जिगर का रोग
जिगर शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि होती है जिसमें शरीर के लिए गुणकारी पाचक रस (एन्जाइम) पित्त की उत्पत्ति होती है। जब किसी कारण से जिगर में कोई बीमारी हो जाती है तो शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं। जिगर के रोग से पीड़ित रोगी की चिकित्सा समय पर न होने और भोजन में लापरवाही रखने से मुत्यु भी हो सकती है।परिचय :
कारण :
छोटी पीपल, चित्रकमूल की छाल, शालपर्णी, गिलोय, वासा (अडूसा) की जड़, ताल वृक्ष की जटा का क्षार, अपामार्ग का क्षार और पुराना मानकन्द बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें और इसे 64 गुने गाय के मूत्र के साथ पकाएं। जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसमें शहद मिलाकर 1-1 ग्राम की गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली प्रतिदिन सेवन करने से यकृत का बढ़ना ठीक होता है।
छोटी पीपल को गुलाब के रस में पीसकर बच्चों को पिलाने से प्लीहा व यकृत की वृद्धि ठीक होती है।
15 ग्राम पिसी हुई पीपल को 100 ग्राम शहद में मिलाकर आधा चम्मच की मात्रा दिन में 2 बार मुंह में रखकर चूसने से यकृत (जिगर) का बढ़ना, मलेरिया, दमा, खांसी, बुखार, अपच (भोजन का न पचना), भूख न लगना, गैस आदि रोग दूर होता है।
4 पीपल के पत्तों के चूर्ण को आधा चम्मच शहद में डालकर प्रतिदिन चाटने से यकृत (जिगर) के रोग में आराम मिलता है और मोटापा भी घटता है।
3 मिलीलीटर ग्वारपाठे के रस में सेंधानमक व समुद्री नमक मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से यकृत रोग ठीक होता है।
घृतकुमारी के पत्तों के 2 मिलीलीटर रस को 1 ग्राम शहद में मिलाकर चीनी मिट्टी के बर्तन में रखकर बर्तन का मुंह बंद करके एक सप्ताह तक धूप में रख दें। यह औषधि योग 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से यकृत रोग (जिगर का रोग) ठीक होता है। ध्यान रखें कि ग्वारपाठा का अधिक मात्रा सेवन करने से दस्त रोग हो सकता है परंतु उचित मात्रा में सेवन करने से मल एवं वात की प्रवृत्ति ठीक होती है।
गुनगुने पानी में नींबू का रस और मिश्री मिलाकर सुबह चाय की तरह पीने से यकृत का रोग ठीक होता है।
यकृत (लीवर) और प्लीहा (तिल्ली) की बीमारी में भुनी हुई अजवायन और सेंधानमक को नींबू के रस में मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है।- नींबू का रस और कालीमिर्च के चूर्ण को पानी में मिलाकर पीने से यकृत रोग में लाभ मिलता है।