कैन्सर, कर्कट रोग
कैंसर से पीड़ित व्यक्ति को नींबू के रस से बनी शिकंजी बनाकर पीने, फलों का रस, कच्ची और हरी सब्जियां, टमाटर, तरबूज, करेला, गाजर, शहद, अंगूर, केला, पालक, बन्दगोभी, किशमिश, सूखा मेवा, बादाम, आदि के प्रयोग से कैंसर होने की कम संभावना होती है।
अपथ्य :
कैंसर का अर्थ होता है, बिना किसी उद्देश्य के आकारहीन गांठ का हो जाना, जिसके बढ़ने को रोका न जा सके। शरीर में कोई गांठ होकर तेजी से बढ़ती रहे, एक जगह से काट देने पर दूसरी जगह फिर से हो जाना, यही कैंसर कहलाता है। इससे शरीर की परेशानी बढ़ती रहती है। इसमें गांठों का बढ़ना जारी रहता है। शुरुआत में इसका पता ही नहीं लगता है, किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता और जब रोग का पता लगता है तो रोग ऐसी अवस्था में पहुंच चुका होता है कि रोगी के प्राणों को बचाना कठिन होता है। इस बीमारी का नाम ही जानकर रोगी भयभीत हो जाता है। यदि कैंसर होने का पता शुरुआत में ही लग जाये तो रोगी को बचाया जा सकता है। जिन लोगों के भोजन में हरी सब्जी और ताजे फलों का उपयोग होता है, उनके छाती में प्रोस्टेट ग्लैण्ड के कैंसर कम होता है। विटमिन ´ए´, ´बी´, ´सी´, केरोटिन कैंसर का नियंत्रण करते हैं। प्राकृतिक रूप से विटमिन ´ए´ नहीं लेने से फेफडे़ का कैंसर और टी.बी. होने की सम्भावना अधिक रहती है। डिब्बों में बन्द रस में अनेक रासायनिक वस्तुएं मिली होती हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ताजा रस ही अधिक लाभ करता है।परिचय :
लक्षण :
कोई भी घाव जो जल्द भरे, विशेषकर मुंह में। त्वचा में घाव जो 6 सप्ताह बीतने पर भी नहीं भरे और घाव बढ़ता जाये।
लगातार रक्त (खून) का निकलना, विशेषकर औरतों में मासिक-धर्म रुकने के बाद, मल त्यागते समय कभी-कभी रक्त आना, जबकि बवासीर नहीं हो।
शरीर के किसी भी भाग में मांस का बढ़ना या फोड़ा, गांठ, मोटापा विशेषकर औरतों में।
लगातार खांसी और स्वरभंग, आवाज में भारीपन या गला बैठना।
कब्ज और दस्त का होना आंतों की स्वाभाविक प्रक्रिया में अन्तर।
तिल का रंग बदल जाना, मस्से, केलोइड गिल्टियों के रंग में अन्तर आना और दर्द होना।
बिना किसी वजह के वजन का बढ़ जाना, कमजोरी का होना, खाना-खाने का दिल न करना।
स्तन या शरीर के किसी भी हिस्से में गांठ का होना।
निप्पल से खून का बहना।
ऐसे फोडे़ का होना जो उपचार से ढीला न हो।
स्त्री जननांगों में गांठ, दर्द, खुजली, जलन और किसी भी प्रकार के छाले का होना।
वजन का कम होना, भूख कम लगना।
संभोग के बाद योनि में रक्त का आना।
मासिक-धर्म 50 वर्ष की आयु के लगभग बन्द होने के बाद फिर से खून का आना आदि कैंसर के लक्षण होते हैं।
भोजन तथा परहेज :
पथ्य :कैंसर से पीड़ित व्यक्ति को नींबू के रस से बनी शिकंजी बनाकर पीने, फलों का रस, कच्ची और हरी सब्जियां, टमाटर, तरबूज, करेला, गाजर, शहद, अंगूर, केला, पालक, बन्दगोभी, किशमिश, सूखा मेवा, बादाम, आदि के प्रयोग से कैंसर होने की कम संभावना होती है।
अपथ्य :
आंतों का कैंसर, ब्लड कैंसर, गले का कैंसर जैसे अनेकों प्रकार के कैसरों से छुटकारा पाने के लिए एक गिलास अंगूर के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में तीन बार-सुबह बिना कुछ खाये, दोपहर में भोजन के बाद और रात में सोते समय पियें। एक किलो जौ में दो किलो गेहूं का आटा मिलाकर इसकी रोटी, दलिया बनाकर रोगी को देना चाहिए। इस प्रकार 40 दिनों तक चिकित्सा करें। खाने योग्य में आलू, अरबी और बैंगन का उपयोग न करें।
कलौंजी के बीजों में कैरोटीन होता है जिसे यकृत (लीवर) विटामिन में बदल देता है जिसकी क्रिया कैंसर को रोकती है। कैंसर रोगी हलवा बनाते समय कलौंजी के बीज डालकर हलवा बनाकर खायें।
दालचीनी कैंसर में अधिक दी जाती है। दालचीनी तेल 3 बूंद रोजाना 3 बार दें। साथ ही दालचीनी चबाते रहने का निर्देश दें। यदि घाव बाहर हो, तेल लगाना सम्भव हो तो दालचीनी का तेल लगाते भी रहें। यह प्रतिदूषक, व्रणशोधक, व्रणरोपक (घाव को भरने वाला) और रोगाणु नाशक भी है।
दालचीनी का काढ़ा रोजाना 350 मिलीलीटर पीने से कैंसर रोग से राहत मिलती है।
दो चम्मच शहद में एक चम्मच दालचीनी मिलाकर प्रतिदिन तीन बार चाटने से सभी प्रकार के कैंसर नष्ट हो जाते हैं।
हल्दी एक अच्छा रक्ताशोधक है यह तो बहुत पहले ही साबित हो चुका है। इसके चूर्ण को सुबह-शाम महामंजिष्ठादि काढे़ के साथ दिया जाए तो जरूर शत-प्रतिशत लाभ होगा या होने की संभावना रहती है। धैर्य के साथ नियमित रूप से औषधि का सेवन करवायें।
लगभग 2-4 ग्राम की मात्रा में हल्दी का बारीक चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से कर्कट (कैंसर) की गांठे धीरे-धीरे घुल जाती हैं।
अश्मभेदी का चूर्ण 8-12 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से कैंसर में लाभ होता है।
अश्मभेदी के फल का चूर्ण बनाकर रख लें। इसका महीन चूर्ण एक से दो ग्राम तक दिन में 3 बार मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करायें और इसी के चूर्ण को दूध या पानी के साथ पीसकर या घिसकर अर्बुद (कर्कट) पर लगायें, तथा ऊपर से नागफनी थूहर का पत्ता गरम करके बांध दिया करें। इससे कैंसर के रोग में अधिक फायदा होता है।
1 गिलास गाजर के रस में 2 चम्मच मधु डालकर रोजाना सेवन करने से कैंसर के रोग में लाभ होता है।
गाजर का रस दूध में मिलाकर पीने से, मधुमेह, रक्त में लाल कणों की कमी, सिर दर्द, बुखार और कैन्सर रोगों से आराम मिलता है।
310 मिलीलीटर गाजर का रस, 125 मिलीलीटर पालक के रस में मिलाकर तीन बार पीना चाहिए, गाजर का रस दूध में मिलाकर भी पी सकते हैं। इससे कैंसर के समस्त रोगों से छुटकारा मिलता है।
काली गाजर के रस के सेवन से, ब्लडकैंसर और पेट के कैंसर में लाभ होता है।
गाजर का रस पीने से कैंसर में लाभ होता है। गाजर पेट के कैंसर में बहुत अधिक लाभकारी होता है।
गाजर का रस पीने से कैंसर नष्ट हो जाता है। ल्यूकोमिया (ब्लड कैंसर) और पेट के कैंसर में यह अधिक लाभकारी होता है।
गेहूं के नये पौधों का रस रोजाना सुबह-शाम पीने से कैंसर रोग ठीक हो जाता है।
आधा कप गेहूं धोकर किसी बर्तन में दो कप ताजा पानी डालकर रख दें। 12 घंटे के बाद उस पानी को सुबह-शाम पीयें। लगातार 8-10 दिनों में ही रोग भागने लगेगा और 2-3 महीने के लगातार प्रयोग से कैंसर रोग से मरने वाला प्राणी रोग मुक्त हो जाएगा।
कैंसर भी शरीर की एक स्थिति मात्र है, जो यह बताती है कि अदभुत यंत्र में कोई खराबी है। प्रकृति हमेशा शरीर में संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती है। कुछ लोग कैंसर से पीड़ित होते है और कुछ को अन्य बीमारियां। यह इसलिए कि सबके जीने का ढंग अलग-अलग होता है। एक महिला की छाती में कैंसर था वह सभी प्रकार की चिकित्सा कराकर निराश हो चुकी थी। उसको सभी प्रकार के रसों का आहार दिया गया तो वह कुछ ही महीनों में ठीक हो गई। इसी प्रकार एक ल्यूकीमिया के रोगी को पानी को एनिमा देकर पेट साफ किया गया और बाद में एनिमा से ही आंतों में गेहूं के पौधे का रस पहुंचाया गया और वह रोगी भी ठीक हो गया।