तुलसी



तुलसी



          तुलसी सभी स्थानों पर पाई जाती है। इसे लोग घरों, बागों व मंदिरों के आस-पास लगाते हैं लेकिन यह जंगलों में अपने आप ही उग आती है। तुलसी की अनेक किस्में होती हैं परन्तु गुण और धर्म की दृष्टि से काली तुलसी सबसे अधिक महत्वपूर्ण व उत्तम होती है। आमतौर पर तुलसी की पत्तियां हरी व काली होती है। तुलसी का पौधा सामान्यत: 1 से 4 फुट तक ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां 1 से 2 इंच लंबे अंडाकार, आयताकार, ग्रंथियुक्त व तीव्र सुगंध वाली होती है। इसमें गोलाकार, बैंगनी या लाल आभा लिए मंजरी (फूल) लगते हैं। तुलसी के पौधे आमतौर पर मार्च-जून में लगाए जाते हैं और सितम्बर-अक्टूबर में पौधे सुगंधित मंजरियों से भर जाते हैं। शीतकाल में इसके फूल आते हैं जो बाद में बीज के रूप में पकते हैं। तुलसी के पौधे में प्रबल विद्युत शक्ति होती है जो उसके चारों तरफ 200 गज तक प्रवाहित होती रहती है। जिसे घर में तुलसी का हरा पौधा होता है उस घर में कभी वज्रपात (आकाश से गिरने वाली बिजली) नहीं होता है।

तुलसी की पत्तियां हाथ जोड़कर या मन में तुलसी के प्रति सम्मान और श्रद्धा रखते हुए जितनी आवश्यकता हो उतनी ही तोड़नी चाहिए। इसकी पत्तियां तोड़ते समय ध्यान रखें कि मंजरी के आसपास की पत्तियां तोड़ने से पौधा और जल्दी बढ़ता है। अत: मंजरी के पास की पत्तियां ही तोड़ना चाहिए। पूर्णिमा, अमावस्या, संक्रान्तिकाल, कार्तिक, द्वादशी, रविवार, शाम के समय, रात एवं दिन के बारह बजे के आसपास तुलसी की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए। तेल की मालिश कराने के बाद बिना नहाए, स्त्रियों के मासिक धर्म के समय अथवा किसी प्रकार की अन्य अशुद्धता के समय तुलसी के पौधे को नहीं छूना चाहिए क्योंकि इससे पौधे जल्दी सूख जाते हैं। यदि पत्तों में छेद दिखाई देने लगे तो कंडे (छाणे) की राख ऊपर छिड़क देने से उत्तम फल मिलता है।
कुलनाम लेमीसेई।
संस्कृत तुलसी, सुरसा।
हिंदी तुलसी।
अंग्रेजी बेसिल।
लैटिन ओसिमम सेंक्टम।
बंगाली तुलसी, कुरल।
मराठी तुलसा, काली तुलसी।
गुजराती तुलस।
तेलगू वृन्दा, गगेरा, कृष्णा तुलसी।
तुलसी की अनेक जातियां होती है परन्तु साधारणत: औषधि के लिए हमेशा सुलभ और पवित्र तुलसी का ही प्रयोग किया जाता है। औषधियों के रूप में प्रयोग होने वाली तुलसी दो प्रकार की होती है- हरी पत्तियों वाली सफेद तुलसी और काली पत्तियों वाली काली तुलसी। दोनों तुलसी के गुण समान होते हैं लेकिन हरी तुलसी के अपेक्षा काली तुलसी अधिक लाभकारी होती है। काली तुलसी में कफ को नष्ट करने की शक्ति होती है और हरी तुलसी में बुखार को समाप्त करने की शक्ति होती है।
तुलसी कीडे़ को नष्ट करने वाली, दुर्गंध को दूर करने वाली, कफ को निकालने वाली तथा वायु को नष्ट करने वाली होती है। यह पसली के दर्द को मिटाने वाली, हृदय के लिए लाभकारी, मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट होना) को ठीक करने वाली, विष के दोषों को नष्ट करने वाली और त्वचा रोग को समाप्त करने वाली होती है। यह हिचकी, खांसी, दमा, सिर दर्द, मिर्गी, पेट के कीड़े, विष विकार, अरुचि (भोजन करने की इच्छा न करना), खून की खराबी, कमर दर्द, मुंह व सांस की बदबू एवं विषम ज्वर आदि को दूर करती है। इससे वीर्य बढ़ता है, उल्टी ठीक होती है, पुराना कब्ज दूर होता है, घाव ठीक होता है, सूजन पचती है, जोड़ों का दर्द, मूत्र की जलन, पेशाब करने में दर्द, कुष्ठ एवं कमजोरी आदि रोग ठीक होता है। यह जीवाणु नष्ट करती है और गर्भ को रोकती है।
यूनानी चिकित्सकों के अनुसार : यूनानी चिकित्सकों के अनुसार तुलसी बल बढ़ाने वाली, हृदयोत्तेजक, सूजन को पचाने वाली एवं सिर दर्द को ठीक करने वाली होती है। तुलसी के पत्ते बेहोशी में सुंघाने से बेहोशी दूर होती है। इसके पत्ते चबाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है। तुलसी के सेवन से सूखी खांसी दूर होती है और वीर्य गाढ़ा होता है। इसके बीज दस्त में आंव व खून आना बंद करता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार : वैज्ञानिकों द्वारा तुलसी का रासायनिक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसके बीजों में हरे व पीले रंग का एक स्थिर तेल 17.8 प्रतिशत की मात्रा में होता है। इसके अतिरिक्त बीजों से निकलने वाले स्थिर तेल में कुछ सीटोस्टेराल, स्टीयरिक, लिनोलक, पामिटिक, लिनोलेनिक और ओलिक वसा अम्ल भी होते हैं। इसमें ग्लाइकोसाइड, टैनिन, सेवानिन और एल्केलाइड़स भी होते हैं।
140. सभी रोगों में सहायक : तुलसी की प्रकृति गर्म होती है इसलिए इसे गर्मियों में कम मात्रा में लेते हैं। बड़ों के लिए 25 से 100 पत्ते एवं बालकों के लिए 5 से 25 पत्ते एक बार पीसकर शहद या गुड़ या एक कप दही में मिलाकर प्रतिदिन 3 बार 2-3 महीनों तक लेनी चाहिए। सुबह भूखे पेट पहली मात्रा लेनी चाहिए। इससे कैंसर, गठिया, आर्थराइटिस, ऑस्टियों आर्थराइटिस, स्नायुशूल (नाड़ी का दर्द), गुर्दों की खराबी व सूजन, पथरी, सफेद दाग, रक्त में चर्बी बढ़ना, मोटापा, कब्ज, गैस, अम्लता, पेचिश, कोलाइटिस, प्रोस्टेट के रोग, मंद बुद्धि बच्चे, सर्दी-जुकाम, प्रदाह, बार-बार बुखार आना, घाव भरना, टूटी हुई हडि्डयां, घाव न भरना, कैंसर, बिवाइयां, दमा, श्वास रोग, एलर्जी, आंखों का दुखना, विटामिन `ए` और `बी` की कमी, खसरा, सिरदर्द, आधे सिर का दर्द आदि सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।