हृदय रोग
हृदय को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों का संकरा और सख्त हो जाना ही हृदय रोग का कारण होता है। हृदय की मांसपेशियों को अपना कार्य करने के लिए शुद्ध रक्त की लगातार जरूरत होती है जिसकी आपूर्ति इन धमनियों के द्वारा ही होती है। धमनियों में संकीर्णता या आंशिक अवरोध उत्पन्न हो जाता है। (खासकर रक्त की धमनियों के भीतर चिकनाई की परत-दर-परत जमते जाने और धमनी का भीतरी व्यास के कम हो जाने के कारण उत्पन्न हो जाता है।)परिचय:
लक्षण :
वातज हृदय रोग :
लक्षण :
ज्यादातर शिराओं और धमनियों पर गलत खान-पान, गलत आदतें, काम का अधिक भार पड़ने से कमजोरी और निर्बलता आ जाती है, इससे हृदय को हानि पहुंचती है। इस कारण अनिद्रा (नींद का न आना), हाई और लो ब्लडप्रेशर जैसे रोग हो जाते हैं। ऐसे में मुलहठी काफी लाभदायक होता हैं।
मुलेठी और कुटकी का चूर्ण जल के साथ सेवन करने से हृदय के रोग में लाभ होता है।
दिल (हृदय) में थोड़ा-सा दर्द मालूम होते ही मुलेठी और कुटकी का चूर्ण समान भाग में लेकर लगभग आधा चुटकी चूर्ण गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
लौकी के रस में, 5 पुदीने की पत्तियां और तुलसी की 10 पत्तियों का रस निकाल लें और इस रस को सुबह, दोपहर और रात को भोजन के आधा घंटा बाद लेना चाहिए। पहले 3-4 दिन रस की मात्रा कुछ कम ली जा सकती है। बाद में ठीक से हजम होने पर रोजाना रस की मात्रा 3 बार पूरा 250 मिलीलीटर रस हर बार लें। रस हर बार ताजा लेना चाहिए।
लौकी का रस पेट में जो भी पाचन विकार होते है, उन्हें दूर करके मल के द्वारा बाहर निकाल देता है, जिसके कारण शुरुआत में पेट में कुछ खलबली, गड़गड़ाहट आदि महसूस होती है, जो कि एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। इससे घबराना नहीं चाहिए। 3-4 दिन में पेट के विकार दूर होकर सामान्य स्थिति हो जाती है। इसे नियमित 2-3 महीने आवश्यकतानुसार लेने से हृदय रोगी ठीक होने लगता है। और बाईपास सर्जरी कराने की जरूरत नहीं पड़ती।
4. गुलाबजल: गुलाब जल में थोड़े-से गुलाब के फूल और 100 ग्राम हरा धनिया पीसकर चटनी के रूप में सेवन करने से दिल के रोग में लाभ होता हैं।
5. अजवायन: यदि दिल की कमजोरी के कारण छाती में दर्द होता हो, तो 1 चम्मच अजवाइन को 2 कप पानी में उबालें। आधा कप पानी बचा रहने पर काढ़े को छानकर रात के समय इस काढ़े को रोजाना 40 दिनों तक सेवन करें और ऊपर से आंवले का मुरब्बा खाएं। यह हृदय रोग को दूर करने में लाभकारी है।
6. करौंदा: करौंदा हृदय रोग को दूर करने में बहुत उपयोगी है। करौंदे की सब्जी मीठा डालकर या मुरब्बा खाना बहुत लाभदायक है।
7. गाय का दूध : हृदय रोगी को गाय का दूध व घी फायदेमंद हैं भोजन में इसका प्रयोग रोजाना सेवन करना भी लाभकारी होता हैं।
8. लहसुन :
यदि यह शंका हो कि अमुक समय हृदय में दर्द शुरू हो सकता है, तो लहसुन की 4 कलियां चबाकर खा जायें।
हृदय की गति रुकने की संभावना होते ही 3-4 लहसुन की कलियों को तुरंत चबा लेने से हार्टफेल नहीं होता। इसके पश्चात् इसे दूध में उबालकर देने से काफी लाभ होता है और लहसुन को पीसकर दूध में पीने से ब्लडप्रेशर में भी लाभ होता है। लहसुन हृदय रोगी के लिए अति उत्तम प्रकृति प्रदत्त औषधि है।
10. लीची का रस: गर्मी के मौसम में आधा कप लीची का रस रोज पीने से हृदय को काफी बल मिलता है।
11. खूबानी का रस: खूबानी का रस 4 चम्मच पानी में डालकर रोजाना रोगी को पिलायें।
12. इमली: पकी हुई इमली का घोल 2 चम्मच और थोड़ी-सी मिश्री, दोनों को मिलाकर सेवन करने दिल की बीमारी में आराम मिलता है।
13. कपास: एक कप पानी में कपास के 4 फल भिगो दें। 4-5 घंटे बाद इसे उसी पानी में मथ लें। इसमें थोड़ी-सी मिश्री डालकर रोगी को सेवन कराने से लाभ होता है।
14. काले चने: हृदय के रोगियों को काले चने उबालकर उसमें सेंधानमक डालकर खाने से दिल के रोग में लाभ होता है।
15. बथुआ: बथुए की लाल पत्तियों को छांटकर उनका रस लगभग आधा कप निकाल लें। उसमें सेंधा नमक डालकर सेवन करें।
16. बरगद का दूध: बरगद के दूध की 4-5 बूंदे बताशे में डालकर लगभग 40 दिनों तक सेवन करने से हृदय के रोग में लाभ मिलता है।
17. जावित्री: जावित्री 10 ग्राम, दालचीनी 10 ग्राम और अकरकरा 10 ग्राम। तीनों को मिलाकर आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन शहद के साथ सेवन करने से हृदय रोग में लाभ होता है।
18. नीम की जड़: बड़े नीम की जड़ 10 ग्राम, कूट 10 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम तथा कचूर 10 ग्राम को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 4 ग्राम चूर्ण देशी घी में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
19. बिजौरा: पोहकर मूल, बिजौरा, नींबू की जड़, सौंठ, कचूर, तथा हरड़। इन सबको बराबर की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर लुगदी बना लें। इसमें से छोटे बेर के समान लुगदी लेकर सेंधानमक के साथ सेवन करने से दिल की बीमारी में आराम मिलता है।
20. मुनक्का: 5 ग्राम मुनक्का, 2 चम्मच शहद और एक छोटी डली मिश्री तीनों को पीसकर चटनी बना लें। यह चटनी सुबह के समय नाश्ते के बाद सेवन करने आराम मिलता है।
21. पीपला मूल: पीपला मूल और छोटी इलायची का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में देशी घी के साथ चाटने से हृदय रोग का शमन हो जाता है।
22. हींग: हींग, बच, सोंठ, जीरा, कूट, हरड़ चीता, जवाखार, संचर नमक और पोहकर मूल। इन सबको बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण शहद या देशी घी के साथ सेवन करें। इससे दिल की बीमारी में आराम मिलता है।
23. अरबी: हृदय के रोगी को अरबी की सब्जी 25 ग्राम दिन में एक बार रोजाना खाते रहने से हृदय रोग में लाभ होता है।
24. चौलाई: चौलाई की हरी सब्जी का रस पीने से हाई ब्लडप्रेशर में लाभ होता है।
25. कुलथी: कुलथी भिगोये गये पानी को छानकर सुबह-शाम पीने से हाई ब्लडप्रेशर (उच्च रक्तचाप) में लाभ होगा।
26. आलू का रस:
मौसमी शक्तिवर्द्धक और हृदय रोगनाशक है। इसका रस नियमित सेवन करने से रक्त में एकत्रित कोलैस्ट्राल नामक दूषित पदार्थ जो हार्टफेल में सहायक होता है, निकल जाता है और रक्त तथा हृदय संस्थान काफी शक्तिशाली हो जाता है।
मौसमी के निरन्तर प्रयोग से खून वाहिनियां कोमल और लचकीली हो जाती हैं। उनमें कोलैस्ट्राल (विषैला पदार्थ जो हृदय को फेल करने में सहायक है) शरीर से निकल जाता है और शरीर में ताजा खून, विटामिन और आवश्यक खनिज लवण पहुंचा देता है। हृदय और खून-संस्थान, खून वाहिनियों और कैपलरीज को शक्तिशाली बनाने में मौसमी का इस्तेमाल किया जाता है।
आधा कप मौसमी का रस सुबह के नाश्ते के बाद रोज सेवन करें। यह हृदय के रोग में लाभदायक है।
29. खजूर: खजूर खाने से दमा और सूखी खांसी दूर होती है। इससे शरीर ताकतवर बनता है और हृदय में भी ताकत आती है।
30. गेहूं: गेहूं के नवजात पौधे का रस अल्प मात्रा में नियमित पीने से दमा, खांसी और छाती के कैन्सर तक दूर होते हैं।
31. शलगम: शलगम, बंदगोभी, गाजर और सेम का रस मिलाकर सुबह-शाम 2 सप्ताह तक पीने से हृदय के रोग में लाभ होता है।
32. शहद: हृदय की घबराहट, दुर्बलता आदि जब मालूम हो 1 कप गर्म पानी में 2 चम्मच शहद घोलकर रोजाना 2-3 बार सेवन करने से इन रोगों में लाभ होगा।
33. सौंठ :
35. मेथीदाना: सूखे मेथी दाने का प्रयोग हाई ब्लडप्रेशर (उच्च रक्तचाप) में लाभकारी होता है। यह कालेस्ट्राल का स्तर रक्त में घटाता है। जिसके फलस्वरूप उच्च रक्तचाप के रोग से मुक्ति मिलती है।
36. अदरक :
हरीतकी फल मज्जा और वचा प्रकन्द समान मात्रा में मिलाकर 1 ग्राम चूर्ण को 4 से 6 ग्राम शहद के साथ दिन में 2 बार सुबह-शाम सेवन करने से दिल के रोग में आराम मिलता है।
हरीतकी फल मज्जा, वचा प्रकन्द, रास्ना मूल, शटी, पुष्करमूल, पिप्पलीफल व शुंठी समभाग मिलाकर 3 से 6 ग्राम चूर्ण, 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से लाभ होगा।
हरीतकी फल मज्जा, त्रिवृत्, शटी, बला, पुष्कर मूल व शुंठी एक समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 2 से 4 ग्राम की मात्रा में 7 से 14 मिलीलीटर गौमूत्र या 50 मिलीलीटर गर्म पानी के साथ दिन में दो बार लेना चाहिए।
पिप्पली फल, एला बीज, वचा, घी में भुना हुआ हींग, यवक्षार, सेंधानमक, संचर नमक, शुंठी एवं अजमोद फल को एक समान मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को एक से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर दाड़िम या बिजौरा या नारंगी के रस या उपयुक्त शहद के साथ दिन में दो बार सेवन करें।
15 मिलीलीटर से 30 मिलीलीटर शुंठी का काढ़ा 5 ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
6 से 12 मिलीलीटर तिल का तेल और एक ग्राम नमक को 15 से 30 मिलीलिटर दशमूल के काढे़ के साथ सुबह-शाम सेवन करना हृदय रोग में लाभकारी होता है।
अर्जुन की छाल 10 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम और मुलेठी 10 ग्राम तीनों को एक साथ, लगभग 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर दिल के रोगी को सेवन कराने से लाभ होता है।
अर्जुन की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से हृदय की धड़कन, हार्टफेल और घबराहट आदि विभिन्न हृदय रोगों में लाभ मिलता है।
अर्जुन की छाल और गुड़ को दूध में औटाकर पिलाना चाहिए।
3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से हृदय की बीमारी में लाभ होता है।
10 ग्राम अर्जुन छाल, 40 मिलीलीटर दूध व 160 मिलीलीटर पानी मिलाकर तब तक उबालें जब तक वह चौथाई न रह जाये। इस दूध की 100 से 250 मिलीलीटर मात्रा 5 से 10 ग्राम शर्करा के साथ दिन में 2 बार लेने से हृदय के रोग में लाभ होगा।
अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई निकाले एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय को बल मिलता है और कमजोरी दूर होती है। हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।
हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे, तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है। आवश्यक होने पर यही प्रयोग बार-बार दोहराया जा सकता है।
हृदयाघात, हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।
अर्जुन की छाल के सेवन से हृदय को आवश्यक रक्त पहुंचता है, हृदय के संकोचन, विकास और आराम की क्रियाओं में वृद्धि होती है, हृदय को बल मिलता है। इसके सेवन से सारे शरीर में रक्त का संचरण ठीक होता है। यह शरीर में व्याप्त विषों को मूत्र की मात्रा बढ़ाकर बाहर निकाल देता है। अर्जुन के सेवन से रक्त-वाहिनियां और सूक्ष्म कोशिकाओं का आकुंचन होकर रक्त का दबाव बढ़ता है, पोषण होता है, धड़कन सुचारू रूप से कार्य करती है। बढ़ी हुई धड़कन की संख्या कम होती है। एक चम्मच अर्जुन की छाल का दो कप पानी और इतना ही दूध में काढ़ा बनाकर पीने से हृदय रोगों में लाभ होता है। इसी काढ़े से स्वप्नदोष एवं ज्वर के पश्चात् होने वाली कमजोरी में लाभ होता है। हृदय की मांसपेशियों को बल मिलता है। खांसी, पसली का दर्द, अपच में लाभ होता है। यह रक्तशोधक भी है। काढ़े में स्वाद के लिए गुड़ या चीनी मिला सकते हैं।
अर्जुन की छाल का चूर्ण एक-एक चम्मच सुबह-शाम दूध या ताजे पानी के साथ लें। आप इसे निरन्तर प्रयोग कर सकते हैं। आप देखेंगे कि कुछ समय बाद ही आप हृदय रोग से मुक्ति हो गये हैं।
एक अन्य विधि के अनुसार अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा। अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने-आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।
गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें गुलाबी हो जाने पर अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 मिलीलीटर डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।
गेहूं और अर्जुन की छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चाटने से अति उग्र हृदय रोग मिटता है।
हृदय की शिथिलता में एवं उसमें उत्पन्न सूजन में इसकी छाल का चूर्ण 6 से 10 ग्राम तक गुड़ और दूध के साथ पकाकर और छानकर पिलाने से रक्त लसीका का पानी रक्त वाहिनियों में नहीं भर पाता, फलत: सूजन का बढ़ना रुक जाता है जिससे हृदय की शिथिलता दूर हो जाती है।
हार्ट अटैक होने पर 40 मिलीलीटर काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। यह अनुपम हृदय शक्तिवर्धक है। पूर्ण लाभ के लिए गाय के दूध में काढ़ा बना लेना आवश्यक है। इसके सेवन से दिल की धड़कन तेज होना, हृदय में पीड़ा (एन्जाइना) घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।
हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। इसे सरबिट्रेट गोली के स्थान पर प्रयोग करने पर उतना ही लाभकारी पाया गया। हृदय के अधिक धड़कने और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरंत शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है तथा एलोपैथी की प्रसिद्ध दवा डिजीटेलिस से भी अधिक लाभप्रद है।
एक ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण, 100 से 250 मिलीलीटर गर्म दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से हृदय के रोग में आराम मिलता है।
1 से 3 ग्राम नागबला चूर्ण, 100 से 250 मिलीलीटर गर्म दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से लाभ होगा।
1 ग्राम पुष्करमूल चूर्ण, 4 से 6 ग्राम शहद के साथ दिन में 2 बार लेने से दिल के रोग में आराम मिलता है।
41. दालचीनी :
एरण्ड तेल में भुनी हुई हरीतकी फल मज्जा 20 ग्राम, सेंधानमक 10 ग्राम, सफेद जीरा 10 ग्राम, मिलाकर 2 से 6 ग्राम की मात्रा, 5 से 10 ग्राम शर्करा के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से दिल की बीमारी में आराम मिलता है।
50 ग्राम हरीतकी फल मज्जा, 100 ग्राम काला नमक, 500 ग्राम घी, 2 लीटर पानी में तब तक मंद आंच पर उबालें जब तक 500 मिलीलीटर शेष न रह जाये। इसे 12 से 24 मिलीलीटर की मात्रा में 50 ग्राम शर्करा के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
उच्च रक्तदाब, मोटापा और गुर्दे की बीमारियों में भी दही खाने से बहुत लाभ होता है।
दही हृदय रोग (दिल का रोग) की रोकथाम के लिए बहुत अच्छा है। दही खून में बनने वाले कोलेस्ट्राल नामक घातक पदार्थ को मिटाने की ताकत रखता है। कोलेस्ट्राल नामक सख्त पदार्थ रक्त शिराओं में जमकर रक्त प्रवाह (खून को चलने) से रोकता है और उससे ओटोर ओस क्लीरोसिस नामक हृदय रोग (दिल का रोग) होता है। चिकने पदार्थ खाने वाले इसी के शिकार हो जाते हैं। अत: दही का प्रयोग बहुत ही उत्तम होता है।
44. दालचीनी: शहद और दालचीनी समान मात्रा में लेकर 1 चम्मच को नाश्ते में ब्रेड या रोटी से लगाकर प्रतिदिन खाएं। इससे धमनियों का कोलेस्ट्राल कम हो जाता है जिसको एक बार हार्ट अटैक आ चुका है, उनको दुबारा हार्ट अटैक नहीं आता है।
45. धनिया :
जिगर में कभी-कभी ठण्डी और कभी गर्म चीजें खाने के कारण हल्की गर्मी का प्रकोप हो जाता है। इसमें रोगी को विशेष कष्ट तो नहीं होता परन्तु खून में खराबी उत्पन्न हो जाने के कारण रोगी का शरीर निस्तेज होता है। ध्यान रहे कि ऐसी दशा में रोगी को हल्की और पाचक वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। इसके लिए मसालेदान की औषधि भी हमारी सहायता कर सकती है। थोड़ा सा सूखा धनिया लेकर भूनकर फिर उसे चूर्ण के रूप में तैयार कर लें। इस चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से जिगर की गर्मी दूर हो जाती है।
धनिया, सौंफ, छोटी इलायची के दाने तथा तबाशीर समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार खाना खाने के बाद लें।
धनिया 6 ग्राम और 10 ग्राम किशमिश को रात को पानी में गलने के लिए डाल दें। इसे पीस-छानकर सुबह खुराक के रूप में पीने से दिल की धड़कन में काफी लाभ होगा।
47. एल्फाल्फा: एल्फाल्फा में कीटाणुनाशक गुण होते हैं। यह प्राकृतिक क्लोरोफिल होता है। यह हृदय रोगियों के लिए लाभदायक होती है।
48. आंवला :
पिसा हुआ आंवला गाय के दूध के साथ पीने से हृदय के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
सूखा आंवला और मिश्री समान भाग पीस लें। इसकी एक चाय की चम्मच की फंकी रोजाना पानी के साथ लेने से हृदय के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
आंवले का मुरब्बा दूध से लेने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है व किसी भी प्रकार के हृदय-विकार नहीं होते हैं।
हृदय में दर्द शुरू होने पर आंवले के मुरब्बे में 3-4 अमृतधारा की बूंदे डालकर सेवन करें।
भोजन करने के बाद हरे आंवले का 25-30 मिलीलीटर रस ताजे पानी के साथ रोगी को पिलायें।
एक चम्मच सूखे आंवले का चूर्ण फांककर ऊपर से लगभग 250 मिलीलीटर दूध पी लें।
आंवले में विटामिन-सी अधिक है। इसके मुरब्बे में अण्डे से भी अधिक शक्ति है। यह अत्यधिक शक्ति एवं सौन्दर्यवर्द्धक है। आंवले के नियमित सेवन से हृदय की धड़कन, नींद का आना रक्तचाप आदि रोग ठीक हो जाते हैं। रोज एक मुरब्बा गाय के दूध के साथ लेने से हृदय रोग दूर रहता है। हरे आंवलों का रस शहद के साथ, आंवलों की चटनी और सूखे आंवला की फंकी तालमिश्री के साथ लेना समस्त हृदय रोग में लाभकारी है।
हृदय की अनियमित गति, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) के रोग में 1 चम्मच पान का रस में 1 चम्मच मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की गति नियन्त्रित होकर, रक्तचाप कम हो जाता है।
हृदय की कमजोरी तथा हृदय के रोग की हालत में पान का प्रयोग लाभदायक है। होम्योपैथिक औषधि डिजिटैलिस के स्थान पर इसका प्रयोग कर सकते हैं।
पान का शर्बत पीने से हृदय का बल बढ़ता है, कफ और मंदाग्नि (भूख कम लगने का रोग) मिटता है।
अर्जुन की छाल और अकरकरा का चूर्ण दोनों को बराबर मिलाकर पीसकर दिन में 2 बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, हृदय की धड़कन, पीड़ा, कम्पन और कमजोरी में लाभ होता है।
कुलंजन, सौंठ और अकरकरा की लगभग 1 ग्राम के चौथे भाग की मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर चतुर्थाश काढ़ा पिलाने से हृदय रोग मिटता है।
अमरूद के फलों के बीजों को निकालकर बारीक-बारीक पीसकर शक्कर के साथ धीमी आंच पर बनाई हुई चटनी हृदय के लिए अत्यंत हितकारी होती है तथा कब्ज दूर करती है।
अमरूद को कुचलकर उसका आधा कप रस निकाल लें। उसमें थोड़ा-सा नींबू का रस डालकर पी जाएं।
इसमें विटामिन-सी है। यह हृदय में नई शक्ति देकर शरीर में स्फूर्ति पैदा करता है। ध्यान रहे कि इसे दमा व खांसी वाले रोगी को न खिलायें।
अनार के ताजे पत्तों के 10 मिलीलीटर रस को 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर सुबह-शाम पीने से हृदय की तेज धड़कन में बहुत लाभ होता है।
अनार का रस उच्च रक्तचाप कम करता है। यह धमनियों के सिकुड़ने को कम करता है और खराब कोलेस्ट्रॉल के कॉक्सीडेशन को भी कम करता है। रोज अनार का रस पीने से बाईपास सर्जरी से भी बचा जा सकता है।
अनार का शर्बत 20-25 मिलीलीटर का नित्य सेवन करें। इससे हृदय के रोग नष्ट हो जाते हैं।
छाया में सुखाये हुए अनार के महीन पत्तों के चूर्ण को ताजे पानी के साथ सेवन करने से हृदय के रोग तथा दाद, चंबल (सोरायसिस) जैसे रक्तविकार, कुष्ठ, प्रमेह, दिल की धड़कन, नासूर, क्षत, पित्तज्वर, वातकफज्वर में गर्म पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
चीनी के शर्बत में अनारदाने का रस मिलाकर सेवन करें। यह शर्बत हृदय की जलन, आमाशय की जलन, घबराहट और मूर्च्छा आदि को दूर करता है।
परवल पाचक, हृदय के लिए हितकारी, वीर्यवर्धक (धातु को बढ़ाने वाला), हल्के, अग्निप्रदीपक (भूख को बढ़ाने वाला), चिकना और गर्म है। यह खांसी, रक्तविकार (खून के रोग), बुखार, कृमि (कीड़े) और त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) नाशक है।
परवल के पत्ते, इलायची के दाने और पीपलामूल। तीनों को समान मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय देशी घी के साथ हृदय के रोग में सेवन करने से रोगी को लाभ होता है।
पपीते के पत्तों का काढ़ा दिल के रोग में बहुत ही उपयोगी है। इससे घबराहट कम होती है। बुखार, दिल के कमजोर होने और नाड़ी के अधिक तेज होने पर भी पपीते के पत्तों का काढ़ा सेवन करने से नाड़ी की गति कम होती है और बुखार कम होता है।
पपीते के पत्ते को पानी में उबालकर उसके पानी को छानकर पियें। यह हृदय रोग में लाभदायक है।
यदि हृदय में दर्द हो तो मुनक्का की लुगदी 30 ग्राम, शहद 10 ग्राम और लौंग 5 ग्राम आदि को मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से दिल के रोग में आराम मिलता है।
रोगी यदि अंगूर खाकर ही रहे तो हृदयरोग शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं। जब हृदय में दर्द हो और धड़कन अधिक हो तो अंगूर का रस पीने से दर्द बंद हो जाता है और धड़कन सामान्य हो जाती है। थोड़ी ही देर में रोगी को आराम आ जाता है। तथा रोग की आपात स्थिति दूर हो जाती है।
यदि हृदय में दर्द महसूस हो तो आधा कप अंगूर का रस सेवन करें।
सोयाबीन में 20 से 22 प्रतिशत वसा पाई जाती है। सोयाबीन की वसा में 85 प्रतिशत असंतृप्त वसीय अम्ल होते हैं, जो दिल के रोगियों के लिये फायदेमंद है। इसमें श्लेसीथिनश नामक पदार्थ होता है। जो दिल की नलियों के लिये आवश्यक है। यह कोलेस्ट्रांल को दिल की नलियों में जमने से रोकता है।
सोयाबीन खून में कोलेस्ट्रांल की मात्रा को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए यह दिल के रोगियों के लिए फायदेमंद है। ज्यादातर दिल के रोगों में खून में कुछ प्रकार की वसा बढ़ जाती है, जैसे-ट्रायग्लिसरॉइड्स, कोलेस्ट्रॉल और एलडीएल, जबकि फायदेमंद वसा यानी एचडीएल कम हो जाता है। सोयाबीन में वसा की बनावट ऐसी है कि उसमें 15 प्रतिशत संतृप्त वसा, 25 प्रतिशत मोनो संतृप्त वसा और 60 प्रतिशत पॉली असंतृप्त वसा है। खासकर 2 वसा अम्ल, जो सोयाबीन में पाये जाते हैं। यह हृदय के लिए काफी उपयोगी होते हैं। सोयाबीन का प्रोटीन कोलेस्ट्राल एवं एलडीएल कम रखने में सहायक है। साथ ही साथ लाभप्रद कोलेस्ट्रॉल एचडीएल भी बढ़ाता है।
इलायची के दाने, पीपरामूल और पटोलपत्र बराबर मात्रा में लेकर यह चूर्ण बनाकर रख लें। इस बने चूर्ण को 1 से 3 ग्राम की मात्रा में शुद्ध घी के साथ चाटने से कफ के कारण उत्पन्न हृदय रोग व हृदय का दर्द दूर हो जाता है।
पीपरामूल और इलायची के दानों को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें और शहद अथवा गाय के घी के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे हृदय के रोग दूर रहेंगे।