बाल रोगों में लाभदायक जड़ी-बूटियां (Useful herbs in children diseases)


बाल रोगों में लाभदायक जड़ी-बूटियां


 संस्कृत में अतिविषा के नाम से प्रसिद्ध औषधि का नाम ही
अतीस है। इसे प्रविविशा, विश्वा, श्रंणी, शुक्लकन्दा तथा शिशु भैषज्य आदि भी कहा गया है। हिंदी में अतीस को कड़वा भी कहते हैं। यह जहर का असर खत्म करने वाली होने के कारण भी अतिविषा कहलाती है। औषधि के रूप में इसका उपयोग प्राचीनकाल से ही होता रहा है।अतिविषा (अतीस) का बाल रोगों में उपयोग
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   अतीस के तीन भेद हैं- काली अतीस, सफेद अतीस और अरुण कन्दा। इनमें से काली अतीस का असर ही सबसे ज्यादा होता है। यह तिक्तरस प्रधान कड़वी होती है। श्वेतकन्दा और अरुणकन्दा में अधिक कड़वापन नहीं होता। ``निघण्टु संग्रह´´ के अनुसार श्वेतकन्दा में गुणों की अधिकता है। कहीं-कहीं इसके 4 भेद माने गये हैं- काली, सफेद, लाल और पीला। यूनानी चिकित्सा पद्धति में भी इसके चार भेद माने गये हैं। अतीस में उत्तेजक, पाचन, ग्राही तथा सभी दोषों का हरण करने वाली होने की खासियत है। बाल रोगों में भी इसका उपयोग अधिकता से होता है। ज्वर (बुखार), खांसी और दस्त होने पर यह देना बहुत ही लाभकारी माना जाता है। बच्चे के दांत निकलने के समय भी इसका प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है।
    आयुर्वेद का यह प्रसिद्ध योग है। पाचन तन्त्र (भोजन पचाने की जगह) को ठीक रखने और अतिसार आदि को रोकने में इसका विशेष योगदान है। दन्तोद्गम (दांत निकलने के समय) काल में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसमें 0.48 ग्राम से 0.60 ग्राम अतीस, छोटी पीपल, काकड़सिंगी और नागरमोथा बराबर मात्रा में लेकर कपड़े में छानकर चूर्ण बना करके और उसमें शहद मिलाकर बच्चे को चटाते हैं। इसको चटाने से बच्चों का ज्वरातिसार (बुखार के साथ दस्त होना), वमन (दूध उलटना), खांसी, श्वास (सांस) आदि रोग जल्दी दूर हो जाते हैं अथवा इसे थोड़े से पानी के साथ क्वाथित (काढ़ा) करके भी, छोटे बच्चों को 2-3 चम्मच की मात्रा में पिला देते हैं। ऐसा करने से जल्दी आराम आता है। अतीस जलन को भी शांत करती है। यह आम-दोष (पेट के रोग) को खत्म करने वाली है। बच्चों की बीमारी को दूर करने वाली होने के कारण अधिक उपयोगी है। अजीर्ण जन्य विकार (भूख न लगने के कारण हुए रोग), ग्रहणी-दोष, विष दोष (जहर के कारण), तथा शूल (दर्द) में भी जल्दी आराम आता है। अतीस की मात्रा बच्चों के लिए लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तक तथा बड़ों के लिए लगभग 1 ग्राम से लगभग 2 ग्राम तक हो सकती है। अकेले अतीस का चूर्ण भी बच्चों के रोगों में चमत्कारिक रूप से कार्य करता है। बच्चों के रोगों में प्रचलित एक अन्य योग भी अतीस मिश्रित है। उसका प्रयोग भी ज्वर (बुखार) और वमन (दूध पीकर उल्टी कर देना) किया जा सकता है।
परिचय : पिप्पली, जो कि पीपल के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है, आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग होने वाली मुख्य वनस्पति है। यह एक ऐसी बेल झाड़ी है। जिसकी शाखाएं धरती पर फैलती तथा ऊपर की ओर उठती हुई पास की झाड़ियों के साथ ऊंची भी उठ जाती है। देश के उष्ण (गर्म) भागों में यह खुद ही पैदा हो जाती है। मुरादाबाद, जिले के पास के जंगलों में भी पाई जाती है। दक्षिण भारत और बंगाल में इसकी खेती की जाती है।  
2. पिप्पली शरीर को ताजगी देने वाली, समशीतोष्ण, कटु, बिपाक में मधुर तथा जठराग्नि प्रदीपक है। पाचक रसों की वृद्धि करती है तथा गुल्म (फोड़ा), शूल (दर्द), हिक्का, उदर-विकार (पेट के रोग), खांसी, कुष्ठ (कोढ़) आदि रोगों में लाभ करने वाली है। मूत्र (पेशाब) और प्रजनन-संस्थान (बच्चा पैदा होने की जगह पर) पर इसका अच्छा प्रभाव रहता है। वात (गैस) और कफ (बलगम) को समाप्त करने में विशेष गुण-सम्पन्न मानी जाती है।
1. अफारा : अफारा (पेट में गैस), उदरशूल (पेट में दर्द), अरुचि (भोजन करने का मन न करना) तथा पाचन संस्थान से सम्बन्धित रोगों में इसका उपयोग किया जा सकता है। कसरत करने वाले पहलवान घी में कालीमिर्च मिलाकर पीते हैं। स्वर-भंग (आवाज बैठ जाना) तथा जुकाम आदि में भी इसका उपयोग किया जाता है। कालीमिर्च को दूध के साथ पकाकर रात को सोते समय पीने से पाचक रसों का उत्तेजन होता है।
मुलेठी : कड़वे नीम के पत्ते, दारूहल्दी, मुलेठी और घी को कूट-पीसकर, घी में मिलाकर मरहम बना लें। इस मरहम के लगाने से घाव (जख्म) अन्दर से भर जाता है। अगर घाव में खराबी हो, किसी भी दवाई से आराम न हुआ हो तो नीम के पत्ते डालकर पानी उबाल लें और उससे घाव को धोकर ऊपर से मरहम लगा दीजिये। घाव चाहे जैसा भी हो फोड़ा, नासूर या कोई भी कुछ दिनों तक लगातार यह मरहम लगाने से और घाव को धोने से आराम हो जाएगा। अगर फोड़ा फूटकर बहता हो, तो कड़वे नीम के पत्तों को पीसकर और शहद में मिलाकर लगाना चाहिए।
छुहारा : अगर बच्चा कमजोर हो तो उसे उम्र के अनुसार 6 से 30 ग्राम तक छुहारे लेकर पानी में धोकर साफ कर लें और गुठली निकालकर दूध में भिगो दें। थोड़ी देर बाद छुहारों को निकालकर सिल पर पीस लें और कपड़े में रस निचोड़ लें। इस तरह दिन में तीन बार हर बार ताजा रस निकालकर बच्चे को पिलायें। बच्चे के शरीर में खूब ताकत आ जायेगी। एक महीने से कम उम्र के बच्चे को यह रस नहीं पिलाना चाहिए।
छुहारा : अगर बालक को दस्त कराने हों तो रात को छुआरा पानी में भिगों दें। सवेरे उसे पानी में मसलकर निचोड़ लें और छुआरे को फेंक दें। उसके बाद वही पानी बच्चे को पिलाने से दस्त होंगे अथवा थोड़े से गुलाब के फूल और चीनी खिलाकर ऊपर से पानी पिला दें, दस्त होगें। बड़े आदमी को डेढ़ ग्राम शीरा, चीनी या शहद में मिलाकर चटाने से दस्त होगें। दो भाग दाख और एक भाग हरड़ को कूट-पीसकर 8 ग्राम तक रोज खाने से कब्ज (पेट में गैस) दूर हो जाती है।
गोरोचन : अगर बच्चे के पेट में मल (टट्टी) की गांठ बन गई हो, पेट फूल रहा हो, पसली दुखती हो, गालों पर सूजन हो, पेशाब पीला आ रहा हो, कमजोरी हो तो समझ लेना चाहिए कि `मुबारकी रोग´ हो गया है। अगर मुबारकी रोग हो तो 3 ग्राम खैर की अन्तरछाल और गोरोचन आधे उड़द के बराबर घिसकर गाय के दूध में मिलाकर रोज सवेरे 3 दिनों तक सेवन करने से मुबारकी रोग में आराम आता है।
4. फिटकरी : 1 ग्राम लोध, 1 ग्राम भुनी हुई फिटकरी, आधा ग्राम अफीम और 4 ग्राम इमली की पत्तियों को लेकर और सबको पीसकर पोटली बना लें और पानी में भिगो-भिगो कर आंखों पर फेरे। इससें आंखों का दर्द कम हो जाता है। 2-2 ग्राम इमली की पत्तियां, हल्दी और फिटकरी को लेकर बारीक पीसकर, पोटली बनाकर और पानी में भिगोकर आंखों पर लगाने से और थोड़ा सा आंखों में डालने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।
11. प्याज : अगर रतौंधी (आंख से कम दिखाई देना) हो, तो प्याज का रस आंखों में लगायें अथवा समुद्रफल का गूदा पीसकर, बकरी के पेशाब में मिलाकर आंखों में लगायें या लाहौरी नमक को सलाई से आंखों में लगायें अथवा दही के पानी में थूक मिलाकर आंख में लगाएं अथवा अदरक का रस आंखों में डालें और हुक्के के नीचे का कीट आंखों में लगाएं अथवा कालीमिर्च अपने थूक में मिलाकर आंखों में लगाने से रतौंधी (आंख से कम दिखाई देना) में आराम आता है।
परिचय : तुलसी एक ऐसी वनस्पति है जो धार्मिक हिन्दू समुदाय में बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। बच्चे, बूढ़े, औरते और आदमी सभी इसके सेवन से लाभ उठाते हैं। तुलसी जुकाम, खांसी, बुखार, सूखा रोग (रिकेटस), डब्बा रोग, पसलियों का चलना, बच्चों का निमोनिया, कब्ज और अतिसार (दस्त), सभी में रोगों में चमत्कारी रूप से अपना असर दिखाती है।
2. प्रतिश्याय : प्रतिश्याय (जुकाम) होने पर 50 ग्राम तुलसी के पत्ते, 20 ग्राम बनफ्शा, 10 ग्राम मुलहठी को लेकर पानी के साथ उबालकर छान लें। फिर 10 ग्राम मिश्री के साथ शर्बत की तरह चाशनी तैयार कर लें। मात्रा : 1 चम्मच तक उम्र और ताकत के अनुसार दें। इससे जुकाम, खांसी, अफारा, वमन (उल्टी) आदि रोगों में लाभ होता है। सामान्य ज्वर (बुखार) की हरारत भी दूर हो जाती है।
5. उल्टी और दस्त : वमन (उल्टी) और अतिसार (दस्त) में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग या जरूरी मात्रा में फुलाया हुआ चौकिया सुहागा, तुलसी के पत्तों के रस के साथ पीस लें और किंचित मधु-योग (शहद मिलाकर) मूंग के बराबर की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसकी 1-1 गोली को पानी के साथ देना चाहिए। इससे बच्चों की उल्टी दस्त में आराम मिलता है।