प्लेग (PLAGUE)






प्लेग


          प्लेग एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है। इसको अग्निरोहिणी तथा संस्कृत में औपसर्गिक सन्निपात के नाम से भी जाना जाता है।परिचय
:

कारण :

        प्लेग की बीमारी अनेक कारणों से फैलती है। पृथ्वी पर पर्यावरण प्रदूषण जैसे पानी व हवा अधिक दूषित हो जाती है जिससे वातावरण में विषैले जीवाणु फैल जाते हैं। विषैले जीवाणु जब कीट बनकर वातावरण में फैलते हैं तो यह महामारी का रूप ले लेते हैं जो प्लेग की बीमारी के रूप में अन्य जीवों व मनुष्यों में फैल जाते हैं। जब घरों में चूहे मर जाते हैं और मरने के बाद अगर वह कई दिनों तक घर में पड़े रहते है तो उसमें से निकलने वाली विषैली बदबू प्लेग का कारण बन जाती है।

लक्षण :

          प्लेग की बीमारी के जीवाणु सबसे पहले खून को प्रभावित करते हैं जिसके कारण रोगी को तेज बुखार जकड़ लेता है। इस प्रकार की बीमारी होने पर कुछ समय में ही बुखार बहुत ही विशाल रूप ले लेता है और रोगी के हाथ-पांव में अकड़न होने लगती है। इस रोग के होने पर रोगी के सिर में तेज दर्द, पसलियों का दर्द, उल्टियां एवं दस्त होते रहते हैं। इसके साथ-साथ रोगी की आंखे लाल हो जाती है और कफ व पेशाब के साथ खून निकलने लगता है। इस रोग के होने पर रोगी को बेचैनी बढ़ जाती है।
1. सरसो : पीली सरसो, नीम के पत्ते, कपूरकचरी, जौ, तिल, खांड़ और घी आदि को लेकर आग में जलाकर धुआं करने से हमारे आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। यह धुआं प्लेग को फैलने से रोकता है।
2. गुग्गुल : धूप और गुग्गुल को हवन सामग्री के जले हुए उपले पर जलाकर धुआं करने से दूषित वातावरण शुद्ध हो जाता है और प्लेग जैसी बीमारी नहीं फैलती है।345821
3. कपूर : प्लेग से बचने के लिये और अपने आस-पास के वातावरण को शुद्ध करने के लिये कपूर को जलाकर घर में उसका धुआं करना चाहिए।
4. आंवला : प्लेग के रोग को दूर करने के लिये सोनागेरू, खटाई, देशी कपूर, जहर मोहरा और आंवला को 25-25 ग्राम की मात्रा में लेकर तथा पपीते के बीज 10 ग्राम लेकर एक साथ मिलाकर कूटकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को कागजी नींबू के रस मे 3 घंटों तक घोटने के बाद मटर के बराबर गोलियां बना लें। उन गोलियों में से एक गोली 7 दिनों में एक बार खाने से प्लेग की बीमारी में लाभ होता है।
5. पीपल : छोटी पीपल, कालीमिर्च, लोंग, आक के फूल, अदरक इन पांचों को एक ही मात्रा में लेकर और पीसकर मटर के बराबर गोलियां बनाकर 1-1 गोली प्रतिदिन पानी के साथ लेने से प्लेग के रोग में लाभ मिलता है और सिर का दर्द, उल्टियां व पसलियों का दर्द ठीक हो जाता है।
6. नौसादर : नौसादर, आक के फूल, शुद्ध वत्सनाग और पांचों नमक को बराबर मात्रा में मिलाकर और बारीक पीसकर प्याज के रस में 3 घंटों तक घोटकर लगभग आधा ग्राम की गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली ताजे पानी से प्रतिदिन सुबह-शाम और रात को खाने से प्लेग के रोगी को लाभ होता है।
7. मुनक्का : मुन्नका, सौंफ, पीपल, अनन्तमूल और रेणुका को बराबर मात्रा में लेकर इससे 8 गुना पानी में डालकर गर्म करें। चौथाई पानी शेष रहने पर इसे उतारकर और छानकर गुड़ व शहद के साथ मिलाकर रोजाना सेवन करें। इससे प्लेग के रोगी का रोग दूर हो जाता हैलाल चंदन : गिलोय, इन्द्रजौ, नीम की छाल, परवल के पत्ते, कुटकी, सोंठ और नागरमोथा को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाक उसमें 3 ग्राम पीपल का चूर्ण डालकर पीने से प्लेग का रोग दूर हो जाता है।
8. सोंठ : सोंठ, चित्रक, चव्य, पीपल और छोटी पीपल को बराबर मात्रा में लेकर उसको दरदरा यानी मोटा-मोटा कूटकर उसके 8 गुना पानी के साथ गर्म कर लें। चौथाई पानी बच जाने पर इसे छानकर सेवन करें। इससे प्लेग के रोग के कारण आने वाला बुखार मिट जाता है।
9. प्याज : कच्चे प्याज को सिरके के साथ प्रतिदिन खाने से प्लेग की बीमारी दूर हो जाती है।
10. जलधनिया : जलधनिया को पीसकर प्लेग की गांठो पर लगाने से लाभ मिलता है।
11. पपीता : पपीते को रोजाना सुबह-शाम खाने से प्लेग का रोग दूर हो जाता है और पेशाब एवं कफ में खून का आना बन्द हो जाता है।
12. सिरका : सिरके का सेवन करने से प्लेग की बीमारी दूर हो जाती है और सिर व पसलियों का दर्द दूर होता है।
13. लाजवन्ती : प्लेग के रोगी को 80 मिलीलीटर की मात्रा में लाजवन्ती के पत्तों का रस सेवन कराने से प्लेग रोग ठीक हो जाता है।
14. फिटकरी:
15. इमली : इमली का पानी पीने से प्लेग, गर्मी का ज्वर और पीलिया का रोग दूर होता है।
16. इन्द्रायण : इन्द्रायण की जड़ की गांठ को (इसकी जड़ में गांठे होती है) यथा सम्भव सबसे निचली या 7 वें नम्बर की लें। इसे ठंड़े पानी में घिसकर प्लेग की गांठों पर दिन में 2 बार लगायें। डेढ़ से 3 ग्राम तक की खुराक में इसे पीने से गांठे एकदम बैठने लगती है और दस्त के रास्ते से प्लेग का जहर निकल जाता है और रोगी की मूर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है।
17. अमलतास : अमलतास की पकी ताजी फली का गूदा बीजों सहित पीसकर प्लेग की गांठों पर लेप करने से आराम मिलता है।
18. नीम :
19. नारियल : नारियल के खोपरे को मूली के रस में घिसकर लेप करने से प्लेग के रोग में लाभ मिलता है।

पीलिया (JAUNDICE)

mata tara rani ki katha

पीलिया


          रक्त में लाल कणों की आयु 120 दिन होती है। किसी कारण से यदि इनकी आयु कम हो जाये तथा जल्दी ही अधिक मात्रा में नष्ट होने लग जायें तो पीलिया होने लगता है। रक्त में बाइलीरविन नाम का एक पीला पदार्थ होता है। यह बाइलीरविन लाल कणों के नष्ट होने पर निकलता है तो इससे शरीर में पीलापन आने लगता है। जिगर के पूरी तरह से कार्य न करने से भी पीलिया होता है। पत्ति जिगर में पैदा होता है। जिगर से आंतों तक पत्ति पहुंचाने वाली नलियों में पथरी, अर्बुद (गुल्म), किसी विषाणु या रासायनिक पदार्थों से जिगर के सैल्स में दोष होने से पत्ति आंतों में पहुंचकर रक्त में मिलने लगता है। जब खून में पत्ति आ जाता है, तो त्वचा पीली हो जाती है। त्वचा का पीलापन ही पीलिया कहलाता है।परिचय
:

          अधिकतर अभिष्यन्द पीलिया होता है। इसमें कुछ दिनों तक जी मिचलाता है, बड़ी निराशा प्रतीत होती है, आंखें और त्वचा पीली हो जाती है। जीभ पर मैल जमा रहता है तथा रोगी को 99 से 100 डिग्री तक बुखार रहता है। जिगर और पित्ताशय का स्थान स्पर्श करने पर कोमल प्रतीत होता है। पेशाब गहरे रंग का, मल बदबूदार, मात्रा में अधिक और पीला होता है।
4. सन्निपातज पाण्डु : इस तरह के पीलिया में तीनों दोषों के लक्षण दिखाई देते है। यह अत्यन्त असह्रा, घोर तथा कष्टसाध्य होता है। मिट्टी खाने के कारण उत्पन्न पीलिया में बल, वर्ण तथा अग्नि का नाश हो जाता है। नाभि, पांव तथा मूंह सूज जाते है। कृमि (पेट के कीड़े), कफ तथा रक्तयुक्त मल निकलता है। आंखों के गोलक, भौहों, तथा गाल पर भी सूजन आ जाती है।

कारण :

          अधिक स्त्री-प्रसंग (संभोग), खटाई, गर्म तथा चटपटे और पित्त को बढ़ाने वाले पदार्थ अधिक खाने, शराब अधिक पीने, दिन में अधिक सोने, खून की कमी तथा वायरस के संक्रमण के कारण, खट्टे पदार्थों का सेवन, राई आदि अत्यन्त तीक्ष्ण पदार्थों का सेवन आदि कारणों से वात, पत्ति और कफ ये तीनों दोष कुपित होकर पीलिया रोग को जन्म देते हैं।

लक्षण :

          बुखार, चक्कर आना, आंखों के सामने पीलापन दिखाई देना, कई बार आंखों के सामने अंधेरा छा जाना, आंखों में पीलापन, शरीर का पीला होना, पेशाब पीला आना, जीभ पर कांटे-से उग आना, भूख न लगना, पेट में दर्द, हाथ-पैरों में टूटन और कमजोरी, पेट में अफारा, शरीर से दुर्गंध का निकलना, मुंह कड़वा हो जाना, दिन-प्रति-दिन कमजोरी आना, शरीर में खून की कमी आ जाना आदि इस रोग के लक्षण है। रोग बढ़ने पर सारा शरीर हल्दी की तरह पीला दिखाई देता है। इसमें जिगर, पित्ताशय (वह स्थान जहां पत्ति एकत्रित होता हैं), तिल्ली और आमाशय आदि खराब हो जाते हैं।
          पीलिया रोग के अधिक बढ़ जाने पर सम्पूर्ण शरीर अथवा अंग विशेष में सूजन उत्पन्न हो जाती है। ऐसे रोगी को `असाध्य´ समझा जाता है। जिस रोगी के दांत, नाखून और आंखे पीली हो गई हो, हाथ, पांव तथा सिर में सूजन हो, सब वस्तुएं पीली दिखाई देती हो, गुदा, लिंग तथा अण्डकोषों पर सूजन हो तथा जिसका मल बंधा हुआ, अल्प, हरे रंग का तथा कफयुक्त हो, उसे असाध्य (जिसका इलाज नहीं हो सकता) समझा जाता है।
          पीलिया रोग में नाड़ी की गति कम (लगभग 45 प्रति मिनट), घी, तेल आदि चिकने पदार्थ नहीं पचते, जिगर में कड़ापन और दुखना, शरीर, आंखे, नाखून, मूत्र पीले दिखते हैं। शरीर में खुजली-सी चलने लगती हैं। शरीर में कहीं भी चोट लगने या किसी कारण से खून बहुत अधिक मात्रा में बहता है। आंखों का सूखना, रात को बहुत कम दिखता है। दिखने वाली वस्तुएं पीली दिखती है। वजन कम होना, पतले दस्त लगना, भूख कम लगना, पेट में गैस बनना, मुंह का स्वाद कड़वा, शरीर में कमजोरी-सी रहना, बुखार इसके प्रमुख लक्षण है। पहले रोगी को जुलाब दें, फिर औषधि सेवन करायें। सामान्यतया जुलाब से ही रोगी ठीक हो जाते है। इसके रोगी को पूर्ण विश्राम देना चाहिए।

भोजन तथा परहेज :

2. गिलोय :
37. ककड़ी : ककड़ी के रस में गाजर का रस मिलाकर पीने से संधिवात (गठिया) जैसे रोगों को दूर किया जा सकता है। खून में यूरिक एसिड की मात्रा अधिक हो जाती है तो संधिवात (गठिया) आदि की वेदना होती है। ककड़ी का रस एसिड को बाहर निकाल देता है। ककड़ी में पोटेशियम भी होता है, जो निम्न रक्तचाप के मरीजों के लिये भी गुणकारी होता है। ककड़ी से दांत और मसूढ़े भी मजबूत होते हैं। कई लड़कियां नाखूनों को बढ़ाकर सौंदर्य बढ़ाने की कामना करती है, परन्तु ना चाहते हुए भी उनके नाखून टूट जाते हैं, ऐसी औरतों को ककड़ी के रस का सेवन करना चाहिए। त्वचा के सफेद दाग आदि को दूर करने के लिये हरी घास का रस तथा 100 मिलीलीटर ककड़ी का रस मिलाकर हर रोज सुबह खाली पेट पीना चाहिए। बाल झड़ रहे हों तो इसके लिए गाजर एवं ककड़ी के रस को मिलाकर पीना चाहिए। ककड़ी के रस से बालों की लम्बाई बढ़ती है।