नींद में चलना

नींद में चलना


             नींद में चलना एक विचित्र प्रकार की बीमारी है जो कि कुछ ही लोगों में पायी जाती है। इस रोग में रोगी नींद में ही चलने लगता है। इस बीमारी का रोगी रात में नींद से उठकर अपने बिस्तर से चलता है और एक जागे हुए मनुष्य की तरह विभिन्न कार्य को आसानी से कर देता है लेकिन जब वह सुबह जागता है तो उसे अपने द्वारा नींद में किए गए कार्य याद नहीं रहता। नींद में किए गए गणित के सवाल की पहचान उसके हस्ताक्षर से की जाती है। यह एक विचित्र बीमारी है जो कि स्नायुविक गड़बड़ी से होती है। परिचय :

2. घी : सुबह-शाम घी, मिश्री और लगभग 3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण को गाय के दूध के साथ मिलाकर नींद में चलने वाले रोगी को देने से स्नायविक शक्ति की कमजोरी दूर होकर नींद में चलने की बीमारी समाप्त होती है।
3. जटामांसी : लगभग आधे से 1 ग्राम जटामांसी का सेवन सुबह-शाम कराने से नींद में चलने की आदत छूट जाती है।
4. ब्राह्मी : ब्राह्मी, बच और शंखपुष्पी बराबर मात्रा में लेकर ब्राह्मी के रस में 12 घंटे छाया और 12 घंटे धूप में रखकर पूरी तरह से सुखाकर इसका चूर्ण तैयार कर लें। लगभग एक ग्राम चूर्ण में एक ग्राम घी और शहद मिलाकर नींद में चलने वाले रोगी को देने से उसकी स्नायुतंत्र की कमजोरी दूर होती है और नींद में चलना बन्द होता है।
5. नारियल : नारियल का दूध एक कप की मात्रा में नियमित रूप से सुबह-शाम सेवन करने से नींद में चलने की बीमारी समाप्त होती है।
6. ज्योतिष्मती : ज्योतिष्मती के बीजों से निकाला हुआ तेल 5 से 10 बूंद सुबह-शाम मक्खन या मलाई के साथ मिलाकर रोगी को देने से नींद में चलने की आदत छूट जाती है।

मिर्गी mirgi

मिर्गी

           जिस रोग में रोगी अपने होशों-हवास खो देता है उसे अपस्मार या मिर्गी कहते हैं। इस रोग में रोगी को बेहोशी आ जाती है, हाथ-पैर कांपने लगते हैं, मुंह से झाग निकलने लगता है, शरीर में कड़ापन आ जाता है, और दिमाग में असंतुलनता आ जाती है। मिर्गी के दौरे पड़ने पर रोगी अपनी स्मरण शक्ति थोड़ी देर के लिए खो देता है और उसे किसी भी बात का ज्ञान नहीं रहता है।परिचय :

विभिन्न भाषाओं में नाम :


हिन्दी

मिर्गी।

अंग्रेजी

इपिलेप्सी।

अरबी

मृगी।

बंगाली

मृगीरोग।

गुजराती

फेफ्ड़ानुव कोई आबुन।

कन्नड़

मलरोग।

मलयालम

अपस्मारम।

मराठी

फेम्फड़, अपस्मार।

उड़िया

हपर।

पंजाबी

मिर्गी।

तमिल

काक्कईवोलिप्पु।

तेलगू

सोम्मा।

 कारण :

          शोक, मोह, लोभ, क्रोध, शराब पीना, चिन्ता करना आदि कारणों से जब वात-पित्त-कफ कुपित होकर हृदय तथा मस्तिष्क की मनेवहा-नाड़ी में पहुंचकर याद्दाश्त का नाश करता है तब रोगी को मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। मानव दिमाग के असंख्य कोष प्रतिक्षण आदेशों के रूप में अनगिनत तरंगें छोड़ते रहते हैं जिसे मस्तिष्क का एक अन्य महत्वपूर्ण भाग नियंत्रित करता रहता है और केवल सही आदेशों को ही कार्य रूप प्रदान करने की अनुमति देता है। इस क्रिया प्रणाली में गड़बड़ी उत्पन्न होने पर मिर्गी के दौरों की शुरुआत होती है। अन्य कारणों में दिमागी चोट, तेज बुखार, मैनिनजाइटिस, दिमाग का कैंसर आदि प्रमुख कारणों से भी मिर्गी के दौरे होते हैं। यह रोग किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है।
          मिर्गी के दौरे पड़ने पर पहले हृदय कांपता है, पसीना आता है, चेतना शून्य हो जाती है, बेहोशी उत्पन्न होती है, अजीब आवाजें सुनाई देती हैं अथवा सुनने की शक्ति नष्ट हो जाती है। इस रोग में अन्न का न पचना, पेट में गुड़गु़ड़ाहट, नाक से मवाद तथा मुंह से लार गिरना, आंखों के आगे अंधेरा छाना, मोह उत्पन्न होना, स्वयं को अंधेरे में घुसता हुआ अनुभव करना, आंखों में विकार पैदा होना, हाथ-पैरों को इधर-उधर फेंकना और याद्दाश्त का नष्ट होना आदि मिर्गी के लक्षण हैं। इस रोग से शरीर में ऐंठन होती है, दांत भिंच जाते हैं, सिर में बोझ का अनुभव होता है और आंखें बन्द हो जाती हैं। इस रोग से पीड़ित रोगी को दौरे के समय बेहोशी आ जाती है।
          लाल चावल, गेहूं, मूंग, दूध, परवल, पुराना पेठा, बथुआ, सहजना, मीठा अनार, आंवला, दाख, नारियल का पानी, फालसे, तेल, पुराना घी और रेगिस्तानी पक्षियों के मांस का शोरबा आदि मिर्गी के रोगियों के लिए लाभकारी होता है। मिर्गी के रोगी को प्रोटीन और विटामिन युक्त भोजन करना चाहिए। नमक कम खाना चाहिए क्योंकि इससे रोगी के जल्दी ठीक होने की संभावना रहती है। शाकाहारी भोजन और दूध इस रोग में सबसे अच्छा भोजन है। पूरी नींद लेनी चाहिए और यदि सुविधा हो तो प्रतिदिन नदी में स्नान करना चाहिए। रोगी को प्रसन्न चित्त रहना चाहिए।
           देर से हजम होने वाले पदार्थ, पत्तों का साग, खीरा, ककड़ी, जून में पैदा होने वाले फल, अधिक श्रम, रात में देर तक जागना, कॉफी, पिपरमेंट, मांसाहारी भोजन मिर्गी के रोगी के लिए हानिकारक होता है। मिर्गी के रोगी को भय, शोक और चिन्ता नहीं करनी चाहिए। मिर्गी का दौरा अचानक पड़ता है इसलिए इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को अकेला नहीं रहना चाहिए।
1. नींबू :
2. प्याज :
3. लहसुन :
4. बच :
5. करौंदा : करौंदे के 50 पत्तों को पीसकर छाछ में मिलाकर प्रतिदिन 15 दिन तक पीने से मिर्गी के दौरे आने बन्द हो जाते हैं। यह पित्त द्वारा पैदा होने वाले मिर्गी के दौरे में विशेष लाभकारी होता है।
6. कलौंजी : एक कप गर्म पानी में 2 चम्मच शहद, आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से मिर्गी का रोग ठीक होता है।
7. लता करंज :
8. अंगूर : मिर्गीग्रस्त रोगियों के लिए अंगूर खाना बेहद लाभकारी होता है।
9. नागरमोथा : नागरमोथा को उत्तर दिशा की तरफ से पुण्य नक्षत्र में अच्छे दिन में उखाड़कर एक रंग की गाय (जिस गाय के बछड़े न मरते हो) के दूध के साथ पीने से मिर्गी में लाभ मिलता है।
10. कसौंदी : मिर्गी एवं हिस्टीरिया में उत्पन्न बेहोशी में कसौंदी के फूलों को मसलकर रोगी को सुंघाने से बेहोशी दूर होती है। कसौंदी के सूखे फलों का काढा 20-20 मिलीलीटर दिन में 3 बार हिस्टीरिया से ग्रस्त स्त्री को लेने से फायदा होता है।
11. पलास : पलास की जड़ों को पीसकर इसका रस निकाल लें और यह रस 4 से 5 बूंद नाक में डालने से मिर्गी के दौरे बन्द हो जाते हैं।
12. मेंहदी :
13. राई : राई को पीसकर सुंघाने से मिर्गी के दौरे शान्त होते हैं।
14. कालीमिर्च :
15. तुलसी :
16. अनार :
17. धनिया : मिर्गी के दौरे पड़ने की अवस्था में रोगी को खाट पर लिटा देना चाहिए। इसके बाद उसके मुंह पर पानी के छींटे मारना चाहिए। जब रोगी को होश आ जाए तो उसे धनिया के पानी में लाहौरी नमक मिलाकर पिलाना चाहिए। इससे कुछ दिनों बाद रोगी को दौरे पड़ने बन्द हो जाते हैं। रोगी से ऐसी बात कभी नहीं कहनी चाहिए जिससे कि उसे कुछ सोचने का अवसर मिले। चिन्ता से रोगी को बचाना चाहिए।
18. अरीठा :
19. आक :
20. शहद :
21. मुलहठी :
22. सहजना :
23. सौंठ :
24. मल : नेवले का मल और बिलाव के मल को जलाकर उसका धुंआ सुंघने से मिर्गी का रोग दूर होता है।
25. मूत्र :
26. शतावर :
27. ब्राह्मी :
28. फल : चबाने वाले फलों को सूंघने से मिर्गी रोग दूर होता है।
29. इलायची: इलायची, चोपचीनी, मस्तगी और दालचीनी को पीसकर सुबह-शाम सेवन करने से मिर्गी या अपस्पार में लाभ मिलता है। इस चूर्ण को लेने से पहले चोपचीनी को दूध में उबाल लेना चाहिए।
30. कायफल :
31. पथरचुर (पाषाणभेद) : सुबह-शाम पथरचुर के रस की 5 से 6 बूंद चीनी पर डालकर सेवन करने से मिर्गी रोग दूर होता है।
32. भिलावा : 1 से 2 बूंद भिलावे के तेल को तिल के तेल में मिलाकर दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अपस्मार या मिर्गी रोग दूर होता है।
33. सुहागा :
34. जटामांसी :
35. सोनापाठा (सोनपत्ता) : लगभग 6 ग्राम सोनापाठा या सोनापत्ता पेड़ की छाल को पीसकर दूध के साथ पीने से मिर्गी का रोग दूर होता है।
36. मिर्ची : मिर्ची के बीजों के बारीक चूर्ण को मिर्गी के दौरान नाक में थोड़ी-सी मात्रा में डालने से दौरे शान्त होते हैं।
37. हरीदूब (दूर्वा) : 10-10 मिलीलीटर हरीदूब के रस का सेवन सुबह-शाम करने से मिर्गी रोग दूर होता है।
38. नील : लगभग आधा ग्राम नील को सुबह-शाम मिर्गी के रोगी को देने से लाभ होता है।
39. बान्दा (बांझी) : 10 से 20 मिलीलीटर बान्दा (बांझी) के फूलों के रस को सुबह-शाम रोगी को देने से मिर्गी रोग ठीक होता है।
40. केला : 10 से 20 मिलीलीटर केले के रस का सेवन सुबह-शाम करने से मिर्गी के रोग में बहुत लाभ मिलता है।
41. महानींबू (चकोतरा) : 5 से 10 मिलीलीटर महानींबू के पत्तों का रस सुबह-शाम मिर्गी के रोगी को देने से लाभ होता है।
42. बांझककोड़ा : बांझककोड़ा की जड़ के रस में घी और चीनी मिलाकर मिर्गी के रोगी को सुंघाने से मिर्गी से बेहोश रोगी होश में आ जाता है।
43. धतूरा : धतूरे के पत्तों का रस रोगी को मिर्गी की तीव्रता के अनुसार देने से मिर्गी का रोग दूर होता है।
44. सिरस :
45. अकरकरा :
46. मालकांगनी : मालकांगनी के तेल में कस्तूरी को मिलाकर चटाने से मिर्गी का आना बन्द होता है।
47. गुलाबजल : गुलाबजल में लगभग आधा ग्राम गोरोचन पीसकर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से मिर्गी के कारण आने वाले दौरे दूर होते हैं।
48. रीठा : रीठा के चूर्ण को सुंघाने से मिर्गी रोग नष्ट होता है।
49. कीकर : कीकर (बबूल) के पेड़ की गोल गांठ को छाया में सुखाकर कूट हुक्का में भरकर धुंआ लेने से मिर्गी हमेशा के लिए खत्म होती है।
50. तगर : लगभग 2 ग्राम तगर को ठंडे पानी में पीसकर एक मास तक प्रतिदिन सुबह पीने से हिस्टीरिया और मिर्गी का रोग दूर होता है।
51. नौसादर :
52. नमक : मिर्गी के कारण बेहोश रोगी की हथेली पर नमक रगड़ने से वह होश में आ जाता है।
53. सर्पगंधा : 10 ग्राम सर्पगंधा को पीसकर एक चौथाई मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम मक्खन या मलाई के साथ खाने से मिर्गी का रोग दूर होता है।
54. फिटकरी : लगभग 1-1 ग्राम भुनी हुई फिटकरी को सुबह-शाम गर्म दूध के साथ लेने से मिर्गी के दौरे आना बन्द हो जाते हैं।
55. नकछिकनी : 10 ग्राम नकछिकनी पीसकर मिर्गी का दौरा पड़ने पर रोगी को सुंघाने से रोगी तुरन्त होश में आ जाता है।
56. बंड़ाल डोडा : बंड़ाल डोडा को महीन पीसकर मिर्गी के रोगी को सुंघाने से वह होश में आ जाता है।
57. कद्दू  : लगभग 7 से 24 मिलीलीटर कद्दू ताजे रस को 3 ग्राम मुलेठी चूर्ण के साथ दिन में 2 बार जरूर लेना चाहिए।
58. अगस्ता : अगस्ता के पत्तों का चूर्ण और कालीमिर्च का चूर्ण समान भाग में लेकर गोमूत्र के साथ बारीक पीसकर मिर्गी के रोगी को सुंघाने से लाभ होता है।
59. ढाक : ढाक के बीज का तेल सुंघाने और जड़ को पानी में घिसकर 2 से 4 बूंद नाक में डालने से मिर्गी के दौरे में तुंरत लाभ मिलता है।
60. इमली : इन्द्रायण की जड़ के चूर्ण को नस्य दिन में 3 बार लेने से अपस्मार (मिर्गी) रोग दूर होता है।
61. कटेरी :
62. अखरोट : अखरोट गिरी को निर्गुण्डी के रस में पीसकर अंजन और नस्य लेने से लाभ मिलता है।
63. निर्गुण्डी : निर्गुण्डी के पत्तों के 5 से 10 बूंद मिर्गी के दौरे के समय रोगी की नाक में डालने से आराम मिलता है।
64. केवड़ा : केवडे़ के डंठल और केतकी के फूल बराबर मात्रा में लेकर पीसकर सुंघाने से मिर्गी का रोग ठीक होता है।
65. हींग :