गर्भधारण (गर्भस्थापित कराना)
(Conception)
1. मोरछली: मोरछली की छाल का चूर्ण खाने से गर्भ ठहरता है।चिकित्सा:
2. केसर: केसर और नागकेसर को 4-4 ग्राम की मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। इसकी तीन पुड़िया मासिक-धर्म समाप्त होने के तुरंत बाद खाने से गर्भ स्थापित होता है।
3. हंसपदी: हंसपदी को बारीक पीसकर पीने से स्त्री का गर्भ स्थापित होता है।
4. शंखावली: शंखाहुली या इसके पंचांग के सेवन करने से गर्भ की स्थापना अवश्य होती है।
5. गोरखमुण्डी: गोरखमुण्डी और जायफल बारीक पीसकर सेवन करने से सन्तान की अवश्य ही प्राप्ति होती है।
6. समुद्रफेन: समुद्रफेन को दही के साथ खाने से निश्चय ही गर्भ धारण होता है।
7. समुद्रफल: समुद्रफल और अजवायन के सेवन से गर्भधारण अवश्य ही होता है।
8. खिरैटी: मासिक-धर्म में सफेद खिरेटी, मुलहठी तथा मिश्री मिलाकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से गर्भ अवश्य ठहरता है।
9. सोंठ: सोंठ, मिर्च, पीपल और नागकेशर का चूर्ण घी के साथ माहवारी समाप्ति के बाद स्त्री को सेवन कराने से गर्भ ठहर जाता है।
10. सरसो: सफेद सरसो, बच, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, गदहपुरैना, दूधी, कूठ, मुलहठी, कुटकी, खंभारी के फल, फालसा, अनन्तमूल, कालीसर, हल्दी, भंगरा, देवदारू, सूर्यमुखी, मंजीठ, त्रिफला, प्रियंगु के फूल, अड़ूसा के फूल तथा गेरू सभी को 2 किलो गाय के घी में मिलाकर गर्म करें। इसे 20 से 40 ग्राम की मात्रा में पुरुष तथा ऋतुस्नाता स्त्री भगवान का स्मरण कर इस घी का सेवन करें तो इससे गर्भसम्बंधी सभी गुप्तांग रोग नष्ट होते हैं तथा बांझ स्त्री भी पुत्र उत्पन्न करने के योग्य हो जाती है।
11. कटेली: सफेद कटेली की जड़ रविवार को पुष्य नक्षत्र में लाए छाया में सुखाकर जड़ का बक्कल (छिलका) उतारकर कूटकर छान लें। इसे 10 ग्राम की मात्रा में गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध से सुबह माहवारी शुरू होने के दिन से 3 दिनों तक लगातार प्रयोग करना चाहिए।
12. तुलसी: तुलसी के बीज 5 ग्राम पानी के साथ मासिक-धर्म शुरू होने के पहले दिन से 3 दिनों तक नियमित सेवन कराना चाहिए। इस प्रयोग से गर्भ ठहरता है।
13. निर्गुण्डी: निर्गुण्डी की 10 ग्राम मात्रा को लगभग 100 मिलीलीटर पानी में रात को भिगोकर रख दें। सुबह उसे उबालें, जब यह एक चौथाई रह जाए तो इसे उतारकर छान लें। इसके बाद इसमें 10 ग्राम की मात्रा में पिसा हुआ गोखरू मिलाकर मासिक-धर्म खत्म होने के बाद पहले दिन से लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।
14. नागकेसर: पिसी हुई नागकेसर को लगभग 5 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय बछड़े वाली गाय या काली बकरी के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध के साथ माहवारी (मासिक-धर्म) खत्म होने के बाद सुबह के समय लगभग एक सप्ताह तक सेवन कराएं। इससे गर्भधारण के उपरान्त पुत्र का जन्म होगा।
15. कृष्णकांता: कृष्णकांता की जड़ 15 ग्राम को बारीक पीस लें। इसे 5 ग्राम सुबह के समय काली बकरी के कच्चे दूध से माहवारी खत्म होने के बाद 3 दिनों तक लगातार सेवन करना चाहिए। इससे स्त्री गर्भधारण के योग्य बन जाती है।
16. पुत्रजीवक (जियापोता): पुत्रजीवक (जियापोता) के एक पत्ते को बारीक पीसकर गाय के कच्चे दूध में मिला दें। इसे सुबह 10 ग्राम की मात्रा में मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद लगभग एक सप्ताह तक नियमित रूप से सेवन करने से गर्भधारण होता है।
17. अपामार्ग: अपामार्ग की जड़ और लक्ष्मण बूटी 40 ग्राम की मात्रा में बारीक पीस-छानकर रख लें। इसे गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध के साथ सुबह के समय मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद से लगभग एक सप्ताह तक सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।
18. माजूफल (मियादी फल): माजूफल (मियादी फल) 60 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट छान लें। इसे 10-10 ग्राम सुबह-शाम मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद 3 दिनों तक गाय के दूध से सेवन करना चाहिए। इससे गर्भ स्थापित होता है।
19. आम: आम के पेड़ का बांदा पानी के साथ बारीक पीसकर मासिक-धर्म खत्म होने के 2 दिन बाद सुबह के समय गाय के कच्चे दूध में मिलाकर सेवन करना चाहिए। इससे गर्भ ठहरता है।
20. ढाक: ढाक (पलाश) का एक पत्ता गाय के कच्चे दूध में पीसकर मासिक-धर्म के शुरू होने के दिनों में सुबह के समय लगातार तीन दिनों तक सेवन कराना चाहिए। इसके सेवन से स्त्रियां गर्भधारण के योग्य हो जाती हैं।
21. हाथी दांत: हाथी दांत को लेकर बारीक पीसकर रख लें। इसमें से लगभग 3 ग्राम सुबह के समय मासिक-धर्म के शुरू होने के दिनों में गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध से देना चाहिए। इसके सेवन से गर्भ स्थापित होता है।
22. ओंघाहुली: ओंघाहुली और ब्रह्मबूटी 15-15 ग्राम कूट-छानकर 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध से मासिक-धर्म खत्म होने के बाद सेवन करने से गर्भधारण होता है।
23. गजकेसर: गजकेसर की जड़, पीपल की दाढ़ी और शिवलिंगी के बीज 6-6 ग्राम की मात्रा में कूट-छानकर इसमें 18 ग्राम की मात्रा में खांड मिला दें। इसकी 5 ग्राम मात्रा को सुबह के समय बछडे़ वाली गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध से मासिक-धर्म खत्म होने के बाद लगभग एक सप्ताह तक करना चाहिए। इसके सेवन से स्त्रियां गर्भधारण के योग्य बन जाती हैं।
24. कायफल: कायफल 25 ग्राम की मात्रा में कूटपीसकर रख लें। इसमें 25 ग्राम की मात्रा में खांड मिला दें। इसे लगभग 10 ग्राम की मात्रा में सुबह पानी के साथ मासिक-धर्म खत्म होने के बाद लगभग 5 दिनों तक देना चाहिए। इससे स्त्रियों का गर्भ ठहरता है।
25. अजवायन: अजवायन 10 ग्राम पानी से मासिक-धर्म खत्म होने के बाद तीन-चार दिनों तक सेवन करने से गर्भ की स्थापना में लाभ मिलता है।
26. पीपल का बांदा: पीपल का बांदा (बांझी) को लेकर कूट-छान लें। इसे 5 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय बछड़े वाली गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध से मासिक-धर्म के बीच में 3 दिनों तक लगातार सेवन करने से गर्भधारण होता है।
27. काकोली: काकोली का बीज 20 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें। इसे 5 ग्राम लेकर सुबह एक रंग की गाय (जिस गाय के बछड़े मरते न हो) या काली बकरी के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध के साथ मासिक-धर्म के बीच में देने गर्भ स्थापित होता है।
28. जायफल: जायफल और मिश्री 50-50 ग्राम की मात्रा में पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। इसे छह ग्राम की मात्रा में माहवारी के बाद सेवन करना चाहिए। आहार में चावल और दूध का सेवन करें। इससे गर्भधारण हो जाएगा।
29. मेहंदी: मासिक-धर्म के बाद हर चौथे दिन के बाद नियमित 5 बार लगातार अपने हाथ-पैरों पर लगाने से गर्भवती होने की आशा बढ़ जाती है।
30. देवदारू: तैलिया देवदारू को घिसकर स्त्री को पिलाना चाहिए इससे पेट की वायु कम होकर गर्भ को बढ़ने के लिए जगह मिलती है।
31. मशरूम: गर्भावस्था में मशरूम की सब्जी खाने से महिलाओं को पर्याप्त मात्रा में फोलिक अम्ल, नियासिन, वायमिन, राइबोफ्लेकिन आदि `बी´ कॉम्पलेक्स समूह के विटामिन प्राप्त होते हैं।
32. अशोक: अशोक के फूल दही के साथ नियमित रूप से सेवन करते रहने से गर्भ स्थापित होता है।
33. बरगद: पुष्य नक्षत्र और शुल्क पक्ष में लायें, हुए बरगद के कोपलों का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में ऋतु काल में प्रात: पानी के साथ 4-6 दिन खाने से स्त्री अवश्य गर्भ धारण करती है, या कोंपलों को पीसकर बेर के जितनी 21 गोलियां बनाकर 3 गोली रोज घी के साथ खायें, इससे लाभ मिलेगा।
34. नीलकमल: नीलकमल का चूर्ण और धाय के फूल का चूर्ण समभाग मिलाकर ऋतुकाल प्रारंभ होने के दिन से पांच दिन तक शहद के साथ सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करने से गर्भधारण होता है। एक बार या प्रयोग असफल होने पर अगले ऋतुकाल (मासिक स्राव) में पुन: दोहराने से गर्भधारण हो जाता है।
35. गाजर: गर्भावस्था में गाजर का रस पीते रहने से सैप्टिक रोग नहीं होता है तथा शरीर में कैल्शियम की भी कमी नहीं रहती है। बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को नियमित रूप से गाजर के रस का सेवन करना चाहिए। इससे उनके दूध की गुणवत्ता बढ़ती है।
36. पीपल:
पीपल, सोंठ, कालीमिर्च और नागकेसर को लगभग 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर बारीक चूर्ण तैयार कर लें। इस चूर्ण को लगभग 7 ग्राम की मात्रा में लेकर 250 मिलीलीटर गाय के हल्के मीठे दूध में एक चम्मच देशी घी मिलाकर मासिक-धर्म शुरू होने के दिन से लेकर तीन दिनों तक नियमित सेवन कराएं। इससे गर्भ स्थिर होता है।
पीपल की दाढ़ी 100 ग्राम कूटकर खांड 100 ग्राम की मात्रा में मिला दें। इसे 10-10 ग्राम की मात्रा में पति-पत्नी दोनों को सुबह के समय मासिक-धर्म खत्म होने के बाद लगभग एक सप्ताह तक सेवन कराने से गर्भ ठहरता है।
शिवलिंगी के बीज 10 ग्राम, स्वर्ण भस्म 1 ग्राम, चांदी भस्म 6 ग्राम, वंग भस्म 6 ग्राम, सरफोका की जड़ 6 ग्राम, चंदन का बुरादा 6 ग्राम, शतावर 9 ग्राम, नागकेसर 9 ग्राम, अरुस के फूल 9 ग्राम तिल के फूल नौ ग्राम, हिंगुल भस्म 9 ग्राम, त्रिवंग भस्म 6 ग्राम, असगंध 10 ग्राम, विदारीकंद 10 ग्राम, बरगद की कोमल जटा नौ ग्राम सभी को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। फिर केसर को 6 ग्राम की मात्रा में पीसकर विदावर कन्द शतावर को पानी में पीसकर इसी पानी से केसर को बारीक पीसते हैं। इसे लगभग आधे ग्राम की गोली बना लें। इसे सुबह-शाम दूध और मिश्री के साथ माहवारी खत्म होने के बाद सेवन करें। इसके सात दिनों बाद पति के साथ संभोग करें। इससे निश्चित ही गर्भधारण होगा।
शिवलिंगी के 5 बीज और साबूत के 5 बीज सुबह महिलाएं अपने पति के हाथ से सूर्य की ओर मुंह करके लेकर, 250 मिलीलीटर कच्चे दूध (बछड़े वाली गाय के) से निगल जाए ऐसा मासिक-धर्म खत्म होने के बाद 7 दिनों तक लगातार करना चाहिए। इससे निश्चित रूप से गर्भधारण होता है।
मजीठ, मुलहठी, कूठ, त्रिफला, खांड, खिरैटी, मेदा, महामेदा दुधी, काकोली, असगंध की जड़, अजमोद, हल्दी, दारूहल्दी, लाल चंदन सभी 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर खरल कर लें। इसके बाद एक रंग की गाय (जिस गाय के बच्चे न मरते हो) का घी लगभग 2 किलो, दूध 8 किलो, शतावरी रस 8 किलो मिलाकर गर्म करें। इसे 20 से 40 ग्राम गाय के दूध के साथ सेवन करें। इसके सेवन से बांझ स्त्री को भी पुत्र की प्राप्ति होती है।
मजीठ, मुलहठी, कूठ, हरड़, बहेड़ा, आमला, खांड, खिरेटी, शतावर, असगंध, असगंध की जड़, हल्दी, दारूहल्दी, प्रियंगु के फूल, कुटकी, कमल, कुमुदनी, अंगूर, काकोली, क्षीरकाकोली, दोनों चंदन सभी 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर लुगदी तैयार कर लें। इसके बाद गाय का घी लगभग 640 ग्राम, दूध लगभग 2.5 लीटर को मिलाकर गर्म करें। जब केवल घी मात्र ही शेष बचा रह जाए तो उसे उतारकर छान लें। इसे 20 से 40 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से बांझपन दूर हो जाता है और स्त्रियां गर्भधारण करने के योग्य हो जाती है।
तेजपत्ते के पत्तों का बारीक चूर्ण एक से तीन ग्राम तक सुबह-शाम सेवन करने से गर्भाशय शुद्ध होता है।
तेजपत्ता के क्वाथ (काढ़े) में बैठने से गर्भाशय का दर्द (पीड़ा) शान्त होती है।
प्रसूता को इसके पत्तों का काढ़ा सुबह-शाम पिलाने से गंदा खून तथा गर्भाशय के अन्य विकार नष्ट हो जाते हैं और गर्भाशय शुद्ध हो जाता है।
असगंध के काढे़ में दूध और घी मिलाकर सात दिनों तक पिलाने से स्त्री को निश्चित रूप से गर्भधारण होता है।
असगंध का चूर्ण 3 से 6 ग्राम मासिक-धर्म के शुरू होने के लगभग 4 दिन पहले से सेवन करना चाहिए। इससे गर्भ ठहरता है।
असगंध के चूर्ण को गाय के दूध के साथ पकाकर मिश्री मिलाकर मासिक-धर्म के समाप्त होने के बाद पीने से गर्भधारण हो जाता है।
असगंध 100 ग्राम दरदरा कूटकर 20 ग्राम दवा को पानी 200 मिलीलीटर में रात को भिगोकर रख देते हैं। सुबह इसे उबालते हैं। एक चौथाई रह जाने पर इसे छानकर 200 मिलीलीटर हल्के गर्म मीठे दूध में एक चम्मच घी मिलाकर माहवारी के पहले दिन से 5 दिनों तक लगातार प्रयोग करना चाहिए।
अश्वगंधा का चूर्ण 20 ग्राम, पानी एक लीटर तथा गौ दूध 250 मिलीलीटर तीनों को हल्की आंच पर पकाकर जब दूध मात्र शेष रह जाये तब इसे 6 ग्राम मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिलाकर मासिक-धर्म की शुद्धिस्नान के तीन दिन बाद तीन दिन तक सेवन करने से स्त्री अवश्य गर्भ धारण करती है।
अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध के साथ या ताजे पानी से 4-6 ग्राम की मात्रा में एक माह तक निरन्तर सेवन करने से स्त्री गर्भधारण अवश्य करती है।
अश्वगंधा के जड़ के काढे़ में चौगुना घी मिलाकर पकाकर सेवन करने से वातरोग दूर होते हैं तथा स्त्री गर्भधारण करती है।