पेट के कीड़े

पेट के कीड़े


          मानव के शरीर में अन्दर और बाहर कई प्रकार के कीड़े पाये जाते हैं, जिनसे काफी पीड़ा होती है।परिचय :

बाहरी कीडे़ :

          अन्य प्रकार के कीड़े शरीर के भीतर रहते हैं और विभिन्न आकारों और रंगों के होते हैं। यह शरीर के अन्दर कई कारणों से प्रवेश कर सकते हैं जैसे- छोटे बच्चों द्वारा घर में या इधर-उधर पड़ी चीजों को खा लेने से, मिट्टी द्वारा, दूषित पानी पीने से, घाव में सड़न होने से, घाव या चोट का मक्खियों या अन्य दूषित वस्तुयों के संपर्क में आने से, दूषित वातावरण में रहने या जाने से आदि। जो लोग स्वास्थ्य के नियमों, शुद्ध पानी और शुद्ध पेय का सेवन नहीं करते हैं वह लोग पेट के कीड़ों से ज्यादा पीड़ित होते हैं। ये मल, कफ, रक्त (खून) के साथ शरीर के बाहर निकल जाते हैं। छोटे कृमि (कीड़ों) को `चुनने´ और बडे़ कृमि (कीड़े) को `पटेरे` कहते हैं। ये कीड़े कई प्रकार के होते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार से हैं-
पहला - सूत्र कृमि (थ्रेड वर्म्स), चुरने, पिन वर्म्स, मलज कीडे़ - सूत्र (धागे) वह कृमि होते हैं जो छोटे-छोटे ये कीड़े दल बांधकर मल के द्वार के पास निवास करते हैं। सृत्र कृमि (कीड़े) नर 2.5 मिमी होता है। ये कभी-कभी पेशाब करने की नली (मूत्रनली) या योनि के पास भी पहुंच जाते हैं और वहां खुजली और जलन पैदा करते हैं। ये छोटे-छोटे कीड़े या चुन्ने (चनूने) कीड़े बच्चों में अधिक होते हैं और काफी दर्द भी करते हैं। इस प्रकार के कीड़े गुड़ या मीठे खाद्य पदार्थो का सेवन करने से होते हैं। इसका प्रमुख लक्षण है कि नींद में सोते-सोते दांत चबाना, नाक और मल के द्वार को बार-बार खुजलाना, सांस के साथ दुर्गन्ध आना, हाजमे की खराबी, उल्टी (कै), पतले दस्त, बुखार, शरीर में खून की कमी होना, गुदा पर कीड़ों के रेंगने के कारण होने वाली खुजली, कम्पन, बवासीर (अर्श), कांच निकलना, खुजली, अनिद्रा, बार-बार पेशाब होना, पुरुषों में प्रमेह (वीर्य विकार), स्वप्नदोष और स्त्रियों को प्रदर होना आदि। यह कीड़े काफी हानिकारक भी होते हैं।
दूसरा - गोल, केंचुआ या गण्डुपद कृमि (राउण्ड वर्म्स), श्लेष्मज - यह कीड़े केंचुए जैसे लम्बे 4-12 इंच और पतले छोटी-छोटी आंतों में रहते हैं। इनका रंग कुछ मटमैला या पीला होता है। ये अधिकतर छोटी आंतों में मौजूद होते हैं। यह कभी-कभी आमाशय, प्लीहा (तिल्ली) और फेफड़े में भी चले जाते हैं। कभी-कभी पाचन-क्रिया (पाकस्थली) के रास्ते चढ़कर मुंह के द्वारा बाहर निकल जाते हैं। इस प्रकार के कीड़ों में लक्षण इस प्रकार से होते हैं जैसे- पेट में दर्द होना, नींद कम आना, तेज प्यास लगना, मुंह से खून आना, दस्त में आंव आना (पेट में एक प्रकार का सफेद चिकना पदार्थ मल के साथ बाहर आना), खांसी, पीलिया, जिगर में सूजन आना, नींद में चौंकना, नाक और गुदा में खुजली, पेट फूलना, बेहोशी, कभी भूख और कभी अरुचि (इच्छा न करना), कमजोरी, शरीर का बल कम होना, मुंह में पानी आना और उल्टी आदि।
तीसरा - फीता या स्फीति कृमि (टेप वर्म्स), कद्दू दाने, शोणितज : फीता कीड़े की लम्बाई 31 से 62 मिमी, तक होती है यह मल के साथ गिर जाती है। यह आकार में चिपटा, गांठदार और रंग में सफेद होता है। यह कीड़े कई-कई मीटर लम्बे होते हैं। स्फीति कीड़ें कई कारणों से होते हैं जैसे- गाय का मांस खाने से, शूकर का मांस खाने और मछली के मांस को खाने से आदि। भूख का कम लगना, त्वचा पर सूखापन आना, पेट में दर्द, ऐंठन और पतले दस्त आना इसके लक्षण माने जाते हैं।
          जब अंकुशमुख कीडे़ (हुक वर्म्स) के संपर्क में आया रोगी मल त्यागता है तो उसके मल के साथ इसके अण्डे बाहर आते हैं, उनसे झिल्लियां निकलती है जो दूसरे बच्चों या मनुष्यों के पैरों के फटे भागों की त्वचा या उन्हें फाड़कर शरीर में घुस जाते हैं। वहां से ऊतकों (टिश्यूज) में होकर छोटी आंत में पहुंचकर पूरी तरह से कीड़े बन जाते हैं और चिपककर खून को पीते रहते हैं।

हिंदी          

पेट के कीड़े, कृमि जन्य शूल।

कन्नड़ी        

हुलु कृमि, हुलूविनिददा नोवु।

मलयालम      

कृमि, कृमिजन्य वेदना।

मराठी              

जन्त, कृमिज पोट दूखी।

उड़ीसा              

कुरूमी।

पंजाबी        

पेट दे कीड़े।

तमिल         

किरूनी, कुदार किरूमिगल, किरुमी वयित्रु वलि।

तेलगू         

वेमिडिकलु।

बंगाली        

कृमि, कृमिजन्य शूल।

डोगरी         

कृनि, कीड़ा, कीदाकन्ने देर्द।

अरबी         

कृमि, पेलु जनित शूल।

अंग्रेजी        

वर्म इनफैस्टेशन।
          पेट में होने वाले कीड़ों के अनेक कारण पाये जाते हैं। जैसे- पेट के कीड़े (दूषित) गलत खान-पान, गंदे हाथों से खाना, अजीर्ण (भूख का न लगना) में खाना खाने, मक्खियों द्वारा दूषित आहार, दूध, खट्ठी-मीठी वस्तुएं अधिक खाने, मैदा खाने से, पीसे हुए अन्न, कढ़ी, रायता, गुड़, उड़द, सिरका, कांजी, दही और संयोग विरुद्ध पदार्थों के खाने, परिश्रम न करना और दिन में सोना आदि कारणों से पेट में कीड़े पैदा हो जाते हैं।
          मानव के शरीर में कीड़े दो प्रकार से प्रभाव डालते हैं पहला बाहरी कीड़े जो शरीर के बाहरी परत यानी त्वचा पर असर छोड़ते हैं जैसे- दाद-खाज, फोड़ा-फुंसी, कोढ़ और गलगण्ड आदि में ये कीटाणु पैदा हो जाते हैं जबकि दूसरे प्रकार के भीतरी या अंदरूनी कीड़े होते है जो मानव के पेट में पाए जाते हैं उनके लक्षण सामान्य रूप से माने जाते हैं जैसे- सोते हुए दांत पीसना, बार-बार नाक खुजलाना, मल में कीड़े होना, शरीर का रंग पीला या काला होना, हल्का-सा बुखार, पेट में दर्द, हृदय का दर्द, जी मिचलाना, दस्त, चक्कर आना, भोजन से अरुचि, अफारा, कब्ज, गुदा में खुजली, शरीर का कमजोर होना, त्वचा में रूखा और सूखापन भी रहना, पीलिया, अण्डे के लार्वे जब फेफड़ों में पहुंच जाते हैं तब दमा की बीमारी, जीभ का सफेद होना, आंखे लाल होना, होंठ सफेद होना, गालों पर धब्बे होना, शरीर में सूजन होना, मल में जब कीड़े पक्वाशय (पाचन-क्रिया) में मौजूद होते हैं तो कभी-कभी वह खुद गुदा यानी मलद्वार के रास्ते बाहर खुजली के साथ निकलने लगते हैं, लेकिन जब यह अधिक मात्रा में हो जाते हैं तो यह आमाशय (मेदा) में पहुंचकर रोगी की सांस और डकारों में मल की मिलीजुली गंध आना शुरू कर देते हैं।
          बेसन की बनी खाने की वस्तुएं, तिल, जौ, उड़द, जौ, मोठ, पत्तेवाली सब्जी, आलू, मूली, अरबी, ककड़ी, खीरा, दही, दूध, अधिक देशी घी, खटाई, मांस, मछली, अण्डा, मुल्तानी मिट्टी, मीठी चीजों का सेवन, रात को अधिक देर बाद सोना, दिन में सोना, दिन भर बैठे रहना, बीड़ी-सिगरेट को पीना और तेल की मालिश, सड़ी और बासी वस्तु, नमकीन, अधिक सूखे और लाल मिर्चे आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
40. चिरायता : चिरायता, तुलसी का रस, नीम की छाल का काढ़ा और नीम का तेल मिलाकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते है और पेट के दर्द में लाभ होता है।
41. करेला :
42. सत्यानाशी :
43. राई : राई को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, 1 चम्मच की मात्रा को 100 मिलीलीटर गाय के पेशाब में मिलाकर दिन में सुबह-शाम प्रयोग करने पेट कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
44. मूली : मूली के पत्तों को पीसकर प्राप्त होने वाले रस को नमक के साथ लगभग 8 दिनों तक पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
45. संतरा : संतरे का रस रोजाना सुबह पीने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
46. सेब : 2 सेब रात को सोते समय कम से कम 7 दिनों तक खाने से कीड़े मरकर गुदामार्ग से मल के साथ बाहर आ जाते है। सेब खाने के बाद रात भर पानी न पीएं।
47. केसर :
49. गोरखमुण्डी : गोरखमुण्डी के बीजों को पीसकर सेवन करने से आंतों के कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
50. बच : बच के एक चुटकी चूर्ण को हींग के साथ पीसकर पानी के साथ बच्चों को देने से पेट कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
51. बथुए :
53. एरण्ड : एरण्ड के पत्तों के रस में हींग डालकर पीने से पेट की आंतों में फंसें कीड़ें मरकर बाहर आ जाते हैं।
54. कमीला :
55.  कली का चूना : कली का चूना, चीनी और नमक लगभग 2-2 ग्राम की मात्रा में लेकर 250 मिलीलीटर पानी में डालकर भिगो दे, फिर इसी पानी को 20 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
56. तेजपात : तेजपात और जैतून के तेल को मिलाकर गुदा पर लगाने से कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
56. पित्तपापड़ा : पित्तपापड़ा और बायविंडग को उबालकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
57. मोथा :  एक चुटकी मोथा का चूर्ण शहद के साथ प्रयोग करने से कीड़े समाप्त होते हैं।
58. नागरमोथा : नागरमोथा 2 ग्राम, अजवायन 2 ग्राम, भुना हुआ जीरा 2 ग्राम, कालीमिर्च 2 ग्राम और बायविंडग 2 ग्राम आदि को बराबर मात्रा में और 25 ग्राम सेंधानमक लेकर बारीक पीसकर रख लें। इस बने चूर्ण को 4-4 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से पेट के कीड़े मर जाते और पेट के दर्द में लाभ मिलता है।
59. हींग :
60. गुड़ :
61. इन्द्रजौ : इन्द्रजौ को पीसकर छानकर 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पीने से कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
62. इन्द्रायण :
63. इन्द्रावर्णी : इन्द्रावर्णी की जड़ को घिसकर 10 ग्राम की मात्रा में खाने से बच्चों के पेट में दर्द, पेट में कीड़े और खुजली में आराम होता है।
64. काहू : काहू के फूल, कलिहारी, राल, खस, कूठ, भिलावा, लोहबान और बायविंडग को अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, इस बने हुए चूर्ण को आग में जलाकर धूनी (धुआं) बनाकर गुदा की धूनी करने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
65. गुलकन्द : गुलकन्द 50 ग्राम और सोनामक्खी 50 ग्राम, हरड़ की छाल 20 ग्राम, सोंठ 20 ग्राम और मुनक्का 20 ग्राम को शहद में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें, फिर इन्ही गोलियों को दूध के साथ 1 दिन में 2 बार सुबह और शाम को खाने से पेट के अन्दर उपस्थित कीड़े मर जाते हैं।
66. गाजर :
67. नमक :
68. नींबू :
69. हुलहुल : हुलहुल के बीजों को पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी चूर्ण में से 2 से 4 ग्राम बड़ों को और छोटो को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लेकर लगभग 2 ग्राम तक को खुराक के रूप में पिलाने से पेट के कीड़ें मर जाते हैं और पेट का दर्द समाप्त हो जाता है।
70. यवक्षार- यवक्षार हरीतकी का फल, विण्डग के बीज, सेंधा नमक, और काम्पिल्लकरज को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, इसी बने चूर्ण को 1 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ सुबह और शाम सेवन करने से आंतों के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
71. बाकुची : बाकुची, शुद्ध गंधक, पलाश के बीज, परसी कायवानी, इन्द्रयव, कृष्णलवण, हरीतकी का फल आदि को मिलाकर चूर्णोदक के साथ दिन में सुबह और शाम प्रयोग करने से कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
72. खजूर : खजूर के पत्तों का बारीक चूर्ण को खजूर के पत्तो के काढ़े में डालकर रात को रख लें, फिर अगले दिन इसे छानकर 14 मिली लीटर से लेकर 28 मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ 1 दिन में 2 बार सुबह और शाम सेवन पेट कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
73. शिग्रु : शिग्रु के बीज को बारीक पीसकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण को 1 ग्राम से लेकर 2 ग्राम की मात्रा पानी के साथ दिन में सुबह और शाम इस्तेमाल करें।
74. सुपारी :
75. विंडग : विडंग के बीजों को पीसकर चूर्ण बना लें, इसी बने चूर्ण को 1 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ प्रयोग करें। इससे पेट कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
76. बायविंडग (बायविंडग) :
77. पपीता :
78. छोटी दुद्धी : छोटी दुद्धी का चूर्ण खाने से बच्चों के पेट के कीड़े मर जाते हैं।
79. काली अगद : काली अगद का काढ़ा बनाकर हींग का बारीक चूर्ण डालकर  सेवन करने से आंतों के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
80. तस्तुम्बे : तस्तुम्बे के फल की गिरी को गर्म करके पेट पर बांधने से पेट की आंतों के कीड़े मर जाते हैं।
81. मसूर : मसूर की दाल को खाने से भी पेट के कीड़ों से छुटकारा मिलता है।
82. ढाक (टेसू) :
83. अतीस : अतीस और बायविंडग का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में लेने पर यह पेट के कीड़ों को मारकर पेट के दर्द को शांत करता है।
84. उतरन : उतरन के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
85. पोहकर : पोहकर मूल और सहजने के बीजों का बारीक चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भागकी मात्रा में प्रयोग करने से पेट के कीड़ो से छुटकारा मिल जाता है।
86.  मैनसिल : मैनसिल को सरसों के तेल में पीसकर लेप करने से सिर की जूं समाप्त हो जाती है।
87. धतूरा : धतूरे के पत्तों का पेस्ट (लुगदी) या धतूरे के पत्तों के रस के साथ पकाये हुए तेल की मालिश करने से सिर की जुएं तुरंत समाप्त हो जाती है।
88. कोहे : कोहे के फूल, बायविंडग, कलिहारी, भिलावे, खस, लोबान, राल और मैनफल आदि को बराबर मात्रा में लेकर आग मे डालकर धूनी (धुआं) देने से घर के मच्छर, खाट के खटमल, शरीर में लगाने से शरीर और कपड़ों की जुएं, जमजूं तथा लीख (डैनडरफ) समाप्त हो जाती हैं।
89. अर्जुन : अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।
90. कपूर : कपूर का टुकड़ा दांत या दाढ़ पर लगाने से दांतों के कीड़े मरते हैं।
91. मां का दूध : मां के दूध में दो बूंदों को सोए के तेल के साथ मिलाकर बच्चों को पिलाने से पेट कीड़े समाप्त हो जाते हैं।      
92. पानी :
93. ग्वारपाठा : ग्वारपाठा के फल को गाय के पेशाब में पीसकर दिन में 2 से 3 बार लगाने से जख्म होने वाले कीड़ो को समाप्त कर देता है।
94. समुद्रफल : समुद्रफल को घिसकर ठण्डे पानी के साथ प्रयोग करने से पेट कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
95. हल्दी : हल्दी को तवे पर अच्छी तरह से भूनकर रख लें, फिर आधा चम्मच की मात्रा में रात को सोने से पहले पानी के साथ पियें। इससे पेट कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
96. शहद :
97.  पान : पान का रस पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
98. सूरन : सूरन का प्रयोग करने से पेट के कीड़े और बवासीर की शिकायत मिट जाती है।
99. दही : दही में असली शहद को मिलाकर 3 से 4 दिन तक दिन में सुबह और शाम पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
100. गन्ना : गन्ने के सिरके में 25 ग्राम कच्चे चने रात को भिगोंकर सुबह छानकर पीनें से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
101. गन्धक : 10 ग्राम गन्धक, 10 ग्राम पारा, 20 ग्राम कज्जली, 30 ग्राम अजमोद, बायविंडग 40 ग्राम, शुद्ध कुचिला 50 ग्राम, पित्तपापड़ा 60 ग्राम और पलास के बीजों को अच्छी तरह पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर एक ग्राम से लेकर 3 ग्राम तक मात्रा में नागरमोथा के काढ़े के साथ पीने से पेट में होने वाले कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
102. चमेली : चमेली के 10 ग्राम पत्तों को पीसकर पीने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं और मासिक धर्म (माहवारी) भी साफ होता है।

103. दालचीनी : चौथाई चम्मच दालचीनी का चूर्ण, एक चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन दिन में एक बार से पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
104. प्याज व लहसुन का रस : प्याज व लहसुन का रस गरम पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
105. हरी मेथी : मेथी का सेवन पेट के कीड़ों में फायदेमन्द हैं क्योंकि मेथी का कड़वापन पेट के कीड़ों को खत्म करता है।
106.  आम : कच्चे आम की गुठली का चूर्ण आधा ग्राम दही या पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से सूत जैसे कृमि नष्ट हो जाते हैं।
107. हींग : छोटे बच्चों के मल करने पर कीड़े दिखते है तो समझे कि उनके पेट में कीड़े है जिन्हें खत्म करने के लिए हल्का सा हींग खाने में दें और हींग के पानी में रूई को भिगोकर गुदा पर लगायें।
108. इन्द्रजौ : इन्द्र जौ के मूल को पानी में घिसकर अथवा उसमें बायविडंग का चूर्ण डालकर पिलायें।
109. धतूरा : धतूरा के पत्तों का रस 3-4 बूंद, आधा-आधा चम्मच अजवायन और शहद में मिलाकर सोते समय पिलाने से कुछ ही दिनों में पेट के सारे कीडे़ मल के साथ निकल जाते हैं।
110. छाछ :
111.  धाय : धातकी के फूलों के चूर्ण को 3 ग्राम खाली पेट ताजे जल के साथ कुछ समय तक सेवन करने से पेट के कीडे़ मर जाते हैं।
112. चिरायता : चिरायता और आंवले से बनाया गया काढ़ा सोने से पूर्व एक कप की मात्रा में सेवन करने से पेट के कीड़ें समाप्त हो जाते हैं।
113. मूली : 50 मिलीलीटर मूली के रस में सेंधानमक और कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से आन्त्रकृमि (आंत के कीड़े) नष्ट होते हैं।
114. कागजी नीबू : प्रतिदिन 2 बार थोड़ा-थोडा नींबू का रस पीना चाहिए। इससे  पेट कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
115. गाजर : 125 मिलीलीटर गाजर का रस रोजाना सुबह खाली पेट पीने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं। कच्ची गाजर खाना भी लाभकारी होता है जिन लोगों को गाजर हजम न हो वे गाजर का रस ही पिया करें। गाजर या किसी भी चीज की कांजी बनाकर कम से कम 5 हफ्तों तक लगातार पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
116. कालीमिर्च : एक कप मट्ठे के साथ 4-6 कालीमिर्च का चूर्ण रात को सोते समय लेने से पेट के कीड़े खत्म हो जाते हैं।
117. शहद : अजवायन का चूर्ण एक चुटकी को एक चम्मच शहद के साथ लेना चाहिए। दिन में 3 बार यह चूर्ण लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
118. अजमोद : बच्चों की गुदा में कृमि हो जाने पर अजमोद को अग्नि पर डालकर धुआं देने से तथा इसको पीसकर लगाने से आराम मिलता है।
119. कचनार : पीले कचनार की छाल 200 से 400 मिलीलीटर पानी में पकायें बचे हुए चौथाई भाग को पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
120. शरपुंखा:
121. अजवाइन :
122.  सफेद पेठा : कुम्हड़े के बीज के बीच के भाग को दूध में पीसकर व छानकर और उसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर पिलाने से या सफेद पेठे के बीज के बीच के भाग का 12.5 ग्राम तेल 2-2 घण्टे के अंतराल से 3 बार दूध के साथ पिलाने और उस पर एरण्ड तेल का विरेचन (द्रव्य के रूप में) देने से पेट के भीतर रुके हुए कृमि (कीड़े) निकल जाते हैं।
123.  कलौंजी : 10 ग्राम कलौजी को पीसकर 3 चम्मच शहद के साथ सोते समय कुछ दिन नियमित रूप से सेवन कराने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
124. कसौंदी : इसके 20 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर जल में पकाकर चौथे बचे भाग को पीने से पेट के कीडे़ खत्म होते है। इसके साथ दस्त को भी यह रोकता है।
125. अखरोट :
126. बच: 2 ग्राम बच के चूर्ण को सेंकी हुई हींग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग के साथ खिलाने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
127. अमरबेल : अमरबेल और मुनक्कों को समान मात्रा में लेकर पानी में उबालें और काढ़ा तैयार होने पर छानकर तीन चम्मच रोजाना सोते समय दें। इससे पेट कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
128. पोदीना : पोदीने का रस कृमि (कीड़ें) नाशक, वायु विकारों (रोगों) को नष्ट करने वाला होता है। पोदीने के 5 ग्राम रस में नींबू का 5 ग्राम रस और 7-8 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से उदर (पेट) के रोग दूर हो जाते हैं।
129. भांगरा : भृंगराज (भांगरा) के बारीक चूर्ण को एरण्ड के तेल के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े नष्ट होकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
130. कुटज : पेट में कीड़े होने पर कुटज के बीजों का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में रोज सोने से पहले खाना चाहिए।
131. लता करंज : लता करंज के तेल पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
132. नारियल : नारियल के पानी को पीने तथा कच्चा नारियल खाने से पेट के कीड़े मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
133. सौंठ : सौंठ व बायविडंग का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
134. परवल : 10-10 ग्राम कड़वे परवल के पत्ते और धनिये को लेकर रात को 100-120 ग्राम पानी में भिगोकर रखें। सुबह इसे छानकर इसमें शहद मिलाकर 3 हिस्से बनाकर दिन में 3 बार रोगी को देने से कीड़े नष्ट होकर मिटते हैं।
135. सोयाबीन: सोयाबीन की दही खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
136. पलास : पलास के बीज, अजवायन, कबीला, बायविडंग, निसात, किरमानी को थोड़ी सी मात्रा में मिलाकर बारीक पीसकर रख लें, इसे लगभग 3 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ लेने से पेट में सभी तरह के कीड़े खत्म हो जाते हैं अथवा पलास के बीजों के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से पेट के सभी कीड़े मरकर बाहर आ जाते हैं।
137. एरण्ड : एरण्ड के पत्तों का रस रोजाना 2-3 बार बच्चे की गुदा में लगाने से बच्चों के चुनने (पेट के कीड़े) मर जाते हैं।
139. त्रिफला : त्रिफला, हल्दी और नीम को मिलाकर प्रयोग करने से कफपित्तज, कृमि (पेट के कीड़े), कोढ़ और दूषित जख्मों में लाभ देता है।
140. अश्वगंधा : अश्वगंधा चूर्ण में बराबर गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ 5-10 ग्राम नियमित सेवन करने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
141. अतीस : अतीस और बायबिडंग बराबर की मात्रा में पीसकर आधा चम्मच शहद के साथ सोते समय कुछ दिन नियमित देते रहने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाएंगे।
142. अरनी : छोटी अरनी के पत्तों का रस लगभग 40 मिलीलीटर की मात्रा में बच्चों को पिलाने से उनके पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
143. बिजौरा नींबू :
140.. शहतूत :

पेट के सभी रोग

पेट के सभी रोग

1. फिटकरी : भूनी हुई फिटकरी 10 ग्राम, भूना हुआ सुहागा 10 ग्राम, नौसादर ठीकरी 10 ग्राम, कालानमक 10 ग्राम और भूनी हुई हींग 5 ग्राम को अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। यह 2-2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम भोजन के साथ सेवन करने से पेट का सभी रोग समाप्त होता है।विभिन्न औषधियों के द्वारा रोग का उपचार :

15. अदरक : अदरक के टुकड़े को देशी घी में सेंककर इसमें नमक मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से पेट का दर्द शांत होता है।
16. आक : 10 ग्राम आक की जड़ की छाल कूटकर 400 मिलीलीटर पानी में डालकर काढ़ा बनाएं और जब यह काढ़ा 50 मिलीलीटर बच जाए तो छानकर पीएं। इसका उपयोग पेट के सभी रोग के लिए बेहतर होता है।
17. गिलोय : ताजी गिलोय 18 ग्राम, अजमोद, छोटी पीपल 2-2 ग्राम, नीम की 2 सींकों को पीसकर रात को 250 मिलीलीटर पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में रख दें और सुबह इसे छानकर सेवन करें। इसका सेवन 15 से 30 दिनों तक करने से पेट के सभी रोग ठीक होते हैं।
18. प्याज :