गले के रोग
2. हल्दी : हल्दी, मालकांगनी, देवदारू, पाढ़, रसौत, जवाक्षार और पीपल को बराबर मात्रा में लेकर शहद के साथ मिलाकर उसकी गोलियां बना लें। एक गोली मुंह में रखकर चूसने से गले के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
गले में कई तरह के रोग हो सकते हैं, जैसे- घेंघा (गले की सूजन), टान्सिलाइटिस (गले की गांठे), तुतलाना, स्वरभंग (आवाज का बैठ जाना) आदि।परिचय :
विभिन्न भाषाओं में नाम :
लहसुन को सिरके में भिगोकर खाने से गले का दर्द और नसों का ढीलापन दूर होता है।
गले में तालु (कौआ या काग) हो जाने पर लहसुन के रस को शहद में मिलाकर रूई के फोहे से काग पर लगाएं।
गला बैठना, टॉन्सिल (गले की गांठे) और गले में दर्द होने पर गर्म पानी में लहसुन को पीसकर मिला लें फिर उस पानी को छानकर गरारे करने से गले में आराम आता है।
अदरक के रस में शहद को मिलाकर चाटने से गले की घरघराहट (आवाज में खराबी) दूर हो जाती है।
गर्म पानी में अदरक का रस मिलाकर 21 बार गरारे करने से बैठी हुई आवाज ठीक हो जाती है।
अदरक के अंदर छेद करके उसमें हींग भर दें, फिर ऊपर से पान का पत्ता लपेटकर मिट्टी लगा दें, फिर उपलों की आग में तब तक गर्म करें, जब तक कि मिट्टी का रंग लाल न हो जाये। फिर इसे ठंडा होने पर अदरक को पीसकर चने के आकार की गोलियां बनाकर चूसने से बैठा हुआ गला खुल जाता है।
31. बेर : बेर की पत्ती को भूनकर उसमें सेंधानमक मिलाकर खाने से स्वर-भंग (आवाज बैठना) रोग दूर होता है।
खाने का सोडा और खाने का नमक बराबर मात्रा में थोड़ी सी फिटकरी के साथ मिलाकर शीशी में भरकर रख लें, फिर इसे एक चम्मच भर लेकर एक गिलास गर्म पानी में घोल लें। इस पानी से सुबह उठते और रात को सोते समय अच्छी तरह गरारे करना चाहिए। इससे गले की खराश, टांसिल की सूजन, मसूढ़ों की खराबी और गले में जमा कफ नष्ट होने से गले के रोग और खांसी नहीं होती है।
गर्म पानी में नमक या फिटकरी को मिलाकर उस पानी को मुंह के अंदर डालकर और सिर ऊंचा करके गरारे करने से गले की कुटकुटाहट, टॉन्सिल (गले में गांठ), कौआ बढ़ना आदि रोगों में लाभ होता है।
1 लीटर पानी में 2 चम्मच दाना मेथी डालकर धीमी-धीमी आग पर अच्छी तरह उबलने पर पानी को छान लें, इस पानी से गरारे करने से गले के छाले दूर हो जायेंगे, यदि टॉन्सिल में सूजन हो या वह पक गई हो तो वह भी ठीक हो जाता है। मसूढ़ों में से खून आता हो तो खून निकलना बंद हो जाता है।
मेथी के पत्तों को उबालकर उस पानी से गरारे करने से गले की खराश, सूजन और अल्सर में आराम मिलता है।
मलतास की जड़ की छाल 10 ग्राम की मात्रा में लेकर उसे 200 मिलीलीटर पानी में डालकर पकाएं। पानी एक चौथाई बचा रहने पर छान लें। इसमें से 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से गले की सूजन, दर्द, टाँन्सिल में शीघ्र आराम मिलता है।
कफ के कारण टॉन्सिल बढ़ने पर पानी पीने में भी जब कष्ट होता है तब इसकी जड़ की 10 ग्राम छाल को थोड़े पानी में पकाकर बूंद-बूंदकर मुख में डालते रहने से आराम होता है।
अनन्नास का रस गले की झिल्ली को काट देता है, गले को साफ रखता है। इसकी यह प्रमुख प्राकृतिक औषधि है। ताजे अनन्नास में पेप्सिन पित्त का एक प्रधान अंश होता है जो गले की खराश में लाभ देता है।
अनन्नास का रस पीने से गले के रोग में बहुत लाभ मिलता है।
अनन्नास का रस पीने से गले के अलग-अलग रोग (गले की सूजन और तालुमूल प्रदाह (तालु की जलन) आदि समाप्त हो जाते हैं।
अनार के ताजे पत्तों के 1 लीटर रस में मिश्री मिलाकर, शर्बत बना लें, इसे प्रतिदिन 20-20 ग्राम 2-3 बार लेने से आवाज का भारीपन, खांसी, नजला और जुकाम दूर होता है।
अनार के छाया में सूखे पत्तों के महीन चूर्ण में शहद या गुड़ को मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इन गोलियों को मुंह में रखकर चूसने से गले के रोग नष्ट हो जाते हैं।
अनार के छिलकों को 10 गुना पानी में मिलाकर काढ़ा बना लें। और इसमें लौंग और फिटकरी को पीसकर मिला लें। इसके गरारे करने से गले की खरास (गले का सूखना) और स्वर-भंग (आवाज का बैठना) रोग ठीक हो जाता है।