (इंजेक्शन की मदद से दवा को पाइल्स में इन्जेक्ट करना) की जाती है। जब पाइल्स थर्ड या फोर्थ डिग्री का हो जाता है, तब ऑपरेशन एकमात्र इलाज है। आजकल एक नयी मशीन आ गयी है, जिसे एमआइपीए कहते हैं। इसकी मदद से सर्जरी होती है। यह सफल तकनीक है। इसमें मरीज को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है। 24 घंटे के अंदर ही मरीज सामान्य रूप से खाना खाने लगता है और घूमना-फिरना शुरू कर देता है, इसलिए यदि किसी को शौच में खून आने की शिकायत हो, तो हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसके लिए सुयोग्य किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि यदि यह रोग कैंसर होता है और इसका पता पहले चल जाता है, तो इसका इलाज संभव है, इसलिए मरीज को सतर्कता बरतनी चाहिए।