अंजीर

अंजीर
अफगानिस्तान के काबुल में अंजीर की अधिक पैदावार होती है। हमारे देश में बंगलूर, सूरत, कश्मीर, उत्तर-प्रदेश, नासिक तथा मैसूर में यह ज्यादा पैदा होता है। अंजीर का पेड़ लगभग 4.5 से 5.5 मीटर ऊंचा होता है। इसके पत्ते और शाखाओं पर रोएं होते हैं तथा कच्चे फल हरे और पकने पर लाल-आसमानी रंग के हो जाते हैं। सूखे अंजीर हमेशा उपलब्ध होते हैं। कच्चे फल की सब्जी बनती है। इसके बीजों से तेल निकाला जाता है।परिचय :
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत        काकोदुम्बरिका।
हिंदी            अंजीर।
मराठी          अंजीर।
गुजराती      पेपरी।
बंगाली          पेयारा।
अंग्रेजी          फिग।
लैटिन          फिकस कैरिका।
रंग : अंजीर रंग सुर्ख और स्याह मिश्रित होता है।
स्वाद : यह खाने में मीठा होता है।
स्वरूप : अंजीर एक बिलायती (विदेशी) पेड़ का फल है जो गूलर के समान होता है। यह जंगलों में अक्सर पाया जाता है। आमतौर पर लोग इसे बनगूलर के नाम से भी पुकारते हैं।
स्वभाव : यह गर्म प्रकृति का होता है।
हानिकारक : अंजीर का अधिक सेवन यकृत (जिगर) और आमाशय के लिए हानिकारक हो सकता है।
दोषों को दूर करने वाला : अंजीर के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए बादाम का उपयोग किया जाता है।
मात्रा (खुराक) : अंजीर के पांच दाने तक ले सकते हैं।
गुण :
           अंजीर के सेवन से मन प्रसन्न रहता है। यह स्वभाव को कोमल बनाता है। यकृत और प्लीहा (तिल्ली) के लिए लाभकारी होता है, कमजोरी को दूर करता है तथा खांसी को नाश करता है।
           वैज्ञानिक मतानुसार अंजीर के रासायनिक गुणों का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसके सूखे फल में कार्बोहाइड्रेट (शर्करा) 63 प्रतिशत, प्रोटीन 5.5 प्रतिशत, सेल्यूलोज 7.3 प्रतिशत, चिकनाई एक प्रतिशत, खनिज लवण 3 प्रतिशत, अम्ल 1.2 प्रतिशत, राख 2.3 प्रतिशत और जल 20.8 प्रतिशत होता है। इसके अलावा प्रति 100 ग्राम अंजीर में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लोहा, विटामिन `ए´ 270 आई.यू., थोड़ी मात्रा में चूना, पोटैशियम, सोडियम, गंधक, फास्फोरिक एसिड और गोंद भी पाया जाता है।
विभिन्न रोगों में उपयोगी :
1. कब्ज
3 से 4 पके अंजीर दूध में उबालकर रात्रि में सोने से पूर्व खाएं और ऊपर से उसी दूध का सेवन करें। इससे कब्ज और बवासीर में लाभ होता है।
माजून अंजीर 10 ग्राम को सोने से पहले लेने से कब्ज़ में लाभ होता है।
अंजीर 5 से 6 पीस को 250 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, पानी को छानकर पीने से कब्ज (कोष्ठबद्धता) में राहत मिलती है।
2 अंजीर को रात को पानी में भिगोकर सुबह चबाकर खाकर ऊपर से पानी पीने पेट साफ हो जाता है।
अंजीर के 4 दाने रात को सोते समय पानी में डालकर रख दें। सुबह उन दानों को थोड़ा सा मसलकर जल पीने से अस्थमा में बहुत लाभ मिलता है तथा इससे कब्ज भी नष्ट हो जाती है।
स्थायी रूप से रहने वाली कब्ज अंजीर खाते रहने से दूर हो जाती है।
अंजीर के 2 से 4 फल खाने से दस्त आते हैं। खाते समय ध्यान रहे कि इसमें से निकलने वाला दूध त्वचा पर न लगने पाये क्योंकि यह दूध जलन और चेचक पैदा कर सकता है।
खाना खाते समय अंजीर के साथ शहद का प्रयोग करने से कब्ज की शिकायत नहीं रहती है।
2. दमा :
दमा जिसमें कफ (बलगम) निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है। इससे कफ बाहर आ जाता है तथा रोगी को शीघ्र ही आराम भी मिलता है।
प्रतिदिन थोड़े-थोड़े अंजीर खाने से पुरानी कब्जियत में मल साफ और नियमित आता है। 2 से 4 सूखे अंजीर सुबह-शाम दूध में गर्म करके खाने से कफ की मात्रा घटती है, शरीर में नई शक्ति आती है और दमा (अस्थमा) रोग मिटता है।
3. प्यास की अधिकता : बार-बार प्यास लगने पर अंजीर का सेवन करें।
4. मुंह के छाले : अंजीर का रस मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है।
5. प्रदर रोग : अंजीर का रस 2 चम्मच शहद के साथ प्रतिदिन सेवन करने से दोनों प्रकार के प्रदर रोग नष्ट हो जाते हैं।
6. दांतों का दर्द :
अंजीर का दूध रुई में भिगोकर दुखते दांत पर रखकर दबाएं।
अंजीर के पौधे से दूध निकालकर उस दूध में रुई भिगोकर सड़ने वाले दांतों के नीचे रखने से दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं तथा दांतों का दर्द मिट जाता है।
7. पेशाब का अधिक आना : 3-4 अंजीर खाकर, 10 ग्राम काले तिल चबाने से यह कष्ट दूर होता है।
8. मुंहासे : कच्चे अंजीर का दूध मुंहासों पर 3 बार लगाएं।
9. त्वचा के विभिन्न रोग :
कच्चे अंजीर का दूध समस्त त्वचा सम्बंधी रोगों में लगाना लाभदायक होता है।
अंजीर का दूध लगाने से दिनाय (खुजली युक्त फुंसी) और दाद मिट जाते हैं।
बादाम और छुहारे के साथ अंजीर को खाने से दाद, दिनाय (खुजली युक्त फुंसी) और चमड़ी के सारे रोग ठीक हो जाते है।
10. दुर्बलता (कमजोरी) :
पके अंजीर को बराबर की मात्रा में सौंफ के साथ चबा-चबाकर सेवन करें। इसका सेवन 40 दिनों तक नियमित करने से शारीरिक दुर्बलता दूर हो जाती है।
अंजीर को दूध में उबालकर-उबाला हुआ अंजीर खाकर वही दूध पीने से शक्ति में वृद्धि होती है तथा खून भी बढ़ता है।
11. रक्तवृद्धि और शुद्धि हेतु : 10 मुनक्के और 5 अंजीर 200 मिलीलीटर दूध में उबालकर खा लें। फिर ऊपर से उसी दूध का सेवन करें। इससे रक्तविकार दूर हो जाता है।
12. पेचिश और दस्त : अंजीर का काढ़ा 3 बार पिलाएं।
13. ताकत को बढ़ाने वाला : सूखे अंजीर के टुकड़े और छिली हुई बादाम गर्म पानी में उबालें। इसे सुखाकर इसमें दानेदार शक्कर, पिसी इलायची, केसर, चिरौंजी, पिस्ता और बादाम बराबर मात्रा में मिलाकर 8 दिन तक गाय के घी में पड़ा रहने दें। बाद में रोजाना सुबह 20 ग्राम तक सेवन करें। छोटे बालकों की शक्तिक्षीण के लिए यह औषधि बड़ी हितकारी है।
14. जीभ की सूजन : सूखे अंजीर का काढ़ा बनाकर उसका लेप करने से गले और जीभ की सूजन पर लाभ होता है।
15. पुल्टिश : ताजे अंजीर कूटकर, फोड़े आदि पर बांधने से शीघ्र आराम होता है।
16. दस्त साफ लाने के लिए : दो सूखे अंजीर सोने से पहले खाकर ऊपर से पानी पीना चाहिए। इससे सुबह साफ दस्त होता है।
17. क्षय यानी टी.बी के रोग : इस रोग में अंजीर खाना चाहिए। अंजीर से शरीर में खून बढ़ता है। अंजीर की जड़ और डालियों की छाल का उपयोग औषधि के रूप में होता है। खाने के लिए 2 से 4 अंजीर का प्रयोग कर सकते हैं।
18. फोड़े-फुंसी : अंजीर की पुल्टिस बनाकर फोड़ों पर बांधने से यह फोड़ों को पकाती है।
19. गिल्टी : अंजीर को चटनी की तरह पीसकर गर्म करके पुल्टिस बनाएं। 2-2 घंटे के अन्तराल से इस प्रकार नई पुल्टिश बनाकर बांधने से `बद´ की वेदना भी शांत होती है एवं गिल्टी जल्दी पक जाती है।
20. सफेद कुष्ठ (सफेद दाग) :
अंजीर के पेड़ की छाल को पानी के साथ पीस लें, फिर उसमें 4 गुना घी डालकर गर्म करें। इसे हरताल की भस्म के साथ सेवन करने से श्वेत कुष्ठ मिटता है।
अंजीर के कच्चे फलों से दूध निकालकर सफेद दागों पर लगातार 4 महीने तक लगाने से यह दाग मिट जाते हैं।
अंजीर के पत्तों का रस श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) पर सुबह और शाम को लगाने से लाभ होता है।
अंजीर को घिसकर नींबू के रस में मिलाकर सफेद दाग पर लगाने से लाभ होता है।
21. गले के भीतर की सूजन : सूखे अंजीर को पानी में उबालकर लेप करने से गले के भीतर की सूजन मिटती है।
22. श्वासरोग : अंजीर और गोरख इमली (जंगल जलेबी) 5-5 ग्राम एकत्रकर प्रतिदिन सुबह को सेवन करने से हृदयावरोध (दिल की धड़कन का अवरोध) तथा श्वासरोग का कष्ट दूर होता है।
23. खून और वीर्यवद्धक :
सूखे अंजीर के टुकड़ों एवं बादाम के गर्भ को गर्म पानी में भिगोकर रख दें फिर ऊपर से छिलके निकालकर सुखा दें। उसमें मिश्री, इलायची के दानों की बुकनी, केसर, चिरौंजी, पिस्ते और बलदाने कूटकर डालें और गाय के घी में 8 दिन तक भिगोकर रखें। यह मिश्रण प्रतिदिन लगभग 20 ग्राम की मात्रा में खाने से कमजोर शक्ति वालों के खून और वीर्य में वृद्धि होती है।
एक सूखा अंजीर और 5-10 बादाम को दूध में डालकर उबालें। इसमें थोड़ी चीनी डालकर प्रतिदिन सुबह पीने से खून साफ होता है, गर्मी शांत होती है, पेट साफ होता है, कब्ज मिटती है और शरीर बलवान बनता है।
अंजीर को अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर शक्तिशाली होता है, और मनुष्य के संभोग करने की क्षमता भी बढ़ती है।
24. शरीर की गर्मी : पका हुआ अंजीर लेकर, छीलकर उसके आमने-सामने दो चीरे लगाएं। इन चीरों में शक्कर भरकर रात को ओस में रख दें। इस प्रकार के अंजीर को 15 दिनों तक रोज सुबह खाने से शरीर की गर्मी निकल जाती है और रक्तवृद्धि होती है।
25. जुकाम : पानी में 5 अंजीर को डालकर उबाल लें और इसे छानकर इस पानी को गर्म-गर्म सुबह और शाम को पीने से जुकाम में लाभ होता है।
26. फेफड़ों के रोग : फेफड़ों के रोगों में पांच अंजीर एक गिलास पानी में उबालकर छानकर सुबह-शाम पीना चाहिए।
27. मसूढ़ों से खून का आना : अंजीर को पानी में उबालकर इस पानी से रोजाना दो बार कुल्ला करें। इससे मसूढ़ों से आने वाला खून बंद हो जाता है तथा मुंह से दुर्गन्ध आना बंद हो जाती है।
28. तिल्ली (प्लीहा) के रोग में : अंजीर 20 ग्राम को सिरके में डुबोकर सुबह और शाम रोजाना खाने से तिल्ली ठीक हो जाती है।
29. खांसी :
अंजीर का सेवन करने से सूखी खांसी दूर हो जाती है। अंजीर पुरानी खांसी वाले रोगी को लाभ पहुंचाता है क्योंकि यह बलगम को पतला करके बाहर निकालता रहता है।
2 अंजीर के फलों को पुदीने के साथ खाने से सीने पर जमा हुआ कफ धीरे-धीरे निकल जाएगा।
पके अंजीर का काढ़ा पीने से खांसी दूर हो जाती है।
30. गुदा चिरना : सूखा अंजीर 350 ग्राम, पीपल का फल 170 ग्राम, निशोथ 87.5 ग्राम, सौंफ 87.5 ग्राम, कुटकी 87.5 ग्राम और पुनर्नवा 87.5 ग्राम। इन सब को मिलाकर कूट लें और कूटे हुए मिश्रण के कुल वजन का 3 गुने पानी के साथ उबालें। एक चौथाई पानी बच जाने पर इसमें 720 ग्राम चीनी डालकर शर्बत बना लें। यह शर्बत 1 से 2 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें।
31. बवासीर (अर्श) :
सूखे अंजीर के 3-4 दाने को शाम के समय जल में डालकर रख दें। सुबह उन अंजीरों को मसलकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट खाने से अर्श (बवासीर) रोग दूर होता है।
अंजीर को गुलकन्द के साथ रोज सुबह खाली पेट खाने से शौच के समय पैखाना (मल) आसानी से होता है।
32. कमर दर्द : अंजीर की छाल, सोंठ, धनियां सब बराबर लें और कूटकर रात को पानी में भिगो दें। सुबह इसके बचे रस को छानकर पिला दें। इससे कमर दर्द में लाभ होता है।
33. आंवयुक्त पेचिश : पेचिश तथा आवंयुक्त दस्तों में अंजीर का काढ़ा बनाकर पीने से रोगी को लाभ होता है।
34. अग्निमान्द्य (अपच) होने पर : अंजीर को सिरके में भिगोकर खाने से भूख न लगना और अफारा दूर हो जाता है।
35. प्रसव के समय की पीड़ा : प्रसव के समय में 15-20 दिन तक रोज दो अंजीर दूध के साथ खाने से लाभ होता है।
36. बच्चों का यकृत (जिगर) बढ़ना : 4-5 अंजीर, गन्ने के रस के सिरके में गलने के लिए डाल दें। 4-5 दिन बाद उनको निकालकर 1 अंजीर सुबह-शाम बच्चे को देने से यकृत रोग की बीमारी से आराम मिलता है।
37. फोड़ा (सिर का फोड़ा) : फोड़ों और उसकी गांठों पर सूखे अंजीर या हरे अंजीर को पीसकर पानी में औटाकर गुनगुना करके लगाने से फोड़ों की सूजन और फोड़े ठीक हो जाते हैं।
38. दाद : अंजीर का दूध लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
39. सिर का दर्द : सिरके या पानी में अंजीर के पेड़ की छाल की भस्म मिलाकर सिर पर लेप करने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
40. सर्दी (जाड़ा) अधिक लगना : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में अंजीर को खिलाने से सर्दी या शीत के कारण होने वाले हृदय और दिमाग के रोगों में बहुत ज्यादा फायदा मिलता है।

आम

  आम के फल को शास्त्रों में अमृत फल माना गया है इसे दो प्रकार से बोया (उगाया) जाता है पहला गुठली बोकर उगाया जाता है जिसे बीजू या देशी आम कहते हैं। दूसरा आम का पेड़ जो कलम द्वारा उगाया जाता है। इसका पेड़ 30 से 120 फुट तक ऊंचा होता है।
          इसके पत्ते 10 से 30 सेमी लम्बे तथा 2.5 से 7 सेमी चौडे़ होते हैं। आम के फूल देखने में छोटे-छोटे और हरे-पीले होते हैं। वसंत ऋतु में फूल (मौर) और ग्रीष्म ऋतु में फल उगते हैं। इस पेड़ के सभी भाग दवाइयों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :-
 संस्कृत आम्र
 हिंदी आम
 बंगला आम
 कर्नाटकी माविनेमार या मावपहेष्ण
 तैलगी  मामिडी चेट्ट या मवीं
 तमिल मार्मर
 मलयालम मावु
 मराठी ऑंबा
 गुजराती ऑंबो
 अरबी अबज
 अग्रेंजी मैंगों
 लैटिन मैंगीफेरा इंडिका
रंग : कच्चे आम का रंग हरा व पक्के आम का रंग पीला होता है।
स्वभाव : यह तर और गर्म प्रकृति का होता है।
स्वाद : आम खट्टे और मीठे व स्वादिष्ट होते हैं।
आम की किस्में :
         लंगड़ा, फजली, चौसा, दशहरी, तोतापरी, गुलाब खास, पायरी, सफेदा, नीलम, हाफुस, अलकासो आदि। आम के पेड़ ज्यादातर गर्म देशों में होते हैं।
गुण :
         ग्रन्थों के अनुसार आम का फल खट्टा, स्वादिष्ट, वात, पित्त को पैदा करने वाला होता है, किन्तु पका हुआ आम मीठा, धातु को बढ़ाने वाला (वीर्यवर्धक), शक्तिवर्धक, वातनाशक, ठंडा, दिल को ताकत देने वाला, पित्त को बढ़ाने वाला और त्वचा को सुन्दर बनाने वाला होता है।
         यूनानियों के अनुसार कच्चे आम का स्वाद खट्टा, पित्तनाशक, भूख बढ़ाने वाला, पाचन शक्ति बढ़ाने वाला और कब्ज दूर करने वाला होता है।
         वैज्ञानिकों द्वारा आम पर विश्लेषण करने पर यह पता चला है कि इसमें पानी की मा़त्रा 86 प्रतिशत, वसा 0.4 प्रतिशत, खनिज 0.4 प्रतिशत, प्रोटीन 0.6 प्रतिशत, कार्बोहाड्रेट 11.8 प्रतिशत, रेशा 1.1 प्रतिशत, ग्लूकोज आदि पाया जाता है।
दुष्प्रभाव :
         अधिक मात्रा में कच्चे आम का सेवन करने पर वीर्य में पतलापन, मसूढ़ों में कष्ट, तेज बुखार, आंखों का रोग, गले में जलन, पेट में गैस और नाक से खून आना इत्यादि विकार उत्पन्न हो जाते हैं। खाली पेट आम खाना शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। भूखे पेट आम नहीं खाना चाहिए। आम के अधिक सेवन से अपच की शिकायत होती है। रक्त विकार, कब्ज बनती है। अधिक अमचूर खाने से धातु दुर्बल होकर नपुंसकता आ जाती है।
विशेष :
  • आम के कच्चे फलों को अधिक खाने से मंदाग्नि, विषमज्वर (टायफाइड), रक्तविकार, कब्ज एवं नेत्ररोग उत्पन्न होते हैं।
  • आम के खाने के बाद पाचन सम्बन्धी शिकायत होने पर, दो-तीन जामुन खा लें। जामुन में आम को पचाने की तीव्र शक्ति होती है। जामुन उपलब्ध न होने पर, चुटकी भर नमक और सौंठ पीसकर खा लें।
  • यकृत और जलोदर के रोगी को आम नहीं खाना चाहिए।
  • आम खाने के बाद, दूध, जामुन, कटहल की गुठली, सूक्ष्म मात्रा में सौंठ, नमक या सिकंज के बीज सेवन करना चाहिए।
  • आम के सेवन के बाद दूध पीना चाहिए तथा पानी नहीं पीना चाहिए।

विभिन्न रोगों में आम का उपयोग

1. कमजोरी :
  • दूध में आम का रस मिलाकर पीने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और वीर्य बनता है।
  • अच्छे पके हुए मीठे देशी आमों का ताजा रस 250 से 350 मिलीलीटर तक, गाय का ताजा दूध 50 मिलीलीटर अदरक का रस 1 चम्मच तीनों को कांसे की थाली में अच्छी तरह फेट लें, लस्सी जैसा हो जाने पर धीरे-धीरे पी लें। 2-3 सप्ताह सेवन करने से मस्तिष्क की दुर्बलता, सिर पीड़ा, सिर का भारी होना, आंखों के आगे अंधेरा हो जाना आदि दूर होता है। यह गुर्दे के लिए भी लाभदायक है।
2. सूखी खांसी : पके आम को गर्म राख में भूनकर खाने से सूखी खांसी खत्म हो जाती है।
3. नींद न आना : दूध के साथ पका आम खाने से अच्छी नींद आती है।
4. भूख न लगना : आम के रस में सेंधानमक तथा चीनी मिलाकर पीने से भूख बढ़ती है।
5. खून की कमी :
  • एक गिलास दूध तथा एक कप आम के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर नियमित रूप से सुबह-शाम पीने से लाभ प्राप्त होगा।
  • 300 मिलीलीटर आम का जूस प्रतिदिन पीने से खून की कमी दूर होती है।
6. दांत व मसूढ़े के लिए :
  • आम की गुठली की गिरी (गुठली के अंदर का बीज) पीसकर मंजन करने से दांत के रोग तथा मसूढ़ों के रोग दूर हो जाते हैं।
  • आम के फल की छाल व पत्तों को समभाग पीसकर मुंह में रखने से या कुल्ला करने से दांत व मसूढ़े मजबूत होते हैं।
7. मिट्टी खाने की आदत :
  • बच्चों को पानी के साथ आम की गुठली की गिरी का चूर्ण मिलाकर दिन में 2-3 बार पिलाने से ये आदत छूट जाती है और पेट के कीड़े भी मर जाते हैं।
  • बच्चे को मिट्टी खाने की आदत हो तो आम की गुठली का चूर्ण ताजे पानी से देना लाभदायक है। गुठली को सेंककर सुपारी की तरह खाने से भी मिट्टी खाने की आदत छूट जाती है।
8. नाक से खून आना : रोगी के नाक में आम की गुठली की गिरी का रस एक बूंद टपकाएं।
9. मकड़ी का जहर :
  • मकड़ी के जहर पर कच्चे आम के अमचूर को पानी में मिलाकर लगाने से जहर का असर दूर हो जाता है।
  • गुठली को पीसकर लगाने से अथवा अमचूर को पानी में पीसकर लगाने से छाले मिट जाते हैं।
10. रक्तस्राव : आम की गुठली की गिरी का एक चम्मच चूर्ण बवासीर तथा रक्तस्राव होने पर दिन में 3 बार प्रयोग करें।
11. आग से जलने पर  :
  • आम के पत्तों को जलाकर इसकी राख को जले हुए अंग पर लगायें। इससे जला हुआ अंग ठीक हो जाता है।
  • गुठली की गिरी को थोड़े पानी के साथ पीसकर आग से जले हुए स्थान पर लगाने से तुरन्त शांति प्राप्त होती है।
12. धातु को पुष्ट करने के लिए : आम के बौर (आम के फूल) को  छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच दूध के साथ नियमित रूप से लें। इससे धातु की पुष्टि (गाढ़ा) होती है।
13. हाथ-पैरों की जलन :
  • हाथ-पैरों पर आम के फूल को रगड़ने पर लाभ पहुंचेगा।   
  • आम की बौर (फल लगने से पहले निकलने वाले फूल) को रगड़ने से हाथों और पैरों की जलन समाप्त हो जाती है।
14. प्लीहा वृद्धि (तिल्ली के बढ़ने पर) : 15 ग्राम शहद में लगभग 70 मिलीलीटर आम का रस रोजाना 3 हफ्ते तक पीने से तिल्ली की सूजन और घाव में लाभ मिलता है। इस दवा को सेवन करने वाले दिन में खटाई न खायें।
15. पाचन शक्ति (खाना पचाने की क्रिया) :
  • रेशेदार आम गुणकारी व कब्जनाशक होते हैं, आम खाने के बाद दूध पीने से आंतों को बल मिलता है। 70 मिलीलीटर मीठे आम का रस 2 ग्राम सौंठ मिलाकर प्रात: काल पीने से पाचनशक्ति बढ़ती है।
  • जिस आम में रेशे हो वह भारी होता है। रेशेदार आम अधिक सुपाच्य, गुणकारी और कब्ज को दूर करने वाला होता है। आम चूसने के बाद दूध पीने से आंतों को बल मिलता है। आम पेट साफ करता है। इसमें पोषक और रुचिकारक दोनों गुण होते हैं। यह यकृत की निर्बलता तथा रक्ताल्पता (खून की कमी) को ठीक करता है। 70 मिलीलीटर मीठे आम का रस, 2 ग्राम सोंठ में मिलाकर सुबह पीने से पाचन-शक्ति बढ़ती है।
16. मधुमेह (डायबिटीज) :
  • आम के कोमल पत्तों का छाया में सुखाया हुआ चूर्ण 25 ग्राम की मात्रा में सेवन करना मधुमेह में उपयोगी है।
  • जामुन व आम का रस एक समान मात्रा में मिलाकर नियमित रूप से पीने से मधुमेह ठीक हो जाता है। 
  • छाया में सुखाए हुए आम के 1-1 ग्राम पत्तों को आधा किलो पानी में उबालें, चौथाई पानी शेष रहने पर छानकर सुबह-शाम पिलाने से कुछ ही दिनों में मधुमेह दूर हो जाता है
  • आम के पत्तों को छाया में सुखाकर कूट छान लें। इसे 5-5 ग्राम सुबह-शाम पानी से 20-25 दिन लगातार सेवन से मधुमेह रोग में लाभ होता है।
  • आम के 8-10 नये पत्तों को चबाकर खाने से मधुमेह पर नियंत्रण होता है।
17. सूखा रोग (रिकेटस): कच्चे आम के अमचूर को भिगोकर उसमें 2 चम्मच शहद मिला लें। इसे 1 चम्मच दिन में 2 बार लेने से सूखा रोग में आराम मिलता है।
18. लू लगने पर :
  • लू लगने पर केरी यानी कच्चे आम की छाछ पीने से लाभ होता है। जिस किसी को गर्मी या लू लग जाय, मुंह और जबान सूखने लगे, माथे, हाथ-पैर में पसीना छूटने लगे, दिल घबरा जाए और प्यास ही प्यास लगे तो ऐसी अवस्था में रोगी को केरी की छाछ निम्न विधि से बनाकर देना चाहिए। एक बड़ा-सा कच्चा आम उबालें या कोयलों की आग के नीचे दबा दें जब वह बैगन की तरह काला पड़ जाय तो उसे निकाल लें और ठंडे पानी में रखकर जले हुए छिलके उतार लें और इसे दही की तरह मथकर इसके गूदे में गुड़, जीरा, धनियां, नमक और कालीमिर्च डालकर इसे अच्छी तरह मथ लें और आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर दिन में 3 बार पीयें तो लू में लाभ होगा।
  • आम की कच्ची कैरी को गर्म राख में भूनकर, जल में उसके गूदे को मिलाकर थोड़ी-सी शक्कर डालकर पिलाने से लू का प्रकोप खत्म हो जाता है। लू लगने के कारण होने वाली जलन और बेचैनी से भी बचा जा सकता है।
  • कच्चे आम (कैरी) का शर्बत (पन्ना) बनाकर पीने से लू तथा बेचैनी में कमी आती है।
19. विषैले दन्त द्वारा काटे जाने पर :
  • पागल कुत्ते के, बंदर के, बिच्छू, मकड़ी का विष, ततैया के काटे जाने पर आम की गुठली पानी के साथ घिसकर लगाने से दर्द व घाव में आराम मिलता है।
  • अमचूर और लहसुन समान मात्रा में पीसकर बिच्छू दंश के स्थान पर लगाने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।
20. गुर्दे की दुर्बलता : प्रतिदिन आम खाने से गुर्दे की दुर्बलता दूर हो जाती है।
21. अजीर्ण :
  • लगभग 10-15 ग्राम आम की चटनी को अजीर्ण रोग में रोगी को दिन में दो बार खाने को दें।
  • 3-6 ग्राम आम की गुठली का चूर्ण अजीर्ण में दिन में 2 बार दें।
22. अर्श (खूनी बवासीर) :
  • आम की अन्त:छाल का रस दिन में 20-40 मिलीलीटर तक दो बार पिलायें। इससे बवासीर, रक्तप्रदर या खूनी दस्त के कारण होने वाले रक्तस्राव (खून का बहाव) में लाभ होता है।
  • 15 से 30 मिलीलीटर आम के पत्तों का रस शहद के साथ दिन में 3 बार लें एवं ऊपर से दूध का सेवन करें।
  • आम की गुठली की गिरी का चूर्ण 1 से 2 ग्राम दिन में 2 बार सेवन करें।
23. तृष्णा (बार-बार प्यास लगना) :
  • लगभग 7 से 15 मिलीलीटर आम के ताजे पत्तों का रस या 15 से 30 मिलीलीटर सूखे पत्तों का काढ़ा चीनी के साथ दिन में 3 बार पीयें।
  • गुठली की गिरी के 50-60 मिलीलीटर  काढ़े में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से भयंकर प्यास शांत होती है।
24. शरीर में जलन:
  • भुने हुए या उबाले हुए कच्चे आम के गूदे का लेप बनाकर लेप करें।
  • आम के फल को पानी में उबालकर या भूनकर इसका लेप बना लें और शरीर पर लेप करें इससे जलन में ठंडक मिलती है।
25. बच्चों के दस्त :
  • 7 से 30 ग्राम आम के बीज की मज्जा तथा बेल के कच्चे फलों की मज्जा का काढ़ा दिन में 3 बार प्रयोग करें।
  • आम के गुठली की गिरी भून लें। 1-2 ग्राम की मात्रा में चूर्ण कर 1 चम्मच शहद के साथ दिन में 2 बार चटावें। यदि रक्तातिसार (खूनी दस्त) हो तो आम की अन्तरछाल को दही में पीस कर पेट पर लेप करें।
26. यकृत-प्लीहा का बढ़ना : 10 मिलीलीटर फलों का रस शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से रोग ठीक होता है।
27. सुन्दरसिल्की और लंबे बाल : आम की गुठलियों के तेल को लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं तथा काले बाल जल्दी सफेद नहीं होते हैं। इससे बाल झड़ना व रूसी में भी लाभ होता है।
28. स्वरभंग : आम के 50 ग्राम पत्तों को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर चौथाई भाग शेष काढ़े में मधु मिलाकर धीरे-धीरे पीने से स्वरभंग में लाभ होता है।
29. खांसी और स्वरभंग : पके हुए बढ़िया आम को आग में भून लें। ठंडा होने पर धीरे-धीरे चूसने से सूखी खांसी मिटती है।
30. लीवर की कमजोरी : लीवर की कमजोरी में (जब पतले दस्त आते हो, भूख न लगती हो) 6 ग्राम आम के छाया में सूखे पत्तों को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें। 125 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर छानकर थोड़ा दूध मिलाकर सुबह पीने से लाभ होता है।
31. अतिसार :
  • आम की गुठली की गिरी को लगभग 6 ग्राम की मात्रा में 100 मिलीलीटर पानी में उबालें। इसके बाद इसमें लगभग 6 ग्राम गिरी और मिलाकर पीस लें। इसे दिन में 3 बार दही के साथ सेवन करें तथा खाने में चावल और दही लें।
  • गुठली की गिरी 10 ग्राम, बेलगिरी 10 ग्राम तथा मिश्री 10 ग्राम तीनों का चूर्णकर 3-6 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है। गुठली की गिरी व आम का गोंद समभाग लेकर 1 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से अतिसार मिटता है।
  • आम की गुठली की 10 से 20 ग्राम गिरी को कांजी के साथ पीसकर पेट पर गाढ़ा लेप करने से बहुत लाभ होता है।
  • आम के पेड़ की अन्तरछाल 40 ग्राम जौ कूटकर आधा किलो पानी में अष्टमांश काढ़ा सिद्ध करें। ठंडा होने पर इसमें थोड़ा शहद मिलाकर पिलाने से अतिसार (दस्त) विशेषकर आमातिसार में लाभ होता है।
  • आम की ताजी छाल को दही के पानी के साथ पीसकर पेट के आसपास लेप करने से लाभ होता है।
  • मिसरी, बेल की गिरी तथा आम की गुठली की गिरी एक समान मात्रा में पीसकर 1-1 चम्मच दिन में 3 बार ग्रहण करें।
  • 15 से 30 मिलीलीटर आम के तने की छाल का काढ़ा दिन में तीन बार दें।
  • 5 ग्राम आम के तने की छाल या जड़ की छाल का चूर्ण शहद एवं बकरी के दूध के साथ दिन में तीन बार दें।
  • 15 से 30 मिलीलीटर आम, जामुन एवं आंवलों के पत्तों से निकाला रस बकरी के दूध के साथ तीन बार दें।
32. गर्भिणी के आमातिसार : पुराने आम की गुठली की गिरी का चूर्ण 5-5 ग्राम को शहद या पानी के साथ भोजन के 2 घंटे पहले दिन में 3 बार सेवन कराने से लाभ होता है। भोजन में नमकीन चावल बिना घी डाले ले सकते हैं।
33. हैजा :
  • हैजे की शुरुआती अवस्था में 20 ग्राम आम के पत्तों को कुचलकर आधा किलो पानी में उबालें जब यह एक-चौथाई की मात्रा में शेष बचे तो इसे छानकर गर्म-गर्म पिलाने से लाभ होता है।
  • आम का शर्बत या आम का पना बार-बार पिलाना भी लाभकारी होता है।
  • 250 ग्राम आम के पत्तों को कुचलकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर रोगी को थोड़ी-थोड़ी देर बाद, कई बार पिलाएं।
  • 25 ग्राम आम के मुलायम पत्ते पीसकर एक गिलास पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी आधा न हो जाये और छानकर गर्म-गर्म दिन में दो बार पिलाने से अथवा कच्चे आम 20 ग्राम कूट कर दही के साथ सेवन करने से हैजा खत्म हो जाता है।
34. बालों का झड़ना : नरम टहनी के पत्तों को पीसकर लगाने से बाल बड़े व काले होते हैं। पत्तों के साथ कच्चे आम के छिलकों को पीसकर तेल मिलाकर धूप में रख दें। इस तेल के लगाने से बालों का झड़ना रुक जाता है व बाल काले हो जाते हैं।
35. उल्टी-दस्त : आम के ताजे कोमल 10 पत्ते और 2-3 कालीमिर्च दोनों को पानी में पीसकर गोलियां बना लें। किसी भी दवा से बंद न होने वाले, उल्टी-दस्त इससे बंद हो जाते हैं।
36. संग्रहणी :
  • ताजे मीठे आमों के 50 मिलीलीटर ताजे रस में 20-25 ग्राम मीठा दही तथा 1 चम्मच शुंठी चूर्ण बुरककर दिन में 2-3 बार देने से कुछ ही दिन में पुरानी संग्रहणी (पेचिश) दूर होती है।
  • कच्चे आम की गुठली (जिसमें जाली न पड़ी हो) का चूर्ण 60 ग्राम, जीरा, कालीमिर्च व सोंठ का चूर्ण 20-20 ग्राम, आम के पेड़ के गोंद का चूर्ण 5 ग्राम तथा अफीम का चूर्ण एक ग्राम इनको खरलकर, वस्त्र में छानकर बोतल में डॉट बंद कर सुरक्षित करें। 3-6 ग्राम तक आवश्यकतानुसार दिन में 3-4 बार सेवन करने से संग्रहणी, आम अतिसार, रक्तस्राव (खून का बहना) आदि का नाश होता है।
37. भूख बढ़ना : आम के फूलों (बौर) का काढ़ा या चूर्ण सेवन करने से अथवा इनके चूर्ण में चौथाई भाग मिश्री मिलाकर सेवन करने से अतिसार, प्रमेह, भूख बढ़ाने में लाभदायक है।
38. प्रमेह (वीर्य विकार) : आम के फूलों के 10-20 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम खांड मिलाकर सेवन करने से प्रमेह में बहुत लाभ होता है।
39. स्त्री के प्रदर में : कलमी आम के फूलों को घी में भूनकर सेवन करने से प्रदर में बहुत लाभ होता है। इसकी मात्रा 1-4 ग्राम उपयुक्त होती है।
40. एड़ी का फटना :  आम के ताजे कोमल पत्ते तोड़ने से एक प्रकार का द्रव पदार्थ निकलता है इस द्रव पदार्थ को एंड़ी के फटे हिस्से में भर देने से तुरन्त लाभ होता है।
41. आम की चाय : आम के 10 पत्ते, जो पेड़ पर ही पककर पीले रंग के हो गये हो, लेकर 1 लीटर पानी में 1-2 ग्राम इलायची डालकर उबालें, जब पानी आधा शेष रह जाये तो उतारकर शक्कर और दूध मिलाकर चाय की तरह पिया करें। यह चाय शरीर के समस्त अवयवों को शक्ति प्रदान करती है।
42. धातु को बढ़ाने वाला : आम के फूलों के चूर्ण (5-10 ग्राम) को दूध के साथ लेने से स्तम्भन और कामशक्ति की वृद्धि होती है।
43. भैंसों का चारा : आम की गुठली की गिरी का अनाज और चारे की जगह अच्छा प्रयोग हो सकता है। इसमें प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट काफी मात्रा में पाये जाते हैं।
44. सूतिकृमि (पेट के कीड़े) : कच्चे आम की गुठली का चूर्ण 250 से 500 मिलीग्राम तक दही या पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से सूत जैसे कृमि नष्ट हो जाते हैं।
45. शक्तिवर्द्धक :
  • रोज सुबह मीठे आम चूसकर, ऊपर से सौंठ व छुहारे डालकर पकाये हुए दूध को पीने से पुरुषार्थ वृद्धि और शरीर पुष्ट होती है।
  • आम का रस 250 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से और इसके ऊपर से दूध पीने से शरीर में ताकत आती है।
46. दादखुजलीघाव आदि चर्म रोग में :
  • आम के कच्चे फलों को तोड़कर (जिनमें जाली न पड़ी हो), कुचलकर कपड़े में छानकर रस निकाल लें। रस का चौथाई भाग देशी शराब मिलाकर शीशी में भर कर रखें। 2 दिन बाद प्रयोग करें। इसके लगाने से पुरानी दाद, चम्बल आदि बीमारियां शीघ्र मिटती हैं। गहरे से गहरे नासूर भी इसे दिन में 2 बार लगाने से दूर होते हैं। इसे रूई की फुहेरी से लगाने से फूटी हुई कंठमाला, भगंदर, पुराने फोड़े आदि जड़ से दूर हो जाते हैं। इसे लगाने से बवासीर के मस्से भी सूख जाते हैं।
  • आम को तोड़ते समय, आमफल की पीठ में जो गोंदयुक्त रस (चोपी) निकलती है, उसे दाद पर खुजलाकर लगा देने से फौरन छाला पड़ जाता है और फूटकर पानी निकल जाता है। इसे 2-3 बार लगाने से रोग से छुटकारा मिल जाता है।
47. फोड़ों पर : आम के पेड़ का गोंद थोड़ा गर्म करके लगाने से फोड़ा पूरा पककर फूटकर बह जाता है और घाव आसानी से भर जाता है।
48. घमौरियां : गरमी के दिनों में शरीर पर पसीने के कारण छोटी-छोटी फुन्सियां हो जाती हैं, इन पर कच्चे आम को धीमी अग्नि में भूनकर, गूदे का लेप करने से लाभ होता है।
49. पेचिश :
  • दस्त में रक्त आने पर आम की गुठली पीसकर छाछ में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
  • आम के पत्तों को छाया में सुखाकर पीसकर कपड़े में छान लें। नित्य 3 बार आधा चम्मच की फंकी गर्म पानी से लें।
  • आम की गुठली को सेंककर नमक लगाकर प्रतिदिन खाने से दस्त होने पर पेट को ताकत मिलती है। 1-1 गुठली 3 बार नित्य खायें।
50. दांतों की मजबूती : आम के ताजे पत्ते खूब चबायें और थूकते जायें। थोड़े दिन के निरंतर प्रयोग से हिलते दांत मजबूत हो जायेंगे तथा मसूढ़ों से रक्त गिरना बंद हो जायेगा।
51. यक्ष्मा (टी.बी.) : एक कप आम के रस में 60 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम नित्य पीयें। नित्य 3 बार गाय का दूध पीयें। इस प्रकार 21 दिन करने से यक्ष्मा में लाभ होता है।
52. मस्तिष्क की कमजोरी : एक कप आम का रस, चौथाई कप दूध, एक चम्मच अदरक का रस, स्वाद के अनुसार चीनी सब मिलाकर एक बार नित्य पीयें। इससे मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है। मस्तिष्क की कमजोरी के कारण पुराना सिर दर्द, आंखों के आगे अंधेरा आना दूर होता है। शरीर स्वस्थ रहता है। यह रक्तशोधक भी है तथा यह हृदय, यकृत को भी शक्ति देता है।
53. शरीर में खून की कमी दूर करना : आम खाने से रक्त बहुत पैदा होता है। दुबले, पतले लोगों का वजन बढ़ता है। मूत्र खुलकर आता है। शरीर में स्फूर्ति आती है। आम का मुरब्बा भी ले सकते हैं।
54. सौंदर्यवर्धक : लगातार आम का सेवन करने से त्वचा का रंग साफ होता है तथा रूप में निखार आकर चेहरे की चमक बढ़ती है।
55. पायरिया : आम की गुठली की गिरी के महीन चूर्ण का मंजन करने से पायरिया एवं दांतों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
56. पथरी :
  • आम के मुलायम व ताजे पत्ते छाया में सुखाकर महीन पीस लें और इस चूर्ण को एक चम्मच प्रतिदिन सुबह बासी मुंह पानी के साथ लें। इसके परिणामस्वरूप पथरी पेशाब के साथ बाहर निकल जाती है।
  • आम के पत्तों को सुखाकर महीन (बारीक) चूर्ण बनाकर रखें। प्रतिदिन सुबह-शाम 2 चम्मच चूर्ण पानी के साथ खायें। इसको खाने से कुछ दिनों में ही पथरी गलकर पेशाब के द्वारा निकल जाती है।
57. बिच्छू काटना : अमचूर और लहसुन समान मात्रा में पीसकर काटे स्थान पर लगाने से बिच्छू का जहर मिट जाता है।
58. अनिद्रा : सोते समय रात को आम खाएं व दूध पीयें। इस प्रयोग से नींद अच्छी आएगी।
59. जलोदर : आम खाने से जलोदर रोग में लाभ होता है। नित्य 2-3 आम खायें।
60. अंडकोष की सूजन :
  • आम के पेड़ की गांठ को गाय के दूध में पीसकर लेप करने से अंडकोष की सूजन कम हो जाती है।
  • 25 ग्राम की मात्रा में आम के कोमल पत्तों को पीसकर उसमें  10 ग्राम सेंधा नमक को मिलाकर हल्का-सा गर्म करके अंडकोष पर लेप करने से अंडकोष की सूजन मिट जाती है।
61. अंडकोष के एक सिरे का बढ़ना :
  • आम के पेड़ पर के बांझी (बान्दा) को गाय के मूत्र में पीसकर अंडकोष के बढ़े हिस्से पर लेप करने और सेंकने से लाभ होता है।
  • आम के पत्तों को नमक के साथ पीसकर लेप करें। इससे अंडकोष का बढ़ना, पानी भरना बंद हो जाता है।
62. श्वास या दमे का रोग  :
  • आम की गुठली को फोड़कर उसकी गिरी निकाल लेते हैं। उसे सुखाकर पीस लेते हैं। इस चूर्ण की 5 ग्राम मात्रा शहद के साथ चाटने से लाभ मिलता है।
  • आम की गुठली के चूर्ण को 2-3 ग्राम मात्रा में शहद के साथ चाटने से दमा, खांसी में लाभ मिलता है तथा पेचिश भी ठीक हो जाती है।
63. बाल बढ़ाने के लिए : 10 ग्राम आम की गिरी को आंवले के रस में पीसकर बालों में लगाएं इससे बाल लम्बे और घने होते हैं।
64. बुखार होने पर : आम की चटनी बनाकर पीने से लू के कारण आने वाले बुखार में लाभ होता है।
65. रतौंधी :
  • अमोठ चूड़ा खाने से रतौंधी दूर होती है। आम का रस भी पीने से लाभ होता है।
  • रतौंधी रोग विटामिन `ए´ की कमी से होता है। आम में सभी फलों से ज्यादा विटामिन `ए´ होता है। इसलिए आम खाना रतौंधी रोग में लाभकारी है। चूसने वाला आम इस रोग में ज्यादा उपयोगी है।
66. अजंनहारीगुहेरी : आम के पत्तों को डाली से तोड़ने पर जो रस निकलता है उस रस को गुहेरी पर लेप करने से गुहेरी जल्दी समाप्त हो जाती है।
67. मसूढ़ों के रोग : आम की गुठली की गिरी को बारीक पीसकर मंजन बना लें। इससे रोजाना मंजन करने से दांत व मसूढ़ों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
68. खांसी : आम की गुठली की गिरी को सुखाकर पीस लेते हैं इसमें से एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से खांसी से छुटकारा मिल जाता है।
69. आमाशय (पेट) का जख्म : आम की भुनी हुई गुठली की गिरी का चूर्ण बनाकर खाने से आंतों की कमजोरी मिट जाती है।
70. गंजेपन का रोग : एक साल पुराने आम के आचार के तेल से रोजाना मालिश करने से गंजेपन का रोग कम हो जाता है।
71.  गैस्ट्रिक अल्सर : पके मीठे और रस युक्त आम को छानकर सेवन करने से गैस्ट्रिक अल्सर में लाभ होता है।
72. कब्ज (गैस) होने पर : आम को खाने के बाद दूध पीने से शौच खुलकर आती है और पेट साफ होता है।
73. सिर की रूसी : आम की गुठली और हरड़ दोनों को बराबर मात्रा में लें और इसे दूध के साथ पीसकर सिर में लगायें। इससे रूसी मिट जाती है।
74. गर्भधारण : आम के पेड़ का बान्दा पानी के साथ बारीक पीसकर मासिक धर्म खत्म होने के 2 दिन बाद सुबह के समय गाय के कच्चे दूध में मिलाकर सेवन करना चाहिए। इसके सेवन के बाद सेक्स करने से गर्भ ठहरता है।
75. दस्त होने पर :
  • आम और जामुन के पत्तों को पीस लें। इससे प्राप्त रस को 5-5 ग्राम की मात्रा में थोड़ा शहद मिलाकर एक दिन में 2 से 3 बार चाटें। इससे अतिसार यानी दस्त के साथ होने वाली उल्टी, बुखार (ज्वर) और प्यास आदि समाप्त हो जाती है।
  • आम की गुठली के चूर्ण को लगभग 15 ग्राम की मात्रा में ताजे दही के साथ खाने से लाभ मिलता है।
  • आम की गुठली की गिरी 25 ग्राम, जामुन की गुठली 25 ग्राम और भुनी हुई हरड़ को 25 ग्राम की मात्रा में पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण को पानी के साथ दिन में 2 से 3 बार पीने से लाभ होता है।
  • आम के फूल (बौर) को पीसकर उसमें 1 चम्मच दही को मिलाकर खाने से लाभ प्राप्त होता है।
  • आम की गुठली को पानी में अच्छी तरह घिसकर पीने और नाभि पर लगाने से लूज मोशम (अतिसार) में आराम मिलता है।
  • आम की गुठली, नमक, सोंठ, बेल की गिरी और हींग को पानी में घिसकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में 1 दिन में 2 से 3 बार पीने से आमातिसार और हल्के दस्तों में लाभ मिलता है।
  • आम की गुठली को चूने के पानी में घिसकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में एक दिन में 2 से 3 बार पीने से खूनी दस्त और अतिसार में लाभ पहुंचता है।
  • आम की गुठली के गूदे को पानी के साथ पीसकर चटनी बनाकर 2 ग्राम के रूप में शहद के साथ खाने से अतिसार में लाभ मिलता है।
  • आम के पत्तों को सुखाकर उसमें सेंधानमक मिलाकर चूर्ण बनाकर प्रयोग कर सकते हैं।
  • आम की छाल 10 ग्राम को सिरके या दही के साथ मिलाकर नाभि के चारों ओर लेप करने से बच्चों के दस्तों में लाभ होता है।
  • मीठे आम का रस आधा कप, मीठी दही 25 ग्राम, अदरक का रस 1 चम्मच, जायफल का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में मिलाकर 1 दिन में 3 बार पिलाने से बार-बार आने वाले पुराने दस्त को समाप्त कर देता है।
  • आम की गुठली के बीच के भाग (मज्जा) का चूर्ण बनाकर लगभग 2 ग्राम को सुबह और शाम सेवन करने से दस्त में लाभ मिलता है।
  • आम की गुठली यानी गिरी को पीसकर दही के पानी में मिलाकर नाभि पर लेप लगाने से दस्त का होना बंद हो जाता है।
  • मीठा आम रस आधा कप, मीठा दही 25 ग्राम और एक चम्मच अदरक का रस एक साथ मिलाकर पीयें। इसे नित्य तीन बार पीयें। इससे पुराने दस्त, दस्तों में अपच के कण निकलना और बवासीर ठीक होती है।
76. हिचकी का रोग :
  • आम के गिरे हुए सूखे पत्तों को जलाकर उनका धुआं सूंघने से हिचकी आना बंद हो जाती है।
  • कच्चे आम की गुठली की गिरी निकालकर धूप में सूखाकर पीस लें। आधा चम्मच चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
  • पके हुए आम के रस में दूध मिलाकर सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
  • आम के सूखे पत्तों को चिलम में भरकर धूम्रपान करने या ताजे पत्तों को कूटकर निकाले गये रस (2-3 ग्राम) में थोड़ा सा शहद मिलाकर सेवन करने से हिचकी बंद हो जाती है।
  • आम के पत्ते व धनिया दोनों को कूटकर 2 से 5 ग्राम की मात्रा में लेकर गुनगुने पानी से दिन में दो या तीन बार पियें।
77. कान का दर्द :
  • कान में आम और सिरस के पत्तों के रस को हल्का सा गर्म करके डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
  • आम के पत्तों के रस को हल्का सा गर्म करके कान के अंदर डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
  1. नपुंसकता :
  • आम की मंजरी 5 ग्राम की मात्रा में सुखाकर दूध के साथ लेने से काम-शक्ति बढ़ती है।
  • लगभग 2-3 महीने आम का रस पीने से ताकत आती है। शरीर की कमजोरी दूर होती है और शरीर मोटा होता है। इससे वात संस्थान (नर्वस सिस्टम) भी ठीक हो जाता है।
78. मूत्र रोग :
  • आम और जामुन का रस मिलाकर पीना मधुमेह में लाभदायक है।
  • आम के पत्ते को छाया में सुखाकर पीसे लें तथा उसके चूर्ण को रोज सुबह पानी के साथ लेने से मूत्र की पथरी ठीक होती है।
  • बीजू आम का रस शहद डालकर पीने से मूत्र रोग में फायदा करता है।
79. गर्भवती स्त्री का बुखार : आम तथा जामुन की छाल का काढ़ा बनाकर, उसमें खीलों का सत्तू मिलाकर खाने से गर्भवती का अतिसार तथा ग्रहणी रोग दूर हो जाता है।
80. आमातिसार : आम की गुठली के अंदर के बीज को लगभग 2 ग्राम लेकर दही के साथ लेने से आमातिसार रोगी का रोग ठीक हो जाता है।
81. कान का बहना : लगभग 20-20 ग्राम आम और जामुन के पत्ते, मुलहठी और वटवृक्ष के पेड़ के पत्तों को लेकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। उबलने के बाद जब करीब 50 मिलीलीटर काढ़ा बाकी रह जाये तो उसे 100 मिलीलीटर सरसो के तेल में मिलाकर पका लें। इस तेल को छानकर बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान में से मवाद बहना ठीक हो जाता है।
82. बवासीर (अर्श) :
  • आम की छाल, चीता (चित्रक) की छाल, करंज तथा इन्द्रजौ इन सबको पीसकर चूर्ण बना लें। इसका एक चम्मच चूर्ण छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम लेने से बवासीर (अर्श) रोग खत्म जाता है।
  • पके और मीठे आम का रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर खाने से बवासीर रोग मिट जाता है।
  • आम की गुठली को तोड़कर उसके गिरी को कूटकर चूर्ण बनायें। इसका चूर्ण 120 से 180 मिलीलीटर पानी के साथ लेने से खूनी बवासीर, खून का बहना और पेट के कीड़े नष्ट होते हैं।
  • आम का रस आधा कप, मीठा दही 25 ग्राम और 1 चम्मच अदरक मिलाकर प्रतिदिन तीन बार पीयें। इससे बवासीर (अर्श) रोग दूर होता है।
83. मासिक-धर्म सम्बंधी परेशानियां : आम की मंजरी 50 ग्राम तथा गुड़ 50 ग्राम, दोनों को आधा किलो पानी में डालकर उबालें। जब यह 100 मिलीलीटर की मात्रा में बचा रह जाए तो उसे छानकर पी लेते हैं। इससे मासिक धर्म खुलकर आता है।
84. खूनी दस्त :
  • आम की गुठली को पीसकर छाछ (लस्सी) में मिलाकर पिलाने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) समाप्त हो जाते हैं।
  • आम के पेड़ की छाल का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में लेने से रक्तातिसार के रोगी का रोग दूर हो जायेगा।
  • आम के पत्ते का रस 25 मिलीलीटर शहद और दूध 12-12 ग्राम तथा घी 6 ग्राम एकत्र मिलाकर पिलाने से रक्तातिसार में विशेष लाभ होता है।
85. आंव रक्त (पेचिश) :
  • आम की गुठली को पीसकर छाछ (लस्सी) में मिलाकर पीने से पेचिश रोग दूर हो जाता है।
  • आम के कोमल पत्तों के रस को छानकर बकरी के दूध में शहद मिलाकर पीने से रोग में जल्द आराम मिलता है।
  • आम की गुठली का भीतरी का भाग और जामुन की गुठली को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना ले। 6 ग्राम चूर्ण को हल्के गर्म पानी से खाने से पेचिश के रोगी को लाभ होता है।
  • आम की गुठली के अंदर का गूदा और बेल की गिरी दोनों को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण की मात्रा में प्रतिदिन खाने से रोगी को लाभ मिलता है।
  • आम के पेड़ के बौर (फूल) को अच्छी तरह से पीसकर बासी पानी के साथ खाने से पेचिश के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
  • 100 ग्राम आम की गुठली की गिरी को पीस लें। 6-6 ग्राम दवा दिन में 3 बार लेने से पेचिश का रोगी का रोग दूर हो जाता है।
86. घाव आम की छाल पानी में घिसकर घाव पर लगायें।
87. रक्तप्रदर (स्त्री के खूनी प्रदर होने पर) :
  • गर्भाशय से होने वाले रक्तस्राव में आम के वृक्ष की छाल का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।
  • रक्तप्रदर में आम की गुठली की मज्जा का चूर्ण लगभग 1 ग्राम से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर से छुटकारा मिल जाता है।
88. रक्तपित्त : अगर आंत्र से खून बहे साथ में उल्टी भी हो रही हो तो आम के पेड़ की छाल का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर  सुबह शाम खाने से खून का बहना बंद हो जाता है।
89. पेट के कीडों के लिए :
  • आम की गुठली के अंदर की गिरी को सुखाकर पीस लें। इसे 2-2 चुटकी लेकर पानी के साथ सेवन करें।
  • आम की गुठली का बारीक चूर्ण बनाकर एक से दो चम्मच की मात्रा में दिन में सुबह और शाम दही या गर्म पानी के साथ मरीज को देने से पेट में मौजूद सूत कृमि (कीड़े) समाप्त होते हैं।
  • कच्चे आम की गुठली के मध्य भाग (बीज) को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर लगभग आधा ग्राम को खुराक के रूप में पानी या दही के साथ प्रयोग करने से पेट के कीड़े मिट जाते हैं।
  • कच्चे आम की गुठली के अंदर की गिरी को सुखाकर बारीक चूर्ण बनाकर 2 ग्राम की मात्रा में दही या पानी के साथ प्रयोग करने से आंतों के कीड़ें खत्म हो जाते हैं।
90. शिरास्फीति : शिराओं को फूलने से रोकने के लिए आम के पेड़ के बान्दा को गाय के पेशाब के साथ पीसकर लेप करने से रोगी के शिराओं में लाभ मिलेगा। इसके अलावा शिराओं की सिंकाई करते रहें।
91. नकसीर :
  • आम के बौर (फूल) को पीसकर नाक से सूंघने से नकसीर (नाक से खून बहना) रुक जाती है।
  • आम की गुठली की गिरी (बीज) के रस को निकालकर नाक में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) रुक जाती है।
92. पेट में दर्द होने पर : पके हुए आम के रस को शहद के साथ मिलाकर खाने से `प्लीहोदर´ प्लीहा के कारण होने वाली पेट की बीमारियों को समाप्त करता है।
93. एक्जिमा : एक्जिमा को थोड़ा सा खुजलाकर आम के डंठल से निकले रस (चोपी) को लगाने से छाला बनने के साथ एक्जिमा समाप्त हो जाता है।
94. अकूते के फोड़े पर : 20-20 ग्राम आम और बबूल की छाल को मोटा-मोटा पीसकर 1 किलो पानी में डालकर उबाल लें। अकूता और छाजन पर इसकी भाप देने से लाभ होता है।
95. उपदंश (सिफलिस) : आम के पेड़ की ताजी छाल का रस 25-30 ग्राम लेकर बकरी के दूध के साथ 7 दिनों तक खायें इससे उपदंश रोग खत्म हो जायेगा।
96. गठिया रोग : घुटने के दर्द में 100 ग्राम आम की गुठलियों को कुचलकर 250 मिलीलीटर सरसों के तेल में अच्छी तरह से पकाकर मालिश करने से दर्द दूर हो जाता है।
97. सिर के फोड़-फुंसियां : लगभग 50 मिलीलीटर आम के अचार के तेल में 10 ग्राम गंधक आमलासार को मिलाकर और पीसकर सिर में लगाने से सिर की फुन्सियां ठीक हो जाती हैं।
98. नासूर (पुराना घाव) : आम की गुठली, रेणुका, बड़ के अंकुर, शंखाहुली के बीज, बहेड़ा तथा सुअर के मल को जलाकर राख कर लें। इसे तेल में मिलाकर नासूर पर लगाने से नासूर का रोग ठीक हो जाता है।
99. पीलिया का रोग : मीठे आम का रस, थोड़ा सोंठ का चूर्ण, एक कप दूध (क्रीम निकला हुआ) मिलाकर उसमें दो चम्मच मधु डालकर पीयें। इससे पीलिया दूर हो जाएगा।
100. बच्चों के खूनी दस्त में : 12 ग्राम बेल और आम का गूदा (फल मज्जा) को 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर उबाल लें और जब काढ़ा 125 मिलीलीटर रह जाये तो बाकी बचे काढ़े को दिन में 2 या 3 बार लेना चाहिए।
101. सिर में दर्द होने पर : अगर व्यक्ति के सिर में किसी भी प्रकार का दर्द हो, तो आम की गुठली और छोटी हरड़ को पानी में घिसकर सिर या माथे पर लेप की तरह से लगाएं। इससे सिर दर्द ठीक हो जाता है।
102. याददास्त कमजोर होना : लगभग एक कप आम का रस, एक चम्मच अदरक का रस और चौथाई कप दूध में स्वादानुसार चीनी मिलाकर रोजाना पीने से दिमाग की याददास्त मजबूत होती है। दिमाग की कमजोरी के कारण होने वाला सिर का दर्द भी दूर हो जाता है।
103. बालरोगों की औषधि :
  • आम की गुठली, लौहचूर्ण, सोनागेरु और रसौत को पीस लें। इसे शहद में मिलाकर लेप करने से बच्चों के मुख पाक (मुंह में छाले) में आराम हो जाता है।
  • आम की गुठली, धान की खीलें और सेंधानमक का चूर्ण बनाकर शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों की दूध की उल्टी बंद हो जाती है।
104. गले की सूजन में:
  • बोलने में परेशानी हो रही हो या स्वर भंग (आवाज बैठ गई हो) तो आम के 2-3 पत्तों को पानी में उबालकर उसके गुनगुने पानी से गरारे करने से आराम मिलेगा।
  • 15 ग्राम आम का सूखा बौर, 25 ग्राम आंवला, 20 ग्राम मुलेठी, 5 ग्राम छोटी इलायची और 10 ग्राम कुलंजन को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। फिर इस चूर्ण में थोड़ी सी मिश्री मिलाकर सुबह और शाम गर्म पानी के साथ खाने से हर प्रकार के गले के रोग दूर हो जाते हैं।
  • थोड़े से जामुन, आम और चमेली के पत्ते, 5 ग्राम हरड़, 5 ग्राम आंवला, 4 पत्तियां नीम की और 2 परवल के पत्तों को लेकर एक गिलास पानी में डालकर उबाल लें। फिर इस पानी को छानकर इस काढ़े से कुल्ला करें।
105. गले के रोग में : आम के सूखे पत्तों को चिलम में भरकर पीने से गले के रोग दूर हो जाते हैं।