जिगर की खराबी

जिगर की खराबी


          जिगर की खराबी अधिकतर उन लोगों में होती है जो शराब अधिक पीते हैं। कभी-कभी जिगर में उत्पन्न घाव का उपचार ठीक से न होने पर जिगर में कई प्रकार के विकार पैदा हो जाते हैं जिससे जिगर ठीक से काम नहीं करता है। इस रोग में पहले जिगर बढ़ता है और फिर छोटा हो जाता है। जिगर का परीक्षण करने से पता चला है कि इस रोग में जिगर बढ़ जाता है और जिगर के बगल में दर्द होता है। यह रोग ज्यादा बढ़ जाने पर पेट में सूजन आ जाती है, अधिक बढ़ने पर पैरों में भी सूजन आ जाती है। कभी-कभी इससे पीलिया भी हो जाता है। इस रोग में बदहजमी हो जाती है और रोगी दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जाता है।परिचय :

लक्षण :

पेट में पानी भरना (जलोदर)

पेट में पानी भरना (जलोदर)


          जब पेट में लीवर की बीमारी होने पर पेट पर सूजन और पेट में पानी जमा हो जाता है जो जलोदर या पेट में पानी भरना कहलाता है।परिचय :

विभिन्न भाषाओं में नाम :


अरबी          

जलोदर, बदरी

बंगाली         

जलोदर

गुजराती      

जलोदर

हिन्दी          

जलोदर

कन्नड़       

जलोदर, औड्डू, सौबाल

मलायलम   

महोदरम्

मराठी         

जलोदर

उड़ीसा          

जलोदुदरि

पंजाबी                  

लोदर

तमिल                  

पेरूवाइरू महोधरम्

तेलगु          

जलोदरनु

अंग्रेजी                  

एसाइटिस।

कारण :

लक्षण :

          जलोदर होने पर पेट के पेप्टिक में बढ़ोत्तरी, नाभि का बाहर निकलना, पार्ष्वपूर्णता (कमन का बढ़ जाना), पानी की हलचल होना, पेट में दर्द होना, पेट का आगे का भाग फूलना, बेचैनी होना, पैर में सूजन, सांस लेने में परेशानी होना और धड़कन बढ़ना, नाड़ी-अर्बुद (एनिउरीजम), धनास्त्रता (थोरोनोसिस) पेशाब कम आना, पेट में भारी पन होना (ठेपण पर शिथिलता), क्षुधामांद्य (भस्मक रोग), कमजोरी होना, प्यास लगना, तथा पेट में दर्द तथा ठंडे पानी से पैदा हुआ जलोदर नाभि के पास गोल और चिकना हो, पानी भरी मशक के समान बढ़े, दु:खी होना या शरीर कांपना आदि लक्षण पाये जाते हैं।
          हल्का, आसानी से पाचन युक्त, अग्नि वर्द्धक, एक साल पुराना लाल चावल, चोकर समेत आटे की रोटी, मूंग की दाल, मूली चने के बेसन की सब्जियां, पालक, सफेद पुनर्नवा की सब्जी, सूखे मेवे, जौ का माड़, सेम, करेला, शलजम, नीम, व्राहमी शाक, पालक की सब्जी, बैंगन, तीती चीजें, मक्खन निकाला हुआ मट्ठ लहसुन, परवल, सहजन, अदरक, मट्ठा, जंगल देश के पशु-पक्षियों के मांस का सूप, भैंस, गाय, बकरी और ऊंटनी का दूध और पेशाब, दूध, साबूदाना, छोटी मूली, जमीकन्द, बैंगन, मूंग की दाल, गूलर, अरारोट और पतली रोटी आदि का सेवन जलोदर की बीमारी में मरीज कर सकते हैं।
          पिट्टी के पदार्थ (कचौड़ी, मंगौड़ी), अनूपदेश (जैसे बंगाल) के पशु-पक्षियों का मांस, मोंठ, भारी पदार्थ, तिल, पत्तों के साग, शरीर में प्रवेश करने वाले पोषक तत्व को नष्ट करने वाले पदार्थ (अभिश्यान्दि आहार), व्यायाम, घूमना, नमक, गर्म और दाहकारी (जलन पैदा करने वाले), नमकीन भोजन, अचार, ईमली, खट्ठी, तली और रसीली चीजें, भुजिया, मछली, नया अनाज, धूम्रपान (बीड़ी, सिगरेट आदि), धूप और अधिक पानी पीना नहीं चाहिए क्योंकि यह सभी क्रिया जलोदर को बढ़ाने में मदद करती है।
107. इन्द्रायण : इन्द्रायण के फल के गूदा तथा बीजों को खाली करके इसके छिलके के प्याली में बकरी का दूध भरकर पूरी रात भर के लिए रख देते हैं। सुबह होने पर इस दूध में थोड़ी सी खाण्ड मिलाकर रोगी को पिला दें। इसी प्रकार कुछ दिनों तक पिलाने से जलोदर कट जाता है इन्द्रायण की जड़ का काढ़ा और फल का गूदा खिलाना भी लाभदायक है, परन्तु ये तेज औषधि है।