हृदय रोग heart rog

हृदय रोग

हृदय को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों का संकरा और सख्त हो जाना ही हृदय रोग का कारण होता है। हृदय की मांसपेशियों को अपना कार्य करने के लिए शुद्ध रक्त की लगातार जरूरत होती है जिसकी आपूर्ति इन धमनियों के द्वारा ही होती है। धमनियों में संकीर्णता या आंशिक अवरोध उत्पन्न हो जाता है। (खासकर रक्त की धमनियों के भीतर चिकनाई की परत-दर-परत जमते जाने और धमनी का भीतरी व्यास के कम हो जाने के कारण उत्पन्न हो जाता है।)परिचय:

लक्षण :

वातज हृदय रोग :

लक्षण :

2. लौकी:
3. गुलकन्द: गुलकन्द या गुलाब के सूखे फूलों में चीनी मिलाकर खाने से हृदय को बल मिलता है।
4. गुलाबजल: गुलाब जल में थोड़े-से गुलाब के फूल और 100 ग्राम हरा धनिया पीसकर चटनी के रूप में सेवन करने से दिल के रोग में लाभ होता हैं।
5. अजवायन: यदि दिल की कमजोरी के कारण छाती में दर्द होता हो, तो 1 चम्मच अजवाइन को 2 कप पानी में उबालें। आधा कप पानी बचा रहने पर काढ़े को छानकर रात के समय इस काढ़े को रोजाना 40 दिनों तक सेवन करें और ऊपर से आंवले का मुरब्बा खाएं। यह हृदय रोग को दूर करने में लाभकारी है।
6. करौंदा: करौंदा हृदय रोग को दूर करने में बहुत उपयोगी है। करौंदे की सब्जी मीठा डालकर या मुरब्बा खाना बहुत लाभदायक है।
7. गाय का दूध : हृदय रोगी को गाय का दूध व घी फायदेमंद हैं भोजन में इसका प्रयोग रोजाना सेवन करना भी लाभकारी होता हैं।
8. लहसुन :
9. पालक रस: चौलाई का रस आधा चम्मच, पालक का रस 1 चम्मच और नींबू का रस 1 चम्मच। तीनों को मिलाकर रोजाना सुबह 20 दिनों तक सेवन करने से हृदय रोग में लाभ होगा।
10. लीची का रस: गर्मी के मौसम में आधा कप लीची का रस रोज पीने से हृदय को काफी बल मिलता है।
11. खूबानी का रस: खूबानी का रस 4 चम्मच पानी में डालकर रोजाना रोगी को पिलायें।
12. इमली: पकी हुई इमली का घोल 2 चम्मच और थोड़ी-सी मिश्री, दोनों को मिलाकर सेवन करने दिल की बीमारी में आराम मिलता है।
13. कपास: एक कप पानी में कपास के 4 फल भिगो दें। 4-5 घंटे बाद इसे उसी पानी में मथ लें। इसमें थोड़ी-सी मिश्री डालकर रोगी को सेवन कराने से लाभ होता है।
14. काले चने: हृदय के रोगियों को काले चने उबालकर उसमें सेंधानमक डालकर खाने से दिल के रोग में लाभ होता है।
15. बथुआ: बथुए की लाल पत्तियों को छांटकर उनका रस लगभग आधा कप निकाल लें। उसमें सेंधा नमक डालकर सेवन करें।
16. बरगद का दूध: बरगद के दूध की 4-5 बूंदे बताशे में डालकर लगभग 40 दिनों तक सेवन करने से हृदय के रोग में लाभ मिलता है।
17. जावित्री: जावित्री 10 ग्राम, दालचीनी 10 ग्राम और अकरकरा 10 ग्राम। तीनों को मिलाकर आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन शहद के साथ सेवन करने से हृदय रोग में लाभ होता है।
18. नीम की जड़: बड़े नीम की जड़ 10 ग्राम, कूट 10 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम तथा कचूर 10 ग्राम को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 4 ग्राम चूर्ण देशी घी में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है। 
19. बिजौरा: पोहकर मूल, बिजौरा, नींबू की जड़, सौंठ, कचूर, तथा हरड़। इन सबको बराबर की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर लुगदी बना लें। इसमें से छोटे बेर के समान लुगदी लेकर सेंधानमक के साथ सेवन करने से दिल की बीमारी में आराम मिलता है।
20. मुनक्का: 5 ग्राम मुनक्का, 2 चम्मच शहद और एक छोटी डली मिश्री तीनों को पीसकर चटनी बना लें। यह चटनी सुबह के समय नाश्ते के बाद सेवन करने आराम मिलता है।
21. पीपला मूल: पीपला मूल और छोटी इलायची का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में देशी घी के साथ चाटने से हृदय रोग का शमन हो जाता है।
22. हींग: हींग, बच, सोंठ, जीरा, कूट, हरड़ चीता, जवाखार, संचर नमक और पोहकर मूल। इन सबको बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण शहद या देशी घी के साथ सेवन करें। इससे दिल की बीमारी में आराम मिलता है।
23. अरबी: हृदय के रोगी को अरबी की सब्जी 25 ग्राम दिन में एक बार रोजाना खाते रहने से हृदय रोग में लाभ होता है।
24. चौलाई: चौलाई की हरी सब्जी का रस पीने से हाई ब्लडप्रेशर में लाभ होता है।
25. कुलथी: कुलथी भिगोये गये पानी को छानकर सुबह-शाम पीने से हाई ब्लडप्रेशर (उच्च रक्तचाप) में लाभ होगा।
26. आलू का रस:
27. मौसमी:
28. सेब: दिल की कमजोरी दूर करने के लिए सेब खाना लाभदायक है।
29. खजूर: खजूर खाने से दमा और सूखी खांसी दूर होती है। इससे शरीर ताकतवर बनता है और हृदय में भी ताकत आती है।
30. गेहूं: गेहूं के नवजात पौधे का रस अल्प मात्रा में नियमित पीने से दमा, खांसी और छाती के कैन्सर तक दूर होते हैं।
31. शलगम: शलगम, बंदगोभी, गाजर और सेम का रस मिलाकर सुबह-शाम 2 सप्ताह तक पीने से हृदय के रोग में लाभ होता है।
32. शहद: हृदय की घबराहट, दुर्बलता आदि जब मालूम हो 1 कप गर्म पानी में 2 चम्मच शहद घोलकर रोजाना 2-3 बार सेवन करने से इन रोगों में लाभ होगा।
33. सौंठ :
34. रूद्राक्ष: हरे एवं ताजे रुद्राक्ष के फलों को लेकर इसका छिलका निकालकर, काढ़ा बना लें। इसे थोड़ी-सी मात्रा में कुछ महीने तक सेवन करने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ होता है।
35. मेथीदाना: सूखे मेथी दाने का प्रयोग हाई ब्लडप्रेशर (उच्च रक्तचाप) में लाभकारी होता है। यह कालेस्ट्राल का स्तर रक्त में घटाता है। जिसके फलस्वरूप उच्च रक्तचाप के रोग से मुक्ति मिलती है।
36. अदरक :
37. हरीतकी:
38. पिप्पली:
39. अर्जुन:
40. एला बीज: एला बीज एवं पिप्पली मूल समभाग में लेकर 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 5 ग्राम घी या 5 ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
41. दालचीनी :
42. दही:
43. राई: हृदय के ढीलेपन में हृदय में कम्पन या वेदना हो, बेचैनी हो, कमजोरी महसूस होती है, तब हाथ-पैरों पर राई के चूर्ण की मालिश करने से रोगी को लाभ होता है।
44. दालचीनी: शहद और दालचीनी समान मात्रा में लेकर 1 चम्मच को नाश्ते में ब्रेड या रोटी से लगाकर प्रतिदिन खाएं। इससे धमनियों का कोलेस्ट्राल कम हो जाता है जिसको एक बार हार्ट अटैक आ चुका है, उनको दुबारा हार्ट अटैक नहीं आता है।
45. धनिया :
46. मौलसिरी: मौलसिरी के फूलों को रात भर आधा किलो पानी में भिगोकर रखें, प्रात:काल 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम 3-6 दिनों तक उस पानी को बच्चे को पिलाने से खांसी मिट जाती है।
47. एल्फाल्फा: एल्फाल्फा में कीटाणुनाशक गुण होते हैं। यह प्राकृतिक क्लोरोफिल होता है। यह हृदय रोगियों के लिए लाभदायक होती है।
48. आंवला :
55. सफेद पेठा: हृदय (दिल) के रोगी को बाईपास सर्जरी कराने से पहले 1 बार पेठा जरूर खाना चाहिए। पेठा एंजाइना का दर्द तुरंत दूर करता है, रुकी हुई धमानियों को खोलता है। हृदय (दिल) के रोगों में पेठे का रस रोजाना 3 बार पीने से लाभ होता है।

रक्तदोष khoon ka dosh

रक्तदोष

1. अजमोदा: अजमोदा के फल का चूर्ण 1 से 4 ग्राम सुबह-शाम रोगी को खिलाने से त्वचा का फटना या त्वचा के फटने की वजह से खून निकलना ठीक हो जाता है।
2. कोकम : कोकम का तेल गर्म करके फटे हुए हाथ-पैरों पर लगाने से वे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
3. करेला :
4. मेथी:
5. चिरायता: एक से दो ग्राम चिरायता का चूर्ण सुबह-शाम शहद या शर्करा के साथ खाने से वातरक्त (त्वचा का फटना) दूर होता है।
6. अन्तमूल: वातरक्त (त्वचा का फटना) में जहां पर त्वचा फटकर खून निकलता हो वहां पर अन्तमूल की जड़ को पीसकर लेप करने से आराम आता है।
7. कटसरैया: कटसरैया के पत्तों को पीसकर शरीर पर लगाने से त्वचा या पैर नहीं फटते हैं।
8. जायफल: बिवाई (फटी एड़ियों) में जायफल को घिसकर लगाने से एड़ियां ठीक हो जाती हैं।
9. दूब :
10. लाभज्जक: ``लाभज्जक´´ के पंचांग (जड़, पत्ती, तना, फल और फूल) का काढ़ा वातरक्त रोग (त्वचा का फटना) में सुबह-शाम रोगी को पिलाने से आराम आता है।
11. गिलोय: वातरक्त (जहां पर त्वचा फटी हो) वहां पर दूध में मिलाकर गर्म किया हुआ गिलोय का तेल लगाने से लाभ होता है।
12. सहोरा: सहोरा (सिहोरा) को दूध फटे हुए हाथ-पैरों पर लगाने से लाभ मिलता है।
13. अखरोट: वातरक्त (त्वचा का फटना) के रोगी को अखरोट की मींगी (बीज) खिलाने से आराम आता है।
14. चालमोंगरा:
15. रस: खून में अम्लता बढ़ने से व्यक्ति बीमार रहने लगता है। फल, सब्जियां क्षार को बढ़ाते हैं। चर्बीयुक्त चीजें चीनी, तेल, अम्लता बढ़ाती हैं। भोजन में फल-सब्जियां अधिक खानी चाहिए। इससे आयु (उम्र) बढ़ती है। बुढ़ापा दूर भागता है। फलों के रस से खून शुद्ध होता है। फलों का रस पीने से बालों की लम्बाई भी बढ़ती है।
16. धनिया: 4 कोंपले नीम, 4 कालीमिर्च, 5 ग्राम धनियां तीनों को लेकर पीसकर रख लें। इस चूर्ण को दिन में 3 बार पानी के साथ लेने से रोगी को पूर्ण आराम मिलता है। रक्त की खराबी धीरे-धीरे दूर हो जाती है। कुछ ही दिनों जब शरीर में शुद्ध रक्त प्रवाहित होने लगता है तो रोगी को सामान्य रूप से आराम आ जाता है।
17. मौसमी: मौसमी का रस खून को साफ करने वाला है और चर्म (त्वचा) के रोगों में लाभकारी है।
18. जौ: सेंके हुए जौ के आटे और मुलेठी को धोए हुए घी में मिलाकर लेप करने से रक्त वात खत्म हो जाता है।
19. चुकन्दर: चुकन्दर का रस खून को साफ करने वाला होता है और शरीर को लालसुर्ख बनाये रखता है।
20. शहद : बकरी के दूध में 8वां हिस्सा शहद में मिलाकर पीने से खून साफ हो जाती है। इसका प्रयोग करते समय नमक और मिर्च का त्याग कर देना आवश्यक है।
21. संतरा: संतरा खून की सफाई करता है।
22. पालक:
23. प्याज: 50 मिलीलीटर प्याज का रस, 10 ग्राम मिश्री और सफेद भुने हुए जीरे को 1 ग्राम की मात्रा में रोजाना खाने से छाजन (खुजली), पामा और खून की खराबी आदि रोग समाप्त हो जाते हैं।
24. नींबू: नींबू को गर्म पानी में मिलाकर रोजाना दिन में 3 बार पीने से खून साफ होता है।
25. पानी: पानी को गर्म करके पीने से खून की सफाई होती है।
26. अमरबेल: 4 ग्राम ताजी बेल का गर्म पानी से घोल बनाकर पीने से पित्त शमन और रक्त शुद्ध होता है।
27. शहतूत: पित्त और रक्त-विकार को दूर करने के लिए गर्मी के समय दोपहर को शहतूत खाने चाहिए।
28. पोदीना: चोट लग जाने से रक्त जमा हो जाने (गुठली-सी बन जाने पर) पुदीना का अर्क (रस) पीने से गुठली पिघल जाती है।
29. शीशम:
30. सौंफ: गर्भाशय की शुद्धि के लिए सौंफ के पत्तों के काढ़े का सेवन करने से लाभ होता है। परन्तु इससे खून भी शुद्ध होता है और खून के विकारों से सुरक्षा होती है।
31. पीपल:
32. अनन्तमूल:
33. नीम:
34. पवांड़ (चक्रमर्द): पवांड़ (चक्रमर्द) की जड़ को धोकर, उसका बारीक चूर्ण बनाकर रोजाना दिन में 4 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम घी और 10 ग्राम चीनी मिलाकर सेवन करने से खून साफ होता है और शरीर को ताकत मिलती है।
35. अंगूर: अंगूर रक्तशोधक भी है। इसमें मौजूद विभिन्न प्रकार के एसिड रक्तशोधन का कार्य करते हैं। कुछ दिन नियमित रूप से अंगूर का रस पीने से शरीर के अन्दर की गरमी दूर हो जाती है और रक्त शुद्ध होता है।
36. अंजीर: 10 मुनक्के और 5 अंजीर 200 मिलीलीटर दूध में उबालकर खा लें। फिर ऊपर से उसी दूध का सेवन करने से रक्तदोष की बीमारी में लाभ होता है।
37. एरण्ड: एक एरण्ड की मींगी, दूध 125 ग्राम, जल 250 मिलीलीटर आदि को मिलाकर उबालें, जब केवल दूध मात्र शेष रह जाए तो इसमें 10 ग्राम खाण्ड या मिश्री डालकर पिला दें, इस प्रकार एक गिरी से शुरू करके, 7 दिनों तक 1-1 गिरी बढ़ाकर घटाये। अन्त में 1 गिरी पर लाने से रक्त के रोग मिटते हैं। यह प्रयोग अत्यंत वात शामक भी है।
38. अरनी :
39. अश्वगंधा: 4 ग्राम चोपचीनी और अश्वगंधा का बारीक पिसा चूर्ण (दोनों बराबर लें) शहद के साथ नियमित सुबह-शाम चाटने से रक्तविकार मिटते हैं।
40. आयापान: शरीर में कहीं भी रक्तस्राव होने पर आयापान की पित्तयों को पीसकर लगाने से तथा पत्ते का रस 10-20 मिलीलीटर की मात्रा का मौखिक रूप से सेवन करने से रक्तस्राव बंद हो जाता है।
41. छाछ: गाय की ताजा, फीकी छाछ पीने से रक्तवाहनियों का रक्त शुद्ध होता है और रस, बल तथा पुष्टि बढ़ती है तथा शरीर की चमक बढ़ जाती है। इससे मन प्रसन्न होता है तथा यह वात, कफ संबन्धी रोग दूर होते हैं।
सावधानी: खून में विकार या खराबी कई कारणों से होती है जैसे नमक का अधिक सेवन करना, खट्टी वस्तुओं का अधिक लेना, बासी भोजन करना। खून की खराबी से हृदय तथा प्लीहा रोग हो सकता है। इस अवस्था में रोगी का मन किसी काम में नहीं लगता है। उसे हर समय सुस्ती घेरे रहती है। कभी-कभी शरीर में फोड़े-फुंसी भी निकल आते हैं। ऐसी अवस्था में रोगी को सर्वप्रथम खट्टी मीठी तथा गरिष्ठ चीजे खाने से परहेज करना चाहिए। खाने में रोटी, दलियां, तोरई, लौकी, टिण्डा, परवल आदि की सब्जियां तथा ताजा पानी लेना चाहिए। सभी खाद्य पदार्थों में नमक की मात्रा घटा देनी चाहिए