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पेट में पानी भरना (जलोदर)
पेट में पानी भरना (जलोदर)
जब पेट में लीवर की बीमारी होने पर पेट पर सूजन और पेट में पानी जमा हो जाता है जो जलोदर या पेट में पानी भरना कहलाता है।परिचय :
विभिन्न भाषाओं में नाम :
अरबी |
जलोदर, बदरी |
बंगाली |
जलोदर |
गुजराती |
जलोदर |
हिन्दी |
जलोदर |
कन्नड़ |
जलोदर, औड्डू, सौबाल |
मलायलम |
महोदरम् |
मराठी |
जलोदर |
उड़ीसा |
जलोदुदरि |
पंजाबी |
लोदर |
तमिल |
पेरूवाइरू महोधरम् |
तेलगु |
जलोदरनु |
अंग्रेजी |
एसाइटिस। |
कारण :
लक्षण :
पुनर्नवा, अपामार्ग, चिरायता और सोंठ को एक साथ लेकर काढ़ा बनाकर लेने से दिल की कार्य करने की क्षमता बढ़ती है और जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) कम होता है
पुनर्नवा (पुनर्नवा) की सब्जी खाने से भी जलोदर में लाभ पहुंचता है
पुनर्नवा (लाल गद पुरैना) के पत्तों का रस 10 मिलीलीटर से लेकर 20 मिलीलीटर की मात्रा में या जड़ का रस 5 मिलीलीटर से 10 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम सोंठ के साथ सेवन करने और पत्तों को पीसकर गर्म करके लेप लगाने से जलोदर के कारण पेट में उत्पन्न होने वाले दर्द में लाभ मिलता है और दिल की बीमारी होने पर कुटकी, चिरायता और सोंठ को मिलाकर लेने से भी लाभ होगा।
देवदारू, सहजन (मुनगा) की छाल और अपामार्ग को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर गाय के पेशाब में पीसकर रोज सुबह सेवन करने से पेट में रुका हुआ पानी पेशाब के द्वारा बाहर निकलकर शरीर में ताजगी आती है
देवदारू, सहजन और बिजौरा नींबू को बराबर मात्रा में लेकर गाय के पेशाब में मिलाकर पीने से लीवर का बढ़ना, सूजन दोष युक्त पेट में रोग और कृमि (कीड़े) की बीमारियां समाप्त हो जाती है।
अपराजिता की जड़ की छाल 2 से 3 ग्राम की मात्रा में पीसकर पीने से मूत्र के द्वारा पेट साफ हो जाता है।
अपराजिता की जड़, शंखुपुश्पी की जड़, दन्तीमूल और नील की जड़ को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर रख लें, फिर 6 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी में पीसकर 40 ग्राम की मात्रा में गाय के पेशाब में मिलाकर पीने से जलोदर में लाभ हो जाता है।
इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम ग्राम को सोंठ और गुड़ के साथ सुबह और शाम देने से लाभ होता है ध्यान रहें की अधिक मात्रा में सेवन करने से विषाक्त (जहर) बन जाता है और हानि पहुच सकती है।
इन्द्रायण को लेने से लीवर (यकृत) की वृद्धि के कारण पेट का बड़ा हो जाने की बीमारी में लाभ होगा।
इन्द्रायण की जड़ की छाल के चूर्ण में सांभर नमक मिलाकर खाने से जलोदर समाप्त हो जाता है।
31. मूसली : मूसली को सुबह और शाम पीने से जलोदर (पेट में पानी का भरना) में लाभ और सूजन को कम करता है।
करेले के पत्तों का रस 350 मिलीलीटर से लेकर 700 मिलीलीटर रोज सुबह और शाम पीने से जलोदर के रोग में लाभ होता है।
करेला के 20 मिलीलीटर रस में थोड़ा-सा शहद मिलाकर पिलाने से दस्त आकर जलोदर साफ हो जाता है।
50 मिलीलीटर करेले के रस को पिलाने से भी जलोदर में आराम होता है।
करेला के पत्तो के 10 से 15 मिलीलीटर रस में बडी हरड़ को घिसकर पिलाने से जलोदर में लाभ होता है।
करेला के पत्तों के 10 से 15 मिलीलीटर रस में मधु मिलाकर पिलाने से जलोदर में लाभ होता है।
25 मिलीलीटर करेले का रस आधा कप पानी में मिलाकर दिन में 3 बार रोज सेवन करे।
37. ऊदसलीव : ऊदसलीव के मूल (जड़) का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम लेने से लाभ होता है।
आक के हरे पत्ते 200, हल्दी 14 ग्राम को पीसकर उड़द को मिलाकर पीस लें, फिर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रोजाना 4 गोलिया ताजे पानी के साथ खाने से जलोदर की बीमारी मिट जाती है।
आक के पत्ते का रस एक लीटर में 20 ग्राम हल्दी चूर्ण मिला मन्द अग्नि पर पकाकर जब गोली बनाने लायक हो जाये तो नीचे उतारकर चने जैसी गोलियां बना लें, 2-2 गोली सुबह और शाम सौंफ, कासनी आदि रस के साथ दे तथा पानी के स्थान पर यही रस पिलायें।
आक के ताजे हरे पत्ते 250 ग्राम और हल्दी 20 ग्राम दोनों को महीन पीस उड़द के आकार की गोलियां बना लें। पहले दिन ताजे पानी के साथ 4 गोली, फिर दूसरे दिन 5 और 6 गोली तक बढाकर घटाये यदि लाभ हो तो पुन: उसी प्रकार घटाये बढ़ाये इस क्रिया से अवश्य लाभ होगा। भोजन में दूध, साबूदाना व जौ दें।
आक के 8-10 पत्तों को सैंधा नमक के साथ कूट मिट्टी के बरतन में बंद कर जला कर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग भस्म या राख को सुबह, दोपहर, शाम छाछ के साथ सेवन करने से जलोदर मिटता है तिल्ली आदि अंग जो पेट में बढ़ जाया करते है, सब अपने स्थान पर आ जाते है।
40 ग्राम चने को 250 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल लें, जब पानी आधा रह जाये, तब उसको ठंडा करके पिलाने से जलोदर रोग मिट जाता है।
50 ग्राम चने की दाल को थूहर के दूध में भिगोकर, सुखा दें, ऐसा लगभग तीन बार करें। फिर सुखाकर कुछ दिन तक लगातार 2 दाने दाल ही खाने से दस्त आकर पेट साफ हो जाता है।
25 ग्राम चना, 250 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब पानी आधा रह जाये तो इसका पानी छानकर लगातार 21 दिन तक दिन में 3 बार पीने से जलोदर में लाभ मिलता है।
तालमखाना की जड़ का 25 ग्राम को 250 मिलीलीटर पानी में डालकर बंद बर्तन में उबालकर 15 मिनट में बाद उतार कर छान लें। इस बने रस को दिन में 1 से 3 बार 50 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से जलोदर की बीमारी मिट जाती है।
तालमखाने के पत्ते को रात में पानी में भिगो दें, सुबह उसी पानी का काढ़ा बनाकर पीने से जलोदर की बीमारी मिट जाती है।
सूखे पुनर्नवा को फांट या घोल बनाकर उसमें शोरा मिलाकर पीने से जलोदर में आराम मिलता है।
पुनर्नवा के पत्तों की सब्जी बनाकर रोटी के साथ खायें।
पुनर्नवा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को पीसकर पेट के ऊपर लेप करने से जलोदर समाप्त हो जाता है।
पुनर्नवा की जड़ का रस 14 मिलीलीटर 28 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करें।
पुनर्नवा के 40 से 60 मिलीलीटर फांट या घोल में 1 से 2 ग्राम शोरा डालकर पिलाने से जलोदर का रोग मिटता है।
सेंधानमक और राई को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें। फिर 6 ग्राम चूर्ण को गाय के पेशाब के साथ पीने से जलोदर में लाभ होता है।
सेंधानमक, अजवायन, सोंठ, काली मिर्च, जीरा और छोटी पीपल को छाछ में मिलाकर बराबर मात्रा में पिलाने से `कफ´ का बढ़ना समाप्त हो जाता है।
सेंधानमक, छोटी पीपल और चीता को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें, इसे सहजन, हरड़ और आंवला के रस या काढ़े के साथ पीने से `प्लीहोदर´ यानी तिल्ली का बढ़ना कम होता है।
लहसुन का रस 10 से 30 बूंद दूध में मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है और जलोदर में लाभ होता है।
लहसुन का मिश्रण 2 से 3 ग्राम की मात्रा में घी में मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से हृदय को ताकत मिलती है और जलोदर की शिकायत कम हो जाती है।
250 मिलीलीटर पानी में एक चम्मच लहसुन को डालकर उसके रस को कुछ दिनों तक पीने से शरीर में मौजूद जल को सोखकर आराम देता है।
पेट में पानी के जमा होने पर आधा चम्मच लहसुन का रस 125 ग्राम पानी में मिलाकर रोज कुछ दिनों तक पीने से यह रोग दूर होता है।
लहसुन का रस 10 से 12 बूंद दूध में मिलाकर या लहसुन का मिश्रण 2 से 3 ग्राम तक घी में मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से हृदय को ताकत मिलती है और पेट में मौजूद पानी पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाता है।
125 मिलीलीटर पानी में लहसुन का रस 1 चम्मच की मात्रा में मिलाकर दिन में रोज 3 बार खुराक के रूप में पीने से जलोदर की बीमारी समाप्त होती है।
गाय के एक लीटर पेशाब में लगभग 200 ग्राम अजवायन को भिगोकर सुखा लें, इसको थोड़ी-थोड़ी मात्रा में गाय के पेशाब के साथ खाने से जलोदर मिटता है।
अजवायन जल के साथ खाने से पेट की गुड़गुड़ाहट और खट्टी डकारें आना बंद हो जाती है।
अजवायन को बारीक पीसकर उस में थोड़ी मात्रा में हींग मिलाकर लेप बनाकर पेट पर लगाने से जलोदर एवं पेट के अफारे में सद्य लाभ होता है।
अजवायन, सेंधा नमक, जीरा, चीता और हाऊबेर को बराबर मात्रा में मिलाकर छाछ पीने से बद्धोदर में लाभ होता है।
अजवायन, हाऊबेर, त्रिफला, सोंफ, काली जीरा, पीपरामूल, बनतुलसी, कचूर, सोया, बच, जीरा, त्रिकुटा, चोक, चीता, जवाखार, सज्जी, पोहकरमूल, कूठ, पांचों नमक और बायबिण्डग को 10-10 ग्राम की बराबर मात्रा में, दंती 30 ग्राम, निशोथ और इन्द्रायण 20-20 ग्राम और सातला 40 ग्राम को मिलाकर अच्छी तरह बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर बनाकर रख लें। यह चूर्ण सभी प्रकार के पेट की बीमारीयों में अजीर्ण, मल को साफ करता है, गुल्म ( पेट में वायु का रुकना), वात रोग, संग्रहणी (पेचिश), मंदाग्नि, ज्वर (बुखार) और सभी प्रकार के जहरों की बीमारीयों को समाप्त करता है। इस बने चूर्ण को 3 से 4 गर्म की मात्रा में निम्न रोगों में इस प्रकार से लें, जैसे- पेट की बीमारीयों में- छाछ के साथ, मल की बीमारी में- दही के साथ, गुल्म की बीमारियों में- बेर के काढ़े के साथ, अजीर्ण और आनाह में- गर्म पानी के साथ, बवासीर में- अनार के साथ। आदि ले सकते हैं।
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