गुदा चिरना gurda chirna



गुदा चिरना


         यह रोग मलद्वार के छोर पर छोटे दाने निकल आने के कारण, दाने वाले जगह पर गुदा चिर जाने से उत्पन्न होता है। इसे गुदा चिर जाने का रोग कहते हैं। इस रोग के होने पर रोगी मल (पैखाना) त्याग करने से डरता रहता है। जिससे रोगी को कब्ज हो जाता है। इस रोग में रोगी को ऐसा भोजन करना चाहिए जिससे मल त्याग करने में आसानी हो एवं कब्ज न बनें। रोगी को नियमित आहार लेना चाहिए।परिचय :

लक्षण :

विभिन्न चिकित्सा से उपचार-

1. अंजीर : सूखा अंजीर 350 ग्राम, पीपल का फल 170 ग्राम, निशोथ, सौंफ, कुटकी और पुनर्नवा 100-100 ग्राम। इन सब को मिलाकर कूट लें और कूटे हुए मिश्रण के कुल वजन का तीन गुने पानी के साथ उबालें। एक चौथाई पानी बच जाने पर इसमें 720 ग्राम चीनी डालकर शर्बत बना लें। यह शर्बत 1 से 2 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम पीना चाहिए।
2. आंवला : मीठा आंवला 60 ग्राम, मुलहठी 60 ग्राम और कच्ची हरड़ 60 ग्राम को कूट-पीस व छानकर पाउडर बना लें। मुनक्का 450 ग्राम, बादाम 650 ग्राम और गुलकन्द 680 ग्राम बीजों को पीस लें और उसमें पाउडर डालकर पुन: अच्छी तरह से पीसें। यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध या पानी के साथ रात को सोते समय पियें। इससे गुदा की चिरन ठीक होती है।
3. हरड़ : पीली हरड़ 35 ग्राम को सरसों के तेल में तल लें और भूरे रंग का होने पर पीसकर पाउडर बना लें। उस पाउडर को एरण्ड के 140 मिलीलीटर तेल में मिला लें। रात को सोते समय गुदा चिरन पर लगायें। इससे गुदा चिरना दूर होता है।
4. भांगरा : भांगरा की जड़ और हल्दी के चूर्ण को पीसकर लेप करने से गुदाभ्रंश में लाभ मिलता है।