क्षय रोग (टी.बी.) Tuberculosis, Pthisis

क्षय रोग (टी.बी.)


          टी.बी. का रोग शुरू-शुरू
में तो साधारण ही लगता है। मगर इसका उपचार समय पर नहीं कराया जाता है तो यह एक बड़ी बीमारी का रूप ले लेता है। इस बीमारी से ग्रस्त रोगी का शरीर धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है क्योकि यह रोग व्यक्ति के शरीर से धातुओं और बल को खत्म कर देता है। इस बीमारी मे रोगी के शरीर में छोटे-छोटे कीटाणु पैदा हो जाते हैं जो रोगी के खांसने, थूकने, छींकने और पूरा मुंह खोलकर बोलने से दूसरे लोगों में भी जा सकता है जिससें यह रोग उन्हे भी हो सकता है। टी.बी. एक ऐसा रोग है जो सिर से लेकर पांव तक के किसी भी अंग में हो सकता है। चाहे वो दिमाग की टी.बी. हो, गले की टी.बी हो, फेफड़ों की टी.बी. हो या फिर हडि्डयों की हो। अंग्रेजी में इसका पूरा नाम ट्यूबरक्लोसिस तथा थाइसिस होता है।परिचय
:

          टी.बी. रोग की दूसरी अवस्था में रोगी की आवाज मोटी, गैस से पेट में दर्द, कमरदर्द, बुखार, पतला पित्त आदि लक्षण प्रकट होते हैं। आरम्भ में तो इनका उपचार सहज रूप से अथवा सामान्य औषधि आदि से हो जाता है मगर किसी कारणवश रोग में वृद्धि हो जाती है, तो कठिनाई उपस्थित होती है। किसी-किसी रोगी को अन्य उपसर्गों की प्राप्ति हो जाती है, तब उन उपसर्गों के शमन का उपाय भी आवश्यक होता है।

कारण :

          टी.बी. रोग होने का कारण जीवाणु यक्ष्मा बैसीलस (माइकोबैक्टीरियम ट्युबरकुलोसिस) होता है। यह कीटाणु उस धूल व मिट्टी में भी पायें जाते हैं जिसमें टी.बी के रोगी ने थूका हो या लार व कुल्ला किया पानी डाला हो। बीमार गाय, भैंस व बकरी के दूध को भी पीने से टी.बी. के कीटाणु व्यक्ति के शरीर में घुस जाते है। कई बार यह रोग वंशानुगत हो जाता हैं। ज्यादा वसायुक्त भोजन करना, ज्यादा मेहनत करना, धूम्रपान, शराब पीने तथा अधिक मैथुन से भी यह रोग हो जाता है। वैसे तो यह किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन बूढ़े व्यक्तियों मे इसके होने की संभावना अधिक होती है।

लक्षण :

          टी.बी. रोग की शुरुआत में रोगी के शरीर में कमजोरी तथा थकावट सी महसूस होती है। रोगी के कंधे, पसलियों में दर्द होता है, हाथ पैरो में जलन और बुखार बना रहता है, धीरे-धीरे मुंह सूखता जाता है। रोगी का काम करने में मन नहीं लगता है। रोगी के मुंह से थूक व लार भी ज्यादा गिरता है। बार-बार सिर दर्द और जुकाम तथा छोटी-मोटी अन्य बीमारियां शरीर में पैदा हो जाती है। रोगी की सांसे जल्दी-जल्दी चलने लगती हैं। नाड़ी की गति तेज और ढीली पड़ जाती है। कफ के साथ खून आने की शिकायत भी हो जाती है। शरीर की गर्मी कम होने लगती है और कमजोरी काफी बढ़ जाती है। ठंड़ हो या गर्मी रात को सोते समय पसीने का ज्यादा आना, दोपहर के बाद बुखार 99 से 103 डिग्री तक होना, खाना खाने में मन न लगना, खांसी के संग बलगम और खून की छींटे आना भी टी.बी. रोग के लक्षण है। शरीर कितना भी बलवान लगे अगर उसे टी.बी. है तो उसकी पसली की हड्डी नीचे जरूर घुस जाती है।
          इसकी शुरूत मन्द गति से होती है। कभी-कभी यह बीमारी तेजी से बढती है। इस स्थिति को विल्गत टी.बी. कहते हैं। ज्यादातर स्थितियों मे शुरू में यह सामान्य और अविशिष्ट होते हैं जिनके आधार पर रोग को पहचान पाना कठिन होता है, लेकिन जब कभी ऐसी किसी स्थिति में अकस्मात बलगम से खून आने लगता है या फेफड़ों में सूजन हो जाती है। तब इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है।
1. पेठा :
2. शिलाजीत : शिलाजीत टी.बी. को दूर करने में बहुत उपयोगी है। इसका सेवन शहद के साथ, दूध के साथ अथवा औषधि योगों के साथ किया जा सकता है।
3. अड़ूसा :
4. सलाद : अदरक, टमाटर, प्याज और पालक का पत्ता कतरकर एक साथ मिलायें और उस पर नींबू का रस निचोड़े। भोजन के साथ अथवा बाद में इसे खाने से अरूचि (भोजन न करने की इच्छा करना) दूर होगी और भूख भी बढ़ेगी। इससे कब्ज भी दूर होती है और खून भी बढ़ता है।
5. मुनक्का :
6. दूध :
7. शराब : अंगूर, मुनक्का अथवा महुआ की शराब एक बार में 20-20 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार पीने से टी.बी. रोग में होता है।
8. ढाक के पत्तों का रस : ढाक के पत्तों का रस पीने से टी.बी. रोग में लाभ मिलता है।
9. कबूतर का मांस : कबूतर के मांस को धूप में सुखाकर प्रतिदिन दूध के साथ खाने से अथवा उसमें घी तथा शहद मिलाकर खाने से टी.बी. का बढ़ा हुआ रोग भी मिट जाता है।
10. गाय का पेशाब : काली स्वस्थ गाय का मूत्र प्रतिदिन 10 बार 2-2 ग्राम की मात्रा में पीने से 21 दिन में ही टी.बी. रोग मिट जाता है।
11. शहद : मक्खन, शहद और शक्कर को एकसाथ मिलाकर खाने से क्षय-रोग (टी.बी.) का रोगी ठीक हो जाता है।
12. गधी का दूध : सुबह-शाम लगभग 100-100 मिलीलीटर गधी का दूध पीने से टी.बी. रोग मिट जाता है।
13. कोयले की राख : यदि टी.बी. के रोगी के मुंह से खून आता हो तो आधा ग्राम पत्थर के कोयले की सफेद राख को मक्खन-मलाई या दूध के साथ खाने से खून आना बन्द हो जाता है।
14. आक : आक की कली पहले दिन एक निगलें, दूसरे दिन 2 तथा तीसरे दिन 3 इसके बाद प्रतिदिन 15-20 दिन तक 3-3 कली खाते रहे तो टी.बी. रोग नष्ट हो जाता है।
15. पीपल :
16. चालमोंगरा : टी.बी. रोग में चालमोंगरा के तेल की 5-6 बूंदे दूध के साथ दिन में 2 बार लेने तथा मक्खन में मिलाकर छाती पर मालिश करने से टी.बी. रोग में बहुत लाभ होता है।
17. केला :
18. आकड़ा : आकड़े का 4 चम्मच दूध और 200 ग्राम पिसी हुई हल्दी को मिलाकर अच्छी तरह से पीसकर सूखा लें। फिर सूख जाने पर इसे शीशी में भरकर रख लें। इसके पाउडर की छोटी-छोटी गोलियों को आधा चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना दिन में 4 बार चाटें। टी.बी. के रोगी 3 माह में ठीक हो जायेंगें। टी.बी. में रक्त की उल्टी भी ठीक हो जाती है। इसके सेवन से टी.बी. के असाध्य रोगी भी ठीक हो जाते हैं।
19. दालचीनी : 2 चम्मच मिश्री पर दालचीनी के तेल की 4 बूंदे डालकर प्रतिदिन 3 बार खाने से टी.बी. रोग में लाभ होता है। टी.बी. रोग में फेफड़ों से रक्तस्राव होता है। इसमें आधा चम्मच दालचीनी पाउडर की पानी से रोजाना 2 बार फंकी लेने से लाभ मिलता है।
20. मक्खन :
21. आम : एक कप आम के रस में 60 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम रोजाना 3 बार गाय के दूध के साथ 21 दिनों तक सेवन करने से टी.बी. रोग में लाभ होता है।
22. मरूआ : मरूआ के पौधे की जड़ का रस 5 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से टी.बी. रोग में लाभ मिलता है।
23. अड़ूसा : अड़ूसा के फूलों का चूर्ण 10 ग्राम की मात्रा में लेकर इतनी ही मात्रा में मिश्री में मिलाकर एक गिलास दूध के साथ सुबह-शाम 6 माह तक नियमित रूप से खाने से टी.बी. रोग में जल्द आराम मिल जाता है।
24. वंशलोचन : वंशलोचन का चूर्ण मात्रानुसार शहद के साथ चाटने से टी.बी. रोग में बहुत आराम मिलता है।
25. शहद : शहद में करेले का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से टी.बी. रोग में बहुत लाभ होता है।
26. गिलोय :
27. अखरोट : 3 अखरोट और 5 कली लहसुन को पीसकर एक चम्मच गाय के घी में भूनकर सेवन करने से टी.बी. रोग में लाभ होता है।
28. कटेरी : मोथा, पिप्पली, मुनक्का और बडी कटेरी के सूखे फलों को बराबर मात्रा में मिलाकर 5 से 10 ग्राम की मात्रा में ले। इसे 1 चम्मच घी और 2 चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से टी.बी. रोग की खांसी खत्म हो जाती है।
29. प्याज :
30. निर्गुण्डी :
31. पुनर्नवा : उरक्षत: (छाती में घाव) के रोगी के थूक में बार-बार खून आ रहा हो तो 5 से 10 ग्राम पुनर्नवा की जड़ तथा शाठी चावलों के चूर्ण को मुनक्का के रस, दूध और घी में पकाकर पिलाने से लाभ मिलता है।
32. खजूर : टी.बी. के रोगियों को रोजाना खजूर का सेवन करना इस रोग में लाभकारी रहता है।
33. नींबू : तुलसी की पत्ती, इच्छानुसार नमक, जीरा, हींग, एक गिलास गर्म पानी और 25 मिलीलीटर नींबू का रस एक साथ मिलाकर रोजाना 3 बार कुछ दिनों तक पीने से टी.बी. के मरीज के बुखार में लाभ पहुंचता है।
34. बिजौरा नींबू : बिजौरे नींबू के रस में छोटी पीपल का चूर्ण और मक्खन को डालकर सेवन करने से हृदय (दिल), दर्द और क्षय (टी.बी.) के रोगों मे लाभ मिलता है।
35. नीम : टी.बी. के रोग में नीम के तेल की 4-4 बूंदें कैप्सूल में भरकर दिन में 3 बार प्रयोग कर सकते हैं।
36. लहसुन:
37. अनार :
38. नारियल : कच्चा नारियल 25 ग्राम की मात्रा में खाने से पीसकर खाने से टी.बी. के कीटाणुओं का नाश होता है तथा फेफड़ों को ताकत मिलती है।
39. घी :
40. अंजीर : टी.बी. रोग में अंजीर का सेवन लाभदायक रहता है। अंजीर से शरीर में खून बढ़ता है। अंजीर की जड़ और डालियों की छाल का उपयोग औषधि के रूप में होता है। खाने के लिए 2 से 4 अंजीर की पर्याप्त मात्रा है।
41. बेल : टी.बी. रोग में बेल की जड़, अड़ूसा, नागफनी, थूहर के पके सूखे हुए फल का 4-4 भाग, सोंठ, कालीमिर्च व पिप्पली का एक-एक भाग लेकर उसको अच्छी तरह पीस लें। इसे 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 500 मिलीलीटर पानी में डालकर सुबह और शाम शहद के साथ सेवन कराने से टी.बी. रोग में जल्दी लाभ मिलता है तथा श्वास (दमा) व वमन (उल्टी) का आना रूक जाता है।
42. बेर : टी.बी या छाती के दर्द में 20 ग्राम बेर या पीपल की छाल को पानी में पीसकर उसे चौगुने कद्दू के रस के साथ पिलाना चाहियें। इससे टी.बी. रोग में लाभ होता है।
43. अश्वगंधा :
44. तुलसी : तुलसी के 10 पत्तों को 5 कालीमिर्च के दानों के साथ पीसकर शहद में मिलाकर प्रतिदिन चाटना चाहिए। इसे चाटने से टी.बी रोग की गांठे ठीक हो जाती है