गुरुपूर्णिमा (Guru Puja or Guru Worship), गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा से नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। गुरु के लिए पुर्णिमा से बढ़ कर और कोई तिथि नहीं। गुरु पूर्ण है और पूर्ण से ही पूर्णत्व की प्राप्ति होती है। गुरु शिष्यों के अंतःकरण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें प्रकाशित करते हैं। अतः इस दिन हमें गुरु के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। गुरुकृपा असंभव को संभव बना कर शिष्यों के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है। गुरु, ज्ञान का संचार करती है। गुरु, जीव और परमात्मा (God) के बीच एक कड़ी का काम करता है। गुरु शिष्य के आत्मबल को जगाने का काम करता है। गुरु शिष्य को अंतःशक्ति से ही परिचित नहीं कराता, उसे जागृत एवं विकसित करने के हर संभव उपाय भी बताता है। गुरु और परमात्मा में कोई भेद नहीं है और गुरु ज्ञान स्वरूप ही हैं। कबीर साहब ने गुरु दर्शन की महत्ता को लेकर कहा है की संत या गुरु का दर्शन एक दिन में दो बार करना चाहिए।
आषाढ़ मास की पुर्णिमा को गुरु पुर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पुजा का विधान है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधू-संत एक ही स्थान पर रह कर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रखण्ड विद्वान थे और उन्होने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पुर्णिमा को व्यास पुर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
शास्त्रों में गुरु का अर्थ बताया गया है - अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है - उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है की वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन - शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति कि आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी, बल्कि सद्गुरु कि कृपा से ईश्वर (God) का साक्षात्कार भी संभव है। (Religious Fast and Festivals, Hindu vrat ewam tyohar)