पित्त की वृद्धि

पित्त की वृद्धि

          शरीर में पित्त की अधिक मात्रा का होना ही पित्त की वृद्धि कहलाती है।परिचय :

लक्षण :

1. हरीतकी : हरीतकी का चूर्ण सुबह-शाम चीनी के साथ खाने से पित्त की वृद्धि खत्म होती है और जलन भी शान्त होती है।
2. कुटकी : शरीर में पित्त के साथ जलन, बुखार हो तो कुटकी का चूर्ण 0.60 ग्राम से 1.20 ग्राम और पुराना पित्त बुखार हो तो 3 से 4 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह शाम चाटने से पित्त के बढ़ने की बीमारी में फायदा होगा।
3. पटुआ : पित्त की वृद्धि में पटुआ के फूलों का रस 10 मिलीलीटर में कालीमिर्च और मिश्री मिलाकर रोज पीने से शौच साफ आता है और पित्त की वृद्धि भी समाप्त हो जाती है। इसके पत्ते भी विरेचन (दस्त लाने वाले) गुणों से भरे होते हैं।
4. छोटी इलायची : छोटी इलायची 0.60 ग्राम सुबह-शाम देने से पित्त में फायदा होता है।
5. छरीला : अगर पित्त ज्यादा बढ़ जाता है तो छरीला की फांट, जीरा और मिश्री बराबर मिलाकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम लेने से लाभ हो जाता है।
6. गिलोय : गिलोय का रस 7 से 10 मिलीलीटर रोज 3 बार शहद में मिलाकर खाने से लाभ होता है।
7. सफेद पाढ़ल (घंटा पाढर) : सफेद पाढ़ल के फूलों का रस 10 मिलीलीटर से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम लेने से पाचन क्रिया ठीक हो जाती है और खराब पित्त शरीर से बाहर निकल जाती है।
8. दमन पापड़ा : अगर पित्त बढ़ जाता है, उल्टी, जलन, भ्रम, चक्कर, प्यास, बुखार कुछ भी हो तो दमन पापड़ा या पित्त पापड़ा का काढ़ा 50 ग्राम सुबह-शाम लेने से फायदा होता है।
9. वेदमुश्क की छाल : वेदमुश्क की छाल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से शरीर की जलन और पित्त भी शान्त होती है।
10. हरी दूब : पित्त के बढ़ने पर हरी दूब का रस 10 मिलीलीटर सुबह-शाम मिश्री के साथ देने से फायदा होता है। पित्त के बढ़ने पर हरी दूब के अलावा अगर सफेद दूब का उपयोग किया जाये तो ज्यादा फायदा होता है।
11. आकाशबेल (अमरबेल) : आकाशबेल का रस आधा से 1 चम्मच सुबह-शाम खाने से कब्ज और यकृत (लीवर) के सारे दोष दूर होते हैं साथ ही पित्त की वृद्धि को भी रोकता है और जलन भी दूर करता है।
12. गुरड़ी साग : गुरड़ी को साग के रूप में खाने से पित्त का विरेचन यानी दस्त के द्वारा बाहर निकल जाती है और पित्त के बढ़ने से होने वाले दोष मिट जाते हैं।
13. लज्जालु (छुईमुई) : लज्जालु (छुईमुई) का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पित्त के बढ़ने से होने वाले सभी रोग दूर होते हैं।
14. छोटी दुद्धी : पित्त की वृद्धि होने पर उसे निकालने के लिए छोटी दूद्धी का रस 10 से 20 बूंद सुबह-शाम दूध में मिलाकर खाने से पित्त दस्त के साथ बाहर निकल जाता है।
15. सनाय की पत्ती : पित्त के बढ़ने से जलन का कष्ट ज्यादा होता है ऐसे में सनाय की पत्ती का चूर्ण 0.60 से 1.80 ग्राम को लौंग और मुलेठी के साथ पित्त के विरेचन के लिए सेवन करते रहें। जिससे पित्त निकल जाती है।
16. सेंवार : सेंवार के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पित्त की वृद्धि शान्त होती है और जलन भी दूर होती है।
17. गुड़हल : पित्त के बढ़ने पर और इससे पैदा होने वाले किसी भी तरह के उपद्रव, सिर दर्द, उल्टी, मिचली या जलन आदि में गुड़हुल की 10 से 12 कलियां या फूलों को घोंटकर पिलाने से लाभ होता है।
18. सफेद गुड़हल : सफेद गुड़हल के पत्तों के रस में शक्कर डालकर पीने से बढ़ी हुई पित्त में लाभ मिलता है।
19. बरना : पित्त के ज्यादा होने पर फूलों को पीसकर, घोंटकर रोज सुबह-शाम पीने से या काढ़ा बनाकर 50 से 100 मिलीलीटर पीने से पित्त दस्त के साथ बाहर निकल जाती है।
20. सागोन (सागवान) : सागोन के पेड़ की छाल का चूर्ण 3 से 12 ग्राम सुबह-शाम खाने से पित्त खत्म होती है।
21. अमरा : पित्त के बढ़ने पर अमरा के फल का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पित्त खत्म होती है।
22. केला : पित्त के बढ़ने पर या पित्त से सम्बंधित बीमारी में केले के पेड़ का रस 20 से 40 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से लाभ होता है।
23. झड़बेर : झड़बेर के फल का शर्बत शीतल और पित्तनाशक होता है।
24. फालसे : फालसे के फल का शर्बत सुबह-शाम सेवन करने से पित्त का शमन होता है और पित्त से भरे जलन से मुक्ति मिल जाती है।
25. मुनक्का : पित्त के बढ़ने पर मुनक्का खाना फायदेमन्द होता है। इससे पित्त से भरी जलन भी दूर होती है।
26. कागजी नींबू : कागजी नींबू का शर्बत सुबह-शाम पीने से पित्त की वृद्धि बन्द हो जाती है।
27. कोकम : कोकम के पके फल का शर्बत सुबह-शाम पीने से पित्त शान्त हो जाती है।
28. सांवा : पित्त के बढ़ने पर सांवा के पांचों भागों को मिलाकर बने काढ़े को 40 से 80 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पित्त शान्त होती है।
29. तीनि (तीनि एक तरह की घास है, जो पानी में पायी जाती है) : पित्त के बढ़ने पर तीनि के चावल को उबालकर खाना चाहिए।
30. सफेद मरसा : सफेद मरसा के बीजों को भूनकर खाने से पित्त की वृद्धि कम हो जाती है। यह पित्त को शान्त करने में फायदेमन्द है। सफेद मरसा के पत्तों का साग भी खाने से फायदा होता है।
31. चूका साग : चूका साग को, साग के रूप में खाने से पित्त के बढ़ने में लाभ होता है और जलन में भी शान्ति मिलती है।
32. आलूबुखारे : आलूबुखारे का रस 40 से 80 मिलीलीटर तक या काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर तक सुबह-शाम पिलाने से पित्त शान्त होती है।
33. आलूचा : यह भी आलूबुखारे का ही भेद है। इसे भी पित्त शान्त करने के लिए रस या काढ़े के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
34. ऊदसलीब : अगर पित्त बराबर मात्रा में नहीं निकल रहा हो तो ऊदसलीब की जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम सुबह-शाम खाने से लाभ होता है।
35. कासनी ग्राम्य : कासनी ग्राम्य का फल खाने से पित्त की जलन और परेशानी दूर होती है।
36. कुंगकु की छाल : पित्त को कम व नियंत्रित रखने के लिये कुंगकु की छाल को पानी में उबालकर 40 से 80 मिलीलीटर सुबह-शाम पीने से पित्त बाहर निकल जाती है।
37. गिरिपर्पट की रेजिन : गिरिपर्पट की रेजिन 0.12 ग्राम से 0.24 ग्राम खाने से पित्त बाहर निकल जाती है। इसकी क्रिया धीरे-धीरे होती है मगर यह तेज होती है।
38. दरियाई नारियल : पित्त के बढ़ने पर दरियाई नारियल के बीच का हिस्सा 0.48 मिलीग्राम से लेकर 1 ग्राम तक को गुलाबजल में घिसकर सुबह-शाम खाने से पित्त शान्त होती है और लाभ होता है।
39. गुलबनफ्शा : गुलबनफ्शा के फूलों की फांट या घोल 40 से 80 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पित्त शान्त होती है।
40. सालव मिश्री का फल : पित्त को शान्त करने के लिए सालव मिश्री के फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम खाने से लाभ होता है।
41. चना : 100 ग्राम चने के बेसन से बने मोतिया लड्डुओं के साथ दस पिसी कालीमिर्च मिलाकर खाने से पित्त की गर्मी में लाभ मिलता है।
42. कागजी नींबू : पित्तशमन के लिए नींबू के रस और नमक का सेवन करना चाहिए।
43. इमली :
44. कैथ : पित्त शमन के लिए कैथ के गूदे को शक्कर के साथ खाना चाहिए।
45. पवांड़ : 2 से 4 ग्राम पवांड़ की जड़ के बारीक चूर्ण को घी में मिलाकर खाने से शीत-पित्त का रोग मिट जाता है।
46. लीची : लीची खाने से पित्त की अधिकता कम होती है।
47. पलास : पलास के गोंद को पानी में गलाकर प्रतिदिन लेप करने से पित्तशोथ मिट जाती है।
48. तुलसी : चौथाई चम्मच तुलसी के बीज एक आंवले के मुरब्बे पर डालकर प्रतिदिन दो बार खाएं। इससे पित्ती ठीक हो जाती है।

पित्त ज्वर

पित्त ज्वर


          पित्त गर्मी का ही अंश है। पित्त ठंड़ी शीतल वस्तुओं से शान्त होता है। इसमें नाड़ी मेढ़क या कौए की तरह कूद-कूदकर चलती है।परिचय :

कारण :

पित्त ज्वर के लक्षण :

          पित्त बुखार काफी तेज रहता है। इस बुखार में शरीर ठंड़ा रहता है। पसीना ज्यादा आता है। आंखों और त्वचा का रंग पीला हो जाता है और मल पीले रंग का पतला या गाढ़ा हो जाता है। पेशाब का रंग पीला हो जाता है। दिमाग में गर्मी के बढ़ने पर बकवाद पैदा करता है। भूख को रोक देता है। मुंह का स्वाद कड़वा होता है। मुंह के अन्दर काफी कफ हो जाता है, खांसी, भूख न लगना, प्यास, आलस्य, बेहोशी, बार-बार कभी गर्मी कभी सर्दी लगना, हाथ-पैरों और सिर में दर्द, आंखों में जलन, किसी काम में मन न लगना और भ्रम जैसे लक्षण होते हैं। इसमें नाड़ी कभी ठंड़ी कभी कम ठंड़ी और पतली छोटी हो जाती है तथा हल्की गति से चलती है।
1. धमासा : धमासा, बांस, कुटकी, पित्तपापड़ा, मालकांगनी और चिरायता का काढ़ा पीने से पित्त का बुखार दूर होता है।
2. गिलोय :
3. नीम :
4. इमली :
5. आक (मदार) : आक की जड़ के चूर्ण को 0.30 ग्राम खाने से पसीना आकर बुखार उतर जाता है।
6. नारंगी : नारंगी का गुदा निकालकर उस पर चीनी डालकर थोड़ा सा गर्म करके खाने से बुखार और खांसी दोनों ठीक होती है।
7. पित्तपापड़ा : पित्तपापड़े का काढ़ा पीने से पित्त बुखार खत्म हो जाता है।
8. मूंग : मूंग और मुलहठी का जूस बनाकर पीने से पित्त बुखार ठीक हो जाता है।
9. पानी : लगभग 1 लीटर पानी को इतनी देर तक उबाले कि वह बचकर 700 मि.ली रह जाये तब यह पानी पीने से पित्त बुखार खत्म हो जाता है।
10. नींबू : नीबू के साथ नागदोन खाने से पित्त का बुखार उतर जाता है।
11. इन्द्रायण : इन्द्रायण की जड़ की छाल का चूर्ण 0.12 ग्राम लेकर उसमें शक्कर (शुगर) मिलाकर खाने से लाभ होता हैं।
12. नागदोन : नागदोन और गाजर खाने से पित्त की गर्मी खत्म होती है।
13. चावल : चावल और छुहारे को पानी में भिगो दें इससे धुले पानी के साथ 0.24 ग्राम जस्ता भस्म खाने से बुखार ठीक हो जाता है।
15. ढाक : ढाक के कोमल पत्तों को नींबू के रस में पीसकर शरीर पर लगाने से गर्मी उतर जाती है।
16. गुडहल : पित्त के बुखार में गुड़हल के शर्बत को पीना फायदेमन्द होता है।
17. तुलसी : पित्त बुखार की घबराहट में तुलसी के पत्तों का शर्बत बनाकर पी लें।
18. शहतूत : पित्त के बुखार में शहतूत का रस या उसका शर्बत मिलाकर पिलाने से प्यास, गर्मी और घबराहट दूर हो जाती है।
19. पोदीना : घबराहट व बैचेनी में पोदीने का रस लाभदायक होता है।
20. खिरेंटी : खिरेंटी की जड़ का शर्बत बनाकर पीने से बुखार की गर्मी और घबराहट दूर हो जाती है।
21. जवासा : जवासा अडूसा, कुटकी, पित्तपापड़ा, प्रियंगु के फूल और चिरायता इन सबको मिलाकर काढ़ा बना लें और मिश्री या खांड़ डालकर पित्त के बुखार में सेवन करें।
22. सूखे धनिया के दाने : सूखे धनिया के दाने रात में पानी में भिगो दें और सुबह के समय उनका काढ़ा तैयार करें। उस काढ़े में मिश्री मिलाकर पी लें। इससे पित्त के बुखार में लाभ होगा।
23. कुटकी :
24. सौंफ :
25. पटोलपत्र : पटोलपत्र और अदरक के काढ़े को पीने से पित्त कफ बुखार, जलन, खुजली और उल्टी दूर होती है।
26. कूड़ा : कूड़े की छाल, पद्याख, सोंठ, लाल चंदन, गिलोय, पटोलपत्र और धनिया इन सातों को मिलाकर काढ़ा बनाकर शहद के साथ खिलाने से पित्त के बुखार में लाभ होगा।
27. सफेद चंदन : पित्त के बुखार में अगर पेट में जलन महसूस हो तो सफेद चंदन पानी में पीसकर 20 से 25 ग्राम नाभि या पेट पर डालें।
28. परवल :
29. अदरक : अदरक और पटोलपत्र का काढ़ा पीने से उल्टी, जलन और कफ आदि का बुखार ठीक हो जाता है।
30. इन्द्र-जौ : इन्द्रजौ, पित्तपापड़ा, धनिया, पटोलपत्र और नीम की छाल को बराबर भाग में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से पित्त-कफ दूर होता है। काढ़े में मिश्री और शहद भी मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं।
31. चंदन : लगभग 10 ग्राम चंदन को 500 मिलीलीटर पानी के साथ काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी सी मिश्री डालकर पीने से पित्त ज्वर में होने वाली उल्टी बन्द हो जाती है और धीरे-धीरे बुखार उतर जाता है।
32. हींग : हींग को घी में मिलाकर मालिश करना पित्त के बुखार में लाभ होगा।
33. जामुन : 10 मिलीलीटर जामुन के रस में 10 ग्राम गुड़ मिलाकर आग पर तपायें। इसे तपाकर उसके भाप को पीना चाहिए।
34. चिरौंजी : चिरौंजी को दूध में पीसकर शरीर पर लेप करने से शीतपित्त में लाभ मिलता है।
35. दूध : 100 मिलीलीटर दूध में 5 ग्राम सोंठ का चूर्ण उबालें, फिर उसमें चीनी मिलाकर रात को सोते समय खाने से पित्तविकार दूर होता है।
36. कालीमिर्च : पित्ती होने पर पिसी हुई 10 कालीमिर्च और आधा चम्मच घी मिलाकर पीएं तथा इन दोनों को ही शरीर पर मालिश करें।
37. सफेद पेठा : सफेद पेठे (कुम्हड़े) को छीलकर उसमें से नर्म गर्भ और बीज को निकाल दें। बीच वाला हिस्सा लगभग 3 से 4 लीटर पानी में पकायें, फिर कपड़े से निचोड़कर रस को अलग सुरक्षित रख लें। पकाए हुए सफेद पेठे को गाय के 400 ग्राम घी में, तांबे के बर्तन में डालकर हल्का भूरा होने तक सेंके। इसके बाद इसमें अलग से रखे हुए पेठे के रस तथा 3 किलो शक्कर मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर उसमें 40-40 ग्राम पीपर, सौंठ और जीरे का चूर्ण और धनिया, तमालपत्र, कालीमिर्च, इलायची के दाने और 10 ग्राम दालचीनी का चूर्ण डालकर 15-20 मिनट तक हिलाएं। ठंड़ा होने पर उसमें 150 ग्राम शहद मिला लें। इस मिश्रण को 20 से 30 ग्राम तक की मात्रा में रोज सुबह-शाम खाकर ऊपर से गाय के दूध को पीने से वजन बढ़ता है। चेहरे पर चमक आती है और पित्तज्वर, रक्तपित्त, प्यास, जलन, टी.बी., प्रदर, कमजोरी, उल्टी, खांसी, दमा, आवाज का खराब होना, आन्त्रवृद्धि, पित्तज्वर, खांसी, श्वास (दमा) और स्वरभेद (आवाज का खराब होना) आदि रोगों से धीरे-धीरे छुटकारा मिलता है।
38. गूलर :
39. बिजौरा नींबू : पित्तज्वर में अधिक प्यास लगने पर नींबू बिजौरा की कली, शहद तथा सेंधानमक एक साथ पीसकर मुंह के तलुवे पर लेप करने से प्यास एकदम मिट जाती है।
40. पित्तपापड़ा : पित्तपापड़ा, लाल चंदन, खस, नागरमोथा के चूर्ण को मिश्री की चाशनी के साथ सेवन करने से पित्त-ज्वर और पिपासा शान्त होती है।
41. लौंग : 4 लौंग पीसकर पानी में घोलकर रोगी को पिलाने से तेज ज्वर कम होता है।
42. अंगूर :