Showing posts with label जिज्ञासा. Show all posts
Showing posts with label जिज्ञासा. Show all posts

अंतरिक्ष में स्थित क्षुद्रग्रह पट्टी क्या है? What is the asteroid belt in hindi?

सबसे बड़ा क्षुद्रग्रह कौन है? Who is the largest asteroid in hindi?

सबसे बड़ा क्षुद्रग्रह का नाम सेरेस (Ceres)है। इसका आकार चन्द्रमा का लगभग एक-चौथाई है और यह क्षुद्रग्रह पट्टी जो मंगल तथा वृहस्पति गृह के बीच सूर्य की परिक्रमा करता है। अन्य क्षुद्रग्रह से विपरीत सेरेस का आकार गोलाकार है। इस क्षुद्रग्रह की खोज इटली के एक खगोल शास्त्री जिनका नाम Giuseppe Piazzi था, ने सन 1801 ई० में किया था। इस खगोल शास्त्री ने इसे खोजने से पहले यह भविष्यवाणी किया था की मंगल और वृहस्पति ग्रह के बीच ग्रह है। इसे एक बौना ग्रह भी कहा जाता था।

अंतरिक्ष में स्थित क्षुद्रग्रह पट्टी क्या है? What is the asteroid belt in hindi?

हमारे सौर मण्डल में मंगल एवं वृहस्पति ग्रह के कक्षा के बीच के क्षेत्र में बहुत सारे क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं जिसे क्षुद्रग्रह पट्टी कहते हैं। इस क्षुद्रग्रह पट्टी में लाखों की संख्या में क्षुद्रग्रह पाये जाते हैं। खगोलशास्त्रीयों का मानना है की बहुत समय पहले ग्रहों के टूटने से ये क्षुद्रग्रहों का निर्माण हुआ था। इस क्षुद्रग्रह पट्टी में विभिन्न आकार के क्षुद्रग्रह पाये जाते हैं। इनमें कुछ बहुत छोटे (एक मील से भी कम लंबाई) तो दूसरे काफी बड़े भी हैं। सबसे बड़ा क्षुद्रग्रह का नाम सेरेस है। 

जीपीएस (Global Positioning System) क्या है? What is GPS and how it works in hindi?

जीपीएस (GPS) क्या है?

ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) - यह उपग्रह आधारित अमेरिका के रक्षा विभाग द्वारा संचालित दिशानिर्देशन प्रणाली (Navigation System)  है जो अपने 30 उपग्रहों के नेटवर्क से बना हुआ है। ये उपग्रह छह अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करती है। 
Photo source: geospatialworld.net


24 घंटों में ये उपग्रहें पृथ्वी का दो बार चक्कर लगती है। हर एक उपग्रह का वजन लगभग एक टन है। इसके सोलर पैनल के साथ इस उपग्रह की लंबाई लगभग पाँच मीटर है। इन उपग्रहों के कक्षीय पथ (Orbital paths) लगभग 60 डिग्री उत्तर और 60 डिग्री दक्षिण अक्षांश पर होता है जिसका मतलब यह है की इन उपग्रहों का सिग्नल पृथ्वी के किसी भी जगह से किसी भी समय प्राप्त किया जा सकता है। यह पृथ्वी तल से 20,000 कि०मी० ऊपर अपनी कक्षा में स्थापित है। इनकी कक्षाओं को इस तरह व्यवस्थित किया गया है कि चाहे पृथ्वी के किसी भी हिस्से में आप रहें, 6 उपग्रह हमेशा आपके ऊपर होती है। जीपीएस सिस्टम को उपयोग के लिए अमेरिकी सरकार के रक्षा विभाग द्वारा विकसित किया गया था। 1995 से इसे सभी लोगों के उपयोग के लिए उपलब्ध किया गया। आज जो जीपीएस सिस्टम (GPS System) का उपयोग किया जाता है इनके उपग्रहों का रख-रखाव और प्रबंधन अमेरिका का रक्षा विभाग करता है। 

जीपीएस कैसे काम करता है? How GPS works?

जीपीएस (GPS) बहुत से जटिल तकनीक का इस्तेमाल करता है परंतु इसका सिद्धांत सरल है। इसमें एक जीपीएस रिसीवर प्रत्येक जीपीएस उपग्रह (GPS Satellite) से सिग्नल प्राप्त करता है। उपग्रहों द्वारा भेजा गया रेडियो सिग्नल सटीक समय पर होता है। उपग्रहों द्वारा भेजे गए सिग्नल के समय और जीपीएस रिसीवर (GPS receiver) द्वारा प्राप्त किए गए सिग्नल के समय को घटा कर जीपीएस यह बता सकता है कि वह प्रत्येक उपग्रहों से कितनी दूरी पर है। जीपीएस रेसीवर आसमान में स्थित उपग्रहों का सटीक स्थिति का पता लगा सकता है। इस तरह तीन उपग्रहों के जीपीएस सिग्नल (GPS  Signal) के पहुँचने के समय तथा आसमान में उनके सटीक स्थिति के आधार पर जीपीएस रिसीवर पृथ्वी पर आप के सही स्थान का पता लगा सकता है। तीन उपग्रहों के सिग्नलों के आकलन के उपरांत प्राप्त स्थिति उतनी सटीक नहीं होती है। परंतु यदि जीपीएस रिसीवर 4 उपग्रहों के सिग्नलों का आकलन करता है तो यह आपकी तीन आयामी स्थिति बता सकता है जो बहुत ही सटीक होता है। 

किन-किन देशों के पास जीपीएस सिस्टम है?

वर्तमान में निम्नलिखित देशों के पास जीपीएस सिस्टम है:-

अमेरिका - Global Positioning System (GPS)
सोवियत संघ - GLONASS
चीन - BeiDou Navigation Satellite System
यूरोपियन यूनियन - Galileo 
भारत - GPS Aided GEO Augmented Navigation (GAGAN) विकसित कि जा रही है। 

इसके अलावा फ्रांस और जापान के द्वारा भी Regional Navigation सिस्टम विकसित कि जा रही है। 

वीवीपैट (VVPAT) क्या है?

वीवीपैट क्या है (What is VVPAT in hindi)


वीवीपैट (VVPAT) यानी वोटर वैरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल जो (Voter Verifiable Paper Audit Trail) एक प्रिंटर है। यह एवीएम की वैलेट यूनिट से जुड़ा होता है। यह मशीन बैलेट यूनिट के साथ उस कक्ष में राखी जाती है जहाँ मतदाता मतदान करने जाते हैं। वोटिंग के समय वीवीपैट से पर्ची निकलती है, जिसमें उस पार्टी और उम्मीदवार की जानकारी होती है जिसके लिए मतदाता ने मतदान किया है।

क्यों जरूरी है वीवीमैट

वीवीपैट (VVPAT) से न केवल मतदाता को अपने वोट के सही प्रत्याशी को जाने की तसल्ली होगी, बल्कि विवाद होने पर वोटिंग का पेपर ट्रेल भी उपलब्ध रहेगा और ईवीएम पर सवाल उठने बंद हो जाएंगे।

भीम एप्प क्या है और कैसे काम करता है?

भीम एप्प क्या है और कैसे काम करता है?
What is BHIM APP and how it works?

सरल शब्दों में कहा जाये तो स्मार्टफोन के जरिये मुद्रा के हस्तानांतरण हेतु बनाये गए एप्प को ही भीम एप्प (BHIM APP) कहते हैं। भीम एप्प का विस्तृत रूप है - भारत इंटरफेस फ़ॉर मनी (Bharat Interface for Money)। भीम एप्प यूनिफाइएड पेमेंट इंटरफ़ेस (Unified Payment Interface - UPI) पर काम करता है जिसमे किसी भी प्रकार के लेन-देन अथवा भुगतान के लिए UPI-PIN की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इस एप्प से किसी के बैंक अकाउंट नंबर एवं IFSC के मदद से भी मुद्रा का हस्तांतरण किया जा सकता है। भीम एप्प के जरिये आप Bharat QR code जेनेरेट कर सकते हैं। यह सुविधा बहुत सारे UPI APP में अभी उपलब्ध नहीं है। QR code के सहारे आप तुरंत राशि जा भुगतान अथवा राशि की प्राप्ति कर सकते है।

भीम एप्प का प्रयोग कैसे करें?
How to use BHIM App?

सबसे पहले Google Play Store से आपको अपने स्मार्टफोन में BHIM App डाउनलोड करना होगा जिसे Google Play Store से डाउन लोड किया जा सकता है।

उसके बाद अपने बैंक अकाउंट को इस एप्प में रजिस्टर करें।
रजिस्टर करने के साथ ही आप अपने लिए एक UPI Pin Set करें।
इसमें आपका मोबाइल नंबर ही आपका भुगतान का एड्रैस (Address) होगा।
जैसे ही आपका रजिस्ट्रेशन पूरा होता है आप BHIM App के द्वारा लेन-देन शुरू कर सकते हैं।

भीम एप्प (BHIM App ) में आपके बैंक अकाउंट के लिए UPI Pin कैसे Set करें?

अगर आप पहली बार भीम एप्प का इस्तेमाल (Use of BHIM APP) करते हैं तो आपको UPI-PIN बनाने को कहा जाता है। यह 4 से 6 संख्या वाला गुप्त कोड होता है जिसे आपको भीम एप्प के रजिस्ट्रेशन के समय बनाना पड़ता है। यह आपको आपके द्वारा किए जाने वाले सभी बैंक के लेन-देन के लिए दर्ज करना पड़ता है। यदि आप पहले से ही कोई और UPI-PIN का इस्तेमाल अपने स्मार्टफोन में कर रहे हैं तो उस पर दिये गये UPI-PIN का इस्तेमाल आप अपने BHIM App के लिए भी कर सकते हैं।

सबसे पहले आपके द्वारा install किए गए भीम एप्प (BHIM APP) को ओपन करने पर आपको एप्प पासवर्ड सेट करने को कहा जायेगा। आप चार अंकों का एक पिन बना सकते है। इसी पिन की सहायता से बाद में आप इस एप्प को खोल सकते हैं।
  • एप्प को ओपन करने के बाद आप इसके Main Menu में जाएँ।
  • उसके बाद Bank Accounts को Select करें।
  • अब Set UPI Pin, Option को चुनें।
  • आपको अपने ATM/Debit Card का 6 Digit वाला Number डालना होगा अपने Card के Expiry Date के साथ।
  • उसके बाद आपके पास एक OTP प्राप्त होगा।
  • उसको App में Dial करने के बाद आप अपना UPI Pin बना सकते हैं।

क्या भीम एप्प सुरक्षित है?

भीम एप्प दो पासवर्ड से सुरक्षित बनाया गया है। पहला तो जब आप भीम एप्प को खोलते हैं। जैसे ही आप भीम एप्प (BHIM APP) को क्लिक करते हैं आपको एक पासवर्ड दर्ज करना होगा। इसके बाद ही आप इस एप्प पर दाखिल हो सकते हैं। इसके अलावा किसी भी तरह के लेन-देन के लिए आपको UPI-PIN दर्ज करने की आवश्यकता होगी। आप कोई भी लेन-देन बिना UPI-PIN दर्ज किये पूरा नहीं कर सकते हैं। अतः यदि आपका स्मार्टफोन खो भी जाता है तो भी आपको चिंतित होने की जरुरत नहीं है। अतः कहा जा सकता है कि सुरक्ष के मामले में भीम एप्प बहुत सुरक्छित है।

सुरक्छित होने के साथ-साथ यह एप्प सरल एवं तेज भी है। अच्छी तरह से डिजाइन किया हुआ इसका इंटरफ़ेस उपयोग करने में अत्यंत सरल है। तीन से चार स्टेप में ही आप किसी को भी राशि का भुगतान कर सकते हैं।

भीम आधार पे एप्प क्या है?
What is BHIM - Aadhaar Pay App?

भीम आधार पे एप्प जो आधार प्लेटफार्म में काम करता है जिसे व्यापारियों तथा दुकानदारों के लिए विकसित किया गया है। अर्थात व्यापारी/दुकानदार अपने ग्राहक से भुगतान प्राप्त करने के लिए इसे अपने स्मार्टफोन में भीम आधार पे एप्प डाउनलोड कर स्थापित (install) कर सकते हैं। इसमें स्मार्टफोन के साथ एक फिंगरप्रिंट स्कैनर जुड़ा होगा जिसकी मदद से कोई खरीददार किसी सामान के खरीद के एवज में व्यापारी/दुकानदार को भुगतान कर सकेगा। जो उपभोगता की आधार पे एप्प की मदद से भुगतान चाहता है उसे पहले अपना बैंक अकाउंट आधार से लिंक करना होगा। आधार के साथ बैंक अकाउंट लिंक होने के बाद किसी भी व्यापारी/दुकानदार से कुछ खरीदने पर उसका भुगतान मात्र फिंगरप्रिंट के सत्यापन से ही भुगतान किया जा सकता है। यह सत्यापन आधार के बायोमैट्रिक डाटाबेस से किया जाता है। इसके लिए उपभोक्ता को अपना बैंक चुनना होगा। इसके बाद उपभोगक्त को अपना फिंगरप्रिंट देना होगा, जिसके सत्यापन के बाद भुगतान हो जायेगा।

इस तरह के भुगतान के लिए उपभोगता के पास कोई स्मार्टफोन होने की जरुरत नहीं है और ना ही किसी तकनीक की आवश्यकता है। अतः अब आपको अपने साथ अपना डेविट या क्रेडिट कार्ड ले कर चलने की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा किसी तरह के PIN नंबर अथवा MPIN और पासवर्ड याद रखने की आवश्यकता है।

क्या BHIM App को बिना इंटरनेट के कैसे उपयोग किया जा सकता है?

BHIM App को तो आप बिना इंटरनेट के उपयोग नहीं कर सकते हैं पर BHIM की *99# की सुविधा को किसी भी साधारण फ़ोन से आप बिना इंटरनेट के इस्तेमाल कर सकते हैं।

BHIM App का उपयोग दूकानदार Shopkeeper कैसे कर सकते हैं?

दुकानदार के मोबाइल फ़ोन पर Customer का Mobile Number type करना होगा। उसके बाद Customer को अपना Bank Account चुनना होगा जो उसके Adhaar Card से Link किया हुआ हो। दूकानदार को एक Finger Print Reader का उपयोग करना होगा जिसमें Customer का Finger Print Confirm किया जाएगा। Customer को अपना Adhaar Card लेकर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है उसे मात्र Number और स्वयं जाना होगा।

क्या BHIM App में भी Wallet है जिसको पैसे भेजने से पहले Fill करना पड़ता है?

BHIM App में आपका UPI (United Payments Interface) Support करने वाला Bank Directly आपके भीम एप्प से Connect रहेगा। आपका हर Transaction सीधा बैंक से होगा। इसके लिए आपको किसी भी प्रकार के Paytm के जैसे Wallet की आवश्यकता नहीं है।

BHIM App की Transaction Limit कितनी है?

BHIM App में ज्यादा से ज्यादा 10000 रूपए प्रति Transaction और एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 20000 रूपए 24 घंटे में लें दें कर सकते हैं।


क्या हम BHIM App में एक से अधिक Bank Account Add कर सकते हैं?

अभी BHIM App में आप अपना एक ही Bank Account Link कर सकते हैं। Account का Setup करते समय अपने किसी एक Bank Account को अपना Default Account के रूप में चुने।

कौन से बैंक भीम एप्प में सपोर्ट करते हैं? Which Banks Support Transactions in BHIM App?

अभी जो List भारत सरकार ने की है उसके अनुसार BHIM App Support करने वाले Bank हैं –

Allahabad Bank, Andhra Bank, Axis Bank, Bank of Baroda, Bank of India, Bank of Maharashtra, Canara Bank, Catholic Syrian Bank, Central Bank of India, DCB Bank, Dena Bank, Federal Bank, HDFC Bank, ICICI Bank, IDBI Bank, IDFC Bank, Indian Bank, Indian Overseas Bank, IndusInd Bank, Karnataka Bank, Karur Vysya Bank, Kotak Mahindra Bank, Oriental Bank of Commerce, Punjab National Bank, RBL Bank, South Indian Bank, Standard Chartered Bank, State Bank of India, Syndicate Bank, Union Bank of India, United Bank of India, Vijaya Bank.


देश के पाँच प्रसिद्ध राष्ट्रिय उद्यान (National Park) जो विश्व धरोहर में शामिल है

उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक हमारा देश प्रकृतिक सौन्दर्यों से भरा-पूरा है। हमारा देश जितना ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए हैं उतना ही प्राकृतिक विरासत भी इसका अभिन्न अंग है। इन प्रकृतिक विरसतों में कई राष्ट्रिय उद्यान (National Park) हैं जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) ने भी विश्व धरोवर की सूची में शामिल किया है। 
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान (Great Himalayan National Park - GHNP)
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान
ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान (जी एच एन पी) हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है। युनेस्को के विश्व धरोहर समिति ने सन 2014 ई० में ग्रेट हिमालियन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र को विश्व धरोहर (World Heritage) सूची में सम्मिलित किया है। 1984 में बनाए गए इस पार्क को 1919 में राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया था। यह संरक्षण क्षेत्र कुल 1171 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमें ग्रेट हिमालियन राष्ट्रिय उद्यान के साथ-साथ पश्चमी सीमा से 5 किलोमीटर तक के क्षेत्र को प्राणिक्षेत्र के रूप में रखा गया है जिसके अंतर्गत लगभग 160 गाँव आते है जिसमें 15000 से 16000 गरीब लोग रहते हैं जो अपनी जीविका इसी जंगल से चलाते है। इसके अलावा शगवार, शक्ति एवं मरोर गाँव को मिला कर सैंज वन्यजीव अभयारण्य (Sainj Wildlife Sanctuary) का विकास किया गया है तथा इसके दक्षिण में तीर्थन वन्यजीव अभयारण्य (Tirthan Wildlife Sanctuary) बनाया गया है। इस में 25 से अधिक प्रकार के वन, 800 प्रकार के पौधे और 180 से अधिक पक्षी प्रजातियां का वास है। हिमालय के भूरे भालू के क्षेत्र वाला या नेशनल पार्क कुल्लू जिले में 620 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और यहां सम शीतोष्ण एवं एलपाइन वन पाए जाते हैं। साथ ही यहां पश्चिमी हिमालय की अनेक महत्वपूर्ण वन्यजीव प्रजातियां पाई जाती है जैसे मस्क, डियर, ब्राउन बियर, गोराल, थार, चीता, बर्फानी चीता आदि।

सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान (Sundervan National Park)
सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान
भारत का यह राष्ट्रीय उद्यान बंगाल के 24 परगना जिले के दक्षिण - पूर्वी भाग में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। एक सदाबहार पौधा जिसका नाम है 'सुंदरी' जिसके नाम पर ही इसका नाम सुंदरवन पड़ा है। यह बाघ संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्पीयर रिजर्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र सदाबहार वनों से घिरा हुआ है और यह रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। इस वन में पक्षियों, सरीसृप तथा रीढ़विहीन की कई प्रजातियां पाई जाती है। इसके साथ ही यहां खारे पानी का मगरमच्छ भी मिलते हैं। वर्तमान सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान, 1973 में मूल सुंदरवन बाघ रिजर्व क्षेत्र का कोर क्षेत्र तथा 1977 में वन्य जीवन अभ्यारण्य घोषित किया हुआ था। 4 मई 1984 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह सफेद बाघ का संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park)
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भारत की राजस्थान में स्थित एक विख्यात पक्षीअभ्यारण है जो दिल्ली से लगभग 190 किलोमीटर दूर स्थित है। इस उद्यान को पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इसमें लगभग 380 निवासी एवं प्रवासी प्रजाति के पक्षियाँ जिनमे सामान्य एवं हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त हो रहे पक्षी पाए जाते हैं। सर्दियों के मौसम में साइबेरियन सारस यहाँ आते हैं। अब यह एक बहुत बड़ा पर्यटन स्थल और केंद्र बन गया है। जहां पर बहुतायत में पक्षीविज्ञानी शीत ऋतु में आते हैं। इस उद्यान को 1971 में संरक्षित पक्षी अभ्यारन्य घोषित किया गया था और बाद में 1950 ई में युनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोवर घोषित किया गया है। इसका निर्माण 250 वर्ष पुराना है इसका नाम यहां के प्रसिद्ध शिव मंदिर (केवलादेव) के नाम पर रखा गया है।

मानस राष्ट्रीय उद्यान (Manas National Park)
मानस राष्ट्रीय उद्यान भारत के असम (Assam) राज्य में स्थित है। यह हमारे देश का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान है। यह उद्यान एक सींग का गैंडा (भारतीय गैंडा) और बारासिंघा के लिए प्रसिद्ध है। इसके अंतर्गत 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत स्थापित 840.04 वर्ग किलोमीटर का इलाका मानस व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है। यह भूटान की तराई में बोडो क्षेत्रीय परिषद की देखरेख में 950 वर्ग किलोमीटर से भी बड़े इलाके में फैला है।  इसे 1985 में विश्व धरोवर स्थल का दर्जा दिया गया था। लेकिन 80 के दशक के अंत और 90 के दशक के शुरू में बोडो विद्रोही गतिविधियों के कारण इस उद्यान को 1992 में विश्व धरोवर स्थल सूची से हटा दिया गया था। जून 2011 में यह पुनः यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल कर लिया गया है।

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान (Nandadevi National Park)
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान भारत की उत्तराखंड (Uttrakhand) राज्य में नंदा देवी पर्वत के आसपास का इलाका है। यह 630.33 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसको 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यहां फूलों की घाटी और राष्ट्रीय उद्यान को मिलाकर 1988 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया। फूलों की घाटी और राष्ट्रीय उद्यान के साथ मिलकर नंदा देवी बायोस्फेयर रिजर्व बनता है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2236 वर्ग किलोमीटर है। यह रिजर्व यूनेस्को की विश्व के बायोस्फेर रिजर्व की सूची में 2004 से अंकित है। यह चारों ओर से 6000 मीटर से 7500 मीटर ऊंची चोटीयों से घिरी हुई है। समुद्र की सतह से इसकी ऊंचाई 3500 मीटर है।

सबसे साफ-सुथरा ग्लेशियर है - मारगेरैय ग्लेशियर (Margerie Glacier)

मारगेरैय ग्लेशियर  (Margerie Glacier): यह ग्लेशियर 21 मील (3 किलोमीटर) लंबा है। यह अलास्का  में स्थित है। यह ग्लेशियर बे नेशनल पार्क और प्रीजर्व का भी हिस्सा है। ग्लेशियर का नाम फ़्रांस के प्रसिद्ध ज्योग्राफ और ज्यूलोजिस्ट इमेनुएल डी मारगेरैय के नाम पर रखा गया है। इमेनुएल पहली बार 1913 में इस ग्लेशियर की यात्रा की थी। वह ग्लेशियर बे का मुख्य हिस्सा है जिसे 26 फरवरी 1925 को नेशनल मोन्यूमेंट घोषित किया गया था। इसे 2 दिसंबर 1980 को नेशनल पार्क एंड वाइल्ड लाइफ प्रीजर्व घोषित किया गया था। यूनेस्को ने 1986 में वर्ल्ड बायोस्फेयर रिजर्व और 1992 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट की श्रेणी में इसे रखा था। ग्लेशियर बे के अंत में स्थित मारगेरैय ग्लेशियर की चौड़ाई एक मील (1.6 किलोमीटर) तक फैली है।
मारगेरैय ग्लेशियर टाइड-वाटर ग्लेशियर की श्रेणी में आता है। इसकी ऊंचाई 350 फीट है जिसमें से 250 फुट वाटर लेवल से ऊपर है और 100 फुट वाटर लेवल से नीचे है। इसकी ऊंचाई स्टेचू ऑफ लिबर्टी से भी ज्यादा है। इसका लेयर कर्व है और इसमें रॉक और आइस मिला हुआ है। यह जिगजैग और ट्विस्टेड फॉर्म में है। किरणों को अब्सॉर्व करने की क्षमता के कारण इसका बर्फ नीले रंग का दिखता है। दूसरे अन्य ग्लेशियर के मुकाबले यह बहुत ज्यादा साफ-सुथरा है या सबसे एक्टिव ग्लेशियर है। यह कलविंग के लिए एक्टिव है। इसका मतलब होता है बर्फ की दीवार का टूट-टूट कर समुद्र में गिरना। जब यह टूटता  है, तो राइफल के चलने जैसी आवाज आती है। यह ग्लेशियर मरीन और टेरेस्ट्रीयल वाइल्ड लाइफ के लिए जाना जाता है। यह व्हेल, पक्षियों और भालू के निवास के लिए बहुत अनुकूल जगह है।
ग्लेशियर बे नेशनल पार्क प्रीजर्व विश्व का सबसे बड़ा प्रोटेक्टेड एरिया है। इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट की श्रेणी में रखा गया है। इसे यूनाइटेड नेशन के बायोस्फेयर रिजर्व मैं भी शामिल किया गया है। 1794 में जब कैप्टन वैनकोवर यहां से गुजरे थे तो यहां सिर्फ बर्फ था कोई खाड़ी (बे) नहीं थी। 80 प्रतिशत विजिटर्स ग्लेशियर को देखने के लिए क्रूज शिप की सवारी करके यहां आते हैं।

चमगादड़ पेड़ों में उल्टा क्यों लटकता है

उल्टा क्यों लटकता है चमगादड़ (Bat)
उल्टा क्यों लटकता है चमगादड़ (Bat)
तुमने बाग में से गुजरते हुए वृक्षों पर या घर में कहीं भी चमगादड़ों को लटकते हुए देखा होगा। यह हमेशा उल्टा ही क्यों लटकता है। इसके बारे में जानना बहुत रोचक है। यह कहीं भी लटकता है तो हमेशा उल्टा ही लटकता है। चाहे वह छत हो या फिर पेड़ की टहनी। ऐसे लटके चमगादड़ को देखकर लोग डर भी जाते हैं। चमगादड़ के उल्टा लटकने का मुख्य कारण यह है कि इसके पैरों की हड्डियां बहुत कमजोर होती है। इसकी कमजोर हड्डियां इसके शरीर का भार उठाने या संभाल पाने में सक्षम नहीं होती है। जब चमगादड़ जमीन पर होता है तब अपने शरीर का सारा भार जमीन पर ही डाल देता है। ऐसा करने से पैरों पर शरीर का भार बहुत कम पड़ता है। तभी नीचे बैठा हुआ चमगादड़ जमीन पर पसरा हुआ दिखाई देता है। जब चमगादड़ वृक्ष की किसी शाखा पर उल्टा लटकता है तब उसके शरीर का भार पैरों पर ना पड़कर शरीर की तनी हुई मांसपेशियों और स्नायुओं में पड़ता है। अपने पैरों को बचाने के लिए ही चमगादड़ वृक्ष पर उल्टा लटकता है। दूसरा कारण यह है कि उल्टा लटके होने पर यह आसानी से उड़ान भरने में सफल होता है। इसके अलावा उल्टा लटकने से उन्हें शिकारी पक्षियों से भी सुरक्षा मिलती है।

चने में विद्यमान पोषक तत्व और उनका हमारे शरीर में होने वाले फायदे

चना (Gram) भारतीय खान-पान के प्रमुख अनाजों में से है। इसे शक्तिवर्धक अनाज (Enhancing grain) माना जाता रहा है। यह तो सभी जानते हैं कि यह न सिर्फ पाचन को सही रखता है बल्कि हृदय को भी सुरक्षित रखता है। चना का प्रयोग भारत में सदियों से हो रहा है। इसे सीधे प्रयोग करने के अलावा दाल और उससे बने उत्पादों के रूप में भी होता है। इसका स्वाद तो अलग और अनोखा होता ही है साथ ही इसका प्रयोग ताकत बढ़ाने के लिए भी किया जाता रहा है। इसे अंकुरित कर के भी खाया जाता है ऐसे कई कारण हैं जिनके कारण चना को स्वास्थ्य के लिए बेहतर (Gram is good for health) माना जाता है। प्रस्तुत हैं आठ कारण जिनसे चना स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। 
Benefits of gram
1. वजन घटाने (Weight loss) के लिए : चना को प्राकृतिक रूप से वजन घटाने में सहायक माना जाता है। ऐसा इसमें फाइबर कंटेंट (Fiber content) कि अधिकता के कारण होता है। ये न सिर्फ आपके भूख को कंट्रोल करते हैं बल्कि लंबे समय तक आपके पेट को भरा भी रखते हैं। शाकाहारी (Vegetarian) लोगों के लिए यह प्रोटीन (Protein) का भी बेहतर स्त्रोत है। इससे आपके वजन को नियंत्रित (Weight management) करने में भी मदद मिलती है। 

2. शरीर में शक्ति (Power) और रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ाता है: चना में खनिज लवण (Minerals) के रूप में मैगनिज काफी मात्रा में होता है। इसके अलावा इसमें जरूरी पोषक तत्व जैसे थायमीन, मैंगीशियम और फॉस्फोरस भी पाया जाता है। मैंगीशियम शरीर में ऊर्जा के उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है। 
3. ब्लड शुगर लेवल (Blood Sugar Level) सही रखता है : चना का ग्लाइसेमिक इंडेक्स लो होता है। इस कारण से यह डायबिटीज के रोगियों के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। इसके कारण  ब्लड ग्लूकोज बहुत धीमे-धीमे बढ़ता है। इसमें सोंल्यूबल फाइबर, हाइ प्रोटीन और आयरन होता है। ये तत्व भी ब्लड शूगर लेवल को मैनेज करने में मददगार हैं।

4. महिलाओं में होंर्मोंन का लेवल (Hormones level) नियमित रखता है। इससे ब्रेस्ट कैंसर (Breast cancer) और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा कम हों जाता है। 

5. एनिमिया होने से बचाता है : चना में आयरन इतनी मात्रा में मौजूद होता है कि यह शरीर के आयरन कि जरूरत को आसानी से पूरा करता है और एनिमिया होने से रोकता है। बच्चे और महिलाओं के एनिमिया का खतरा अत्यधिक होता है। इसी कारण से उन्हें नियमित चना का सेवन करने के लिए कहा जाता है।   

6. रक्तचाप (Blood pressure) नियंत्रित करता है: चना रक्त वाहिकाओं (blood vessels) को सामान्य करता है, जिससे हाइपरटेंशन का खतरा कम होता है। इस दलहन में पोटैशियम और मैग्नीशियम भी होता है, जो शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स को भी बैलेंस करता है। 

7. पाचन संबंधी समस्याओं से बचाता है : फाइबर की अधिक मात्रा के कारण यह पाचन तंत्र (Digestive System) और आंत को भी बेहतर बनाये रखता है। इससे पाचन संबंधी समस्याएं नहीं होती हैं। इसके पोषक तत्व कब्ज को भी दूर करता हैं। 

8. हृदय संबंधी रोगों (heart diseases) से दूर रखता है: विशेषज्ञों के अनुसार काला चना रोज खाने से कई प्रकार के हृदय संबंधी समस्याओं को कम कर देता है। इसमें मैग्नीशियम और फोंलेट भी काफी मात्रा में होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने का कार्य करते हैं। 

किडनी को स्वस्थ कैसे रखें, किडनी रोगों के लक्षण, किडनी ट्रांसप्लांट, किडनी फेल्योर एवं डायलिसिस क्या है

हम जाने अनजाने कई ऐसी बातें अपने व्यवहार में लाते हैं, जिनसे किडनी को नुकसान (Kidney ko nuksan) पहुचता है। मसलन, डॉक्टर की तमाम सलाहों के बावजूद लोग जरुरत भर पानी नहीं पीते, जो चुपचाप किडनी को डैमेज करता (Kidney ko damage karta) जाता है। जानिए किन छोटी-छोटी बातों का आपको रखना है पूरा ख्याल। किडनी के डैमेज होने केे लिए हम सिर्फ बड़े कारणों को ही जिम्मेवार मानते हैं। लेकिन वास्तव में हमारी जीवनशैली में ही कई ऐसी गलत आदतें होती है, जिनसे किडनी डैमेज (Kidney damage) हो जाते है। इन छोटी बातों का ध्यान रख कर भी किडनी को स्वस्थ रखा (Kidney ko svasth rakhana) जा सकता है।
Kidney
क्या है किडनी रोगों के लक्षण (Symptoms of kidney disease in hindi) :-
किडनी खराब तब मानी जाती है जब वह अपना कार्य ठीक प्रकार से न कर पाये। ऐसे में प्रारंभिक दौर में शरीर में कई प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं, जिनमे से मुख्या लक्षण (Kidney rogon ke lakchan) इस प्रकार है:-
  • सुबह के समय चेहरे पर ज्यादा सूजन होना। सूजन दिन भा रहती है, लेकिन सुबह में अघिक होती है।
  • कमजोरी और थकान महसूस होना
  • भूख न लगना और उल्टी, जी-मिचलने जैसी समस्या होना।
  • घुटनों में सूजन।
  • शरीर में खून की कमी होना।
  •  कमर के नीचे दर्द रहना।
  •  दवा खाने के बाद भी बीपी का कंट्रोल न होना।
पांच प्रकार का होता है किडनी फेल्योर (Types of Kidney Failure in hindi)

एक्यूट प्री-रीनल किडनी फेल्योर (Acute Pre-renal Kidney Failure):- यह किडनी में खून (Kidney me khoon) की पर्याप्त मात्रा नहीं जाने  से होता है। प्रयाप्त मात्रा में खूंन न मिलने से किडनी खून से विषैले तत्वों को बाहर नहीं निकाल पाता है। इसे दवाइयों से ठीक किया जा सकता है। 

एक्यूट इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर (Acute Intrinsic Kidney Failure):- यह एक्सीडेंट या किसी अन्य वजह से किडनी के क्षतिग्रस्त होने से होता है। शरीर से अत्यधिक खून बह जाने से भी होता है . इसके होने का मुख्य कारण किडनी में ऑक्सीजन की कमी (Kidney me oxygen) होती है।

क्रॉनिक प्री-रीनल किडनी फेल्योर (Chronic Pre-renal Kidney Failure):- एक्यूट प्री-रीनल किडनी फेल्योर के ट्रीटमेंट के बाद भी समस्या लंबे समय तक बनी रहती है और ठीक नहीं होती, तब इसे क्रॉनिक प्री-रीनल किडनी फेल्योर कहते हैं। इसमें किडनी पूरी तरह खराब हो जाता है।

क्रॉनिक इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर (Chronic Intrinsic Kidney Failure):- लंबे समय तक एक्यूट इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर ठीक न होने पर क्रॉनिक इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर हो जाता है।

क्रॉनिक पोस्ट-रीनल किडनी फेल्योर (Chronic Post-Renal Kidney Failure):- यह पेशाब को रोकने के कारण होता है। ऐसा करने से यूरिनरी ट्रेक्ट किडनी पर प्रेशर डालता है, जिससे किडनी डैमेज होने की आशंका होती है।

किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत कब पड़ती है (Kidney Transplant in hindi)

किडनी जब दवाइयों या अन्य तरीके से ठोक नहीं हो पाता है, तब अंतिम उपचार किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney transplant) है। इसके लिए किडनी डोनर की जरूरत होती है। ट्रांसप्लांट के 90% मामले सफल रहते हैं और 4-5 व्र्ष तक सही तरीके से कार्य करते हैं। ट्रांसप्लांट के साइड इफेक्ट (Kidney transplant ke side effect) भी है। इसमें सर्जरी के बाद मरीज को इम्यूनोस्प्रेसिव ड्रग दिया जाता है, ताकि नये किडनी को शरीर रिजेक्ट न करें।  लेकिन इससे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कोई भी व्यक्ति जिसका ब्लड ग्रुप मरीज से मिलता हो, किडनी डोनर हो सकता है। डोनर की आयु 18 से 55 साल के बीच होनी चाहिए। डोनर को भी एक महीने तक डॉक्टर की देख रेख में रहना पड़ता है।

ट्रांसप्लांट के बाद रखें ध्यान (Transplant ke bad kya dhyan rakhen)

  • सर्जरी के बाद इंफेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है, ऐसे में सफाई के लिहाज से सावधानी बरतने की जरूरत है। अत: हाइजीन का ख्याल रखें।
  • सर्जरी के बाद पेट दर्द, बुखार, जुकाम आदि होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। सेल्फ मेडिकेशन न करें।सलाह के अनुसार लें।
  • भोजनं समय पर ले।
क्या है डायलिसिस:- (What is dialysis in hindi)

डायलिसिस ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किडनी का कार्य मशीन करती है।मरीज की किडनी फेल हो जाये ओर तुरंत ट्रांसप्लांट संभव नहीं हो, तो कुछ समय के लिए मरीज को डायलिसिस पर रखा जाता है। डायलिसिस के दौरान मरीज को काफी परहेज रखना होता है। डायलिसिस किडनी फेल्योर का ट्रीटमेंट नहीं होता, बल्कि अस्थायी किडनी का कार्य करता है।
इन्हें भी देखें: किडनी के पथरी (Kidney stone) की जांच कैसे होती है?
ऐसे रखें किडनी को स्वस्थ (How  to Keep your kidney healthy)


पानी की कमी:- आज-कल हमारी जीवन शैली कुछ ऐसी हो गई है कि हम खुद के लिए भी समय निकाल नहीं पाते है। काम  में हम इतना व्यस्त हो जाते हैं कि शरीर के लिए जरूरत भर पानी भी नहीं पी पाते हैं। इसके कारण शरीर की सफाई ठीक से नहीं हो पाती और किडनी डैमेज हो जाता है। कभी-कभी इससे किडनी में स्टोन भी बन जाते है। इन समस्याओं से बचने के लिए तीन से चार लीटर पानी रोजाना पीने कि आदत डालना जरूरी है।

नमक:- कई लोगों को हम अक्सर देखते हैं कि खाना खाने के पहले वे अपने भोजन में अतिरिक्त नमक का इस्तेमाल करते हैं। आपको यह सामान्य लगता होगा। यदि आपको इस तरह कि आदत है तो इससे बचे। क्योंकि इस छोटी सी आदत से आपके किडनी पर बुरा  प्रभाव पड़ता है। नमक में सोडियम होता है। यह ब्लड प्रेशर के बढ़ने का बड़ा कारण है, जो समय के साथ किडनी को भी डैमेज करता है। अतः भोजन के साथ अतिरिक्त नमक का सेवन न करें। 

धुर्मपान:- स्मोकिंग से हाई बीपी की समस्या बढती है। बीपी बढ़ने के कारण अन्य अंगो के साथ-साथ किडनी पर भी दबाव पड़ता है। इससे किडनी फेल्योर का खतरा कई गुना बढ जाता है, साथ ही किडनी के कैंसर का खतरा भी बढ़ता है। अतः धुर्मपान से बचें। 

पेन किलर:- जब कभी भी हमे हमारे शरीर किसी भी अंग में दर्द कि शिकायत होती है तो हम बिना सोचे समझे ही दर्द कि दावा का प्रयोग कर लेते हैं। उस समय तो हमे उस दर्द से निजात मिल जाती है। लेकिन दर्द की दवाओं (Pain Killer) का प्रयोग बिना डॉक्टर की सलाह के करने से शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचता है। चूंकि किडनी शरीर का फिल्टर है, इसलिए दवाइयां इसमें पहुंच का उसे भी डैमेज करने लगती है। अतः बिना डॉक्टर कि सलाह के दर्द कि दवाइयों का सेवन न करें। 

हेपेटाइटिस बी और सी:- इस रोग में हमे थोड़ी भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि इससे शरीर के कई अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण भी किडनी के नेफ्रॉन डैमेज होते है। अत: किसी मरीज को यदि किडनी की समस्याएं होती है तो डॉक्टर हेपेटाइटिस की जांच की भी सलाह देते हैं। ताकि अधिक डैमेज से बचाया जा सके।

डायबिटिक नेफ्रोपैथी:- डायबिटीज में शरीर में ब्लड शूगर लेबल बढ़ जाता है। इस कारण ब्लड वेसेल्स पर बुरा प्रभाव पड़ता है। किडनी शरीर का फिल्टर है। इसमें फिल्टर करने के लिए असंख्य यूनिट होते है। इन्हें नेफ्रान कहते हैं। उनमें भी सूक्ष्म ब्लड वेसेल्स होते हैं। ब्लड शूगर बढ़ जाने के कारण ये वेसेल्स भी डैमेज हो जाते हैं।इससे एक-एक करके नेफ्रॉन डैमेज हो जाते हैं। इसे ही डायबिटिक नेफ्रीपैथी कहते हैं। अत्यधिक डैमेज होने की स्थिति में प्रोटीन फिल्टर नहीं हो पाता है। इस कारण पेशाब में एल्ब्यूमिन आने लगता है। इसका पता पेशाब की जांच से चलता है। एक बार किडनी के डैमेज हो जाने की स्थिति में इसके फिल्टर करने की क्षमता कम हो जाती है। यदि समय पर इसका पता चल जाये, तो समय पर किडनी को बचाया जा सकता है अन्यथा किडनी फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है। अतः ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करें कि कोशिश करनी चाहिए।

पेशाब को रोकना:- पेशाब को रोक कर रखने पर यह किडनी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। ऐसा करने से किडनी पर दबाव पड़ता है। ऐसा बार बार किया जाये, तो किडनी की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। 

ये पांच आदतें किडनी के लिए है खतरनाक
  • व्यायाम न करना
  • शराब का सेवन करना
  • अत्यधिक नॉन वेज खाना
  • पानी कम पीना और इससे डीहाइड्रेशन होना
  •  फास्ट फूड और सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन

तुलसी में जल डालना, नदी में सिक्का फेंकना, पीपल में जल डालना, हाथ जोड़ कर नमस्कार करने का अर्थ क्या है

हमारे देश में प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों द्वारा कुछ नियमों का पालन करने हेतु विशेष बल दिया जाता रहा है। जिसे तुलसी के पौधे को प्रतिदिन जल देना, दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करना, पीपल के पेड़ में जल डालना, नदी में सिक्का फेंकना, सूर्य नमस्कार करना इत्यादि। ये परंपराएँ (traditions) लोगों को डराने के लिए नहीं गड़ी गई थी। जो लोग आज भी ऐसा सोचते हैं उन्हें इन परंपराओं के पीछे निहित वैज्ञानिक महत्व को जानने समझने की जरूरत है। इन सभी मान्यताओं के पीछे कई सारे वैज्ञानिक कारण निहित है, जो मानसिक एवं शारीरिक स्वस्थ पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। आज सम्पूर्ण विश्व हमारी इन परंपराओं में निहित वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्वीकार कर चुका है। 

तुलसी के पौधे (Tulsi plant) में जल डालना
Importance of religious traditions
हम अक्सर घरों के आँगन में एक तुलसी का पौधा देखते हैं। जिसे प्रतिदिन सुबह हमारी माताएँ जल चढ़ती है। तुलसी का पौधा एक एंटीबायोटिक मेडिसिन होता है। इस के सेवन से शरीर के प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। बीमारियां दूर भागती हैं और शारीरिक द्रव्य का संतुलन बना रहता है। इसके अलावा तुलसी का पौधा अगर घर में हो तो घर में मच्छर मक्खी सांप आदि के आने का खतरा नहीं होता। 

पीपल में जल डालना

पीपल का पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन करता है, जहां अन्य पेड़-पौधे रात के समय में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं, वहीँ पीपल का पेड़ रात में भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मुक्त करता है। इसी वजह से बड़े बुजुर्गों ने इसके संरक्षण पर विशेष बल दिया है। पुराने जमाने में लोग रात के समय पीपल के पेड़ के नजदीक जाने से मना करते थे। उनके अनुसार पीपल में बुरी आत्माओं का वास होता है, जबकि सच तो यह है कि आक्सीजन की अधिकता के कारण मनुष्य को दम घुटने का एहसास होता है।

दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करना

हमारे देश में समान्यतः जब हम किसी से मिलते हैं तो हम अपने दोनों हाथों को जोड़ कर नमस्ते कहते हैं, जिसका अर्थ है कि हम सामने वाले व्यक्ति को आदर दे रहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इस मुद्रा में हमारी उंगलियों के शिरोबिंदुओं (टिप्स) का मिलान होता है। यहां पर आंख, कान, और मस्तिष्क के प्रेशर पॉइंट्स होते हैं। दोनों हाथ जोड़ने के क्रम में इन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है । इससे संवेदी चक्र प्रभावित होते हैं। जिसकी वजह से हम उस व्यक्ति को अधिक समय तक याद रख पाते हैं साथ ही किसी तरह का शारीरिक संपर्क ना होने से कीटाणुओं के संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता। 
नदी में सिक्का फेंकना

पुराने जमाने में ऐसा करने का मतलब अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना होता था। उस समय तांबे यह चांदी के सिक्कों का चलन था वैज्ञानिक दृष्टि से तांबा या चांदी हमारे शरीर के लिए लाभदायक धातु है। इस परंपरा का मूल उद्देश्य जल में इन धातुओं की मात्रा को बढ़ाना या बनाए रखना था। जो लोग अब भी ऐसा करते हैं उन्हें यह जानना चाहिए कि आजकल स्टेनलेस स्टील के सिक्कों का प्रचलन है। इन में कई तरह के अन्य रासायनिक धातु मिक्स होते हैं। यह स्वस्थ की दृष्टि से हानिकारक हैं इसलिए अब ऐसा करना उचित नहीं है।

सूर्य नमस्कार

प्राचीन वेदों एवं शास्त्रों में सूर्य को ब्रमांड की समस्त उर्जा का प्रतीक माना गया है। हिंदू मान्यता अनुसार सुबह सवेरे सूर्य की दिशा में मुंह करके जल अर्पित करने की क्रिया को महत्वपूर्ण माना गया है। प्रातःकाल इन सूर्य की किरणें हमारी आंखों और हमारे शरीर के उर्जा चक्र को सक्रिय करने में सहायक होती है। 

डायबिटीज रोगियों पर इंसुलिन का प्रयोग कैसे करें

आज के हमारी व्यस्त जीवनशैली एवं फास्ट फूड  के प्रयोग से अक्सर उम्र के बढ़ने के साथ-साथ बहुत सारे लोग डायबिटीज (Diabetes) अर्थात मधुमेह का शिकार होते जा रहे हैं। इसमें ब्लड शूगर लेवल (Blood sugar level) बढ़ जाता है, जो इंसुलिन (Insulin) से कंट्रोल होता है। इसे लेते समय भी कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, अन्यथा साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं।
Use of insulin

हमारे शरीर में ब्लड में शूगर का लेवल काफी मायने रखता है। शरीर में शूगर के कई रूप होते हैं, जैसे- गैलेक्टोज (glactose), ग्लूकोज (glucose) आदि शूगर ही शरीर में ऊर्जा का स्त्रोत होता है, इसकी कम मात्रा और अधिक मात्रा दोनों से अंगो को नुकसान पहुंच सकता है। इसी के लेवल को शरीर में कंट्रोल करने का काम इंसुलिन करता है।


क्या है इंसुलिन (What is Insulin in hindi)
इंसुलिन एक होंमोंन है, जो अग्न्याशय (Pancreas) के वीटा सेल से उत्सर्जित होता है। हम जो भोजन करते है उस भोजन में कार्बोहाइड्रेट होता है। उस कार्बोहाइड्रेट से हमारे शरीर में शुगर का इस्तेमाल करने के लिए इंसुलिन ही सहायता करता है, जिससे शरीर को ऊर्जा प्राप्त होता है। यह हमारे शरीर में हाई ब्लड शुगर (High Blood Sugar) एवं लॉ ब्लड शुगर (Low Blood Sugar) को नियंत्रित करता है।

इंसुलिन कितने प्रकार का होता है (Types of Insulin in hindi)

रैपिड एक्टिंग इंसुलिन (Rapid Acting Insulin): यह इंसुलिन का इस्तेमाल करने  के 15 मिनट में काम शुरू कर देता है। यह 2-4 घंटे तक सक्रिय रहता है।

रेग्यूलर/शॉर्ट एक्टिंग इंसुलिन (Regular/Short Acting Insulin) : यह इंसुलिन इस्तेमाल करने के 30 मिनट के बाद खून में घुलता है। इसका असर 3-6 घंटे तक रहता है।

इंटरमीडिएट एक्टिंग इंसुलिन (Intermediate acting Insulin) : यह इंसुलिन इस्तेमाल करने के 2-4 घंटे में खून में घुलने लगता है और इसका असर 12-18 घंटे तक रहता है।

लॉन्ग एक्टिंग इंसुलिन (Long Acting Insulin) : इसमें इंसुलिन कई घंटों के बाद खून में घुलता है। यह 24 घंटे के दौरान खून में ग्लूकोज के लेवल को कम रखता है।
इंसुलिन के प्रयोग से पहले रखें ध्यान 

  • अगर इंसुलिन से एलर्जी है, तो इसे न लें। इसके अलावा यदि ब्लड शूगर कम है (हाइपोग्लाइसेमिया) तब भी इससे परहेज करें। 
  • यदि लिवर या किडनी रोग हो, तो डॉक्टर को जरूर बताएं। 
  • दूध पिलाने वाली महिलाओं को इंसुलिन लेने से पहले डॉक्टर के सलाह अवश्य ले लेना चाहिए।
  • पहले से डायबिटीज के लिए कोई दवा ले रहे हैं, जैसे पायोलिटाजोन और रोगीग्लिटाजोन तो इंसुलिन लेने से पहले डॉक्टर को जरूर बताएं। ऐसे में इंसुलिन लेने से हृदय रोगों का खतरा हो सकता है। 
  • ट्रीटमेंट के दौरान प्रेग्नेंट हैं या तैयारी में है, तब भी डॉक्टर से सलाह लें। 
क्या हैं इसके साइड इफेक्ट्स 

  • शरीर में इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाने से ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है। इस स्थिति को हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं।
  • इससे सिर में हल्कापन, कांपना, अशक्तता, पसीना आदि लक्षण हो सकते हैं।
  • यदि ये लक्षण गंभीर हो जाएं, तो रोगी अपनी चेतना भी खो सकता है।
  • इन्सुलिन की कमी से, शरीर में अधिक मात्रा में फैट जमा होने लगता है।
  • आहार के प्रति लापरवाही बरतने एवं इन्सुलिन की सही मात्रा न लेना खतरनाक हो सकता है।
डायबिटीज के टाइप के अनुसार दिया जाता है इंसुलिन

टाइप 1: मरीज पूरी तरह इंसुलिन पर निर्भर रहता है। शरीर इंसुलिन पर निर्भर रहता है। शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता है। यह आनुवांशिक है और ज्यादातर युवाओं और बच्चों में होता है। इसे जुवेनाइल डायबिटीज कहते हैं। इसमें अधिकतर इंजेक्शन दिया जाता है।

टाइप 2: शरीर कम मात्रा में इंसुलिन बनाता है। ऐसे रोगियों को दवाई देकर ग्लूकोज सही लेवल में लाते हैं। यह बूढ़े या मोटे लोगों में होता है। इसमें ओरल मेडिसिन दिया जाता है। पहले से इंसुलिन बनने से इसकी मात्रा कम दी जाती है। 90% केस लेवल टाइप 2 के होते हैं। यदि ग्लूकोज का स्तर 200 से कम हो, तो दवा के स्थान पर व्यायाम, भोजन पर नियंत्रण और आहार में परिवर्तन लाकर उपचार किया जा सकता है। 

जीवनशैली रखें नियंत्रित : डायबिटीज में खान-पान का विशेष ध्यान रखें। खाना सेहतमंद हो, तैलीय पदार्थो और मीठी चीजों से जीवन भर दूरी बना कर रखें। प्रतिदिन व्यायाम करें। इस रोग में पैरों एवं आंखों का खास ख्याल रखें। नियमित रूप से अपनी जांच कराते रहें। 

शौच में खून आना कैंसर भी हो सकता है

आमतौर पर शौच में खून आने की समस्या पाइल्स (बाबासीर) के कारण ही होती है। परंतु यदि आपको बाबासीर की  समस्या नहीं है और आपके शौच में खून आ रहा है तो आप सतर्क हो जाइये। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए और तुरंत ही किसी अनुभवी डॉक्टर से उपचार अवश्य करना चाहिए।

एक व्यक्ति को कई दिनों से शौच में खून आने की शिकायत थी। उस व्यक्ति ने इस संबंध में डॉक्टर की सलाह ली। डॉक्टर ने जांच के उपरांत पाइल्स डायग्नोसिस किया और पाइल्स का ऑपरेशन किया गया। परंतु इलाज हो जाने के बाद भी उसके शौच में खून आने की समस्या ठीक नही हुई। इसके बाद उसे कुछ अन्य जांच जैसे-यूएसजी, सीटी स्कैन कराने की सलाह दी गयी। जांच में पता चला कि उसके रेक्टम (आंत के आखिरी छोर) में कैंसर है। तुरंत उसका ऑपरेशन किया गया। इस तरह अब मरीज बिलकुल ठीक है और उसके शौच में खून आने की समस्या समाप्त हो चुकी है।  

पाइल्स के अलावा भी शौच में खून आ सकता है 

आजकल मसालेदार भोजन, हरी सब्जियों का सेवन न करना, फास्ट फूड का अधिक सेवन और खान-पान में अनियमितता के कारण पाइल्स की समस्या आम  हो गया है। अधिकांश लोग किसी-न-किसी रूप में इस रोग से ग्रसित हैं। इस प्रकार के भोजन के सेवन से कब्ज की शिकायत अधिक होती है। इससे शौच के समय मांसपेशियों और नसों पर जोर पड़ता है, जिससे पाइल्स या फिस्टूला होता है। इसके अलावा तंबाकू और शराब के सेवन से भी यह समस्या हो सकती है। पर आपको यह भी ध्यान देना चाहिए कि शौच में खून आने का मतलब सिर्फ बवासीर नहीं होता है। यह कभी-कभी किसी गंभीर रोग का लक्षण भी हो सकता है। वैसे तो 90% मामलों में पाइल्स के कारण ही शौच में खून आता है लेकिन पांच से 10 प्रतिशत मामलों में यह समस्या आंत के कैंसर के कारण भी हो सकती है। शौच में खून आने के कई कारण हो सकते हैं। इसके लिए किसी अनुभवी चिकित्सक या सर्जन से सलाह लेना आवश्यक है। इसके लिए चिकित्सक प्रोटोस्कोपी, सीस्मोइडोस्कोपी तथा जरूरत पड़ने पर कोलोनोस्कोपी भी कराने की सलाह दे सकते हैं। 

सर्जरी के अलावा भी हैं विकल्प

जरूरी नहीं है कि पाइल्स का इलाज हमेशा सर्जरी से ही हो। रोग शुरुआती स्टेज में है, तो सबसे पहले भोजन की आदतों में सुधार करना चाहिए। फर्स्ट या सेकेंड डिग्री के पाइल्स में स्क्लेरोथेरेपी (इंजेक्शन की मदद से दवा को पाइल्स में इन्जेक्ट करना) की जाती है। जब पाइल्स थर्ड या फोर्थ डिग्री का हो जाता है, तब ऑपरेशन एकमात्र इलाज है। आजकल एक नयी मशीन आ गयी है, जिसे एमआइपीए कहते हैं। इसकी मदद से सर्जरी होती है। यह सफल तकनीक है। इसमें मरीज को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है। 24 घंटे के अंदर ही मरीज सामान्य रूप से खाना खाने लगता है और घूमना-फिरना शुरू कर देता है, इसलिए यदि किसी को शौच में खून आने की शिकायत हो, तो हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसके लिए सुयोग्य किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि यदि यह रोग कैंसर होता है और इसका पता पहले चल जाता है, तो इसका इलाज संभव है, इसलिए मरीज को सतर्कता बरतनी चाहिए।    

मेरुदंडासन (Merudandasana) - रीढ़ को मजबूत बनाती है

गलत ढंग से देर तक बैठने के कारण रीढ़ की हिड्डियों में समस्या उत्पन्न हो जाती है, अपने रोज दिन के व्यायाम में मेरुदंडसन  (Merudandasana) करके इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। 

मेरुदंडासन (Merudandasan) के अभ्यास से रीढ़ बनेगी मजबूत - अक्सर हम अपने घर में सोफे में अथवा अपने कार्यालय में काम करते वक्त कुर्सी में सही ढंग से या सीधा नहीं बैठते (sitting  posture) हैं। टेढ़े अथवा सही पोश्चर में नहीं बैठने से समय के साथ हमारे रीढ़ में समस्याएं (spinal problems) होने लगती है। चूँकि कार्यालय में हमें काफी देर तक बैठ कर काम करना होता है अतः हम पूरा समय सीधे बैठ नहीं पाते है और उम्र के साथ कमर दर्द (back pain) की शिकायत शुरू हो जाती है।
Merudandasana in hindi

 इस तरह से होने वाले रीढ़ की समस्या से बचने के लिए नियमित मेरुदंडासन का अभ्यास करना चाहिए। इससे रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है और प्राण ऊर्जा में वृद्धि होती है। संस्कृत शब्द मेरु का शाब्दिक अर्थ पर्वत होता है और दंड का अर्थ है लाठी। यहां मेरुदंड का अर्थ रीढ़ की हड्डी से है।



आसन करने की विधि (How to do Merudandasan in hindi): सबसे पहले  जमीन पर बैठ जाएं और दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ लें। दोनों पैरों के तलवों के बीच लगभग दो से तीन फीट की दूरी रखते हुए उन्हें नितंबों के सामने जमीन पर रखें। अब दोनों पैरों के अंगूठों को हाथों से अलग-अलग पकड़ लें। शरीर को शांत बनाएं तथा श्वास लेते हुए धीरे से पीछे की ओर झुकते हुए दोनों पैरों को सीधा कर दें तथा दोनों पैरों को धीरे-धीरे क्षमता के अनुसार अलग-अलग करते जाएं। इस दौरान मेरुदंड सीधी रहेगी। आंखों को सामने किसी भी एक बिंदु पर एकाग्र रखें और अंतिम अवस्था में क्षमता के अनुसार रुकने का प्रयास करें। इसके बाद वापस धीरे-धीरे अभ्यास प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं। अब थोड़ा रुक कर जब श्वास सामान्य हो जाए तो पुनः इसी अभ्यास को कर सकते हैं।

श्वसन: इस अभ्यास के दौरान आप जमीन पर सीधे बैठें। उस समय कश्वास अंदर लें और जब पैर फैलाते हैं उस समय और अभ्यास की अंतिम स्थिति में श्वास अंदर ही रोकने का प्रयास करें, किंतु अभ्यास की अंतिम अवस्था में जब आप लंबी समय तक रुकते हैं, तो उस समय आप सामान्य श्वास ले सकते हैं। जब आप अपने पैरों को वापस धीरे-धीरे जमीन की तरफ लाना शुरू करते हैं उस समय श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ना शुरू करें।

अवधि : यह एक संतुलन का अभ्यास है। अतः शुरू में आप इस अभ्यास को पांच बार तक कर सकते हैं तथा अंतिम अवस्था में जितनी देर तक संभव हो अपनी क्षमता के अनुसार रुकने का प्रयास करें। बाद में आप इसके अभ्यास को अपनी क्षमता के अनुसार बढ़ा सकते हैं।

सजगता : इस अभ्यास के दौरान शरीर के संतुलन एवं श्वास के प्रति हमेशा सजग रहें। यदि आप चाहें, तो अपने सामने दीवार पर किसी बिंदु पर अपनी एकाग्रता को केन्द्रित करें। आध्यात्मिक स्तर पर आपकी सजगता स्वाधिष्ठान चक्र पर रहेगी।

सीमाएं : इस अभ्यास को उन लोगों को नहीं करना चाहिए, जिन्हें हृदय रोग, स्लिप डिस्क, सायटिका, आंखों की गंभीर समस्या हो।

मेरुदंडासन के फायदे:- प्राण शक्ति का होता है संचार यह अभ्यास मेरुदंड को मजबूत बनाता है और उसमें प्राण शक्ति का संचार करता है। इस अभ्यास से समान्यतः मेरुदंड की खिसकी हुई हड्डियां सुव्यवस्थित होती है। इस आसन से अनुकंपी (sympathetic) और परानुकंपी (parasympathetic) स्नायु मंडलों (nervous system) हित सम्पूर्ण स्नायु-मंडल के कार्यों में सुधार लाता है तथा इससे नवीन शक्ति प्राप्त होती है। यह आसन हमारे पेट में अंगों, विशेषतः यकृत (liver) को पुष्ट करता है और पेट की पेशियों (abdominal muscles) को मजबूत बनाता है तथा आंतों के किटाणुओं को नष्ट करता है और कब्ज को दूर करता है। अतः इस अभ्यास से पाचन संबंधी सभी अंग स्वस्थ होते हैं तथा एकाग्रता में काफी सुधार होता है।

नोट : यह संतुलन का अभ्यास है, जो शारीरिक और मानसिक संतुलन को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करता है, किंतु इस अभ्यास को बिना किसी कुशल योग्य प्रशिक्षक के नहीं करना चाहिए। अन्यथा इसके नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं।

एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर है अनार

"अनार में एंटी ऑक्सीडेंट्स, एंटी बैक्टीरियल, फाइबर, विटामिन, पोंलीफिनोल, टैनिन आदि गुणकारी तत्व मौजूद होती है जो हृदय रोग, कैंसर, वजन कम करने में, दांत रोग, कब्ज, तनाव आदि को दूर करने में सहायक होता है।"

अनार (Pomegranate) बाजार में हमेशा प्राप्त होनेवाला फल है। यह फल खाने में जितना मीठा और स्वादिष्ट होता है, हमारे शरीर के लिए भी उतना ही फायदेमंद (Benefit) होता है। रोजाना एक अनार का सेवन आपकी इम्यूनिटी को काफी मजबूत बना सकता है। 
आनर के गुण

हमारे शरीर के अंगों में होने वाले अनेक समस्याओं को दूर करने के लिए अनार काफी फायदेमंद होता है। खाने से अनेक रोगों में फायदा होता है। यह शरीर को स्वस्थ रखने में काफी मददगार है।

हृदय रोग (Heart Disease) : पॉलीफिनोंल, टैनिन और दूसरे एंटी ऑक्सीडेंट (Anti Oxidant) की मात्र अनार में काफी होती है।  ये तत्व ब्लड प्रेशर और बैड कोलेस्ट्रॉल को कम रखते हैं। जिसके कारण यह हृदय को सुरक्षित रखते हैं।

कैंसर (Cancer) : अनेक शोधों से पता चला है कि अनार में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट्स और पॉलीफिनोल कैंसर से भी बचाने का कार्य करते हैं एवं कैंसर उत्पन्न करनेवाली कोशिकाओं को भी नष्ट करते हैं। 

वजन रखता है सामान्य (Weight Loss) : अनार के बीजों में कैलोरी काफी कम होती है, लेकिन ये फाइबर और विटामिन से भरपूर होते हैं। इससे वजन नियंत्रित रहता है। 

स्वस्थ त्वचा (Skin) : अनार रोज खाने से त्वचा हमेशा युवा, स्वस्थ रहती है। झुर्रीयां पड़ने का खतरा भी कम होता है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स उम्र के प्रभाव को कम करने का कार्य करते हैं।  

दांत रोगों में (Teeth Disease) : इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं। यह दांत रोगों में लाभकारी है। इसका जूस पीने से डेंटल प्लाक दूर रहते हैं। इससे दांत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं। 

पाचन रखता है सही : हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के गाइडलाइंस के अनुसार 20 से 35 ग्राम फाइबर रोज खाना चाहिए। अनार में यह तत्व प्रचुर मात्रा में होता है। यह कब्ज को दूर रखता है और पाचन तंत्र सुदृढ़ रखता है। इससे दूसरे पोषक तत्व शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित किये जाते हैं।

बढ़ाता है इम्युनिटी (Immunity): इसमें विटामिन सी भी काफी मात्रा में होता है। यह इम्युनिटी बूस्ट करता है। इससे शरीर कई प्रकार के इन्फेक्शन से सुरक्षित रहता है। 

तनाव करता है दूर : क्वीन मार्गरेट यूनिवर्सिटी के रिसर्च के अनुसार अनार का जूस पीने से तनाव कम होता है। इस शोध में देखा गया कि जिन लोगों ने अनार का जूस पीया उनमें कॉटिर्सोल का लेवल कम पाया गया। यह होंर्मोन तनाव बढ़ाता है। 

दूर करता है अलजाइमर्स का खतरा : लोमा लिंडा यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में पता चला है कि रोज एक गिलास अनार का जूस पीने से अल्जाइमर्स उत्पन्न करनेवाले हानिकारक प्रोटीन का बनना बंद हो जाता है।   

न्यूट्रिशन फ़ैक्ट (Nutrition of Pomegranate)

मात्रा प्रति सौ ग्राम
* कैलोरी 83%
* फैट 1.2 ग्राम
* सेचुरेटेड फैट 0.1 ग्राम
* पॉलीअनसेचुरेटेड फैट 0.1 ग्राम
* कोलेस्ट्रॉल 0 मिलीग्राम
* सोडियम 3 मिलीग्राम
* पोटैशियम 236 मिलीग्राम
* कार्बोहाइट्रेट 19 ग्राम
* फाइबर 4 ग्राम
* शूगर 14 ग्राम
* प्रोटीन 1.7 ग्राम
* विटामिन ए 0%
* कैल्शियम 1%
* विटामिन सी 17%
* विटामिन बी-6 5%

नोट : इसमें कैलोरी काफी होती है। अतः डायबिटीज रोगी अनार का जूस न पिएं।

आपके शरीर को कितना कैल्सियम चाहिए

कमजोर हड्डी और जोड़ों का दर्द कई बार सही डायट नही मिलने से भी होता है, ये समस्याएं अगर आपके साथ हैं, तो सतर्क हो जाएं।  यह कैल्शियम की कमी से भी हो सकता है।

कैल्शियम प्रमुख पोषक तत्व है, इसकी कमी से अनेक रोग होते हैं, कार्बन, हाइड्रोजन और नाईट्रोजन के बाद शरीर में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है। 90% कैल्शियम हड्डियों व दांतों में पाया जाता है। कुछ मात्रा रक्त में भी होती है।

क्या है इसका कार्य: इससे सिर्फ हड्डियां ही नहीं मजबूत होती हैं, बल्कि यह हाइ बीपी, डायबिटीज़ और कैंसर से बचने के लिए भी जरूरी है। इसकी सहायता से नर्वस सिस्टम की मांसपेशियां गतिशील होती हैं। रक्त में घुला कैल्शियम कोशिकाओं को सक्रिय रखता है, गर्भस्थ शिशु की हड्डियों के विकास के लिए गर्भवती को कैल्शियमयुक्त पदार्थो का सेवन करना चाहिए। डॉक्टर की सलाह से कैल्शियम की गोलियों का भी सेवन करना चाहिए। बच्चों के दांत निकलते समय उन्हें प्रयाप्त दूध और उससे बनी चीजें देनी चाहिए। टीनएजर्स के शारीरिक विकास के लिए भी अधिक कैल्शियम जरूरी है।

हर किसी की जरूरत अलग: 30 वर्ष तक हड्डियां विकसित हो जाती हैं, 40 वर्ष के बाद स्त्रियों में मेनोपोज की अवस्था आती है। इस समय उन्हें प्रतिदिन 1300 मिग्रा कैल्शियम की जरूरत होती है। ऐसे में इसकी कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।

विटामिन डी भी जरूरी: ग्रहण किये गये कुल कैल्शियम का 30% ही मेटाबोंल्जिम के जरिये हम तक पहुंचता है। बाकी कैल्शियम शरीर से बाहर निकल जाता है।  कैल्शियम के अवशोषण और पाचन के लिए फॉस्फोरस और विटामिन डी की भी होता है। इसलिए इसे अलग से नहीं लेना पड़ता। विटामिन डी के लिए रोजाना सुबह हल्की धूप में बैठना चाहिए।

इनसे मिलेगा भरपूर कैल्शियम : दूध और उससे बनी चीजों में इसकी भरपूर मात्रा होती है। एक गिलास दूध में 300 मिग्रा कैल्शियम होता है। सफेद रंग के सभी फलों और सब्जियों जैसे-केला, नारियल, शरीफा, अमरूद, गोभी और मुली आदि में काफी कैल्शियम होता है। जिन्हें दूध और डेयरी प्रोडक्ट पसंद नहीं, वे भोजन में रागी और गुड़ शामिल करें। ब्रोकली, पालक और सी फूड भी इसके अच्छे स्त्रोत हैं। तिल और हिलसा मछली में कैल्शियम और विटामिन डी दोनों होते हैं। सोया मिल्क और संतरे में भी यह होता है।

उम्र के अनुसार डोज : कैल्शियम की जरूरत उम्र और अवस्था के आधार पर होती है। खास कर गर्भावस्था और बीमारी में इसपर ज्यादा ध्यान रखना चाहिए।

नवजात के लिए
0-6 महीने   200 मिग्रा
7-12 महीने  260 मिग्रा

बच्चों और किशोर के लिए
1-3 साल   700 मिग्रा
4-8 साल   1000 मिग्रा
9-18 साल   1,300 मिग्रा

वयस्क के लिए
19-50 साल   1000 मिग्रा
50-70 साल के पुरुष  1000 मिग्रा
50-70 औरत   1,200 मिग्रा

गर्भवती और स्तनपान करानेवाली महिलाओं के लिए
14-18 साल   1300 मिग्रा
19-50 साल    1000 मिग्रा

अधिक कैल्शियम है खतरनाक :  कई बार लोग कैल्शियम सप्लिमेंट ले लेते हैं, जो घातक हो सकता है। इसमें मांसपेशियां जकड़ जाती हैं और तेज दर्द होता है। अतः बिना डॉक्टर की सलाह के इसे न लें। कैल्शियम की जांच के लिए हर छह महीने में बिएमडी टेस्ट कराएं।

फ्रिज में क्या नहीं रखना चाहिए

खाने-पीने की चीजों को खराब होने से बचाने के लिए हम उन्हें फ्रिज में स्टोर कर देते हैं, लेकिन आपको यह जानने की जरूरत है की कई चीजें ऐसी भी हैं, जिन्हें फ्रिज में स्टोर करना सही नहीं है। ऐसा करने से वे खराब हो सकती हैं या पहले से स्टोर की गई चीजों  को खराब कर सकती है।

केला: केले लंबे समय तक फ्रिज में स्टोर करने से बहुत जल्दी और ज्यादा पाक जाते हैं। इसके पोषक तत्व में भी कमी हो जाती है। इसके अलावा, फ्रिज में रखे केले को खाने से कफ की समस्या भी हो सकती है।

कॉफी: कॉफी बीन्स को कभी भी फ्रिज में नहीं रखना चाहिए। इससे फ्रिज में उपस्थित अन्य पदार्थों की महक कॉफी में लग जाती है। जैसे कॉफी को फ्रिज में रखा जाये, तो यह उसमें उपस्थित अन्य पदार्थों जैसे सब्जी आदि की महक को एब्जोर्ब कर लेता है। इससे पूरी कॉफी खराब हो जाती है।

लहसुन: बेहतर होगा लहसुन को आप कमरे के नॉर्मल टेंपरेचर में ही स्टोर करें। फ्रिज में रखने के 12 घंटे बाद ही लहसुन सूखने लग जाता है और उसका स्वाद भी खत्म हो जाता है।

टमाटर: फ्रिज का तापमान बहुत कम होता है और बेहद कम तापमान में टमाटरों का प्रकृतिक स्वाद खराब हो जाता है। साथ ही, उन्हें पकाने में अतिरिक्त गैस खपत होता है।

प्याज: प्याज को लंबे समय तक फ्रिज में स्टोर करने से उसमें फुफंद लग सकता है। इसकी महक से फ्रिज में राखी बाकी सामान भी खराब हो सकता है। अगर काट कर रखा जाये, तो इसकी परतें सूखने लगती हैं।

आलू: आलुओं को फिर्ज में स्टोर करने से उनमें मौजूद स्टार्च बहुत तेजी से क्षुगर में तब्दील होता है। अंधेरी जगहों में रखने से वे काफी समय तक बढ़िया रहते हैं। साथ ही उन्हें किसी वेंटिलेटेड स्थान में बिना धोये हुए रखना चाहिए।

शहद: शहद को फ्रिज से बाहर नॉर्मल टेंपरेचर में रखें, तो याह सालों तक खराब नहीं होगा, लेकिन अगर फ्रिज में स्टोर करके रखें, तो कम तापमान होने के कारण याह यह जम जाता है और जल्दी खराब हो जाता है।