चर्म रोग (त्वचा के रोग)
त्वचा के रोग कई तरह के होते हैं जैसे-खाज-खुजली, फोड़े-फुंसी, दाद, एक्जिमा (छाजन), छाले, खसरा आदि। ये रोग ज्यादातर गलत दवा को खाने से, ज्यादा तेज धूप में चलने से, स्त्रियों में मासिकधर्म की गड़बड़ी की वजह से, खून की खराबी से, नायलान के कपड़े पहनने से, नहाते समय ज्यादा सोडे वाले साबुन का उपयोग करने से, धूल मिट्टी के शरीर पर लगने की वजह से हो जाते हैं जैसे- कोढ़ का रोग एक तरह के भोजन के बाद बिल्कुल उसके उल्टी तरह का भोजन करने से, उल्टी, छींक, डकार, टट्टी-पेशाब आदि को आने से रोकने से, भोजन करने के बाद तुरन्त कसरत करने से, खट्टी चीजे, मूली, गुड़, चावल को ज्यादा खाने से हो जाता है। शरीर में खून की खराबी की वजह से खुजली का रोग हो जाता है। गैस के शरीर में ज्यादा होने से खुश्की का रोग हो जाता है। ज्यादा गर्म चीजें खाने से फोड़े-फुंसिया हो जाती हैं। इसी तरह खून में गर्मी बढ़ जाने के कारण, और गैस ज्यादा होने के कारण और बलगम के जम जाने के कारण चेहरे पर मुंहासे निकल आते हैं।परिचय :
विभिन्न भाषाओं में नाम :
लक्षण :
भोजन और परहेज :
रोजाना रात को सोने से पहले हल्के गर्म दूध में 1 चम्मच हल्दी का चूर्ण डालकर पीना चाहिए।
नहाते समय पानी में नींबू या नीम के तेल की 2 बूंदे डालकर नहाना चाहिए।
रोगी को भोजन में अचार, नींबू, टमाटर, तेल, नमक-मिर्च आदि का उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
भोजन में हमेशा हरी सब्जियां जरूर खायें और मौसम के अनुसार जो फल आ रहा हो उसका सेवन करें।
यदि पेट के अन्दर कब्ज (गैस) रहती है तो पहले उसे खत्म करने वाली दवा खायें। उसके बाद हल्का तथा जल्दी पचने वाला भोजन करें।
भोजन में बाजरे और ज्वार की रोटी न खायें।
त्वचा रोग से ग्रस्त रोगी को रोजाना सुबह जल्दी उठकर ताजी हवा में घूमना चाहिए और थोड़ी बहुत कसरत भी करनी चाहिए।
रोजाना सुबह उठकर नहाना चाहिए।
बीड़ी-सिगरेट, चाय-काफी, शराब, गांजा-भांग या दूसरी नशीली चीजों का सेवन बिल्कुल न करें।
नींबू को काटकर दाद, खाज, चमड़ी पर काले दाग आदि पर रगड़ने से लाभ होता है।
शरीर में खाज-खुजली होने पर नींबू के रस में करोंदा की जड़ को पीसकर लगाने से तुरन्त लाभ मिलता है।
नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर मसाज करने से तथा नींबू को चूसने से खुजली में लाभ होता है।
यदि शरीर में खुजली के दाने हो तो नींबू के रस को नारियल के तेल में गर्म करके लगाने से लाभ मिलता है।
नींबू में फिटकरी भरकर खुजली से पीड़ित भाग पर रगड़ने या गर्म पानी में नींबू को निचोड़कर नहाने से खुजली मिटती है।
शरीर की त्वचा पर कहीं भी चकत्ते हो तो उस पर नींबू के टुकड़े काटकर फिटकरी भरकर रगड़ने से चकत्ते हल्के पड़ जाते हैं और त्वचा निखर उठती है। हाथ धोकर नींबू का रस रगड़ने से हाथ नर्म और नाखून सुंदर हो जाते हैं।
नींबू के टुकड़े को काटकर दाद पर मलने से दाद की खुजली कम हो जाती है और थोड़े ही दिनों में दाद बिल्कुल मिट जाता है। इसको शुरूआत में दाद पर लगाने से कुछ जलन सी महसूस होती है।
नींबू के रस को, नारियल, तिल या चमेली के तेल में मिलाकर लगाने से खाज और खुजली दूर हो जाती है।
खाज, खुजली और चमड़ी के दूसरे रोगों में नींबू का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लगाने से लाभ होता है।
त्वचा के हर तरह के रोगों मे नींबू का रस बहुत ही लाभ करता है।
नींबू जम्भीरी के तेल को ग्लिसरीन के साथ मिलाकर खुजली और फोड़े फुन्सियों पर लगाने से लाभ पहुंचता है।
नीम, निर्गुण्डी और करंज को पीसकर इसका लेप करने से फुंसियों को फैलाने वाले जो जीवाणु होते हैं वे समाप्त हो जाते हैं और फुंसिया ठीक हो जाती हैं।
नहाते समय नीम को पानी में मिलाकर नहाने से त्वचा के सारे रोग मिट जाते हैं।
नीम की 8 से 10 कोंपलें (नये पत्ते) खाली पेट खाने से और नीम के पानी से नहाने से त्वचा रोगों के जीवाणु समाप्त हो जाते हैं।
नीम की छाल को पीसकर फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
100 साल पुराने नीम के पेड़ की सूखी छाल को बारीक पीस लें, रात को सोने से पहले 3 ग्राम बने इस चूर्ण को पानी में भिगो दें। सुबह उठकर इसे शहद के साथ मिलाकर पिलाने से छाजन, दाद, खुजली, फोड़ा, फुंसी, उपदंश के रोगों में आराम मिलता है।
नीम के पत्तों के रस की पट्टी को बांधने से और बदलते रहने से त्वचा के घाव ठीक हो जाते हैं।
शरीर में गीली छाजन होने पर नीम के 8-10 पत्तों को पीसकर बांधने से आराम मिलता है।
नीम के पत्तों की 5 से 10 ग्राम राख को लगाने से त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं।
10 ग्राम नीम की छाल, मंजिष्ठादि क्वाथ (काढ़ा), पीपल की छाल और नीम गिलोय को मिलाकर काढ़ा बना लें, इसको रोजाना 1 महीने तक 10-20 ग्राम की खुराक में सुबह और शाम रोगी को पिलाने से एक्जिमा (छाजन) में लाभ मिलता है।
नीम के तेल को शहद के साथ मिलाकर उसमें बत्ती को भिगोकर कान में रखने से कान से मवाद का आना बन्द हो जाता है।
पुराने नीम की सूखी लकड़ी को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से त्वचा के रोगों में आराम मिलता है।
10 मिलीलीटर नीम के पत्ते के रस को शहद के साथ रोजाना 2 बार रोगी को देने से त्वचा के कई रोग ठीक हो जाते हैं।
नीम के पत्तों की पोटली से त्वचा की सिंकाई करके नीम के पानी से नहाना चाहिए और फिर नीम के पत्तों को जलाकर उसकी राख को लगाना चाहिए। इससे त्वचा मुलायम हो जाती है।
नीम की निबौली से निकले हुए तेल को लगाने से खून की खराबी से शरीर पर पड़े हुए दागों में बहुत आराम आता है।
नीम के पत्ते और बेर के पत्तों को पीसकर नासूर और फोड़े पर लगाने से लाभ होता है।
फोड़े या नासूर में से ज्यादा मवाद बहने पर नीम की छाल की राख लगाने से लाभ होता है।
नीम के पत्तों को पीसकर छोटी-छोटी टिकिया बना लें और इसे कम आग पर घी में तल लें। टिकियों को तलने के बाद बाहर निकालकर बचे हुए घी में उतना ही मोम डालकर किसी बर्तन में ठंड़ा कर लें। इसे लगाने से फटे हुए हाथ पैर ठीक हो जाते हैं।
100 ग्राम नीम के पत्ते, 200 ग्राम कनेर के पत्ते और 80 ग्राम बकायन को मिलाकर पीस लें और इसकी टिकिया बना लें। फिर आधा किलो मीठा तेल और 130 ग्राम मोम कड़ाही में डाल लें और इसके अन्दर पहले से बनायी हुई टिकिया भी डालकर आग पर पकाने के लिये रख दें। जब टिकिया जल जाये तो उसे छानकर बोतल में भर लें। यह तेल जख्म को भरने के लिये बहुत ही ज्यादा लाभकारी है।
175 ग्राम नीम के पत्तों को पानी डाले बिना पीसकर लेप बना लें। 1 तांबे के बर्तन में लगभग 90 मिलीलीटर सरसों का तेल डालकर गर्म कर लें। जब गर्म करते हुए इस तेल में धुंआ उठने लगे तो यह लेप इसमें डाल दें। जब लेप तेल में जलकर काला पड़ जाये तो इसे उतारकर ठंड़ा होने दें। फिर इसमें कपूर और थोड़ा सा पीला मोम डालकर पीस लें। खून के खराब होने की वजह से होने वाले फोड़े-फुंसी, दाद, त्वचा पर पपड़ी जमना, फुंसी के जख्म हो जाने पर इस लेप को लगाने से जल्दी लाभ होता है।
गर्मियां जब शुरू हो तो 30 ग्राम नीम की कोंपले (नयी पत्तियां) को पीसकर पानी में मिलाकर रोजाना पीने से फोड़े-फुन्सी, दाद, खुजली, खून के रोग और वात (गैस) पित्त (गर्मी) और बलगम को समाप्त करता है। अगर फोड़ा फूट जाने पर मवाद बह रहा हो तो नीम के पत्तों को पीसकर शहद में मिलाकर लगाने से लाभ होता है।
त्वचा के किसी भी तरह के रोगों में मूली के पत्तों का रस लगाने से लाभ होता है।
रोजाना मूली और तिल खाने से त्वचा के नीचे जमा पानी सूख जाता है और सूजन मिट जाती है। मूली के पत्तों का 20 से 50 मिलीलीटर रस रोजाना पीने से भी सूजन जल्दी से उतरती है।
रोजाना मूली खाने से चेहरे के मुंहासे, कील, झाईयां और दाग-धब्बे ठीक हो जाते हैं।
मूली के सोडियम और क्लोरीन तत्व मल को आसानी से निकालने में सहायक होते हैं। मूली में पाया जाने वाला मैग्नीशियम पाचन-क्रिया को नियमित करता है। गंधकीय तत्व त्वचा के रोगों से छुटकारा दिलाते हैं।
8 हरी मिर्चो को पीसकर 100 मिलीलीटर सरसों के तेल में मिलाकर पका लें। जब तेल अच्छी तरह से पक जाए तो उसे छानकर शीशी में भर लें। इस तेल को त्वचा के रोगों पर लगाने से लाभ होता है।
सरसों, सहजने के बीज, सन के बीज, अलसी के बीज, जौ और मूली के बीजों को एकसाथ मिलाकर खट्टी छाछ (लस्सी) के साथ पीस लें। गिल्टियों पर इस लेप को लगाने से या अरण्डी की जड़ को चावलों के पानी के साथ पीसकर लेप करने से लाभ होता है।
250 मिलीलीटर सरसों के तेल में 50 ग्राम नीम की कोंपलें (मुलायम पत्तें) डालकर आग पर चढ़ा दें। जब कोंपलें (मुलायम पत्तें) जलकर काली पड़ने लगे तो इसे आग पर से उतारकर ठंड़ा कर लें। इस तेल को लगाने से एक्जिमा के रोग में लाभ होता है।
शरीर पर अच्छी तरह से सरसों के तेल की मालिश करने के बाद नहाने से हाथ-पैर फटते नहीं हैं।
1 कप गाजर का रस रोजाना पीने से त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं।
गाजर का रस कीटाणु नाशक है तथा यह संक्रमण को दूर करता है। इससे खून की उत्तेजना और सड़ांध दूर हो जाती है। इससे खून साफ हो जाता है जिससे त्वचा के रोग जैसे फोड़े-फुन्सी और मुंहासे ठीक हो जाते हैं। चेहरा सुंदर हो जाता है और रोगी के पीले चेहरे का रंग गुलाब के फूल के समान हो जाता है।
विटामिन `ए´ की कमी से त्वचा सूख जाती है। सर्दियों में त्वचा ज्यादा सूखती है। सर्दियों में गाजर अधिक मात्रा में मिलती है। गाजर में विटामिन `ए´ बहुत अधिक मात्रा में होता है इसलिए गाजर खाने से त्वचा का सूखापन दूर हो जाता है।
गाजर के रस और पालक के रस को एकसाथ मिलाकर 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से त्वचा के सारे रोगों में लाभ होता है।
20-20 मिलीलीटर गाजर का रस, टमाटर का रस और चुकन्दर के रस को 2 महीने तक रोजाना पीने से चेहरे की झांईयां, दाद, दाग, मुंहासें आदि मिट जाते हैं और चेहरा बिल्कुल साफ और चमकदार हो जाता है।
रूई के फाये से गाजर के रस को गर्दन और चेहरे पर लगाकर थोड़ी देर सूखने दें और फिर ठंड़े पानी से धो लें। इससे त्वचा साफ और चमकदार हो जाती है।
काली मिट्टी में थोड़ा-सा शहद डालकर शरीर में जहां पर फोड़े-फुंसिया हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।
त्वचा पर फुंसियां होने पर असली शहद लगाने से वह जल्दी ठीक हो जाती हैं।
रोजाना सुबह 20 ग्राम शहद को ठंड़े पानी में मिलाकर सेवन करने से जलन, खुजली, और फुन्सियों जैसे त्वचा के रोग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।
10 ग्राम सिरस के बीजों के चूर्ण को कपड़े में छानकर उसमें 20 ग्राम शहद मिलाकर किसी कांच के बर्तन में डालकर 15 दिन के लिये धूप में रख दें। 15 दिन के बाद इस चूर्ण को रोजाना सुबह 5 से 10 ग्राम तक खायें और ऊपर से मिश्री मिला हुआ दूध पी लें। इससे कण्ठमाला (गले की गांठों) में आराम आता है।
अगर शरीर पर हल्के दाग, फोड़े-फुंसी या मुंहासे हो तो शहद में पानी मिलाकर पीने से वे ठीक हो जाते हैं।
दूध, हरड़, सेंधानमक, चकबड़ और वनतुलसी को बराबर मात्रा में लेकर कांजी में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को दाद, खाज और खुजली पर लगाने से लाभ होता है।
हरड़, बायविडंग, सेंधानमक, बावची के बीज, सरसों, करंज और हल्दी को बराबर मात्रा में लेकर गाय के पेशाब के साथ मिलाकर पीसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) रोग समाप्त हो जाता है।
हरड़, मुण्डी, कचनार की छाल और विजयसार का काढ़ा बराबर मात्रा में लेकर उसमें शहद मिलाकर पीने से गले की गांठों में लाभ होता है।
हरड़, बहेड़ा, आंवला, पद्याख, खस, लाजवन्ती, कनेर की जड़ और अनन्त-मूल का लेप करने से कफज-विसर्प रोग ठीक हो जाता है।
चकबड़ और हरड़ को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से दाद कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।
10-10 ग्राम पीपल, गूलर, बेल, लाल चंदन, सफेद चंदन, बरगद, बेंत और गेरू को एकसाथ मिलाकर पीस लें। फिर उसे देसी घी में मिलाकर शरीर में जहां पर दाद, खुजली, फुंसिया हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।
पीपल के पत्तों को पानी में उबालकर उसके पानी से नहाने से त्वचा के अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
पीपल की कोमल कोपलें (मुलायम पत्तियां) खाने से खुजली और त्वचा पर फैलने वाले चर्मरोग (त्वचा के रोग) दूर हो जाते हैं। इसका 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पीने से भी यही लाभ होता है।
पीपल की छाल को कपडे़ में छानकर चूर्ण बनाकर रख लें। अगर छाजन सूखी हो तो नारियल के तेल में चूर्ण मिलाकर उस पर लगायें। अगर गीली छाजन हो तो उस पर इस चूर्ण को पाउडर की तरह छिड़कने से लाभ होता है।
पीपल की छाल का चूर्ण लगाने से मवाद निकलने वाला फोड़ा जल्दी ठीक हो जाता है।
3-4 पीपल की कोपलों (मुलायम पत्ते) को लगातार 1 हफ्ते तक खाने से एक्जिमा रोग में आराम आता है।
पीपल, हरड़, पुरानी खल, सरसो, सहजन की छाल और नीम की छाल को बराबर मात्रा में लेकर एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गाय के पेशाब में मिलाकर त्वचा पर लगाने से त्वचा के सारे रोग समाप्त हो जाते हैं।
प्याज को आग में भूनकर गर्म-गर्म ही गिल्टी (गांठों) और फोड़ों-फुसियों पर बांधने से वे फूट जाती हैं और उनका मवाद बाहर आ जाता है। इससे सूजन, जलन, दर्द आदि भी ठीक हो जाते हैं और जख्म भी जल्दी भर जाते हैं। इन्फैक्शन (संक्रमण) का जख्म भी भर जाता है। 1 भाग प्याज के रस को 4 भाग पानी में मिलाकर सड़े हुए, मवाद से भरे हुए जख्म को धोने और बाद में इसी घोल में भीगा हुआ (कपड़ा) जख्म पर बांधने से जख्म ठीक हो जाता है। यह खून को साफ करता है और कीटाणुओं को मारकर खुजली को मिटाता है। प्याज को कच्चा या पकाकर खाने से त्वचा का पीलापन और मुरझायी हुई त्वचा अच्छी और चमकदार हो जाती है।
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग जंगली प्याज की जड़ को पीसकर बनाया गया बारीक चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने और इसकी जड़ का रस रोजाना 2-3 बार त्वचा पर लगाने से त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
त्वचा के रोगों में बथुए को उबालकर निचोड़ ले और इसका रस निकालकर पी लें तथा सब्जी को खा लें। बथुए के उबले हुए पानी से त्वचा को धोने से भी त्वचा के सारे रोगों मे लाभ मिलता है।
बथुए के कच्चे पत्तों को पीसकर उसका रस निकाल लें। इसके 2 कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की-हल्की आग पर त्वचा के रोगों पर काफी समय तक लगाने से लाभ होता है।
गर्म पानी में नमक मिलाकर नहाने से सर्दियों मे होने वाले त्वचा के रोगों मे लाभ होता है।
अगर त्वचा रूखी-सूखी हो और हाथ-पैर फटते हो तो गर्म पानी में नमक मिलाकर हाथों और पैरों को धोये और सिंकाई करें। इससे त्वचा कोमल हो जाती है।
गर्म पानी में नमक को मिलाकर त्वचा को धोने से या सेंकने से हाथ-पैर एड़ियों के फट जाने में आराम मिलता है।
हाथों और बांहों को पानी से गीला करके 1 मुट्ठी नमक लेकर गोल-गोलकार गति में अच्छी तरह 1 सप्ताह तक मालिश करने से त्वचा में निखार आ जाता है।
3 चम्मच आंवला के रस को रात को सोते समय 1 गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह उस पानी को छानकर उसमें 4 चम्मच शहद मिलाकर पीने से त्वचा के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
आंवला का रस, कालीमिर्च और गंधक को बराबर की मात्रा में लेकर उसमे 2 गुना घी मिला लें और त्वचा पर लगायें। उसके बाद हल्की धूप में बैठ जाएं। इससे खुजली कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती हैं।
आंवला के रस में शहद मिलाकर पीने से सभी तरह के त्वचा के रोगों में लाभ होता है।
सुहागा, गंधक और मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। 40 ग्राम यह मिश्रण लेकर 5 गुने पानी में डालकर घोल तैयार कर लें। फिर इसे 24 घंटे तक रख दें। 24 घंटे के बाद इसे एक दिन में 2 बार दाद पर मलने से 2 से 3 दिन में ही दाद मिट जाता है।
सुहागा, आमलासार गंधक और राल को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें तथा इन तीनों के बराबर मात्रा में घी डालकर हल्की सी आग पर पका लें। जब यह पकते हुए ठीक प्रकार से मिलकर एक हो जाये तो इसे उतारकर एक बर्तन में डालकर उस बर्तन में पानी डाल दें जिससे कि पानी उस बर्तन में ऊपर ही रहें। ठंड़ा होने के बाद पानी ऊपर आ जायेगा और जो मिश्रण इसमें डाला था वह जम जायेगा। उस पानी को फेंककर और लेप को दाद, खाज और फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
सुहागा को फुलाकर नारियल के तेल में मिलाकर शरीर पर मालिश करने से खुजली ठीक हो जाती है।
सतातू के ताजे पत्ते, सुहागे का चूर्ण और नील को मिलाकर बहुत बारीक पीसकर लगाने से भयानक त्वचा का रोग, मुश्किल एक्जिमा, बदबू वाला कोढ़ और दूसरे प्रकार के त्वचा के रोग दूर हो जाते हैं।
कसौंदी की पत्तियों को बारीक पीसकर लगाने से खुजली, नौंचनी और कोढ़ का रोग दूर हो जाता है।
40 से 60 मिलीलीटर कसौंदी के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा सुबह-शाम पीने से खून साफ होता है और त्वचा के रोगों में लाभ होता है।
कसौंदी की जड़ को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से कुष्ठ (कोढ़), दाद और त्वचा के दूसरे रोग दूर हो जाते हैं।
मेहंदी के पत्तों को धोकर उसमें मटिया सिंदूर मिलाकर पानी के साथ बहुत अच्छी तरह से पीस लें। इसे लगाने से पुराना अपरस रोग ठीक हो जाता है।
अधिक गर्मी होने पर पीठ और गले पर व शरीर की नर्म त्वचा पर छोटी-छोटी मरोड़ी (अलाइयां) होने पर तथा जलन होने पर मेहंदी का लेप लगाने से लाभ मिलता है।
बरसात व सर्दी के दिनों में पैरों की एड़िया फट जाती है। इन फटी एड़ियों पर रोजाना मेहंदी लगाने से पैर ठीक हो जाते हैं। 10 ग्राम मेहंदी के पत्तों को 1 गिलास पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
पैरों के तलवों की जलन दूर करने के लिये एरण्ड के बीज और गिलोय को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
एरण्ड के तेल की मालिश करते रहने से शरीर के किसी भी अंग की त्वचा फटने का दर्द दूर होता है।
20 ग्राम एरंण्ड की जड़ को 400 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल लें। उबलने के बाद यह पानी 100 मिलीलीटर शेष रहने पर रोगी को पिलाने से त्वचा के हर तरह के रोग में लाभ होता है।
मजीठ, पद्याख, खस की जड़, लाख, चंदन, मुलहठी और नीलकमल को दूध में पीसकर लेप करने से विसर्प रोग दूर हो जाता है।
4 चम्मच मजीठ की जड़ का काढ़ा कुछ दिन तक रोजाना सुबह-शाम पीने और इसकी जड़ को शहद में घिसकर दाग-धब्बों पर लगाते रहने से चेहरे पर निखार आ जाता है।
मजीठ की जड़ को शहद में घिसकर चंदन की तरह बने लेप को हर तरह के त्वचा के रोगों पर रोजाना 2-3 बार लगाने से आराम मिलता है।
सिरस की छाल को पानी के साथ घिसकर लगाने से विसर्प रोग में लाभ होता है।
सफेद सिरस की छाल के शीतनिर्यास और लोशन त्वचा के रोगों जैसे जख्म, खुजली आदि में उपयोग किया जाता है।
कुष्ठ (कोढ़) के कारण शरीर पर होने वाले भयंकर जख्मों में सिरस का तेल लगाने से लाभ होता है।
सिरस के पत्तों की पोटली बनाकर फोड़े-फुन्सियों और सूजन के ऊपर बांधने से लाभ होता है।
सिरस के फूल ठंड़े होते हैं। गर्मी मे होने वाले फोड़े-फुन्सियों और पित्त शोथ पर सिरस के फूलों का लेप करने से आराम मिलता है।
सिरस के बीज अर्बुद और गांठ को गलाने में बहुत लाभकारी होते हैं।
10 ग्राम शुद्ध आमलासार गंधक को रात को पानी में भिगो दें और सुबह मोटे कपड़े में छानकर इसका पानी पी लें। इससे खुजली जल्दी ही ठीक हो जाती है। गंधक के पानी को छानने के बाद जो गंधक कपड़े में रह जाये उसे नारियल के तेल में पीसकर मिला लें। इस पानी को धूप में बैठकर शरीर पर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।
शुद्ध आमलासार गंधक को शहद में मिलाकर खाने से खुजली पूरी तरह से ठीक हो जाती है। गंधक को रोगी के रोग के लक्षण के मुताबिक लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक दे सकते हैं।
चमेली के फूलों को पीसकर बनी लुगदी को त्वचा रोगों (जैसे दाद, खाज, खुजली) पर रोजाना 2-3 बार लगाने से त्वचा के सारे रोग नष्ट हो जाते हैं।
चमेली के फूलों की खुशबू से दिमाग की गर्मी दूर होती है। चमेली का तेल बालों में लगाने से दिमाग में तरावट आ जाती है। चमेली का तेल बनाने के लिए चमेली के फूलों की तह एक सूती कपड़े पर बिछाकर इन पर तिलों की पतली सी परत बिछा देते हैं। 2 दिन बाद इसे छलनी से छानकर तिल अलग कर लेते हैं। फिर दुबारा चमेली के फूलों की परत बनाकर इस प्रकार तिलों की परत दुबारा बना लेते हैं। 2 दिन बाद दुबारा तिल को छान लेते हैं और तीसरी बार इसी प्रकार चमेली के फूलों और तिलों का सम्पुट देकर, 2 दिन बाद छानकर, तिल निकालकर इन तिलों का तेल निकालें। यह तेल सिर में लगायें और मालिश करें।
त्वचा के रोग, दांतों का दर्द, पायरिया, घाव और आंखों के रोगों में चमेली के तेल से लाभ होता है। यह रक्तसंचार (खून की रफ्तार) को बढ़ाकर शरीर को स्फूर्ति देता है और दिमाग को खुश रखता है।
चमेली का तेल त्वचा के रोगों की एक अचूक व चमत्कारिक दवा है। इसको लगाने से हर प्रकार के जहरीले घाव, खाज-खुजली, अग्निदाह (आग से जलना), मर्मस्थान के नहीं भरने वाले घाव आदि अनेक रोग बहुत जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
चर्मरोग तथा रक्तजन्य विकारों में चमेली के 6-10 फूलों को लेकर लेप करने से बहुत आराम मिलता है।
चिरायता का लेप लगाने से खुजली, फोडे़-फुन्सी जैसे त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
1 चम्मच चिरायता को 2 कप पानी में रात को भिगोकर सुबह के समय छानकर सेवन करने से फोड़ा-फुन्सी, जी मिचलाना, भूख न लगना आदि रोगों में लाभ होता है। यदि इसका कड़वा पानी पिया नहीं जा सके तो उसमें स्वादानुसार मिश्री मिलाकर भी पी सकते हैं।
रात को पानी में चिरायते की पत्ती को डालकर रख दें। रोजाना सुबह उठते ही इस पानी को पीने से खून साफ होता है और त्वचा के सारे रोग मिट जाते हैं।
101. शरपुंखा : शरपुंखा के बीजों के तेल को कण्डू, खुजली आदि त्वचा के रोगों पर लगाने से आराम मिलता है।
अमलतास के पत्तों को सिरके में पीसकर बनाए लेप को त्वचा रोगों यानी दाद, खाज-खुजली, फोड़े-फुंसी पर लगाने से यह रोग दूर होते हैं। यह प्रयोग कम से कम 3 हफ्ते तक अवश्य करें। अमलतास के पंचांग (पत्ते, छाल, फूल, बीज और जड़) को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ बनाए लेप से भी लाभ मिलता है।
अमलतास, कनेर और मकोय के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर मट्ठे के साथ पीसकर लेप बनाकर लगाने से त्वचा के रोगों मे लाभ होता है।
कुष्ठ (कोढ़) का रोग होने पर बावची के चूर्ण का काढ़ा बनाकर पीने से और त्वचा पर बावची का तेल लगाने से लाभ होता है।
बताशे में 10 बूंद बावची का तेल डालकर खाने से कुष्ठ (कोढ़) के रोग मे आराम आ जाता है।
बावची के बीज, आंवला और खैर की छाल को बराबर मात्रा में लेकर 2 कप पानी में डालकर उबाल लें। जब उबलते-उबलते पानी चौथाई भाग की मात्रा में बचा रह जाये तो उसे छानकर पी जाये। इससे लाल कुष्ठ और सफेद कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाते हैं।
12 ग्राम शुद्ध आमलासार गंधक, आमाहल्दी, बावची के बीज और काला जीरा को लेकर मोटा-मोटा पीस लें। इसमें से 12 ग्राम चूर्ण को पानी में डालकर एक मिट्टी के बर्तन में भिगोकर रख दें और सुबह पानी को छानकर पी जाएं। इसके ऊपर से 20 से 25 ग्राम भुने हुए चने खा लें। ऐसा लगातार 3 दिन तक करने से त्वचा की खुजली दूर हो जाती है।
बावची, पवांड के बीज, सरसों, तिल, हल्दी, दारूहल्दी, कूट और मोथा को बराबर मात्रा में लेकर ताजे पानी के साथ पीसकर त्वचा पर लेप करने से खुजली और दाद आदि ठीक हो जाते हैं।