प्रलाप बड़बड़ाना

प्रलाप बड़बड़ाना


              जब व्यक्ति के मुंह से ऐसी बातें निकलें जिनका कोई अर्थ या मतलब न हो और रोगी स्वयं ही बोलता हो और स्वयं ही सुनता हो तो इसे बड़बड़ाना कहते हैं। इस रोग में रोगी के मुंह से ऐसे शब्द व वाक्य निकलते हैं जिसे समझा नहीं जा सकता है। इस तरह अपने आप से बातें करना, हंसना, रोना व होंठों को पटपटना प्रलाप व बड़बड़ाना कहलाता है।परिचय :

कारण :

लक्षण :

1. जटामांसी : लगभग आधे से एक ग्राम जटामांसी का चूर्ण शहद के साथ रोगी को चटाने से रक्ताभिशरण (रक्त संचार) क्रिया ठीक होती है और नाड़ी तंतुओं को मजबूती मिलती है। इससे कफ ढीला होकर निकल जाता है और बुखार खत्म हो जाता है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से त्रिदोष (कफ, वात, पित्त) के खराब होने पर ज्यादा लाभकारी होता है।
2. बान्दा : 10 से 20 मिलीलीटर बान्दा (बांझी) के फूलों का रस सुबह-शाम देने से बुखार के कारण उत्पन्न प्रलाप या बड़बड़ाना ठीक होता है।
3. वन्यकाहू : लगभग 1 से 2 ग्राम वन्यकाहू की अफीम को खाने से बुखार के कारण होने वाला प्रलाप ठीक हो जाता है।
4. पाढ़ल : लगभग 20 से 40 मिलीलीटर पाढ़ल (घंटा पाढ़र) का काढ़ा रोगी को पिलाने से ज्वर के कारण होने वाली बेचैनी और बड़बड़ाना ठीक हो जाता है।
5. केवांच : लगभग 20 से 40 मिलीलीटर केवांच (कपकच्छु) की जड़ का काढ़ा या 10 से 20 मिलीलीटर जड़ का रस प्रलाप या बड़बड़ाने के रोगी को देने से रोग ठीक होता है।
6. लौंग : लगभग 1-1 ग्राम मात्रा में लौंग, तगर, ब्राह्मी और अजवायन को लगभग 16 मिलीलीटर पानी में उबालें और जब पानी एक चौथाई रह जाए तो छानकर रोगी को दिन में 2-3 बार पिलाएं। इससे मानसिक परेशानी के कारण प्रलाप व बड़बड़ाना ठीक होता है।