दमा (श्वास रोग)
सांस लेने में दिक्कत या कठिनाई महसूस होने को श्वास रोग कहते हैं। इस रोग की अवस्था में रोगी को सांस बाहर छोड़ते समय जोर लगाना पड़ता है। इस रोग में कभी-कभी श्वांस क्रिया चलते-चलते अचानक रुक जाती है जिसे श्वासावरोध या दम घुटना कहते हैं। श्वांस रोग और दमा रोग दोनों अलग-अलग होते हैं। फेफड़ों की नलियों की छोटी-छोटी तंतुओं (पेशियों) में जब अकड़नयुक्त संकोचन उत्पन्न होता है तो फेफड़ा सांस द्वारा लिए गए वायु (श्वास) को पूरी अन्दर पचा नहीं पाता है जिससे रोगी को पूरा श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ने को मजबूर हो जाता है। इसी स्थिति को दमा या श्वास रोग कहते हैं।परिचय :
हिन्दी |
दमा। |
अंग्रेजी |
डिसनिया, बोंयिल अस्थमा। |
बंगाली |
श्वस। |
गुजराती |
दम। |
कन्नड़ |
गुरलू दम्मु। |
मलयालम |
वलिवु। |
मराठी |
दमा। |
उड़िया |
श्वास, ढकी सिआसी। |
तमिल |
इझाईप्पु। |
तेलगू |
उब्बसमु। |
अरबी |
श्वास |
श्वास रोग एक एलर्जिक तथा जटिल बीमारी है जो ज्यादातर श्वांस नलिका में धूल के कण जम जाने के कारण या श्वास नली में ठंड़ लग जाने के कारण होती है।
दमा रोग जलन पैदा करने वाले पदार्थों का सेवन करने, देर से हजम होने वाले पदार्थों का सेवन करने, रसवाहिनी शिराओं को रोकने वाले तथा दस्त रोकने वाले पदार्थों के सेवन करने के कारण होता है। यह रोग ठंड़े पदार्थों अथवा ठंड़ा पानी अधिक सेवन करने, अधिक हवा लगने, अधिक परिश्रम करने, भारी बोझ उठाने, मूत्र का वेग रोकने, अधिक उपश्वास तथा धूल, धुंआ आदि के मुंह में जाने के कारणों से श्वास रोग उत्पन्न होता है।
अधिक दिनों से दूषित व बासी ठंड़े खाद्य पदार्थों का सेवन करने और प्रदूषित वातावरण में रहने से दमा (अस्थमा) रोग होता है। कुछ बच्चों में दमा रोग वंशानुगत भी होता है। माता-पिता में किसी एक को दमा (अस्थमा) होने पर उनकी संतान को भी (अस्थमा) रोग हो सकता है।
वर्षा ऋतु में दमा रोग अधिक होता है क्योंकि इस मौसम में वातावरण में अधिक नमी (आर्द्रता) होती है। ऐसे वातावरण में दमा (अस्थमा) के रोगी को श्वास लेने में अधिक कठिनाई होती है और रोगी को दमा के दौरे पड़ने की संभावना रहती है। दमा के दौरे पड़ने पर रोगी को घुटन होने लगती है और कभी-कभी दौरे के कारण बेहोश भी होकर गिर पड़ता है।
दमा से पीड़ित रोगी को एक बार में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए।
दमा से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम बकरी का दूध पीना चाहिए।
रोगी को खुली धूप में कभी नहीं बैठना चाहिए।
रोगी के लिए धूप के पास वाले छायादार स्थान में बैठना लाभकारी होता है।
रोगी को मन शान्त रखना चाहिए और किसी भी प्रकार की चिन्ता, तनाव, क्रोध और उत्तेजना से बचना चाहिए।
रोगी की छाती पर प्रतिदिन सुबह सूर्य की किरण डालनी चाहिए।
रोगी को ठंड़ी या गर्म चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को हल्का तथा पाचक भोजन लेना चाहिए।
गले तथा छाती को ठंड़ से बचाना चाहिए। पेट में कब्ज हो जाए तो उसे दूर करने के लिए फलों का रस गर्म करके सेवन करना चाहिए। दस्त लाने वाले चूर्ण का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि दमा के रोगी की सहनशक्ति बहुत कम होती है।
भोजन में गेहूं की रोटी, तोरई, करेला, परवल, मेथी, बथुआ आदि चीजे लेनी चाहिए।
पुराने सांठी चावल, लाल शालि चावल, जौ, गेहूं, पुराना घी, शहद, बैंगन, मूली, लहसुन, बथुआ, चौलाई, दाख, छुहारे, छोटी इलायची, गोमूत्र, मूंग व मसूर की दाल, नींबू, करेला, बकरी का दूध, अनार, आंवला तथा मिश्री आदि का सेवन करना दमा रोग में लाभकारी होता है।
इस रोग में ठंडी चीजे, दूध, दही, केला, संतरा, सेब, नाशपाती, खट्टी चीजे आदि नहीं खानी चाहिए। शराब तथा बीड़ी-सिगरेट पीना भी हानिकारक होता है।
दमा के रोगी को रूखा, भारी तथा शीतल पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। सरसों, भेड़ का घी, मछली, दही, खटाई, रात को जागना, लालमिर्च, अधिक परिश्रम, शोक, क्रोध, गरिष्ठ भोजन और दही आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
1. सुहागा :
भुना हुआ सुहागा लगभग 75 ग्राम और शहद 100 ग्राम को मिलाकर रख लें और रात को सोते समय यह 1 चम्मच की मात्रा में चाटें। इससे श्वास रोग (दमा) में बहुत लाभ मिलता है।
सुहागा का फूला और मुलहठी को अलग-अलग कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और फिर इन दोनों औषधियों को बराबर मात्रा में मिलाकर किसी शीशी में सुरक्षित रख लें। यह चूर्ण आधा से 1 ग्राम की मात्रा में दिन में 2-3 बार शहद के साथ चाटने से या गर्म जल के साथ सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है। इससे खांसी व जुकाम भी नष्ट होता है। बच्चों के दमा रोग में यह चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग की मात्रा में देना चाहिए। इस औषधि का सेवन करते समय दही, केला चावल तथा ठंड़े पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
3. अडूसा क्षार (अर्कक्षार, वासा) :
अडूसा का रस लगभग आधा ग्राम और आधा ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करने से दमा रोग शान्त होता है।
अडूसा के सूखे पत्ते व काले धतूरे के सूखे पत्ते को मिलाकर चूर्ण बना लें और इसका धूम्रपान करें। इससे जीर्णश्वांस (पुराना दमा रोग) को दूर होता है।
अडूसा के सूखे पत्तों का चूर्ण चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा रोग में बहुत आराम मिलता है।
अडूसा लगभग आधा ग्राम, अडू़सा का रस 10 बूंद और लौंग का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में लेकर मिला लें और यह प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें। इससे दमा का दौरा शान्त होता है।
दमा से पीड़ित रोगी को अडू़सा, अंगूर व हर्रा को मिलाकर काढ़ा बना लें और इसमें शहद व चीनी मिलाकर सेवन करें। इसका प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से कफ निकलकर दमा शान्त होता है।
वासा के रस में शहद मिलाकर पीने से अधिक खांसी युक्त श्वास में लाभ होता है। यह क्षय, पीलिया, बुखार और रक्तपित्त में लाभकारी होता है।
अड़ू़सा (वासा) और अदरक का रस 5-5 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर दिन में 3-3 घंटे के अन्तर पर सेवन करने से 40 दिनों में दमा ठीक हो जाता है।
लगभग आधा मिलीलीटर अपामार्ग का रस शहद में मिलाकर 4 चम्मच पानी के साथ भोजन के बाद सेवन करने से गले व फेफड़ों में जमा कफ निकल जाता है और दमा ठीक होता है।
चिरचिटा की जड़ को सुखाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ खाने से श्वांस रोग दूर होता है। (ध्यान रखें कि चिरचिटा की जड़ को निकालते समय इसकी जड़ में लोहा न छूने पाए)।
अपामार्ग 1 किलो, बेरी की छाल 1 किलो, अरूस के पत्ते 1 किलो, गुड़ 2 किलो, जवाखार 50 ग्राम, सज्जीखार लगभग 50 ग्राम और नौसादर लगभग 125 ग्राम। इन सभी को पीसकर 1 लीटर पानी में पकाएं। जब यह पकते-पकते 5 किलो बच जाए तो इसे उतारकर डिब्बे में भरकर मुख बन्द करके 15 दिनों के लिए रख दें। 15 दिनों बाद इसे छानकर 7 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से श्वास और दमा रोग नष्ट हो जाता है।
अपामार्ग के बीजों को जलाकर धूम्रपान की तरह चिलम में भरकर पीने से श्वांस रोग में आराम मिलता है।
अपामार्ग का रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ निकलकर श्वांस रोग नष्ट होता है।
लगभग 1 ग्राम अदरक के रस को 1 चम्मच पानी के साथ सुबह-शाम लेने से दमा व श्वांस रोग ठीक होता है।
अदरक के रस में शहद मिलाकर खाने से सभी प्रकार के श्वांस रोग, खांसी, जुकाम तथा अरुचि आदि ठीक होते हैं।
अदरक के रस में कस्तूरी मिलाकर सेवन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
पिप्पली तथा सैंधानमक को पीसकर चूर्ण बना लें और इसमें अदरक का रस मिलाकर रात को सोते समय सेवन करें। इससे दमा, खांसी व कफ नष्ट होता है।
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग जस्ता के भस्म में 6 ग्राम अदरक का रस व 6 ग्राम शहद मिलाकर रोगी को देने से दमा व खांसी दूर होती है।
अदरक का रस शहद के साथ सेवन करने से बुढ़ापे में उत्पन्न दमा ठीक होता है।
अदरक की चासनी में तेजपात व पीपल का चूर्ण मिलाकर चाटने से श्वांसनली में जमा कफ निकल जाता है और दमा के दौरे शान्त होते हैं।
छिलका उतारकर अदरक को खूब महीन पीस लें और छुहारे के गूदे को बारीक पीस लें। अब इन दोनों को शहद में मिलाकर किसी साफ बड़े बर्तन में अच्छी तरह से मिला लें। अब इसे मिट्टी के बर्तन में भरकर आटे से बर्तन के मुंह को बन्द कर दें और इसे गड्ढ़े में रखकर मिट्टी से ढक दें। 36 घंटे बाद सावधानी से मिट्टी हटाकार बर्तन को बाहर निकल लें और मुंह के ऊपर से आटे को हटाकर रख लें। यह प्रतिदिन सुबह नाश्ते के समय तथा रात में सोने से पहले 1 चम्मच की मात्रा में सेवन करें और ऊपर से 1 गिलास मीठा गुनगुना दूध पीएं। इससे श्वास व दमा रोग ठीक होता है।
7. सोंठ :
सोंठ, सेंधानमक, जीरा, भुनी हुई हींग और तुलसी के पत्ते इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इनमें से 10 ग्राम चूर्ण 300 मिलीलीटर पानी में उबालकर पीने से अस्थमा रोग ठीक होता है।
सोंठ, कालानमक, भुनी हुई हींग, अनारदाना एवं अम्लबेंत बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण से दुगना गुड़ लेकर मिला लें और इसकी गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली मुंह में रखकर चूसने से गले की खुश्की दूर होती और खांसी व दमा में लाभ मिलता है।
सोंठ, हरड़ और नागरमोथा बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और इसे छानकर दुगने गुड़ में मिलाकर गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली चूसने से दमा के दौरे व खांसी में आराम मिलता है।
हरड़ तथा सोंठ को पानी के साथ पीस लें और यह लगभग 6 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ सेवन करें। इससे हिचकी दूर होती है और दमा में आराम मिलता है।
लगभग 25 ग्राम सोंठ को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें और जब पानी 100 मिलीलीटर बच जाए तो इसे छानकर ठंड़ा करके 6 ग्राम शहद मिलाकर पीएं। इसका कुछ दिनों तक सेवन करने से सर्दी, जुकाम, खांसी और दमा रोग ठीक होता है।
9. सैंधवादि तेल : दमा रोग से पीड़ित रोगी की छाती पर प्रतिदिन सैंधवादि तेल की मालिश करने से छाती में जमा कफ ढीला होकर निकल जाता है और दमा ठीक होता है।
10. तेजपात :
ग्वारपाठा के पत्ते 250 ग्राम और सेंधानमक 25 ग्राम को मिलाकर चूर्ण बना लें और इसे एक मिट्टी के बर्तन में रखकर भस्म बना लें। यह भस्म 2 ग्राम की मात्रा में 10 ग्राम मुनक्का के साथ खाने से दमा रोग समाप्त होता है।
ग्वारपाठा का एक किलो गूदा लेकर छान लें और इसे किसी कलईदार बर्तन में रखकर धीमी आंच पर पकाएं। जब यह लुबावदार हो जाए तो इसमें 36 ग्राम लाहौरी नमक खूब महीन पीसकर डाल दें और स्टील के चम्मच से खूब हिलाते रहें। जब सब पानी जलकर केवल चूर्ण शेष रह जाए तो इसे उतार लें और ठंड़ा होने पर इसे खूब बारीक चूर्ण बनाकर साफ बोतलों में रख लें। फिर इसे लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर खाने से पुरानी खांसी, काली खांसी और दमा रोग समाप्त होता है।
13. नींबू :
नींबू का रस 10 मिलीलीटर और अदरक का रस 5 मिलीलीटर मिलाकर हल्के गर्म पानी के साथ पीने से अस्थमा का रोग नष्ट होता है।
एक नींबू का रस, 2 चम्मच शहद व 1 चम्मच अदरक का रस लेकर 1 कप गर्म पानी में डालकर पीएं। इसका सेवन प्रतिदिन सुबह करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।
दमा का दौरा पड़ने पर गर्म पानी में 1 नींबू निचोड़कर पीने से लाभ मिलता है। यह हृदय रोग, ब्लड प्रेशर तथा पाचन संस्थान के लिए लाभकारी होता है।
10 ग्राम लहसुन के रस को हल्के गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा में सांस लेने में होने वाली परेशानी दूर होती है।
लगभग 2 बूंद लहसुन का रस और 10 बूंदे कुठार का रस को शुद्ध शहद के साथ दिन में 4 बार दमा के रोगी को सेवन कराएं। इससे दमा व श्वास की बीमारी ठीक होती है।
लहसुन को आग में भूनकर चूर्ण बना लें और इसमें सोमलता, कूट, बहेड़ा, मुलेहठी व अर्जुन की छाल का चूर्ण बनाकर मिला लें। यह चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से दमा और श्वास की बीमारी ठीक होती है।
लगभग 15-20 बूंद लहसुन के रस को हल्के गर्म पानी के साथ सुबह, दोपहर और शाम को खाने से दमा और श्वास की बीमारी दूर होती है।
लहसुन को कुचलकर उसका रस निकालकर गुनगुना करके पीने से श्वास रोग में लाभ मिलता है।
दमा के रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन लहुसन, तुलसी के पत्ते व गुड़ को चटनी बनाकर सेवन करना चाहिए।
लहसुन की पूती को भूनकर सेंधानमक के साथ चबाकर खाने से खांसी व दमा के दौरे में आराम मिलता है।
10 बूंद लहसुन के रस को 1 चम्मच शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
लहसुन की 20 कलियां और 20 ग्राम गुड़ को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो इसे छानकर लहसुन की कलियां खाकर पानी को हल्का ठंड़ा करके पीएं। इसका उपयोग प्रतिदिन एक बार करने से श्वास व दमा रोग में आराम मिलता है।
लहसुन के तेल से छाती व पीठ की मालिश करनी चाहिए।
प्याज का रस, अदरक का रस, तुलसी के पत्तों का रस व शहद 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह-शाम खाने से अस्थमा रोग नष्ट होता है।
सफेद प्याज का रस और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर चाटने से दमा ठीक होता है।
प्याज को कूटकर सूंघने से खांसी, गले की खराश, टांसिल, फेफड़ों के रोग आदि में आराम मिलता है।
प्याज के रस में शहद मिलाकर चाटने से भी लाभ मिलता है।
प्याज का काढ़ा 40-60 मिलीलीटर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।
सफेद प्याज के रस में थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से श्वास रोग दूर होता है।
हल्दी को पीसकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को भूनकर शीशी में बन्द करके रखें। यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में हल्के गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
हल्दी, कालीमिर्च, मुनक्का, रास्ना, छोटी पीपल, कचूर और पुराना गुड़ इन सभी को एक साथ पीसकर सरसों के तेल में मिला लें और यह एक ग्राम की मात्रा का सेवन करने से तेज श्वास रोग व दमा ठीक होता है।
हल्दी को पीसकर तवे पर भूनकर शहद के साथ चाटने से श्वास रोग में आराम मिलता है।
हल्दी किशमिश, कालीमिर्च पीपल, रास्ना और कचूर 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और इसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। यह 2-2 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से दमा की शिकायते खत्म होती हैं।
हल्दी की 2 गांठे, अड़ूसा (वासा) के 1 किलो सूखे पत्ते, 10 ग्राम कालीमिर्च, 50 ग्राम सेंधानमक और 5 ग्राम बबूल के गोंद को मिलाकर पीस लें और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। यह 5-6 गोलियां प्रतिदिन चूसते रहने से खुश्की दूर होती है, कफ निकल जाता है और दमा ठीक होता है।
हल्दी को रेत में सेंककर पीस लें और 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ सेवन करें। इससे दमा नष्ट होता है।
यदि अधिक खांसने पर भी कफ न निकलता हो तो छाती पर सरसों के 20 मिलीलीटर तेल में 5 ग्राम सेंधानमक मिलाकर मालिश करें। इससे छाती में जमा कफ ढीला होकर निकल जाता है और दमा में आराम मिलता है। दमा के दौरे पड़ने पर भी इसका उपयोग लाभकारी होता है।
पुराना गुड़ और सरसों का तेल 10-10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर प्रतिदिन 1 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से 3 सप्ताह में ही सभी प्रकार के श्वांस रोग जड़ सहित नष्ट होते हैं।
बच्चे को खांसी आती हो तो उसके छाती पर सरसों के तेल की मालिश करें। इससे खांसी ठीक होती है और कफ की गांठ निकल जाती है।
श्वास रोग तथा खांसी में इसकी जड़ का चूर्ण आधे से एक ग्राम गर्म पानी या दूध के साथ सुबह-शाम पीने से कफ (बलगम) बाहर निकल जाता है।
20. अंजीर :
अंजीर के 4 दाने को रात को सोते समय पानी में डालकर रख दें और सुबह अंजीर को उसी पानी में थोड़ा सा मसलकर पानी पी लें। इसका प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा में बहुत लाभ मिलता है और कब्ज भी नष्ट होती है।
यदि कफ अधिक मात्रा में आता हो तो खाली पेट अंजीर प्रतिदिन खाना चाहिए।
2 से 4 सूखे अंजीर को दूध में गर्म करके खाने से कफ की मात्रा घटती है और दमा (अस्थमा) रोग ठीक होता है।
अंजीर, बेल, अंगूर, आंवला, लहसुन, संतरा या पुदीना, अदरक, नारियल, पालक, सुहजना व शहद आदि को मिलाकर दमा के रोग में पी सकते हैं।
2 खजूर की गुठली निकालकर उसके गूदे में 3 ग्राम सौंफ का चूर्ण मिलाकर पान के साथ सेवन करने से अस्थमा के कारण होने वाली सांस की रुकावट दूर होती है।
खजूर और सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर पान में रखकर खाने से दमा रोग ठीक होता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन खजूर का सेवन करना चाहिए।
4 खजूर, 2 इलायची और 2 चम्मच शहद को मिलाकर खरल में घोटकर सेवन करने से दमा नष्ट होता है।
कत्था, हल्दी और मिश्री 2-2 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अस्थमा में बहुत लाभ मिलता है।
कत्था, हल्दी और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 2 से 4 बार सेवन करने से दमा व सांस की रुकावट दूर होती है।
खैरसार की लकड़ी का चूर्ण डेढ़ ग्राम की मात्रा में दमा से पीड़ित रोगी को सेवन करना चाहिए। इससे दमा व खासीं में आराम मिलता है।
लगभग 20 ग्राम अकरकरा को 200 मिलीलीटर पानी में उबालें और जब पानी केवल 50 मिलीलीटर की मात्रा में शेष रह जाए तो इसमें शहद मिलाकर उतार लें। यह काढ़ा अस्थमा के रोगी को सेवन कराने से अस्थमा रोग ठीक होता है।
अकरकरा की जड़ का काढ़ा बना लें और इसमें शहद मिलाकर सेवन करें। इससे कफ निकल जाता है और दमा में आराम मिलता है।
अंकोल की जड़ को नींबू के रस में घिसकर आधा चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम भोजन करने से 2 घंटे पहले खाने से दमा में अत्यंत लाभ मिलता है। इससे गले की घड़घड़ाहट भी दूर होती है और गले का दर्द भी ठीक होता है।
अंकोल की छाल, राई व लहसुन 6-6 ग्राम लेकर बारीक चूर्ण बना लें और इसमें 15 ग्राम 3 वर्ष पुराना गुड़ मिलाकर गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली प्रतिदिन सेवन करने से गले की खुश्की दूर होती है और दमा के दौरे में आराम मिलता है।
अनार के दानों को पीसकर चूर्ण बना लें और 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार खाएं। यह अस्थमा रोग के लिए अत्यंत गुणकारी औषधि है।
अनार के फूल 10 ग्राम, कत्था 10 ग्राम, कपूर 2 ग्राम और लौंग 4 पीसकर पान के रस में घोटकर चने के आकार की गोलियां बनाकर रखें। यह 2-2 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से दमा में लाभ होता है।
27. पुष्करमूल :
पुष्कर की जड़ को पीसकर इसमें 2 ग्राम अतीस चूर्ण व शहद मिलाकर चाटें। इसका उपयोग करने से अस्थमा में बहुत लाभ मिलता है।
पुष्कर चूर्ण को गाय के घी के साथ सेवन करने से श्वांस रोग में आराम मिलता है।
पुष्कर की जड़, पीपल, हरड़ की छाल, सोंठ, कपूर और कमलगट्टा बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 2 चुटकी की मात्रा में पानी के साथ सेवन करें। यह दमा रोग के लिए बेहद लाभकारी औषधि है।
2 लौंग को 150 मिलीलीटर पानी में उबालकर पीने से अस्थमा और सांस का रुकना दूर होता है।
लौंग तथा कालीमिर्च का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर त्रिफला तथा बबूल के रस के काढ़े में घोलकर 2 चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से श्वास रोग नष्ट होता है।
लौंग, त्रिगुणा, नागरमोथा काकड़ासिंगी, बहेड़ा और रीगणी बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और यह ग्वारपाठे के रस में मिलाकर चने के आकार की गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली सुबह-शाम दमा से पीड़ित रोगी को देने से रोग ठीक होता है।
लौंग मुंह में रखने से गले में जमा कफ आराम से निकलता है और कफ की दुर्गंध भी दूर होती है।
बहेड़े को थोड़े से घी से चुपड़कर पुटपाक विधि से पकाएं। जब वह पक जाए तब मिट्टी आदि हटाकर बहेड़ा को निकाल लें और इसका बक्कल चूसें। इससे खांसी, जुकाम, स्वरभंग (गला बैठना) आदि रोगों में बहुत जल्द लाभ मिलता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को बहेड़े का छिलका मुंह में रखना चाहिए। इससे सांस रोग ठीक होता है।
बहेड़े का छिलका 40 ग्राम लेकर बहुत महीन पीस लें और इसमें फुलाया हुआ नौसादर 2 ग्राम और सोनागेरू 1 ग्राम बारीक पीसकर मिला लें। यह चूर्ण 2-3 ग्राम तक की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम सेवन से दमा रोग ठीक होता है।
बहेड़े के छिलकों का चूर्ण बनाकर बकरी के दूध में पका लें और इसमें शहद मिलाकर दिन में 2 बार चाटें। यह दमा व कफ निकलने में बेहद उपयोगी औषधि है।
छोटी पीपल, सोंठ और आंवला बराबर मात्रा में लेकर लगभग 2-3 ग्राम तक की मात्रा में चूर्ण बना लें और थोड़े से घी व शहद के साथ खाएं। दमा से पीड़ित रोगी के लिए यह बहुत लाभकारी औषधि है।
लगभग 1 ग्राम की मात्रा में छोटी पीपल का चूर्ण और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मोरपंख की भस्म मिलाकर शहद के साथ चाटने से श्वांस की बीमारी खत्म होती है।
मक श्वांस (पीनस) रोग में छोटी पीपल, मुलेठी, दामन पापड़ा 2-2 या 8-8 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें और शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करें। यह दमा रोग ठीक करता है।
कालीमिर्च, पुष्करमूल और यवक्षार को पानी उके साथ पीसकर गर्म पानी में घोलकर पीएं। इससे श्वास और हिचकी की बीमारी दूर होती है।
कालीमिर्च और शुद्ध गंधक को गाय के घी के साथ मिलाकर खाने से खांसी खत्म होती है।
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग श्रृंग-भस्म और 2 कालीमिर्च पानी के साथ पीसकर खाने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
कालीमिर्च, काकड़ासिंगी सोंठ, पीपल, नागरमोथा व कचूर इन सभी को 10-10 ग्राम की मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 2 चुटकी की मात्रा में प्रतिदिन शहद के साथ खाएं। इसके उपयोग से दमा और श्वास की बीमारी में बहुत लाभ मिलता है।
कालीमिर्च व मिश्री का चूर्ण मलाई के साथ खाने से श्वास रोग से छुटकारा मिलता है। इससे पुरानी से पुरानी खांसी भी ठीक हो जाती है।
कालीमिर्च का बारीक चूर्ण और पिसी हुई मिश्री या चीनी को बराबर मात्रा में लेकर मिलाकर 1 से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से खांसी व सांस की रुकावट दूर होती है। इस चूर्ण के सेवन करने से गला साफ होता है और आवाज भी मधुर होती है।
कालीमिर्च 10 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम, हरी इलायची 10 ग्राम और तेजपात 5 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और इसमें 50 ग्राम गुड़ मिलाकर चने के बराबर की गोलियां बनाकर सुखा लें। यह 2-2 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम चूसने से दमा के रोग में आराम मिलता है।
कालीमिर्च 2 ग्राम, पीपर 2 ग्राम, सोंठ 2 ग्राम, हरी इलायची 2 ग्राम को चूर्ण बनाकर इसमें 6 ग्राम गुड़ को मिलाकर चने के बराबर की गोलियां बना लें। प्रतिदिन दिन में 2-3 बार 1-1 गोली चूसने से सभी प्रकार की खांसी व दमा ठीक होता है।
कालीमिर्च, सोंठ, छोटी पीपल और भुना सुहागा बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीसकर छान लें और थोड़े से पानी में घोटकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली दिन में 3-4 बार खाने से श्वास व कफ दूर होता है।
सोंठ और हरड़ का काढ़ा बनाकर 1 या 2 मिलीलीटर की मात्रा में गर्म पानी के साथ लेने से श्वांस रोग ठीक होता है।
हरड़, बहेड़ा, आमला और छोटी पीपल बराबर मात्रा में लेकर उसका चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर चाटने से श्वांसयुक्त खांसी खत्म होती है।
हरड़ को कूटकर चिलम में भरकर पीने से श्वांस रोग ठीक होता है।
कायफल, पुष्करमूल, काकड़ासिंगी, नागरमोथा, सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल और कचूर बराबर मात्रा में छानकर रख लें। यह चूर्ण अदरक के रस और शहद के साथ सेवन करने से गले में जमा कफ निकल जाता है। यह श्वांस, खांसी, उल्टी, अरुचि, वातरोग तथा दर्द आदि को भी ठीक करता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को सोंठ और कायफल के चूर्ण का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करना चाहिए। इससे रोग में बेहद लाभ मिलता है।
कायफल, सोंठ, पोहकर-मूल, काकड़ासिंगी, भारंगी और छोटी पीपल को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर रख लें। यह चूर्ण 6 ग्राम से 10 ग्राम तक की मात्रा में लेकर शहद मिलाकर खाएं। श्वास तथा कफज-खांसी में यह लाभकारी होता है।
कायफल के पेड़ की छाल के रस में चीनी मिलाकर श्वांस रोग से पीड़ित रोगी को पिलाने से रोग में आराम मिलता है।
36. पान :
लगभग 5 से 10 मिलीलीटर पान के रस को शहद के साथ या अदरक के रस के साथ प्रतिदिन 3-4 बार रोगी को देने से दमा या श्वांस का रोग ठीक होता है।
गजपीपली का चूर्ण पान में रखकर सेवन करने से श्वास रोग शान्त होता है।
पान में चूना और कत्था बराबर मात्रा में लगाकर 1 इलायची और 2 कालीमिर्च डालकर धीरे-धीरे चबाकर चूसते रहने से दमा के रोग में आराम मिलता है।
जावित्री को पान में रखकर खाने से दमा का रोग ठीक होता है।
38. शिकाकाई की फलियां : शिकाकाई की फलियों का काढ़ा 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दोनों समय रोगी को देने से सांस की रुकावट दूर होती है और दमा का कष्ट दूर होता है।
39. पालक :
41. भटकटैया :
भटकटैया की जड़ का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर तक की मात्रा में या इसके पत्तों का रस 2 से 5 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीने से दमा रोग ठीक होता है।
भटकटैया के पंचांग को छाया में सुखाकर 4 से 6 ग्राम चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग रस सिंदूर मिलाकर 6 ग्राम शहद के साथ सेवन करें। इससे श्वांस तथा खांसी में बहुत लाभ मिलता है।
43. पीपल :
लगभग आधा ग्राम पीपल के चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम रोगी को देने से नई और पुरानी खांसी दूर होती है। इसका उपयोग दमा का दौरा पड़ने व स्वरभंग (गला बैठना) में भी लाभकारी होता है।
पीपल के सूखे फलों का चूर्ण लगातार 14 दिन तक पानी के साथ लेने से श्वास की बीमारी दूर होती है।
लगभग 2 ग्राम पीपल की छाल के चूर्ण को पानी के साथ फांकने से दमा रोग में आराम मिलता है।
पीपल के ताजे पत्तों को छाया में सुखाकर कूट छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 5-5 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सुबह-शाम लेने से दमा रोग ठीक होता है।
पीपल, कालीमिर्च, सोंठ और चीनी इन सभी को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार गर्म पानी से सेवन करें। इससे श्वास सम्बंधी बीमारी ठीक हो जाती है।
पीपल के फलों को सुखाकर चूर्ण बना लें और 2 चुटकी चूर्ण शहद के साथ सेवन करें। यह दमा रोग के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।
पीपल तथा पोहकर की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर 2 चुटकी की मात्रा में पानी के साथ सेवन करें। इससे सांस व दमा रोग ठीक होता है।
यदि सांस फूलती है या हल्के दमा का रोग हो तो पीपल, कालीमिर्च, सोंठ तथा चीनी बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें और दिन में 3-4 बार इसका मुंह में रखकर चूसें या शहद में मिलाकर खाएं। ध्यान रहें कि घी, चावल सिगरेट, आलू, ठंड़ी लस्सी, फ्रिज का पानी व उड़द की दाल का कम से कम या बिल्कुल भी प्रयोग न करें।
पीपल के पत्तों को छाया में सुखाकर आग में जलाकर भस्म (राख) बना लें। यह भस्म आधा-आधा चम्मच थोड़े से शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटने से श्वास की बीमारी ठीक होती है। 1 महीने तक यह प्रयोग करने से दमा जड़ से समाप्त होता है।
पीपल की छाल और पके हुए फल का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण को आधा चम्मच की मात्रा में रोजाना 3-4 बार शहद के साथ लेने से दमा के रोग में आराम मिलता है।
यदि भूख कम लगना, अपच, गैस बनना, पुरानी खांसी, जुकाम, दमा, कफ आदि हो तो पीपल को दूध में मिलाकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट 4 सप्ताह तक सेवन करें। इससे सभी रोग ठीक होता है और दमा में भी आराम मिलता है।
पीपल के सूखे फलों को पीसकर 2-3 ग्राम की मात्रा में 14 दिन तक पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे दमा रोग ठीक होता है।
4 पीपल के पत्तों को पीसकर, 1 चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन सुबह चाटने से सांस रोग में आराम मिलता है। इसका सेवन 15 दिन तक करने से खांसी और दमा के रोग में आराम मिलता है। पीपल के हरे पत्ते को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें और आधा चम्मच की मात्रा में पानी के साथ फंकी लेने से यक्ष्मा (टी.बी.) की बलगम वाली खांसी ठीक होती है।
पीपल की लाख का चूर्ण बनाकर घी व चीनी के साथ मिलाकर खाने से दमा और ऊध्र्व दमा के रोग मे आराम मिलता है।
45. घी : घी में हींग को भूनकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी में घोलकर रोगी को पिलाने से दमा रोग ठीक होता है। इससे फुफ्फुस के अनेक रो गों में लाभ मिलता है।
46. कुलिंजन : कुलिंजन का चूर्ण लगभग आधा ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से श्वांस रोग ठीक हो जाता है।
47. तेजफल : तेजफल का चूर्ण बनाकर चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा रोग ठीक होता है।
48. इन्द्रायण :
दमा या फेफड़े के अन्य पुराने विकारों में इन्द्रयव (इन्द्रायण) के भूने हुए चूर्ण लगभग 1 से 4 ग्राम तक की मात्रा में शहद के साथ काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
इन्द्रायण की जड़ या फल की गिरी को खाने से श्वांस रोग ठीक होता है।
इन्द्रायण के फल को चिलम में रखकर पीने से दमा के दौरे शान्त होते हैं।
50. अगर : अगर का इत्र 1 से 2 बूंद पान में डालकर खिलाने से तमक श्वांस रोग ठीक मिलता है।
51. सुगंधवाला : सुगंधवाला की फांट या घोल का सेवन करना श्वांस रोग (दमा) में लाभकारी होता है।
52. गुग्गल : दमा रोग से पीड़ित रोगी को गुग्गुल लगभग आधा से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दोनों समय घी के साथ सेवन करना चाहिए। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
53. जयपत्री : कफयुक्त दमा में जयपत्री लगभग आधा ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। इसे अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे चक्कर, सन्यास या बेहोशी आदि लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
54. तालीसपत्र :
तालीस के पत्तों का चूर्ण लगभग 1 ग्राम से 2.50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस रोग में लाभ मिलता है।
तालीस के पत्तों का चूर्ण 1 से 2 ग्राम शहद एवं वासा रस के साथ सुबह-शाम सेवन करने से दमा में आराम मिलता है।
तालीस व हल्दी को मिलाकर चिलम में भरकर चूर्ण बनाकर लेने से श्वांस रोग ठीक होता है।
आक (मदार) की जड़ की छाल का चूर्ण 20 ग्राम, अफीम 10 ग्राम और सेंधा नमक 70 ग्राम। इन सभी को मिलाकर इसमें से लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम सेवने करने से दमा में पर्याप्त लाभ मिलता है।
आक (मदार) के फूलों को राब में उबालकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।
आक (मदार) के पत्ते और कालानमक 250 ग्राम कूट-पीसकर मिट्टी के बर्तन में जलाकर राख बना लें और यह लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में अदरक के रस के साथ सेवन करें। इससे खांसी और दमा मिटता है।
10 ग्राम आक की कोपल, 10 ग्राम अजवाइन और 50 ग्राम गुड़ को बारीक पीसकर चने के आकार की गोलियां बना लें और यह 1-1 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें।
आक का पत्ता और 5 दाने कालीमिर्च अच्छी तरह पीसकर मटर के बराबर की गोलियां बनाकर रख लें। यह 1-1 गोली सुबह-शाम 7 दिनों तक सेवन करने से दमा नष्ट होता है।
आक की छोटी सी कोपल को पान में रखकर सुबह-शाम चबाकर खाने से धीरे-धीरे दमा ठीक होता है।
2 ग्राम गुड़ में आक की 5 बूंदे मिलाकर खाने से 7 दिनों में ही दमा रोग से आराम मिल जाता है। सर्दी व बरसात के मौसम में दोनों समय इसका सेवन करना चाहिए।
मदार के पत्ते जो पेड़ से पीले होकर गिर पड़े हों उन्हें 300 ग्राम की मात्रा में एकत्र कर लें और इस पर चूना 10 ग्राम व सांभर नमक 10 ग्राम को पीसकर लगाएं। फिर इसे सुखाकर मिट्टी के बर्तन में रखकर उपलों की आग में पकाएं। जब यह राख हो जाए तो इसे निकालकर पीस लें और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में पान में रखकर सेवन करें। इससे दमा में आराम मिलता हैं। ध्यान रहें कि दूध, दही, खटाई तथा लालमिर्च का सेवन करना हानिकारक होता है।
आक के नर्म पत्तों के रस में जौ भिगोकर सुखा लें और इसका सत्तू बनाकर शहद के साथ सेवन करें। इससे सेवन से दमा में आराम मिलता है।
आक के फूलों की कलियां 2 ग्राम, छोटी पीपल 1 ग्राम और लाहौरी नमक 1 ग्राम को पीसकर मटर के आकार की गोलियां बना लें। यह गोली चूसने से दमा के दौरे में आराम मिलता है।
58. कंटकरंज : श्वांस रोग से पीड़ित रोगी को कंटकरंज के बीजों का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए। इसका सेवन प्रतिदिन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
59. टंकारी (तुलसीपति) : टंकारी (तुलसीपति) की जड़ को पीसकर सुहागे की लावा व शहद में मिलाकर सेवन करने से श्वांस की रुकावट दूर होती है और कफ ढीला होकर निकल जाता है।
60. नागबला : नागबला की जड़ की छाल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ पीसकर या चूर्ण बनाकर सेवन करने से बहुत लाभ मिलता है। दूध के योग के साथ-साथ यदि आहार में दूध का ही लगातार एक महीना सेवन किया जाए तो रोग जल्दी ठीक होता है।
61. जवासा : दमा से पीड़ित रोगी को जवासे का धूम्रपान करना चाहिए।
62. धमासा :
63. रीठा :
दमा रोग में केले के तने का रस कालीमिर्च के साथ मिलाकर 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लेने से लाभ मिलता है।
28 मिलीलीटर केले के ताजा रस को 28 ग्राम दूब के रस में मिलाकर 41 दिनों तक लगातार सेवन करने से भयंकर से भयंकर दमा भी ठीक हो जाता है।
केले के तने का रस असाध्य दमा रोग को दूर करता है लेकिन इसका उपयोग करते समय ध्यान रखें कि केले का रस जब रोगी को दें तब खाने में केवल दूध, भात ही देना चाहिए।
नियमित रूप से 2 से 4 छुहारा मिश्री मिले दूध में उबालकर गुठली हटाकर छुहारा खाने के बाद वही दूध पीने से बहुत लाभ मिलता है। इससे शरीर में ताकत आती है तथा कफ निकल जाता है जिससे श्वास रोग में राहत मिलती है।
पान में छुहारा व सोंठ रखकर कुछ दिनों तक चूसने से श्वास रोग दूर होता है।
छुहारा गर्म होता है और यह फेफड़े व छाती को बल देता है। कफ व सर्दी में इसका सेवन लाभकारी होता है।
बादाम को गर्म पानी में शाम को भिगोकर रख दें और दूसरे दिन सुबह बादाम को थोड़ी देर पकाकर उसका पेय बना लें। यह पेय 20 से 40 ग्राम तक की मात्रा में सेवन करें। इससे श्वांस सम्बंधी सभी बीमारियां ठीक होती है।
5-7 बादामों की मींगी निकालकर पीस लें और इसे पानी के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। यह काढ़ा रोगी को पिलाने से दमा का दौरा रुक जाता है।
68. कसौंदी : कसौंदी का रस 5 से 10 ग्राम लेकर शहद के साथ सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से उल्टी एवं दस्त भी हो सकता है। अत: इसका सेवन सामान्य मात्रा में ही करें।
69. अफीम : वनकान्हू की अफीम 1 से 2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वांस में लाभ मिलता है।
70. तैलपत्र : दमा में तैलपत्र का तेल सूंघने से दमा में राहत मिलती है।
71. उस्तखुदूस : उस्तखुदूस का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर या चूर्ण 40 से 80 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस कष्ट में लाभ मिलता है।
72. मेरडू : मेरडू की जड़ लगभग चौथाई ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से छाती व गले में जमा कफ निकल जाता है और दमा में आराम मिलता है। इसे अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी और दस्त हो सकता है।
73. हरमल : हरमल के बीज का चूर्ण 2 से 4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
74. कालानमक :
श्वांस रोग से पीड़ित रोगी को पहले दिन कालानमक को शहद में मिलाकर सेवन करना चाहिए और फिर आधा-आधा ग्राम प्रतिदिन बढ़ाते हुए 6 ग्राम तक सेवन करना चाहिए। इस औषधि के सेवन के बाद थोड़ी देर तक प्यास लगने पर गुनगुना पानी ही पीएं। इस नमक के सेवन से श्वांस रोग नष्ट होता है।
सेंधानमक 10 ग्राम और देशी बूरा 40 ग्राम को मिलाकर पीस लें और आधा चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करें। इससे दमा रोग में आराम मिलता है।
76. अजाझाड़ा : अजाझाड़ा के पत्ते चिलम में भरकर पीने से दमा रोग दूर होता है।
77. अरीठा : अरीठा की मींगी या आम की गुठली की गिरी को खाने से दमा के दौरे शान्त होते हैं।
78. आकड़ा :
आकड़ा के एक पत्ते को 25 कालीमिर्च के साथ पीस लें और इसकी कालीमिर्च के बराबर की गोलियां बना लें। 7 गोली वयस्कों को तथा 2 गोली बच्चों को देने से श्वास रोग नष्ट होता है।
आकड़े के 4 पत्ते और 8 चम्मच कालीमिर्च को बारीक पीसकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर रख लें। 10 दिन तक इसकी 1-1 गोली सुबह-शाम गर्म पानी से लें। इससे कफ, खांसी, हिस्टीरिया तथा दमा में लाभ मिलता है।
लगभग 3-4 महीने लगातार दिन 2 बार ईसबगोल की भूसी का सेवन करने से सभी प्रकार के श्वांस रोग नष्ट होता है।
साबुत ईसबगोल 10-10 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से 1 महीने में ही दमा नष्ट हो जाता है। ध्यान रहें कि परहेज में चावल, तले पदार्थ, गुड़, तेल, खटाई, बादी वाले पदार्थों का सेवन न करें और ठीक हो जाने के बाद भी कम से कम 6 महीने तक परहेज रखें।
1 चम्मच इसबगोल की भूसी को दूध के साथ लगातार सुबह-शाम कुछ महीनों तक सेवन करने से दमा के रोग में लाभ मिलता है।
82. सीताफल : सीताफल की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से दमा दूर होता है।
83. सनाय :
84. कौंच :
86. चोबचीनी : 100 ग्राम चोबचीनी को 800 मिलीलीटर पानी के साथ पकाएं। जब पानी केवल 300 मिलीलीटर शेष रह जाए तो उसे उतार लें और ठंड़ा करके 25 से 75 ग्राम तक की मात्रा में दिन में 3-4 बार पीने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
87. मूली :
सूखी मूली उबालकर उसका रस पीने से श्वांस रोग और हिचकी दूर होती है।
रसवत और कलमीशोरा 40-40 ग्राम लेकर 1 बोतल मूली के रस में कूटकर सूखा लें और इससे बेर के बराबर की गोलियां बनाकर सुखा लें। इससे सुबह-शाम 2 से 3 बार ताजे पानी के साथ सेवन करने से खांसी दूर होती है और दमा शान्त होता हैं।
20 ग्राम सूखी मूली को पीसकर लगभग 500 मिलीलीटर पानी में पकाएं और पानी केवल चौथाई भाग रह जाए तो इसे छानकर पीएं। इससे श्वांस में निश्चित रूप से फायदा होता है।
मूली के छोटे-छोटे टुकड़े करके कलईदार पात्र में या स्टेनलेस स्टील के बर्तन में भरकर इतना शहद डाले कि मूली के टुकड़े शहद में डूब जाएं। फिर बर्तन का मुख ढक्कन से बन्दकर उसकी संधियों को उड़द के आटे से बन्द करके 10-12 घंटे रखने के बाद निकालकर मूली के टुकड़ों को खूब मसलकर शहद में मिश्रित कर लें। यह प्रतिदिन 20 से 30 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वांस में निश्चित रूप से लाभ मिलता है।
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग भांग को घी में भूनकर रख लें और फिर इसमें कालीमिर्च व मिश्री मिलाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण प्रतिदिन सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है।
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग भांग को सेंककर 2 ग्राम कालीमिर्च व 2 ग्राम मिश्री में मिलाकर सेवन करने से दमा में उत्पन्न दौरे समाप्त करते हैं।
भांग का धुंआ पीने से श्वांस रोग में लाभ मिलता है।
91. अमलतास : अमलतास की गिरी का काढ़ा बनाकर पीने से दस्त आकर दमा समाप्त होता है।
92. वज्रदन्ती : अडूसा, कटेरी और वज्रदन्ती का रस नागबेल के पान में लगाकर चूसने से दमा मिटता है।
93. गिलोय :
नौसादर पान में रखकर खाने से श्वांसनली के विभिन्न रोग नष्ट होते हैं।
नौसादर को चिलम में रखकर धूम्रपान करने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
नौसादर 10 ग्राम पीसकर तवे के बीचोबीच रख दें और इसके चारों तरफ 3-4 इंच दूर 200 ग्राम पिसे हुए नमक को गोलाकार में रख दें। तवे को एकत्था बर्तन से ढक दें और तवे को चूल्हे पर चढ़ाकर करीब 1 घंटे तक धीमी आंच पर पका लें। यह एक चुटकी की मात्रा में चीनी के बताशे में रखकर दिन में 2 बार सेवन करें। इससे दमा के दौरे में आराम मिलता है।
97. जावित्री :
99. फिटकरी :
सफेद फिटकरी का फूला 2 ग्राम, 1 गांठ सोंठ, हल्दी एक गांठ, 5 कालीमिर्च को चीनी में मिलाकर खाने से श्वांस व खांसी दूर होती है।
भुनी हुई फिटकरी 1 ग्राम, बारहसिंगा की भस्म (राख) 2 ग्राम, मिश्री 3 ग्राम मिलाकर पानी के साथ सुबह के समय 5 दिनों तक सेवन करने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
आग पर फुलाई हुई फिटकरी 20 ग्राम तथा मिश्री 20 ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें और यह 1-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह के समय सेवन करें। इससे दमा रोग में आराम मिलता है। दूध, घी, मक्खन, तेल, खटाई, तेज मिर्च मसालों से परहेज रखना चाहिए। मक्खन निकला हुआ मट्ठा तथा सब्जियों के सूप आदि लेना चाहिए।
फूली हुई फिटकरी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में मुंह में डालकर चूसते रहने से कफ, दमा व गले की खराश दूर होती है।
पिसी हुई फिटकरी 1 चम्मच को आधा कप गुलाबजल में मिलाकर सुबह-शाम पीने से दमा ठीक होता है।
20 ग्राम फिटकरी और 20 ग्राम हल्दी को अलग-अलग पीसकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने पर दमा, खांसी तथा कफ समाप्त होता है।
101. बेल :
बेलपत्र का रस और अडूसे के पत्तों के रस को सरसों के तेल में मिलाकर 6-6 ग्राम 7 दिनों तक पीने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
बेल के पत्तों का रस 10 मिलीलीटर, पीपल और बड़ी इलायची का चूर्ण 125-125 ग्राम की मात्रा में मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है।
छोटे बेल की गिरी 250 ग्राम और हरड़ 125 ग्राम की मात्रा में उबालें और जब यह 100 ग्राम की मात्रा में बच जाए तो इसे मसलकर छान लें। इस काढ़े में गाय का 1 किलो ताजा घी मिलाकर दुबारा आंच पर आधा पानी रहने तक पकाएं। फिर इसमें कालानमक डालकर पकाएं। जब सारा पानी जल जाए और केवल घी शेष रहे जाए तो इसे साफ सूखी बर्तन में भरकर रख लें। इसे 10 से 20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
10 ग्राम गुड़ को 10 मिलीलीटर सरसों के तेल में मिलाकर खाने से 21 दिन में श्वास रोग मिट जाता है।
दमा के रोगियों के लिए शहद, प्याज, लहसुन व तुलसी की चाय बहुत लाभकारी होती है। दालचीनी मुंह में डालकर चूसते रहने से दमा के दौरे में आराम मिलता है।
दमा से पीड़ित रोगी को सर्दी के मौसम में गुड़ और काले तिल का लड्डू बनाकर खाना चाहिए। इससे दमा में लाभ मिलता है। दमा न होने पर भी इसके खाने से दमा नहीं होता है।
106. मिश्री : समीन पन्नग रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिश्री के शर्बत के साथ सुबह-शाम लेने से श्वांस नलिका या गले के अन्दर जमा कफ निकल जाता है। इससे खराश दूर होती है और दमा का वेग ठीक होता है।
107. कपूर :
कपूर और भुनी हुई हींग 10-10 ग्राम की मात्रा में पीसकर अदरक के रस में मिलाकर चने के बराबर की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। यह 1-1 गोली दिन में 3-4 बार पानी के साथ लेने से दमा रोग ठीक होता है।
कपूर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को हींग मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से अस्थमा की तकलीफ में आराम मिलता है।
कपूर को उबले पानी में डालकर सूंघने से श्वसन सम्बन्धी रोग समाप्त होते हैं।
श्वास रोग, चोट, मोच आदि की शिकायत हो तो प्रतिदिन रात को थोड़ी सी कपूर मुंह में रखकर सोना चाहिए।
109. बरगद : दमा के रोगी को बरगद के पत्ते जलाकर उसकी राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में पान में रखकर खाना चाहिए। यह दमा में बेहद लाभकारी औषधि है।
110. सोमलता : सोमलता 50 ग्राम कूटकर आधा एक ग्राम की मात्रा में दौरे के समय रोगी को देने से दमा रोग में लाभ मिलता है।
111. तम्बाकू : तम्बाकू की गुल को आग में जलाकर उसका राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में पान में रखकर खाने से श्वांस सम्बंधी रोग ठीक होते हैं।
112. हालू : पीसी हुई हालू 20 ग्राम और शहद 60 ग्राम को मिलाकर पीस लें और यह 5-5 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार सेवन करें। इसका उपयोग दमा व कफ के लिए बेहद लाभकारी होता है।
113. लाहौरी नमक : आखड़े के सूखे फूल 20 ग्राम और लाहौरी नमक 5 ग्राम को पीस लें और पानी मिलाकर चने के आकार की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। यह 2-2 गोली दिन में 3-4 बार चूसने से श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।
114. कैथा : कैथ के रस में शहद तथा छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से श्वांस रोग नष्ट होता है।
115. बावची : बावची, हल्दी, छोटी पीपल, आम्बाहल्दी, कालीमिर्च, कालानमक, काला जीरा और भुना हुआ सुहागा प्रत्येक 20-20 ग्राम तथा सज्जी 10 ग्राम इन सभी को पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 से 4 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ लेने से दमा रोग शान्त होता है।
116. धनिया :
118. मुलेठी :
मुलेठी, सोंठ और भूरी गरी को बराबर मात्रा में लेकर एक कप पानी में उबालें और पानी जब आधा रह जाए तो इसमें चीनी डालकर उतार लें। यह काढ़ा सुबह-शाम दोनों समय पीने से खांसी व दमा में बेहद लाभ मिलता है।
मुलेठी 50 ग्राम, सनाय 20 ग्राम और सोंठ 10 ग्राम को बारीक पीसकर महीन चूर्ण बना लें। यह आधा चम्मच चूर्ण शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से श्वांस रोग में आराम मिलता है।
10 ग्राम मुलेठी का चूर्ण, 5 ग्राम कालीमिर्च, एक गांठ अदरक को पानी में काढ़ा बनाकर पीएं। यह दमा के लिए बेहद लाभकारी औषधि है।
खांसी व दमा के रोग से पीड़ित रोगी को 5 ग्राम मुलेठी को 1 गिलास पानी में उबालें और जब पानी आधा रह जाए तो उस पानी को सुबह-शाम पिएं। यह 3-4 दिन लगातार पीने से कफ पतला होकर निकल जाता है।
50 ग्राम मुलेठी और सोनामुखी (सनाय) 20 ग्राम को अलग-अलग कूटकर मिला लें। यह चूर्ण 1 चम्मच रात को सोते समय पानी से लें। इस दवा के सेवन करने से सुबह शौच 2-3 बार ढीला भी आ सकता है। इससे घबराना नहीं चाहिए। अधिक बार शौच आने लगे तो दवा की मात्रा आधी करके लेनी चाहिए। इससे तेज व पुराना दमा आसानी से नष्ट हो जाता है।
कफ सूख जाने पर 10 ग्राम मुलेठी पॉउडर को 25 मिलीलीटर पानी में उबालकर घी, मिश्री व सेंधानमक मिलाकर पीएं। इससे कफ ढीला होकर निकल जाता है।
121. अलसी :
123. तुलसी :
तुलसी व अदरक का रस 5-5 मिलीलीटर लेकर शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से दमा व खांसी दूर होती है।
दमा से पीड़ित रोगी को तुलसी के पत्ते और कालीमिर्च का सेवन करना चाहिए।
एक साल से अधिक वायु वाले बच्चे को यदि दमा रोग हो तो उसे प्रतिदिन तुलसी की 5 पत्तियां खूब बारीक पीसकर शहद के साथ सुबह-शाम 3-4 सप्ताह तक चटाएं। एक साल से कम आयु वाले छोटे बच्चे को तुलसी के पत्तों का रस 2 बूंद शहद में मिलाकर दिन में 2 बार चटाएं। बच्चों के दमा के साथ-साथ श्वांस संस्थान के अनेक रोग जड़ से समाप्त हो जाते हैं।
तुलसी का रस, शहद, अदरक का रस व प्याज का रस मिलाकर सेवन करने से दमा और खांसी में लाभ मिलता है।
कफ या दमा होने पर 1 चम्मच तुलसी के रस में अदरक व शहद 1-1 चम्मच मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
बच्चों के दमा के अलावा पुराना सिर दर्द, पुराना माइग्रेन, पुरानी एलर्जिक सर्दी, पुराना दमा आदि रोग को ठीक करने के लिए तुलसी के पत्तों का प्रयोग करना लाभकारी होता है। प्रतिदिन सुबह तुलसी की 7-8 हरी पत्तियां बारीक पीसकर शहद के साथ बच्चे को चटाने से दमा व अन्य रोग ठीक होते हैं।
125. करेला :
128. भारंगी :
भारंगी, छोटी पीपल, कायफल, सोंठ, पोहकर की जड़ और काकड़ासिंगी बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से श्वास रोग नष्ट होता है।
भारंगी लगभग 1 किलो, दशमूल 1 किलो और हरड़ 1 किलो को मिलाकर 1 लीटर पानी के साथ पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए तो उसे उतार लें। उसमें एक किलो गुड़ तथा पकाई हुई 1 किलो हरड़ मिलाकर फिर से पकाएं और जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसे उतार लें। इसमें सोंठ 10 ग्राम, मिर्च 10 ग्राम, पीपल 10 ग्राम, दालचीनी 10 ग्राम, तेजपात 10 ग्राम, इलायची 10 ग्राम और जवाक्षार 6 ग्राम को पीसकर मिला लें। यह 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से दमा व कफ दूर होता है।
130. चकोतरा :
चकोतरा का शर्बत बनाकर 4-5 बोतलों में भर लें। यदि सर्दी या बरसात का मौसम हो तो बिना पानी मिलाएं यह शर्बत सेवन करें। यह शर्बत 5-5 मिलीलीटर की मात्रा में 8 दिनों तक सेवन करने से खांसी, बलगम आदि दूर हो जाता है।
आम की गिरी का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में चकोतरे शर्बत की चाशनी में मिलाकर चटाने से खांसी भी नष्ट हो जाती है तथा दमा ठीक होता है।
133. भूरींगनी : भूरींगनी, मुलेठी, सोंठ 5-5 ग्राम की मात्रा में एक गिलास पानी में उबालें और आधा बचने पर छानकर शहद मिलाकर पीएं। यह दमा के लिए बेहद लाभकारी औषधि है।
134. नीलाथोथा : पुराना दमा हो तो एक ग्राम भुना हुआ नीलाथोथा और गुड़ बराबर मात्रा में लेकर आक के दूध में खरल करके 7-8 गोलियां बनाकर 1-1 गोली दिन में 2 बार सेवन करें। हल्का भोजन जैसे दलिया और खिचड़ी खाना चाहिए। इससे 7-8 दिनों में ही लाभ मिलता है।
135. संतरा : संतरों के रस में शहद को मिलाकर पीने से हृदय रोग में आराम मिलता है। टी.बी. दमा, जुकाम, श्वास के रोग और बलगम होने पर संतरे के रस को चुटकी भर नमक और 1 चम्मच शहद के साथ पीना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है।
136. जीरा : दमा होने पर जीरा, कालीमिर्च, नमक और मट्ठा मिलाकर सेवन करना चाहिए।
137. खीपड़ा : खीपड़ा सुखाकर पीसकर 1 चम्मच सुबह-शाम लेने से अस्थमा नष्ट होता है।
138. मौसमी :
139. पोदीना : दमा, खांसी, मन्दाग्नि, जुकाम होने पर चौथाई कप पोदीने का रस इतना ही पानी मिलाकर प्रतिदिन पीते रहने से लाभ मिलता है।
140. गेहूं :
142. शहतूत : शहतूत का शर्बत सभी प्रकार के कफ को नष्ट कर देता है।
143. जायफल : 1 ग्राम जायफल और 1 ग्राम लौंग के चूर्ण में 3 ग्राम शहद और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग वंगभस्म को मिलाकर खाने से श्वास रोग में लाभ मिलता है।
144. खसखस : खसखस के दाने 300 ग्राम, पोस्त के डोडे 500 ग्राम को चीनी मिट्टी के बर्तन में 1 लीटर पानी में रात को भिगो दें और सुबह इसे पीसकर पुन: उसी पानी में घोलकर कपड़े से छान लें। इस घोल को कलईदार कड़ाही में डालकर आग पर कुछ गाढ़ा होने तक पकाएं और इसमें 50 ग्राम मुलहठी का चूर्ण मिलाकर आंच से उतारकर कांच के बर्तन में रख लें। इसे लगभग 4-4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से दमा बहुत जल्द ठीक होता है।
145. आंवला : ताजे आंवले की गुठली को अलग करके गूदे को महीन पीसकर कपडे़ से निचोड़कर 10 लीटर रस इकट्ठा करके लोहे की कड़ाही में हल्की आंच पर हलवे जैसा काढ़ा होने तक पकाएं। फिर उसमें 2 किलो घी डालकर हल्का लाल होने तक भूने। अब एक अन्य बर्तन में 5 लीटर दूध औटाकर उसमें इच्छानुसार चीनी और बादाम की गिरी को महीन काटकर डाल दें। अब इसे आंवले के रस में मिलाकर पुन: भून पकाएं। इसे सर्दी के दिनों में गर्म दूध के साथ 10-12 ग्राम की मात्रा में लें। गर्मी के दिनों में इसे ठंड़े दूध के साथ लेनी चाहिए। इसके सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ती है। असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। त्वचा में चमक आ जाती है और शरीर पुष्ट हो जाता है। वीर्य संबन्धी दोष भी इसके सेवन से दूर हो जाते हैं। इससे दमा रोग में बेहद लाभ मिलता है।
146. देवदार : देवदार, खिरेटी, बालछड़ के चूर्ण को घी में मिलाकर धूम्रपान करने से श्वास रोग नष्ट होता है।
147. काकड़ासिंगी :
काकड़ासिंगी, सोंठ, पीपल, नागरमोथा, पोहकर की जड़, कचूर और कालीमिर्च इन सभी को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में खाण्ड मिलाकर खाएं। ऊपर से गिलोय, अडूसा तथा पंचमूल का काढ़ा बनाकर पीएं। इससे तेज से तेज दमा का रोग नष्ट होता है।
दमा की शिकायत होने पर काकड़ासिंगी की मींगी और कायफल के चूर्ण को मिलाकर 1-1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 2 बार खाने से दमा में आराम मिलता है।
149. विटामिन- ´ई´ : दमा ठीक करने में इस विटामिन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यह रक्तकणों के निर्माण में लाभ करता है। वायु प्रदूषण के कारण शरीर में होने वाले हानिकारक तत्वों के प्रभाव को विटामिन- ´ई´ कम करता है। एक खुराक में विटामिन- ´ई´ की मात्रा लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग के लगभग होनी चाहिए। विटामिन `ई´ अंकुरित गेहूं, पिस्ता, सोयाबीन, सफोला तेल, नारियल, घी, ताजा मक्खन, टमाटर, अंगूर तथा सूखे मेवे आदि में मिलता है।
150. कैल्शियम : दमा में कैल्शियमम युक्त भोजन लाभकारी होता है। यह लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग के लगभग होना चाहिए। आवश्यकतानुसार इसकी अधिक मात्रा भी ली जा सकती है। शरीर को जितनी कैल्शियम की आवश्यकता होती है, वह प्रतिदिन 50 ग्राम तिल खाने से मिल जाती है। कैल्शियम दूध, पालक, चौलाई, सोयाबीन, सूखे मेवे, आंवला, गाजर और पनीर में पाया जाता है।
151. दालचीनी : दालचीनी का छोटा सा टुकड़ा, तुलसी के पत्ते, नौसादर एवं ज्वार के दाने बराबर मात्रा में लेकर एक बड़ी इलायची, 4 काले मुनक्के और थोड़ी सी मिश्री मिलाकर बारीक पीस लें और इसका उपयोग करें। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
152. मालकांगनी :
मालकांगनी के बीज और छोटी इलायची, दोनों को समान मात्रा में पीसकर आधा चम्मच की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम खाने से दमा रोग में आराम मिलता है।
मालकांगनी, मैनफल, अर्क की जड़ का बारीक चूर्ण तथा मुलेठी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 2 से 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें। इससे दमा और जुकाम ठीक होता है।
धतूरा के सूखे पत्तों का धूम्रपान करने से श्वास की बीमारी नष्ट होती है।
धतूरा, अपामार्ग और जवांसा बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण लें और यह चूर्ण 2 चुटकी चिलम में रखकर पीएं। इससे दमा के दौरे ठीक होते हैं।
धतूरे के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को कूटकर सूखा लें और चिलम में रखकर धूम्रपान की तरह उपयोग करें। इससे श्वास रोग नष्ट हो जाता है।
धतूरे के दूध को छाती पर लगाने से छाती में जमा कफ निकल जाता है और दाम में आराम मिलता है।
धतूरे के बीज 6 ग्राम और अफीम 2 ग्राम को पानी में पीसकर 33 गोलियां बना लें और छाया में सुखाकर यह 1-1 गोली दिन में 3 बार चूसें। यह दमा को ठीक करता है।
धतूरे के फलों का भस्म (राख) लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में शहद के साथ सेवन करने से दमा खत्म होता है।
धतूरे के फल लेकर दो बराबर हिस्सों में काट लें। आधे भाग के बीजों को निकालकर फेंक दें और उसमें छोटी इलायची का चूर्ण अच्छी तरह से भर दें और दूसरे भाग के बीज निकाले बिना ही दोनों को मिलाकर धागे से लपेटकर पहले की तरह जोड़ दें। इसके ऊपर महीन कपड़ा लगाकर ऊपर गीली मिट्टी का लेप कर उपले के आग में पकाएं और जब यह अच्छी तरह जल जाए तो इसे ठंड़ी करके कपड़ा व मिट्टी हटाकर धतूरे का फल निकाल लें। अब धतूरे को पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लें। यह 2 या 3 गोली दमा के रोग से पीड़ित रोगी को शहद में मिलाकर देने से दमा में आराम मिलता है।
155. दूधी : दमा रोग से पीड़ित रोगी को 5 से 10 मिलीलीटर दूधी के पंचांग का काढ़ा या रस शहद में मिलाकर पीना चाहिए।
156. शहद :
158. कलौंजी : 1 चुटकी नमक, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और 1 चम्मच घी मिलाकर छाती और गले पर मालिश करें और साथ ही आधा चम्मच कलौंजी का तेल दो चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीएं। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
159. शरपुंखा : श्वास रोग में शरपुंखा का 2 ग्राम लवण शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है।
160. गोखरू : गोखरू के फल के गूदे का चूर्ण 2 ग्राम को 2-3 सूखे अंजीर के साथ दिन में 3 बार कुछ दिनों तक सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है।
161. वच :
25 ग्राम वच को लगभग 100 मिलीलीटर पानी में उबालें और एक चौथाई पानी शेष रह जाने पर छानकर दिन में 3 बार सेवन करें। इससे सूखी खांसी, पेट में गैस का बनना और पेट का दर्द खत्म होता है।
बच्चों की खांसी में मां के दूध में वच को घिसकर पिलाने से लाभ होता है।
वच के चूर्ण को कपड़े में रखकर सूंघने से जुकाम व दमा में आराम मिलता है।
163. शलजम :
बन्दगोभी, गाजर, सेम और शलजम का रस मिलाकर सुबह-शाम 14 दिनों तक पीने से दमा रोग में लाभ मिलता है। इससे दमा, खांसी, छाती की जकड़न तथा कफ बनना आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
शलजम को पानी में उबालकर चीनी मिलाकर पीना दमा के रोगियों के लिए लाभदायक होता है।
एक कप शलजम के रस को गर्म करके चीनी मिलाकर पीने से दमा के दौरे में आराम मिलता है।
165. छोटी दुद्धी : रविवार के दिन सुबह छोटी दुद्धी लाकर 6 ग्राम और 3 ग्राम सफेद जीरा महीन पीसकर पानी में घोलकर पीएं। इस दिन केवल दही में चिवड़ा भिगोकर इच्छानुसार खाना चाहिए। अगले दिन सोमवार को दवा का सेवन न करें। मंगलवार को फिर उसी दवा का सेवन करें तथा दिन भर भोजन में दही चिवड़ा ही खाएं। इसके बाद अगले दिन यानि बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को दवा का सेवन न करें। फिर रविवार को दवा का सेवन करें और दिन भर भोजन में दही चिवड़ा ही खाएं। इस प्रकार दवा का सेवन करने से पुराने से पुराने दमा रोग नष्ट होता है।
166. अजवायन :
नोट- रोगी को किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
167. वर्णबीज : 50 से 60 मिलीलीटर वर्णबीज़ की पत्तियों का काढ़ा दमा के रोग में पीने से आराम मिलता हैं।
168. पानी : रात को गर्म पानी पीकर सोने से दमा और खांसी के रोग मे लाभ मिलता है। दमा का दौरा पड़ने पर भी गर्म पानी पीना लाभकारी होता है।
169. बकुची : बकुची के बीजों का चूर्ण आधा ग्राम को अदरक के रस के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है और कफ नर्म होकर बाहर निकल जाता है।
170. कटेरी :
छोटी कटेरी का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) पीसकर गोला बनाते हैं और पुटपाक विधि से अग्नि में पकाकर रस निकाल लें। उस रस में छोटी पीपल का चूर्ण डालकर पीने से श्वास, खांसी और कफ के रोग दूर होते हैं।
छोटी कटेरी के फलों को कूटकर काढ़ा बना लें और इसमें थोड़ी सी हींग व सेंधानमक मिलाकर सेवन करें। यह प्रतिदिन आधा कप की मात्रा में सुबह-शाम पीने से दमा का दौरा खत्म होता है।
छोटी कटेरी और बड़ी कटेरी 200-200 ग्राम, अड़ूसे की जड़ की छाल 200 ग्राम, गिलोय 20 ग्राम, शतावर 60 ग्राम, भारंगी 400 ग्राम, गोखरू 40 ग्राम, पीपल की जड़ 40 ग्राम और पाढ़र 40 ग्राम। इन सभी को पीसकर लगभग 5 लीटर पानी में डालकर धीमी आग पर पकाएं और जब यह पककर केवल एक चौथाई रह जाए तो इसे उतारकर छान लें। इस काढ़े में गुड़ 400 ग्राम, घी 200 ग्राम और दूध 400 मिलीलीटर डालकर फिर धीमी आग पर पकाएं। जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसे उतार लें और ठंड़ा होने पर इसमें काकड़ासिंगी 30 ग्राम, जायफल 30 ग्राम, तेजपात 30 ग्राम, लौग 40 ग्राम, वंशलोचन 40 ग्राम, दालचीनी 20 ग्राम, एला 20 ग्राम, कूठ 40 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, पीपल 40 ग्राम, तालीसपत्र 30 ग्राम, जावित्री 10 ग्राम को बारीक पीसकर मिला लें। इसके किसी साफ बर्तन में ढककर रख दें और एक दिन बाद इसमें 200 ग्राम शहद मिला दें। यह प्रतिदिन 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वास रोग, खांसी, अरुचि, स्वरभंग आदि रोग खत्म होता है। यह कफ, ज्वर, दमा, छाती का दर्द इत्यादि रोगों में प्रयोग होता हैं।
छाती में कफ भर जाने पर इसके फलों का काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में 2-2 ग्राम भुनी हुई हींग व सैंधा नमक डालकर पीएं। इससे भयंकर दमा भी ठीक हो जाता है।
सावधानी :
दमा से पीड़ित रोगियों को तरबूज का रस नहीं पीना चाहिए।
दमा के रोगियों को केला कम खाना चाहिए। दमे में केले से एलर्जी हो सकती है।- दमा से बचने के लिए पेट को साफ रखना चाहिए। कब्ज नहीं होने देना चाहिए। ठंड से बचे रहे। देर से पचने वाली गरिष्ठ चीजों का सेवन न करें। शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले, शीघ्र पचने वाला तथा कम मात्रा में लेना चाहिए। गर्म पानी पिएं। शुद्ध हवा में घूमने जाएं। धूम्रपान न करें क्योंकि इसके धुएं से दौरा पड़ सकता है। प्रदूषण से दूर रहे खासतौर से औद्योगिक धुंए से। धूल-धुंए की एलर्जी, सर्दी एवं वायरस से बचे। मनोविकार, तनाव, कीटनाशक दवाओं, रंग-रोगन और लकड़ी के बुरादे से बचे। मूंगफली, चाकलेट से परहेज करना चाहिए। फास्टफूड का सेवन नहीं करना चाहिए। अपने वजन को कम करें और नियमित रूप से योगाभ्यास एवं कसरत करना चाहिए। बिस्तर पर पूर्ण आराम एवं मुंह के द्वारा धीरे-धीरे सांस लेना चाहिए। नियमपूर्वक कुछ महीनों तक लगातार भोजन करने से दमा नष्ट हो जाता है