कण्ठ रोहिणी DIPHTHERIA


कण्ठ रोहिणी

(DIPHTHERIA)


             कण्ठ रोहिणी रोग 1 साल से 5 साल तक के बच्चों को ज्यादा होता है। चिकित्सकों के अनुसार कण्ठरोहिणी खून में विषक्रमण (जीवाणु) के कारण होती हैं। इस रोग में रोगी के गले में झिल्ली सी बन जाती है जो धीरे-धीरे चारों तरफ फैल जाती है। रोगी को हल्का बुखार आता है। गले की ग्रंथियां फूलकर मोटी हो जाती हैं। गले में झिल्ली के कारण खाने-पीने और सांस लेने मे परेशानी होने लगती है। रोगी की हालत दिन पर दिन खराब होती चली जाती है। इसके साथ ही रोगी को न्युमोनिया (निमोनिया), और पक्षाघात (लकवा) के होने की आशंका भी रहती है।परिचय :  

लक्षण :

           इस रोग के तेज होने की हालत में बच्चे को तेज ज्वर (बुखार) आ जाता है। शरीर अकड़ने लगता है और वमन (उल्टी) आने लगती है। कुछ बच्चों को दस्त होने लगते हैं। बच्चे हर समय बैचेनी सी महसूस करते हैं। ऐसे में नब्ज भी 140 की रफ्तार से भी तेज चलने लगती है। रोगी का पूरा शरीर आग की तरह गर्म होने लगता है। चेहरा पूरा लाल हो जाता है। टांसिलों में शोथ (सूजन) हो जाती है और उन पर भूरे या सफेद रंग के धब्बे भी नज़र आने लगते हैं। सभी धब्बे तेजी से फैलकर एक-दूसरे से मिलकर श्लैष्मिक झिल्ली के रूप में बदल जाती है। श्वास नली (सांस की नली) पर झिल्ली बनने के कारण रोगी बच्चे को सांस लेने में परेशानी महसूस होने लगती है। कुछ बच्चों को कण्ठ रोहिणी (गले की गांठ) में नाक से खून बहने की शिकायत भी होने लगती है। पेशाब भी बहुत कम आने लगता है। बच्चे को हर समय नींद आती रहती है और नींद की हालत में झिल्ली के कारण सांस नहीं ले पाने के कारण रोगी की मौत हो जाती है।
विभिन्न औषधियों से उपचार:
1. लहसुन : लहसुन की एक-एक कली को साफ करके लगभग 60 ग्राम लहसुन लेकर तीन से चार घंटे के अंदर रोगी को दें। इसकी बदबू के कारण यदि रोगी खा भी न सके तो लहसुन की कलियों को छीलकर 3 दिनों तक छाछ में डालकर भिगो दें। ऐसा करने से लहसुन की बदबू तो मिट ही जायेगी इसके गुण भी समाप्त नहीं होगें। इस तरह रोजाना लहसुन खाने से जब गले की झिल्ली साफ हो जाये तो पूरे दिन में लगभग 60 ग्राम लहसुन रोगी को खिलाया करें। नहीं तो 3 से 4 घंटों में देने के बदले 28 घंटे में 60 ग्राम लहसुन रोगी को दें। यदि रोगी कोई बच्चा हो तो 20 से 30 बूंद लहसुन का रस हर 3 से 4 घंटे के अंदर शर्बत में मिलाकर रोगी बच्चे को दें। इससे कंठरोहिणी का रोग दूर हो जाता है।
2. पान : साधारण आकार के चार पान के पत्तों के रस को गुनगुने पानी में मिलाकर गरारे करने या पान के तेल की 1 बूंद को 125 मिलीलीटर गर्म पानी में डालकर वाष्प (गैस) को सूंघने से कण्ठरोहिणी रोग में जरूर लाभ होता है।
3. महाकाल : विशाला (महाकाल) की फलत्वक् (फल का रस) या मूल के चूर्ण को (जड़ का चूर्ण) थोड़े से चिलम में डालकर धूम्रपान करने से आराम आता है। कण्ठरोहिणी रोग में भी आराम हो जाता है। ऐसा रोजाना दो से तीन बार करना चाहिए।
4. कालीमिर्च : कालीमिर्च के काढ़े से रोजाना 2 से 3 बार गरारे करने से गले की प्रदाह (जलन) समाप्त हो जाती है।
5. दालचीनी : दालचीनी का काढ़ा का अभ्यान्तरिक सेवन और गरारे करने से (प्रदाह) जलन और संक्रमण दोनों रोग समाप्त हो जाते हैं।
6. तेजफल : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तुम्बरू (तेजफल) के फल का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से और इसी के काढ़े से गरारे करने से गले में आराम आता है।
7. अनन्नास : अनन्नास का रस पीने से कण्ठ रोहिणी (डिप्थीरिया) की झिल्ली कट जाती है और गला साफ हो जाता है यह इस रोग की प्रमुख औषधि है। ताजे अनन्नास में पेप्सिन पित्त का प्रमुख अंश होता है। इससे गले की खराश में बहुत आराम आता है।
8. प्याज : पानी को उबालकर, उसमें प्याज का रस डालकर बच्चे को भाप (पानी को गर्म करके उसका धुंआ गले के अंदर लेना) में सांस लेने के लिए कहें। भाप में कण्ठ रोहिणी के जीवाणु बड़ी जल्दी समाप्त होते हैं।
9. पपीता : पपीते के दूध को ग्लिसरीन में मिलाकर रूई की मदद से कण्ठ (गले) के अंदर लगाने से बहुत आराम आता है।
10. अमलतास : अमलतास के पेड़ की छाल या उसकी जड़ को पानी से साफ करने के बाद पानी में काफी देर तक उबालें। फिर इसे छानकर बच्चे को कुल्ला कराने से बहुत आराम आता है।
11. पान : पान के रस में भुना हुआ सुहागा मिलाकर गले में लगाने से श्लैष्मिका झिल्ली समाप्त हो जाती है।