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कफ-पित्त ज्वर
कफ-पित्त ज्वर
चिकने, भारी, मीठे, खट्टे, नमकीन और शीतल पदार्थों के गलत आहार, दिन में सोना और परिश्रम न करना आदि कारणों से कफ कुपित होकर आमाशय में जाकर रस को दूषित करता है तथा पेट की गर्मी को बाहर कर बुखार को जन्म देता है। कफ जल का अंश है जो दूषित पानी से पैदा होता है।परिचय :
लक्षण :
1. सोंठ : सोंठ, गिलोय, छोटी पीपल और जटामांसी को पीसकर बने काढ़े को पीने से कफ-ज्वर में लाभ होता है।2. त्रिफला :
त्रिफला और पीपल को बराबर भाग में लेकर चूर्ण बना लें, इसमें शहद को मिलाकर चाटने से कफ, बुखार, श्वास (दमा) और खांसी ठीक होती है।
त्रिफला (हरड़, बहेड़ा, आंवला) 3 ग्राम, निशोथ 3 ग्राम, नागरमोथा 3 ग्राम, त्रिकुटा (सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल) 3 ग्राम, इन्द्रजौ 3 ग्राम, पटोल के पत्ते 3 ग्राम, कुटकी 3 ग्राम, चित्रक 3 ग्राम और अमलतास को 3 ग्राम की मात्रा में कूटकर बना लें। जब काढ़ा ठंडा हो जाये तब शहद मिलाकर पिलाने से कफ का बुखार दूर होता है।
4. पानी : 1 लीटर के लगभग पानी उबालें, जब पानी 250 मिलीलीटर रह जाये, तब इसका सेवन करने से कफ-ज्वर दूर हो जाता है।
5. मेड़ासींगी : मेड़ासींगी, पीपल, कायफल और पोहकरमूल को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण में शहद को मिलाकर चाटने से कफ के बुखार में लाभ होता है।
6. बिण्टा : लगभग 116 ग्राम बिण्टा के पत्तों को पीसकर इसमें 6 ग्राम नमक मिलाकर और 10 ग्राम शहद के साथ पीने से फेफड़ों में जमा कफ मिटता है।
7. करंजबा : करंजबा की गिरी (मींगी) को पानी में पीसकर नाभि में डालने से कफ का बुखार मिटता है।
8. कटेरी :
10. पीपल :
पीपल, पीपरा मूल (जड़), गजपीपल, कालीमिर्च, सोंठ, चीता, चव्य, रेणुका, इलायची, अजमोद, सरसो, भारंगी, हींग, पाढ़ी, इन्द्रजौ, जीरा, बकायन, मूर्वा, अतीस, कुटकी और बायबिडंग को मिलाकर पकाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को लगभग 1-1 ग्राम की मात्रा में मरीज को देने से कफ के बुखार को ठीक और भूख को बढ़ा देता है।
पीपल का चूर्ण एक ग्राम में 5 से 10 ग्राम शहद मिलाकर दिन में 3 बार चाटना चाहिए।
नीम की छाल, सोंठ, गिलोय, कटेरी, कचूर, अडूसा, कुटकी, कायफल, पोहकर मूल (जड़), छोटी पीपल और शतावर आदि को मिलाकर काढ़ा बनाकर पिलाने से कफ के बुखार में लाभ होता है।
नीम की छाल, सोंठ, गिलोय, पोहकर मूल, छोटी पीपल, कटाई, चिरायता, कचूर और शतावर को मिलाकर पीस लें। 3-3 ग्राम की मात्रा में मरीज को देने से कफ के बुखार को दूर करता है।
नीम की छाल, पीपल की जड़, हरड़, कुटकी और अमलतास को समान भाग लेकर एक किलो पानी में पकायें। अष्टमांश बचे काढ़े की 10-20 ग्राम मात्रा सुबह और शाम सेवन करना चाहिए।
13. दशमूल : दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरियवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) और अडूसे के काढ़े में शहद मिलाकर पिलाने से कफ के बुखार से मरीज को छुटकारा मिलता हैं।
14. हरड़ : हरड़, बहेड़ा, आंवला, अडू़सा, पटोल (परवल) के पत्ते, कुटकी, बच और गिलोय को मिलाकर पीसकर काढ़ा बना लें, जब काढ़ा ठंडा हो जाये तब उसमें शहद डालकर मरीज को पिलाने से कफ का बुखार समाप्त होता है।
15. अजवायन : अजवायन 6 ग्राम, छोटी पीपल 6 ग्राम, अडूसा 6 ग्राम और पोस्ता का दाना 6 ग्राम लेकर कूट लें, इस काढ़े को पीने से कफ के बुखार, श्वास (दमा) और खांसी आदि विकार दूर होते हैं।
16. कायफल : कायफल, पोहकरमूल, काकड़ासिंगी, अजवायन, कलौंजी, सोंठ, कालीमिर्च और छोटी पीपल आदि को बराबर मात्रा में लेकर कूट लें। इस चूर्ण को 3-3 ग्राम की मात्रा में शहद या अदरक के रस के साथ दिन में 2-3 बार चटाने से कफ के बुखार, खांसी, अरुचि (भूख का न लगना), हिचकी, वमन (उल्टी) और वात आदि रोग समाप्त होते हैं।
17. कालीमिर्च : कालीमिर्च, पीपरा मूल (पीपल की जड़), सोंठ, कलौंजी, छोटी पीपल, चित्रक, कायफल, मीठा, कूठ, सुगंध, बच, हरड़, कटेरी की जड़, काकड़ासिंगी, अजवायन और नीम की छाल को बराबर मात्रा में लेकर कूट लें। इस बने मिश्रिण को काढ़ा बनाकर पिलाने से कफ के बुखार में लाभ पहुंचता है।
18. अडूसा :
अडू़सा, छोटी कटेरी और गिलोय को मिलाकर पीस लें, इस मिश्रण को 8-8 ग्राम की मात्रा में लेकर पकाकर काढ़ा बनाकर पिलाने से कफ के बुखार और खांसी के रोग में लाभ मिलता है।
हरड़, बहेड़ा, आंवला, पटोलपत्र, वासा, गिलोय, कुटकी, पिप्पली की जड़ सब मिलाकर 20 मिलीलीटर इसका काढ़ा बना करके 20 ग्राम मधु का प्रक्षेप देकर सेवन करने से कफ ज्वर में लाभ होता है।
त्रिफला, गिलोय, कुटकी, चिरायता, नीम की छाल तथा अडूसा 20 ग्राम लेकर 320 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब चौथाई भाग शेष रह जाये तो इस काढ़े में शहद मिलाकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से कफ ज्वर एवं पीलिया रोग नष्ट होता है।
20. परवल :
परवल, मोथा, नेमवाला, लाल चंदन, कुटकी, सोंठ, पित्तपापड़ा, खस तथा अडूसा को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम के समय सेवन करने से आराम मिलता है।
लगभग 6 ग्राम मीठे परवल की टहनी सहित पत्ते और 6 ग्राम सोंठ का काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से कफ ज्वर मिटता है। कफ आसानी से निकलता है। आम का पाचन होता है और मल की समस्या दूर होती है।
22. कुड़ा : कुड़े की छाल 5 ग्राम, पद्माख 5 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम, लालचंदन 5 ग्राम, गिलोय 5 ग्राम, पटोल के पत्ते 5 ग्राम और धनिया 5 ग्राम लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से कफज्वर में लाभ होता है।
23. कुटकी : कफ ज्वर में तीन चौथाई कुटकी के चूर्ण को दिन में 4 बार करेले के रस के साथ ले सकते हैं।
24. बला : बला, परोल, त्रिफला, मुलेठी और वासा को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को शहद में मिलाकर सेवन करें।
25. राई : जीभ पर सफेद मैल जम जाये, भूख प्यास न लगती हो साथ-साथ हल्का बुखार भी रहता हो तो ऐसे लक्षणों में राई का आटा लगभग आधा ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से राहत मिलती है।
26. आंवला : नागरमोथा, इन्द्रजौ, हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, फालसा, इनका काढ़ा कफ ज्वर को नष्ट करता है।
27.गंभारी : गंभारी और अड़ूसे के कोमल पत्तों के लगभग 10-20 मिलीमीटर रस को सुबह-शाम पीने से कफज रोग दूर हो जाता है।
28. सौंठ: आधा चम्मच पिसी हुई सौंठ एक कप पानी में उबालकर आधा पानी शेष रहने पर मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए।
29. निर्गुण्डी :
निर्गुण्डी के पत्तों का रस या निर्गुण्डी के पत्तों का 10 मिलीलीटर काढ़ा, 1 ग्राम पीपल चूर्ण मिलाकर दें और निर्गुण्डी के पत्तों का सेंक भी करने से कफज्वर और फेफड़ों की सूजन कम होती है।
निर्गुण्डी के पत्तों के 30-40 मिलीलीटर काढ़े की एक मात्रा में 500 ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर पीने से कफज्वर और फेफड़ों की सूजन दूर हो जाती है।
निर्गुण्डी के तेल में अजवाइन और लहसुन की एक से दो कली डाल दें तथा तेल हल्का गुनगुना करके सर्दी के कारण होने वाले बुखार, न्यूमोनिया, छात्ती में जकड़न होने पर इस बने तेल की मालिश करने से लाभ होता है।
निर्गुण्डी का रस या पत्तों का काढ़ा पीपल के साथ लेने से कफ के बुखार में लाभ मिलता है।- निर्गुण्डी के पत्तों को गर्म करके फेफड़ों पर लगाने से फेफड़ों की सूजन कम हो जाती है।
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