इन्फ्लुएन्जा (Influenza)

इन्फ्लुएन्जा


          अगर किसी व्यक्ति को सर्दी के मौसम में पूरे शरीर में दर्द, सिर में दर्द, खांसी, छींक, बुखार आदि के लक्षण प्रकट होते हैं तो यह इन्फ्लुएन्जा का रोग हो सकता है। यह रोग बेसिलस इन्फ्लुएन्जा नामक जीवाणु के द्वारा संक्रमित होता है। अगर इस रोग की समय पर चिकित्सा न कराई जाए तो यह सांस की नली की सूजन, प्लुरिसी, कर्णमूल प्रदाह आदि रोग पैदा हो सकते हैं।परिचय
:

कारण :

           इन्फ्लुएंजा का बुखार एक बहुत सूक्ष्म कीटाणु के कारण फैलता है। यह कीटाणु रोगी के थूक, कफ, नाक, श्लेष्मा, मल आदि में पैदा होते हैं। यह जीवाणु धूल के कणों तथा हवा में घुलकर सांस के द्वारा शरीर के अन्दर पहुंच जाता हैं। अधिक थकावट, अधिक परिश्रम, दूषित वातावरण के कारण से भी यह बुखार फैल जाता हैं। अधिकतर यह बुखार सर्दी-गर्मी के मौसम में ही होता है।
          इन्फ्लुएंजा का बुखार बहुत ही तेजी से फैलने वाला बुखार है। इसके होने पर रोगी के शरीर में बहुत तेज दर्द होता है, आंखों तथा सिर में बहुत ही तेज दर्द उठता है। रोगी को इस रोग के होते ही बुखार 102 डिग्री सेल्सियस से 104 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। रोगी को बार-बार प्यास लगती रहती है, पेट में कब्ज बन जाती है, पेशाब बहुत ही कम मात्रा में आता है, बहुत तेज खांसी होती है, सांसों में से बदबू आती है, गले में सूजन आ जाती है। रोगी को रात में सोते समय नींद भी नहीं आती है।
1. सेंधानमक : 10 ग्राम सेंधानमक को 1 लीटर पानी में डालकर घोल बना लें। इस घोल को बूंद-बूंद करके नाक से डालने से इन्फ्लुएन्जा के बुखार में लाभ मिलता है।
2. पीपल : दूध में 2 पीपल या चौथाई चम्मच सोंठ डालकर उबालकर पीने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार दूर हो जाता है।
3. अंकोल : अंकोल की जड़ की छाल का सेवन करने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार दूर हो जाता है। इसका प्रयोग घोड़बच या सोंठ के साथ चावल के माण्ड में उबालकर किया जा सकता है।
4. तुलसी :
5. अजवायन :
6. गुलबनफ्सा : 10 ग्राम गुलबनफ्सा तथा कालीमिर्च के 7 दानों को 50 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल लें। जब यह पानी ठंडा हो जाए तो इसे छानकर सुबह और शाम पीने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार दूर हो जाता है।
7. कपूर : कपूर की टिकिया सदा पास में रखने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार नहीं होता है।
8. सोंठ :
8. कर्पूरासव : कर्पूरासव की 5 से 20 बूंदे बतासे पर डालकर, ऊपर से पानी पीने से इन्फ्लुएन्जा के बुखार में लाभ होता है। सुबह और शाम इसे खुराक के रूप में लेना लाभकारी रहता है।
9. कटेरी : इन्फ्लुएन्जा के बुखार में कटेरी, गिलोय, सोंठ और कालीमिर्च को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर 2-2 चम्मच की मात्रा में दिन में कई बार ले सकते हैं।
10. शहद :
11. नीम : नीम की छाल, सोंठ, गिलोय, कटेरी, कुटकी, अड़ूसा और पीपल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह और शाम पीने से इन्फ्लुएन्जा का बुखार जल्दी उतर जाता है।
12. अदरक :
13. दालचीनी :
14. धनिया : फ्लू या इन्फ्लूएंजा में पहले जुकाम होता है। नाक बहनी शुरू हो जाती है। फिर शरीर में सुस्ती आने लगती है। धीरे-धीरे व्यक्ति को बुखार हो जाता है। शरीर में अधिक दर्द होने लगता है। माथा और पेट दुखने लगता है। कमर तथा पिण्डलियां जैसे टूटने लगती हैं। कभी-कभी तो रोगी को 104 या 105 डिग्री बुखार हो जाता है। अत्यधिक थकावट के कारण भी बुखार हो जाता है। इसमें रोगी को कभी ठंड़ लगने लगती है तो कभी-कभी पसीना आने लगता है। यह एक संक्रामक रोग है। यदि यह घर में किसी एक को होता है तो उससे पूरे परिवार में फैल जाता है अत: रोगी को निराशा के संसार से निकलकर घरेलू उपचार शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए 4 दाने कालीमिर्च, 5 तुलसी की पत्तियां और 20 दाने धनिये के चाय बनाकर रोगी को दिन में 4 बार देना चाहिए। चाय में थोड़ी सी अदरक भी डाली जा सकती है।
15. नारंगी :
16. नींबू : नींबू की चाय (गर्म पानी में नींबू रस, मिश्री) पीने से इन्फ्लुएंजा के रोग में लाभ होता है।
अन्य उपचार :

डेंगू ज्वर Dengue

डेंगू ज्वर

          डेंगू बुखार में रोगी के पूरे शरीर की हडि्डयों में ऐसा दर्द होता है जैसे कि सभी हडि्डयां टूट गई हों। डेंगू बुखार एक संक्रामक बुखार हैं जो क्यूलिक्स नामक मच्छरों के द्वारा एक रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके रोग को पहुंचाता है। इस तरह का बुखार होने पर रोगी को भूख नहीं लगती है, रोगी को हर समय बुखार 103 से 105 डिग्री तक बना रहता है। एक सप्ताह तक रोगी को पसीना, दस्त, नकसीर (नाक से खून आना) आने लगती है। अगर यह बुखार ज्यादा बढ़ जाता है तो रोगी के कान में दर्द और सूजन तथा फेफड़ों में सूजन आ जाती है।परिचय :

लक्षण :

          डेंगू बुखार होने पर रोगी को अचानक बिना खांसी जुकाम के तेज बुखार हो जाता है, रोगी के शरीर में तेज दर्द होकर हडि्डयों में पीड़ा होती हैं। रोगी के सिर के अगले हिस्से में तेज दर्द होता है, आंख के पिछले भाग में दर्द होता है, रोगी की मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता है, रोगी को भूख कम लगती है और उसके मुंह का स्वाद खराब हो जाता है, रोगी की छाती पर खसरे के जैसे दाने निकल आते हैं, इसके अलावा जी मिचलाना, उल्टी होना, रोशनी से चिड़चिड़ाहट होना आदि लक्षण पाए जाते हैं। परन्तु कभी-कभी डेंगू बुखार में खून भी आने लगता है, जिसे हीमोरैजिक रक्तस्राव कहते हैं। हीमोरैजिक रक्तस्राव के समय के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं- लगातार पेट में तेज दर्द रहना, त्वचा ठंड़ी, पीली व चिपचिपी होना, रोगी के चेहरे और हाथ-पैरों पर लाल दाने हो जाते हैं। हीमोरैजिक डेंगू होने पर शरीर के अन्दरूनी अंगों से खून आने लगता है। नाक, मुंह व मल के रास्ते खून आता है जिससे कई बार रोगी बेहोश हो जाता है। खून के बिना या खून के साथ बार-बार उल्टी, नींद के साथ व्याकुलता, लगातार चिल्लाना, अधिक प्यास का लगना या मुंह का बार-बार सूखना आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं। हीमोरैजिक डेंगू अधिक खतरनाक होता हैं और डेंगू बुखार साधारण बुखार से काफी मिलता-जुलता होता है।
1. सर्पगंधा : सर्पगंधा के कन्द (फल) का चूर्ण, कालीमिर्च, डिकामाली घोड़बच और चिरायता के चूर्ण को एकसाथ मिलाने से बनी मिश्रित औषधि में से 1 से 2 ग्राम को सुबह और शाम लेने से डेंगू के बुखार में लाभ मिलता है।
2. अंकोल :
3. यवक्षार : लगभग एक ग्राम से कम की मात्रा में यवाक्षार को नीम के पत्ते के रस या नीम के काढ़े के साथ सुबह और शाम लेने से पसीना आने से होने वाला बुखार कम होता है और शरीर का दर्द मिटता जाता है।
4. ईश्वरमूल : लगभग आधा ग्राम से 2 ग्राम की मात्रा में ईश्वरमूल (रूद्रजटा) का चूर्ण सुबह और शाम सेवन करने से डेंगू ज्वर दूर हो जाता है।
5. कर्पूरासव : कर्पूरासव 5 से 10 बूंद बतासे पर डालकर सुबह और शाम लेने से खून की नसें फैलती हैं, पसीना आकर बुखार, दाह (जलन) और बेचैनी कम होते जाते हैं।
6. चंदन : 5 से 10 बूंद चंदन के तेल को बतासे पर डालकर सुबह और शाम लेकर ऊपर से पानी से पीने से बुखार कम हो जाता है।
साधारण उपचार : डेंगू बुखार तेज होने पर रोगी के माथे पर ठंड़े पानी की पट्टियां रखी जा सकती हैं। हीमोरैजिक डेंगू होने पर रोगी के खून में प्लेटीनेट्स की संख्या बढ़ाने के लिए अतिरिक्त मात्रा देने की आवश्यकता होती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि हीमोरैजिक डेंगू होने पर रोगी को दर्द दूर करने वाली दवा नहीं देनी चाहिए क्योंकि कई बार इन दर्द निवारक दवाओं से रोगी में खून के बहने का डर बना रहता है। इस दौरान शरीर में पानी की मात्रा और रक्तचाप को नियंत्रित करना भी जरूरी होता है।