शिशु के लिए माँ के स्तन का दूध बढ़ने के घरेलू उपाय

एक माँ का अपने बच्चे को स्तनपान (Breast feeding) कराना संसार का सबसे बड़ा सुख होता है। माँ के स्तन (stan) का पहला गाढ़ा दूध बच्चे के लिए अमृत के समान होता है। माँ के स्तन से निकालने वाला पहला गढ़ा दूध (milk) बच्चे को कई तरह के बीमारियों से लड़ने की शक्ति (Immunity power) देता है। परंतु यदि माता को पता चले कि उनके शरीर में बच्चे (child) के लिए पर्याप्त मात्रा में दूध (doodh) का निर्माण नहीं हो पा रहा है तो उनका चिंतित होना स्वाभाविक है। कई बार कुछ विशेष कारणों से माँ के स्तन में दूध (Breast milk of mother) की कमी हो जाती है जिससे उसके शिशु को पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता है। इससे शिशु के समुचित शारीरिक विकास में बाधा हो सकती है।
जन्म के बाद एक घंटे तक नवजात शिशु (New born baby) में स्तनपान (stanpaan) करने की तीव्र इच्छा होती है। इसलिए जन्म के बाद जितनी जल्दी मां, बच्चे को दूध (bachche ka doodh) पिलाना शुरू कर दे, उतना अच्छा है। आमतौर पर जन्म के 45 मिनट के अन्दर स्वस्थ बच्चों को स्तनपान (stanpan) शुरू करवा देना चाहिए।
How-to-increase-breast-milk-production
पर एक माँ यह कैसे पता कर सकती है की उनके शरीर में दूध का निर्माण कम हो रहा है। नीचे कुछ संकेत दिये जा रहे जिससे आप इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं की आपके स्तन में पर्याप्त दूध का निर्माण (milk production) हो रहा है या नहीं:-

1. आपका शिशु (shishu) स्तनपान समाप्त करने के बाद स्वयं ही स्तन से हट जाता है या नहीं।
2. आपका शिशु दिन में छह से आठ बार स्तनपान कर रहा है और स्तनपान के बाद वह संतुष्ट दिखता है या नहीं। 
3. आपका शिशु 24 घंटे में कम से कम सात बार पेशाब कर रहा है या नहीं।
4. स्तनपान कराना आरामदायक है और इस दौरान आपको कोई दर्द महसूस होता है या नहीं।
5. स्तनपान कराने के बाद आपके स्तन खाली और मुलायम लगते हैं या नहीं।
6. स्तनपान करते हुए आप शिशु को दूध निगलते हुए देख व सुन सकती हैं या नहीं।
अगर उपरोक्त संकेत नहीं दिखाई देती है तो आप के स्तन में बच्चे के लिए पर्याप्त मात्र में दूध का निर्माण नहीं हो रहा है। प्रस्तुत है माँ के दूध को बढ़ाने के कुछ घरेलू उपाय (Home remedies) :-

मेथी के बीज - पुराने समय से ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी माँ के दूध की कमी को दूर करने के लिए मेथी के बीजों का सेवन किया जा रहा है। मेथी दूध बनाने वाली ग्रंथियों के लिए एक अच्छी प्रेरक मानी जाती है। मेथी मेंफाइटोएस्ट्रोजन नामक पदार्थ पाया जाता है, जो कि स्तन के दूध (Breast milk) के निर्माण को बढ़ाने का काम करता है। मेथी में ओमेगा-3 वसा जैसे विटामिन भी पाये जाते है जो माँ के दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए अच्छे होते हैं। यह वसा आपके शिशु के मस्तिष्क के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसके साथ-साथ मेथी के साग में बीटाकैरोटीन, बी विटामिन, आयरन और कैल्श्यिम भरपूर मात्रा में होते है। 

एक चम्मच को एक कप पानी में रात भर भिगोकर रखें। भीगी मेथी के पानी को दानों के साथ ही कुछ मिनट उबालें। उसके बाद एक कप में इस पानी को छान लें और चाय की तरह रोज सुबह पीएं।

शिशु के माता को मेथी को आटे में मिलाकर पराँठे, पूरी या रोटी बना कर खिलना चाहिए। 

दिन में तीन बार मेथी के बीज की तीन कैप्सूल शुरूआत के 10 दिन तक ले सकती हैं। उसके बाद अगले दस दिन मेथी के बीज दो कैप्सूल दिन में तीन बार लें। इसके बाद एक कैप्सूल 10 दिन तक दिन में तीन बार लें।

मेवे : माना जाता है कि बादाम और काजू स्तन दूध के उत्पादन को बढ़ावा देते हैं। इनमें भरपूर मात्रा में कैलोरी, विटामिन और खनिज होते हैं, जिससे ये नई माँ को ऊर्जा व पोषक तत्व प्रदान करते हैं। इन्हें स्नैक्स के तौर पर भी खाया जा सकता है और ये हर जगह आसानी से उपलब्ध होते हैं। 

आप इन्हें दूध में मिलाकर स्वादिष्ट बादाम दूध या काजू दूध बना सकती हैं। स्तनपान कराने वाली माँ के लिए पंजीरी, लड्डू और हलवे जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ बनाने में मेवों का इस्तेमाल किया जाता है।

सौंफ : सौंफ भी स्तन दूध की आपूर्ति बढ़ाने का एक अन्य पारंपरिक उपाय है। शिशु को गैस और पेट दर्द की परेशानी से बचाने के लिए भी नई माँ को सौंफ दी जाती है। इसके पीछे तर्क यह है कि पेट में गड़बड़ या पाचन में सहायता के लिए वयस्क लोग सौंफ का इस्तेमाल करते हैं, इसलिए स्तनदूध के जरिये शिशु तक पहुंचाने के लिए यह नई माँ को दी जाती है। हालांकि, इन दोनों धारणाओं के समर्थन के लिए कोई शोध उपलब्ध नहीं है, मगर बहुत सी माताएं मानती हैं कि सौंफ से उन्हें या उनके शिशु को फायदा मिला है।

एक कप गर्म पानी में एक चम्मच सौंफ डालें। कप को ढककर तीस मिनट के लिए रख दें। उसके बाद उस गर्म पानी को छानकर उसे चाय की तरह पीएं। इसे दिन में दो बार एक महीने तक पीएं।

इसके अलावा में थोड़ा सा जीरा और मिश्री मिलाकर इन तीनों का महीन पाउडर बना लें। इस मिश्रण को दो या एक हफ्ते तक दिन में तीन बार एक कप दूध के साथ लें। 

दालचीनी : आयुर्वेद के अनुसार दालचीनी ब्रेस्ट मिल्क के उत्पादन को बढ़ाने का काम करती है। नई-नई मां अगर करती है तो इससे ब्रेस्ट मिल्क का स्वाद अच्छा होता है, जो बच्चे को भी पसंद आता है।

आधा चम्मच शहद के साथ चुटकी भर मिलाएं। इसे एक कप गर्म दूध में मिलाएं। दो महीने तक इस पेय पदार्थ को रात में सोने से पहले पीएं।

जीरा : दूध की आपूर्ति बढ़ाने के साथ-साथ माना जाता है कि जीरा के फायदे, पाचन क्रिया में सुधार, कब्ज, अम्लता (एसिडिटी) और पेट में फुलाव आदि समस्याओं में भी मिलता है। जीरा बहुत से भारतीय व्यंजनों का अभिन्न अंग है और यह कैल्शियम और राइबोफ्लेविन (एक बी विटामिन) का स्त्रोत है।

एक चम्मच जीरा पाउडर को एक चम्मच चीनी के साथ मिलाएं और रोज रात को सोने से पहले इस मिश्रण को एक गिलास दूध में मिलाकर पीएं।

दो चम्मच जीरे को आधे कप पानी के साथ उबाल लें। उसके बाद उसे छान लें, अब उस पानी में एक चम्मच शहद और आधा कप दूध मिलाकर पीएं।

लहसुन : लहसुन में बहुत से रोगनिवारक गुण पाए जाते हैं। यह प्रतिरक्षण प्रणाली को फायदा पहुंचाता है और दिल की बीमारियों से बचाता है। इसके साथ-साथ लहसुन स्तन दूध आपूर्ति को बढ़ाने में भी सहायक माना गया है। हालांकि, इस बात की प्रमाणिकता के लिए कोई ज्यादा शोध उपलब्ध नहीं है।

तुलसी : तुलसी की चाय स्तनपान कराने वाली महिलाओं का एक पारंपरिक पेय है। किसी शोध में यह नहीं बताया गया कि तुलसी स्तन दूध उत्पादन बढ़ाने में सहायक है, परंतु माना यह जाता है कि इसका एक शांतिदायक प्रभाव होता है। यह मल प्रक्रिया को सुधारती है और स्वस्थ खाने की इच्छा को बढ़ावा देती है। 

हरी पत्तेदार सब्जियां : हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, मेथी, सरसों का साग और बथुआ आदि आयरन, कैल्श्यिम और फोलेट जैस खनिजों का बेहतरीन स्त्रोत हैं। इनमें बीटाकैरोटीन (विटामिन ए) का एक रूप और राइबोफ्लेविन जैसे विटामिन भी भरपूर मात्रा में होते हैं। इन्हें भी स्तन दूध बढ़ाने में सहायक माना जाता है।

लौकी व तोरी जैसी सब्जियां : पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि लौकी, टिंडा और तोरी जैसी एक ही वर्ग की सब्जियां स्तन दूध की आपूर्ति सुधारने में मदद करती हैं। ये सभी सब्जियां न केवल पौष्टिक एवं कम कैलोरी वाली हैं, बल्कि ये आसानी से पच भी जाती हैं।

तिल के बीज : तिल के बीज कैल्शियम का एक गैर डेयरी स्त्रोत है। स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए कैल्शियम एक जरुरी पोषक तत्व है। यह आपके शिशु के विकास के साथ-साथ आपके स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। शायद इसलिए ही यह स्तनपान कराने वाली माताओं के आहार में शामिल की जाने वाली सदियों पुरानी सामग्री है।आप तिल के लड्डू खा सकती हैं या फिर काले तिल को पूरी, खिचड़ी, बिरयानी और दाल के व्यंजनों में डाल सकती हैं। कुछ माएं गज्जक व रेवड़ी में सफेद तिल इस्तेमाल करना पसंद करती हैं।

मुनक्काः माँ को शिशु के जन्म देने के पश्चात गाय के दूध में 10-12 मुनक्के उबालकर दिन में तीन बार पिलाने से दूध के निर्माण में बृद्धि  होती है।

अंगूरः माँ के दूध में बृद्धि  के लिए अंगूर का सेवन अमृत की तरह प्रभावशाली है। ताजा अंगूर नित्य खाने से स्तनों में काफी मात्र में दूध उतरने लगता है।

पपीताः शरीर में रक्त की कमी से होना आम बात है। इस स्थिति में डाल का पका हुआ उत्तम औषधि है। पपीता खाली पेट लगातार 20 दिन तक खाना चाहिए। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होगी।

गाजरः भोजन के साथ गाजर के रस व कच्चे प्याज के सेवन से भी शिशु की माँ में दूध का निर्माण अधिक  होता है।

मूंगफली: दूध के साथ मूंगफली के सेवन से माताओं के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।

देश के पाँच प्रसिद्ध राष्ट्रिय उद्यान (National Park) जो विश्व धरोहर में शामिल है

उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक हमारा देश प्रकृतिक सौन्दर्यों से भरा-पूरा है। हमारा देश जितना ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए हैं उतना ही प्राकृतिक विरासत भी इसका अभिन्न अंग है। इन प्रकृतिक विरसतों में कई राष्ट्रिय उद्यान (National Park) हैं जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) ने भी विश्व धरोवर की सूची में शामिल किया है। 
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान (Great Himalayan National Park - GHNP)
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान (जी एच एन पी) हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है। युनेस्को के विश्व धरोहर समिति ने सन 2014 ई० में ग्रेट हिमालियन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र को विश्व धरोहर (World Heritage) सूची में सम्मिलित किया है। 1984 में बनाए गए इस पार्क को 1919 में राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया था। यह संरक्षण क्षेत्र कुल 1171 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमें ग्रेट हिमालियन राष्ट्रिय उद्यान के साथ-साथ पश्चमी सीमा से 5 किलोमीटर तक के क्षेत्र को प्राणिक्षेत्र के रूप में रखा गया है जिसके अंतर्गत लगभग 160 गाँव आते है जिसमें 15000 से 16000 गरीब लोग रहते हैं जो अपनी जीविका इसी जंगल से चलाते है। इसके अलावा शगवार, शक्ति एवं मरोर गाँव को मिला कर सैंज वन्यजीव अभयारण्य (Sainj Wildlife Sanctuary) का विकास किया गया है तथा इसके दक्षिण में तीर्थन वन्यजीव अभयारण्य (Tirthan Wildlife Sanctuary) बनाया गया है। इस में 25 से अधिक प्रकार के वन, 800 प्रकार के पौधे और 180 से अधिक पक्षी प्रजातियां का वास है। हिमालय के भूरे भालू के क्षेत्र वाला या नेशनल पार्क कुल्लू जिले में 620 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और यहां सम शीतोष्ण एवं एलपाइन वन पाए जाते हैं। साथ ही यहां पश्चिमी हिमालय की अनेक महत्वपूर्ण वन्यजीव प्रजातियां पाई जाती है जैसे मस्क, डियर, ब्राउन बियर, गोराल, थार, चीता, बर्फानी चीता आदि।

सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान (Sundervan National Park)
सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान
भारत का यह राष्ट्रीय उद्यान बंगाल के 24 परगना जिले के दक्षिण - पूर्वी भाग में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। एक सदाबहार पौधा जिसका नाम है 'सुंदरी' जिसके नाम पर ही इसका नाम सुंदरवन पड़ा है। यह बाघ संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्पीयर रिजर्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र सदाबहार वनों से घिरा हुआ है और यह रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। इस वन में पक्षियों, सरीसृप तथा रीढ़विहीन की कई प्रजातियां पाई जाती है। इसके साथ ही यहां खारे पानी का मगरमच्छ भी मिलते हैं। वर्तमान सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान, 1973 में मूल सुंदरवन बाघ रिजर्व क्षेत्र का कोर क्षेत्र तथा 1977 में वन्य जीवन अभ्यारण्य घोषित किया हुआ था। 4 मई 1984 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह सफेद बाघ का संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park)
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भारत की राजस्थान में स्थित एक विख्यात पक्षीअभ्यारण है जो दिल्ली से लगभग 190 किलोमीटर दूर स्थित है। इस उद्यान को पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इसमें लगभग 380 निवासी एवं प्रवासी प्रजाति के पक्षियाँ जिनमे सामान्य एवं हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त हो रहे पक्षी पाए जाते हैं। सर्दियों के मौसम में साइबेरियन सारस यहाँ आते हैं। अब यह एक बहुत बड़ा पर्यटन स्थल और केंद्र बन गया है। जहां पर बहुतायत में पक्षीविज्ञानी शीत ऋतु में आते हैं। इस उद्यान को 1971 में संरक्षित पक्षी अभ्यारन्य घोषित किया गया था और बाद में 1950 ई में युनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोवर घोषित किया गया है। इसका निर्माण 250 वर्ष पुराना है इसका नाम यहां के प्रसिद्ध शिव मंदिर (केवलादेव) के नाम पर रखा गया है।

मानस राष्ट्रीय उद्यान (Manas National Park)
मानस राष्ट्रीय उद्यान भारत के असम (Assam) राज्य में स्थित है। यह हमारे देश का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान है। यह उद्यान एक सींग का गैंडा (भारतीय गैंडा) और बारासिंघा के लिए प्रसिद्ध है। इसके अंतर्गत 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत स्थापित 840.04 वर्ग किलोमीटर का इलाका मानस व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है। यह भूटान की तराई में बोडो क्षेत्रीय परिषद की देखरेख में 950 वर्ग किलोमीटर से भी बड़े इलाके में फैला है।  इसे 1985 में विश्व धरोवर स्थल का दर्जा दिया गया था। लेकिन 80 के दशक के अंत और 90 के दशक के शुरू में बोडो विद्रोही गतिविधियों के कारण इस उद्यान को 1992 में विश्व धरोवर स्थल सूची से हटा दिया गया था। जून 2011 में यह पुनः यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल कर लिया गया है।

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान (Nandadevi National Park)
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान भारत की उत्तराखंड (Uttrakhand) राज्य में नंदा देवी पर्वत के आसपास का इलाका है। यह 630.33 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसको 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यहां फूलों की घाटी और राष्ट्रीय उद्यान को मिलाकर 1988 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया। फूलों की घाटी और राष्ट्रीय उद्यान के साथ मिलकर नंदा देवी बायोस्फेयर रिजर्व बनता है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2236 वर्ग किलोमीटर है। यह रिजर्व यूनेस्को की विश्व के बायोस्फेर रिजर्व की सूची में 2004 से अंकित है। यह चारों ओर से 6000 मीटर से 7500 मीटर ऊंची चोटीयों से घिरी हुई है। समुद्र की सतह से इसकी ऊंचाई 3500 मीटर है।