बांझपन

बांझपन


          संतानोत्त्पत्ति क्षमता न होने या गर्भ न ठहर पाने की स्थिति को बन्ध्यापन (बांझपन) कहते हैं। पुरुषों के शुक्र दोष और स्त्रियों के रजोदोष के कारण ही ऐसा होता है। अत: बंध्यापन चिकित्सा में पुरुषों के वीर्य में वीर्य कीटों को स्वस्थ करने, वीर्य को शुद्ध करने की व्यवस्था करें और स्त्रियों को रजोदोष से मुक्ति करें। इससे संतान की प्राप्ति होगी।परिचय :

          किसी भी प्रकार का योनि रोग, मासिक-धर्म का बंद हो जाना, प्रदर, गर्भाशय में हवा का भर जाना, गर्भाशय पर मांस का बढ़ जाना, गर्भाशय में कीड़े पड़ जाना, गर्भाशय का वायु वेग से ठंडा हो जाना, गर्भाशय का उलट जाना अथवा जल जाना आदि कारणों से स्त्रियों में गर्भ नहीं ठहरता है। इन दोषों के अतिरिक्त कुछ स्त्रियां जन्मजात वन्ध्या (बांझ) भी होती है। जिन स्त्रियों के बच्चे होकर मर जाते हैं। उन्हें ``मृतवत्सा वन्ध्या`` तथा जिनके केवल एक ही संतान होकर फिर नहीं होती है तो उन्हें `काक वन्ध्या` कहते हैं।
1. मैनफल: मैनफल बीजों का चूर्ण 6 ग्राम केशर के साथ शक्कर मिले दूध के साथ सेवन करने से बन्ध्यापन अवश्य दूर होता है। साथ ही मैनफल के बीजों का चूर्ण 8 से 10 रत्ती गुड़ में मिलाकर बत्ती बनाकर योनि में धारण करना चाहिए। दोनों प्रकार की औषधियों के प्रयोग से गर्भाशय की सूजन, मासिक-धर्म का कष्ट के साथ आना, अनियमित स्राव आदि विकार नष्ट हो जाते हैं।
2. दालचीनी:
3. गुग्गुल: गुग्गुल एक ग्राम और रसौत को मक्खन के साथ मिलाकर प्रतिदिन तीन खुराक सेवन करने से श्वेतप्रदर के कारण जो बन्ध्यापन होता है। वह दूर हो जाता है। अर्थात श्वेतप्रदर दूर होकर बन्ध्यापन (बांझपन) नष्ट हो जाता है।
4. तेजपात:
5. तुलसी: यदि किसी स्त्री को मासिक-धर्म नियमित रूप से सही मात्रा में होता होता हो, परन्तु गर्भ नहीं ठहरता हो तो उन स्त्रियों को मासिक-धर्म के दिनों में तुलसी के बीज चबाने से या पानी में पीसकर लेने अथवा काढ़ा बनाकर सेवन करने से गर्भधारण हो जाता है। यदि गर्भ स्थापित न हो तो इस प्रयोग को 1 वर्ष तक लगातार करें। इस प्रयोग से गर्भाशय निरोग, सबल बनकर गर्भधारण के योग्य बनता है।
6. नागकेसर: नागकेसर (पीला नागकेशर) का चूर्ण 1 ग्राम गाय (बछड़े वाली) के दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करें, और यदि अन्य कोई प्रदर रोगों सम्बन्धी रोगों की शिकायत नहीं है तो निश्चित रूप से गर्भस्थापन होगा। गर्भाधान होने तक इसका नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। इसमें गर्भधारण में अवश्य ही सफलता मिलती है।
7. कंटकारी: कंटकारी, भटकटैया और रेंगनीकाट आदि नामों से इसे जाना जाता है। इसके फल आधे से एक इंच व्यास के चिकने, गोल और पीले तथा कभी-कभी सफेद रंग के होते हैं। ये सभी हरे रंग के और धारी युक्त होते हैं। फूलों की दृष्टि से ये दो प्रकार के होते हैं। एक गहरे नीले रंग की तथा दूसरा सफेद रंग की। सफेद रंग वाली को श्वेत कंटकारी कहते हैं। श्वेत कंटकारी की ताजी जड़ को दूध में पीसकर मासिकस्राव के चौथे दिन से प्रतिदिन दो ग्राम पिलाने से गर्भधारण होता है।
8. गोखरू:
9. अमरबेल: अमरबेल या आकाशबेल (जो बेर के समान वृक्षों पर पीले धागे के समान फैले होते हैं) को छाया में सुखाकर रख लें। इसे चूर्ण बनाकर मासिक-धर्म के चौथे दिन से पवित्र होकर प्रतिदिन स्नान के बाद 3 ग्राम चूर्ण 3 ग्राम जल के साथ सेवन करना चाहिए। इसे नियमित रूप से नौ दिनों तक सेवन करना चाहिए। सम्भवत: प्रथम आवृत्ति में ही गर्भाधान हो जाएगा। यदि ऐसा न हो सके तो योग पर अविश्वास न कर अगले आवृत्ति में भी प्रयोग करें, इसे घाछखेल के नाम से भी जाना जाता है। इसकी कच्चे धागे के क्वाथ (काढ़ा) से गर्भपात होता है।
10. विष्णुकान्ता: पति-पत्नी दोनों को विष्णुकान्ता (नीलशंखपुष्पी) के पत्तों का रस लगभग 20 से 40 ग्राम की मात्रा में या 40 से 80 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए। इससे पति की पूयमेह, शुक्रमेह, मूत्रकृच्छ और धातु की दुर्बलता दूर होती है। पत्नी की गर्भाशय के दुर्बलता के कारण गर्भाधान न होने की शिकायत भी दूर हो जाएगी।
11. गम्भारीफल: यदि किसी स्त्री का गर्भाशय छोटा होने के कारण या सूख जाने की वजह से बंध्यापन (बांझपन) हो तो गम्भारीफल की मज्जा और मुलहठी (मुलेठी) को 250 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से गर्भाशय पूर्ण रूप से पुष्ट हो जाता है और बांझपन दूर हो जाता है।
12. बिजौरा नींबू: बिजौरा नींबू के बीजों को दूध में पकाकर, एक चम्मच घी मिलाकर मासिकस्राव के चौथे दिन से प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से गर्भ की स्थापना निश्चित रूप से होती है। पन्द्रह दिनों तक क्रम नियमित रूप से जारी रखना चाहिए। यदि पहले महीने में गर्भधारण न हो तो अगले मासिकस्राव के चौथे दिन से इसे पुन: जारी करना चाहिए। यह प्रयोग व्यर्थ नहीं जाता है। इससे गर्भधारण अवश्य ही होता है।
13. हींग: यदि गर्भाशय में वायु (गैस) भर गई हो तो थोड़ी-सी कालीहींग को कालीतिलों के तेल में पीसकर तथा उसमें रूई का फोहा भिगोकर तीन दिन तक योनि में रखे। इससे बांझपन का दोष नष्ट हो जाएगा। प्रतिदिन दवा को ताजा ही पीसना चाहिए।
14. हरड़: यदि गर्भाशय में कीडे़ पड़ गये हों तो हरड़, बहेड़ा, और कायफल, तीनों को साबुन के पानी के साथ सिल पर महीन पीस लें, फिर उसमें रूई का फोहा भिगोकर तीन दिनों तक योनि में रखना चाहिए। इस प्रयोग से गर्भाशय के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
15. कस्तूरी: यदि गर्भाशय उलट गया हो तो कस्तूरी और केसर को समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर गोली बना लें। इस गोली को ऋतु (माहवारी होने के पहले) भग (योनि) में रखें। इसी प्रकार तीन दिनों तक गोली रखने से गर्भाशय ठीक हो जाता है।
16. पीपल:
17. समुन्दरफल: समुन्दरफल, कालानमक और थोड़ा सा लहसुन पीसकर, रूई के फाहे में लपेटकर योनि में रखने से जला हुआ गर्भाशय ठीक हो जाता है। यदि इससे जलन होने लगे तो फाहे को निकालकर फेंक देना चाहिए तथा दिन में एक बार इसे पुन: रखना चाहिए। इसे ऋतुकाल (माहवारी) के पहले दिन से लेकर तीसरे दिन तक योनि में रखना चाहिए।
18. जीरा: काला जीरा, हाथी का नख तथा एरण्ड (अरण्डी) का तेल को महीन करके पीस लें। फिर उसमें रूई का फोहा तर करके तीन दिन तक योनि में रखें। इससे गर्भाशय का बढ़ा हुआ मांस ठीक हो जाता है।
19. ढाक: ढाक (छिउल) के बीजों की भस्म राख बना लें, इसे माहवारी खत्म होने के बाद स्त्री को 3 ग्राम की मात्रा में मिश्री मिले दूध के साथ खिलाना चाहिए। इससे बांझपन दूर हो जाता है।
20. शिवलिंगी: शिवलिंगी के बीज नौ दाने, सूर्योदय के समय सूर्यदर्शन करके स्नान करके पति के हाथ से लेकर दूध के साथ खाएं। माहवारी खत्म होने के बाद सूर्य का व्रत भी करें। इसी दिन व्रत में ही धूप दीप से सूर्य की पूजा करें। कुछ भोजन न करें। केवल दूध का ही सेवन करें। रात्रि में संभोग करें। इससे अवश्य ही गर्भधारण हो जाएगा। इसे एक सप्ताह तक अवश्य प्रयोग करें।
21. नौसादर: 20-20 ग्राम की मात्रा में नौसादर और बीजा बेल को पीसकर चार गोली 10-10 ग्राम की बनाकर रख लें। एक गोली रजस्वला के साथ खाएं। दूध का सेवन करे। गर्भ शुद्ध होने पर संभोग करना चाहिए। यदि पांचवें, सातवें, नौवे, ग्यारहवें, तेरहवें दिन संभोग करें तो पुत्र की प्राप्ति होगी।
22. बच: यदि गर्भाशय शीतल (ठंडा) हो गया तो बच, काला जीरा , और असगंध इन तीनों को सुहागे के पानी में पीसकर उसमें रूई का फाहा भिगोकर तीन दिनों तक योनि में रखने से उसकी शीतलता दूर हो जाती है। इस प्रयोग के चौथे दिन मैथुन करने से गर्भ ठहर जाता है।
23. कायफल: कायफल को कूट-छानकर चूर्ण बना लें, फिर उसमें बराबर मात्रा में शक्कर मिलाकर रख लें। ऋतु स्नान के तीन दिनों तक इस चूर्ण को एक मुट्ठी भर सेवन करते हैं। पथ्य में केवल दूध और चावल का सेवन करना चाहिए। इसके चौथे दिन संभोग (स्त्री-प्रसंग) करने से गर्भ ठहर जाता है।
24. असगंध:
25. खिरेंटी: खिरेंटी, खांड, कंघी, मुलेठी, बरगद के अंकुर, तथा नागकेसर को शहद, दूध तथा घी में पीसकर सेवन कराने से बांझ स्त्री भी गर्भधारण करने के योग्य हो जाती है।
26. छोटी पीपल: छोटी पीपल, सोंठ, कालीमिर्च तथा नागकेसर तीनों को समान मात्रा में पीसकर रख लें। इस चूर्ण को 6 ग्राम की मात्रा में गाय के घी में मिलाकर मासिक-स्राव के चौथे दिन स्त्री को सेवन करायें तथा रात को सहवास करें तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है।
27. बरियारी: बरियारी, गंगेरन, मुलहठी, काकड़ासिंगी, नागकेसर मिश्री इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीस-छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को लगभग 10 ग्राम लेकर घी, दूध तथा शहद में मिलाकर पीने से बांझ स्त्री को भी मातृत्व सुख मिलता है।
28. अतिबला: अतिबला के साथ नागकेसर को पीसकर ऋतुस्नान के बाद, दूध के साथ सेवन करने से लम्बी आयु वाला (दीर्घजीवी) पुत्र उत्पन्न होता है।
29. बबूल (कीकर): कीकर (बबूल) के वृक्ष में चार-पांच गज की दूरी पर एक फोड़ा सा निकलता है। जिसे कीकर का बान्दा कहा जाता है। इसे लेकर कूटकर छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को तीन ग्राम की मात्रा में माहवारी के समाप्ति के अगले दिन से तीन दिनों तक सेवन करें। फिर पति के साथ संभोग करे इससे गर्भ अवश्य ही धारण होगा।
30. आक: सफेद आक की छाया में सूखी जड़ को महीन पीसकर, एक-दो ग्राम की मात्रा में 250 मिलीलीटर गाय के दूध के साथ सेवन स्त्री को करायें। शीतल पदार्थो का पथ्य देवें। इससे बंद ट्यूब व नाड़ियां खुलती हैं, व मासिक-धर्म व गर्भाशय की गांठों में भी लाभ होता है।
31. लहसुन: सुबह के समय 5 कली लहसुन की चबाकर ऊपर से दूध पीयें। यह प्रयोग पूरी सर्दी के मौसम में रोज करने से स्त्रियों का बांझपन दूर हो जाता है।
32.  फिटकरी: मासिक-धर्म ठीक होने पर भी यदि संतान न होती हो तो रूई के फाये में फिटकरी लपेटकर पानी में भिगोकर रात को सोते समय योनि में रखें। सुबह निकालने पर रूई में दूध की खुर्चन सी जमा होगी। फोया तब तक रखें, जब तक खुर्चन आता रहे। जब खुर्चन आना बंद हो जाए तो समझना चाहिए कि बांझपन रोग समाप्त हो गया है।
33. गाजर: बांझ स्त्री (जिस औरत के बच्चा नहीं होता) को गाजर के बीजों की धूनी इस प्रकार दें कि उसका धुंआं रोगिणी की बच्चेदानी तक चला जाए। इसके लिए जलते हुए कोयले पर गाजर के बीज डालें। इससे धुंआ होगा। इसी धूनी को रोगिणी को दें तथा रोजाना उसे गाजर का रस पिलायें। इससे बांझपन दूर हो जाएगा।
34. अजवायन: मासिकधर्मोंपरान्त आठवे दिन से नित्य अजवाइन और मिश्री 25-25 ग्राम लेकर 125 मिलीलीटर पानी में रात्रि के समय एक मिट्टी के बर्तन में भिगों दे तथा प्रात:काल के समय ठंडाई की भांति घोट-पीसकर सेवन करें। भोजन में मूंग की दाल और रोटी बिना नमक की लें। इस प्रयोग से गर्भ धारण होगा।