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भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग जहां सावन में लगता है शिव भक्तों का मेला

यह माना जाता है कि जो व्यक्ति 12 ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है वह सबसे भाग्यशाली होता है। ये 12 स्थान वे हैं जहां भगवान शिव स्वयं ज्योति रूप में विद्यमान हैं। या हमारे देश के विभिन्न भागों में स्थित है। इन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है। देव के देव महादेव कि आराधना श्रवण मास में करने से भक्तों के कष्ट शीघ्र ही दूर होते हैं।

1. श्री सोमनाथ

सभी 12 ज्योतिर्लिंग में प्रथम स्थान पर श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग आता है। यह गुजरात के वेरावल में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने किया था। इस मंदिर का उल्लेख हम ऋग्वेद में भी पाते हैं। अब तक इस मंदिर को 17 बार नष्ट किया गया परंतु हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया। यहाँ रेल और बस से पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर के दर्शन के लिए आप वेरावल तक रेल से यात्रा कर सकते हैं। वर्तमान श्री सोमनाथ मंदिर का उदघाटन देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा किया गया था।
2. श्री मल्लिकार्जुन

यह ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश के कृष्ण जिले में श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। इस पर्वत को दक्षिण भारत का कैलास भी कहा जाता है। यहाँ आकर शिवलिंग का दर्शन एवं पुजा-अर्चना करने वाले भक्तों कि सभी सात्विक मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती है। दैहिक, दैविक, भौतिक सभी प्रकार कि बाधाओं से मुक्ति मिलता है। यहाँ जाने के लिए आप बिनूगोडा - मकरपुर रोड तक रेल से जा सकते हैं।

3. श्री महकलेश्वर

यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण श्री महाकालेश्वर महादेव कि अत्यंत पुण्यदायी है। इस ज्योतिर्लिंग का अपना एक अलग महत्व है। कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त है उसका काल भी कुछ नहीं बिगड़ सकता है। शिप्रा नदी के तट पर स्थित इस मंदिर के दर्शन के लिए आप रेल मार्ग द्वारा पहुँच सकते हैं।

4. श्री ओंकारेश्वर

यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। इस जगह भगवान शिव ओमकार स्वरूप में प्रकट हुए थे तथा यह भी माना जाता है कि भोलेनाथ प्रतिदिन तीनों लोकों के भ्रमण के उपरांत यहाँ आकर विश्राम करते हैं। यहाँ प्रतिदिन भगवान शिव कि शयन आरती कि जाती है। इंदौर-खंडवा रेलमार्ग पर ओंकारेश्वर रोड स्टेशन है। जहां से यह मंदिर 12 किमी कि दूरी पर स्थित है।

5. श्री केदारनाथ

भगवान शिव का यह अवतार उत्तराखंड के हिमालय में लगभग 12 हजार फुट कि ऊंचाई पर स्थित है। पुराणों और शास्त्रों में केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग कि महिमा का वर्णन कई बार आता है। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत व आकर्षक नमूना प्रस्तुत करता है। यहाँ पहुँचने के लिए ऋषिकेश तक रेल मार्ग द्वारा तथा इसके बाद गौरीकुंड तक बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है। इसके आगे कि यात्रा पैदल अथवा टट्टू के द्वारा तय किया जा सकता है।

6. श्री भीमाशंकर

महाराष्ट्र के सह्याद्रि पर्वतमाला में भीमा नदी के तट पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है। 3250 फीट कि ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर का शिवलिंग काफी मोटा है। अतः इसे मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में यह मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धापूर्वक इस मंदिर का प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम जपते हुए दर्शन करता है, उनके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उनके लिए स्वर्ग का मार्ग खुल जाता है। नासिक से यह मंदिर 180 किमी कि दूरी पर स्थित है।

7. श्री विश्वनाथ

यह ज्योतिर्लिंग उत्तरप्रदेश के काशी में गंगा तट पर स्थित है। अगस्त्य मुनि ने इसी स्थान पर अपनी तपस्या द्वारा भगवान शिव को संतुष्ट किया था। यह मान्यता है कि यहाँ जो भी प्राणी अपना प्राण त्यागता है उसे मोक्ष कि प्राप्ति होती है, क्योंकि भगवान विश्वनाथ स्वयं उसे मरते वक्त तारक मंत्र सुनाते हैं। इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन एवं पूजन करने से भगवान शिव कि कृपा भक्त जनों पर सदेव बनी रहती है।

8. श्री त्रयम्बकेश्वर

यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक से 25 किमी दूर गोदावरी नदी के तट पर है। इस मंदिर का संबंध गौतम ऋषि और उनके द्वारा लाई गयी गोदावरी से है। त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों विराजमान है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से तीनों देवताओं के दर्शन का सुख प्राप्त होता है।

9. श्री वैद्यनाथ

यह ज्योर्तिलिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। कहा जाता है कि रावण ने घोर तपस्या कर शिव से एक शिवलिंग प्राप्त किया जिसे वह लंका में स्थापित करना चाहता था। हिमालय से लंका जाने के क्रम में उन्हें लघुशंका कि आवश्यकता महसूस हुई। रावण ने शिवलिंग एक अहीर के हाथ देकर लघुशंका के लिए चले गए। वह अहीर शिवलिंग का भर उठा नहीं पाया और शिवलिंग भूमि पर रख दिया। भूमि में रखते ही शिवलिंग वहाँ स्थापित हो गया। इस तरह यह ज्योतिर्लिंग "श्री वैद्यनाथ" के नाम से जाना जाने लगा। रोग मुक्ति के लिए इस ज्योतिर्लिंग कि महिमा प्रसिद्ध है।

10. श्री नागेश्वर

गुजरात के दारुकावन क्षेत्र में हिंगोली नामक स्थान से 27 किमी कि दूरी पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग कि स्थापना उस जगह हुई थी जहां सुप्रिय नामक वैश्य ने भगवान शिव से प्राप्त पाशुपतास्त्र से दारुक राक्षस का नाश किया था। रुद्र संहिता में इन्हें 'दारुकावने नागेशम' कहा जाता है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर में भगवान शिव की पद्मासन मुद्रा में 125 फीट ऊंची तथा 25 फीट चौड़ी एक विशालकाय मूर्ति स्थापित है।

11. श्री रामेश्वर

इस ज्योतिर्लिंग का संबंध भगवान राम से है। राम वानर सेना सहित लंका आक्रमण हेतु देश के दक्षिण छोर आ पहुंचे। यहाँ पर श्रीराम ने बालू का शिवलिंग बनाकर शिव कि आराधना किया और रावण पर विजय हेतु शिव से वरदान मांगा। यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडू में स्थित है। यहाँ सड़क मार्ग एवं रेल मार्ग दोनों से पहुंचा जा सकता है।

12. श्री घृष्णेश्वर

रुद्रकोटीसंहिता, शिव महापुराण स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगस्तोत्रां के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग बारहवें तथा अंतिम क्रम में आता है। यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद शहर के नजदीक दौलतबाद से 11 किमी कि दूरी पर वेलूर नामक गाँव में स्थित है। संतान प्राप्ति के इस ज्योतिर्लिंग कि महिमा प्रसिद्ध है। इस मंदिर के दर्शन के लिए आप औरंगाबाद तक रेल मार्ग द्वारा जा सकते हैं। इसके बाद सड़क मार्ग द्वारा इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

अक्षय तृतीया - Akshay Tritya -शुभ कर्म कर शुभ फल पाने का दिन

तृतीय वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। जिनके अटके हुए काम नहीं बन पाते या व्यापार में लगातार घाटा हो रहा है या किसी कार्य के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं मिल पा रहा है, तो उनके लिए कोई भी कार्य की शुरुआत करने के लिए अक्षय तृतीया (Akshay Tritiya) का दिन बेहद शुभ माना जाता है। सुख शांति तथा सौभाग्य समृद्धि हेतु इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती जी का पूजन भी किया जाता है। मान्यता है कि सामर्थ्य के अनुसार इस दिन जितना भी दान किया जाये, अक्षय रूप में प्राप्त होता है। (Akshay Tritiya kya hai?)

अक्षय तृतीया के दिन सूर्य और चंद्र दोनों पूर्ण बलवान होते हैं, जिससे इस दिन किये किसी कार्य का क्षय नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और चन्द्रमा दोनों ही महत्वपूर्ण ग्रह हैं। चन्द्रमा जहां मन का स्वामी व समस्त परिणामों को प्रत्यक्ष रूप से शीघ्रता से प्रभावित करते हैं, वहीं सूर्य नक्षत्र मंडल के स्वामी व केंद्र है। दोनों प्रत्यक्ष देवों की श्रेणी में आते हैं। अक्षय तृतीया के दिन दोनों ही ग्रह अपनी उच्च राशि में होते हैं। वैशाख मास माधव का मास है। शुक्ल पक्ष विष्णु से सम्बन्ध रखता है। रोहिणी नक्षत्र में भगवन श्री कृष्ण का जन्म हुआ है। धर्मशास्त्र के अनुसार ऐसे उत्तम योग में अक्षय तृतीया पर प्रातःकाल शुद्ध होकर चन्दन व सुगन्धित द्रव्यों से श्रीकृष्ण का पूजन करने से वैंकुठ की प्राप्ति होती है। (Akshay Tritiya ke din grah nakchatr)
भविष्यपुराण के अनुसार इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी। परशुराम के रूप में भगवान विष्णु ने इसी दिन अवतार लिया था। इसी तिथि को प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनाथ के दरवाजे भी खोले जाते हैं और वृन्दावन के बाँके बिहारी मंदिर में भी इसी दिन चरण दर्शन किए जाते हैं। इसी दिन महाभारत युद्ध की समाप्ति एवं द्वापर युग की शुरुआत हुई थी। (Akshay Tritiya Short story in hindi)

अक्षय तृतीय से संबन्धित कथा (Akshay Tritiya katha)

भविष्य पुराण के अनुसार, शाकल नगर में धर्मदास नामक वैश्य रहते था। धर्मदास, स्वभाव से बहुत ही आध्यात्मिक था, जो देवताओं व ब्राह्मणों का पूजन किया करता था। एक दिन धर्मदास को पता चला की अक्षय वैशाख शुक्ल की तृतीया तिथि अर्थात अक्षय तृतीय को देवताओं का पूजन व ब्राह्मणों को दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है।

यह जानकार धर्मदास  ने अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान कर, अपने पितरों का तर्पण किया। स्नान के बाद घर जाकर देवी- देवताओं का विधि- विधान से पूजन (Pujan) कर, ब्राह्मणों को अन्न, सत्तू, दही, चना, गेहूं, गुड़, ईख, खांड आदि का श्रद्धा- भाव से दान किया।

धर्मदास की पत्नी, उसे बार- बार मना करती लेकिन धर्मदास अक्षय तृतीया को दान जरूर करता था। कुछ समय बाद धर्मदास की मृत्यु हो गई। कुछ समय पश्चात उसका पुनर्जन्म द्वारका की कुशावती नगर के राजा के रूप में हुआ। कहा जाता है कि अपने पूर्व जन्म में किए गए दान के प्रभाव से ही धर्मदास को राजयोग मिला। अक्षय तृतीया से जुड़ी कई कथाएं लोगों के बीच प्रचलित हैं।

 अक्षय तृतीया के दिन पूजा के इन तरीकों से आप मनचाहा फल प्राप्त कर सकते हैं :-

गृहस्थ महिलाएं क्या करें
सुबह उत्तर की तरफ मुख कर भगवन विष्णु का ध्यान करें और सुबह सूर्य भगवान को अर्ध्य दें। साथ ही पीली धातु को मुख्य द्वार पर लगाएं और अपनी संतान के लिए पीली वस्तु का दान करें। वहीं मांगलिक महिलाऐं लाल शीशी में शहद भरें और लाल कपड़े में लपेट कर द्वादश भाग में रखें। 

दान :- पारिवारिक सुख के लिए सत्तू, दही, खीर का दान करें और सुन्दरकाण्ड का पाठ करें। वही 'ॐ नम नारायणय' की 5 माला का जाप करें।

व्यापारी वर्ग क्या करें
व्यापारी वर्ग एक कांसे के बर्तन में हरा कपड़ा लपेट कर पूजा स्थल पर रखें। कार्य स्थान गद्दी के ईशान कोण में रखें और चांदी के श्रीयंत्र, लक्चिमी-गणेश स्थापित करें। इसी के साथ 11 कौड़ियां स्थापित करें।

दान: व्यापारी लोग धन, तिल, लोहा, नारियल, नमक, काले या पीले वस्त्र का दान करें। इसके अलावा चांदी, स्फटिक या हीरा जड़ित भगवान की मूर्ति, कृष्णा का पेंडेंट खरीद सकते हैं। वही हीरे की अंगूठी, स्फटिक की माला खरीद सकते हैं। इसके अलावा क्रिस्टल या चांदी के बर्तन खरीद कर मंदिर में रखें और सफेद रेशम के वस्त्र धारण करें।

नौकरी पेशा लोग क्या करें
सुबह ब्रह्मा मुहूर्त में उठ कर स्नान करें और तांबे के बर्तन में शहद, हल्दी, लाल फल, लाल चंदन, गंगा जल डाल कर सूर्य को अर्ध्य दें। उसके बाद शिवलिंग पर पंचामृत से स्नान कराएं। फिर सूर्यनमस्कार करें।

भानु सप्तमी (Bhanu Saptmi)

भानु सप्तमी का महत्व, पूजन विधि, एवं प्राप्त होने वाले फल तथा सूर्य मंत्रों (Surya mantra) के बारे जानकारी 
भारत में, हिन्दू ग्रन्थों और मान्यताओं में भानु संपत्मी (Bhanu Saptmi) को बहुत ही शुभ दिन माना गया है। इसे आरोग्य सप्तमी (Aarogya saptmi), रथ सप्तमी (Rath saptmi), सूर्य सप्तमी (Surya saptmi), पुत्र सप्तमी (Putr saptmi) आदि नामों से भी जाना जाता है। इसी दिन सूर्य भगवान (Sun god) अपनी प्रकाश से पृथ्वी को प्रकाशवान किया था।  रविवार के दिन सप्तमी तिथि के संयोग से 'भानु सप्तमी' पर्व का सृजन होता है। इस दिन भगवान सूर्यनरायण के लिए व्रत रखते हुए उपासना करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। भानु सप्तमी (Bhanu saptmi) के दिन आदित्य हृदय और अन्य सूर्य स्त्रोत (Surya strot) का पाठ किया जाता है ताकि सूर्य भगवान (Surya Bhagvan) को प्रसन्न किया जा सके। ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपने वाले सूर्य 'भग' रक्तवर्ण हैं। यह सूर्यनरायण के सातवें विग्रह हैं और एश्वर्य रूप से पूरी सृष्टि में निवास करते हैं। सम्पूर्ण ऐश्वर्या, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य ये छह भग कहे जाते हैं। इन सबसे सम्पन्न को ही भगवान माना जाता है। अस्तु श्रीहरी भगवान विष्णु के नाम से जाने जाते हैं। 
क्या करना चाहिए

पौष मास के प्रत्येक रविवार को 'विष्णवे नमः' मंत्र से सूर्य की पुजा की जानी चाहिए। ताम्र के पात्र में शुद्ध जल भरकर उसमें लाल चन्दन, अक्षत, लाल रंग के फूल डाल कर सूर्यनरायण को अर्ध्य देना चाहिए। रविवार के दिन एक समय बिना नमक का भोजन सूर्यास्त के बाद करना चाहिए। सूर्य देव को पौष में तिल और चावल की खिचड़ी का भोग लगाने के साथ बिजौरा नींबू समर्पित करना चाहिए। पौराणिक ग्रन्थों और शास्त्रों में भानु सप्तमी (Bhanu saptmi) में जप, होम दान आदि करने पर सूर्य ग्रहण की तरह अनंत गुना फल प्राप्त होता है। सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। इनकी अर्चना से मनुष्य को सब रोगों से छुटकारा मिलता है। जो नित्य भक्ति और भाव से सूर्यनारायण को अर्ध्य देकर नमस्कार करता है, वह कभी भी अंधा, दरिद्र, दुःखी और शोकग्रस्त नहीं रहता।  

सूर्य मंत्र (Surya Mantra)

ॐ मित्राय नमः, ॐ रवये नमः ।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ भानवे नमः ।
ॐ खगाय नमः, ॐ पुष्णे नमः ।
ॐ हिरन्यायगर्भय नमः, ॐ मरीचे नमः ।
ॐ सवित्रे नमः, ॐ आर्काया नमः ।
ॐ आदिनाथाय नमः, ॐ भास्कराय नमः ।
ॐ श्री सवितसूर्यनारायण नमः।

बुद्ध पुर्णिमा (बैशाख पुर्णिमा) - Buddh Purnima (Baishakh Purnima)

बैसाख मास की पुर्णिमा (Baishakh maas ki purnima) को बुद्ध पुर्णिमा (Buddh Purnima) के रूप में मनाया जाता है। इसकी मान्यता यह है की बौद्ध धर्म (Buddhism) के संस्थापक भगवान बुद्ध (God Buddha) को बैशाख पुर्णिमा (Baishakh Purnima)  के दिन ही बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस पुर्णिमा को भारतवर्ष में बुद्ध पुर्णिमा के त्योहार (Buddh Purnima ka Tyohar)  के रूप में मनाया जाता है। दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी (Buddhist) इस दिन बोधगया और सारनाथ में प्रार्थना (Prayer) करने आते हैं। इस समय यहाँ बहुत ही हर्षोल्लास का महौल रहता है।
Buddha Purnima
हिन्दू धर्म के अनुयायी बुद्ध को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के नौवें अवतार के रूप में मानते हैं। अतः हिंदुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। दोनों ही धर्मों के लोग बुद्ध पुर्णिमा (Bauddh Purnima) को बहुत ही श्रद्धा के साथ मानते हैं। बौद्ध धर्मवलंबी (Buddhist) इस दिन श्वेत वस्त्र धरण करते हैं और बौद्ध मठों में एकत्रित होकर समूहिक प्रार्थना करते हैं। इस दिन ये व्रत-उपवास (Vrat-Upvas) रखते हैं और गरीबों को दान दिया करते हैं। 
वैसे तो प्रत्येक माह की पुर्णिमा (Purnima) श्री हरि विष्णु भगवान को समर्पित होती है। शास्त्रों में पुर्णिमा (Purnima) के दिन तीर्थस्थलों में गंगा स्नान (Ganga snan) विशेष महत्व बताया गया है। बैशाख पुर्णिमा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है की इस पुर्णिमा को भाष्कर देव अपनी उच्च राशि मेष में होते हैं, चंद्रमा भी उच्च राशि तुला में। शास्त्रों में पूरे बैशाख में गंगा स्नान (Ganga asnan) का महत्व बताया गया है, जिसमें पुर्णिमा स्नान (Purnima asnan) सबसे फलदायी है। 

गुरु पुर्णिमा - Guru Purnima

गुरुपूर्णिमा (Guru Puja or Guru Worship), गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा से नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। गुरु के लिए पुर्णिमा से बढ़ कर और कोई तिथि नहीं। गुरु पूर्ण है और पूर्ण से ही पूर्णत्व की प्राप्ति होती है। गुरु शिष्यों के अंतःकरण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें प्रकाशित करते हैं। अतः इस दिन हमें गुरु के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। गुरुकृपा असंभव को संभव बना कर शिष्यों के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है। गुरु, ज्ञान का संचार करती है। गुरु, जीव और परमात्मा (God) के बीच एक कड़ी का काम करता है। गुरु शिष्य के आत्मबल को जगाने का काम करता है। गुरु शिष्य को अंतःशक्ति से ही परिचित नहीं कराता, उसे जागृत एवं विकसित करने के हर संभव उपाय भी बताता है। गुरु और परमात्मा में कोई भेद नहीं है और गुरु ज्ञान स्वरूप ही हैं। कबीर साहब ने गुरु दर्शन की महत्ता को लेकर कहा है की संत या गुरु का दर्शन एक दिन में दो बार करना चाहिए। 
गुरु पुर्णिमा मंत्र
आषाढ़ मास की पुर्णिमा को गुरु पुर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पुजा का विधान है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधू-संत एक ही स्थान पर रह कर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रखण्ड विद्वान थे और उन्होने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पुर्णिमा को व्यास पुर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
शास्त्रों में गुरु का अर्थ बताया गया है - अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है - उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है की वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन - शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति कि आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी, बल्कि सद्गुरु कि कृपा से ईश्वर (God) का साक्षात्कार भी संभव है। (Religious Fast and Festivals, Hindu vrat ewam tyohar)

श्री गणेश चतुर्थी व्रत - Shree Ganesh Chaturthi Vrat in hindi

श्री गणेश चतुर्थी व्रत हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री गणेश (Lord Ganesha) कई रूपों में अवतार लेकर प्राणीजनों के दुखों को दूर करते हैं। श्री गणेश मंगलमूर्ति है, सभी देवों में सबसे पहले श्री गणेश का पूजन (Warship of Shree Ganesha) किया जाता है। श्री गणेश शुभता के प्रतिक हैं। पंचतत्वों मै श्री गणेश को जल का स्थान दिया गया है। बिना गणेश का पूजन किए बिना कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती है। विनायक भगवान का एक नाम अष्टविनायक भी है। इनका पूजन व दर्शन का विशेष महत्व है। इनके अस्त्रों में अंकुश एवं पाश है। चारों दिशाओं में सर्वव्यापाकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं है। उनका लंबोदर रूप समस्त सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक गृह्यशक्ति तथा आंखें सुक्ष्म दृष्टि की सूचक है। उनकी लंबी सूड महाबुद्धित्व का प्रतीक है। श्री गणेश चतुर्थी के दिन श्री विघ्नहर्ता की पूजा अर्चना और व्रत से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते हैं। 
श्री गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व (Importance of Shri Ganesh Chaturthi Vrat in hindi)
श्री गणेश चतुर्थी का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है उस की बुद्धि और ऋषि सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं  का भी नाश होता है। सभी तिथियों में चतुर्थी तिथि श्री गणेश को सबसे अधिक प्रिया होती है। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन वर्जित होता है। इस दिन चंद्र दर्शन करने से व्यक्ति पर झूठे कलंक लगने की आशंका रहती है। इसलिए इस उपवास को करने वाले व्यक्ति को अर्ध्य देते समय चंद्र की ओर ना देखते हुए नजरें नीची कर अर्ध्य देना चाहिए। 

श्री गणेश चतुर्थी पूजन 
संतान की कुशलता का कामना हुआ लंबी आयु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। व्रत का आरम्भ तारों की छांव में करना चाहिए। व्रतधारी को पूरा दिन अन्न जल ग्रहण किए बिना मंदिरों में पूजा अर्चना करनी चाहिए और बच्चों की दीर्घायु के लिए कामना करनी चाहिए। इसके बाद संध्या समय पूजा की तैयारी के लिए गुड़, तिल, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए। व्रत में यह सामग्री विशेष महत्व रखती है। यह व्रत दुःख-संकटों को दूर करने तथा सभी मनोकामनाएं पूरी करने वाला है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत कर गणेशजी की पूजा करती है। व्रतधारी को कथा सुनने के बाद देर शाम चंद्रोदय के समय तिल, गुड़ आदि का अर्ध्य देकर भगवान चंद्र देव से व्रत की सफलता की कामना करनी चाहिए। (Religious Fast and Festivals, Hindu vrat ewam Tyohar)