गर्भधारण जाँच (Pregnancy Test) के घरेलू नुस्खे

आज बाजार में गर्भधारण जांच के लिए कई किट उपलब्ध है जिसके सहारे आप आसानी से गर्भधारण की जांच कर सकते हैं। परंतु यहाँ हम पुराने समय से चले आ रहे कुछ घरेलू नुस्खों के बारे बताना चाहते हैं जिसमें आप अपने किचन में मौजूद कुछ सामानों का प्रयोग कर ही गर्भधारण जांच कर सकते हैं। 
  • घर में रखे सफ़ेद टूथपेस्ट से भी आप जान सकती हैं की आप प्रेगनेंट हैं या नहीं। एक कंटेनर या एक डिस्पोज़ेबल ग्लास में दो चम्मच टूथपेस्ट लें। इसमें इसी मात्रा में यूरिन सैंपल लें और टूथपेस्ट वाले कंटेनर में डाल दें, अगर टूथपेस्ट का रंग बदल कर नीला हो जाता है, तो समझें की टेस्ट पॉज़िटिव है।
  • एक कंटेनर में कुछ ब्लीच पाउडर लें और उसमें यूरिन का सैंपल डालें। अगर ब्लीच पाउडर में बुलबुले बनने लगें, तो टेस्ट का परिणाम पॉज़िटिव माना जाता है और अगर ब्लीच आपके यूरिन को सोख ले तो इसका मतलब है की परणाम नेगेटिव है। 
  • साबुन से भी आप प्रेगनेंसी टेस्ट कर सकतीं हैं। इसके लिए आप एक साबुन का टुकड़ा लें और उसपर यूरिन सैंपल डालें। अगर साबुन के टुकड़े पर झाग बनने लगें या बुलबुले से दिखें, तो समझ जाएँ की आप गर्भवती हो सकती हैं।
  • एक डिस्पोज़ेबल ग्लास में कुछ चीनी लें। अब इसमें यूरिन सैंपल मिलाएँ। अगर चीनी यूरिन सैंपल में घुल जाये, तो आप गर्भवती नहीं हैं, लेकिन अगर चीनी के दाने इकट्ठे हो जाये तो समझें की आप गर्भवती हो सकती है। 

यदि गर्भधारण में समस्या आ रही है तो ये जाँच अवश्य कराएं

जीवन शैली में परिवर्तन के साथ आज महिलाओं में बांझपन (Infertility)  की समस्या भी काफी बढ़ रही है। लगभग 20-25 प्रतिशत दंपति इस समस्या से ग्रसित है। समय के साथ यह समस्या बढ़ती ही जा रही है जिसका एक कारण यह भी है की समय रहते ये दंपति डॉक्टर से संपर्क नहीं करते हैं और न ही इससे संबन्धित जाँच ही समय रहते कराते हैं, इसके कारण उनके रिश्ते और मानसिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित होते हैं।। यदि समय पर दंपति का शारीरक जाँच हो तो इस समस्या से बचा जा सकता है। 

एक तिहाई मामलों में बांझपन (Infertility) के लिए महिलाओं के शरीर के कई रोग ज़िम्मेवार होते हैं। अतः इसके लिए महिलाओं को शारीरक जाँच भी कई करवाने पड़ सकते हैं। शादी के एक साल तक दंपति को गर्भधारण (Pregnancy) की कोशिश करनी चाहिए। यदि एक साल के बाद भी गर्भधारण में किसी भी प्रकार की समस्या आ रही हो अथवा गर्भधरण (Pregnancy) नहीं कर पा रही है तो दंपति को तुरंत किसी अच्छे स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। 

कब कराएं बांझपन (Infertility) से संबन्धित जाँच (Test)

अधिकतर देखा गया है कि बहुत से दंपति इंतजार में ही समय बर्बाद करते हैं। यह भी देखा गया है की कई दंपति वैवाहिक जीवन के शुरुआती कुछ सालों में गर्भधारण नहीं करना चाहते हैं। ऐसे स्थिति में यदि उस दंपति में किसी भी प्रकार के गर्भधारण (Pregnancy) संबन्धित समस्या मौजूद होती है तो या तो वह बढ़ जाती है या फिर उसका समय रहते जाँच एवं इलाज नहीं हो पता है। 

बांझपन के जांच की शुरुआत डॉक्टर एचएसएफ यानि हसबैंड सिमेन फ्लूड की जांच से शुरू कराते हैं क्योंकि यह बहुत ही मामूली जांच है, जिसमें मामूली सा खर्च आता है और एक तिहाई जोड़े में इसी में खराबी पायी जाती है। इसके बाद ही स्त्री की जांच होती है। महिलाओं से संबन्धित कुछ प्रमुख जांच इस प्रकार हैं 

कंप्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी): इस जांच से शरीर में रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स का पता चलता है। इससे कई प्रकार के इन्फेक्शन, एनीमिया और रक्त से जुड़ी अन्य समस्याओं की पहचान में मददगार है। इस जांच से आइवीएफ में भी सहायता मिलती है।

ब्लड शूगर: रेंडम ब्लड शूगर पहले किया जाता है। इसमें गड़बड़ी पाये जाने पर, खाली पेट और खाने के 2 घंटे बाद टेस्ट करते हैं । यह भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि ब्लड शूगर लेवल न सिर्फ प्रेग्नेंसी के चांस को प्रभावित करता है बल्कि बार-बार गर्भपात (miscarriage) का कारण भी बनता है।

इएसआर: ये पुराने इन्फेक्शन, टीबी और एनिमिया की जांच में सहायक होता है। टीबी भारत में इन्फर्टिलिटी का बहुत बड़ा कारण है।

हॉर्मोनल टेस्टिंग: बांझपन (Banjhpan) में हॉर्मोन में गड़बड़ी भी जिम्मेवार होती है। इससे सारी बीमारियों का पता चलता है। टीएसएच, एफएसएच, एलएच, प्रोलेक्टिन, खास हॉर्मोन है। इससे पीसीओडी यानि पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम नाम की बीमारी का पता चलता है। इससे बीमारी में स्त्रियों का वजन अधिक होता है और वे गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। थायरॉयड रोग में भी गर्भधारण की समस्या (Pregnancy problem) होती है। प्रोलेक्टिन की अधिक मात्रा रहने से ये अंडे बनानेवाले हॉर्मोन में गड़बड़ी होने से अंडे नही बन पाते हैं। इसी कारण इसके लिए हॉर्मोन की जांच भी जरूरी है।

अल्ट्रासाउंड: इससे गर्भाशय में गड़बड़ी या अंडाशय में गड़बड़ी का पता चलता है। इसके अलावा इससे फोलिक्यूलोमेट्री भी की जाती है जो मासिक के 9वें दिन से शुरू की जाती है और एक-एक दिन छोड़ कर होती है। तब तक अंडे फटते हैं। यदि यह नही फटता है, तो उस स्त्री में अनओव्यूलेशन है. यानी अंडे नहीं बनते हैं।

एचएसजी: जो मासिक के 7वें से 10वें दिन के बीच किया जाता है। इससे गर्भाशय और उसके रास्ते के सही होने का पता चलता है।

यदि टीबी की आशंका हो, तो टीबी पीसीआर नाम की जांच मासिक के रक्त से करनी चाहिए।

एएमएच (एंटी मुलेरियन हॉर्मोन): यह हॉर्मोन ओवेरियन फॉलिकिल से निकलता है। यह उम्र के साथ घटता है। इसकी कम मात्रा के होने से भी बांझपन की पुष्टि होती है।