सूजन का बुखार (Fever with swelling) suzan ka bukhar

सूजन का बुखार  suzan ka bukhar

          सूजन यदि पुरुष के पैरों से शुरू होकर ऊपर को बढ़े तो इसे सूजन का बुखार कहते हैं। इसी प्रकार स्त्री की सूजन मुंह के शुरू होकर पैरों में उतरे तो यह असाध्य (बिगड़ा) हुआ बुखार हो जाता हैं। सूजन वाले बुखार में रोगी के पूरे शरीर का खून  पानी हो जाता है, उसके पूरे शरीर में पीड़ा होती और उसकी भूख नष्ट हो जाती है। रोगी के पेट में जलन तथा मल के निकास में रुकावट हो जाती है। परिचय :

लक्षण :

विभिन्न औषधियों से उपचार :  

1. दशमूल :

कालाजार Kalazar


कालाजार                            Kalazar

        किसी व्यक्ति के शरीर में हल्का बुखार अधिक समय तक रहने के साथ ही साथ जिगर और प्लीहा की वृद्धि हो, शरीर का रंग काला पड़ने लगे, टखने एवं पलकों पर सूजन आ जाये और बीच-बीच में उल्टी आदि आये तो ये सभी लक्षण कालाजार के होने के होते हैं।परिचय :

कारण :

विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. कालमेघासव : लगभग 20 से 25 ग्राम कालमेघासव को इतने ही पानी में सुबह और शाम मिलाकर रोगी को देने से कालाजार बुखार ठीक हो जाता है। ध्यान रहे कि रोगी को यह खाली पेट नहीं देना चाहिए।      
2. कुमारीआसव : लगभग 20 से 25 ग्राम कुमारीआसव को इतने ही पानी में मिलाकर भोजन के बाद सुबह और शाम को लेने से कालाजार का बुखार दूर हो जाता है।
3. मूली : सुबह उठकर खाली पेट मूली के साथ सेंधानमक का सेवन करने से कालाजार बुखार दूर हो जाता है।
4. गुड़ : रोज़ाना दिन में 2 बार गुड के साथ लगभग 4 ग्राम सज्जीखार का 21 दिन तक सेवन करने से कालाजार का बुखार खत्म हो जाता है।
5. नौसादर : नौसादर और चूना को बराबर मात्रा में लेकर रात में ओस में रख देने पर जब इसको सुबह देखते हैं, तो ये हमें द्रव्य रूप में मिलता है। इसको शीशी में रख दें और इसकी एक बूंद बतासे पर डालकर रोजाना खाने से प्लीहा ठीक हो जाता है और कालाजार का बुखार ठीक हो जाता है।
6. झाऊ : लगभग 6 ग्राम झाऊ के सूखे पत्तों को पीसकर चूर्ण बना लें। इसके बाद शक्कर के साथ इस चूर्ण को मिलाकर रोजाना लेने से कालाजार जड़ से खत्म हो जाता है।
7. प्याज : प्याज से बनी माला को रोगी के गले में पहनाने से यकृत एवं प्लीहा का बढ़ना बन्द हो जाता है और कालाजार का बुखार मिट जाता है।
8. नागफली : नागफली की जड़ की माला रोगी के गले में पहनाने से प्लीहा का बढ़ना बन्द हो जाता है और कालाजार का बुखार दूर हो जाता है।
9. शरपुंखा (सरफोंका) : लगभग 20 ग्राम की मात्रा में शरपुंखा या सरफोंका के चूर्ण को छाछ या दही के साथ सुबह और शाम 21 दिनों तक सेवन करने से प्लीहा (तिल्ली) का बढ़ना बन्द हो जाता है और कालाजार का बुखार समाप्त हो जाता है। 
10. छोटी माई : लगभग 2 से 4 ग्राम की मात्रा में छोटी माई के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर खाने से प्लीहा ठीक हो जाता है तथा इससे सम्बंधित सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
11. बड़ी माई : बड़ी माई की लकड़ी से बने बर्तन में रखे पानी को पीने से प्लीहा वृद्धि ठीक हो जाती है तथा कालाजार का बुखार मिट जाता है।
12. हाऊबेर : लगभग 2 से 6 ग्राम की मात्रा में हाऊबेर के चूर्ण को खाने से प्लीहा सम्बंधी बुखार और जिगर का बढ़ना आदि खत्म हो जाते है।
13. गुरुच : लगभग एक चौथाई भाग से कम की मात्रा में गुरुच का रस रोगी को पिलाने से कालाजार ठीक हो जाता है।
14. आंवला : लगभग 1 चम्मच आंवले के चूर्ण को दिन में 2 बार शहद के साथ मिलाकर रोगी को देने से शरीर का खून बढ़ता है।
15. ताड़ : हल्के-हल्के बुखार के साथ प्लीहा की वृद्धि हो तो ताड़ के नये पुष्पित भाग को जलाकर बनी राख को लगभग 3 से 6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम खाने से लाभ होता है।  
16. पीपल : कालाजार होने के पहले दिन 3 पीपल के फांट को शहद में मिलाकर रोगी को दें, दूसरे दिन 6, तीसरे दिन 9 इसी तरह से इसके खाने में रोजाना 3 की संख्या बढ़ती जाती है। इसको इसी तरह से 10 दिन तक करें, तथा ग्यारहवें दिन 3 पीपल फांट कम करते रहना चाहिए। ऐसा करने से प्लीहा वृद्धि ठीक होकर कालाजार मिट जाता है।

मलेरिया का बुखार (Malaria fever)

मलेरिया का बुखार


          मलेरिया का बुखार ठंड़ लगकर आता है। इस बुखार में रोगी के शरीर का तापमान 101 से 105 डिग्री तक बना रहता है। यह एक प्रकार का संक्रामक बुखार हैं जो कि पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे दिन पर ठंड़ लगकर आता है और फिर पसीना आकर उतर आता है। इस मलेरिया बुखार की तीन अवस्थाएं होती हैं। पहली- कंपकंपी के साथ बुखार आता है और अन्त में पसीना आकर बुखार उतर जाता है। यह मलेरिया बुखार के लक्षण माने जाते हैं। इसमें रोगी के जिगर और तिल्ली आदि बढ़ जाते हैं। यह एनोफिलीस नामक मादा मच्छरों के द्वारा फैलता है।परिचय
:

कारण :

          मलेरिया का बुखार ज्यादातर बारिश के मौसम में होता हैं। इसका अभिप्राय यह हैं कि यह बुखार मच्छरों के द्वारा फैलता है। यह मच्छर पानी के गड्डो, पोखरों, नलियों आदि के रूके हुए पानी में पैदा होते हैं। एनोफिलीज़ नामक मच्छर मरीज का खून चूस लेते हैं। यही परजीवी युक्त मच्छर जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते हैं, तो वह इस रोग से पीड़ित हो जाता है।

लक्षण :

परहेज :
सावधानी : बरसात के दिनों में नालियों, गड्डों आदि में पानी इकट्टा न होने दें क्योंकि मच्छर इस गंदे पानी में ही अडें देते हैं। रोगाणुनाशक दवाओं जैसे- डी. डी. टी, बी. एच. सी. पाउडर, नीम या तम्बाकू का घोल या मिट्टी के तेल को सीलनभरी दीवारों, पोखरों, तालाबों, और नालियों में छिड़क दें। रोगी को पानी उबालकर पिलाना चाहिए और पत्ते वाली सब्जियां नहीं खाने को देनी चाहिए।maler
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. तुलसी :
2. करंजुआ : 5 ग्राम करंजुआ के बीजों को पीसकर बनी छोटी-छोटी गोली को बुखार आने से 2 घण्टे पहले और बुखार जाने के 2 घण्टे बाद पानी के साथ दिन में 2 बार लेने से लाभ मिलता है।
3. ढाक : 10 ग्राम ढाक के बीजों की गिरी और 10 ग्राम करंजवा के बीजों के गिरी को पानी में घिसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर सुखा लें। बुखार आने के 4 घण्टे पहले यह 1 गोली पानी के साथ लेने से मलेरिया के बुखार में आराम मिलता है।
4. जीरा :
5. प्याज : आधा प्याज का टुकड़ा लेकर उसके रस में एक चुटकी कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह और शाम में पीने से मलेरिया के बुखार में आराम मिलता है।
6. हरड़ : 10 ग्राम हरड़ के चूर्ण को 100 मिलीलीटर पानी में पकाकर काढ़ा बना ले। यह काढ़ा दिन में 3 बार पीने से मलेरिया रोग में फायदा होता है।
7. चकोतरा :
8. चिरायता :
9. नमक :
10. नारंगी : 2 नारंगी के छिलके को 2 कप पानी में उबाल लें। पानी आधा रहने पर छानकर गर्म-गर्म पीनें से मलेरिया के बुखार में लाभ मिलता है।
11. सेब : बुखार में सेब खाने से बुखार जल्दी ठीक होता है। मलेरिया बुखार आने के पहले सेब खाने से बुखार आने के समय बुखार नहीं आता है।
12. अमरूद :
13. शहद 20 ग्राम शुद्ध शहद, आधा ग्राम सेंधानमक और आधा ग्राम हल्दी को पीसकर गर्म पानी में डालकर रात को पीने से बुखार और जुकाम ठीक हो जाता हैं।
14. नीम :
14. पित्तपापड़ा : 6 ग्राम पित्तपापड़ा और 3 ग्राम धनिया को एकसाथ मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से पुराने बुखार में शान्ति मिलती है।
15. हारसिंगार : हारसिंगार के 7-8 पत्तों के रस, अदरक रस और शहद को मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पुराने से पुराना मलेरिया बुखार समाप्त हो जाता है।
16. कंटकरंज : कंटकरंज के बीजों का चूर्ण लगभग आधा ग्राम से लेकर 1 ग्राम की मात्रा में कालीमिर्च के साथ सुबह और शाम लेने से मलेरिया, शीतज्वर, सविराम, अविराम आदि बुखार नष्ट हो जाते हैं। ध्यान रहें कि इसे खाली पेट न लें।
17. रोहिनी (मांस रोहिनी) : रोहिनी की छाल का चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार देने से या इसका काढ़ा 28 मिलीलीटर को रोजाना 3 बार सेवन करने से मलेरिया के बुखार में लाभ होता हैं।
18. महाबला : महाबला की जड़ और सोंठ को मिलाकर काढ़ा बनाकर रख लें। इस काढ़े को 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में लेने से मलेरिया के बुखार में लाभ मिलता है।
19. चिरईगोड़ा : चिरईगोडा़ (मिजुरगोरवा) के 50 ग्राम ताजे या छाया में सुखायें पत्तों को लगभग 1 लीटर पानी में 10 से 15 मिनट तक अच्छी तरह से धीमी आग पकाने के लिए रख दें। इसी काढ़े में चीनी मिलाकर चाय की तरह रोजाना दिन भर में मलेरिया के रोगी को 240 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से लाभ पहुंचता है। ध्यान रहें कि इसका अधिक मात्रा में सेवन न करें।
20. भुईआंवला : भुई आंवला के पंचांग (तना, पत्ती, फल, फूल और जड़) का काढ़ा बनाकर 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से मलेरिया के बुखार में आराम मिलता है।
21. मिर्च :
22. मल्लसिन्दूर : लगभग एक चौथाई से कम मल्लसिन्दूर को तुलसी के पत्ते का रस के साथ सुबह और शाम लेने से मलेरिया का बुखार कम हो जाता है। 
23. शिलासिन्दूर: लगभग एक चौथाई से कम की मात्रा में शिलासिन्दूर को 10 मिलीलीटर तुलसी के पत्तों के रस के साथ बुखार आने से पहले 2-2 घण्टे के अन्तराल पर देने से मलेरिया के बुखार में लाभ होता है।
24. कूठ : लगभग आधा ग्राम कूठ को घी और शहद के साथ सुबह और शाम सेवन करने से मलेरिया बुखार में लाभ होता है।
25. श्रंगरहार (परिजात) : श्रंगरहार के पत्तों को यवकुट कर काढ़ा बनाकर सुबह और शाम 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से मलेरिया बुखार में राहत मिलती है।
26. धनिया :
27. पीपल : पीपल के 3 पत्तों को पीसकर शहद में मिलाकर चाटने से श्वास (दमा), खांसी के साथ मलेरिया बुखार भी ठीक होता है।
28. छाछ : छाछ पीने से हर चौथे दिन आने वाला मलेरिया का बुखार ठीक होता है।   
29. लहसुन :
30. मुलेठी : 10 ग्राम छिली हुई मुलेठी, 5 ग्राम खुरासानी अजवाइन तथा थोड़े से सेंधानमक को एकसाथ मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से मलेरिया का बुखार दूर होता है।
31. आक :
32. अड़ूसा (बाकस) : अड़ूसा की जड़ की छाल को आधा ग्राम से 1 ग्राम या पत्ते के चूर्ण लगभग 1 चौथाई से कम की मात्रा में सुबह और शाम शहद के साथ सेवन करने से मलेरिया के बुखार में लाभ होता है।
33. शीतभज्जी : लगभग एक चौथाई शीतभज्जी का रस, पान के रस व शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से मलेरिया के बुखार में आराम मिलता है।
34. गोदन्ती : लगभग एक चौथाई से कम की मात्रा में गोदन्ती और इतनी की मात्रा में शुद्ध स्फटिका को एकसाथ मिलाकर मलेरिया का बुखार आने से पहले 2 घंटे पहले लेने से बुखार नहीं चढ़ता है।
35. जवाखार : 3 ग्राम जवाखार और 3 ग्राम पीपल को पीसकर गुड़ में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। सुबह और शाम 1-1 गोली को गर्म पानी से लेने से मलेरिया का बुखार उतर जाता है।
36. कपूरचूरा : 5 ग्राम कपूरचूरा को पानी से सेवन करने से मलेरिया के कारण लगने वाली ठंड़ उतर जाती है।
37. हींग : 2 ग्राम हींग को 2 ग्राम गुड़ में मिलाकर सुबह और शाम लेने से मलेरिया के बुखार में लाभ होता है।
38. सफेद कत्था : 10 ग्राम सफेद कत्था और 6 ग्राम मल्लसिन्दूर को एकसाथ मिलाकर पीस लें। फिर इसे नीम के रस में घोटकर उड़द के रूप में गोलियां बना लें। बुखार आने से 1 घण्टे पहले यह गोली लेने से जवानों का बुखार उतर जाता है। ध्यान रहें की यह गोली बच्चों और गर्भवती स्त्रियों को नहीं लेनी चाहिए।
39. गुड़ : 10 ग्राम गुड़ और 3 ग्राम कालाजीरा को एक साथ मिलाकर दिन में 4 बार 2-2 घण्टे के अन्तराल से 2-3 ग्राम की मात्रा में खाने से मलेरिया का बुखार नहीं होता है।
40. गिलोय :
41. बेल : बेल के पत्ते का रस 7 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम लेने से मलेरिया के बुखार में लाभ मिलता है।
42. नाड़ी हिंगु (डिकामाली) : आधा से 2 ग्राम नाड़ी हिंगु को गर्म पानी मे घोलकर, छान लें। इस घोल को सुबह और शाम लेते रहने से नियतकालिक बुखार में आने वाला कंपन कम हो जाता है।
43. कुटकी : 5 से 10 ग्राम कुटकी के चूर्ण को शहद के साथ सुबह और शाम लेने से नियतकालिक बुखार नष्ट होता है।
44. इन्द्रायव : इन्द्रायव के भूने हुए चूर्ण को 1 से 4 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह और शाम सेवन करने से पर्यायिक और शीत बुखार कम हो जाता है। इसका काढ़ा गुर्च (गिलोय) के साथ बनाकर लेने से लाभ होता है।
45. मैनफल : मैनफल का गूदा, लौंग और दालचीनी के साथ लेने से 1 से 2 ग्राम की मात्रा में लेने से पारी से आने वाले बुखार में लाभ होता हैं। ध्यान रहें कि इसका अधिक सेवन करने से उल्टी (वमन) हो सकती है।
46. सत्यानाशी (पीला धतूरा) : पीला धतूरा का दूध 1 से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम नींबू के रस के साथ घोटकर पीने से मलेरिया के बुखार में लाभ होता हैं।     
47. भारंगी (बभनेटी) : बभनेटी के पत्तों की सब्जी बनाकर खिलाने से मलेरिया के रोगी को बुखार से छुटकारा मिलता है।
48. आकड़ा : आकड़े के फूल की दो डोडी (बिना खिले फूल) को जरा-से गुड़ में लपेटकर मलेरिया ज्वर आने से पहले खाने से मलेरिया ज्वर नहीं चढ़ता है।
49. दूब हरी : मलेरिया ज्वर में दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में 2-3 बार चाटने से, पारी से चढ़ने वाले मलेरिया ज्वर में लाभ मिलता है।
50. फिटकरी :
51. कलौंजी : आधा चम्मच पिसी हुई कलौजी को 1 चम्मच शहद में मिलाकर चाटने से चौथे दिन आने वाला बुखार ठीक हो जाता है।
52. अजवाइन : मलेरिया बुखार के बाद हल्का-हल्का बुखार रहने लगता है। इसके लिए 10 ग्राम अजवाइन को रात में 100 मिलीलीटर पानी में भिगों दें और सुबह पानी गुनगुना करके जरा सा नमक डालकर कुछ दिन तक सेवन करने से बुखार मे आराम होता हैं।
53. नींबू :
54. अमरूद :
55. भांग : शुद्ध भांग का चूर्ण 1 ग्राम, गुड़ 2 ग्राम, दोनों को मिलाकर 4 गोलियां बना लेते हैं। जाड़े का बुखार दूर करने के लिए 1-2 गोली 2-2 घंटे के अन्तर से दें या शुद्ध भांग की 1 ग्राम गोली बुखार में 1 घंटा पहले देने से बुखार का वेग कम हो जाता है।
56. श्योनाक-
57. अपामार्ग : अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च को बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें। फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों यह 1-1 गोली सुबह-शाम भोजन करने के बाद नियमित रूप से सेवन करने से मलेरिया के बुखार का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का 2-4 दिन सेवन करना पर्याप्त होता है।
58. बैंगन : कोमल बैंगन को अंगारों पर सेंककर रोजाना सुबह के समय खाली पेट गुड़ के साथ खाने से मलेरिया बुखार से तिल्ली बढ़ जाने में और उसके कारण शरीर पीला पड़ जाने में लाभ होता है।
59. अतीस : 1 ग्राम अतीस के चूर्ण और 2 कालीमिर्च के चूर्ण को एकसाथ मिलाकर दिन में 3-4 बार पानी से सेवन करने से मलेरिया का बुखार दूर हो जाता है।
60. आयापान :

साधारण बुखार (Simple fever)

इन्फ्लुएन्जा (Influenza)

इन्फ्लुएन्जा


          अगर किसी व्यक्ति को सर्दी के मौसम में पूरे शरीर में दर्द, सिर में दर्द, खांसी, छींक, बुखार आदि के लक्षण प्रकट होते हैं तो यह इन्फ्लुएन्जा का रोग हो सकता है। यह रोग बेसिलस इन्फ्लुएन्जा नामक जीवाणु के द्वारा संक्रमित होता है। अगर इस रोग की समय पर चिकित्सा न कराई जाए तो यह सांस की नली की सूजन, प्लुरिसी, कर्णमूल प्रदाह आदि रोग पैदा हो सकते हैं।परिचय
:

कारण :

           इन्फ्लुएंजा का बुखार एक बहुत सूक्ष्म कीटाणु के कारण फैलता है। यह कीटाणु रोगी के थूक, कफ, नाक, श्लेष्मा, मल आदि में पैदा होते हैं। यह जीवाणु धूल के कणों तथा हवा में घुलकर सांस के द्वारा शरीर के अन्दर पहुंच जाता हैं। अधिक थकावट, अधिक परिश्रम, दूषित वातावरण के कारण से भी यह बुखार फैल जाता हैं। अधिकतर यह बुखार सर्दी-गर्मी के मौसम में ही होता है।
          इन्फ्लुएंजा का बुखार बहुत ही तेजी से फैलने वाला बुखार है। इसके होने पर रोगी के शरीर में बहुत तेज दर्द होता है, आंखों तथा सिर में बहुत ही तेज दर्द उठता है। रोगी को इस रोग के होते ही बुखार 102 डिग्री सेल्सियस से 104 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। रोगी को बार-बार प्यास लगती रहती है, पेट में कब्ज बन जाती है, पेशाब बहुत ही कम मात्रा में आता है, बहुत तेज खांसी होती है, सांसों में से बदबू आती है, गले में सूजन आ जाती है। रोगी को रात में सोते समय नींद भी नहीं आती है।
1. सेंधानमक : 10 ग्राम सेंधानमक को 1 लीटर पानी में डालकर घोल बना लें। इस घोल को बूंद-बूंद करके नाक से डालने से इन्फ्लुएन्जा के बुखार में लाभ मिलता है।
2. पीपल : दूध में 2 पीपल या चौथाई चम्मच सोंठ डालकर उबालकर पीने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार दूर हो जाता है।
3. अंकोल : अंकोल की जड़ की छाल का सेवन करने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार दूर हो जाता है। इसका प्रयोग घोड़बच या सोंठ के साथ चावल के माण्ड में उबालकर किया जा सकता है।
4. तुलसी :
5. अजवायन :
6. गुलबनफ्सा : 10 ग्राम गुलबनफ्सा तथा कालीमिर्च के 7 दानों को 50 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल लें। जब यह पानी ठंडा हो जाए तो इसे छानकर सुबह और शाम पीने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार दूर हो जाता है।
7. कपूर : कपूर की टिकिया सदा पास में रखने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार नहीं होता है।
8. सोंठ :
8. कर्पूरासव : कर्पूरासव की 5 से 20 बूंदे बतासे पर डालकर, ऊपर से पानी पीने से इन्फ्लुएन्जा के बुखार में लाभ होता है। सुबह और शाम इसे खुराक के रूप में लेना लाभकारी रहता है।
9. कटेरी : इन्फ्लुएन्जा के बुखार में कटेरी, गिलोय, सोंठ और कालीमिर्च को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर 2-2 चम्मच की मात्रा में दिन में कई बार ले सकते हैं।
10. शहद :
11. नीम : नीम की छाल, सोंठ, गिलोय, कटेरी, कुटकी, अड़ूसा और पीपल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह और शाम पीने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार जल्दी उतर जाता है।
12. अदरक :
13. दालचीनी :
14. धनिया : फ्लू या इन्फ्लूएंजा में पहले जुकाम होता है। नाक बहनी शुरू हो जाती है। फिर शरीर में सुस्ती आने लगती है। धीरे-धीरे व्यक्ति को बुखार हो जाता है। शरीर में अधिक दर्द होने लगता है। माथा और पेट दुखने लगता है। कमर तथा पिण्डलियां जैसे टूटने लगती हैं। कभी-कभी तो रोगी को 104 या 105 डिग्री बुखार हो जाता है। अत्यधिक थकावट के कारण भी बुखार हो जाता है। इसमें रोगी को कभी ठंड़ लगने लगती है तो कभी-कभी पसीना आने लगता है। यह एक संक्रामक रोग है। यदि यह घर में किसी एक को होता है तो उससे पूरे परिवार में फैल जाता है अत: रोगी को निराशा के संसार से निकलकर घरेलू उपचार शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए 4 दाने कालीमिर्च, 5 तुलसी की पत्तियां और 20 दाने धनिये के चाय बनाकर रोगी को दिन में 4 बार देना चाहिए। चाय में थोड़ी सी अदरक भी डाली जा सकती है।
15. नारंगी :
16. नींबू : नींबू की चाय (गर्म पानी में नींबू रस, मिश्री) पीने से इन्फ्लुएंजा के रोग में लाभ होता है।
अन्य उपचार :

डेंगू ज्वर Dengue

डेंगू ज्वर

          डेंगू बुखार में रोगी के पूरे शरीर की हडि्डयों में ऐसा दर्द होता है जैसे कि सभी हडि्डयां टूट गई हों। डेंगू बुखार एक संक्रामक बुखार हैं जो क्यूलिक्स नामक मच्छरों के द्वारा एक रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके रोग को पहुंचाता है। इस तरह का बुखार होने पर रोगी को भूख नहीं लगती है, रोगी को हर समय बुखार 103 से 105 डिग्री तक बना रहता है। एक सप्ताह तक रोगी को पसीना, दस्त, नकसीर (नाक से खून आना) आने लगती है। अगर यह बुखार ज्यादा बढ़ जाता है तो रोगी के कान में दर्द और सूजन तथा फेफड़ों में सूजन आ जाती है।परिचय :

लक्षण :

          डेंगू बुखार होने पर रोगी को अचानक बिना खांसी जुकाम के तेज बुखार हो जाता है, रोगी के शरीर में तेज दर्द होकर हडि्डयों में पीड़ा होती हैं। रोगी के सिर के अगले हिस्से में तेज दर्द होता है, आंख के पिछले भाग में दर्द होता है, रोगी की मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता है, रोगी को भूख कम लगती है और उसके मुंह का स्वाद खराब हो जाता है, रोगी की छाती पर खसरे के जैसे दाने निकल आते हैं, इसके अलावा जी मिचलाना, उल्टी होना, रोशनी से चिड़चिड़ाहट होना आदि लक्षण पाए जाते हैं। परन्तु कभी-कभी डेंगू बुखार में खून भी आने लगता है, जिसे हीमोरैजिक रक्तस्राव कहते हैं। हीमोरैजिक रक्तस्राव के समय के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं- लगातार पेट में तेज दर्द रहना, त्वचा ठंड़ी, पीली व चिपचिपी होना, रोगी के चेहरे और हाथ-पैरों पर लाल दाने हो जाते हैं। हीमोरैजिक डेंगू होने पर शरीर के अन्दरूनी अंगों से खून आने लगता है। नाक, मुंह व मल के रास्ते खून आता है जिससे कई बार रोगी बेहोश हो जाता है। खून के बिना या खून के साथ बार-बार उल्टी, नींद के साथ व्याकुलता, लगातार चिल्लाना, अधिक प्यास का लगना या मुंह का बार-बार सूखना आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं। हीमोरैजिक डेंगू अधिक खतरनाक होता हैं और डेंगू बुखार साधारण बुखार से काफी मिलता-जुलता होता है।
1. सर्पगंधा : सर्पगंधा के कन्द (फल) का चूर्ण, कालीमिर्च, डिकामाली घोड़बच और चिरायता के चूर्ण को एकसाथ मिलाने से बनी मिश्रित औषधि में से 1 से 2 ग्राम को सुबह और शाम लेने से डेंगू के बुखार में लाभ मिलता है।
2. अंकोल :
3. यवक्षार : लगभग एक ग्राम से कम की मात्रा में यवाक्षार को नीम के पत्ते के रस या नीम के काढ़े के साथ सुबह और शाम लेने से पसीना आने से होने वाला बुखार कम होता है और शरीर का दर्द मिटता जाता है।
4. ईश्वरमूल : लगभग आधा ग्राम से 2 ग्राम की मात्रा में ईश्वरमूल (रूद्रजटा) का चूर्ण सुबह और शाम सेवन करने से डेंगू ज्वर दूर हो जाता है।
5. कर्पूरासव : कर्पूरासव 5 से 10 बूंद बतासे पर डालकर सुबह और शाम लेने से खून की नसें फैलती हैं, पसीना आकर बुखार, दाह (जलन) और बेचैनी कम होते जाते हैं।
6. चंदन : 5 से 10 बूंद चंदन के तेल को बतासे पर डालकर सुबह और शाम लेकर ऊपर से पानी से पीने से बुखार कम हो जाता है।
साधारण उपचार : डेंगू बुखार तेज होने पर रोगी के माथे पर ठंड़े पानी की पट्टियां रखी जा सकती हैं। हीमोरैजिक डेंगू होने पर रोगी के खून में प्लेटीनेट्स की संख्या बढ़ाने के लिए अतिरिक्त मात्रा देने की आवश्यकता होती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि हीमोरैजिक डेंगू होने पर रोगी को दर्द दूर करने वाली दवा नहीं देनी चाहिए क्योंकि कई बार इन दर्द निवारक दवाओं से रोगी में खून के बहने का डर बना रहता है। इस दौरान शरीर में पानी की मात्रा और रक्तचाप को नियंत्रित करना भी जरूरी होता है।

चेचक बड़ी माता (Chicken pox) chachak

chachak
  चेचक  बड़ी माता  (Chicken pox)


     चेचक के रोग में बुखार के बाद शरीर पर लाल दाने निकलते हैं। ये दाने 2 से 3 दिन के बाद फफोले का रूप ले लेते हैं। 4 से 5 दिन में इन दानों में से पपड़ी जमकर नीचे गिरने लगती है। चेचक में बुखार और प्रदाह (जलन) के कारण रोगी को काफी बैचेनी होती है। इस रोग को ठीक होने में कम से कम 7 से 10 दिन तक लग जाते हैं।परिचय-

कारण :

          चेचक के रोग को घरेलू भाषा में `माता´ या `‘शीतला´ भी कहते हैं। यह रोग अक्सर उन बच्चों को होता है जिनके शरीर में शुरू से ही गर्मी होती है तथा उनकी उम्र 2 से 4 साल तक की होती है। कभी-कभी यह औरतों और बड़ों में भी हो जाता है। इस रोग के फैलने का कारण वायरस (जीवाणु) हैं। इसके जीवाणु थूक, मलमूत्र (टट्टी-पेशाब) और नाखूनों में पाये जाते हैं। सूक्ष्म (छोटे-छोटे) जीवाणु हवा में घुल जाते हैं और सांस लेते समय ये जीवाणु अन्दर चले जाते हैं। इस रोग को आर्युवेद में मसूरिका के नाम से जाना जाता है।
          चेचक (माता) होने पर शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यह बुखार 104 डिग्री फारेनहाइट हो जाता है। रोगी को बेचैनी होने लगती है। उसे बहुत ज्यादा प्यास लगती है और पूरे शरीर में दर्द होने लगता है। दिल की धड़कन तेज हो जाती है और साथ में जुकाम भी हो जाता है। 2-3 दिन के बाद बुखार तेज होने लगता है। शरीर पर लाल-लाल दाने निकलने लगते हैं। दानों में पानी जैसी मवाद पैदा हो जाती है और 7 दिनों में दाने पकने लगते हैं जोकि धीरे-धीरे सूख जाते हैं। दानों पर खुरण्ड (पपड़ी) सी जम जाती है। कुछ दिनों के बाद खुरण्ड (पपड़ी) तो निकल जाती है लेकिन उसके निशान रह जाते हैं।
भोजन और परहेज :
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. नीम :
2. जीरा : 100 ग्राम कच्चा धनिया और 50 ग्राम जीरा को 12 घंटों तक पानी में भीगने के लिये रख दें। फिर दोनों को पानी में अच्छी तरह से मिला लें और इस पानी को छानकर बोतल में भर लें। चेचक के रोग में बच्चे को बार-बार प्यास लगने पर यही पानी पिलाने से लाभ होता है।
3. शहद : चेचक के रोग में रोगी को शहद चटाने से लाभ होता है।
4. कालीमिर्च : 5 नीम की कोंपल (नई पत्तियां) 2 कालीमिर्च और थोड़ी सी मिश्री लेकर सुबह-सुबह चबाने से या पीसकर पानी के साथ खाने से चेचक के रोग में लाभ होता है।
5. चमेली : चेचक के रोग में चमेली के 10-15 फूलों को पीसकर लेप करने से लाभ मिलता है।
6. दूध : गाय का ताजा दूध और घी को एक साथ मिलाकर उसमें मिश्री मिलाकर बच्चों को पिलाने से चेचक के बुखार में लाभ होता है।
7. मुनक्का: चेचक के रोगी को दिन में कई बार 2-2 मुनक्का या किशमिश खिलाने से लाभ होता है।
8. इमली : इमली के बीज और हल्दी का चूर्ण ठंडे पानी के साथ पीने से चेचक का रोग नहीं होता है।
9. लताकरंज : लताकरंज के बीज, तिल और सरसों को बराबर मात्रा में मिलाकर लेप बना लेते हैं। इस लेप को चेचक के दानों पर लगाने से आराम मिलता है।
10. अंगूर : अंगूर को गर्म पानी में धोकर खाने से चेचक के रोग में लाभ होता है।
11. संतरा :
12. चना : चेचक से पीड़ित रोगी को भीगे हुए चनों पर अपनी हथेलियां रखनी चाहिए क्योंकि भीगा हुआ चना चेचक के कीटाणुओं को सोख लेता है।
13. हल्दी :
14. तुलसी :

Typhoid टायफाइड

आंत्रिक ज्वर (टायफाइड)


          प्रदूषित वातावरण और दूषित जल व आहार के अधिक समय तक सेवन करने से आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) उत्पन्न होता है। आंत्रिक ज्वर को मियादी बुखार, मोतीझारा आदि अनेक नामों से संबोधित किया जाता है। आंत्रिक ज्वर से पीड़ित रोगी शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो जाता है। यदि समय पर उचित चिकित्सा न दी जाये तो रोगी की मृत्यु हो सकती है।परिचय
:

विभिन्न नाम-

          आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) गंदा पानी पीने की वजह से और बाहर का भोजन करने से फैलता है क्योंकि बाहर की ज्यादातर चीजें खुली हुई होती हैं, इन खुली हुई चीजों में मच्छर और मक्खियां बैठती हैं जो उनमें कीटाणु छोड़ देते हैं जिसकी वजह से यह बीमारी फैलती है। इस बीमारी के जीवाणु किसी रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंचकर उन्हें भी रोगी बनाते हैं। खासकर छोटे बच्चे और युवा इस रोग से पीड़ित होते हैं। जीवाणु शरीर के अन्दर पहुंचकर आंतों में जहर पैदा करके आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) को पैदा करते हैं। जीवाणुओं के जहर के असर से आंतों में जख्म पैदा हो जाते हैं। ऐसी हालत मे रोगी के शौच में खून आने लगता है। अतिसार की स्थिति में रोगी की तबियत अधिक खराब होने की आशंका ज्यादा रहती है। यह बुखार, असमय खाना खाने, देश-विदेश में रुचि के विरुद्ध खाना, अजीर्ण में भोजन, उपवास, मौसम में परिवर्तन, विषैली चीजों का पेट में पहुंचना, अधिक मैथुन, अधिक चिन्ता, शोक, अधिक परिश्रम, धूप तथा आग में देर तक काम करना आदि के कारण हो जाता है।
          आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) में शरीर में विभिन्न अंगों में पीड़ा, सिरदर्द, कब्ज, बैचेनी और बुखार के कम-ज्यादा होने के लक्षण दिखाई देते हैं। बिस्तर पर अधिक समय तक लेटे रहने से कमर में दर्द भी होने लगता है। रोगी को रात में नींद भी नहीं आती है। पहले सप्ताह में बुखार 100 से 102 डिग्री तक होता है और दूसरे सप्ताह में शरीर का तापमान 103 से 105 डिग्री तक बढ़ जाता हैं। तीसरे सप्ताह में ज्वर ज्यादा बढ़ जाता है। ज्वर ज्यादा होने के साथ ही रोगी के पेट मे दर्द, सिर में दर्द, खांसी और प्यास अधिक लगती है। रोगी को खड़े होने में, चलने में कठिनाई होती है। पांव लड़खड़ाते हैं और आंखों के आगे अंधेरा छाने लगता है।
          आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) में भोजन की लापरवाही या भूख न लगने से यदि अतिसार हो जाए तो रोगी की हालत बिगड़ जाती है। शरीर में कमजोरी आ जाने की वजह से रोगी मृत्यु की कगार पर पहुंच सकता है। आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) के दूसरे सप्ताह में रोगी की छाती और पेट पर छोटे-छोटे सफेद दाने निकल आते हैं। इन सफेद मोती जैसे दानों के कारण आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) को मोतीझारा भी कहते हैं यदि ज्वर खत्म हो जाने के बाद भी दानें पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाते तो रोगी को ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है।
          शरीर में थकावट, बार-बार जम्भाई (नींद आने की उबकाइयां) आना, आंखों में जलन, भोजन में अरुचि, कभी गर्मी और कभी सर्दी लगना, जोड़ों में दर्द, आंखों में लाली, आंखें फटी-फटी सी, अधमुन्दी या तिरछी, आंखें भीतर की ओर धंस जाना, कानों में दर्द, गले में कांटे-से लगना, खांसी, तेजी से सांस का चलना, बेहोशी की हालत, इधर-उधर की बाते बकना, जीभ में खुरदरापन,  सिर में तेजी से दर्द होना, बार-बार प्यास का लगना, छाती में दर्द होना, पसीना बहुत कम आना, मल-मूत्र का देर से आना तथा थोड़ी मात्रा में निकलना, शरीर में बहुत ज्यादा कमजोरी, शरीर पर गोल व लाल-लाल चकत्ते-से बन जाना, रोगी के मुख से बहुत कम आवाज़ निकलना, कान, नाक आदि का पक जाना, पेट का फूलना, दिन में गहरी नींद का आना, रात में नींद न आना, रोगी द्वारा उलटी-सीधी हरकतें करना, आंखों के नीचे काले गड्डे पड़ना तथा बार-बार थूकना आदि आंत्रिक बुखार (टायफाइड) के लक्षण माने जाते हैं।
1. मुनक्का :
2. गिलोय : 5 मिलीलीटर गिलोय के रस को थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाटने से आंत्रिक बुखार (टायफाइड) में बहुत आराम आता है। गिलोय का काढ़ा भी शहद के साथ मिलाकर पी सकते हैं।
3. अजमोद : 3 ग्राम अजमोद का चूर्ण शहद के साथ सुबह और शाम चाटने से टायफाइड रोग में आराम आता है।
4. काली तुलसी : 3-3 ग्राम की मात्रा में काली तुलसी, बनतुलसी, और पोदीना का रस निकालकर रोगी को 3 ग्राम की मात्रा में 2-3 बार पिलाने से टायफाइड में काफी लाभ होता है।
5. लौकी : घीये (लौकी) के टुकड़ों को पैरों के तलुओं पर मलने से टायफाइड ज्वर की उष्णता कम होती है।
6. सरसों का तेल : सरसों के तेल में सेंधानमक मिलाकर छाती पर मलने से टायफाइड रोग के कारण जमा हुआ कफ (बलगम) आसानी से निकल जाता है और खांसी कम हो जाती है।
7. मूंग की दाल : टायफाइड ज्वर में रोगी को मूंग की दाल बनाकर देने से आराम आता है। मूंग की दाल में मिर्च, मसाले, तेल तथा घी आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
8. चित्रक : रूद्राक्ष के एक पीस (नग) को पानी के साथ घिसकर, 1 ग्राम चित्रक की छाल के चूर्ण में मिलाकर सेवन करने से आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) के दाने शीघ्र ही निकल जाते हैं।
9. लौंग :
10. छोटी पीपल : लगभग आधा ग्राम छोटी पीपल के चूर्ण के साथ शहद मिलाकर सेवन करने से आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) में लाभ मिलता है।
11. कपूर : लगभग आधा ग्राम कपूर या कर्पूरासव 5 से 20 बूंद की मात्रा में सेवन करने से रक्तवाहिनियों का विस्तार होता है जिससे पसीना आकर ज्वर (ताप) कम हो जाता है। कपूर को पतले कपड़े में बांधकर पानी में डुबाकर हिला देने से कर्पूराम्ब प्राप्त होता है।
12. लौंग : आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) की शुरुआत में रोगी को अनाज से बने खाद्य पदार्थ नहीं देने चाहिए। आंतों में जीवाणुओं का संक्रमण होने से आंतों में जख्म बन जाते हैं। रोगी को प्यास भी अधिक लगती है और अधिक पानी पीने से उल्टी होने लगती है। ऐसे पानी में 2-3 लौंग उबालकर, छानकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पिलाना चाहिए।
13. पीपल : पीपल की छाल को जलाकर, पानी में बुझाकर, छानकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में रोगी को पिलाने से प्यास शान्त होती है और उल्टी भी नहीं होती है।
14. खमीरा : टायफाइड को दूर करने के लिये खमीरा चाटने से दिल की धड़कन सामान्य होती है।
15. कपूर : आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) में अतिसार (दस्त) को तुरन्त बन्द करने के लिए रोगी बच्चे को कपूर की गोली खरल में पीसकर पानी के साथ सेवन कराने से लाभ होता है।
16. कमलगट्टे : कमल गट्टे और इलायची को बराबर मात्रा में लेकर, कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को प्रतिदिन 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) में बहुत लाभ होता है।
17. संतरा : नारंगी के प्रयोग से गर्मी, बुखार और अशान्ति दूर होती है। रोगी को दूध में नारंगी का रस मिलाकर पिलायें या दूध पिलाकर नारंगी खिलायें। दिन में कई बार नारंगी का सेवन कराना चाहिए। रोगी को नारंगी खिलाकर दूध पिलायें। इससे गर्मी कम होती है, पेशाब एवं मल खुलकर होता है।
18. सेब : सेब का मुरब्बा 15-20 दिन खाते रहने से टायफाइड रोग में दिल की कमजोरी और दिल का बैठना ठीक हो जाता है।
19. केला : टायफाइड के रोगियों के लिए केला एक अच्छा भोजन है क्योंकि यह भूख प्यास को कम करता है।
20. पोदीना : पोदीना, रामतुलसी (छोटे और हरे पत्तों वाली तुलसी) और श्यामतुलसी (काले पत्तों वाली तुलसी) का रस निकालकर उसमें थोड़ा-सा शक्कर (चीनी) मिलाकर सेवन करने से टायफाइड (मोतीझारा) के रोग में लाभ होता है।
21. सौंठ : 3 ग्राम सौंठ को बकरी के दूध में पीसकर सगर्भा (गर्भवती) स्त्री को सेवन कराने से टाइफायड बुखार में लाभ होता है।
22. अनार : अनार के पत्तों के काढे़ में आधा ग्राम सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से आंत्रिकज्वर (टायफाइड) में लाभ होता है।
23. नमक : एक चम्मच नमक को एक गिलास पानी में घोलकर दिन में 1 बार रोजाना पीने से आन्त्र ज्वर (टायफाइड) कम हो जाता है और धीरे-धीरे ठीक हो जाता है।
24. तुलसी :