गर्भवस्था (Pregnancy) में होने वाली स्ट्रेच मार्क (stretch mark) एक ऐसी समस्या है, जिससे लगभग सभी महिलाएं परेशान होती हैं। परंतु, यदि गर्भवती महिलाओं द्वारा थोड़ी सावधानी बरती जाये और समय पर उपचार कराया जाये, तो इस समस्या से अवश्य बचा जा सकता है।
स्ट्रेच मार्क गर्भावस्था के दौरान होनेवाली समस्या है। इसमें त्वचा की निचली परत (dermis) के अंदर का प्रोटीन (collagen and elastin) टूट कर दरक जाता है। इसके कारण त्वचा में एक प्रकार का गड्ढा या स्कार बनता है।
क्या हैं कारण (Cause of Stretch mark during pregnancy in hindi)
गर्भावस्था में भ्रूण के विकास के साथ - साथ पेट की त्वचा पर तनाव बढ़ता जाता है। ज्यादा तनाव के कारण मास्ट सेल (mast cell) से बहुत सारे केमिकल व एंजाइम निकलते हैं। इसमें इलास्टिन प्रोटीन और कोलेजेन को गलाने की शक्ति होती है। जिसके कारण शुरुआत में त्वचा में लालीपन आ जाती है और खुजली होने लगती है। इस अवस्था को लिनिया निगरा (linea nigra) कहते हैं। यह आगे चल कर सफ़ेद या त्वचा के रंग का हो जाता है। इस अवस्था को लीनिया अल्बा (linea alba) कहते हैं। गर्भावस्था में भ्रूण के विकास के साथ जिस हिसाब से गर्भ एवं पेट का आकार बढ़ता है, उस अनुपात में त्वचा नहीं फैल पाती है। जिस कारण त्वचा में तनाव उत्पन्न होता है और इसी से स्ट्रेच मार्क का निर्माण होता है। इसके अलावा अचानक वजन बढ़ना, अचानक लंबा होना, जिम में स्ट्रेचिंग के व्यायाम अधिक करने आदि से भी यह समस्या हो सकती है। महिलाओं में पेट॰ स्तन, जांघ आदि जगहों पर यह समस्या होती है।
गर्भावस्था में भ्रूण के विकास के साथ - साथ पेट की त्वचा पर तनाव बढ़ता जाता है। ज्यादा तनाव के कारण मास्ट सेल (mast cell) से बहुत सारे केमिकल व एंजाइम निकलते हैं। इसमें इलास्टिन प्रोटीन और कोलेजेन को गलाने की शक्ति होती है। जिसके कारण शुरुआत में त्वचा में लालीपन आ जाती है और खुजली होने लगती है। इस अवस्था को लिनिया निगरा (linea nigra) कहते हैं। यह आगे चल कर सफ़ेद या त्वचा के रंग का हो जाता है। इस अवस्था को लीनिया अल्बा (linea alba) कहते हैं। गर्भावस्था में भ्रूण के विकास के साथ जिस हिसाब से गर्भ एवं पेट का आकार बढ़ता है, उस अनुपात में त्वचा नहीं फैल पाती है। जिस कारण त्वचा में तनाव उत्पन्न होता है और इसी से स्ट्रेच मार्क का निर्माण होता है। इसके अलावा अचानक वजन बढ़ना, अचानक लंबा होना, जिम में स्ट्रेचिंग के व्यायाम अधिक करने आदि से भी यह समस्या हो सकती है। महिलाओं में पेट॰ स्तन, जांघ आदि जगहों पर यह समस्या होती है।
कई बार यह देखा गया है कि लोग मिक्स क्रीम (जैसे - फोरडर्म, क्वाडीडर्म, बेतनोवेट जीएम, पेनडर्म) यानी स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक और एंटीफंगल क्रीम को मिला कर लगा लेते हैं, इसे लगातार लगाते रहने से एपिडमींस (त्वचा कि ऊपरी सतह) पतली हो जाती है और कोलेजेन प्रोटीन कमजोर पड़ने से स्ट्रेच मार्क आते हैं। दमा या गठिया आदि के मरीज यदि स्टेरॉयड की गोली रोज लेते हैं, तो उनमें भी तनाववाली जगहों पर स्ट्रेच मार्क हो जाता है।
स्ट्रेच मार्क से बचाव एवं उपचार
शुरुआत में जब त्वचा में लालीपन आने लगता है उस समय इसका इलाज करने से ज्यादा लाभ होता है। परंतु यदि इसका रंग उजला हो चुका हो अर्थात यह लिनिया अल्बा में बदल चुका हो, तो इस अवस्था में ठीक होने में समय लगता है। इर्मेटोऑजिस्ट इस अवस्था में ट्रेटीनोइन क्रीम रात में तथा विटामिन इ, सेरामाइड व एलोवेरा मिश्रित क्रीम को दिन में लगाने के लिए दिया जाता हैं। इससे काफी लाभ होता है। अनेक प्रकार के लेजर (जैसे-पल्स डाइ लेजर, एनडी वाइएजी लेजर, फ्रैक्शनल सीओटू लेजर) आइपीएल मशीन, रेडियो फ्रिक्वेंसी मशीन से भी स्ट्रेच मार्क में 50% से ज्यादा बदलाव लाना संभव है। कभी-कभी टीसीए (25%) केमिकल लगाने से भी त्वचा ठीक होती है और नया कोलेजेन बनना शुरू होता है। इससे स्ट्रेचमार्क कम होता है। परंतु कभी-कभी ये स्ट्रेच मार्क इन सबके बावजूद भी पूरी तरह से नॉरमल स्किन में नहीं बदल पाती हैं। अतः बचाव बहुत जरूरी है।