खसरा MEASLES khasra



 खसरा   khasra 


    यह बच्चों को होने वाला छूत का रोग है। यह एक बच्चे से दूसरे बच्चे में तेजी से फैलता है। इसका एक कारण एक प्रकार का वायरस भी माना गया है जो सांस लेने की क्रिया के द्वारा एक से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।परिचय
:

विभिन्न भाषाओं में नाम :

हिंदी खसरा
अंग्रेजी मीजल्स
बंगाली हम
गुजराती ओडि खसरा
कन्नड़ थोट्ट, दादरड
असम लुटिअइ
मलयालम पोगन्न, मन्नल
मराठी गोवर
उड़िया मिलीमिला
तमिल मनलवारी
तेलगू चिन्नामवारू

लक्षण :

    इसकी शुरूआत में बच्चे को छींके, नाक बहना, आंखे लाल होना, लगातार खस-खस की आवाज से सूखी खांसी तेज होती है। बच्चा लगातार खांसता रहता है। इस रोग में बुखार 103 से 104 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। बुखार शुरू होने के तीसरे दिन से चेहरे, छाती पर लाल दाने दिखाई देने लगते हैं। दाने निकलने के बाद जैसे-जैसे दाने समाप्त होने लगते हैं, बुखार खांसी भी कम होने लगती है। खसरे में कभी-कभी निमोनिया भी हो जाता है। रोगग्रस्त बच्चे के सम्पर्क में दूसरे बच्चों को नहीं आने देना चाहिए।

कारण :

    खसरा रोग की उत्त्पति बहुत ही छोटे विषाणुओं (वायरसों) के संक्रमण से होती है। खसरा के विषाणु किसी भी स्वस्थ बच्चे के कंठ, नाक और गले की श्लैष्मिक कला पर संक्रमण करते हैं। किसी रोगी बच्चे से बातें करने पर भी स्वस्थ बच्चे इस रोग के शिकार हो जाते हैं। जब कोई रोगी बच्चा खांसता या छींकता है तो रोग के वायरस हवा में उड़कर सांस के द्वारा दूसरे स्वस्थ बच्चों तक पहुंचकर उन्हें रोगी बना देते हैं। घर में एक बच्चे को खसरा होने पर दूसरे बच्चे भी इसके शिकार हो जाते हैं। खसरा संक्रमण के रूप में फैलता है। शीतऋतु में खसरे का अधिक प्रकोप होता है। खसरे के वायरस का संक्रमण होने पर 6 से 10 दिनों में रोगी के शरीर पर खसरे के दाने दिखाई देने लगते हैं। सर्दी लगने से जुकाम होने पर खसरे के वायरस बहुत जल्दी संक्रमण करते हैं। रोगी को पहले बुखार होता है फिर शरीर के अलग-अलग अंगों पर छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते हैं, नाक से पानी बहने लगता है, गले में काफी दर्द होता है, सर्दी की वजह से शरीर कांपने लगता है, खांसते समय भी बहुत दर्द होता है। कुछ बच्चों को शीतपित्त (छपाकी) की बीमारी भी होती है।
     खसरा रोग में औषधियों से ज्यादा रोगी की देखभाल जरूरी होती है। सर्दी का मौसम हो तो सर्दी से बचाना ज्यादा जरूरी होता है क्योंकि ठंडी हवा से पैदा हुआ निमोनिया बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। रोगी बच्चे को ज्यादा से ज्यादा आराम कराना चाहिए। खसरे के असर से रोगी बच्चा इतना कमजोर हो जाता है कि उसका स्तनपान (मां का दूध पीना भी) मुश्किल हो जाता है। बच्चे के जन्म लेने के बाद 6 से 12 महीने के बीच टीका लगवा लेने से खसरे में बहुत सुरक्षा होती है। 6 महीने के बाद जितनी जल्दी हो सके बच्चे को टीका लगवा लेने से खसरा होने की संभावना कम हो जाती है। यदि किसी बच्चे को खसरा हो तो उसे टीका नहीं लगवाना चाहिए।
2. कुसुम : कुसुम के सूखे फूल गर्म जल के पीसकर सुबह-शाम सेवन करने से शरीर का जहर जल्दी बाहर निकल जाता है।
3. बनहल्दी : लगभग 1 से 2 ग्राम बनहल्दी को सुबह-शाम सेवन करने से जहर का असर जल्दी बाहर निकल आता है। रोगी जल्दी ठीक हो जाता है। इसे पानी में घोलकर बाह्य लेप भी करें।
4. शहद : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम केसर को शहद या नारियल के पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से जहर जल्दी से बाहर आकर रोग से मुक्ति मिलती है।
5. गोलोचन : गोलोचन डाभ (नारियल) के पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से खसरा में लाभ होता है।
6. खस : खस (वीरन मूल) को पीसकर खसरे के दानो पर लेप करने से शांति मिलती है तथा खसरे की जलन कम होती है।
7. दमन पापड़ा : खसरे के रोगी को 25 से 50 मिलीलीटर दमनपापड़ा का काढ़ा सुबह-शाम देना चाहिए। माता रोमानितका जोकि खसरा के नाम से भी जाना जाता है, के रोग में ``दमन पापड़ा´´ एक बहुत ही अच्छी औषधि मानी गई है।
8. लौंग :
9. अडूसा : 5-5 ग्राम पाद, पटोल, कुटकी, लाल चन्दन, सफेद चन्दन, खस, आमला, अडूसा और जवासा को बारीक पीसकर 3 पुड़िया बना लें फिर 1 पुड़िया रात को 250 मिलीलीटर पानी में भिगो लें और सुबह उबालने के लिए रख दें जब पानी 1 चौथाई रह जाये तो उसे छानकर उसमें एक चम्मच पिसी हुई मिश्री मिलाकर खाली पेट पियें। इससे खसरा का रोग ठीक हो जाता है।
10. महुवा : खसरा निकलने से पहले यानी कि जब महसूस हो कि खसरा निकलने वाला है तो 5 ग्राम महुआ को पीसकर शहद में मिलाकर रोगी को चटाने से खसरा नहीं निकलेगा।
11. कपूर :
12. तुलसी : रोजाना 1 चम्मच तुलसी के पत्तों का रस लगातार 3 से 4 दिनों तक बच्चे को पिलाने से खसरे के रोग में लाभ होता है।
13. करेला : रोगी को करेले के पत्तों का रस एक चम्मच रोज पिलाने से खसरे के रोग में लाभ होता है।
14. नीम :
15. आंवला : खसरा निकलने के बाद शरीर में जलन या खुजली हो तो सूखे आंवलों को पानी में उबालकर ठंडा होने के बाद इससे शरीर को रोजाना साफ करें। इससे खसरे की खुजली और जलन दूर होती है।
16. मिश्री : बोदरी माता से शरीर मे गर्मी हो तो मक्खन और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर दो चम्मच रोजाना सुबह सेवन कराने से खसरा का रोग ठीक हो जाता है।
17. हल्दी : करेले के पत्तों के रस में 1 से 2 ग्राम पिसी हुई हल्दी मिलाकर बच्चे को पिलाने से खसरे का असर कम हो जाता है।
18. आंवला : नागरमोथा, धनिया, गिलोय, खस और आंवला को बराबर मात्रा में पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। इसमें से 5 ग्राम चूर्ण को 300 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बच्चे को पिलाने से बहुत आराम आता है।
19. मुलहठी : गिलोय, अनार के दाने, किशमिश और मुलहठी को बराबर मात्रा मे लेकर पीस लें, फिर उसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर दिन में दो से तीन बार खिलाने से खसरे का असर कम होता है।
20. चंदन : खसरे में छोटे-छोटे दानों में जलन होने पर चंदन को पानी के साथ घिसकर शरीर पर लगाने से जलन समाप्त होती है।
21. गूलर :
22. गोरोचन : लगभग 120 ग्राम गोरोचन लें। उसे एक या दो चाय के चम्मच भर पंजरी की पत्तियों के रस के साथ मिलाकर दिन में दो बार दे सकते हैं। गोरोचन दूध के साथ भी दिया जा सकता है।
23. मेथिका : मेथिका बीज को पानी में उबालकर प्रयोग करने से विस्फोट की तीव्र अवस्था (खसरे के दानों की वजह से शरीर में बहुत जलन होना) को शांत करने में बहुत ही उपयोगी है।
24. कज्जली : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कज्जली को कारवेल्लक फल के रस के साथ दिन में 2 बार पीने से खसरे के रोग में लाभ होता है।
25. हरिद्राचूर्ण : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तण्डुलीयक पत्तों के काढ़े में कुछ भाग पटोल फल का चूर्ण, हरिद्रा चूर्ण और 1 ग्राम आमलकी चूर्ण मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें।
26. त्रिफला : लगभग 5 से 15 मिलीलीटर खदिर, त्रिफला, निम्ब पत्र, पटोल पंचांग, गुडूचीकांड तथा वासा पत्र के थोड़े से भाग का काढ़ा बनाकर दिन में 2 बार पीना चाहिए।
27. हरिद्रा (हल्दी): 5 से 10 मिलीलीटर कृष्ण जीरक (काला जीरा) काढ़ा, 250 ग्राम हरिद्रा चूर्ण के साथ दिन में 3 बार प्रयोग करना चाहिए।
28. आंवला : खसरा निकलने के बाद शरीर में जलन, खुजली हो तो सूखे आंवलों को पानी में उबालकर ठंडा होने पर इससे नित्य शरीर धोने से शरीर की खुजली और जलन दूर हो जाती है।
29. खस (पोस्त के दाना) : खस, चंदन और हल्दी समान मात्रा में मिलाकर पीस लें और गुलाबजल में पीसकर लेप बनायें। खुजली वाले अंगों पर सुबह-शाम लगायें।
30. ब्राह्मी : ब्राह्मी के रस में शहद मिलाकर पिलाने से खसरा की बीमारी समाप्त होती है।

बच्चों को पतले दस्त Childern diarrhoea bacho ke patle dast


बच्चों को पतले दस्त bacho ke patle dast

Childern diarrhoea


      बच्चे को पतले दस्त होने पर दूध बंद करने की जरूरत नहीं हैं पर बच्चे के भोजन में बदलाव कर देना चाहिए- जैसे पतली खिचड़ी में दही मिलाकर देना और केले को अच्छी तरह से पीसकर देना।चिकित्सा
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1. जब ज्यादा दस्त उल्टी होने के कारण बच्चे के शरीर में पानी, नमक और सोडियम की कमी हो जाए तो बच्चे को नमक और चीनी का घोल बनाकर बार-बार पिलाते रहना चाहिए। डायरिया का मतलब है बच्चे को बार-बार पानी के जैसे पतले दस्त होना जिसकी वजह से बच्चे के शरीर में पानी और नमक की कमी हो जाती है यह रोग ज्यादातर 6 महीने से लेकर 2 साल तक के बच्चों को होता है।

नमक-चीनी का घोल बनाने की घरेलू विधि :

    एक गिलास उबले पानी में एक चुटकी भर पिसा हुआ नमक या एक चुटकी खाने वाला सोडा और एक चाय वाला चम्मच भर चीनी ( यदि ग्लूकोज मिलायें तो चीनी से आधी मात्रा मिलाएं और यदि गुड़ मिलाना हो तो सुपारी के बराबर गुड़) डालकर घोल बनाकर किसी, कांच के बर्तन में ढककर रख दें। इस घोल के पानी को 1-2 चम्मच हर आधे घंटे के बाद बच्चे को तब तक पिलाते रहे जब तक दस्त चालू रहे और बच्चे को 2 बार पेशाब न आ जाए।
       इस घोल को हर 12 घंटे के बाद (बचा हुआ घोल फेंककर) दुबारा ताजा घोल बनाकर प्रयोग करना चाहिए। निर्धारित मात्रा में चीनी और नमक का यह घोल दस्त के गम्भीर दुष्परिणामों से बचाता है। साथ ही रोग के दौरान और बाद में भी बच्चों को भोजन देते रहना चाहिए। जैसे- मां का दूध देना और पानी आदि बंद न करें। थोड़ा-थोड़ा सादा पानी भी दें। साथ ही दाल का पानी, दही का पानी़, नारियल का पानी और दूसरे तरल पदार्थ भी देते रहना चाहिए। 2 साल से कम उम्र के बच्चे को पका हुआ केला पीसकर देना चाहिए। 2 साल से बड़े बच्चों के लिए दही और चावल बहुत अच्छा भोजन है। ध्यान रखें कि उल्टी दस्त बंद होते ही ठोस भोजन लेना शुरू नहीं कर देना चाहिए, बल्कि मलाई अलग किया हुआ दूध दें। उसके बाद जल्दी हजम होने वाले अन्य पोषक खाने वाले पदार्थ जैसे पतला दलिया, पतली खिचड़ी दें। सब्जी या अन्य फलों के रस (अलग-अलग तरह के सूपों के रस) देते हुए रोगी को धीरे-धीरे दुबारा सामान्य भोजन पर ले आना चाहिए। ज्यादातर बच्चों में डायरिया ज्यादा नहीं होता अत: उनके शरीर में पानी की कमी नहीं होती है।

निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) से बचने के लिए

     पानी में नमक और चीनी मिलाकर बनाया हुआ घोल, कच्चे दूध की लस्सी, नमकीन, छाछ (लस्सी) या कच्चे नारियल का पानी देना चाहिए। गम्भीर डिहाइड्रेशन की अवस्था सूचक लक्षणों जैसे बच्चे का मुंह और जीभ सूखना, सांस का असामान्य लगना, बच्चे का ज्यादा बीमार होना, चिड़चिड़ा या कमजोर लगना, पाखाने (टट्टी) में आंव या खून आना, उल्टी आना, रोजाना से कम पेशाब आना आदि में नजदीक के स्वास्थ्य केन्द्र जहां ओ. आर. एस. (ओरल रीहाइड्रेशन साल्ट सोल्यूशन) विश्व स्वास्थ्य संगठन के फार्मूला के अनुसार ग्लूकोज, नमक, खाने का सोडा, पोटैशियम क्लोराइड के मिश्रण के रूप में उपलब्ध रहता है अथवा ले जाने की जरूरत पड़ सकती है। अन्यथा घर पर ही इलाज हो जाता है। पुनर्जलीकरण (रिहाइड्रेशन) के लक्षण अर्थात् जीभ का गीला व नरम होना, तालू का ऊपर उठ जाना, आंखें ठीक अवस्था में होना तथा आंसू आना, चमड़ी को पकड़कर छोड़ने के बाद पहले की हालत में आ जाना, कम से कम दो बार पेशाब आना और प्यास का कम हो जाना आदि लक्षण बच्चे के स्वस्थ होने के सूचक हैं।
विभिन्न औषधियों से उपचार:
1. दालचीनी : दालचीनी और सफेद कत्थे का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चूर्ण शहद में मिलाकर खाने से अपच के कारण बार-बार होने वाले पतले दस्त बंद हो जाते हैं।
2. आम :
  • लगभग 7 से 28 मिलीलीटर आम के बीजों की मज्जा तथा बेल के कच्चे फलों की मज्जा का काढ़ा दिन में तीन बार प्रयोग करने से बच्चों के पतले दस्त आना बंद जाते हैं।
  • आम की गुठली की गिरी भून लें। एक-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण कर एक चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार चटायें। यदि रक्तातिसार (खूनी दस्त) हो तो आम की अंतरछाल को दही में पीसकर पेट पर लेप करना चाहिए।
3. धान : लगभग 10 से 20 ग्राम धान के लावों को 7 से 14 मिलीलीटर बेल की जड़ के काढ़े के साथ दिन में तीन बार देना चाहिए।
4. इन्द्रजौ : छाछ के पानी में इन्द्रजौ के मूल को घिसें और उसमें थोड़ी हींग डालकर पिलायें।
5. जायफल : जायफल को पानी में घिसकर आधा-आधा चम्मच 2-3 बार पिलाएं।
6. दूध : छोटे बच्चों को दस्त हो तो गरम दूध में चुटकी भर पिसी हुई दालचीनी डालकर पिलाते हैं। बड़ों को दोगुनी मात्रा में पिलाना चाहिए।
7. बरगद : नाभि में बरगद का दूध लगाने और एक बताशे में 2-3 बूंद डालकर दिन में 2-3 बार खिलाने से सभी प्रकार के दस्तों में लाभ होगा।