आंवला

आंवले का पेड़ भारत के प्राय: सभी प्रांतों में पैदा होता है। तुलसी की तरह आंवले का पेड़ भी धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है। स्त्रियां इसकी पूजा भी करती हैं। आंवले के पेड़ की ऊचांई लगभग 6 से 8 तक मीटर तक होती है। आंवले के पत्ते इमली के पत्तों की तरह लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। इसके पुष्प हरे-पीले रंग के बहुत छोटे गुच्छों में लगते हैं तथा फल गोलाकार लगभग 2.5 से 5 सेमी व्यास के हरे, पीले रंग के होते हैं। पके फलों का रंग लालिमायुक्त होता है। खरबूजे की भांति फल पर 6 रेखाएं 6 खंडों का प्रतीक होती हैं। फल की गुठली में 6 कोष होते हैं, छोटे आंवलों में गूदा कम, रेशेदार और गुठली बड़ी होती है, औषधीय प्रयोग के लिए छोटे आंवले ही अधिक उपयुक्त होते हैं।परिचय :

विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत                   आमलकी, धात्री, शिवा।
हिंदी.                  आंवला, आमला, आंवरा।
मराठी                    आंवली, आंवलकांटी, आंवला।
गुजराती                 आंवला, आमला।
बंगाली                    आमलकी, आमला, आंगला।
तेलगू                     असरिकाय, उशीरिकई।
द्राविड़ी                    नेल्लिक्काय्, अमृत फल,   वयस्था।
कन्नड़                    निल्लकाय, नेल्लि।
अरबी                     आमलन्
अंग्रेजी    
लैटिन           एमब्लिका ऑफिसिनेलिस।
        आंवला युवकों को यौवन और बड़ों को युवा जैसी शक्ति प्रदान करता है। एक टॉनिक के रूप में आंवला शरीर और स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान है। दिमागी परिश्रम करने वाले व्यक्तियों को वर्ष भर नियमित रूप से किसी भी विधि से आंवले का सेवन करने से दिमाग में तरावट और शक्ति मिलती है। कसैला आंवला खाने के बाद पानी पीने पर मीठा लगता है।
         आंवला हरा, ताजा हो या सुखाया हुआ पुराना हो, इसके गुण नष्ट नहीं होते। इसकी अम्लता इसके गुणों की रक्षा करती है। आयुर्वेद में आंवले को बहुत महत्ता प्रदान की गई है, जिससे इसे रसायन माना जाता है। च्यवनप्राश आयुर्वेद का प्रसिद्ध रसायन है, जो टॉनिक के रूप में आम आदमी भी प्रयोग करता है। इसमें आंवले की अधिकता के कारण ही विटामिन `सी´ भरपूर होता है। यह शरीर में आरोग्य शक्ति बढ़ाता है। त्वचा, नेत्र रोग और केश (बालों) के लिए विटामिन बहुत उपयोगी है। संक्रमण से बचाने, मसूढ़ों को स्वस्थ रखने, घाव भरने और खून बनाने में भी विटामिन सी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।a
विभिन्न रोगों में सहायक :
1. बालों के रोग : आंवले का चूर्ण पानी में भिगोकर रात्रि में रख दें। सुबह इस पानी से रोजाना बाल धोने से उनकी जड़े मजबूत होंगी, उनकी सुंदरता बढ़ेगी और मेंहदी मिलाकर बालों में लगाने से वे काले हो जाते हैं।
2. पेशाब की जलन :
3. हकलाहट, तुतलापन :
4. खून के बहाव (रक्तस्राव) : स्राव वाले स्थान पर आंवले का ताजा रस लगाएं, स्राव बंद हो जाएगा।
5. धातुवर्द्धक (वीर्यवृद्धि) : एक चम्मच घी में दो चम्मच आंवले का रस मिलाकर दिन में 3 बार कम-से-कम 7 दिनों तक ले सकते हैं।
6. पेशाब रुकने पर : कच्चे आंवलों को पीसकर बनी लुग्दी पेडू पर लगाएं।
7. आंखों (नेत्र) के रोग में :
8. सुन्दर बालों के लिए :
9. आवाज का बैठना :
10. हिक्का (हिचकी) :
11. वमन (उल्टी) :
12. संग्रहणी : मेथी दाना के साथ इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर 10 से 20 मिलीलीटरकी मात्रा में दिन में 2 बार पिलाने से संग्रहणी मिट जाती है।
13. मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन होने पर) :
14. अर्श (बवासीर) :
15. शुक्रमेह : धूप में सुखाए हुए गुठली रहित आंवले के 10 ग्राम चूर्ण में दुगनी मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे 250 मिलीलीटर तक ताजे जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करने से स्वप्नदोष (नाइटफॉल), शुक्रमेह आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है।
16. खूनी अतिसार (रक्तातिसार) : यदि दस्त के साथ अधिक खून निकलता हो तो आंवले के 10-20 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर रोगी को पिलायें और ऊपर से बकरी का दूध 100 मिलीलीटर तक दिन में 3 बार पिलाएं।
17. रक्तगुल्म (खून की गांठे) : आंवले के रस में कालीमिर्च डालकर पीने से रक्तगुल्म खत्म हो जाता है।
18. प्रमेह (वीर्य विकार) :
19. पित्तदोष : आंवले का रस, शहद, गाय का घी इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर आपस में घोटकर लेने से पित्त दोष तथा रक्त विकार के कारण नेत्र रोग ठीक होते हैं।
20. मूत्रातिसार (सोमरोग) : एक पका हुआ केला, आंवले का रस 10 मिलीलीटर, शहद 5 ग्राम, दूध 250 मिलीलीटर, इन्हें एकत्र करके सेवन करने से सोमरोग नष्ट होता है।
21. श्वेतप्रदर :
22. पाचन सम्बंधी विकार : पकाये हुए आंवलों को घियाकस कर लें, उसमें उचित मात्रा में कालीमिर्च, सोंठ, सेंधानमक, भुना जीरा और हींग मिलाकर छाया में सुखाकर सेवन करें। इससे अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना), अग्निमान्द्य (अपच) व मलावरोध दूर हो जाता है तथा भूख में वृद्धि होती है।
23. तेज अतिसार (तेज दस्त) : 5-6 आंवलों को जल में पीसकर रोगी की नाभि के आसपास उनकी थाल बचाकर लेप कर दें और थाल में अदरक का रस भर दें। इस प्रयोग से अत्यंत भयंकर नदी के वेग के समान दुर्जय, अतिसार का भी नाश होता है।
24. मूत्राघात (पेशाब में धातु का आना) : 5-6 आंवलों को पीसकर वीर्य नलिकाओं पर लेप करने से मूत्राघात की बीमारी समाप्त होती है।
25. योनि की जलन, सूजन और खुजली :
26. सुजाक : आंवले के 2 से 5 ग्राम चूर्ण को एक गिलास जल में मिलाकर पीने से और उसी जल से मूत्रेन्दिय में पिचकारी देने से सूजन व जलन शांत होती है और धीरे-धीरे घाव भरकर पीव आना बंद हो जाता है।
27. वातरक्त : आंवला, हल्दी तथा मोथा के 50-60 मिलीलीटर काढ़ा में 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार पीने से वातरक्त शांत हो जाता है।
28. पित्तशूल : आंवले के 2-5 ग्राम चूर्ण को 1 चम्मच शहद के साथ मिलाकर सुबह खाली पेट पित्तशूल की शांति के लिए चाटना चाहिए।
29. जोड़ों के दर्द :
30. कफज्वर : मोथा, इन्द्रजौ, हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी तथा फालसे का काढ़ा कफ ज्वर को नष्ट करता है।
31. रक्तपित्त (पित्त के कारण उत्पन्न रक्तविकार) :
32. बुखार होने के मूल दोष : आंवला, चमेली की पत्ती, नागरमोथा, ज्वासा को समान भाग में लेकर काढ़ा बना लें। इसके बाद इसमें गुड़ मिलाकर सेवन करने से बुखार के रोगी के शरीर के भीतर के दोष शीघ्र ही बाहर निकल आते हैं।
33. पित्तज्वर : पके हुए आंवलों का रस निकालकर उसको खरल में डालकर घोटना चाहिए, जब गाढ़ा हो जाए तब उसमें और रस डालकर घोटना चाहिए। इस प्रकार घोटते-घोटते सब को गाढ़ा करके उसका गोला बनाकर चूर्ण कर लेना चाहिए। यह चूर्ण अत्यंत पित्तशामक है। इसको 2-5 ग्राम की मात्रा में रोजाना दिन में सुबह और शाम सेवन करने से पित्त की घबराहट, प्यास और पित्त का ज्वर दूर होता है।
34. खाज-खुजली :
35. फोड़े :
36. थकान : आंवले के 100 मिलीलीटर काढ़े में 10 ग्राम गुड़ डालकर थोड़ा-थोड़ा पीने से थकान, दर्द, रक्तपित्त (खूनी पित्त) या मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट होना) आदि रोग ठीक होते हैं।
37. पित्तरोग : ताजे फलों का मुरब्बा विशेष रूप से आंवले का मुरब्बा 1-2 पीस सुबह खाली पेट खाने से पित्त के रोग मिटते हैं।
38. चाकू का घाव : चाकू आदि से कोई अंग कट जाय और खून का बहाव तेज हो तो तत्काल आंवले का ताजा रस निकालकर लगा देने से लाभ होता है।
39. दीर्घायु (लम्बी आयु के लिए) :
40. गर्मी से बचाव : गर्मी में आंवले का शर्बत पीने से बार-बार प्यास नहीं लगती तथा गर्मी के रोगों से बचाव होता है।
41. स्वप्नदोष :
42. पुराना बुखार : मूंग की दाल में सूखा आंवला डालकर पकाकर खाएं।
43. खूनी बवासीर : सूखे आंवले को बारीक पीसकर एक चाय का चम्मच सुबह-शाम 2 बार छाछ या गाय के दूध से लेने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
44. खून की कमी :
45. पाचन-शक्तिवर्धक : खाने के बाद 1 चम्मच सूखे आंवले के चूर्ण की फंकी लेने से पाचन-शक्ति बढ़ती है, मल बंधकर आता है।
46. शक्तिवर्धक : पिसा हुआ आंवला 1 चम्मच, 2 चम्मच शहद में मिला कर चाटें, ऊपर से दूध पीएं। इससे सदा स्वास्थ्य अच्छा रहता है। दिनभर प्रसन्नता का अनुभव होता है। जब ताजे आंवले मिलते हो तो सुबह आधा कप आंवले के रस में 2 चम्मच शहद आधा कप पानी मिला कर पीएं। ऊपर से दूध पीएं। इससे थके हुए ज्ञान-तंतुओं को उत्तम पोषण मिलता है। कुछ ही दिन नित्य पीने पर शरीर में नई शक्ति और चेतना आयेगी जीवन में यौवन की बहार आयेगी। जो लोग स्वस्थ रहना चाहते है, उन्हें इस प्रकार आंवले का रस नित्य पीना चाहिए।
47. स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए : प्रतिदिन सुबह आंवले का मुरब्बा खाएं।
48. नेत्र-शक्ति बढ़ाने के लिए : आंवले के सेवन से आंखों की दृष्टि बढ़ती है। 250 मिलीलीटर पानी में 6 ग्राम सूखे आंवले को रात को भिगो दें। प्रात: इस पानी को छानकर आंखें धोयें। इससे आंखों के सब रोग दूर होते हैं और आंखों की दृष्टि बढ़ती है। सूखे आंवले के चूर्ण की 1 चाय की चम्मच की फंकी रात को पानी से लें।
49. कटने से खून निकलने पर : कटे हुए स्थान पर आंवले का ताजा रस लगाने से खून निकलना बंद हो जाता है।
50. हृदय एवं मस्तिष्क की निर्बलता : आधा भोजन करने के बाद हरे आंवलों का रस 35 मिलीलीटर पानी मिलाकर पी लें, फिर आधा भोजन करें। इस प्रकार लगभग 20-25 दिन सेवन करने से हृदय तथा मस्तिष्क सम्बन्धी दुर्बलता दूर होकर स्वास्थ्य सुधर जाता है।
51. गर्भवती स्त्री को उल्टी होने पर : यदि गर्भावस्था में उल्टी होती हो तो आंवले के मुरब्बे प्रतिदिन 4 बार खिलाने से उल्टी बंद हो जायेगी।
52. त्वचा सौन्दर्यवर्धक : पिसा हुआ आंवला उबटन (बॉडी लोशन) की तरह मलने से त्वचा साफ और मुलायम रहती है तथा चर्म रोग नहीं होते हैं।
53. आंखों के आगे अंधेरा छाना : आंवलों का रस पानी में मिलाकर सुबह-शाम 4 दिन पीने से लाभ होता है।
54. चक्कर आना :
55. आंखों को निरोग रखना : त्रिफला (हरड़, बहेड़ा और आंवला) रात को पानी में मिट्टी के बर्तन में भिगो दें। सुबह छानकर इस पानी से आंखें धोने से आंखें निरोग रहती हैं।
56. झुर्रियां झांई : रोजाना सुबह-शाम चेहरे पर किसी भी तेल की धीरे-धीरे मालिश करें। रात को 1 कांच का गिलास पानी से भर कर इसमें 2 चम्मच पिसा हुआ आंवला भिगो दें और सुबह पानी छानकर चेहरा रोज इस पानी से धोयें। ऐसा करते रहने से चेहरे की झुर्रियां व झांई दूर हो जायेगी।
57. जवानी बनाएं रखना : सूखा आंवला पीस लें। इसे 2 चम्मच भरकर रोटी के साथ रोजाना खाने से जवानी बनी रहेगी और बुढ़ापा देर से आयेगा।
58. बाल को लंबे और मुलायम करना : सूखे आंवले और मेंहदी दोनों समान मात्रा में आधा कप भिगो दें। प्रात: इससे बाल धोयें तो बाल मुलायम और लम्बे हो जायेंगे।
59. हस्त-मैथुन : हस्त-मैथुन से धातु (वीर्य) पतला हो गया हो तो सबसे पहले इस हस्त-मैथुन की आदत छोड़ दें। आंवलों तथा हल्दी को समान मात्रा में पीसकर घी डालकर भूनें। सिंकने के बाद इसमें दोनों के वजन के बराबर पिसी हुई मिश्री मिला लें। 1 चाय के चम्मच सुबह-शाम गर्म दूध से इसकी फंकी लेनी चाहिए।
60. अजीर्ण ज्वर : आंवला, चित्रक, छोटी हरड़, छोटी पीपल तथा सेंधानमक को बारीक कर चूर्ण गर्म पानी के साथ सेवन करने से बुखार समाप्त हो जाता है।
61. आंख आना : आंवले का रस निकालकर उसे किसी कपडे़ में छानकर बूंद-बूंद करके आंखों में डालने से आंख आने का रोग ठीक होता है साथ ही आंख का लालपन और जलन भी दूर होती है।
62. दांतों का दर्द :
63. दमा या श्वास का रोग : ताजे आंवले की गुठली को अलग करके गूदे को महीन पीसकर कपडे़ से निचोड़ लें। 10 मिलीलीटर रस इकट्ठा करके लोहे की कड़ाही में हल्की आंच पर हलुवे जैसा काढ़ा होने तक पकाएं, फिर उसमें दो किलो घी डालकर हल्का लाल होने तक भून लेते हैं। अब एक अन्य बर्तन में 5 लीटर दूध औटाकर उसमें इच्छानुसार शक्कर और बादाम (गिरी को महीन काटकर) डालें। इसे आंवले के रस में मिलाकर पुन: इस मिश्रण को इतना भून लेते हैं कि यह मिश्रण खाने लायक हो जाए। इसे सर्दी के दिनों में गर्म दूध के साथ 10-12 ग्राम मात्रा में लेना चाहिए और गर्मी के दिनों में इसे ठंडे दूध के साथ लेना चाहिए। इसके सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है। असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। त्वचा में चमक आ जाती है और शरीर पुष्ट हो जाता है। वीर्य संबन्धी दोष भी इसके सेवन से दूर हो जाते हैं।
64. बालों का सफेद होना :
65. बुखार :
66. आंखों का दर्द :
67. काली खांसी : 10-10 ग्राम आंवला, छोटी पीपल, सेंधानमक, बहेड़े का छिलका, बबूल के गोंद को पानी के साथ पीसकर और छानकर आधा ग्राम शहद में मिलाकर दिन में 3 बार प्रयोग करने से गले की खराबी से उठने वाली खांसी ठीक हो जाती है।
68. खांसी :
69. दांत निकलना :
70. बालों को काला करना :
71. पायरिया (मसूढ़ों में पीव का आना) : आंवले को आग में जलाकर उसके राख में थोडा-सा सेंधानमक मिलाकर बारीक पीसकर पॉउडर बना लें। इसके पॉउडर को सरसों के तेल में मिलाकर रोजाना मंजन करने से पायरिया ठीक होता है तथा मुंह की दुर्गन्ध दूर होती है।
72. एलर्जिक बुखार : 10 ग्राम आंवले का चूर्ण 10 ग्राम गुड़ के साथ सुबह और शाम लेने से लाभ पहुंचता है।
73. निमोनिया : 10-10 ग्राम आंवला, जीरा, पीपल, कौंच के बीज तथा हरड़ को लेकर कूट-पीसकर छान लें फिर इस चूर्ण में थोड़ा सा चूर्ण शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसको खाने से निमोनिया का रोग दूर हो जाता है।
74. पुरानी खांसी : आंवलों का बारीक चूर्ण पीसकर मिश्री मिलाकर पानी के साथ सेवन करने से पुरानी खांसी नष्ट हो जाती है।
75. बालों का झड़ना :  सूखे आंवले को रात को पानी में भिगो दें और सुबह इस पानी से बाल धोयें। इससे बालों की जड़े मजबूत होती हैं, बालों की प्राकृतिक सुंदरता बढ़ती है। फरास का जमना ठीक हो जाता है। आंखों और मस्तिष्क को लाभ पहुंचता है। मेंहदी और सूखा आंवला पीसकर पानी में गूंथकर, लगाने से बाल काले हो जाते हैं।
76. रतौंधी (रात में दिखाई देना) :
77. कांच का निकलना (गुदाभ्रंश) : आंवले या हरड़ का मुरब्बा बनाकर दूध के साथ बच्चे को खिलाने से कब्ज खत्म होता है और गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बंद होता है।
78. जीभ और मुंह का सूखापन : आंवले का मुरब्बा 10 से 20 ग्राम प्रतिदिन 2 से 3 बार खायें। इससे पित्तदोष से होने वाले मुंह का सूखापन खत्म होता है।
79. गैस्ट्रिक अल्सर : आंवले के रस को शहद के साथ चाटने से गैस्ट्रिक अल्सर की बीमारी में लाभ मिलता है। इसे खाने में चटनी के रूप में भी इस्तेमाल करें।
80. रोशनी से डरना : 125 ग्राम सूखा आंवला, 125 ग्राम सौंफ और 125 ग्राम चीनी या मिश्री को एक साथ मिलाकर अच्छी तरह पीसकर मिला लें। इस चूर्ण को 1 से 2 चम्मच रोजाना गाय के दूध के साथ पीने से आंखों के रोग दूर होते हैं और आंखों की रोशनी तेज होती है।
81. कब्ज :
82. जननांगों की खुजली :
83. सिर की रूसी : एक गिलास पानी में आंवले को रख दें। उसके बाद उसी पानी से सिर को अच्छी तरह मल-मल कर साफ करें। इससे रूसी मिट जाती है।
84. अतिक्षुधा भस्मक (अधिक भूख की लगने की शिकायत) : सूखे आंवले का चूर्ण 3 ग्राम से लेकर 10 ग्राम तक शहद के साथ सुबह और शाम सेवन से लीवर अपनी सामान्य गति से काम करने लगता है और अधिक भूख लगने की शिकायत दूर होती है।
85. मसूढ़ों से खून आना : मसूढ़ों से खून निकलने पर आंवले के पत्तों एवं पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम कुल्ला करने से रोग में लाभ होता है।
86. मुंह आना (मुंह के छाले) :
87. पेट की गैस बनना : एक चम्मच आंवले के रस में थोड़ा-सा देशी घी और खांड को मिलाकर सेवन करें। इससे पेट की गैस के साथ-साथ गठिया की बीमारी भी दूर हो जाती है।
88. गर्भाशय योनि के रोग : आंवले के रस में 20 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से योनि और गर्भाशय की जलन ठीक हो जाती है।
89. जुकाम :
90. दस्त:
90. नपुंसकता (नामर्दी) : आंवले का रस निकालकर एक चम्मच आंवले के चूर्ण में मिलाकर लें। उसमें थोड़ी-सी शक्कर (चीनी) और शहद मिलाकर घी के साथ सुबह-शाम खायें।
92. गर्भवती की उल्टी और जी का मिचलना : आंवले के रस में चंदन घिसकर 20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है। इसे प्रतिदिन दो से तीन बार देना चाहिए।
93. कालाज्वर : लगभग एक चम्मच आंवले के चूर्ण को दिन में दो बार शहद के साथ मिलाकर रोगी को देने से शरीर का खून बढ़ता है।
94. बहरापन : एक-एक चम्मच आंवले के पत्तों का रस, जामुन के पत्तों का रस और महुए के पत्तों के रस को लेकर 100 मिलीलीटर सरसों के तेल में डालकर पकाने के लिये रख दें। पकने के बाद जब बस तेल ही बाकी रह जाये तो उस तेल को शीशी में भरकर रख लें। इस तेल की 2-3 बूंदे रोजाना कान में डालने से बहरेपन का रोग जाता रहता है।
95. आमातिसार : लगभग 40 से 80 मिलीलीटर भुईआंवले के कोमल तने के फांट (घोल) का सेवन करने से आमातिसार के रोगी का रोग ठीक होता है।
96. रजोनिवृत्ति (मासिक धर्म समाप्ति) के बाद के शारीरिक मानसिक कष्ट : शारीरिक जलन, ब्रहमतालु में गर्मी आदि के लिए आंवले का रस 10 से 20 ग्राम की मात्रा में मिश्री के साथ या सूखे आंवले का चूर्ण समान मात्रा में मिश्री के साथ सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।
97. मासिक-धर्म संबन्धी परेशानियां: एक चम्मच आंवले का रस पके हुए केले के साथ कुछ दिनों तक लगातार सेवन करें। इसके सेवन से मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव नहीं होता है।
98. चोट लगना : कटने से रक्त-स्राव होने पर कटे हुए स्थान पर आंवले का ताजा रस लगाने से खून का बहना बंद हो जाता है।
99. आंव रक्त (पेचिश) :
100. भगन्दर : आंवले का रस, हल्दी और दन्ती की जड़ 5-5 ग्राम की मात्रा में लें और इसको अच्छी तरह से पीसकर इसे भगन्दर पर लगाने से घाव नष्ट होते हैं।
101. प्रदर :
102. जिगर का रोग :
103. अग्निमान्द्यता (अपच) : ताजे हरे आंवलों का रस और अनार का रस 4-4 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ रोजाना सुबह और खाना खाने बाद लेने से लाभ होता है।
104. अल्सर :
105. अम्लपित्त (एसिडिटीज) :
106. यकृत का बढ़ना : 3 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में आंवले का चूर्ण, शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से यकृत की क्रिया ठीक हो जाती है।
107. पथरी :
108. कफ (बलगम) : आंवला सूखा और मुलहठी को अलग-अलग बारीक करके चूर्ण बना लें और मिलाकर रख लें। इसमें से 1 चम्मच चूर्ण दिन में 2 बार खाली पेट सुबह-शाम 7 दिनों तक ले सकते हैं। इससे छाती में जमा हुआ सारा कफ (बलगम) बाहर आ जायेगा।
109. प्यास अधिक लगना : आंवला और सफेद कत्था मुंह में रखने से प्यास का अधिक लगना ठीक हो जाता है।
110. जलोदर :
111. लू का लगना :
112. रक्तप्रदर :
113. बच्चों का मधुमेह रोग :
114. मधुमेह (डायबिटीज) :
115. शीतपित्त :
116. पेट के कीड़े :
117. प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) : आंवले के मुरब्बे के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मुक्तापिष्टी को मक्खन या मलाई के साथ सुबह और शाम को सेवन करने से तिल्ली के बढ़ने के कारण होने वाली पित्त की जलन तथा आन्तरिक जलन में राहत प्राप्त होती है। 
118. प्लेग रोग : प्लेग के रोग को दूर करने के लिए सोना गेरू, खटाई, देशी कपूर, जहर मोहरा और आंवला इन सबको 25-25 ग्राम तथा पपीता के बीज 10 ग्राम लेकर इन सबको मिलाकर कूटकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को कागजी नींबू के रस में 3 घंटों तक घोटने के बाद मटर के बराबर गोलियां बना लें। उन गोलियों में से 1 गोली 7 दिनों में एक बार खायें। इससे रोग में लाभ होता है।
119. नाक के रोग :
120. सभी प्रकार के दर्द : आंवला को पीसकर प्राप्त रस में चीनी को मिलाकर चाटने से `पित्तज शूल´, जलन और रक्तपित्त की बीमारियों में लाभ पहुंचाती है।
121. घाव (व्रण) : नीम की छाल, गुर्च, आमला, बाबची, एक भांग (एक पल), सोंठ, वायविडंग, पमार, पीपल, अजवायन, जीरा, कुटकी, खैर, सेंधानमक, जवाक्षार, हल्दी, दारूहल्दी, नागरमोथा, देवदार और कूठ आदि को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर उसे कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को घाव पर लगाने से रोग में आराम मिलता है।
122. पेट में दर्द :
123. वीर्य की कमी : एक बड़े आंवले के मुरब्बे को खाने से मर्दाना ताकत आती है।
124. नकसीर (नाक से खून का आना) :
125. अवसाद उदासीनता या सुस्ती : रोजाना आंवले के मुरब्बे का सेवन करने से मानसिक अवसाद या उदासी दूर हो जाती है।
126. मूर्च्छा (बेहोशी) : एक चम्मच आंवले का रस और 2 चम्मच घी को मिलाकर रोगी को पिलाने से बेहोशी दूर हो जाती है।
127. पेशाब में खून आना : लगभग 12 ग्राम आंवला और 12 ग्राम हल्दी को मोटा-मोटा पीसकर रात को पानी में डालकर भिगो दें। सुबह इस पानी को छानकर पीने से पेशाब में खून आने का रोग दूर होता है।
128. योनि संकोचन :
129. बिस्तर पर पेशाब करना :
130. योनिकंद : आंवले की गुठली, बायविंडग, हल्दी, रसौत और कायफल को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद में मिलाकर योनि में रख लें, फिर त्रिफले के काढ़े में शहद डालकर योनि को धोने से योनि कंद की बीमारी समाप्त हो जाती है।
131. भ्रम रोग :
132. पेशाब का अधिक आना (बहुमूत्र) :
133. मूत्र (पेशाब) की बीमारी:
134. योनि रोग :
135. अपरस (चर्म) के रोग में : 4 ग्राम सूखे आंवले का चूर्ण और 2 ग्राम हल्दी का चूर्ण थोड़े दिनों तक पानी के दूध के साथ रोजाना दो बार पीने से खून साफ हो जाता है और त्वचा के दूसरे रोग खाज-खुजली आदि दूर होते हैं।
136. दिल की धड़कन :
137. खूबसूरत दिखना : आंवले को पीसकर पानी में भिगोकर चेहरे पर उबटन की तरह मलने से चेहरे की खूबसूरती बढ़ती है।
138. उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) :
139. हृदय की निर्बलता (कमजोरी) :
140. घबराहट या बेचैनी : 10 ग्राम आंवले के चूर्ण को इतनी ही मात्रा में मिश्री के साथ सुबह और शाम खाने से घबराहट दूर हो जाती है।
141. त्वचा (चर्म) रोग :
142. हदय रोग :
143. निम्न रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर) :
144. क्रोध : एक से दो की संख्या में आंवले का मुरब्बा रोजाना खाने से जलन, चक्कर के साथ साथ क्रोध भी दूर हो जाता है।
145. पीलिया (पांडु) का रोग :
146. कुष्ठ (कोढ़) :
147. विसर्प (फुंसियों का दल बनना) :
148. खसरा :
149. सिर में दर्द :
150. सफेद दाग : 20-20 ग्राम खादिरसार (कत्था) और आंवला को लेकर 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में 5 ग्राम बावची का चूर्ण मिलाकर खाने से श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) ठीक हो जाता है।
151. बच्चों का फोड़ा : आंवलों की राख घी में मिलाकर लेप करने से बच्चों को होने वाला `फोड़ा´ ठीक हो जाता है।
152. चेहरे की सुंदरता : रोजाना सुबह और शाम चेहरे पर किसी भी तेल की मालिश कर लें। रात को 1 कांच का गिलास पानी से भरकर उसमें दो चम्मच पिसा हुआ आंवला भिगो दें और सुबह उस पानी को छानकर चेहरे को रोजाना इस पानी से धोंयें। इससे चेहरे की झुर्रिया (चेहरे की सिलवटें) और झांइयां दूर हो जाती हैं।
153. त्वचा का प्रसाधन : आंवले के मुरब्बा का रोजाना दो से तीन बार सेवन करने से त्वचा का रंग निखरता है।
154. याददास्त कमजोर होना :
155. बच्चों के रोग : अगर बच्चे के शरीर पर फुन्सियां हो, तो रेवन्दचीनी की लकड़ी को पानी में घिसकर लेप करें। अगर फोड़ा हो, तो आंवले की राख को घी में मिलाकर लेप करें। अगर फोड़े-फुन्सी बहुत हो तो आंवलों को दही में भिगोकर लगायें या नीम की छाल (खाल) पानी में घिस कर लगायें।
156. कण्ठमाला के रोग में : सर्पगन्धा, आंवला, आशकंद और अर्जुन की छाल को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 2-2 ग्राम दिन में सुबह और शाम सेवन करने से गलगण्ड (गले की गांठें) ठीक हो जाता है।
157. शरीर को शक्तिशाली और ताकतवर बनाना :
158. श्लेश्मपित्त : लगभग 10 ग्राम आंवला लेकर उसको रात को सोते समय पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर इनको मसलकर छान लें। अब इस जल में मिश्री और जीरे के चूर्ण को मिलाकर पीने से सभी प्रकार के पित्त रोग ठीक हो जाते हैं।
159. गले के रोग :
तत्व 
मात्रा 
प्रोटीन
0.5 %
वसा
0.1 %
रेशा
3.4 %
खनिज द्रव्य
0.7 %
कार्बोहाइड्रेट
14.1 %
पानी
81.2 %
विटामिन-“C”
लगभग आधा ग्राम
कैल्शियम
0.05 %
फास्फोरस
0.02 %
लौह
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्रा