मलाशय का गिरना malsya ka girna

मलाशय का गिरना

        गुदा संवरणी पेशी एक वृताकार पेशी है। जब यह काम करना बन्द कर देती है तो मलाशय गिरने लगाता है। मलाशय गिरने से पैखाना के साथ खून और दर्द होता है। इसे मलाशय का गिरना कहते हैं।परिचय :

लक्षण :

विभिन्न चिकित्सा से उपचार :

3. कुमारी के पत्ते : कुमारी के पत्ते को साफकर दोनों किनारों से कांटे निकाल लें। उसे बीच से चीर कर दो भाग कर लें और कच्चे कोयले की धीमी आंच पर गर्म करें। माजूफल या हरड़ का बारीक पाउडर बनाकर गर्म किए हुए कुमारी के पत्ते पर छिड़क दें। इस आधे पत्ते को बाहर निकले मलाशय पर बांध दें। इसे 3 से 4 दिन तक मलाशय पर बांधने से मलाशय का गिरना बन्द हो जाता है।

कांच निकलना (गुदाभ्रंश) kaanch niklna

कांच निकलना (गुदाभ्रंश)

         यह रोग कब्ज के कारण या पैखाना के समय काखने या पेचिश, आंव के समय कांखने के कारण होता है। जब कोई कब्ज से पीड़ित होता है तो उसका मल अधिक सूखा (शुष्क) और कठोर हो जाता है जिससे पैखाने के समय अधिक जोर लगाना पड़ता है। अधिक जोर लगाने पर गुदा की त्वचा भी मल के साथ मलद्वार से बाहर निकल आती है। इसे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) कहते हैं। बच्चों में अधिक दस्त होने के कारण मलद्वार की त्वचा अधिक कोमल हो जाती है और बाहर की ओर निकलने लगती है। जब कोई बच्चा बीमारी के कारण शारीरिक रूप से कमजोर होता है तो उसके गुदा की मांस-पेशियां क्षीण (कमजोर) हो जाती है, जिससे लगातार दस्त होने पर गुदाभ्रंश (कांच निकलना) होने लगता है। ऐसे में मलद्वार के बाहर निकले गुदा में सूजन हो जाती है। सूजन में जख्म बनने पर जीवाणु के फैलने से रोग अधिक फैल जाता है। यह रोग बच्चों एवं वयस्क स्त्री-पुरुष में भी होता है।परिचय :

कारण :

         कब्ज होने के कारण पैखाना के समय या आंव, (मल में सफेद चिकना पदार्थ) पेचिश के समय अधिक जोड़ लगाने से गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बाहर की ओर निकलने लगता है जो गुदाभ्रंश रोग का मुख्य कारण है। पैखाना के समय अधिक जोर लगाने के कारण आंत की पतली झिल्ली निकलने लगती है जब आंत का भाग कठिनाई से अन्दर जाता है तो रगड़ के कारण पतली झिल्ली छिलने से उसमें जख्म होने का भय बना रहता है।

विभिन्न भाषाओं में रोग का नाम :


हिन्दी

कांच।

अंग्रेजी

प्रोलेप्स एनाई।

अरबी

ओलोया।

बंगाली

गुदाभ्रांश।

गुजराती

माण निकलवुण।

कन्नड़ी

गुदाइलिता।

मलयालम

गुदाभ्रंष्म।

उड़िया

मलद्वार बानारी पाड़िबा।

तेलगु

पेयी जरुत।

पंजाबी

गुदा उतरना।

तमिल

असनोवोय वैलिप दुथला
1. अनार :
2. कमल : कांच निकलने पर छोटे बच्चों के आंव या पेचिश की तकलीफ होती है। कमल के पत्तों का एक चम्मच चूर्ण इतनी ही मात्रा में मिसरी के साथ मिलाकर 3 बार सेवन कराने से जल्दी फायदा होता है।
3. अमरूद :
4. कालीमिर्च :
5. फिटकरी : 1 ग्राम फिटकरी को 30 ग्राम जल में घोल लें शौच के बाद मलद्वार को साफ करके फिटकरी वाले जल को रुई से गुदा पर लगाएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है।
6. बबूल : बबूल की छाल 10 ग्राम को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से गुदाद्वार को धोने से गुदाभ्रंश नष्ट होता है।
7. भांगरा : भांगरा की जड़ 30 ग्राम और हल्दी का चूर्ण 20 ग्राम को मिलाकर पानी के साथ पीसकर मलहम बना लें। उस मलहम को गुदाभ्रंश पर लगाने से गुदाभ्रंश ठीक होता है।
8. पपीते : पपीते के पत्तों को पीसकर जल में मिलाकर गुदाभ्रंश पर लगाएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है।
9. जामुन : जामुन, पीपल, बड़ और बहेड़ा 20-20 ग्राम की मात्रा में लेकर 500 मिलीलीटर जल में मिलाकर उबालें। रोजाना शौच के बाद मलद्वार को स्वच्छ (साफ) कर बनायें हुए काढ़ा को छानकर मलद्वार को धोएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है।
10. भांग का पत्ता : भांग के पत्तों का रस निकालकर गुदाभ्रंश पर लगायें। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द होता है।
11. एरण्ड :
12. हरड़ : छोटी हरड़ को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ लें। इसको पीने से पेट की कब्ज नष्ट होती है और मलद्वार से गुदा बाहर नहीं आता।
13. आंवला : आंवले या हरड़ का मुरब्बा बनाकर दूध के साथ बच्चे को खिलाने से कब्ज खत्म होती है और गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द होता है।
14. कत्था : कत्थे को पीसकर उसमें मोम को गर्म करके और घी मिलाकर मलहम बना लें। इस मलहम को गुदाभ्रंश पर लगाएं। इससे कब्ज ठीक होती है एवं मलद्वार से गुदा बाहर नहीं आता है।
15. नागकेसर :
16. माजूफल :
17. फिटकरी : कच्ची फिटकरी आधा ग्राम को पीसकर 100 मिलीलीटर पानी में घोलकर गुदा को धोने से गुदाभ्रंश ठीक होता है।
18. तिल : तिल का तेल लगाकर हल्का सेक लें और गुदा को अन्दर कर ऊपर से टी आकार की पट्टी बांध दें। रोजाना सुबह-शाम इसे गुदा पर लगाने से गुदा अपनी जगह पर आ जाती है और गुदा मलद्वार से बाहर नहीं निकलता है।
19. चूहे का मांस : चूहे का कच्चा और ताजा मांस गुदा पर लगाकर उसके ऊपर टी आकार की पट्टी बांध दें। इससे गुदाभ्रश (कांच निकलना) बन्द हो जाता है।
20. कुटकी : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कुटकी का चूर्ण बना लें और शहद में मिलाकर रोजाना सुबह-शाम खायें। इस मिश्रण को खाने से आंत की शिथिलता दूर होती है तथा गुदाभ्रंश ठीक होता है।
21. पाषाण भेद (सिलफड़ा) : पाषाण भेद (सिलफड़ा) लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा रोजाना सुबह-शाम रोगी को सेवन कराएं। इससे आंत की कमजोरी के कारण हुए रोग ठीक होता है तथा कांच निकलना बन्द होता है। 
22. प्याज : प्याज का रस निकालकर 2 से 4 मिलीलीटर बच्चे को रोजाना सुबह-शाम पिलाने से गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द हो जाता है।
23. सौंफ : सौंफ और पोस्ता को अलग-अलग लेकर थोड़े-से घी में भून लें। दोनों को मिलाकर कूटकर कपड़े से छान लें। यह चूर्ण आधा से एक चम्मच रोजाना सुबह-शाम मिश्री मिले दूध के साथ बच्चे को पिलायें। इससे कब्ज दूर होता है और गुदाभ्रंश ठीक होता है।
24. चांगेरी (तिनपतिया) :
25. कुटकी : कुटकी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, शहद के साथ मिलाकर रोजाना सुबह-शाम खायें। इससे आंत का ढीलापन (शिथिलता) दूर होता है तथा गुदाभ्रंश धीरे-धीरे अपने स्थान पर आ जाता है।

गुदा में चुनेने व कीड़े churne

गुदा में चुनेने व कीड़े

       यह अधिकतर बच्चों में होता है। बच्चों के पेट में कब्ज होने के कारण मल (पैखाना) शुष्क (सूखा) हो जाता है जिससे मल त्यागने में परेशानी होती है और गुदा में चुनेने व कीड़े उत्पन्न हो जाते हैं।परिचय :

1. एरण्ड : बच्चों की गुदा में कीड़े होने पर एरण्डी का तेल पिलाकर बच्चे का पेट साफ कराएं। फिर पीली चूब 5 ग्राम और बायबिडंग 5 ग्राम लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। आधी चुटकी चूर्ण मां के दूध में मिलाकर रोजाना बच्चे को सुबह देने से लाभ मिलता है।
2. नीम : बच्चे की गुदा में कीड़े होने पर नीम के तेल में रूई भिगोकर बच्चे की गुदा के अन्दर लगाएं। इससे गुदा के कीड़े मर जाते हैं।
3. बायबिडंग : बायबिडंग 5 ग्राम को पीसकर शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम बच्चे को खिलायें। इससे गुदा के कीड़े मर जाते हैं।
4. चंदन : चंदन के तेल को नींबू के तेल के रस में मिलाकर लगाने से मलद्वार की खुजली दूर हो जाती है।
5. हींग :
6. बारतग : बारतग के बीज पीसकर गाय के घी में मिलाकर गुदा पर लेप लगाने से गुदा के सभी रोग ठीक हो जाते हैं







गुदा पाक

गुदा पाक


       इसमें गुदा द्वार के चारों तरफ वृत्तकार में पूर्ण लाल हो जाता है जिससे गुदा के चारों ओर जलन होती है।परिचय :

विभिन्न चिकित्सा से उपचार-
1. नागकेसर (पीली नागकेसर) : नागकेसर (पीली नागकेसर) का चूर्ण लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम की मात्रा में मिश्री और मक्खन के साथ मिलाकर रोजाना खिलाएं। इसको खाने से गुदा द्वार की जलन (प्रदाह) दूर होती है।
2. तुम्बरु (तेजफल) : तुम्बरु का चूर्ण बनाकर लगभग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग प्रतिदिन सुबह और शाम बच्चों को खिलाने से गुदा पाक ठीक होता है।
3. कबीला (कमीला) : कबीला (कमीला) को पीसकर छानकर सरसों के तेल में मिलाकर रखें। इस मिश्रण को गुदापाक पर लगाने से गुदा पाक ठीक होता है।
4. सत्यानाशी (पीला धतूरा) : सत्यानाशी (पीला धतुरा) को पीसकर दूध या घी में मिलाकर गुदा पाक पर लगाने से गुदा पाक की जलन दूर होती है।
5. तिल का तेल : तिल का तेल और नीम का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर गुदा पाक पर लगायें। इससे गुदा पाक की प्रदाह तथा जख्म मिट जाते हैं।
6. कायफल : कायफल का काढ़ा बनाकर बच्चे के गुदा को धोयें। कायफल का चूर्ण बनाकर गाय के घी या तिल के तेल में मिलाकर गुदा पर लगाएं। इससे गुदा पाक ठीक होता है।
7. मुलहठी : मुलहठी को पीसकर घी के साथ मिलाकर मलहम बना लें। उस मलहम को बच्चे के गुदा पर लगायें। रोजाना 2 से 3 बार गुदा पाक पर लगाने से गुदा पाक में जल्द आराम मिलता है।
8. बबूल : बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर गुदा को रोजाना 3 से 4 बार धोयें। रोजाना इससे गुदा को धोनें से गुदा पाक जल्द ठीक होता है।
9. चाकसू : चाकसू को महीन पीसकर पाउडर बनाकर रखें। इस पाउडर को बच्चे के गुदा पर छिड़के तथा गाय के घी अथवा मक्खन में मिलाकर मलहम बनाकर गुदा पर लगायें। इससे गुदापाक ठीक होता है। 
10. मुलहठी : मुलहठी 5 ग्राम और रसोत 5 ग्राम की मात्रा में लें तथा शंख को जलाकर इसकी भस्म (राख) बना लें। इन तीनों को मिलाकर पानी के साथ पीसकर गुदा पाक पर लगाएं। इससे जलन व खुजली में आराम मिलता है।
11. रसौत :

गुदा में ऐंठन सा दर्द gudda me ainthan

गुदा में ऐंठन सा दर्द

      इस रोग में गुदा के स्नायु में किसी कारण से तनाव, ऐंठन उत्पन्न होती है जिससे स्थानीय मांस-पेशियां सिकुड़ जाती है। इस रोग में गुदा में ऐंठन सा दर्द पैदा होता है जिसे गुदा में ऐंठन का दर्द कहा जाता है।परिचय :

1. चनसूर (चन्द्रशूर) : चनसूर (चन्द्रशूर) की जड़ को पानी के साथ पीसकर प्रतिदिन सुबह और शाम पानी के साथ सेवन करें। इससे गुदा की ऐंठन ठीक हो जाती है।
2. फिटकरी : फिटकरी को भूनकर एवं पीसकर चूर्ण बना लें। लगभग 1-1 ग्राम चूर्ण दिन में 3 बार पानी के साथ लें। इससे गुदा का दर्द ठीक होता है।
3. जबादकस्तूरी : एरण्ड के तेल और तारपीन के तेल को मिलाकर गुदा पर प्रतिदिन 2 से 3 बार लगाकर मालिश करें। इससे गुदा में ऐंठन वाला दर्द ठीक होता है।
4. इलायची का चूर्ण : बड़ी इलायची 24 मिलीग्राम या छोटी इलायची 60 से लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को कूटकर चूर्ण बनाकर रखें। इसके चूर्ण को क्वीनाईन के साथ मिलाकर प्रतिदिन सुबह और शाम खायें। इससे गुदा की ऐंठन का दर्द ठीक हो जाता है।
5. सोंठ : सोंठ को गर्म जल के साथ मिलाकर पीस लें और गर्म मिश्रण को गुदा पर लगाएं। इससे गुदा की ऐंठन ठीक हो जाती है।

गुदा चिरना gurda chirna



गुदा चिरना


         यह रोग मलद्वार के छोर पर छोटे दाने निकल आने के कारण, दाने वाले जगह पर गुदा चिर जाने से उत्पन्न होता है। इसे गुदा चिर जाने का रोग कहते हैं। इस रोग के होने पर रोगी मल (पैखाना) त्याग करने से डरता रहता है। जिससे रोगी को कब्ज हो जाता है। इस रोग में रोगी को ऐसा भोजन करना चाहिए जिससे मल त्याग करने में आसानी हो एवं कब्ज न बनें। रोगी को नियमित आहार लेना चाहिए।परिचय :

लक्षण :

विभिन्न चिकित्सा से उपचार-

1. अंजीर : सूखा अंजीर 350 ग्राम, पीपल का फल 170 ग्राम, निशोथ, सौंफ, कुटकी और पुनर्नवा 100-100 ग्राम। इन सब को मिलाकर कूट लें और कूटे हुए मिश्रण के कुल वजन का तीन गुने पानी के साथ उबालें। एक चौथाई पानी बच जाने पर इसमें 720 ग्राम चीनी डालकर शर्बत बना लें। यह शर्बत 1 से 2 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम पीना चाहिए।
2. आंवला : मीठा आंवला 60 ग्राम, मुलहठी 60 ग्राम और कच्ची हरड़ 60 ग्राम को कूट-पीस व छानकर पाउडर बना लें। मुनक्का 450 ग्राम, बादाम 650 ग्राम और गुलकन्द 680 ग्राम बीजों को पीस लें और उसमें पाउडर डालकर पुन: अच्छी तरह से पीसें। यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध या पानी के साथ रात को सोते समय पियें। इससे गुदा की चिरन ठीक होती है।
3. हरड़ : पीली हरड़ 35 ग्राम को सरसों के तेल में तल लें और भूरे रंग का होने पर पीसकर पाउडर बना लें। उस पाउडर को एरण्ड के 140 मिलीलीटर तेल में मिला लें। रात को सोते समय गुदा चिरन पर लगायें। इससे गुदा चिरना दूर होता है।
4. भांगरा : भांगरा की जड़ और हल्दी के चूर्ण को पीसकर लेप करने से गुदाभ्रंश में लाभ मिलता है।

अर्श रोग (बवासीर) bawasir

अर्श रोग (बवासीर)


         यह गुदा मार्ग की बीमारी है। इस रोग के होने का मुख्य कारण कब्ज होता है। अधिक मिर्च मसाले एवं बाहर के भोजन का सेवन करने के कारण पेट में कब्ज उत्पन्न होने लगती है जो मल को अधिक शुष्क एवं कठोर करती है इससे मल करते समय अधिक जोर लगना पड़ता है और अर्श (बवासीर) रोग हो जाता है। यह कई प्रकार की होती है, जिनमें दो मुख्य हैं- खूनी बवासीर और वादी बवासीर। यदि मल के साथ खून बूंद-बूंद कर आये तो उसे खूनी बवासीर कहते हैं। यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और उससे मल के साथ खून न आए तो उसे वादी बवासीर कहते हैं। अर्श (बवासीर) रोग में मलद्वार पर मांसांकुर (मस्से) निकल आते हैं और उनमें शोथ (सूजन) और जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है। रोगी को कहीं बैठने उठने पर मस्से में तेज दर्द होता है। बवासीर की चिकित्सा देर से करने पर मस्से पककर फूट जाते हैं और उनमें से खून, पीव आदि निकलने लगता है।परिचय :

 विभिन्न भाषाओं में बवासीर का नाम :


हिन्दी

अर्श रोग, बवासीर।

अंग्रेजी

हैमोराइड्स, पाइल्स।

अरबी

केचुमुरी, अर्श।

बंगाली

अर्श।

गुजराती

हरस, मसा।

कन्नड़

मूलव्याधि।

मलयालम

मूलाक्कुर।

मराठी

मूलव्याध।

तमिल

मूलनोय, मूलम्।

तेलगु

मूलव्याधि, अरिशमोलालु।
रोग के प्रकार : अर्श (बवासीर) 6 प्रकार का होता है- पित्तार्श, कफार्श, वातार्श सन्निपातार्श, संसार्गर्श और रक्तार्श (खूनी बवासीर)
1. कफार्श : कफार्श बवासीर में मस्से काफी गहरे होते है। इन मस्सों में थोड़ी पीड़ा, चिकनाहट, गोलाई, कफयुक्त पीव तथा खुजली होती है। इस रोग के होने पर पतले पानी के समान दस्त होते हैं। इस रोग में त्वचा, नाखून तथा आंखें पीली पड़ जाती है।
2. वातजन्य बवसीर : वात्यजन अर्श (बवासीर) में गुदा में ठंड़े, चिपचिपे, मुर्झाये हुए, काले, लाल रंग के मस्से तथा कुछ कड़े और अलग प्रकार के मस्से निकल आते हैं। इसका इलाज न करने से गुल्म, प्लीहा आदि बीमारी हो जाती है।
3. संसगर्श : इस प्रकार के रोग परम्परागत होते हैं या किसी दूसरों के द्वारा हो जाते हैं। इसके कई प्रकार के लक्षण होते हैं।
4. पितार्श : पितार्श अर्श (बवासीर) रोग में मस्सों के मुंख नीले, पीले, काले तथा लाल रंग के होते हैं। इन मस्सों से कच्चे, सड़े अन्न की दुर्गन्ध आती रहती है और मस्से से पतला खून निकलता रहता है। इस प्रकार के मस्से गर्म होते हैं। पितार्श अर्श (बवासीर) में पतला, नीला, लाल रंग का दस्त (पैखाना) होता है।
5. सन्निपात : सन्निपात अर्श (बवासीर) इस प्रकार के बवासीर में वातार्श, पितार्श तथा कफार्श के मिले-जुले लक्षण पाये जाते हैं।
6. खूनी बवासीर : खूनी बवासीर में मस्से चिरमिठी या मूंग के आकार के होते हैं। मस्सों का रंग लाल होता है। गाढ़ा या कठोर मल होने के कारण मस्से छिल जाते हैं। इन मस्सों से अधिक दूषित खून निकलता है जिसके कारण पेट से निकलने वाली हवा रुक जाती है।
कारण :
          अर्श रोग (बवासीर) की उत्पत्ति कब्ज के कारण होती है। जब कोई अधिक तेल-मिर्च से बने तथा अधिक मसालों के चटपटे खाद्य-पदार्थों का अधिक सेवन करता है तो उसकी पाचन क्रिया खराब हो जाती है। पाचन क्रिया खराब होने के कारण पेट में कब्ज बनती है जो पेट में सूखेपन की उत्पत्ति कर मल को अधिक सूखा कर देती है। मल अधिक कठोर हो जाने पर मल करते समय अधिक जोर लगाना पड़ता है। अधिक जोर लगाने से मलद्वार के भीतर की त्वचा छिल जाती है। जिसके कारण मलद्वार के भीतर जख्म या मस्से बन जाने से खून निकलने लगता है। अर्श रोग (बवासीर) में आहार की लापरवाही तथा चिकित्सा में अधिक देरी के कारण यह अधिक फैल जाता है।
लक्षण :
        अर्श रोग के होने पर मलद्वार के बाहर की ओर मांसांकुर (मस्से) निकल आते हैं। मांसांकुर (मस्से) से खून शौच के साथ खून पतली रेखा के रुप में निकलता है। रोगी को चलने-फिरने में परेशानी होना, पांव लड़खड़ाना, नेत्रों के सामने अंधेरा छाना तथा सिर में चक्कर आने लगना आदि इसके लक्षण है। इस रोग के होने पर स्मरण-शक्ति खत्म होने लगती है।
भोजन और परहेज :
पथ्य :
      बवासीर में मक्खन, मलाई, दूध तथा मिश्री जैसे पौष्टिक व संतुलित भोजन करें। सुबह घूमना (टहलना) चाहिए तथा जितना सम्भव हो काम करना चाहिए। शाली चावल, पुराने चावल, मूंग की दाल, चना अथवा कुलथी की दाल, कच्चा पपीता, पका हुआ बेल, केले का फूल, लहसुन, आंवला, इलायची तथा किशमिश खाने से रोग में लाभ होता है। इस रोग में पानी अधिक पीयें।
अपथ्य :
       लाल मिर्च, तेल, खटाई, अधिक गर्म व मसाले वाले भोजन (खाना) तथा रोग के प्रतिकूल भोजन न करें। उड़द, सरसों, पिट्टी, तिल, शराब, बेलगिरी, पोइ का साग, घिया, मछली, मांस आदि न खायें। अधिक गरिष्ठ भोजन न करें।