नीम, निर्गुण्डी और करंज को पीसकर इसका लेप करने से फुंसियों को फैलाने वाले जो जीवाणु होते हैं वे समाप्त हो जाते हैं और फुंसिया ठीक हो जाती हैं।
नहाते समय नीम को पानी में मिलाकर नहाने से त्वचा के सारे रोग मिट जाते हैं।
नीम की 8 से 10 कोंपलें (नये पत्ते) खाली पेट खाने से और नीम के पानी से नहाने से त्वचा रोगों के जीवाणु समाप्त हो जाते हैं।
नीम की छाल को पीसकर फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
100 साल पुराने नीम के पेड़ की सूखी छाल को बारीक पीस लें, रात को सोने से पहले 3 ग्राम बने इस चूर्ण को पानी में भिगो दें। सुबह उठकर इसे शहद के साथ मिलाकर पिलाने से छाजन, दाद, खुजली, फोड़ा, फुंसी, उपदंश के रोगों में आराम मिलता है।
नीम के पत्तों के रस की पट्टी को बांधने से और बदलते रहने से त्वचा के घाव ठीक हो जाते हैं।
शरीर में गीली छाजन होने पर नीम के 8-10 पत्तों को पीसकर बांधने से आराम मिलता है।
नीम के पत्तों की 5 से 10 ग्राम राख को लगाने से त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं।
10 ग्राम नीम की छाल, मंजिष्ठादि क्वाथ (काढ़ा), पीपल की छाल और नीम गिलोय को मिलाकर काढ़ा बना लें, इसको रोजाना 1 महीने तक 10-20 ग्राम की खुराक में सुबह और शाम रोगी को पिलाने से एक्जिमा (छाजन) में लाभ मिलता है।
नीम के तेल को शहद के साथ मिलाकर उसमें बत्ती को भिगोकर कान में रखने से कान से मवाद का आना बन्द हो जाता है।
पुराने नीम की सूखी लकड़ी को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से त्वचा के रोगों में आराम मिलता है।
10 मिलीलीटर नीम के पत्ते के रस को शहद के साथ रोजाना 2 बार रोगी को देने से त्वचा के कई रोग ठीक हो जाते हैं।
नीम के पत्तों की पोटली से त्वचा की सिंकाई करके नीम के पानी से नहाना चाहिए और फिर नीम के पत्तों को जलाकर उसकी राख को लगाना चाहिए। इससे त्वचा मुलायम हो जाती है।
नीम की निबौली से निकले हुए तेल को लगाने से खून की खराबी से शरीर पर पड़े हुए दागों में बहुत आराम आता है।
नीम के पत्ते और बेर के पत्तों को पीसकर नासूर और फोड़े पर लगाने से लाभ होता है।
फोड़े या नासूर में से ज्यादा मवाद बहने पर नीम की छाल की राख लगाने से लाभ होता है।
नीम के पत्तों को पीसकर छोटी-छोटी टिकिया बना लें और इसे कम आग पर घी में तल लें। टिकियों को तलने के बाद बाहर निकालकर बचे हुए घी में उतना ही मोम डालकर किसी बर्तन में ठंड़ा कर लें। इसे लगाने से फटे हुए हाथ पैर ठीक हो जाते हैं।
100 ग्राम नीम के पत्ते, 200 ग्राम कनेर के पत्ते और 80 ग्राम बकायन को मिलाकर पीस लें और इसकी टिकिया बना लें। फिर आधा किलो मीठा तेल और 130 ग्राम मोम कड़ाही में डाल लें और इसके अन्दर पहले से बनायी हुई टिकिया भी डालकर आग पर पकाने के लिये रख दें। जब टिकिया जल जाये तो उसे छानकर बोतल में भर लें। यह तेल जख्म को भरने के लिये बहुत ही ज्यादा लाभकारी है।
175 ग्राम नीम के पत्तों को पानी डाले बिना पीसकर लेप बना लें। 1 तांबे के बर्तन में लगभग 90 मिलीलीटर सरसों का तेल डालकर गर्म कर लें। जब गर्म करते हुए इस तेल में धुंआ उठने लगे तो यह लेप इसमें डाल दें। जब लेप तेल में जलकर काला पड़ जाये तो इसे उतारकर ठंड़ा होने दें। फिर इसमें कपूर और थोड़ा सा पीला मोम डालकर पीस लें। खून के खराब होने की वजह से होने वाले फोड़े-फुंसी, दाद, त्वचा पर पपड़ी जमना, फुंसी के जख्म हो जाने पर इस लेप को लगाने से जल्दी लाभ होता है।
गर्मियां जब शुरू हो तो 30 ग्राम नीम की कोंपले (नयी पत्तियां) को पीसकर पानी में मिलाकर रोजाना पीने से फोड़े-फुन्सी, दाद, खुजली, खून के रोग और वात (गैस) पित्त (गर्मी) और बलगम को समाप्त करता है। अगर फोड़ा फूट जाने पर मवाद बह रहा हो तो नीम के पत्तों को पीसकर शहद में मिलाकर लगाने से लाभ होता है।
दूध, हरड़, सेंधानमक, चकबड़ और वनतुलसी को बराबर मात्रा में लेकर कांजी में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को दाद, खाज और खुजली पर लगाने से लाभ होता है।
हरड़, बायविडंग, सेंधानमक, बावची के बीज, सरसों, करंज और हल्दी को बराबर मात्रा में लेकर गाय के पेशाब के साथ मिलाकर पीसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) रोग समाप्त हो जाता है।
हरड़, मुण्डी, कचनार की छाल और विजयसार का काढ़ा बराबर मात्रा में लेकर उसमें शहद मिलाकर पीने से गले की गांठों में लाभ होता है।
हरड़, बहेड़ा, आंवला, पद्याख, खस, लाजवन्ती, कनेर की जड़ और अनन्त-मूल का लेप करने से कफज-विसर्प रोग ठीक हो जाता है।
चकबड़ और हरड़ को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से दाद कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।
10-10 ग्राम पीपल, गूलर, बेल, लाल चंदन, सफेद चंदन, बरगद, बेंत और गेरू को एकसाथ मिलाकर पीस लें। फिर उसे देसी घी में मिलाकर शरीर में जहां पर दाद, खुजली, फुंसिया हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।
पीपल के पत्तों को पानी में उबालकर उसके पानी से नहाने से त्वचा के अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
पीपल की कोमल कोपलें (मुलायम पत्तियां) खाने से खुजली और त्वचा पर फैलने वाले चर्मरोग (त्वचा के रोग) दूर हो जाते हैं। इसका 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पीने से भी यही लाभ होता है।
पीपल की छाल को कपडे़ में छानकर चूर्ण बनाकर रख लें। अगर छाजन सूखी हो तो नारियल के तेल में चूर्ण मिलाकर उस पर लगायें। अगर गीली छाजन हो तो उस पर इस चूर्ण को पाउडर की तरह छिड़कने से लाभ होता है।
पीपल की छाल का चूर्ण लगाने से मवाद निकलने वाला फोड़ा जल्दी ठीक हो जाता है।
3-4 पीपल की कोपलों (मुलायम पत्ते) को लगातार 1 हफ्ते तक खाने से एक्जिमा रोग में आराम आता है।
पीपल, हरड़, पुरानी खल, सरसो, सहजन की छाल और नीम की छाल को बराबर मात्रा में लेकर एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गाय के पेशाब में मिलाकर त्वचा पर लगाने से त्वचा के सारे रोग समाप्त हो जाते हैं।
चमेली के फूलों को पीसकर बनी लुगदी को त्वचा रोगों (जैसे दाद, खाज, खुजली) पर रोजाना 2-3 बार लगाने से त्वचा के सारे रोग नष्ट हो जाते हैं।
चमेली के फूलों की खुशबू से दिमाग की गर्मी दूर होती है। चमेली का तेल बालों में लगाने से दिमाग में तरावट आ जाती है। चमेली का तेल बनाने के लिए चमेली के फूलों की तह एक सूती कपड़े पर बिछाकर इन पर तिलों की पतली सी परत बिछा देते हैं। 2 दिन बाद इसे छलनी से छानकर तिल अलग कर लेते हैं। फिर दुबारा चमेली के फूलों की परत बनाकर इस प्रकार तिलों की परत दुबारा बना लेते हैं। 2 दिन बाद दुबारा तिल को छान लेते हैं और तीसरी बार इसी प्रकार चमेली के फूलों और तिलों का सम्पुट देकर, 2 दिन बाद छानकर, तिल निकालकर इन तिलों का तेल निकालें। यह तेल सिर में लगायें और मालिश करें।
त्वचा के रोग, दांतों का दर्द, पायरिया, घाव और आंखों के रोगों में चमेली के तेल से लाभ होता है। यह रक्तसंचार (खून की रफ्तार) को बढ़ाकर शरीर को स्फूर्ति देता है और दिमाग को खुश रखता है।
चमेली का तेल त्वचा के रोगों की एक अचूक व चमत्कारिक दवा है। इसको लगाने से हर प्रकार के जहरीले घाव, खाज-खुजली, अग्निदाह (आग से जलना), मर्मस्थान के नहीं भरने वाले घाव आदि अनेक रोग बहुत जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
चर्मरोग तथा रक्तजन्य विकारों में चमेली के 6-10 फूलों को लेकर लेप करने से बहुत आराम मिलता है।