हार्टफेल hart fail


हार्टफेल

      जब दिल अचानक काम करना बंद कर देता है तो हार्टफेल या हृदयावसाद कहलाता है। यदि दिल में अचानक बहुत तेजी से दर्द उठे तो वह हार्टफेल की स्थिति हो सकती है।परिचय :

नाम :

लक्षण :

भोजन और परहेज:

पायरिया (PYORRHOEA) payriya

पायरिया

       दांतों को प्रतिदिन मंजन न करने से दांत कमजोर होकर झड़ने लगते हैं। दांतों में कीड़े लग जाते हैं तथा दांत खोखले होकर सड़ने लगते हैं जिससे मसूढ़ों से खूनपीव निकलता रहता है। इस प्रकार के दांतों के रोगों की चिकित्सा जल्द न करने पर पायरिया रोग की उत्पत्ति होती है। इस रोग में मसूढ़े सूख जाते हैं, मुंह से बदबू आती है और मसूढ़ों से खून निकलता रहता है। दांतों के रोग में भोजन करने एवं ठंड़ा पानी पीने से तेज दर्द होता है।परिचय :

भोजन और परहेज :

वात रोग

वात रोग

          जो रोग शरीर में वायु के कारण पैदा होता है उसे वातरोग कहते हैं। वायु का दोष त्रिदोषों (वात, पित्त और कफ) में से एक मुख्य दोष हैं। यदि इसमें किसी प्रकार का विकार पैदा होता है तो शरीर में तरह-तरह के रोग पैदा हो जाते हैं जैसे- मिर्गी, हिस्टीरिया, लकवा, एक अंग का पक्षाघात, शरीर का सुन्न होना आदि।परिचय :

विभिन्न भाषाओं में नाम :


हिन्दी

वायु की बीमारियां।

अंग्रेजी

डिजीजेज ऑफ नर्वस् सिस्टम।

अरबी

वात बेमार, वायरोग।

बंगाली

बातरोग।

गुजराती

वानि बीमारी।

कन्नड़

वायु रोग।

मलया

वात रोगम्।

पंजाबी

वायु दे रोग।

तमिल

वात दे रोग।

तेलगु

वातरोगमुलु।

लक्षण     :

          वायु के कुपित होने पर संधियों (हडि्डयों) में संकुचन, हडि्डयों में दर्द, शरीर में कंपन, सुन्नता, तीव्र शूल, आक्षेप (बेहोशी), नींद न आना, प्रलाप, रोमांच, कूबड़ापन, अपगन्ता, खंजता (बालों का झड़ जाना), थकान, शोथ (सूजन), गर्भनाश, शुक्रनाश, सिर और शरीर के सारे भाग कांपते रहते हैं, नाक, लकवे से आधा मुंह टेढ़ा होना और गर्दन भी टेढ़ी होना या अन्दर की ओर धंस जाने जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।

भोजन तथा परहेज :

1. लहसुन :
2. एरण्ड :
3. तिल :
4. निर्गुण्डी :
5. गाय का घी : 10 ग्राम गाय के घी में 10 ग्राम निर्गुण्डी के चूर्ण को मिलाकर खाने से कफ और वायु रोग दूर हो जाते हैं।
6. भेड़ का दूध : भेड़ के दूध में एरण्ड का तेल मिलाकर मालिश करने से घुटने, कमर और पैरों का वात-दर्द खत्म हो जाता है। तेल को गर्म करके मालिश करें और ऊपर से पीपल, एरण्ड या आक के पत्ते ऊपर से लपेट दें। 4-5 दिन की मालिश करने से दर्द शान्त हो जाता है।
7. काकजंगा : घी में काकजंगा को मिलाकर पीने से वातरोग से पैदा होने वाले रोग खत्म हो जाते हैं।
8. समुद्रफल :
8. जायफल : जायफल, अंबर और लौंग को मिलाकर खाने से हर तरह के वातरोग दूर होते हैं।
9. कौंच : कौंच के बीजों की खीर बनाकर खाने से वातरोग दूर हो जाते हैं।
10. नींबू :
11. असगन्ध :
12. अफीम : थोड़ी सी मात्रा में अफीम खाने से गठिया के तेज दर्द में आराम मिलता है।
13. नारियल :
14. आलू : कच्चे आलू को पीसकर, वातरक्त में अंगूठे और दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द कम होता है।
15. राई :
16. चमेली : चमेली की जड़ का लेप या चमेली के तेल को पीड़ित स्थान पर लगाने या मालिश करने से वात विकार में लाभ मिलता है।
17. इन्द्रजौ : इन्द्रजौ का काढ़ा बनाकर उसमें संचन और सेंकी हुई हींग को डालकर वातरोगी को पिलाने से लाभ होता है।
18. आक :
19. मुलेठी :
20. आंवला : आंवला, हल्दी तथा मोथा के 50 से 60 मिलीलीटर काढ़े में 2 चम्मच शहद को मिलाकर दिन में 3 बार पीने से वातरक्त शान्त हो जाता है।
21. चित्रक : चित्रक की जड़, इन्द्रजौ, काली पहाड़ की जड़, कुटकी, अतीस और हरड़ को बराबर मात्रा में लेकर खुराक के रूप में सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के वात रोग नष्ट हो जाते है।
22. अदरक : अदरक के रस को नारियल के तेल में मिलाकर वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करना लाभकारी रहता है।
23. गाजर : गाजर का रस संधिवात (हड्डी का दर्द) और गठिया के रोग को ठीक करता है। गाजर, ककड़ी और चुकन्दर का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से जल्दी लाभ होता है। यदि ये तीनों सब्जियां उपलब्ध न हो तो उन्ही का मिश्रित रस पीने से शीघ्र लाभ होता है।
24. अड़ूसा (वासा) : अड़ूसा के पके हुए पत्तो को गर्म करके सिंकाई करने से संधिवात, लकवा और वेदनायुक्त उत्सेध में आराम पहुंचता है।
25. अगस्ता : अगस्ता के सूखे फूलों के 100 ग्राम बारीक चूर्ण को भैंस के एक किलो दूध में डालकर दही जमा दें। दूसरे दिन उस दही में से मक्खन निकालकर वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करें। इस मक्खन की मालिश खाज पर करने से भी लाभ होता है।
26. गिलोय :
27. मेथी :
28. इमली : इमली के पत्तों को ताड़ी के साथ पीसकर गर्म करके दर्द वाले स्थान पर बांधने से लाभ होता है।
29. अखरोट : अखरोट की 10 से 20 ग्राम की ताजी गिरी को पीसकर वातरोग से पीड़ित अंग पर लेप करें। ईंट को गर्म करके उस पर पानी छिड़क कर कपड़ा लपेटकर पीड़ित स्थान पर सेंक देने से पीड़ा शीघ्र मिट जाती है। गठिया पर इसकी गिरी को नियमपूर्वक सेवन करने से रक्त साफ होकर लाभ होता है।
30. पुनर्नवा : श्वेत पुनर्नवा की जड़ को तेल में शुद्ध करके पैरो में मालिश करने से वातकंटक रोग दूर हो जाता है।
31. शतावर :
32. कुलथी : 60 ग्राम कुलथी को 1 लीटर पानी में उबालें। पानी थोड़ा बचने पर उसे छानकर उसमें थोड़ा सेंधानमक और आधा चम्मच पिसी हुई सौठ को मिलाकर पीने से वातरोग और वातज्वर में आराम आता है।
33. नागरमोथा : नागरमोथा, हल्दी और आंवला का काढ़ा बनाकर ठंड़ा करके शहद के साथ पीने से खूनी वातरोग में लाभ पहुंचता है।
34. वायबिडंग : आधा चम्मच वायबिड़ंग के फल का चूर्ण और एक चम्मच लहसुन के चूर्ण को एकसाथ मिलाकर सुबह-शाम रोजाना खाने से सिर और नाड़ी की कमजोरी से होने वाले वात के रोग में फायदा होता है।
35. तुलसी : तुलसी के पत्तों को उबालते हुए इसकी भाप को वातग्रस्त अंगों पर देने से तथा इसके गर्म पानी से पीड़ित अंगों को धोने से वात के रोगी को आराम मिलता है। तुलसी के पत्ते, कालीमिर्च और गाय के घी को एकसाथ मिलाकर सेवन करने से वातरोग में बहुत ही जल्दी आराम मिलता है।
36. सोंठ :
37. अजवायन :
37. कूट : कूट 80 ग्राम, चीता 70 ग्राम, हरड़ का छिलका 60 ग्राम, अजवायन 50 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, छोटी पीपल 30 ग्राम और बच 20 ग्राम के 10 ग्राम भूनी हुई हींग को कूटकर छानकर रख लें। फिर इसमें 5 ग्राम चूर्ण को सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से वायु की बीमारी में लाभ होता है।
38. सौंफ : सौंफ 20 ग्राम, सोंठ 20 ग्राम, विधारा 20 ग्राम, असंगध 20 ग्राम, कुंटकी 20 ग्राम, सुरंजान 20 ग्राम, चोबचीनी 20 ग्राम और 20 ग्राम कडु को कूटकर छान लें। इस चूर्ण को 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम खाना खाने के बाद गुनगुने पानी के साथ लेने से वात के रोगों में आराम मिलता है।
39. रास्ना : 50 ग्राम रास्ना, 50 ग्राम देवदारू और 50 ग्राम एरण्ड की जड़ को मोटा-मोटा कूटकर 12 खुराक बना लें। रोजाना रात को 200 मिलीलीटर पानी में एक खुराक को भिगों दें। सुबह इसे उबाल लें। जब पानी थोड़ा-सा बच जायें तब इसे हल्का गुनगुना करके पीने से वातरोग में आराम मिलता है।
40. नमक :
41. महुआ : महुआ के पत्तों को गर्म करके वात रोग से पीड़ित अंगों पर बांधने से पीड़ा कम होती हैं।
42. मूली : मूली के रस में नींबू का रस और सेंधानमक को मिलाकर सेवन करने से वायु विकार से उत्पन्न पेट दर्द समाप्त होता है।
43. प्याज : वायु के कारण फैलने वाले रोगों के उपद्रवों से बचने के लिए प्याज को काटकर पास में रखने या दरवाजे पर बांधने से बचाव होता हैं।
44. अजमोद : मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) में वायु का प्रकोप होने पर अजमोद और नमक को साफ कपड़े में बांधकर नलों पर सेंक करने से वायु नष्ट हो जाती है।
45. अमलतास :
46. पोदीना :
47. फालसे : पके फालसे के रस में पानी को मिलाकर उसमें शक्कर और थोड़ी-सी सोंठ की बुकनी डालकर शर्बत बनाकर पीने से पित्तविकार यानि पित्तप्रकोप मिटता है। यह शर्बत हृदय (दिल) के रोग के लिए लाभकारी होता है।    
48. तेजपत्ता : तेजपत्ते की छाल के चूर्ण को 2 से 4 ग्राम की मात्रा में फंकी लेने से वायु गोला मिट जाता है।

प्लेग (PLAGUE)






प्लेग


          प्लेग एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है। इसको अग्निरोहिणी तथा संस्कृत में औपसर्गिक सन्निपात के नाम से भी जाना जाता है।परिचय
:

कारण :

        प्लेग की बीमारी अनेक कारणों से फैलती है। पृथ्वी पर पर्यावरण प्रदूषण जैसे पानी व हवा अधिक दूषित हो जाती है जिससे वातावरण में विषैले जीवाणु फैल जाते हैं। विषैले जीवाणु जब कीट बनकर वातावरण में फैलते हैं तो यह महामारी का रूप ले लेते हैं जो प्लेग की बीमारी के रूप में अन्य जीवों व मनुष्यों में फैल जाते हैं। जब घरों में चूहे मर जाते हैं और मरने के बाद अगर वह कई दिनों तक घर में पड़े रहते है तो उसमें से निकलने वाली विषैली बदबू प्लेग का कारण बन जाती है।

लक्षण :

          प्लेग की बीमारी के जीवाणु सबसे पहले खून को प्रभावित करते हैं जिसके कारण रोगी को तेज बुखार जकड़ लेता है। इस प्रकार की बीमारी होने पर कुछ समय में ही बुखार बहुत ही विशाल रूप ले लेता है और रोगी के हाथ-पांव में अकड़न होने लगती है। इस रोग के होने पर रोगी के सिर में तेज दर्द, पसलियों का दर्द, उल्टियां एवं दस्त होते रहते हैं। इसके साथ-साथ रोगी की आंखे लाल हो जाती है और कफ व पेशाब के साथ खून निकलने लगता है। इस रोग के होने पर रोगी को बेचैनी बढ़ जाती है।
1. सरसो : पीली सरसो, नीम के पत्ते, कपूरकचरी, जौ, तिल, खांड़ और घी आदि को लेकर आग में जलाकर धुआं करने से हमारे आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। यह धुआं प्लेग को फैलने से रोकता है।
2. गुग्गुल : धूप और गुग्गुल को हवन सामग्री के जले हुए उपले पर जलाकर धुआं करने से दूषित वातावरण शुद्ध हो जाता है और प्लेग जैसी बीमारी नहीं फैलती है।345821
3. कपूर : प्लेग से बचने के लिये और अपने आस-पास के वातावरण को शुद्ध करने के लिये कपूर को जलाकर घर में उसका धुआं करना चाहिए।
4. आंवला : प्लेग के रोग को दूर करने के लिये सोनागेरू, खटाई, देशी कपूर, जहर मोहरा और आंवला को 25-25 ग्राम की मात्रा में लेकर तथा पपीते के बीज 10 ग्राम लेकर एक साथ मिलाकर कूटकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को कागजी नींबू के रस मे 3 घंटों तक घोटने के बाद मटर के बराबर गोलियां बना लें। उन गोलियों में से एक गोली 7 दिनों में एक बार खाने से प्लेग की बीमारी में लाभ होता है।
5. पीपल : छोटी पीपल, कालीमिर्च, लोंग, आक के फूल, अदरक इन पांचों को एक ही मात्रा में लेकर और पीसकर मटर के बराबर गोलियां बनाकर 1-1 गोली प्रतिदिन पानी के साथ लेने से प्लेग के रोग में लाभ मिलता है और सिर का दर्द, उल्टियां व पसलियों का दर्द ठीक हो जाता है।
6. नौसादर : नौसादर, आक के फूल, शुद्ध वत्सनाग और पांचों नमक को बराबर मात्रा में मिलाकर और बारीक पीसकर प्याज के रस में 3 घंटों तक घोटकर लगभग आधा ग्राम की गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली ताजे पानी से प्रतिदिन सुबह-शाम और रात को खाने से प्लेग के रोगी को लाभ होता है।
7. मुनक्का : मुन्नका, सौंफ, पीपल, अनन्तमूल और रेणुका को बराबर मात्रा में लेकर इससे 8 गुना पानी में डालकर गर्म करें। चौथाई पानी शेष रहने पर इसे उतारकर और छानकर गुड़ व शहद के साथ मिलाकर रोजाना सेवन करें। इससे प्लेग के रोगी का रोग दूर हो जाता हैलाल चंदन : गिलोय, इन्द्रजौ, नीम की छाल, परवल के पत्ते, कुटकी, सोंठ और नागरमोथा को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाक उसमें 3 ग्राम पीपल का चूर्ण डालकर पीने से प्लेग का रोग दूर हो जाता है।
8. सोंठ : सोंठ, चित्रक, चव्य, पीपल और छोटी पीपल को बराबर मात्रा में लेकर उसको दरदरा यानी मोटा-मोटा कूटकर उसके 8 गुना पानी के साथ गर्म कर लें। चौथाई पानी बच जाने पर इसे छानकर सेवन करें। इससे प्लेग के रोग के कारण आने वाला बुखार मिट जाता है।
9. प्याज : कच्चे प्याज को सिरके के साथ प्रतिदिन खाने से प्लेग की बीमारी दूर हो जाती है।
10. जलधनिया : जलधनिया को पीसकर प्लेग की गांठो पर लगाने से लाभ मिलता है।
11. पपीता : पपीते को रोजाना सुबह-शाम खाने से प्लेग का रोग दूर हो जाता है और पेशाब एवं कफ में खून का आना बन्द हो जाता है।
12. सिरका : सिरके का सेवन करने से प्लेग की बीमारी दूर हो जाती है और सिर व पसलियों का दर्द दूर होता है।
13. लाजवन्ती : प्लेग के रोगी को 80 मिलीलीटर की मात्रा में लाजवन्ती के पत्तों का रस सेवन कराने से प्लेग रोग ठीक हो जाता है।
14. फिटकरी:
15. इमली : इमली का पानी पीने से प्लेग, गर्मी का ज्वर और पीलिया का रोग दूर होता है।
16. इन्द्रायण : इन्द्रायण की जड़ की गांठ को (इसकी जड़ में गांठे होती है) यथा सम्भव सबसे निचली या 7 वें नम्बर की लें। इसे ठंड़े पानी में घिसकर प्लेग की गांठों पर दिन में 2 बार लगायें। डेढ़ से 3 ग्राम तक की खुराक में इसे पीने से गांठे एकदम बैठने लगती है और दस्त के रास्ते से प्लेग का जहर निकल जाता है और रोगी की मूर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है।
17. अमलतास : अमलतास की पकी ताजी फली का गूदा बीजों सहित पीसकर प्लेग की गांठों पर लेप करने से आराम मिलता है।
18. नीम :
19. नारियल : नारियल के खोपरे को मूली के रस में घिसकर लेप करने से प्लेग के रोग में लाभ मिलता है।

पीलिया (JAUNDICE)

mata tara rani ki katha

पीलिया


          रक्त में लाल कणों की आयु 120 दिन होती है। किसी कारण से यदि इनकी आयु कम हो जाये तथा जल्दी ही अधिक मात्रा में नष्ट होने लग जायें तो पीलिया होने लगता है। रक्त में बाइलीरविन नाम का एक पीला पदार्थ होता है। यह बाइलीरविन लाल कणों के नष्ट होने पर निकलता है तो इससे शरीर में पीलापन आने लगता है। जिगर के पूरी तरह से कार्य न करने से भी पीलिया होता है। पत्ति जिगर में पैदा होता है। जिगर से आंतों तक पत्ति पहुंचाने वाली नलियों में पथरी, अर्बुद (गुल्म), किसी विषाणु या रासायनिक पदार्थों से जिगर के सैल्स में दोष होने से पत्ति आंतों में पहुंचकर रक्त में मिलने लगता है। जब खून में पत्ति आ जाता है, तो त्वचा पीली हो जाती है। त्वचा का पीलापन ही पीलिया कहलाता है।परिचय
:

          अधिकतर अभिष्यन्द पीलिया होता है। इसमें कुछ दिनों तक जी मिचलाता है, बड़ी निराशा प्रतीत होती है, आंखें और त्वचा पीली हो जाती है। जीभ पर मैल जमा रहता है तथा रोगी को 99 से 100 डिग्री तक बुखार रहता है। जिगर और पित्ताशय का स्थान स्पर्श करने पर कोमल प्रतीत होता है। पेशाब गहरे रंग का, मल बदबूदार, मात्रा में अधिक और पीला होता है।
4. सन्निपातज पाण्डु : इस तरह के पीलिया में तीनों दोषों के लक्षण दिखाई देते है। यह अत्यन्त असह्रा, घोर तथा कष्टसाध्य होता है। मिट्टी खाने के कारण उत्पन्न पीलिया में बल, वर्ण तथा अग्नि का नाश हो जाता है। नाभि, पांव तथा मूंह सूज जाते है। कृमि (पेट के कीड़े), कफ तथा रक्तयुक्त मल निकलता है। आंखों के गोलक, भौहों, तथा गाल पर भी सूजन आ जाती है।

कारण :

          अधिक स्त्री-प्रसंग (संभोग), खटाई, गर्म तथा चटपटे और पित्त को बढ़ाने वाले पदार्थ अधिक खाने, शराब अधिक पीने, दिन में अधिक सोने, खून की कमी तथा वायरस के संक्रमण के कारण, खट्टे पदार्थों का सेवन, राई आदि अत्यन्त तीक्ष्ण पदार्थों का सेवन आदि कारणों से वात, पत्ति और कफ ये तीनों दोष कुपित होकर पीलिया रोग को जन्म देते हैं।

लक्षण :

          बुखार, चक्कर आना, आंखों के सामने पीलापन दिखाई देना, कई बार आंखों के सामने अंधेरा छा जाना, आंखों में पीलापन, शरीर का पीला होना, पेशाब पीला आना, जीभ पर कांटे-से उग आना, भूख न लगना, पेट में दर्द, हाथ-पैरों में टूटन और कमजोरी, पेट में अफारा, शरीर से दुर्गंध का निकलना, मुंह कड़वा हो जाना, दिन-प्रति-दिन कमजोरी आना, शरीर में खून की कमी आ जाना आदि इस रोग के लक्षण है। रोग बढ़ने पर सारा शरीर हल्दी की तरह पीला दिखाई देता है। इसमें जिगर, पित्ताशय (वह स्थान जहां पत्ति एकत्रित होता हैं), तिल्ली और आमाशय आदि खराब हो जाते हैं।
          पीलिया रोग के अधिक बढ़ जाने पर सम्पूर्ण शरीर अथवा अंग विशेष में सूजन उत्पन्न हो जाती है। ऐसे रोगी को `असाध्य´ समझा जाता है। जिस रोगी के दांत, नाखून और आंखे पीली हो गई हो, हाथ, पांव तथा सिर में सूजन हो, सब वस्तुएं पीली दिखाई देती हो, गुदा, लिंग तथा अण्डकोषों पर सूजन हो तथा जिसका मल बंधा हुआ, अल्प, हरे रंग का तथा कफयुक्त हो, उसे असाध्य (जिसका इलाज नहीं हो सकता) समझा जाता है।
          पीलिया रोग में नाड़ी की गति कम (लगभग 45 प्रति मिनट), घी, तेल आदि चिकने पदार्थ नहीं पचते, जिगर में कड़ापन और दुखना, शरीर, आंखे, नाखून, मूत्र पीले दिखते हैं। शरीर में खुजली-सी चलने लगती हैं। शरीर में कहीं भी चोट लगने या किसी कारण से खून बहुत अधिक मात्रा में बहता है। आंखों का सूखना, रात को बहुत कम दिखता है। दिखने वाली वस्तुएं पीली दिखती है। वजन कम होना, पतले दस्त लगना, भूख कम लगना, पेट में गैस बनना, मुंह का स्वाद कड़वा, शरीर में कमजोरी-सी रहना, बुखार इसके प्रमुख लक्षण है। पहले रोगी को जुलाब दें, फिर औषधि सेवन करायें। सामान्यतया जुलाब से ही रोगी ठीक हो जाते है। इसके रोगी को पूर्ण विश्राम देना चाहिए।

भोजन तथा परहेज :

2. गिलोय :
37. ककड़ी : ककड़ी के रस में गाजर का रस मिलाकर पीने से संधिवात (गठिया) जैसे रोगों को दूर किया जा सकता है। खून में यूरिक एसिड की मात्रा अधिक हो जाती है तो संधिवात (गठिया) आदि की वेदना होती है। ककड़ी का रस एसिड को बाहर निकाल देता है। ककड़ी में पोटेशियम भी होता है, जो निम्न रक्तचाप के मरीजों के लिये भी गुणकारी होता है। ककड़ी से दांत और मसूढ़े भी मजबूत होते हैं। कई लड़कियां नाखूनों को बढ़ाकर सौंदर्य बढ़ाने की कामना करती है, परन्तु ना चाहते हुए भी उनके नाखून टूट जाते हैं, ऐसी औरतों को ककड़ी के रस का सेवन करना चाहिए। त्वचा के सफेद दाग आदि को दूर करने के लिये हरी घास का रस तथा 100 मिलीलीटर ककड़ी का रस मिलाकर हर रोज सुबह खाली पेट पीना चाहिए। बाल झड़ रहे हों तो इसके लिए गाजर एवं ककड़ी के रस को मिलाकर पीना चाहिए। ककड़ी के रस से बालों की लम्बाई बढ़ती है।