घेंघा, गलगंड
घेंघा का रोग अधिकतर आयोडीन की कमी से होता है। कभी-कभी थायरॉयड ग्रंथि के बढ़ने के कारण भी ऐसा होता है। इस रोग में गर्दन या ठोड़ी में छोटी या बड़ी सूजन लटकती है। यह कई कारणों से उत्पन्न हो सकती है।परिचय :
लक्षण :
´वातज गलगंड` में सूजन हो जाती है। इसमें सुई के चुभने जैसा दर्द होता है। यह रंग में काला, छूने में खुरदरा तथा धीरे-धीरे से बढ़ने वाला होता है। यह कभी पक भी जाता है। इसमें रोगी का मुंह नीरस (मुरझाया हुआ) तथा गला और तालु खुश्क (सूखा) रहता है।
`कफज गलगंड´ जहां पैदा होता है उस स्थान की खाल के रंग जैसा ही होता है। यह भारी, थोड़े दर्द वाला, छूने में शीतल (ठंडा), आकार में बड़ा तथा ज्यादा खुजली वाला होता है।
`मेदज गलगंड´ (मोटापे के कारण होने वाला घेंघा रोग) खुजली वाला, बदबूदार, पीले रंग की, छूने में मुलायम तथा बिना दर्द का होता है। इसकी जड़ पतली तथा ऊपर से मोटी होती है जो शरीर के घटने, बढ़ने के साथ ही घटता-बढ़ता रहता है। यह तुम्बी की तरह लटकता रहता है। इसके रोगी का मुंह तेल की तरह चिकना होता है तथा उसके गले से हर समय घुर्र-घुर्र जैसी आवाज निकलती रहती है।
घेंघा रोग में धूम्रपान करने से, पुराने लाल चावल खाने से, पुराना घी, मूंग, लाल सहजना, परवल, करेला, तथा पुष्टिकारक (शक्ति देने वाला) और जल्दी पचने वाला भोजन करने से लाभ मिलता है।
घेंघा रोग में दूध से बनी हुई चीजे, ईख के पदार्थ, खट्टी-मीठी चीजें, भारी तथा देर में पचने वाली चीजें, ज्यादा मीठी खाने वाली चीजें, चरबी (मोटापा) बढ़ाने वाला भोजन और ज्यादा रस वाले पदार्थ हानिकारक हैं।
सफेद अपराजिता की जड़ के एक से दो ग्राम चूर्ण को घी में मिश्रित कर पीने से अथवा कटु फल के चूर्ण को गले के अन्दर घर्षण करने से गलगंड रोग शांत होता है।
6 ग्राम विष्णुकान्ता (अपराजिता) सफेद फूलों की जड़ को पीसकर 10 ग्राम की मात्रा में घी को मिलाकर कुछ दिनों तक रोजाना सुबह सेवन करने से घेंघा रोग समाप्त हो जाता है।