कार्डियक अरेस्ट और हार्ट अटैक में क्या अंतर है (Difference between Cardiac arrest and Heart attack in hindi)

अक्सर लोग कार्डियक अरेस्ट (Cardiac Arrest) और हार्ट अटैक (Heart Attack) को एक ही अवस्था समझ लेते हैं पर ऐसा नहीं है। दोनों ही अवस्थाएं अलग-अलग होती है। प्रस्तुत है कार्डियक अरेस्ट और हार्ट अटैक के अंतर (Difference between Cardiac arrest and Heart attack in hindi)।
क्या है कार्डियक अरेस्ट (What is Cardiac arrest in hindi)

शरीर में किसी समस्या के कारण जब हार्ट अचानक काम करना बंद कर देता है तो इसे कार्डियक अरेस्ट कहते हैं। यह मुख्या रूप से एक इलेक्ट्रिकल समस्या (Electrical problem) है जिससे दिल का धड़कन (Heart beat) अनियमित हो जाती है और हार्ट खून को अच्छी तरह पम्प नहीं कर पता है। परिणामस्वरूप, ब्लड शारीर के महत्वपूर्ण अंग जैसे ब्रेन, लंग आदि तक अच्छी तरह नहीं पहुँच पता है।

कार्डियक अरेस्ट में क्या होता है?

इसमें अचानक ही व्यक्ति बेहोस हो जाता है और तुरंत ही इलाज (treatment) ना हो तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। अतः इस अवस्था में व्यक्ति का तुरंत ट्रीटमेंट शुरू होना आवश्यक है।

क्या करना चाहिए?

कार्डियक अरेस्ट से लोगों को बचाया जा सकता है यदि मरीज को एक मिनट के अंदर (within a minute) ट्रीटमेंट उपलब्ध करा दिया जाये। ऐसी अवस्था में मरीज को तुरंत सीपीआर (CPR) देना चाहिए और एंबुलेंस को बुला लेना चाहिए। यदि ऑटोमेटेड एक्सटर्नल डिफाइब्रिलेटर है, तो उसे भी जल्द-से-जल्द देना चाहिए। यदि दो लोग मौजूद हैं, तो एक एंबुलेंस को कॉल करे और दूसरा सीपीआर उपलब्ध कराये।

क्या है हार्ट अटैक? (What is Heart attack in hindi?)

हार्ट अटैक तब होता है जब रक्त संचार (Blood circulation) में अवरोध आती है।  अवरुद्ध आर्टरी के कारण ह्रदय के किसी हिस्से में ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं जा पाता है। यदि ब्लॉकेज को जल्द नहीं खोला जाये, तो हार्ट का वह हिस्सा ख़राब हो सकता है या आर्टरी नष्ट हो सकती है। 

हार्ट अटैक में क्या होता है?

इसके लक्षण मरीज में अचानक उभरते हैं, जिससे छाती या शरीर के ऊपरी हिस्से में परेशानी शुरू होती है। मरीज को सांस फूलने और उल्टी जैसी शिकायत शुरू होती है।  कभी-कभी इसके लक्षण धीरे-धीरे दिखते हैं और हार्ट अटैक से घंटे भर, एक दिन या हफ्ते भर पहले से दिखने लगते हैं। इसमें हृदय धड़कना (Heart Beat) बंद नहीं होता है। परंतु इसमें भी इलाज में जितनी देरी होती है, हार्ट उतना ही डैमेज होता है।

(महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण पुरुषों से भिन्न हो सकते हैं।)

क्या करना चाहिए?
यदि जरा भी हार्ट अटैक के लक्षण दिखें, तो बिना देरी किये एमरजेंसी एंबुलेंस को फोन करें या मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएं। इसमें एक-एक मिनट कीमती होता है। एमरजेंसी के स्टाफ आते के साथ ही उपचार शुरू कर देते हैं। उसके बाद एंबुलेंस में हॉस्पिटल ले जाते है।     

इन दोनों के बीच क्या संबंद है?

अधिकतर हार्ट अटैक के साथ कार्डियक अरेस्ट के लक्षण नहीं होते हैं। लेकिन अधिकतर कार्डियक अरेस्ट हार्ट अटैक के साथ हो सकता है। हार्ट की अनियमित धड़कन (Irregular heartbeat भी इसका प्रमुख कारण है।
Cardiac arrest and Heart attack

आम का पन्ना बनाने की सरल विधि (Aam ka Panna Indian Recipe in hindi)

कच्चे आम का शर्बत बनाने की सरल विधि (Kachche Aam ka sharbat Indian Recipe in hindi)

गर्मियों में जब दिन का तापमान बहुत बढ़ जाता है तथा गरम हवा चलने लगती है तो यह हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक होता है। हमारे शरीर में पानी की कमी होने लगती है और हम लू के चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में हमे आम का पन्ना का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। आम का पन्ना हमारे शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और डीहाइड्रेशन होने की संभावना कम हो जाती है। इसे बनाने की विधि बहुत ही सरल है जिसे हर कोई अपने घर में बना सकते हैं। 
कच्चा आम का पन्ना
सामग्री: कच्चे आम (green mango) - 03, काला नमक (Black salt) - 02 चम्मच, भुना हुआ जीरा पाउडर (Cumin Powder) - 02 चम्मच, काली मिर्च पाउडर (Black pepper powder) - 1/4 छोटा चम्मच, पुदीना पत्ता (Mint leaf) - 15-20 पत्तियाँ, चीनी (Sugar) - 100-150 ग्राम 

बनाने की विधि:


  • कच्चे आम को उबाल लें अथवा यदि आपके घर में लकड़ी या कोयले का चूल्हा है तो कच्चे आम को थोड़ा जला कर भून लें। 
  • अब उबले हुए अथवा आग में भुने हुए आम से उसका गुददा (गूना) निकाल लें।
  • गूदे में शक्कर, काला नमक और पुदीना मिला कर मिक्सर में महीन पीस लें। पिसे हुए मिश्रण को छान लें और इसमें काली मिर्च पाउडर और जीरा पाउडर तथा आवश्यकता अनुसार पानी मिला लें। इस तरह आपका कच्चे आम का पना (Kachche aam ka panna / sharbat) तैयार है।   

गर्मी के मौसम में यदि आपको बाहर धूप में जाना पड़े तो बाहर निकलने से पहले इसका सेवन कर ही बाहर निकलें। 

गर्मी में लू लग जाए तो क्या करें- सरल घरेलू उपाय

गर्मी के मौसम में जैसे-जैसे तापमान बढ़ने लगता है वातावरण में गरम तेज हवा (hot wind) चलने लगती है। परंतु इस बढ़े तापमान में भी हमे अपने घरेलू एवं कार्यालय के कार्यों के लिए अक्सर बाहर जाना पड़ता है। बच्चों की स्कूल से छुट्टियाँ दोपहर में ही होती है तथा महिलाओं को भी दोपहर में ही अपने बच्चों को स्कूल से लेने जाना पड़ता है। जिससे हम सभों को लू लगने (Loo lagne) की संभावनाएं काफी बढ़ जाती है। अगर गर्मी के मौसम में हम कुछ चीजों का ध्यान नहीं दे तो अवश्य ही गरम लू (hot wind) का शिकार हो जाएंगे। 
लू से बचने के उपाय
कच्चा आम (Kachcha aam) गरमी में होनेवाली कई समस्याओं से छुटकारा दिलाने में सक्षम है। यह डीहाइड्रेशन को दूर कर लू से बचाता है। इसमें अनेक पोषक तत्व होते हैं, जो पेट रोगों को दूर करते हैं और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं। यह फल अपच पर भी लाभ पहुंचाता है। कच्चे आम में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है, जिस कारण (Raw mango) इसके सेवन से इम्यून सिस्टम मजबूत बनता है। इसके अलावा इसमें पेक्टिन भी काफी अधिक मात्रा में होता है, जो पथरी को बनने से रोकता है। इसमें विटामिन बी भी होता है, जो स्वस्थ रहने में मददगार है। यह शरीर से अवशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालता है।

गर्मी में लू लग जाए तो क्या करें

गर्मी के दिनों में हर जगह कच्चा आम (Kachcha aam) आसानी से मिल जाता है। जब भी आप सब्जी खरीदने जाएँ, कच्चा आम (green mango) अवश्य खरीदें। गर्मी के दिनों में आपके रसोई में कच्चा आम का होना अति आवश्यक है। गर्मी में यदि आपके परिवार के किसी भी सदस्य को लू लग जाए तो उसे कच्चे आम का पन्ना (Kachche aam ka panna) जिसे कच्चे आम का शर्बत (Kachche aam ka sharbat) भी कहा जाता है, पिलाना चाहिए। इसके साथ कच्चे आम को या तो आग में जला लें अथवा उबाल कर उसके गुददे (Aam ke gudde) निकाल लें। अब इस गुददे का लेप लू लगे व्यक्ति के शरीर में लगाएँ। इससे व्यक्ति को तुरंत आराम मिलता है।

कच्चे आम के कई फायदे हैं 

वजन रखता है नियंत्रित : यदि आप वजन घटाना (weight loss) चाहते हैं, तो इसे खाना आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। इसमें कैलोरी काफी कम मात्रा में होती है। इसकी तुलना में पके आमों (ripe mango) में कैलोरी काफी अधिक होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पके आम में शूगर की मात्रा काफी अधिक होती है।

पेट रोग : कच्चा आम पेट की समस्याओं (pet ki samasya) में भी काफी लाभ पहुंचाता है। कच्चे कटे हुए आम को नमक और शहद के साथ मिला कर खाने से गरमी में होनेवाले डायरिया, डिसेंट्री, बवासीर, अपच और कब्ज आदि कई बीमारियों से राहत मिलती है।

ब्लड डिसऑर्डर : ताजे कच्चे आम रक्त से संबंधित समस्याओं को भी दूर करने में सहायक हैं। यह नसों को लचीला बनाता है और खून का निर्माण भी करता है। आम के सेवन से भोजन के पोषक तत्व और आयरन आदि आसानी से अवशोषित हो जाते हैं। यह एनिमिया को दूर करता है और टीबी, हैजा आदि रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।

कोलेस्ट्रॉल लेवल : रोज कुछ मात्रा में कच्चा आम खाने से कोलेस्ट्रॉल भी कंट्रोल में रहता है। इसमें विटामिन सी, पेक्टिन और फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं। ये खून में बैड कोलेस्ट्रॉल या एलडीएल को बढ़ने से रोकते हैं और गुड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को बढ़ाते हैं। इसमें पोटैशियम भी होता है, जो नवर्स में ब्लड फ्लो को बढ़ाता है, जिससे यह धड़कन और ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल में रखता है। इस कारण हार्ट अटैक और स्ट्रोल का खतरा भी कम होता है।

आंखों के लिए फायदेमंद : इसमें विटामिन ए भी भरपूर मात्रा में होता है, जो दृष्टि को बेहतर बनाता है और नाइट ब्लाइंडनेस, कैटैरेक्ट, मेक्युलर डीजेनरेशन अरु ड्राईआइ की समस्या को दूर करता है।  

क्या बरतें सावधानी
जहां इसके इतने सारे फायदे हैं वहीं इसे ज्यादा खाने से नुकसान भी हो सकता है। कभी भी एक या दो कच्चे आम से अधिक नहीं खाना चाहिए। अधिक आम खाने से पेट की समस्याएं दूर होने की बजाय और बढ़ सकती हैं। इसे चटनी के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं।

शिशु के लिए माँ के स्तन का दूध बढ़ने के घरेलू उपाय

एक माँ का अपने बच्चे को स्तनपान (Breast feeding) कराना संसार का सबसे बड़ा सुख होता है। माँ के स्तन (stan) का पहला गाढ़ा दूध बच्चे के लिए अमृत के समान होता है। माँ के स्तन से निकालने वाला पहला गढ़ा दूध (milk) बच्चे को कई तरह के बीमारियों से लड़ने की शक्ति (Immunity power) देता है। परंतु यदि माता को पता चले कि उनके शरीर में बच्चे (child) के लिए पर्याप्त मात्रा में दूध (doodh) का निर्माण नहीं हो पा रहा है तो उनका चिंतित होना स्वाभाविक है। कई बार कुछ विशेष कारणों से माँ के स्तन में दूध (Breast milk of mother) की कमी हो जाती है जिससे उसके शिशु को पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता है। इससे शिशु के समुचित शारीरिक विकास में बाधा हो सकती है।
जन्म के बाद एक घंटे तक नवजात शिशु (New born baby) में स्तनपान (stanpaan) करने की तीव्र इच्छा होती है। इसलिए जन्म के बाद जितनी जल्दी मां, बच्चे को दूध (bachche ka doodh) पिलाना शुरू कर दे, उतना अच्छा है। आमतौर पर जन्म के 45 मिनट के अन्दर स्वस्थ बच्चों को स्तनपान (stanpan) शुरू करवा देना चाहिए।
How-to-increase-breast-milk-production
पर एक माँ यह कैसे पता कर सकती है की उनके शरीर में दूध का निर्माण कम हो रहा है। नीचे कुछ संकेत दिये जा रहे जिससे आप इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं की आपके स्तन में पर्याप्त दूध का निर्माण (milk production) हो रहा है या नहीं:-

1. आपका शिशु (shishu) स्तनपान समाप्त करने के बाद स्वयं ही स्तन से हट जाता है या नहीं।
2. आपका शिशु दिन में छह से आठ बार स्तनपान कर रहा है और स्तनपान के बाद वह संतुष्ट दिखता है या नहीं। 
3. आपका शिशु 24 घंटे में कम से कम सात बार पेशाब कर रहा है या नहीं।
4. स्तनपान कराना आरामदायक है और इस दौरान आपको कोई दर्द महसूस होता है या नहीं।
5. स्तनपान कराने के बाद आपके स्तन खाली और मुलायम लगते हैं या नहीं।
6. स्तनपान करते हुए आप शिशु को दूध निगलते हुए देख व सुन सकती हैं या नहीं।
अगर उपरोक्त संकेत नहीं दिखाई देती है तो आप के स्तन में बच्चे के लिए पर्याप्त मात्र में दूध का निर्माण नहीं हो रहा है। प्रस्तुत है माँ के दूध को बढ़ाने के कुछ घरेलू उपाय (Home remedies) :-

मेथी के बीज - पुराने समय से ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी माँ के दूध की कमी को दूर करने के लिए मेथी के बीजों का सेवन किया जा रहा है। मेथी दूध बनाने वाली ग्रंथियों के लिए एक अच्छी प्रेरक मानी जाती है। मेथी मेंफाइटोएस्ट्रोजन नामक पदार्थ पाया जाता है, जो कि स्तन के दूध (Breast milk) के निर्माण को बढ़ाने का काम करता है। मेथी में ओमेगा-3 वसा जैसे विटामिन भी पाये जाते है जो माँ के दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए अच्छे होते हैं। यह वसा आपके शिशु के मस्तिष्क के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसके साथ-साथ मेथी के साग में बीटाकैरोटीन, बी विटामिन, आयरन और कैल्श्यिम भरपूर मात्रा में होते है। 

एक चम्मच को एक कप पानी में रात भर भिगोकर रखें। भीगी मेथी के पानी को दानों के साथ ही कुछ मिनट उबालें। उसके बाद एक कप में इस पानी को छान लें और चाय की तरह रोज सुबह पीएं।

शिशु के माता को मेथी को आटे में मिलाकर पराँठे, पूरी या रोटी बना कर खिलना चाहिए। 

दिन में तीन बार मेथी के बीज की तीन कैप्सूल शुरूआत के 10 दिन तक ले सकती हैं। उसके बाद अगले दस दिन मेथी के बीज दो कैप्सूल दिन में तीन बार लें। इसके बाद एक कैप्सूल 10 दिन तक दिन में तीन बार लें।

मेवे : माना जाता है कि बादाम और काजू स्तन दूध के उत्पादन को बढ़ावा देते हैं। इनमें भरपूर मात्रा में कैलोरी, विटामिन और खनिज होते हैं, जिससे ये नई माँ को ऊर्जा व पोषक तत्व प्रदान करते हैं। इन्हें स्नैक्स के तौर पर भी खाया जा सकता है और ये हर जगह आसानी से उपलब्ध होते हैं। 

आप इन्हें दूध में मिलाकर स्वादिष्ट बादाम दूध या काजू दूध बना सकती हैं। स्तनपान कराने वाली माँ के लिए पंजीरी, लड्डू और हलवे जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ बनाने में मेवों का इस्तेमाल किया जाता है।

सौंफ : सौंफ भी स्तन दूध की आपूर्ति बढ़ाने का एक अन्य पारंपरिक उपाय है। शिशु को गैस और पेट दर्द की परेशानी से बचाने के लिए भी नई माँ को सौंफ दी जाती है। इसके पीछे तर्क यह है कि पेट में गड़बड़ या पाचन में सहायता के लिए वयस्क लोग सौंफ का इस्तेमाल करते हैं, इसलिए स्तनदूध के जरिये शिशु तक पहुंचाने के लिए यह नई माँ को दी जाती है। हालांकि, इन दोनों धारणाओं के समर्थन के लिए कोई शोध उपलब्ध नहीं है, मगर बहुत सी माताएं मानती हैं कि सौंफ से उन्हें या उनके शिशु को फायदा मिला है।

एक कप गर्म पानी में एक चम्मच सौंफ डालें। कप को ढककर तीस मिनट के लिए रख दें। उसके बाद उस गर्म पानी को छानकर उसे चाय की तरह पीएं। इसे दिन में दो बार एक महीने तक पीएं।

इसके अलावा में थोड़ा सा जीरा और मिश्री मिलाकर इन तीनों का महीन पाउडर बना लें। इस मिश्रण को दो या एक हफ्ते तक दिन में तीन बार एक कप दूध के साथ लें। 

दालचीनी : आयुर्वेद के अनुसार दालचीनी ब्रेस्ट मिल्क के उत्पादन को बढ़ाने का काम करती है। नई-नई मां अगर करती है तो इससे ब्रेस्ट मिल्क का स्वाद अच्छा होता है, जो बच्चे को भी पसंद आता है।

आधा चम्मच शहद के साथ चुटकी भर मिलाएं। इसे एक कप गर्म दूध में मिलाएं। दो महीने तक इस पेय पदार्थ को रात में सोने से पहले पीएं।

जीरा : दूध की आपूर्ति बढ़ाने के साथ-साथ माना जाता है कि जीरा के फायदे, पाचन क्रिया में सुधार, कब्ज, अम्लता (एसिडिटी) और पेट में फुलाव आदि समस्याओं में भी मिलता है। जीरा बहुत से भारतीय व्यंजनों का अभिन्न अंग है और यह कैल्शियम और राइबोफ्लेविन (एक बी विटामिन) का स्त्रोत है।

एक चम्मच जीरा पाउडर को एक चम्मच चीनी के साथ मिलाएं और रोज रात को सोने से पहले इस मिश्रण को एक गिलास दूध में मिलाकर पीएं।

दो चम्मच जीरे को आधे कप पानी के साथ उबाल लें। उसके बाद उसे छान लें, अब उस पानी में एक चम्मच शहद और आधा कप दूध मिलाकर पीएं।

लहसुन : लहसुन में बहुत से रोगनिवारक गुण पाए जाते हैं। यह प्रतिरक्षण प्रणाली को फायदा पहुंचाता है और दिल की बीमारियों से बचाता है। इसके साथ-साथ लहसुन स्तन दूध आपूर्ति को बढ़ाने में भी सहायक माना गया है। हालांकि, इस बात की प्रमाणिकता के लिए कोई ज्यादा शोध उपलब्ध नहीं है।

तुलसी : तुलसी की चाय स्तनपान कराने वाली महिलाओं का एक पारंपरिक पेय है। किसी शोध में यह नहीं बताया गया कि तुलसी स्तन दूध उत्पादन बढ़ाने में सहायक है, परंतु माना यह जाता है कि इसका एक शांतिदायक प्रभाव होता है। यह मल प्रक्रिया को सुधारती है और स्वस्थ खाने की इच्छा को बढ़ावा देती है। 

हरी पत्तेदार सब्जियां : हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, मेथी, सरसों का साग और बथुआ आदि आयरन, कैल्श्यिम और फोलेट जैस खनिजों का बेहतरीन स्त्रोत हैं। इनमें बीटाकैरोटीन (विटामिन ए) का एक रूप और राइबोफ्लेविन जैसे विटामिन भी भरपूर मात्रा में होते हैं। इन्हें भी स्तन दूध बढ़ाने में सहायक माना जाता है।

लौकी व तोरी जैसी सब्जियां : पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि लौकी, टिंडा और तोरी जैसी एक ही वर्ग की सब्जियां स्तन दूध की आपूर्ति सुधारने में मदद करती हैं। ये सभी सब्जियां न केवल पौष्टिक एवं कम कैलोरी वाली हैं, बल्कि ये आसानी से पच भी जाती हैं।

तिल के बीज : तिल के बीज कैल्शियम का एक गैर डेयरी स्त्रोत है। स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए कैल्शियम एक जरुरी पोषक तत्व है। यह आपके शिशु के विकास के साथ-साथ आपके स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। शायद इसलिए ही यह स्तनपान कराने वाली माताओं के आहार में शामिल की जाने वाली सदियों पुरानी सामग्री है।आप तिल के लड्डू खा सकती हैं या फिर काले तिल को पूरी, खिचड़ी, बिरयानी और दाल के व्यंजनों में डाल सकती हैं। कुछ माएं गज्जक व रेवड़ी में सफेद तिल इस्तेमाल करना पसंद करती हैं।

मुनक्काः माँ को शिशु के जन्म देने के पश्चात गाय के दूध में 10-12 मुनक्के उबालकर दिन में तीन बार पिलाने से दूध के निर्माण में बृद्धि  होती है।

अंगूरः माँ के दूध में बृद्धि  के लिए अंगूर का सेवन अमृत की तरह प्रभावशाली है। ताजा अंगूर नित्य खाने से स्तनों में काफी मात्र में दूध उतरने लगता है।

पपीताः शरीर में रक्त की कमी से होना आम बात है। इस स्थिति में डाल का पका हुआ उत्तम औषधि है। पपीता खाली पेट लगातार 20 दिन तक खाना चाहिए। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होगी।

गाजरः भोजन के साथ गाजर के रस व कच्चे प्याज के सेवन से भी शिशु की माँ में दूध का निर्माण अधिक  होता है।

मूंगफली: दूध के साथ मूंगफली के सेवन से माताओं के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।

देश के पाँच प्रसिद्ध राष्ट्रिय उद्यान (National Park) जो विश्व धरोहर में शामिल है

उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक हमारा देश प्रकृतिक सौन्दर्यों से भरा-पूरा है। हमारा देश जितना ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए हैं उतना ही प्राकृतिक विरासत भी इसका अभिन्न अंग है। इन प्रकृतिक विरसतों में कई राष्ट्रिय उद्यान (National Park) हैं जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) ने भी विश्व धरोवर की सूची में शामिल किया है। 
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान (Great Himalayan National Park - GHNP)
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान (जी एच एन पी) हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है। युनेस्को के विश्व धरोहर समिति ने सन 2014 ई० में ग्रेट हिमालियन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र को विश्व धरोहर (World Heritage) सूची में सम्मिलित किया है। 1984 में बनाए गए इस पार्क को 1919 में राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया था। यह संरक्षण क्षेत्र कुल 1171 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमें ग्रेट हिमालियन राष्ट्रिय उद्यान के साथ-साथ पश्चमी सीमा से 5 किलोमीटर तक के क्षेत्र को प्राणिक्षेत्र के रूप में रखा गया है जिसके अंतर्गत लगभग 160 गाँव आते है जिसमें 15000 से 16000 गरीब लोग रहते हैं जो अपनी जीविका इसी जंगल से चलाते है। इसके अलावा शगवार, शक्ति एवं मरोर गाँव को मिला कर सैंज वन्यजीव अभयारण्य (Sainj Wildlife Sanctuary) का विकास किया गया है तथा इसके दक्षिण में तीर्थन वन्यजीव अभयारण्य (Tirthan Wildlife Sanctuary) बनाया गया है। इस में 25 से अधिक प्रकार के वन, 800 प्रकार के पौधे और 180 से अधिक पक्षी प्रजातियां का वास है। हिमालय के भूरे भालू के क्षेत्र वाला या नेशनल पार्क कुल्लू जिले में 620 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और यहां सम शीतोष्ण एवं एलपाइन वन पाए जाते हैं। साथ ही यहां पश्चिमी हिमालय की अनेक महत्वपूर्ण वन्यजीव प्रजातियां पाई जाती है जैसे मस्क, डियर, ब्राउन बियर, गोराल, थार, चीता, बर्फानी चीता आदि।

सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान (Sundervan National Park)
सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान
भारत का यह राष्ट्रीय उद्यान बंगाल के 24 परगना जिले के दक्षिण - पूर्वी भाग में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। एक सदाबहार पौधा जिसका नाम है 'सुंदरी' जिसके नाम पर ही इसका नाम सुंदरवन पड़ा है। यह बाघ संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्पीयर रिजर्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र सदाबहार वनों से घिरा हुआ है और यह रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। इस वन में पक्षियों, सरीसृप तथा रीढ़विहीन की कई प्रजातियां पाई जाती है। इसके साथ ही यहां खारे पानी का मगरमच्छ भी मिलते हैं। वर्तमान सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान, 1973 में मूल सुंदरवन बाघ रिजर्व क्षेत्र का कोर क्षेत्र तथा 1977 में वन्य जीवन अभ्यारण्य घोषित किया हुआ था। 4 मई 1984 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह सफेद बाघ का संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park)
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भारत की राजस्थान में स्थित एक विख्यात पक्षीअभ्यारण है जो दिल्ली से लगभग 190 किलोमीटर दूर स्थित है। इस उद्यान को पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इसमें लगभग 380 निवासी एवं प्रवासी प्रजाति के पक्षियाँ जिनमे सामान्य एवं हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त हो रहे पक्षी पाए जाते हैं। सर्दियों के मौसम में साइबेरियन सारस यहाँ आते हैं। अब यह एक बहुत बड़ा पर्यटन स्थल और केंद्र बन गया है। जहां पर बहुतायत में पक्षीविज्ञानी शीत ऋतु में आते हैं। इस उद्यान को 1971 में संरक्षित पक्षी अभ्यारन्य घोषित किया गया था और बाद में 1950 ई में युनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोवर घोषित किया गया है। इसका निर्माण 250 वर्ष पुराना है इसका नाम यहां के प्रसिद्ध शिव मंदिर (केवलादेव) के नाम पर रखा गया है।

मानस राष्ट्रीय उद्यान (Manas National Park)
मानस राष्ट्रीय उद्यान भारत के असम (Assam) राज्य में स्थित है। यह हमारे देश का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान है। यह उद्यान एक सींग का गैंडा (भारतीय गैंडा) और बारासिंघा के लिए प्रसिद्ध है। इसके अंतर्गत 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत स्थापित 840.04 वर्ग किलोमीटर का इलाका मानस व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है। यह भूटान की तराई में बोडो क्षेत्रीय परिषद की देखरेख में 950 वर्ग किलोमीटर से भी बड़े इलाके में फैला है।  इसे 1985 में विश्व धरोवर स्थल का दर्जा दिया गया था। लेकिन 80 के दशक के अंत और 90 के दशक के शुरू में बोडो विद्रोही गतिविधियों के कारण इस उद्यान को 1992 में विश्व धरोवर स्थल सूची से हटा दिया गया था। जून 2011 में यह पुनः यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल कर लिया गया है।

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान (Nandadevi National Park)
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान भारत की उत्तराखंड (Uttrakhand) राज्य में नंदा देवी पर्वत के आसपास का इलाका है। यह 630.33 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसको 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यहां फूलों की घाटी और राष्ट्रीय उद्यान को मिलाकर 1988 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया। फूलों की घाटी और राष्ट्रीय उद्यान के साथ मिलकर नंदा देवी बायोस्फेयर रिजर्व बनता है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2236 वर्ग किलोमीटर है। यह रिजर्व यूनेस्को की विश्व के बायोस्फेर रिजर्व की सूची में 2004 से अंकित है। यह चारों ओर से 6000 मीटर से 7500 मीटर ऊंची चोटीयों से घिरी हुई है। समुद्र की सतह से इसकी ऊंचाई 3500 मीटर है।

दान की महिमा - प्रेरक कथा

बहुत समय पहले एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल दिये। उसे किसी ने ऐसा कहा था की भिक्षा मांगने के लिए निकलते समय भिखारी झोली खाली नहीं रखते। थैली देख कर दूसरों को भी लगता है की इसे पहले से ही किसी ने कुछ दे रखा है। 

पुर्णिमा का दिन था भिखारी सोच रहा था की आज अगर ईश्वर की कृपा होगी, तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती हुई दिखाई दी। यह देख कर भिखारी काफी खुश हो गया। उसने सोचा कि राजा के दर्शन और उनसे मिलनेवाले दान से उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाएगी। जैसे-जैसे राजा कि सवारी निकट आती गयी, भिखारी कि कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गयी। जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रुकवाया और उतर कर उसके निकट पहुंचे। भिखारी कि तो मानो सांसें ही रुकने लगी, लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उल्टे अपनी चादर उस भिखारी के सामने फैला दी और राहत कोष के लिए भीख कि याचना करने लगा। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। भिखारी ने आधे मन से अपनी झोली में हाथ डाला। फिर उसके मन में एक बात आयी कि देने से कोई चीज कभी घटती नहीं और लेनेवाले से देनेवाला बड़ा होता है। जैसे-तैसे करके उसने दो दाने जौ के निकले और राजा कि चादर में डाल दिये। हालांकि उस दिन भिखारी को अधिक भीख मिली, लेकिन अपनी झोली में से दो दाने जौ के देने का मलाल उसे सारा दिन रहा। शाम को जब वह घर लौटा, तो दुखी मन से उसने अपनी झोली पलटी, तो उसके आश्चर्य का सीमा न रही। जो जौ वह अपने साथ झोली में ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गये थे। एकाएक उसे समझ में आया कि यह दान कि महिमा के कारण ही हुआ। वह पछताया कि काश, उसने राजा को और अधिक जौ दिये होते, लेकिन दे नहीं सका, क्योंकि उसकी देने कि आदत नहीं थी। आगे से भिखारी रोज जितना भीख में मांगता, उसका थोड़ा हिस्सा दान कर देता। 
Daan ki Mahima - Motivational story in hindi, Short story in hindi, Laghu Katha, Prerak kahani bachchon ke liye, लघु कथा, प्रेरक कथा।  

दानव का अन्त - प्रेरक कथा

जंगल के पास एक गाँव था। गाँव के किनारे से एक नदी बहती थी। नदी पर एक पूल था। उस पूल के नीचे एक दानव रहता था। जंगल में तीन बकरे चर रहे थे। सबसे बड़े बकरे ने सबसे छोटे बकरे से कहा - नदी के पार गाँव के खेतों में खूब फल-सब्जी उगे हुए हैं। उनकी महक यहाँ तक आ रही है। जा पुल पर से नदी पार करके उन्हें खा आ। छोटा बकरा पुल पार करने लगा। तभी दानव पुल के ऊपर चढ़ आया और अपने बड़े-बड़े दांत और नाखून दिखा कर नन्हें बकरे को डराते हुए बोला - मुझे बड़ी भूख लगी है। डर से कांपते हुए नन्हा बकरा बोला - मुझे मत खाओ दानव, मैं तो बहुत छोटा हूँ। मेरे दो बड़े दोस्त हैं। वे अभी इसी ओर आनेवाले हैं। उन्हें खा लो। दानव बड़े बकरों को खाने के लालच में आ गया। बोला - अच्छा तू जा। मैं बड़े बकरों का इंतजार करूंगा। नन्हा बकरा वहाँ से भागा और गाँव के खेत में पहुँच कर ताजा फल-सब्जी खाने लगा। दूसरा बकरा भी यही कह कर बच निकला। अब बड़ा बकरा पुल पार करने लगा। वह खूब मोटा और तगड़ा था। उसके सींग लंबे और खूब नुकीले थे। जब वह पुल के बीच पहुंचा, तो दानव एक बार फिर पुल के ऊपर चढ़ आया और उसे डराते हुए बोला - मुझे बड़ी भूख लगी है। मैं तुझे अभी खा जाऊंगा, पर बड़ा बकरा जरा भी नहीं डरा। उसने अपने अगले पाँवों से जमीन कुरेदते हुए हुंकार भरी और सिर नीचा करके दानव के पेट पर अपने सींगों से ज़ोर से प्रहार किया। दानव दूर नदी में जा गिरा। अब बड़ा बकरा इतमीनान से पुल पार कर गया और अपने दोनों साथियों के पास पहुँच कर मनपसंद भोजन करने लगा।
Danav Ka Ant - Motivational story in hindi, Laghu Katha, Prerak Kahani, प्रेरक कहानी, लघु कथा 

घमंडी राजा की हार - लघु कथा

बहुत प्राचीन समय की बात है। एक राजा था। उसका नाम उदय सिंह था। वह बहुत अत्याचारी और क्रूर राजा था। उसका एक रसोइया था। जिसका नाम रामू था। रामू का अस्त्र-शस्त्र चलाने में कोई जोड़ नहीं था। अक्सर राजा युद्ध में उसे अपने साथ ले जाते थे। एक दिन रसोइया रामू से भोजन परोसने में देर हो गयी। जिसके कारण राजा उदय सिंह ने क्रोध में आकर रामू के दोनों हाथ कटवा दिये। रसोइया रामू ने सोचा मेरी इतनी सी गलती के लिए इतनी बड़ी सजा। उसने राजा को सबक सीखने की प्रतिज्ञा ली। वह राज्य के गरीब बच्चों को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान देने लगा। एक दिन जब रामू बच्चों को शस्त्र सीखा रहा था। इस दौरान वह राजा द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के बारे में भी उन बच्चों को बताता था। एक दिन सैनिकों ने उसकी बात सुन ली। उसने जाकर सारी बातें राजा को बतायी। क्रोध में आकर राजा ने रामू और उसके शिष्यों पर आक्रमण कर दिया। 

रामू के शिष्यों ने राजा उदय सिंह के अनेक योद्धाओं को मार डाला। इस प्रकार राजा के बहुत कम सैनिक बचे। इससे पूरे राज्य में हाहाकार मच चुका था। अपनी हार को देखते हुए राजा स्वयम युद्ध करने आए। किन्तु रसोइया रामू के सैनिकों को क्षणभर में ही राजा उदय सिंह को बंधक बना कर रामू के सामने खड़ा कर दिया। रामू ने राजा से पूछा - महाराज मेरी एक गलती के लिए आपने मुझ कमजोर, बेबस और गरीब के हाथ कटवा दिये, आज आप उसी रसोइया रामू के सामने बंदी बन कर खड़े हैं। यदि मैं चाहूं, तो आपके प्राण भी ले सकता हूँ। पर मैंने आपका नमक खाया है, इसलिए प्राण नहीं लूंगा। लेकिन इतना अवश्य कहूँगा की किसी को भी गरीब और कमजोर समझ कर सताना अच्छी बात नहीं, इसे सदा ध्यान में रखियेगा। इतना कह कर रामू ने राजा को कैद से मुक्त कर दिया। राजा शर्म से सिर झुका कर महल की ओर चल पड़ा।

Ghamandi Raja ki Haar - Motivational story in hindi, Laghu Katha, Prerak Katha, लघु कथा, प्रेरक कथा   

रक्तदान, रक्तदान से लाभ, रक्त के प्रकार, रक्त के कार्य तथा रक्तदान आप कहाँ कर सकते हैं

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट (2012) के मुताबिक भारत में अभी हर वर्ष करीब सवा करोड़ यूनिट ब्लड की जरूरत है, जबकि 90 लाख यूनिट ही उपलब्ध हो पाता है। कई लोग इसके अभाव में दम तोड़ देते हैं। रक्तदान (Blood Donation) के समय ज्यादातर लोगों को इससे होनेवाली कमजोरी का भय होता है, जबकि हकीकत यही है कि रक्तदान (Raktdaan) के बाद हमारा शरीर 24 घंटे में ही उस रक्त के तरल भाग की पूर्ति कर लेता है। यह सेहत के लिए कई तरह से लाभदायक भी है। 
रक्तदाता के लाभ (Raktdaan ke labh) क्या है: रक्तदान करने से शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है, हालांकि यह भ्रांति अवश्य है कि रक्तदान (Blood donate) करने से कमजोरी आती है। कमजोरी कुछ घंटो के लिए आ सकती है। बाद में सबकुछ सामान्य हो जाता है। वहीं रक्तदान करने के कुछ फायदे (Raktdaan karne ke fayde) भी हैं, जो इस प्रकार हैं -  
  • आयरन को रखता है संतुलित : स्वस्थ शरीर के लिए आयरन जरूरी है, क्योंकि यह विभिन्न अंगो में ऑक्सीजन पहुंचता है। इसकी अधिक मात्रा लिवर, हार्ट और पैंक्रियाज में इकट्ठी हो जाती है, जिससे सिरोसिस, हार्ट डिजिज, हाइबीपी और डायबिटीज का खतरा बढ़ता है। रक्तदान से आयरन शरीर से बाहर निकलता है। 
  • होती है हेल्थ स्क्रीनिंग : रक्तदान से पहले डॉक्टर डोनर की स्वास्थ्य जांच करते हैं, जिसमें हार्ट बीट, बीपी, कोलेस्ट्रोंल, हीमोग्लोबिन की जांच की जाती है। रोग होने पर इसका पता प्रारंभित स्तर पर चल जाता है। 
  • कैलोरी बर्न करता है : इससे कैलोरी बर्न करने और कोलेस्ट्रॉल घटाने में भी मदद मिलती है। रक्तदान से रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो जाती है। भरपाई के लिए शरीर बोन मैरो को नये आरबीसी बनाने के लिए प्रेरित करता है। इससे नयी कोशिकाएं बनती है और हमारा सिस्टम रिफ्रेश हो जाता है। रक्तदान करने से हृदय रोग में पाँच प्रतिशत तक की कमी आती है।   
रक्तदान, रक्तदान से लाभ, रक्त के प्रकार
रक्तदान (Blood  donation) को बनाएं जीवन का हिस्सा : अक्सर देखा जाता है कि लोग जरूरत पड़ने पर या इमरजेंसी में ही रक्तदान करते हैं। ऐसा इसलिए भी किया जाता है, क्योंकि कोई अपना या फिर परिचित को रक्त की जरूरत होती है। वहीं दूसरी ओर कई जरूरतमंद समय पर रक्त न मिलने से मौत के मुंह में समा जाते हैं। इसलिए रक्तदान को रूटीन का हिस्सा बनाएं और नियमित रूप से रक्तदान करें (Raktdaan karen)। नियमित रूप से रक्तदान करने पर अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में ब्लड स्टॉक रह सकता है और जरूरत पड़ने पर अनेक मरीजों को बचाया जा सकता है। पुरुष साल में चार बार और महिलाएं साल में तीन बार रक्तदान कर सकती हैं। 
शरीर में रक्त के कार्य
  • सेल्स और टिश्यू तक ऑक्सीजन की सप्लाइ करता है।
  • जरूरी न्यूट्रिएंट्स जैसे - एमिनो एसिड, फैटी एसीड्स, ग्लूकोज आदि की सप्लाइ भी करता है।
  • शरीर के विभिन्न अंगों में मौजूद कार्बन डाइ ऑक्सीजन, यूरिया, लेक्टिक एसिड को बाहर निकालता है।
  • रक्त में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल्स (डब्ल्यूबीसी) में एंटीबॉडीज होते है, जो शरीर को इन्फेक्शन से बचाता है।
  • यह शरीर में पीएच लेवल और तापमान को नियंत्रित रखने का कार्य करता है।
  • रक्त में मौजूद प्लेटलेट्स दुर्घटना के बाद रक्त का थक्का जमाने में मददगार होते है, जो रक्त को बहने से रोकते हैं।

रक्तदान आप कहां कर सकते हैं 
रक्तदान किसी भी लाइसेंस युक्त ब्लड बैंक में कर सकते हैं। यह सुविधा सभी जिला-चिकित्सालयों में उपलब्ध है। मान्यता प्राप्त एजेंसियों जैसे-रोटरी क्लब, लायंस क्लब द्वारा रक्तदान शिविरों का आयोजन भी होता रहता है। रक्तदान (Blood Donation) के बाद रक्तदाता को डोनर कार्ड मिलता है, जिससे वह रक्तदान की तिथि से 12 महीने तक जरूरत पड़ने पर स्वयं या परिवार के लिए ब्लड बैंक (Blood Bank) से एक यूनिट रक्त (per unit blood) ले सकता है।  

वजन के अनुसार लिया जाता है रक्त : आपके वजन के आधार पर खून लिया जाता है। यदि वजन 60 किलो से कम है, तो शरीर से 350 ml रक्त लिया जाता है। वहीं यदि वजन 60 किलो से ज्यादा है, तो शरीर से 450 ml रक्त लिया जाता है। रक्तदान के दौरान जितना खून निकाला जाता है, वह शरीर 21 दिनों के अंदर फिर से बना लेता है। 
चार तरह के ब्लड ग्रुप (Blood Group) होते हैं : ब्लड को दो एंटीजेन (ए और बी) की उपस्थिति और अनुपस्थिति के आधार पर चार ग्रुपों में बांटा गया है:-

ग्रुप ए: इस ग्रुप के ब्लड में रेड सेल्स पर ए एंटीजन होता है, जबकि इसके प्लाज्मा में बी एंटीबॉडी पाया जाता है।

ग्रुप बी: इस ग्रुप के ब्लड में रेड सेल्स पर बी एंटीजेन होता है, जबकि इसके प्लाज्मा में ए एंटीबॉडी रहता है।

ग्रुप एबी: इसमें ए और बी, दोनों एंटीजेन होते हैं। प्लाज्मा में एंटीजेन नहीं होता है। एबी पॉजिटिव ग्रुपवाले किसी से भी ब्लड ले सकते हैं।

ग्रुप ओ: रेड सेल्स पर एंटीजेन नहीं होता। प्लाज्मा पर ए और बी एंटीजेन होते हैं। ओ नेगेटिव ग्रुपवाले किसी को भी ब्लड दे सकते हैं।

ग्रुप एचएच: यह दुर्लभतम प्रकार है, इस ब्लड ग्रुपवाले लोग किसी को भी ब्लड दे सकते हैं, लेकिन खुद जरूरत पड़ने पर सिर्फ इसी ग्रुप का ब्लड ले सकते हैं। 

कब होती है रक्त की जरूरत : अधिकांश बड़े ऑपरेशनों और पार्ट्स ट्रांसप्लांटेशन में भी रक्त की जरूरत होती है, थैलेसीमिया, कैंसर, डायलिसिस आदि रोगों के वक्त भी रक्त की जरूरत होती है। दुर्घटना होने पर खून ज्यादा बह जाये, तो भी रक्त की जरूरत पड़ती है।
कौन कर सकता है रक्तदान (Who can donate blood in hindi?)
  • 18 से 60 वर्ष के लोग दे सकते हैं ब्लड
  • दो ब्लड डोनेशन के बीच रखें तीन महीने का अंतर
  • जिनका वजन 45 किलो है, वे 350 एमएल और 60 किलो वजनवाले लोग 450 एमएल ब्लड डोनेट कर सकते हैं।
  • एचआइवी पॉजिटिव और एसटीडी से ग्रसित लोग ब्लड नहीं दे सकते।
  • जिन लोगों का वजन अचानक घट रहा हो, सूजन हो या हल्का बुंखार लगातार रहे, वे न करें।
  • वैसे लोग जो एंटीबायोटिक, स्टेरॉयड या अल्कोहल ले रहे हों, उन्हें ब्लड डोनेट करने से पहले कुछ समय संबंधी नियमों का पालन करना होता है।
  • प्रेगनेंट, ब्रेस्ट फीडिंग करानेवाली महिलाएं और मासिक के समय महिलाएं ब्लड डोनेट नहीं कर सकती हैं।
  • हृदय रोगी या हाइबीपीवाले लोग ब्लड डोनेट नहीं कर सकते, हेपेटाइटिस बी या सी, लेप्रोसी और टीबी के मरीज डोनेट नहीं कर सकते।

किन स्थितियों में रक्तदान नहीं करना चाहिए (When we should not donate blood?)
  • यदि वायरल संक्रमण है, तो रक्तदान न करें, क्योंकि इससे रक्त के माध्यम से संक्रमण रक्त लेनेवाले व्यक्ति में जाने की आंशका रहती है।
  • किडनी, हृदय, दिमाग, फेफड़े, लिवर आदि से संबंधित कोई भी बीमारी हो, तो रक्तदान नहीं करना चाहिए।
  • यदि थायरॉयड रोग है, तो रक्तदान न करें।
  • यदि आपको स्वयं कभी रक्त की जरूरत पड़ी हो, तो कम-से-कम एक साल तक रक्तदान न करें।
  • यदि शरीर पर टैटू बनवाया हो, तो टैटू बनवाने के छह माह बाद रक्तदान कर सकते हैं।
  • यदि हीमोग्लोबिन का लेवल 18 ग्राम/ डीएल से ऊपर हैं।
  • शूगर, हाइपरटेंशन आदि से ग्रस्त मरीज भी ब्लड डोनेट नहीं कर सकते हैं।

रक्तदान के दौरान इन बातों का रखें ध्यान 
  • रक्तदान टेंशन फ्री होकर करें।
  • सुबह का नाश्ता करने के लगभग एक-डेढ़ घंटे के बाद रक्तदान करें।
  • सभी रोगों की जानकारी डॉक्टर को दें।
  • रक्तदान करने के बाद पाँच से दस मिनट तक आराम करना जरूरी होता है।
  • रक्तदान करने के बाद नॉर्मल खाना खाएं।
  • रक्तदान करने के बाद आप अगले एक दिन तक जिम नहीं जा सकते।
  • रक्तदान करने के बाद 24 घंटे तक धूम्रपान व शराब का सेवन न करें।
  • एक बार रक्तदान कर दिया है, तो तीन माह बाद ही दोबारा रक्तदान कर सकते हैं।
क्या ब्लड डोनेट करते समय टेस्ट जरूरी है? (Test before blood donation)
हां, ब्लड डोनेट करने से पहले ब्लड टेस्ट जरूरी है अन्यथा यदि आपको कोई रोग होगा, तो वह मरीज को भी हो जायेगा। इसमें हेपेटाइटिस, एचआइवी आदि प्रमुख टेस्ट हैं। इसके अलावे आजकल एचटीएलवी (एंटीबॉडी टू ल्यूकेमिया वायरस) का टेस्ट भी जरूरी है। यह टेस्ट ब्लड कैंसर के लिए होता है। यदि ब्लड कैंसर के मरीज का ब्लड सामान्य व्यक्ति को चढ़ा दिया जाये, तो उसे भी ब्लड कैंसर होने का खतरा होता है। 

क्या ब्लड डोनेशन से रिएक्शन हो सकता है?
यदि रोगी को डोनर का ब्लड सूट नहीं करता है, तो उससे रिएक्शन हो सकता है। इससे खुजली आदि की समस्या हो सकती है। यहां एक बात और ध्यान रखना जरूरी है कि बेहोश व्यक्ति को ब्लड चढ़ाने पर यदि कोई रिएक्शन होता है, तो वह पता नही चल पाता है लेकिन इसके भी कुछ लक्षण सामने आते हैं, जैसे-धड़कनों का बढ़ जाना, पेशाब की मात्रा का कम हो जाना, ब्लड प्रेशर का लो हो जाना आदि। समय पर पता न चलने पर रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। 

क्या ब्लड ग्रुप का आरएच नेगेटिव रेयर होता है?
हाँ, पॉजिटिव ग्रुप आसानी से उपलब्ध हो जाता है, जबकि नेगेटिव के मिलने में परेशानी होती है।

ब्लड बैंक में जमा ब्लड में हीमोग्लोबिन कम होता है?
रेड ब्लड सेल्स का लाइफ 120 दिनों का होता है। उसके बाद वह कम होने लगता है, इसलिए ट्रांस्फ्यूजन के लिए फ्रेश ब्लड का ही प्रयोग होता है। कई रोगों में प्लेटलेट्स का ट्रांस्फ्यूजन भी होता है। वह भी फ्रेश किया जाता है क्योंकि इसकी लाइफ 5 दिन ही होती है।  

साइंस और टेकनोलॉजी दिन-प्रतिदिन तरक्की करने के बावजूद अभी तक वैज्ञानिक कृत्रिम खून नहीं बना पाये हैं। यह केवल शरीर में ही बन सकता है, इसलिए गंभीर बीमारी से ग्रस्त होने के बाद, विभिन्न सर्जरी या फिर एक्सीडेंट में गंभीर रूप से घायल होने के बाद रक्त की जरूरत होती है, तब ब्लड डोनर यह रक्त देता है। समय पर रक्त मिलने से अधिकतर मरीजों की जन बच जाती हैं। वहीं कई बार रक्त न मिलने से रोगी की मृत्यु भी हो जाती है। वैसे कई अस्पताल और सामाजिक संस्थान समय-समय पर रक्तदान के लिए कैंपों का भी आयोजन करते हैं, जिनमें इकट्ठा हुआ रक्त अस्पताल के माध्यम से जरूरतमंद को दिया जाता है या ब्लड बैंक में रखा जाता है। प्रत्येक रक्तदान तीन लोगों की जान बचा सकता है, क्योंकि जो रक्त दान किया जाता है, उसमें तीन अलग-अलग रक्त कण (आरबीसी, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स) होते हैं, जो तीन अलग-अलग मरीजों के काम आ सकता है, इसलिए एक बार रक्तदान करके तीन जिंदगियां बचायी जा सकती हैं। प्लाज्मा को एक साल और प्लेटलेट्स को पाँच दिनों तक रखा जा सकता है। इस अवधि के बाद यह खराब हो जाता है।  

गुरु पुर्णिमा - Guru Purnima

गुरुपूर्णिमा (Guru Puja or Guru Worship), गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा से नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। गुरु के लिए पुर्णिमा से बढ़ कर और कोई तिथि नहीं। गुरु पूर्ण है और पूर्ण से ही पूर्णत्व की प्राप्ति होती है। गुरु शिष्यों के अंतःकरण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें प्रकाशित करते हैं। अतः इस दिन हमें गुरु के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। गुरुकृपा असंभव को संभव बना कर शिष्यों के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है। गुरु, ज्ञान का संचार करती है। गुरु, जीव और परमात्मा (God) के बीच एक कड़ी का काम करता है। गुरु शिष्य के आत्मबल को जगाने का काम करता है। गुरु शिष्य को अंतःशक्ति से ही परिचित नहीं कराता, उसे जागृत एवं विकसित करने के हर संभव उपाय भी बताता है। गुरु और परमात्मा में कोई भेद नहीं है और गुरु ज्ञान स्वरूप ही हैं। कबीर साहब ने गुरु दर्शन की महत्ता को लेकर कहा है की संत या गुरु का दर्शन एक दिन में दो बार करना चाहिए। 
गुरु पुर्णिमा मंत्र
आषाढ़ मास की पुर्णिमा को गुरु पुर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पुजा का विधान है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधू-संत एक ही स्थान पर रह कर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रखण्ड विद्वान थे और उन्होने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पुर्णिमा को व्यास पुर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
शास्त्रों में गुरु का अर्थ बताया गया है - अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है - उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है की वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन - शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति कि आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी, बल्कि सद्गुरु कि कृपा से ईश्वर (God) का साक्षात्कार भी संभव है। (Religious Fast and Festivals, Hindu vrat ewam tyohar)