देश के पाँच प्रसिद्ध राष्ट्रिय उद्यान (National Park) जो विश्व धरोहर में शामिल है

उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक हमारा देश प्रकृतिक सौन्दर्यों से भरा-पूरा है। हमारा देश जितना ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए हैं उतना ही प्राकृतिक विरासत भी इसका अभिन्न अंग है। इन प्रकृतिक विरसतों में कई राष्ट्रिय उद्यान (National Park) हैं जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) ने भी विश्व धरोवर की सूची में शामिल किया है। 
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान (Great Himalayan National Park - GHNP)
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान (जी एच एन पी) हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है। युनेस्को के विश्व धरोहर समिति ने सन 2014 ई० में ग्रेट हिमालियन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र को विश्व धरोहर (World Heritage) सूची में सम्मिलित किया है। 1984 में बनाए गए इस पार्क को 1919 में राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया था। यह संरक्षण क्षेत्र कुल 1171 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमें ग्रेट हिमालियन राष्ट्रिय उद्यान के साथ-साथ पश्चमी सीमा से 5 किलोमीटर तक के क्षेत्र को प्राणिक्षेत्र के रूप में रखा गया है जिसके अंतर्गत लगभग 160 गाँव आते है जिसमें 15000 से 16000 गरीब लोग रहते हैं जो अपनी जीविका इसी जंगल से चलाते है। इसके अलावा शगवार, शक्ति एवं मरोर गाँव को मिला कर सैंज वन्यजीव अभयारण्य (Sainj Wildlife Sanctuary) का विकास किया गया है तथा इसके दक्षिण में तीर्थन वन्यजीव अभयारण्य (Tirthan Wildlife Sanctuary) बनाया गया है। इस में 25 से अधिक प्रकार के वन, 800 प्रकार के पौधे और 180 से अधिक पक्षी प्रजातियां का वास है। हिमालय के भूरे भालू के क्षेत्र वाला या नेशनल पार्क कुल्लू जिले में 620 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और यहां सम शीतोष्ण एवं एलपाइन वन पाए जाते हैं। साथ ही यहां पश्चिमी हिमालय की अनेक महत्वपूर्ण वन्यजीव प्रजातियां पाई जाती है जैसे मस्क, डियर, ब्राउन बियर, गोराल, थार, चीता, बर्फानी चीता आदि।

सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान (Sundervan National Park)
सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान
भारत का यह राष्ट्रीय उद्यान बंगाल के 24 परगना जिले के दक्षिण - पूर्वी भाग में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। एक सदाबहार पौधा जिसका नाम है 'सुंदरी' जिसके नाम पर ही इसका नाम सुंदरवन पड़ा है। यह बाघ संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्पीयर रिजर्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र सदाबहार वनों से घिरा हुआ है और यह रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। इस वन में पक्षियों, सरीसृप तथा रीढ़विहीन की कई प्रजातियां पाई जाती है। इसके साथ ही यहां खारे पानी का मगरमच्छ भी मिलते हैं। वर्तमान सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान, 1973 में मूल सुंदरवन बाघ रिजर्व क्षेत्र का कोर क्षेत्र तथा 1977 में वन्य जीवन अभ्यारण्य घोषित किया हुआ था। 4 मई 1984 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह सफेद बाघ का संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park)
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भारत की राजस्थान में स्थित एक विख्यात पक्षीअभ्यारण है जो दिल्ली से लगभग 190 किलोमीटर दूर स्थित है। इस उद्यान को पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इसमें लगभग 380 निवासी एवं प्रवासी प्रजाति के पक्षियाँ जिनमे सामान्य एवं हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त हो रहे पक्षी पाए जाते हैं। सर्दियों के मौसम में साइबेरियन सारस यहाँ आते हैं। अब यह एक बहुत बड़ा पर्यटन स्थल और केंद्र बन गया है। जहां पर बहुतायत में पक्षीविज्ञानी शीत ऋतु में आते हैं। इस उद्यान को 1971 में संरक्षित पक्षी अभ्यारन्य घोषित किया गया था और बाद में 1950 ई में युनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोवर घोषित किया गया है। इसका निर्माण 250 वर्ष पुराना है इसका नाम यहां के प्रसिद्ध शिव मंदिर (केवलादेव) के नाम पर रखा गया है।

मानस राष्ट्रीय उद्यान (Manas National Park)
मानस राष्ट्रीय उद्यान भारत के असम (Assam) राज्य में स्थित है। यह हमारे देश का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान है। यह उद्यान एक सींग का गैंडा (भारतीय गैंडा) और बारासिंघा के लिए प्रसिद्ध है। इसके अंतर्गत 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत स्थापित 840.04 वर्ग किलोमीटर का इलाका मानस व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है। यह भूटान की तराई में बोडो क्षेत्रीय परिषद की देखरेख में 950 वर्ग किलोमीटर से भी बड़े इलाके में फैला है।  इसे 1985 में विश्व धरोवर स्थल का दर्जा दिया गया था। लेकिन 80 के दशक के अंत और 90 के दशक के शुरू में बोडो विद्रोही गतिविधियों के कारण इस उद्यान को 1992 में विश्व धरोवर स्थल सूची से हटा दिया गया था। जून 2011 में यह पुनः यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल कर लिया गया है।

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान (Nandadevi National Park)
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान भारत की उत्तराखंड (Uttrakhand) राज्य में नंदा देवी पर्वत के आसपास का इलाका है। यह 630.33 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसको 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यहां फूलों की घाटी और राष्ट्रीय उद्यान को मिलाकर 1988 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया। फूलों की घाटी और राष्ट्रीय उद्यान के साथ मिलकर नंदा देवी बायोस्फेयर रिजर्व बनता है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2236 वर्ग किलोमीटर है। यह रिजर्व यूनेस्को की विश्व के बायोस्फेर रिजर्व की सूची में 2004 से अंकित है। यह चारों ओर से 6000 मीटर से 7500 मीटर ऊंची चोटीयों से घिरी हुई है। समुद्र की सतह से इसकी ऊंचाई 3500 मीटर है।

दान की महिमा - प्रेरक कथा

बहुत समय पहले एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल दिये। उसे किसी ने ऐसा कहा था की भिक्षा मांगने के लिए निकलते समय भिखारी झोली खाली नहीं रखते। थैली देख कर दूसरों को भी लगता है की इसे पहले से ही किसी ने कुछ दे रखा है। 

पुर्णिमा का दिन था भिखारी सोच रहा था की आज अगर ईश्वर की कृपा होगी, तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती हुई दिखाई दी। यह देख कर भिखारी काफी खुश हो गया। उसने सोचा कि राजा के दर्शन और उनसे मिलनेवाले दान से उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाएगी। जैसे-जैसे राजा कि सवारी निकट आती गयी, भिखारी कि कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गयी। जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रुकवाया और उतर कर उसके निकट पहुंचे। भिखारी कि तो मानो सांसें ही रुकने लगी, लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उल्टे अपनी चादर उस भिखारी के सामने फैला दी और राहत कोष के लिए भीख कि याचना करने लगा। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। भिखारी ने आधे मन से अपनी झोली में हाथ डाला। फिर उसके मन में एक बात आयी कि देने से कोई चीज कभी घटती नहीं और लेनेवाले से देनेवाला बड़ा होता है। जैसे-तैसे करके उसने दो दाने जौ के निकले और राजा कि चादर में डाल दिये। हालांकि उस दिन भिखारी को अधिक भीख मिली, लेकिन अपनी झोली में से दो दाने जौ के देने का मलाल उसे सारा दिन रहा। शाम को जब वह घर लौटा, तो दुखी मन से उसने अपनी झोली पलटी, तो उसके आश्चर्य का सीमा न रही। जो जौ वह अपने साथ झोली में ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गये थे। एकाएक उसे समझ में आया कि यह दान कि महिमा के कारण ही हुआ। वह पछताया कि काश, उसने राजा को और अधिक जौ दिये होते, लेकिन दे नहीं सका, क्योंकि उसकी देने कि आदत नहीं थी। आगे से भिखारी रोज जितना भीख में मांगता, उसका थोड़ा हिस्सा दान कर देता। 
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दानव का अन्त - प्रेरक कथा

जंगल के पास एक गाँव था। गाँव के किनारे से एक नदी बहती थी। नदी पर एक पूल था। उस पूल के नीचे एक दानव रहता था। जंगल में तीन बकरे चर रहे थे। सबसे बड़े बकरे ने सबसे छोटे बकरे से कहा - नदी के पार गाँव के खेतों में खूब फल-सब्जी उगे हुए हैं। उनकी महक यहाँ तक आ रही है। जा पुल पर से नदी पार करके उन्हें खा आ। छोटा बकरा पुल पार करने लगा। तभी दानव पुल के ऊपर चढ़ आया और अपने बड़े-बड़े दांत और नाखून दिखा कर नन्हें बकरे को डराते हुए बोला - मुझे बड़ी भूख लगी है। डर से कांपते हुए नन्हा बकरा बोला - मुझे मत खाओ दानव, मैं तो बहुत छोटा हूँ। मेरे दो बड़े दोस्त हैं। वे अभी इसी ओर आनेवाले हैं। उन्हें खा लो। दानव बड़े बकरों को खाने के लालच में आ गया। बोला - अच्छा तू जा। मैं बड़े बकरों का इंतजार करूंगा। नन्हा बकरा वहाँ से भागा और गाँव के खेत में पहुँच कर ताजा फल-सब्जी खाने लगा। दूसरा बकरा भी यही कह कर बच निकला। अब बड़ा बकरा पुल पार करने लगा। वह खूब मोटा और तगड़ा था। उसके सींग लंबे और खूब नुकीले थे। जब वह पुल के बीच पहुंचा, तो दानव एक बार फिर पुल के ऊपर चढ़ आया और उसे डराते हुए बोला - मुझे बड़ी भूख लगी है। मैं तुझे अभी खा जाऊंगा, पर बड़ा बकरा जरा भी नहीं डरा। उसने अपने अगले पाँवों से जमीन कुरेदते हुए हुंकार भरी और सिर नीचा करके दानव के पेट पर अपने सींगों से ज़ोर से प्रहार किया। दानव दूर नदी में जा गिरा। अब बड़ा बकरा इतमीनान से पुल पार कर गया और अपने दोनों साथियों के पास पहुँच कर मनपसंद भोजन करने लगा।
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घमंडी राजा की हार - लघु कथा

बहुत प्राचीन समय की बात है। एक राजा था। उसका नाम उदय सिंह था। वह बहुत अत्याचारी और क्रूर राजा था। उसका एक रसोइया था। जिसका नाम रामू था। रामू का अस्त्र-शस्त्र चलाने में कोई जोड़ नहीं था। अक्सर राजा युद्ध में उसे अपने साथ ले जाते थे। एक दिन रसोइया रामू से भोजन परोसने में देर हो गयी। जिसके कारण राजा उदय सिंह ने क्रोध में आकर रामू के दोनों हाथ कटवा दिये। रसोइया रामू ने सोचा मेरी इतनी सी गलती के लिए इतनी बड़ी सजा। उसने राजा को सबक सीखने की प्रतिज्ञा ली। वह राज्य के गरीब बच्चों को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान देने लगा। एक दिन जब रामू बच्चों को शस्त्र सीखा रहा था। इस दौरान वह राजा द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के बारे में भी उन बच्चों को बताता था। एक दिन सैनिकों ने उसकी बात सुन ली। उसने जाकर सारी बातें राजा को बतायी। क्रोध में आकर राजा ने रामू और उसके शिष्यों पर आक्रमण कर दिया। 

रामू के शिष्यों ने राजा उदय सिंह के अनेक योद्धाओं को मार डाला। इस प्रकार राजा के बहुत कम सैनिक बचे। इससे पूरे राज्य में हाहाकार मच चुका था। अपनी हार को देखते हुए राजा स्वयम युद्ध करने आए। किन्तु रसोइया रामू के सैनिकों को क्षणभर में ही राजा उदय सिंह को बंधक बना कर रामू के सामने खड़ा कर दिया। रामू ने राजा से पूछा - महाराज मेरी एक गलती के लिए आपने मुझ कमजोर, बेबस और गरीब के हाथ कटवा दिये, आज आप उसी रसोइया रामू के सामने बंदी बन कर खड़े हैं। यदि मैं चाहूं, तो आपके प्राण भी ले सकता हूँ। पर मैंने आपका नमक खाया है, इसलिए प्राण नहीं लूंगा। लेकिन इतना अवश्य कहूँगा की किसी को भी गरीब और कमजोर समझ कर सताना अच्छी बात नहीं, इसे सदा ध्यान में रखियेगा। इतना कह कर रामू ने राजा को कैद से मुक्त कर दिया। राजा शर्म से सिर झुका कर महल की ओर चल पड़ा।

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