अण्डकोष का बढ़ना
यह रोग अण्डों में किसी पर आघात के पहुंचने के कारण उत्पन्न होते हैं जैसे रस और खून आदि की वृद्धि होने से अण्डकोष वृद्धि हो जाती है। इसी को अण्डवृद्धि कहते है। यह रोग ज्यादा बढ़ने पर परेशानी उत्पन्न करता है। कुपित हुए दोष जब अण्डकोष वाहिनी धमनी में प्राप्त होकर, उन कोषों की वृद्धि करते है तो उसी को अण्डवृद्धि कहते है। अण्डवृद्धि मुख्य रूप से दो प्रकार के माने जाते है-परिचय :
इस रोग में अधिक खाना खाना, अधिक परिश्रम, मल-मूत्र और शुक्र का वेग रोकना, गरिष्ठ यानी भारी खाना, दही, उड़द, मिठाई, बासी अन्न, मैथुन, साइकिल की सवारी सभी हानिकारक है।
इस रोग में वमन, पाचक पदार्थ सेवन, ज्वार, स्वेद, विरेचन (दस्त लाने वाली वस्तुएं), ब्रह्मचर्य-पालन (संयासी जीवन), गेहूं, शालिधान्य, पुराना चावल, ताजा मठ्ठा, गाय का दूध और हरे शाक सभी अण्डवृद्धि में फायदेमन्द है।
8. पानी : पहले गर्म पानी फिर ठंडे पानी से एक के बाद एक सेंक करने से अण्डकोष का फूलना सही हो जाता है।
प्रतिदिन सुबह एरण्ड के तेल का जुलाब देना चाहिए और रोज दो बार एरण्ड के तेल से अण्डकोष पर मालिश करनी चाहिए। इससे अण्डवृद्धि दूर हो जाती है।
10 मिलीलीटर एरण्ड तेल को 3 ग्राम गुग्गुलु और 10 मिलीलीटर गौमूत्र के साथ सुबह-शाम पीने से एवं अण्डकोष पर एरण्ड पत्ते गरम करके बांधने से अण्डकोष वृद्धि ठीक हो जाती है।