तुलसी में जल डालना, नदी में सिक्का फेंकना, पीपल में जल डालना, हाथ जोड़ कर नमस्कार करने का अर्थ क्या है

हमारे देश में प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों द्वारा कुछ नियमों का पालन करने हेतु विशेष बल दिया जाता रहा है। जिसे तुलसी के पौधे को प्रतिदिन जल देना, दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करना, पीपल के पेड़ में जल डालना, नदी में सिक्का फेंकना, सूर्य नमस्कार करना इत्यादि। ये परंपराएँ (traditions) लोगों को डराने के लिए नहीं गड़ी गई थी। जो लोग आज भी ऐसा सोचते हैं उन्हें इन परंपराओं के पीछे निहित वैज्ञानिक महत्व को जानने समझने की जरूरत है। इन सभी मान्यताओं के पीछे कई सारे वैज्ञानिक कारण निहित है, जो मानसिक एवं शारीरिक स्वस्थ पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। आज सम्पूर्ण विश्व हमारी इन परंपराओं में निहित वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्वीकार कर चुका है। 

तुलसी के पौधे (Tulsi plant) में जल डालना
Importance of religious traditions
हम अक्सर घरों के आँगन में एक तुलसी का पौधा देखते हैं। जिसे प्रतिदिन सुबह हमारी माताएँ जल चढ़ती है। तुलसी का पौधा एक एंटीबायोटिक मेडिसिन होता है। इस के सेवन से शरीर के प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। बीमारियां दूर भागती हैं और शारीरिक द्रव्य का संतुलन बना रहता है। इसके अलावा तुलसी का पौधा अगर घर में हो तो घर में मच्छर मक्खी सांप आदि के आने का खतरा नहीं होता। 

पीपल में जल डालना

पीपल का पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन करता है, जहां अन्य पेड़-पौधे रात के समय में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं, वहीँ पीपल का पेड़ रात में भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मुक्त करता है। इसी वजह से बड़े बुजुर्गों ने इसके संरक्षण पर विशेष बल दिया है। पुराने जमाने में लोग रात के समय पीपल के पेड़ के नजदीक जाने से मना करते थे। उनके अनुसार पीपल में बुरी आत्माओं का वास होता है, जबकि सच तो यह है कि आक्सीजन की अधिकता के कारण मनुष्य को दम घुटने का एहसास होता है।

दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करना

हमारे देश में समान्यतः जब हम किसी से मिलते हैं तो हम अपने दोनों हाथों को जोड़ कर नमस्ते कहते हैं, जिसका अर्थ है कि हम सामने वाले व्यक्ति को आदर दे रहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इस मुद्रा में हमारी उंगलियों के शिरोबिंदुओं (टिप्स) का मिलान होता है। यहां पर आंख, कान, और मस्तिष्क के प्रेशर पॉइंट्स होते हैं। दोनों हाथ जोड़ने के क्रम में इन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है । इससे संवेदी चक्र प्रभावित होते हैं। जिसकी वजह से हम उस व्यक्ति को अधिक समय तक याद रख पाते हैं साथ ही किसी तरह का शारीरिक संपर्क ना होने से कीटाणुओं के संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता। 
नदी में सिक्का फेंकना

पुराने जमाने में ऐसा करने का मतलब अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना होता था। उस समय तांबे यह चांदी के सिक्कों का चलन था वैज्ञानिक दृष्टि से तांबा या चांदी हमारे शरीर के लिए लाभदायक धातु है। इस परंपरा का मूल उद्देश्य जल में इन धातुओं की मात्रा को बढ़ाना या बनाए रखना था। जो लोग अब भी ऐसा करते हैं उन्हें यह जानना चाहिए कि आजकल स्टेनलेस स्टील के सिक्कों का प्रचलन है। इन में कई तरह के अन्य रासायनिक धातु मिक्स होते हैं। यह स्वस्थ की दृष्टि से हानिकारक हैं इसलिए अब ऐसा करना उचित नहीं है।

सूर्य नमस्कार

प्राचीन वेदों एवं शास्त्रों में सूर्य को ब्रमांड की समस्त उर्जा का प्रतीक माना गया है। हिंदू मान्यता अनुसार सुबह सवेरे सूर्य की दिशा में मुंह करके जल अर्पित करने की क्रिया को महत्वपूर्ण माना गया है। प्रातःकाल इन सूर्य की किरणें हमारी आंखों और हमारे शरीर के उर्जा चक्र को सक्रिय करने में सहायक होती है। 

चटपटा फिश टिक्का कैसे बनाये

चटपटा फिश टिक्का (How to make Chatpata Fish Tikka in hindi)

सामग्री: 500 ग्राम बोनलेस फिश (पीसेस में कटी हुई), 45 मिली क्रीम चीज, 1 टेबलस्पून अजवाइन, 1 टेबलस्पून लहसुन का पेस्ट, 2 टीस्पून जीरा पाउडर, 2 टीस्पून गरम मसाला, 30 मिली निम्बू का रस, 20 ग्राम बेसन, 60 ग्राम दही, 30 ग्राम करीपत्ता (तले और क्रश किये हुए), 150 मिली सरसों का तेल, 1/2 टीस्पून वाइट पेपर पाउडर, थोड़ा-सा बटर और स्वादानुसार नमक। 

बनाने की विधि:  दही, क्रीम चीज, लहसुन का पेस्ट, अजवाइन, जीरा पाउडर, गरम मसाला, नींबू का रस, नमक और बेसन को एक साथ मिलाकर मेरिनेशन का मिश्रण तैयार कर लें। फिर इसमें करीपत्ता,  सरसों का तेल और वाइट पेपर पाउडर मिलाकर इस फिश को इस मिश्रण में 4-6 घंटे तक मेरीनेट करें । अब इसे अवन मैं रखकर 12 से 15 मिनट सुनहरा होने तक पकाएं। बीच-बीच में बटर लगाते रहे। फिश टिक्का तैयार होने पर गरमा-गरम परोसे।