उल्टी

उल्टी

   खाने-पीने में गड़बड़ी, पेट में कीड़े होना, खांसी, जहरीले पदार्थों का सेवन करना तथा शराब पीना आदि कारणों से उल्टी आती है। यह कोई बड़ा रोग नहीं है बल्कि पेट की खराबी का ही एक कारण है। जब कभी कोई अनावश्यक पदार्थ पेट में अधिक एकत्रित हो जाता है तो उस अनावश्यक पदार्थ को निकालने के लिए पेट प्रतिक्रिया करती है जिससे पेट में एकत्रित चीजे उल्टी के द्वारा बाहर निकल जाता है। कभी-कभी अधिक उल्टी होने से रोगी के शरीर में पानी की कमी होने के साथ अधिक कमजोरी आ जाती है।परिचय :


हिंदी          

वमन (उल्टी)।

अंग्रेजी             

उल्टी।

पंजाबी             

बमी।

कन्नड़        

वान्ति।

मद्रासी        

छर्दि।

तेलगु         

वान्तुलु।

असमी        

वोमिटिंग।

गुजराती       

वमी।

मराठी         

उल्टी।

उड़िया         

उल्टी, वान्ति।
          ज्यादा भोजन करना, भूख न लगना, पेट में गैस बन जाना, स्त्री के यकृत (जिगर) का दर्द होना, गर्भावस्था, जहर या जहर मिली हुई चीजों का पेट में पहुंच जाना, कमजोरी के कारण, जरायु की पीड़ा, कार, रेल, बस आदि में सफर करते समय, पाचन संस्थान की खराबी और उल्टी होना आदि उल्टी की कारण होती है। उल्टी करने से जब सारी चीजे पेट से बाहर आ जाती है तब सूखी उल्टी होने लगती है। सूखी उल्टी होने से रोगी को ज्यादा परेशानी होती है। इस तरह की सूखी उल्टी पाचन संस्थान में खराबी होने के कारण होता है और ऐसी सूखी उल्टी में बाहर कुछ भी नहीं निकलता केवल दर्द होता रहता है।
          उल्टी दो रूपों में आती है- पहला वह जिसमें उल्टी के साथ खाया-पिया पदार्थ उसी रूप में निकल जाता है और दूसरा वह जिसमें अधपचा खाना उल्टी के साथ निकलता है। उल्टी की दूसरी अवस्था में डकारें आती हैं, जी मिचलाता है, सिर में बहुत तेज दर्द होने लगता है और बेहोशी के दौर पड़ने लगते हैं। रोगी को ऐसा महसूस होता है कि अंदर से आंतों में जलन पैदा होकर सब कुछ बाहर आने के लिए पलटने लगा है। आंख, कान और नाक में भी दर्द होने लगता है। उल्टी के समय व्यक्ति को लगता है कि वह अब नहीं बचेगा। इलाज के लिए रोगी को उल्टी बंद करने की औषधि तुरंत ही देनी चाहिए। घबराहट अधिक होने पर धनिये का पानी पिलाना चाहिए और धनिये का लेप सिर पर लगाना चाहिए। इससे बेचैनी दूर हो जाती है। प्याज का रस तथा धनिये का रस पानी में मिलाकर देने से उल्टी रुक जाती है।
1. गैस के कारण होने वाली उल्टी : इसमें रोगी कम मात्रा में कडुवी, झागवाली और पानी के जैसी उल्टी करता है। इसके साथ ही रोगी में अन्य लक्षण भी होते हैं, जैसे- सिर का दर्द, सीने में जलन, नाभि में जलन, खांसी और आवाज का खराब होना आदि।
2. पित्त की गर्मी के कारण होने वाली उल्टी : इस रोग की हालत में पीले, हरे रंग की उल्टी आती है जिसका स्वाद बहुत ज्यादा गंदा होता है और रोगी को जलन महसूस होती है। इसके साथ-साथ रोगी का सिर घूमने लगता है, बेहोशी सी छा जाती है और मुंह का स्वाद भी खराब हो जाता है।
3. कफ के कारण होने वाली उल्टी : इस तरह की हालत में रोगी को अपने आप ही गाढ़ी और सफेद रंग की उल्टी होती है जिसका स्वाद मीठा होता है। इसके साथ ही मुंह में पानी भरना, शरीर का भारी हो जाना, बार-बार नींद आना, जैसे लक्षण पैदा होते है।
4. त्रिदोष (वात, पित और कफ) के कारण होने वाली उल्टी : इस रोग में रोगी गाढ़ी, नीले रंग, स्वाद में नमकीन या खट्टी और खून वाली उल्टी करता है। इसके साथ ही दूसरे लक्षण भी होते है जैसे- पेट में तेज दर्द, भूख न लगना, जलन महसूस होना, सांस लेने में परेशानी और बेहोशी छा जाना।
5. आगन्तुज छर्दि : कोई ऐसी जगह जाने का मन न करें या बदबू के कारण, गर्भावस्था, ऐसा भोजन जो अच्छा न लगता हो या पेट में कीड़े होने के कारण पैदा हुए रोग को आगन्तुज छर्दि कहते हैं।
विभिन्न औषधियों से उपचार :
1. पोदीन हरा :
2. कपूर :
3. तुलसी :
4. लौंग :  
5. अमृतधारा : अमृतधारा 2 बूंद बताशे में डालकर पानी के साथ खिलाने से उल्टी रोग ठीक होता है। अधिक उल्टी के लक्षणों में कई बार अमृतधारा का सेवन कराना चाहिए।
6. गन्ना :
7. धनिया : 
8. अदरक :
9. आलूबुखारा : आलूबुखारे को पीसकर नींबू के रस में मिलाकर और इसमें कालीमिर्च, जीरा, सोंठ, कालानमक, सेंधानमक, धनिया व अजवायन बराबर मात्रा में मिलाकर चटनी की तरह बनाकर खाने से उल्टी आनी बंद हो जाती है।
10. संतरा :
11. नींबू :
12. नींबू बिजौरा :
13. राई :
14. चावल :
15.  कमल : कमल के बीज का रस बनाकर पीने से उल्टी आने का रोग दूर होता है।
16. आंवले का मुरब्बा : यदि गर्भावस्था में उल्टी आती हो तो आंवले का 2-2 ग्राम मुरब्बा दिन में 4 बार खिलाने से उल्टी बंद हो जाती है।
17. प्याज : 5-5 मिलीलीटर प्याज और नींबू के रस में नमक मिलाकर पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
18. इमली :
19. पीपल : यदि उल्टी होती हो और अधिक प्यास लगती हो तो पीपल के पेड़ की छाल को जलाकर पानी में बुझाकर रख लें। उस पानी को छानकर थोड़ा-थोड़ा पीएं। इससे उल्टी आनी बंद हो जाती है।
20. सुपारी :
21. हरड़ : हरड़ का चूर्ण और शहद मिलाकर चाटने से उल्टी व जी मिचलाना बंद हो जाता है।
22. जायफल :
23. चना :
24. इलायची :
25. बर्फ : बार-बार उल्टी होने पर बर्फ चूसने से उल्टी बंद हो जाती है। इससे हैजा में उल्टी अधिक आना बंद होता है।
26. तरबूज : अगर खाना खाने के बाद सीने में जलन हो और फिर पीली-पीली उल्टी आती हो तो रोगी को तरबूज के रस में मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। इसके उपयोग से तेज प्यास भी शान्त होती है।
27. केला :
28. पिस्तादाना :
29. हल्दी : 3 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे को यदि उल्टी होती हो तो उसे कच्ची हल्दी का रस निकालकर 10 से 15 बूंद रस दिन में 2 से 3 बार पिलाने से उल्टी बंद हो जाती है।
30. जामुन : जामुन के पेड़ की छाल को आग में जलाकर इस राख को शहद के साथ खिलाने से खट्टी उल्टी बंद हो जाती है।
31. बेल :
32. फूलगोभी : फूलगोभी में क्षारीय तत्त्व मौजूद होते हैं। यह खून को भी साफ करते है। खून की उल्टी होने पर इसकी सब्जी खाने या फूलगोभी को कच्चा खाने से आराम आ जाता है। इसके अलावा क्षय रोग (टी.बी) के रोगी के लिए भी यह बहुत लाभकारी होता है।
33. अंगूर : अंगूर का रस चूसने से छाती की जलन और उल्टी आनी बंद हो जाती है।
34. गाजर : गाजर का रस शहद में मिलाकर पीने से खून की उल्टी बंद हो जाती है।
35. दालचीनी :
36. एरण्ड : 10 ग्राम एरण्ड की जड़ को छाछ के साथ पीसकर उल्टी से पीड़ित रोगी को पिलाने से उल्टी व दस्त में आराम मिलता है।
37. मुलेठी : उल्टी होने पर मुलेठी का टुकड़ा मुंह में रखने से उल्टी बंद हो जाती है।
38. सौंफ :
39. मिश्री : दूध में थोड़ा-सा नींबू का रस डालकर फाड़ लें और इसमें मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाएं। इससे उल्टी आनी बंद हो जाती है।
40. चमेली : 10 ग्राम सफेद चमेली के पत्तों के रस में 2 ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर रोगी को चाटना चाहिए। इससे उल्टी बंद हो जाती है।
41. आंवला :
42. पोदीना : 10 बूंद पोदीने के रस में पानी व चीनी मिलाकर पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
43. सोंठ :
44. ककड़ासिंगी : ककड़ासिंगी व नागरमोथा बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण आधे से 2 ग्राम की मात्रा में रोगी को चटाएं। इससे कफज मिचली व उल्टी में लाभ मिलता है।
46. जयपत्री : लगभग एक चौथाई ग्राम से पौने एक ग्राम तक जयपत्री का सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है। इस औषधि का उपयोग उम्र के मुताबिक ही करें।
47. जलपीपल : जलपीपल की जड़ को पीसकर लगभग 4 से 6 ग्राम तक खाने से उल्टी आनी बंद हो जाती है।
48. जीरा : बच्चों को उल्टी होने पर कदम के छाल के रस को अगर जीरे और मिश्री के साथ पिलाया जाए तो उल्टी के साथ-साथ बुखार और दस्त भी ठीक हो जाता है।
49. गूलर : गूलर के दूध की 10 बूंद सुबह-शाम दूध में मिलाकर बच्चों को पिलाने से बच्चों को उल्टी आनी बंद हो जाता है।
50. बरगद : बरगद की जटा लगभग 3 से 6 ग्राम सेवन करने से उल्टी आनी बंद होती है।
51. दूब :
52. बरना : 40 से 80 मिलीलीटर बरना के पत्तों का फांट या घोल प्रतिदिन 2 बार लेने से उल्टी बंद होती है।
53. कुटकी : 3 ग्राम कुटकी के चूर्ण को 6 ग्राम शहद में मिलाकर खाने से उल्टी बंद हो जाती है।
54. मुलहठी : मुलहठी और लालचंदन पीसकर दूध में मिलाकर पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
55. मौलश्री : मौलश्री के सूखी छाल को आग में जलाकर एक गिलास पानी में डालकर बुझा लें और इस पानी को छानकर पीने से दर्द वाली उल्टी बंद हो जाती है।
56. मरोड़फली : 6 ग्राम मरोड़फली का चूर्ण चावल के पानी में मिलाकर थोड़े से शहद में मिलाकर पीने से हर प्रकार की उल्टी बंद हो जाती है।
57. आक : 10 ग्राम आक (मदार) की जड़ की छाल और 20 ग्राम कालीमिर्च को 50 मिलीलीटर अदरक के रस में मिला लें और इसे चने के आकार की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। यह 2 गोली गर्म पानी के साथ लेने से पेट के सारे रोग और उल्टी दूर हो जाती है।
58. गेरू : गेरू की एक डली को आग में गर्म करके 125 ग्राम पानी में डालकर ठंडा कर लें। इस पानी को थोड़ी-थोड़ी देर में 2-2 चम्मच की मात्रा में रोगी को पिलाने से उल्टी बंद हो जाती है
59. अजमोद :
60. अगर : अगर को पानी में घिसकर पिलाने से उल्टी बंद हो जाती है।
61. ईंट : ईंट को बहुत गर्म करके पानी में बुझाकर उस पानी को ठंडा करके उल्टी से पीड़ित रोगी को पिलाने से उल्टी बंद हो जाती है।
62. अतीस : अतीस और नागकेसर के चूर्ण मिलाकर सेवन करने से उल्टी रुक जाती है।
63. चंदन :
64. गिलोय :
65. करंजवा : करंजवा के मुलायम पत्ते को पीसकर सेंधानमक मिलाकर खाने से उल्टी रुक जाती है।
66. मकोय :
67. नमक : 
68. अगर : अगर के रस में चीनी मिलाकर गुनगुना करके पीने से उल्टी व मिचली आना ठीक होता है।
69. अफीम : अफीम, नौसादर और कपूर बराबर मात्रा में लेकर पीसकर पानी के साथ मिलाकर मूंग के बराबर की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इस 1-1 गोली को ठण्डे पानी के साथ प्रतिदिन खाने से उल्टी और जी मिचलाना बंद होता है।
70. सेब : कच्चे सेब के रस में सेंधानमक मिलाकर पीने से उल्टी बंद होती है।
71. हींग :
72. अनार :
73. शहद :
74. नीम :
75. करीपत्ता : 10 करीपत्ते को 2 कप पानी में उबालें और जब उबलते हुए पानी जलकर आधा बाकी रह जाए तो इसे छानकर थोड़ी-थोड़ी देर 2-2 चम्मच की मात्रा में पीएं। इससे उल्टी रुक जाती है।
76. आम : उल्टी होने पर आम का पापड़ चूसने से उल्टी बंद हो जाती है।
77. मक्का : मक्के के भुट्टे में से दाने निकालकर इसे जलाकर राख करके 60 मिलीग्राम की मात्रा में लेकर शहद मिलाकर चाटने से उल्टी व दस्त में लाभ मिलता है।
78. धान : 100 ग्राम धान के लावा, चीनी एवं शहद का मिश्रण बनाकर 180 से 280 मिलीग्राम मूंग के काढे़ के साथ दिन में 3 बार लेने से उल्टी बंद हो जाती है। 
79. हर्र : हर्र को पीसकर दूध के साथ खाने से उल्टी आनी बंद हो जाती है।
80. आक : आक की जड़ की शुश्क छाल को समभाग अदरख के रस में अच्छी तरह से खरल करके लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बनाकर धूप में सुखाकर रख लें। शहद के साथ सेवन से उल्टी का होना बंद  हो जाता है। इसके अलावा प्रवाहिका (पेचिश), शूल, मरोड़ और विसूचिका में इसे पानी के देने से आराम मिलता है।
81. मीठा नीम : मीठे नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
82. नागरमोथा :
83. कालीमिर्च :
84. सज्जीखार : चने की दाल से थोड़े कम मात्रा में सज्जीखार और गुड़ एक साथ मिलाकर मां के दूध में मिलाकर बच्चे को पिलाने से उल्टी (वमन) होकर कफ़ बाहर निकल जाता है। बच्चों को हब्बा-डब्बा रोग दूर होता है। 2 से 3 महीने से छोटे बच्चे को इसका सेवन नहीं कराना चाहिए।
85. कलौंजी : आधा चम्मच कलौंजी का तेल और आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर सुबह-शाम पीने से उल्टी दस्त में लाभ मिलता है।
86. अजवायन : बारीक पिसी हुई अजवायन 10 ग्राम, पोदीने का फूल 10 ग्राम और देशी कपूर 10 ग्राम को एक साफ शीशी में डालकर अच्छी तरह से मिलाकर धूप में रख दें। थोड़ी देर में तीनों चीज गलकर पानी बन जाएगा। इसके बाद इसकी 4-5 बूंद बताशे या गर्म पानी में डालकर आवश्यकतानुसार रोगी को दें। इससे उल्टी व दस्त में तुरंत लाभ होता है। एक बार में लाभ न हो तो थोड़ी-थोड़ी देर में 2 से 3 बार देना चाहिए।
87. करंज : करंज के बीजों को थोडा सेंककर टुकडे करके खाने से उल्टी में लाभ मिलता है।
88. कटेरी : कटेरी की जड का 10 से 20 मिलीलीटर रस 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर खाने से वमन बंद होता है।
89. अमलतास : अमलतास के 5-6 बीज पानी में पीसकर रोगी को पिलाने से हानिकारक खाई हुई चीज उल्टी के साथ निकलकर उल्टी शांत होती है।
90. पुनर्नवा : 2 से 5 ग्राम पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण सेवन करने से वमन (उल्टी) बंद होता है।
91. अमरूद : अमरूद के पत्तों का काढ़ा 10 मिलीलीटर प्रतिदिन पीने से उल्टी बंद होती है।
92. लता करंज :
93. परवल :
94. सिरस : पिसे हुऐ सिरस के बीज आधा चम्मच एक कप पानी में मिलाकर उबालकर छान लें। इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर हर आधे घण्टे पर खाने से उल्टी व दस्त में आराम मिलता है।
95. पपीता : एक कप पपीते के रस में अनार, संतरा, अनान्नास का रस आधा-आधा कप मिलाकर पीने से जी मिचलाने या उल्टी होना तुरंत बंद हो जाता है।
96. अंकोल : सफेद फूल वाले अंकोल की जड़ का चूर्ण 3 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से उल्टी होती है।
97. बेर : बेड़ की जड़ की छाल का चूर्ण एक ग्राम को चावल के धोवन के साथ दिन में 2 बार लेने से उल्टी रोग में आराम मिलता है।
98. अशोक : अशोक के फूलों को जल में पीसकर स्तनों पर लेप करके दूध पिलाने से स्तन पाना करने वाले बच्चे को उल्टी नहीं होती।
99. आयापान : उल्टी से पीड़ित रोगी को आयापान के पंचाग का काढ़ा बनाकर सेवन कराना चाहिए। इससे उल्टी बंद हो जाती है और दस्त लग जाता है और पेट के सभी विकार दस्त के रास्ते बाहर निकल जाता है

यकृत का बढ़ना

यकृत का बढ़ना


          यकृत (जिगर) में प्रदाह (जलन) होने के बाद और यकृत में बार-बार रक्त (खून) संचार अधिक होने से यकृत अधिक बड़ा हो जाता है, तो इसे यकृत का बड़ा होना या यकृत की प्रदाह (जलन) कहते हैं।परिचय :

कारण :

सावधानी
           जिगर बढ़ने या जिगर में सूजन आ जाने की हालत में घी और चीनी का सेवन करना बंद कर देना चाहिए। अगर रोगी को बुखार रहता हो, तो उसके पेड़ू पर कपड़े की पट्टी को पानी में भिगोकर रखें। पट्टी को सूखे तौलिए से ढक दें। पट्टी अगर गर्म हो जायें, तो उसे पानी से भिगों दें। इस प्रयोग को 15-20 मिनट तक रोजाना करें। बुखार उतर जाने के बाद यह क्रिया बंद कर दें। 3-4 दिन तक ऊपर से गर्म सेंक करें, 7-8 दिन में जिगर की सूजन दूर हो जायेगी। रोगी के सिर को रोजाना गीले कपड़े से दो बार पोंछें। शरीर में सरसों के तेल की हल्की मालिश करें और अगर जाड़े के दिन हो, तो उसे 10 मिनट तक धूप में बैंठाएं। पेट में कब्ज ना बनने दें। बिना हल्दी तथा नाममात्र का नमक वाला खाना बनाकर खायें। चोकर सहित आटे की रोटी तथा साग सब्जी दें। दालें कम दें। मौसमी का रस, पपीता, अमरूद, सेब आदि का सेवन रोगी को कराते हैं। रोगी के सामने कभी ऐसी बात न करें जिससे वह गुस्से में आ जाए या परेशान हो जाए।
10. छोटी इलायची : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग छोटी इलायची सुबह-शाम सेवन करने से यकृत की वृद्धि और सूजन में लाभ होता है।
11. छरीला : 10 मिलीलीटर छरीला का फांट या घोल को रोजाना सुबह-शाम-दोपहर या चूर्ण 2-4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करें और साथ ही छरीला को पीसकर यकृत के जगह पर लेप करने से यकृत वृद्धि और सूजन से राहत मिलती है।
12. गोखरू : बड़ी गोखरू का काढ़ा पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को 20-80 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। और यकृत वृद्धि की बीमारी ठीक हो जाती है।
13. गोखरू : बड़ी गोखरू का काढ़ा, पंचांग  (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा सुबह-शाम 20 से 80 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से यकृत वृद्धि ठीक हो जाती है।
14. मदार :
15. शिकाकाई : शिकाकाई के पत्ते और काली मिर्च को बराबर मात्रा में प्रयोग करने से यकृत की क्रिया ठीक हो जाती है।
16. हरिसंगार : 7-8 हरिसंगार के पत्तों के रस को अदरक के रस के साथ शहद में सुबह-शाम सेवन करने से यकृत और प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि ठीक हो जाती है।
17. सहजन : 4- सहजन (मनुगा) के नये वृक्ष की जड़ की छाल 8 ग्राम सुबह-शाम हींग और सेंधानमक के साथ मिलाकर सेवन से लाभ होता है।
18. कंटकरंज : कंटकरंज के पत्ते का रस 10-20 मिलीलीटर या जड़ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम सुबह-शाम सेवन से यकृत की बीमारी से लाभ होता है। ध्यान रहे, कि इस दवा को खाली पेट न दे।
19. सुकुलबेंत (जलमाला) : जलमाला के ताजे पत्तों का रस 50-100 ग्राम सेवन करने से यकृत और प्लीहा के रोगों से छुटकारा मिलता है।
20. क्षीर विदारी : क्षीर विदारी कन्द का चूर्ण घी में भूनकर लाल किया हुआ 3-6 ग्राम को मिश्री मिले दूध में उबाल कर सुबह-शाम पीने से यकृत और प्लीहा (तिल्ली) रोग से आराम मिलता है।
21. नागदन्ती : 3-6 ग्राम नागदन्ती की जड़ की छाल सुबह-शाम दालचीनी के साथ सेवन करने से यकृत की जलन मिट जाती है। यकृत समान्य अवस्था में आ जाता है। इसके साथ निर्गुण्डी (सिनुआर) तथा करंज का प्रयोग और अच्छा परिणाम देता है। शौच के द्वारा दूषित पित्त निकल कर यकृत की शोथ या जलन समाप्त हो जाती है।
22. नील : नील की जड़ का काढ़ा 50-100 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है और इससे यकृत सामान्य हो जाता है।
23. सरफोंका : सरफोंका की जड़ का चूर्ण 3-6 ग्राम हरीतकी के साथ सुबह-शाम सेवन से लाभ होता है।
24. तालमखाना : तालमखाना की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर या पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) की राख (भस्म) 1-2 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से यकृत की बीमारी से लाभ होता है।
25. ग्वार पाठा (घी कुंआरा) : 10-20 मिलीलीटर ग्वारपाठा का रस या एलुवा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को सेंधानमक और हरिद्रा के साथ देने से यकृत के बीमारी जैसे- इससे यकृत का बढ़ना, दर्द होना आदि ठीक होते हैं इसके अलावा पीलिया का होना कम होता है।
26. मंगैरया : 5-10 मिलीलीटर की मात्रा में मंगैरया का रस सुबह-शाम लेने से यकृत सम्बन्धी समस्त रोगों से आराम मिलता है, इससे यकृत वृद्धि, अर्श (बवासीर), पेट का दर्द आदि ठीक हो जाते हैं।
27. मकोय :
28. अमरबेल : 10 मिलीलीटर अमरबेल का रस सुबह-शाम सेवन करने से यकृत दोष से उत्पन्न दोष दूर हो जाते हैं।
29.सोनैया (देवदाली) : सोनैया की फांट या टिंचर (1-20) 10 से 20 बूंद सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि, प्लीहावृद्धि (तिल्ली का बढ़ना) और यकृत की शुरूआत में सेवन करने से लाभ होता है।
30.कठगूलर (कठूमर) : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कठगूलर की छाल या फल सुबह-शाम देने से लाभ होता है। ध्यान रहे, इसे अधिक मात्रा में न दें, इससे उल्टी हो सकती है।
31. रोहेड़ा : 1-3 ग्राम रोहेड़ा की छाल का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने या छाल का काढ़ा 5-10 मिलीलीटर रोजाना 2 बार सेवन करने से यकृत और प्लीहा वृद्धि में लाभ होता है।
32. ताड़ : ताड़ के नये पुष्पित भाग को जलाकर 3-6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि और टाइफाइड के बुखार से लाभ होता है।
33. पालक : पालक साग के बीज 3-6 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से यकृत में आने वाली सूजन से छुटकारा मिलता है।
34. हरकुच : हरकुच शाक को चावल की मांड में उबालकर पका लें, फिर सेंधा नमक और सरसों के तेल में मिलाकर खिलाने से यकृत ठीक से काम करना शुरू कर देता है।
35. करेला :
36. अरुआ : अरुआ (अरुई) के कन्द का साग खाने से यकृत वृद्धि रुक जाती है।
37. अफसंतीन : अफसंतीन का तेल 10 से 15 बूंद दूध में मिलाकर या बताशे पर डालकर सेवन करने से यकृत की सूजन कम हो जाती है।
38. उशष (उशक) : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग - लगभग 1 ग्राम उशष की गोंद सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि के रोग से लाभ होता है।
39. दुग्धफेनी : 4-12 ग्राम दुग्धफेनी की जड़ सुबह-शाम सेवन से यकृत वृद्धि में लाभ होता है।
40. बेलिया पीपर : 10 ग्राम बेलिया पीपर की छाल दूध के साथ पीसकर सुबह-शाम पिलाने से यकृत वृद्धि ठीक हो जाता है।
41. भांगरा : भांगरा के रस में थोड़ी अजवायन के चूर्ण को मिलाकर पानी के साथ रोगी बच्चे को सेवन कराने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।
42. छोटी पिप्पली : छोटी पिप्पली को पानी के साथ पीसकर उसमें थोड़ा-सा शहद को मिलाकर चाटने से बहुत लाभ होता है। रोगी बच्चे को दिन में 2 बार देने से यकृत की वृद्धि रोकने में सहायक होता है।
43. खीरा : खीरे का सलाद बनाकर, उसमें नींबू का रस, पुदीने के रस की कुछ बूंदें डालकर और काला नमक मिलाकर खिलाने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।
44.  नीम : 10 ग्राम नीम की छाल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। उस काढ़ें को कपडे़ द्वारा छानकर, उसमें शहद को मिलाकर सुबह-शाम रोगी को सेवन कराने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।
45. जामुन :
52. ग्वारपाठा : ग्वारपाठे के पत्ते का रस आधा चम्मच, हल्दी का चूर्ण एक चुटकी और पिसा हुआ सेंधा नमक 1 चुटकी मिलाकर पानी के साथ सुबह-शाम देने से यकृत रोग में लाभ होता है।
53. अलसी : अलसी की पुल्टिस बांधने से जिगर यानी यकृत के बढ़ जाने से होने वाले दर्द मिट जाते हैं।
54. त्रिफला : 20 ग्राम त्रिफला को 120 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब चौथाई पानी रह जाये, तो इसे उतारकर छान लें। इसके ठंडा हो जाने पर, 6 ग्राम शहद के साथ मिलाकर पीने से लीवर या जिगर की जलन मिट जाती है।
55. गुड़ : 1.5 ग्राम पुराना गुड़ और बड़ी हरड़ के छिलके का चूर्ण बराबर वजन मिलाकर 1 गोली बनायें और ऐसी गोली दिन में 2 बार सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ 1 महीने तक लें। इससे यकृत (लीवर) और प्लीहा (तिल्ली) यदि दोनों ही बढे़ हुए हों, तो भी ठीक हो जाते हैं।
56. मोगरा : मोगरे की पत्तियों का रस 5-6 बूंद की मात्रा में बालक को शहद के साथ चटानें से यकृत रोग से राहत मिलता है।
57. तुलसी : तुलसी के पत्तों का रस गाय के दूध के साथ 20 दिन तक देने से यकृत रोग कम हो जाता है।
58. पपीता : कच्चे पपीते का रस 2 चम्मच लेकर उसमें थोड़ी-सी शक्कर मिलाकर देने से यकृत और प्लीहा रोग से अराम मिलता है।
59. त्रिफला : 5 ग्राम त्रिफला के चूर्ण को एक कप पानी के साथ पकाएं। जब चौथाई कप पानी शेष रह जायें तो उसे उतारकर छान लें। ठंडा हो जाने पर उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से यकृत रोग में लाभ होता है।
60. करेला : करेले के फल और पत्तों का 8-10 बूंद लेकर उसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर बच्चे को देने से यकृत रोग मिट जाता है।
61. पुनर्नवा : बड़ी पुनर्नवा, और मण्डूर को पीसकर 1 छोटी गोली बना लें और इस गोली को आधी-आधी मात्रा में दिन में 3 बार देने से बच्चों की यकृत (जिगर) में लाभ होता है।
62. अपामार्ग : अपामार्ग का क्षार मठ्ठे या छाछ के साथ एक चुटकी की मात्रा से बच्चे को देने से बच्चे की यकृत रोग के मिट जाते हैं।
63. अंजीर : 4-5 अंजीर और गन्ने के रस के सिरके में गलने के लिए डाल दें। 4-5 दिन बाद उनको निकालकर 1 अंजीर सुबह-शाम बच्चे को देने से उसकी यकृत रोग की बीमारी से आराम मिलता है।
64. मकोय : मकोय के पौधों का डेढ़ ग्राम स्वरस नियमित रूप से पिलाने से बहुत दिनों से बढ़ा हुआ जिगर कम हो जाता है। एक मिट्टी के बर्तन में रस को निकाल कर इतना गर्म करें कि रस का रंग हरे से लाल या गुलाबी हो जाएं। रात को उबालकर सुबह ठंडा कर प्रयोग में लाना चाहिए।
65. कच्चे चावल : सूर्योदय से पहले उठकर 1 चुटकी कच्चे चावल मुंह में रखकर पानी से सेवन करने से यकृत या जिगर बहुत मजबूत होता है।
66. जामुन : जामुन के रस का सिरका दिन में 3 बार समय पर लें।
67. मूली : 50 मिलीलीटर मूली के रस में 10 ग्राम घीकुंवार का रस पिलाने से यकृत का बढ़ना दूर हो जाता है।
68. चीता : चीता, यवक्षार, पांचों नमक, इमली क्षार, भुनी हींग इन सभी को समान मात्रा में लेकर जम्भारी नींबू के साथ मिलाकर बारीक पीसकर रख लें। इसके बाद लगभग आधा ग्राम की गोली बनाकर दिन में 4 बार सेवन करने से यकृत प्लीहा आदि रोग समाप्त हो जाते हैं।
69.  कचनार : पीले कचनार की 10 से 20 ग्राम जड़ की छाल का काढ़ा सुबह-शाम पिलाने से लीवर की सूजन उतर जाती है।
70. करेला : 3 से 8 साल तक के बच्चों को आधा चम्मच करेले का रस रोज देने से यकृत (लीवर) रोग ठीक हो जाते हैं।
71. गुलाब : सूजन, दर्द, यकृत (जिगर) बढ़ा हुआ हो तो गुलाब के 4 ताजा फूलों को पीसकर यकृत (जिगर) वाले स्थान पर लेप करना चाहिए।
72. विदारीकंद : विदारीकंद के 5 ग्राम की फांकी सुबह-शाम पानी के साथ लेने से यकृत प्लीहा की बढ़ना रुक जाता है।
73. निर्गुण्डी :
74. खुरासानी : यकृत (लीवर) के दर्द में तेल का लेप करने से पुरानी से पुरानी यकृत की पीड़ा दूर होती है।
75. लता करंज : लीवर में कीड़े होने पर 10 से 12 मिलीलीटर करंज के पत्तों के रस में बायविडंग और छोटी पीपर का चूर्ण एक चौथाई ग्राम 1 ग्राम तक मिलाकर सुबह-शाम खाना खाने के बाद 7 से 8 दिन तक यकृत के रोग में खायें।
76. लीची : लीची जल्दी पच जाता है। यह पाचन क्रिया को मजबूत बनाने वाली तथा यकृत रोगों में फायदेमंद होता है।
77. पपीता : जिन छोटे बच्चों का यकृत (जिगर) खराब रहता है, उन्हें पपीता खिलाना अच्छा होता क्योंकि पपीता यकृत (जिगर) को ताकत देता है। पेट के सभी रोगों के लिए पपीते का सेवन काफी अच्छा होता है।
78. बेल : यकृत (लीवर) के दर्द में बेल के 10 मिलीलीटर बेल के पत्तों के रस में 1 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में 3 बार पिलाने से लाभ मिलता है।
79.  तुलसी :