दिल का तेज धड़कना dil ka tej dhadkna

दिल का तेज धड़कना

          हृदय की धड़कने की क्रिया से ही हमारे पूरे शरीर में रक्त का संचालन होता है। यदि किसी दोष या बीमारी के कारण यह धड़कन सामान्य से तेज हो जाती है तो उसे बीमारी का रूप माना जाता है। इसमें सीने में भारीपन, दर्द एवं घबराहट का अनुभव होता है।परिचय :

कारण :

लक्षण :

भोजन तथा परहेज:

4. सर्पगंधा: हृदय की धड़कन में छोटी चन्दन (सर्पगन्धा) चूर्ण रोज 1-2 ग्राम की मात्रा में रात को सोने से पहले सेवन करने से लाभ होता है।
5. देवदारू: देवदारू चूर्ण 3 से 6 ग्राम को सोंठ के साथ पीसकर सुबह-शाम सेवन करने से हृदय रोग नष्ट होते हैं।
6. छोटी इलायची: छोटी इलायची का चूर्ण 1 से 2 ग्राम पिप्पलीमूल के साथ घी मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
7. जटामांसी:
8. बेल:
9. नागबला: नागबला की जड़ की छाल का बारीक चूर्ण 5 से 10 ग्राम सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से पूर्ण लाभ होता है।
10. सफेद गुलाब: सफेद गुलाब की पंखुड़ियों का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से हृदय की धड़कन में लाभकारी होता है।
11. अर्जुन की छाल :
12. फालसा:
13. शहतूत: शहतूत का शर्बत बनाकर पीने से हृदय की तीव्र धड़कन सामान्य होती है।
14. बरगद :
15. ब्राह्मी: ताजी ब्राह्मी का 20 मिलीलीटर रस और 5 ग्राम शहद को मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से दिल की कमजोरी नष्ट होकर तेज धड़कन की समस्या में भी आराम मिलता है।
16. अर्जुन की छाल: अर्जुन की छाल 500 ग्राम को कूट-पीसकर उसमें 125 ग्राम छोटी इलायची को पीसकर 20 ग्राम की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम 3-3 ग्राम को खुराक के रूप पानी के साथ सेवन करने से तेज दिल की धड़कन और घबराहट नष्ट होती है।
17. असगंध: असगंध और बहेड़ा दोनों को कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम चूर्ण को थोड़े-से गुड़ में मिलाकर हल्के गर्म पानी से सेवन करने से दिल की तेज धड़कन और निर्बलता नष्ट होती है।
18. पीपरा मूल: पीपरा मूल और छोटी इलायची को 25-25 ग्राम मात्रा में कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण को घी के साथ मिलाकर सेवन करने से कब्ज की समस्या से उत्पन्न हृदय रोगों में लाभ होता है।
19. आंवला:
20. पपीते : पपीते का गूदा लेकर उसे मथ लें। 100 ग्राम गूदे में 2 लौंग का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से दिल की धड़कन में लाभ होगा।
21. गाजर :
22. धनिया:
23. नींबू: नींबू का रस 15 मिलीलीटर पानी में मिलाकर पीने से दिल में जलन और तेज दिल की धड़कन में बहुत लाभ होता है। नींबू की शिकंजी बनाकर पीने से भी लाभ होता है। यदि धड़कन बढ़ने की वजह से कुछ बेचैनी-सी अनुभव होती हो, तो एक गिलास पानी में नींबू निचोड़कर पी जाएं।
24. टमाटर: टमाटर का सूप बीज निकालकर 250 ग्राम लें और अर्जुन के पेड़ की छाल का चूर्ण 2 ग्राम लेकर दोनों को अच्छी तरह मिलाकर सुबह के समय सेवन करने से दिल की धड़कन में रोगी को लाभ होगा।
25. इलायची: इलायची के दानों का चूर्ण आधा चम्मच शहद के साथ चाटने से घबराहट दूर हो जाती है।
26. सेब: 100 मिलीलीटर सेब के रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर पी जाएं।
27. सफेद इलायची : सफेद इलायची का 3 ग्राम की मात्रा में चूर्ण को लेकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से धड़कन में आराम होता है।
28. कपूर: यदि दिल तेजी से धड़कता हुआ मालूम पड़े, तो थोड़ा-सा कपूर सेवन करें।
29. अंगूर:
30. प्याज :
31. पिस्ता: पिस्ते की लौज लगभग 30 दिनों तक खाने से हृदय की धड़कन का रोग कम हो जाता है।
32. किशमिश: 50 ग्राम किशमिश गर्म पानी में मथकर या उबालकर सेवन करें। किशमिश हृदय को बल देती है।
33. बहेड़ा: बहेड़े के पेड़ की छाल का चूर्ण 2 चुटकी प्रतिदिन घी या गाय के दूध के साथ सेवन करने से हृदय की बीमारी में आराम मिलता है।
34. पिस्ता: पिस्ता हृदय की धड़कन कम करता है। रात को 5 पिस्ता पानी में भिगो दें। सुबह पानी फेंक दें केवल पिस्ता खायें ऊपर से दो घूंट पानी पीयें।
35. गुलाब:
36. दूध: गर्म दूध एक गिलास में स्वादानुसार मिश्री या शहद, दस भीगी हुई किशमिश उसी भिगोये हुए पानी में पीसकर मिला दें। इसे नित्य 40 दिनों तक पीयें। हृदय की धड़कन कम होगी, शरीर में शक्ति आयेगी।

पेट में वायु का बनना

पेट में वायु का बनना

          पेट में गैस या वायु की बीमारी पेट की मंदाग्नि (पाचनशक्ति की कमजोरी या अपच) के कारण होती है। शरीर में रोग तीन भागों से होते हैं। पहला- शाखा, दूसरा-मर्म, अस्थि और संधि तथा तीसरा- कोष्ठ (आमाशय)। वायु या गैस की बीमारी कोष्ठ से पैदा होती है। जब वायु (गैस) कोष्ठ में चलती है, तो मल-मूत्र का अवरोध, हृदय (दिल की बीमारी) रोग, गुल्म (वायु का गोला) और बवासीर आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं।परिचय :

कारण :

       मनुष्य सेवन किया गया भोजन हजम नहीं कर पाता है तो उसका कुछ भाग शरीर के भीतर सड़ने लगता है। इस सड़न से गैस पैदा होती है। गैस बनने के अन्य कारण भी होते हैं, जैसे- ज्यादा व्यायाम करना, ज्यादा मैथुन करना, अधिक देर तक पढ़ना-लिखना, कूदना, तैरना, रात में जागना, बहुत परिश्रम करना, कटु, कषैला तथा तीखा भोजन खाना, लालमिर्च, इमली, अमचूर, प्याज, शराब, चाय, कॉफी, उड़द, मटर, कचालू, सूखी मछली, मैदे तथा बेसन की तली हुई चीजें, मावा, सूखे शाक व फल, मसूर, अरहर, मटर, लोबिया आदि की दालें खाने से भी पेट में गैस बन जाती है।

लक्षण :

       रोगी की भूख कम हो जाती है। छाती और पेट में दर्द होने लगता है, बेचैनी बढ़ जाती है, मुंह और मल-द्वार से आवाज के साथ वायु निकलती रहती है। इससे गले तथा हृदय के आस-पास भी दर्द होने लगता है। सुस्ती, ऊंघना, बेहोशी, सिर में दर्द, आंतों में सूजन, नाभि में दर्द, कब्ज, सांस लेने में परेशानी, हृदय (दिल की बीमारी), जकड़न, पित्त का बढ़ जाना, पेट का फूलना, घबराहट, सुस्ती, थकावट, सिर में दर्द, कलेजे में दर्द और चक्कर आदि लक्षण होने लगते हैं।
       साग-सब्जी, फल और रेशेवाले खाद्य पदार्थो का सेवन करें। आटे की रोटी में चोकर मिलाकर खाएं। मूंग की दाल की खिचड़ी, मट्ठे के साथ और लौकी (घिया), तोरई, टिण्डे, पालक, मेथी आदि की सब्जी का, दही व मट्ठे का प्रयोग हितकर है। क्रोध (गुस्सा), ईर्ष्या (जलन) और प्यास के वेग को रोकना नहीं चाहिए। जैसे क्रोध आने पर ईश्वर के नाम का जाप करें। शारीरिक व्यायाम और पेट सम्बंधी योगासन करें।
14. बेल: बेल के पत्ते के 4 पीस, हरसिंगार की 4 पत्तियों को 1 कप पानी में चाय की तरह उबालकर रख लें। इस काढ़े में काला नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है।
43. अरहर : अरहर को खाने से पेट की गैस की शिकायत दूर होती है।
44. घी-ग्वार : घी-ग्वार के गूदे को गर्म करके सेवन करने से लाभ होता है।
54. सोंठ : सोंठ 10 ग्राम, कालीमिर्च 10 ग्राम, सेंधानमक 10 ग्राम, जीरा 10 ग्राम और सादा जीरा को बराबर लेकर बारीक पीस लें। उसमें 5 ग्राम शुद्ध हींग को घी में भूनकर मिला लें। उस चूर्ण को भोजन के बाद 1 चम्मच लेने से पेट की गैस में लाभ होता है।
55. तुलसी : तुलसी की 4 पत्तियां, 4 लौंग और कालीमिर्च के दानों को मिलाकर 1 कप पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े के सेवन से पेट की गैस में आराम मिलता है।
नोट-बैंगन की सब्जी मौसम में ही खानी चाहिए।