क्षय रोग (टी.बी.)
टी.बी. का रोग शुरू-शुरू में तो साधारण ही लगता है। मगर इसका उपचार समय पर नहीं कराया जाता है तो यह एक बड़ी बीमारी का रूप ले लेता है। इस बीमारी से ग्रस्त रोगी का शरीर धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है क्योकि यह रोग व्यक्ति के शरीर से धातुओं और बल को खत्म कर देता है। इस बीमारी मे रोगी के शरीर में छोटे-छोटे कीटाणु पैदा हो जाते हैं जो रोगी के खांसने, थूकने, छींकने और पूरा मुंह खोलकर बोलने से दूसरे लोगों में भी जा सकता है जिससें यह रोग उन्हे भी हो सकता है। टी.बी. एक ऐसा रोग है जो सिर से लेकर पांव तक के किसी भी अंग में हो सकता है। चाहे वो दिमाग की टी.बी. हो, गले की टी.बी हो, फेफड़ों की टी.बी. हो या फिर हडि्डयों की हो। अंग्रेजी में इसका पूरा नाम ट्यूबरक्लोसिस तथा थाइसिस होता है।परिचय :
कारण :
लक्षण :
1. पेठा :3. अड़ूसा :
अड़ूसा (वासा) टी.बी. रोग में बहुत लाभ करता है। अड़ूसा किसी भी रूप में नियमित सेवन करने वाले को खांसी से छुटकारा मिलता है। इसको खाने से कफ में खून नहीं आता, बुखार में भी आराम मिलता है। इसका रस और भी लाभकारी होता है। अड़ूसे के रस में शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार लेना चाहिए।
अड़ूसे के 3 लीटर रस में 320 ग्राम मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर पकायें। जब यह गाढ़ा होने को हो, तब उसमें 80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण मिलायें। जब यह ठीक प्रकार से चाटने योग्य पक जाये तब इसमें गाय का 160 ग्राम घी मिलाकर पर्याप्त चलायें तथा ठंड़ा होने पर उसमें 320 ग्राम शहद मिलायें। यह काढ़ा 5 ग्राम से 10 ग्राम तक टी.बी. के रोगी को दे सकते हैं। यह खांसी, सांस के रोग, कमर दर्द, हृदय का दर्द, रक्तपित्त (खूनी पित्त) और बुखार को भी दूर करता है।
5. मुनक्का :
मुनक्का, पीपल और देशी शक्कर को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में दिन में सुबह-शाम खाने से टी.बी., दमा और खांसी में लाभ होता है।
25 ग्राम मुनक्का लेकर उनके बीज निकालकर फेंके और बादाम (भिगो कर छिलका उतार कर) को बराबर मात्रा में लें। इसके साथ ही लहसुन की 3-4 कली लें और तीनों को सिल पर पानी के साथ चटनी की तरह पीस लें और फिर उसे लोहे की कढ़ाई में 25 ग्राम घी के साथ डालकर धीमी आंच पर पकायें जब वह गाढ़ा हलुआ सा होने लगे, तब उसमें 12 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिलाकर उतार लें। यह हलुआ नाश्ते के रूप में सेवन करना चाहिये। इसके सेवन से शारीरिक दुर्बलता दूर होकर टी.बी. के रोगी का वजन बढ़ने लगता है।
8. ढाक के पत्तों का रस : ढाक के पत्तों का रस पीने से टी.बी. रोग में लाभ मिलता है।
9. कबूतर का मांस : कबूतर के मांस को धूप में सुखाकर प्रतिदिन दूध के साथ खाने से अथवा उसमें घी तथा शहद मिलाकर खाने से टी.बी. का बढ़ा हुआ रोग भी मिट जाता है।
10. गाय का पेशाब : काली स्वस्थ गाय का मूत्र प्रतिदिन 10 बार 2-2 ग्राम की मात्रा में पीने से 21 दिन में ही टी.बी. रोग मिट जाता है।
11. शहद : मक्खन, शहद और शक्कर को एकसाथ मिलाकर खाने से क्षय-रोग (टी.बी.) का रोगी ठीक हो जाता है।
12. गधी का दूध : सुबह-शाम लगभग 100-100 मिलीलीटर गधी का दूध पीने से टी.बी. रोग मिट जाता है।
13. कोयले की राख : यदि टी.बी. के रोगी के मुंह से खून आता हो तो आधा ग्राम पत्थर के कोयले की सफेद राख को मक्खन-मलाई या दूध के साथ खाने से खून आना बन्द हो जाता है।
14. आक : आक की कली पहले दिन एक निगलें, दूसरे दिन 2 तथा तीसरे दिन 3 इसके बाद प्रतिदिन 15-20 दिन तक 3-3 कली खाते रहे तो टी.बी. रोग नष्ट हो जाता है।
15. पीपल :
500 मिलीलीटर बकरी के दूध में 500 मिलीलीटर पानी को मिलाकर इसमें 3 पीपल डालकर उबालें। पानी जल जाने पर पीपल निकालकर खा लें। ऊपर से कम गर्म दूध पी लें। 10 दिन तक 1-1 पीपल बढ़ाकर दूध में डालें तथा ग्यारहवें दिन से 1-1 पीपल घटाते जाए। 3 पीपल पर लाकर खत्म कर बन्द कर दें। इस प्रयोग को नियमित रूप से करने से टी.बी. रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
पीपल की लाख का चूर्ण बनाकर, घी और शहद में मिलाकर रोगी को पिलाने से टी.बी का रोग ठीक हो जाता है।
17. केला :
केले के तने का रस निकालकर तथा छानकर एक कप तैयार कर लें। फिर इसे नित्य सेवन करें। लगभग 40 दिन तक बराबर इसका सेवन करने से टी.बी. के रोग में लाभ होता है।
केले के पेड़ का ताजा रस या सब्जी बनाने वाला कच्चा केला टी.बी. रोग को दूर करने में लाभदायक होता है। जिसे क्षय (टी.बी.) रोग हो चुका हो, कष्टदायक खांसी हो, जिसमें अधिक मात्रा में बलगम निकलता हो, रात को इतना पसीना आता हो कि सब कपड़े भीग जायें, साथ ही बहुत तेज बुखार रहता हो, दस्त आते हों, भूख न लगती हो, वजन भी गिर चुका हो, उनको केले के मोटे तने के टुकड़े का रस निकाल और छानकर 1-2 ताजा कप रस हर 2 घण्टे बाद घूंट-घूंट करके पिलाया जायें। 3 दिन रस बराबर मात्रा में पिलाने से रोगी को बहुत लाभ होता है। 2 माह तक इस चिकित्सा से टी.बी. के रोगी को इस रोग से छुटकारा मिल सकता है। केले का रस हर 24 घण्टे के बाद ताजा ही निकालना चाहिए। 8-10 केले के पत्तों को 200 मिलीलीटर पानी में डालकर पड़ा रहने दें। इस पानी को छानकर एक बड़ा चम्मच दिन में तीन बार पिलाते रहने से फेफड़ों में जमी गाढ़ी बलगम पतली होकर निकल जाती है। केले के पत्ते का रस शहद में मिलाकर टी.बी. के रोगी को पिलाते रहने से भी उसके फेफड़ों के घाव भर जाते है। बलगम कम हो जाता है। केले के तने न हो तो केले के पत्तों का रस इसी प्रकार काम में लें सकते हैं।
19. दालचीनी : 2 चम्मच मिश्री पर दालचीनी के तेल की 4 बूंदे डालकर प्रतिदिन 3 बार खाने से टी.बी. रोग में लाभ होता है। टी.बी. रोग में फेफड़ों से रक्तस्राव होता है। इसमें आधा चम्मच दालचीनी पाउडर की पानी से रोजाना 2 बार फंकी लेने से लाभ मिलता है।
20. मक्खन :
22. मरूआ : मरूआ के पौधे की जड़ का रस 5 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से टी.बी. रोग में लाभ मिलता है।
23. अड़ूसा : अड़ूसा के फूलों का चूर्ण 10 ग्राम की मात्रा में लेकर इतनी ही मात्रा में मिश्री में मिलाकर एक गिलास दूध के साथ सुबह-शाम 6 माह तक नियमित रूप से खाने से टी.बी. रोग में जल्द आराम मिल जाता है।
24. वंशलोचन : वंशलोचन का चूर्ण मात्रानुसार शहद के साथ चाटने से टी.बी. रोग में बहुत आराम मिलता है।
25. शहद : शहद में करेले का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से टी.बी. रोग में बहुत लाभ होता है।
26. गिलोय :
गिलोय, कालीमिर्च, वंशलोचन और इलायची को बराबर की मात्रा में मिलाकर और पीसकर 1-1 चम्मच की मात्रा में एक कप दूध के साथ कुछ हफ्तों तक रोजाना सेवन करने से टी.बी. रोग दूर हो जाता है।
कालीमिर्च, गिलोय का बारीक चूर्ण, छोटी इलायची के दाने, असली वंशलोचन और भिलावां को बराबर मात्रा में कूटकर और पीसकर कपड़े में छान लें। इसे दिन में 3 बार लगभग एक ग्राम के चौथाई भाग से कम की मात्रा में मक्खन या मलाई में मिलाकर खाने से टी.बी. रोग नष्ट हो जाता है।
गिलोय, असगंध, शतावर, दशमूल, बलामूल, अड़ूसा, पोहकरमूल तथा अतीस को बराबर की मात्रा में लेकर बनाए गये काढ़े की 50-60 मिलीलीटर मात्रा को सुबह-शाम सेवन करने से टी.बी का रोग ठीक हो जाता है। इसके पथ्य में केवल दूध अथवा मांस का रस ही होना चाहिए।
28. कटेरी : मोथा, पिप्पली, मुनक्का और बडी कटेरी के सूखे फलों को बराबर मात्रा में मिलाकर 5 से 10 ग्राम की मात्रा में ले। इसे 1 चम्मच घी और 2 चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से टी.बी. रोग की खांसी खत्म हो जाती है।
29. प्याज :
निर्गुण्डी के पंचांग (फल, फूल, तना, पत्ते और जड़) के रस को, शुद्ध घी में मिलाकर 12 से 14 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सुबह और शाम सेवन करने से टी.बी. रोग में आराम मिलता है।
निर्गुण्डी की मूल (जड़), फल और पत्तों के रस से प्राप्त घी की 10-20 ग्राम की मात्रा को नियमित रूप से पीने से टी.बी. की बीमारी दूर हो जाती है।
32. खजूर : टी.बी. के रोगियों को रोजाना खजूर का सेवन करना इस रोग में लाभकारी रहता है।
33. नींबू : तुलसी की पत्ती, इच्छानुसार नमक, जीरा, हींग, एक गिलास गर्म पानी और 25 मिलीलीटर नींबू का रस एक साथ मिलाकर रोजाना 3 बार कुछ दिनों तक पीने से टी.बी. के मरीज के बुखार में लाभ पहुंचता है।
34. बिजौरा नींबू : बिजौरे नींबू के रस में छोटी पीपल का चूर्ण और मक्खन को डालकर सेवन करने से हृदय (दिल), दर्द और क्षय (टी.बी.) के रोगों मे लाभ मिलता है।
35. नीम : टी.बी. के रोग में नीम के तेल की 4-4 बूंदें कैप्सूल में भरकर दिन में 3 बार प्रयोग कर सकते हैं।
36. लहसुन:
लहसुन की 1-2 कलियों को सुबह-शाम खाकर ऊपर से ताजा पानी पीना चाहिए। लहसुन टी.बी. रोग को दूर करने में बहुत सहायक होता है।
लहसुन खाने वालों को टी.बी. का रोग नहीं होता। लहसुन के सेवन से टी.बी. के कीटाणु खत्म होते जाते हैं।
टी.बी. रोग होने पर 250 मिलीलीटर दूध में 10 कली लहसुन को उबालकर खाएं तथा ऊपर से उसी दूध को पीयें। लम्बे समय तक इस प्रयोग को करते रहने से टी.बी. रोग ठीक हो जाता है।
फेफड़ो की टी.बी. में लहसुन के प्रयोग से कफ गिरना कम होता है। यह रात को निकलने वाले पसीने को रोकता है। भूख बढ़ाता है और नींद अच्छी लाता है। फेफड़ों में टी.बी. होने पर लहसुन के रस मे रूई को भिगोकर सूंघना चाहियें ताकि श्वास के साथ मिलकर इसकी गन्ध फेफड़ो तक पहुंच जायें। इसें बहुत देर तक सूंघते रहने से लाभ होता है। खाना खाने के बाद भी लहसुन का सेवन करना चाहियें।
आंतों की टी.बी. में लहसुन का रस 5 बूंदें 10 मिलीलीटर पानी के साथ लेना फायदेमन्द होता है।
पके हुए स्वादिष्ट अनार के 200 मिलीलीटर रस को निकालकर उसमें 40 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण, 40 ग्राम जीरे का चूर्ण, 40 ग्राम सोंठ का चूर्ण, 40 ग्राम दालचीनी का चूर्ण और 10 ग्राम शुद्ध केसर और 200 ग्राम पुराना गुड़ मिलाएं। फिर सबको इकट्ठा करके जलाकर उसमें 10 ग्राम इलायची का चूर्ण डाले और 5-5 ग्राम की गोलियां बनाएं। फिर रोजाना सुबह-शाम 1-1 गोली को 250 मिलीलीटर दूध के साथ अपनी पाचनशक्ति के अनुसार लेना चाहिए। इससे टी.बी का रोग नष्ट हो जाता है।
यदि खांसी हो तो अनार का रस 2-2 चम्मच दिन में 3-4 बार टी.बी. के रोगी को पिलाना लाभकारी होता है।
39. घी :
41. बेल : टी.बी. रोग में बेल की जड़, अड़ूसा, नागफनी, थूहर के पके सूखे हुए फल का 4-4 भाग, सोंठ, कालीमिर्च व पिप्पली का एक-एक भाग लेकर उसको अच्छी तरह पीस लें। इसे 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 500 मिलीलीटर पानी में डालकर सुबह और शाम शहद के साथ सेवन कराने से टी.बी. रोग में जल्दी लाभ मिलता है तथा श्वास (दमा) व वमन (उल्टी) का आना रूक जाता है।
42. बेर : टी.बी या छाती के दर्द में 20 ग्राम बेर या पीपल की छाल को पानी में पीसकर उसे चौगुने कद्दू के रस के साथ पिलाना चाहियें। इससे टी.बी. रोग में लाभ होता है।
43. अश्वगंधा :